Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी - Page 30 - SexBaba
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Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी

सवी ने प्यार से सुनील के सर पे हाथ फेरा.

'जीजू तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नही - कोई नही डालेगा तुम्हें दर्द के सागर में - ज़रूरी तो नही कि हर इंसान की हर इच्छा पूरी हो जाए' बस इतना कहते ही वो उठी और रूबी के कमरे में भाग गयी. उसकी आँखों से आँसू टपक रहे थे.

रूबी ने सवी को रोते देखा तो पूछ बैठी. 'क्या हुआ माँ - किसी ने कुछ कहा क्या'

सवी : नही रे बस तेरा दर्द अब सहा नही जाता.

सवी रूबी के गले लग गयी.

सवी के जाते ही सूमी ने सुनील को अपनी गोद से उठाया और अपने होंठ उसके होंठों से चिपका दिया. कुछ देर बाद दोनो अलग हुए, तो उस वक़्त सुनील सूमी के उरोजो को मसल रहा था, शायद वो भूल गया था कि घर में सवी आ चुकी है और रूबी कभी भी हाल में आ सकती थी.

सूमी मज़े में सिसकियाँ लेती रही और कुछ देर बाद उसने खुद को सुनील से अलग किया और बोली - सो जाओ सोनल के पास वो तुम्हारा इंतेज़ार कर रही होगी मैं सवी से मिल के आती हूँ, कुछ देर लग जाएगी.

सुनील सोनल के पास चला गया और सूमी के कदम रूबी के कमरे की तरफ बढ़ गये, जहाँ दोनो माँ बेटी एक दूसरे के गले लगी अपने आँसू बहा रही थी.

सूमी जा के उन दोनो से लिपट गयी .

रूबी कुछ पलों बाद अलग हो बाहर चली गयी और दोनो बहनो को अकेले छोड़ दिया, पर आज शायद रूबी ने ये ग़लत कदम उठा लिया था वो चिंगारी जिसे वो कब से दबा के बैठी थी आज उसे हवा लगने वाली थी. रूबी के कदम सोनल की तरफ बढ़ गये, अपनी तरफ से तो वो बस ये पूछने जा रही थी कि उसे कुछ चाहिए तो नही, लेकिन जैसे ही उसके कदम सोनल के कमरे के दरवाजे तक पहुँचे तो वो भिड़ा हुआ था बंद नही था, अंदर सोनल और सुनील थे. दरवाजे की झिर्री से अंदर का दृश्य दिख रहा था.

रूबी ने दरवाजे पे नॉक करने के लिए हाथ ही बढ़ाया था की कि उसकी नज़रें दरवाजे की झिर्री पे अटक गयी , अंदर सोनल सुनील का लंड चूस रही थी. सुनील के मोटे लंड को सोनल के गले तक उसके मुँह में समाते देख रूबी के बदन में काम ज्वाला भड़क उठी और वो कल्पना करने लगी कि सोनल की जगह वो सुनील का लंड चूस रही है.

साँसों की रफ़्तार बढ़ने लगी जिस्म का रोया रोया चीत्कार करने लगा, दिल और दिमाग़ दोनो सुन्न पड़ गये, आँखों में लाल डोरे तैरने लगे और दोनो हाथों की मुठियाँ भिन्च गयी.

'अहह' सुनील के गले से गुर्राहट निकली जब वो सोनल के मुँह में झड़ने लगा और रूबी को झटका लगा वो अपने ख़यालों की दुनिया से वापस आई और हाँफती हुई सी अपने कमरे की तरफ भागी जहाँ उसे एक और झटका लगा ...

अंदर कमरे में दोनो बहने एक दूसरे से चिपकी हुई थी और दोनो के होंठ आपस में जुड़े हुए थे. रूबी के बस में नही था की वो बाहर खड़ी अपनी माँ और मासी को एक दूसरे से चिपके ज़्यादा देर तक देख पाती वो कमरे में घुसी और सीधा अंदर बने अटॅच बाथ में घुस शवर के नीचे खड़ी हो गयी अपने जिस्म के ताप को ठंडा करने के लिए.

उसके अंदर घुसते ही दोनो बहने एक दूसरे से अलग हो गयी थी.

आज जिंदगी में पहली बार दोनो बहने इतना करीब हुई थी और इसकी पहल भी सुमन ने ही करी थी.

सुमन : छोटी तू आराम कर, रूबी मेरे सागर की निशानी है और मेरा वादा है तुझ से उसे जिंदगी में भरपूर प्यार मिलेगा, थोड़ा वक़्त लगेगा पर ये होगा ज़रूर.

सवी : चलो मैं भी चलती हूँ, रात का खाना तयार कर लेते हैं, बहुत देर हो चुकी है.

सूमी .. ना तू बैठ मैं कर लूँगी, आज ही तो सफ़र से आई है आराम कर ले.

सवी ...अरे कर लिया आराम...वहीं किचन में बातें भी कर लेंगे.

सूमी ...मानेगी नही तू, अच्छा चल.

और दोनो बहने किचन की तरफ बढ़ गयी.

बाथरूम में शवर के नीचे खड़ी रूबी की नज़रों के सामने बार बार सुनील का मोटा लंबा लंड आ रहा था, और उसके दिल के आरमान जिन्हे बड़ी मुश्किल से उसने दबा के रखा था उन्हें हवा लग गयी और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे अपनी नाकामयाबी पर.

वाह री जिंदगी और कितना रुलाएगी तू.

सूमी और सवी दोनो किचन में काम करते हुए बातें कर रही थी.

सवी : दी ये सुनहरे ख्वाब मत दिखाओ, टूटने पे बहुत तकलीफ़ होती है.

सूमी ने कुछ पल उसकी तरफ देखा.

सूमी : तू नही जानती मैं खुद से कितना लड़ी हूँ, ये फ़ैसला लेना मेरे लिए आसान नही था. एक औरत अपने पति को इतनी आसानी से नही किसी के साथ बाँट सकती, पहले भी इस दर्द से गुजर चुकी हूँ जब सोनल को अपनी सौतेन बनाया था. वो मेरे सागर के दिल का टुकड़ा थी मेरे जिस्म का हिस्सा है, नही देख पाई उसे दर्द से तड़प्ते हुए. फिर उसी दर्द का सामना किया जब भी रूबी की वीरान नज़रों की तरफ देखा वो भी तो मेरे सागर की ही देन है, कैसे उसे दर्द में तड़प्ता देख सकती हूँ. लेकिन सुनील को मनाने में वक़्त लगेगा और ये काम सिर्फ़ सोनल ही कर सकती है, उस वक़्त सुनील एक वचन में बँधा हुआ था इसलिए मान गया. लेकिन अब हालत दूसरे हैं. इतना आसान नही होगा उसे मनाना और मैं उसे भी तो तड़प्ता हुआ नही देख सकती.


नही सह सकती कि वो फिर से दर्द के सागर में गोते लगाए अपनी मर्यादा की दीवारों से फिर थे उलझे. कुछ समझ नही आता. तू सोच भी नही सकती वो कितने दर्द से गुजरा था जब उसने मुझ से शादी की थी और फिर एक बार उसे मैने उसी दर्द से तड़प्ते देखा था जब मैने उसे सोनल को अपनाने के लिए मनाया था. कैसे होगा ये सब कैसे क्या होगा कुछ समझ नही आता, लेकिन जब तक बच्चे दुनिया में नही आ जाते तब तक बस इंतजार करना पड़ेगा. अब तू आ गयी है तो रूबी का दिल भी लग जाएगा, एक लड़की के लिए उसकी अपनी का का साथ बहुत बड़ी चीज़ होता है.

सवी सूमी को सुनती रही उसके मुँह से कोई बोल नही निकला.
 
जब तक खाना तयार हुआ तब तक रूबी बाथरूम में शवर के नीचे खड़ी अपने जिस्म और दिल को शांत करने का प्रयास करती रही और बड़ी मुहकिल से खुद को संभालते हुए वो बाथरूम से बाहर निकली और अपने कपड़े बदले.

दिल उदास था पर फिर भी उसके कदम किचन की तरफ बढ़ गये और वो सूमी और सवी की मदद करने लगी हॉल में टेबल पे खाना लगाने केलिए.

आज सुनील सोनल को भी डाइनिंग टेबल पे ले आया. सब बैठ गये और रूबी सब को सर्व करने लगी.

सुनील ने बैठते ही सवी पे सवाल दाग दिया ' मासी अकेले आई हो मिनी को कहाँ छोड़ दिया.'

सवी : वो लंडन चली गयी है शायद अब वो वहीं बस जाए.

सुनील : ओह तो क्या उसकी दूसरी शादी कर्वादी.

सवी : यही समझ लो.

सुनील : ये क्या बात हुई, हमे क्यूँ नही बताया.

सवी : बस सब कुछ जल्द बाजी में हुआ किसी को भी बताने का मौका नही मिला.

सुनील : चलो अच्छा हुआ उसकी लाइफ सेट हो गयी.

सोनल और सूमी दोनो की नज़रें सवी के चेहरे पे गढ़ी हुई थी, दोनो को ही लग रहा था जैसे सवी कुछ छिपा रही है.

खाना ख़तम हुआ और सुनील कुछ देर टहलने के लिए निकल गया सोनल को लेकर.

रूबी ने बर्तन समेटे और अपने कमरे में चली गयी. सूमी ने सवी के रहने का इंतेज़ाम अलग कमरे में कर दिया क्यूंकी रूबी के कमरे में सिंगल बेड था . सोनल आज कल सुनील और सूमी के साथ नीचे के बेड रूम में ही रहती थी जहाँ सुनील ने बड़ा बेड लगवा लिया था ताकि तीनो को सोने में दिक्कत ना हो.

सोनल का कमरा खाली रहता था जहाँ डबल बेड था, सूमी ने सवी के रहने का इंतेज़ाम वहीं कर दिया था.

ये सारे काम होने तक सुनील और सोनल भी वापस आ गये थे और सोनल कमरे में चली गयी सोने. सुनील कुछ काम करने हॉल में ही बैठ गया.

सूमी : सुनो मैं आज सवी के साथ सो जाउ.

सुनील : अरे इसमे पूछने वाली क्या बात है, तुम्हारी बहन इतने दिनो बाद आई है, बीताओ वक़्त उसके साथ.

सूमी : तो तुम्हे रात को मेरी ज़रूरत तो....

सुनील उसकी बात का मतलब समझ गया क्यूंकी जब से सोनल प्रेग्नेंट हुई थी सुनील लगबग रोज ही रात को सूमी को चोदता था.

सुनील : आज उपवास रख लेंगे ( वो मुस्कुराते हुए बोला)

सूमी : नही जी आपको उपवास रखने की ज़रूरत नही, आपकी भूख मिटा के चली जाउन्गि.

सूमी कातिलाना मुस्कान बिखेरती हुई कमरे में चली गयी और फ्रेश होने बाथरूम घुस गयी.

सूमी जब बाथरूम से बाहर निकली तो उसने झीनी सी नाइटी पहनी थी और अंदर कुछ नही पहना था, उसका गोरा बदन सॉफ सॉफ झलक रहा था नाइटी में. शीसे के आ गये खड़ी हो वो अपने बाल सवारने लगी. सोनल सो चुकी थी. कुछ देर में सुनील भी कमरे में आ गया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. अपनी शर्ट और बनियान उतार वो पीछे से सूमी के साथ चिपक गया और उसके बालों को सूंघते हुए उसके उरोजो को मसल्ने लगा.

अहह उम्म्म्मम सूमी सिसक पड़ी और उसने अपना भार सुनील पे डाल दिया .

दोनो के कपड़े उतरने में देर ना लगी और दोनो एक दूसरे में सामने की कोशिश करने लगे, जिस्मो का मिलन काफ़ी देर चला और अंत में जब सुनील सूमी की चूत में झड गया तो बहुत ही थक चुका था और जल्दी उसकी आँख लग गयी.

सूमी ने नाइटी पहनी और अपने बिखरे बाल सँवारते हुए वो सवी के कमरे की तरफ बढ़ गयी. उसकी चूत से सुनील का वीर्य धीरे धीरे बाहर रिस रहा था. पता नही क्यूँ सूमी ने खुद की सफाई नही करी, उसके जिस्म से चुदाई की तेज महक आ रही थी.
 
सूमी जब सवी के कमरे में पहुँची तो कुछ देर पहले ही रूबी वहाँ से अपने कमरे में गयी थी. सूमी को इस हालत में देख सवी चोंक सी गयी थी, उसे समझने में देर ना लगी थी कि सूमी अभी अभी चुदवा के आ रही है.

सूमी जा के सवी की बगल में लेट गयी.

सूमी : कैसी है रे तू, दी से कोई इतना नाराज़ होता है कि छोड़ के चली गयी थी.

सवी : दी क्यूँ कुरेद रही हो उन बातों को, जानती तो हो मैं क्यूँ गयी थी.

सवी को समझ नही आ रहा था सूमी आख़िर चाहती क्या है. क्या वो ये जानना चाहती है कि मैं अब भी सुनील से प्यार करती हूँ या नही? सवी के दिमाग़ में हज़ारों सवाल उमड़ने लगे. ये अभी अभी चुद कर इस तरहा क्यूँ आई? नहा कर नही आ सकती थी. अफ कितनी तेज खुसबू आ रही है सुनील की इसके बदन से.

सूमी : क्यूँ क्या मुझे हक़ नही तेरे दिल की बात जान सकूँ.

ये कहते हुए सूमी सवी की तरफ पलटी और उसे अपनी बाँहों में ले लिया. और सवी सोचने लगी क्या जवाब दे.

सूमी सवी के जिस्म पे हाथ फेरने लगी, और सवी हैरानी से सूमी को देखने लगी.

सूमी : तूने किसी को पसंद किया या नही.

सवी : क्या दी, कैसी बातें कर रही हो, जिसे मैन पसंद करती हूँ वो मेरे नसीब में कहाँ.

सूमी : कोई तो होगा मुंबई में जो तुझे पसंद आ गया हो.

सवी : नही दी ऐसा कुछ नही है ( सवी ने एक ठंडी साँस छोड़ी)

सूमी : पहले तू एक दम चली गयी बहुत बुलाने पे वापस नही आई. यहाँ तक कि कवि की शादी तक में नही आई. कुछ तो बात है जो तू छुपा रही है. देख मैं तेरी बहन हूँ, बस अपना पति तुझ से नही बाँट सकती, सचसच बता क्या बात है. वरना तू ऐसे नही आती. और मिनी की तूने शादी कर्वादी हमे खबर तक नही दी.

सवी खामोश रही उसे कुछ समझ नही आ रहा था सूमी को क्या बताए क्या ना बताए, अभी वो वक़्त नही आया था कि वो सूमी को सुनेल के बारे में बताती, उसके दिमाग़ में आँधियाँ उड़ने लगी.
सूमी ने जब सवी को यूँ खामोश देखा तो दिल में एक हुक सी उठी, उसे यकीन हो गया सवी कुछ छुपा रही है.

सूमी ने सवी को अपनी बाँहों में भरा और अपने होंठ उसके होंठों से चिपका दिए. सवी को सूमी के होंठों से सुनील के होंठों का रस मिलने लगा, बावली हो गयी वो और सूमी पे झपट पड़ी ज़ोर ज़ोर से सूमी के होंठ चूसने लग गयी, जैसे सुनील को अपने अंदर समेट रही हो.

सूमी ने अपनी जीब सवी के मुँह में घुसा दी और सवी भूखी प्यासी की तरहा उसे चूसने लगी. दोनो के बदन गरम होने लगे और काफ़ी देर तक सवी सूमी के होंठों को उसकी ज़ुबान को चूस्टी रही, अपनी ज़ुबान उसके मुँह में घुसा सुनील की थूक के एक एक कतरे को अपने अंदर समेटने लगी.

सूमी ने कुछ देर बाद अलग हो अपनी नाइटी उतार डाली और उसकी देखा देखी सवी भी नंगी हो गयी.

सवी ने नज़रें सूमी की चूत पे पड़ी जहाँ से सुनील का वीर्य धीरे धीरे बाहर रिस रहा था.

सवी फट से सूमी की चूत से चिपक गयी और अपनी ज़ुबान से सुनील के वीर्य को चाटने लगी, उसे यूँ लग रहा था जैसे उसे फिर से नया जीवन मिल गया हो, उसे उसका सुनील मिल गया था चाहे सीधा नही पर उसका एक अंश उसके जिस्म में समाता जा रहा था.

'अहह ऊऊहह सवी .......ऊऊहह म्म्म्मामाआआअ'

सूमी ज़ोर ज़ोर से सिसकने लगी सवी उसकी चूत में धमाल मचा रही थी.

सूमी उसकी हालत समझती थी इसीलिए आज वो जान भूज के सुनील के वीर्य को अपनी चूत में भर के उसके पास आई थी, ऐसे नही तो वैसे ही सही आज उसने अपनी छोटी बहन की तड़प को कुछ मिटाने का प्रयास किया था.....ये प्रयास आगे क्या गुल खिलाएगा इससे वो अंजान थी.

सूमी से ज़्यादा देर तक सवी की ज़ुबान की हरकतें बर्दाश्त नही हुई और वो झड़ने लगी, उसके झड़ते ही उसके रस के साथ अंदर तक घुसा सुनील का रस भी साथ साथ बाहर निकलने लगा, सवी ने एक बूँद भी ना छोड़ी और सब कुछ अपने अंदर लेती चली गयी .

सवी ने यहाँ बस नही किया और वो धीरे धीरे सूमी के जिस्म के हर हिस्से वो चाटने लगी क्यूंकी हर जगह सुनील ने अपनी ज़ुबान और दाँतों के निशान छोड़े थे. सूमी निढाल पड़ चुकी थी झड़ने के बाद, लेकिन सवी के जिस्म में भूकंप की शुरुआत हो चुकी थी, जहाँ एक तरफ उसे ये संतुष्टि मिली कि आज सुनील उसके अंदर समा गया, वहीं उसका जिस्म और उसकी चूत ने बग़ावत शुरू कर दी. महीन से वो बिना लंड के रही और आज सुनील के वीर्य ने जहाँ उसकी आत्मा की प्यास भुझाई वहीं उसके जिस्म की प्यास को जगा दिया.
 
सूमी काफ़ी गरम हो गयी थी और वो जानती थी जब तक सवी झडेगी नही वो शांत नही होगी.

सूमी ने सवी को अपने नीचे ले लिया और दोनो 69 के पोज़ में आ कर एक दूसरे की चूत को चाटने लगी, खाने लगी, ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी.

आधे घंटे बाद दोनो पस्त हो चुकी थी और एक दूसरे के साथ चिपक गहरी साँसे ले रही थी.

कुछ देर सम्भल ने के बाद.

सवी : दी आज तुमने मुझे नयी जिंदगी दे दी.

सूमी : सुनील का रस इतना अच्छा लगा क्या.

सवी : हां दी तुम नही जानती ऐसे लगता है जैसे मेरा रूम रोम खिल उठा हो.

सूमी : अब भी अपनी दी से छुपाएगी क्या, देख तुझे उसका लंड तो नही दिला सकती पर उसका रस रोज तुझे ज़रूर पिलाउन्गी.

सवी : मेरे लिए इतना ही काफ़ी है. बस रूबी का ख़याल रखना. आज आपको सब कुछ बता दूँगी कुछ नही छुपाउन्गी.

और सवी अपने कहानी शुरू करती है.......

सवी : आपको नही मालूम, कॉलेज के दिनो में मेरा एक बॉय फ्रेंड था. लेकिन वो बीच में साथ छोड़ गया. उसने मुझे बस इतना कहा कि वो मजबूर हो गया है अब दोनो के रास्ते अलग. क्या वजह थी, क्या मजबूरी थी ये उसने नही बताया. बहुत टूट गयी थी मैं, बहुत प्यार करती थी उससे. फिर जब पापा ने मेरी शादी समर से करी मैने चुप चाप हाँ कर दी और जिंदगी को नये सिरे से जीने की कोशिश करी, पर यहाँ भी मैं टूट गयी - समर ने मुझ से शादी तुम्हें पाने के लिए की थी. फिर जब स्वापिंग शुरू हुई तो सागर मेरे दिल में बस गया, मैं उन पलों का बेसब्री से इंतेज़ार करती थी कब सागर की बाँहों का सकुन मुझे मिले. सुनील में हमेशा मुझे सागर की परछाई दिखी, चाहे उसका बाप समर था पर पाला पोसा सागर ने था - वो बिल्कुल सागर का ही एक रूप है. जब मुझे ये पता चला तुमने उससे शादी कर ली, मैं खुद को ना रोक पाई और जीजा साली के रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहा. लेकिन यहाँ भी मैं हार गयी.

मिनी सुनील की दीवानी बनती जा रही थी इसलिए मैं उसे यहाँ से निकाल के ले गयी इस बहाने कवि को साथ मिल गया उसे एक भाभी और माँ दोनो का साथ मिल गया जो एक लड़की के लिए बहुत ज़रूरी होता है जब उसकी शादी नयी नयी हो.

एक दिन मिनी को उसका वो प्यार मिल गया जो आक्सिडेंट की वजह से अपनी कस्में पूरी नही कर सका था. मिनी के उजड़े जीवन में फिर से फूल खिलने लगे और मैने दोनो की शादी करवा दी. मिनी उसके साथ लंडन चली गयी और मैं अकेली रह गयी. दी विजय ही वो लड़का है जो कभी मेरा बॉय फ्रेंड था.

सवी बोलती जा रही थी और सूमी के सर में धमाके हो रहे थे. अब भी सवी ने सुनेल के अस्तित्व के बारे में सूमी को नही बताया था.

रात सरक्ति रही सवी बोलती रही और सुबह तक सूमी कुछ फ़ैसला ले चुकी थी.

सवी की दास्तान ने सूमी को जिंदगी को उस पड़ाव पे ला कर खड़ा कर दिया था जहाँ एक औरत अपने ही विभिन्न रूपों से लड़ने लगी थी.

एक बहन का दिल रोने लगा था अपनी छोटी बहन की जिंदगी खुशियों से भरने के लिए.

एक बीवी का दिल लड़ रहा था नही बस अब और नही क्या एक रूबी काफ़ी नही है जो अब
सवी भी नही नही ये नही हो सकता मैं अपने सुनील को और बनता हुआ नही देख सकती.

एक माँ इंतेज़ार कर रही थी अपने उस बच्चे का जिसने जनम लेना था – वो कोई जोखिम नही उठाना चाहती थी – चुप करो सब – मुझे कोई तूफान नही चाहिए अपनी जिंदगी में मेरे बच्चे को कुछ हो गया तो किसी को माफ़ नही करूँगी.

बीवी : तो मैं और क्या कह रही हूँ – सवी का प्यार विजय है – ग़लत फहमियाँ दूर करो दोनो के बीच – सवी का असली हक़दार वो है- सवी उसके साथ ज़्यादा खुश रहेगी.

बेहन : नही अब वो विजय से नफ़रत करती है – उसके दिल में सुनील बस चुका है.

बीवी : वाह री बहन मेरे ही पति पे डाका – ये नही होने दूँगी

माँ ; चुप करो तुम सब – दफ़ा हो जाओ – मेरा बच्चा आनेवाला है – मुझे कोई उधम नही चाहिए.

बीवी : अरे तो मैं कहाँ कुछ बोली – समझा ना इस बहन को बड़ा प्यार आने लगा इसे आज – कल तक तो नफ़रत करती थी – आज ये नया नया प्यार कहाँ से उमड़ पड़ा.

बेहन : शर्म करो – आख़िर तुम भी तो औरत हो – एक औरत के दर्द को समझो.

औरत : वाह रे विधाता – कभी एक बेहन जीत की खुशियाँ मनाती है, कभी एक बीवी तो कभी एक माँ और हर हाल में पिस्ति है तो बस एक औरत – सिर्फ़ एक औरत – उसे कोई नही पूछता तुझे क्या चाहिए – तू कैसे खुश रहेगी – उसने तो बस पिसना ही है कभी इस रूप में तो कभी उस रूप में.

सूमी : चुप करो तुम सब, पागल मत बनाओ मुझे.

सामने सूमी को अपना ही अक्स नज़र आने लगा – एक धुन्धुला सा अक्स – एक औरत का अक्स – जिसकी आँखों में आँसू थे- जिसके दिल में ममता और प्यार था – वो बार बार इस ममता और प्यार के तूफान में अपनी बलि देती आई – आज फिर उसे अपनी बलि देनी थी.

सूमी की आँखों से आँसू टपकने लगे.

सूमी के अंदर उमड़ते हुए तूफान से बेख़बर सवी चैन की नींद सो चुकी थी – आज वाक़ई में उसके तड़प्ते दिल को कुछ शांति मिली थी. काफ़ी समय बाद उसे सकुन की नींद आई थी.

यहाँ सूमी की आँखों से आँसू टपके वहाँ दूसरे कमरे में सुनील और सोनल एक दम जाग उठे –आत्मा ने आत्मा की पुकार सुन ली थी.

सोनल : सुनो जी मेरा दिल बहुत घबरा रहा है- दीदी को कुछ हुआ है वो बहुत परेशान हैं – वो कुछ कहना चाहती हैं पर कह नही पा रही- सुनो उन्हें दुखी मत होने देना.

सुनील : अपने चारों तरफ नज़र घुमाता है और सूमी को गायब पता है और उसके कानो में सूमी की बात गूंजने लगती है रूबी के बारे में वो परेशान हो जाता है – क्या सूमी वाक़ई में यही चाहती है कि मैं रूबी को भी – नही नही वो ऐसा कभी नही सोच सकती. उसकी नज़र कमरे की दीवार पे लगी सागर की तस्वीर पे अटक जाती है – वो तस्वीर कुछ कह रही थी – भूल गया मैने तुझे क्या सिखाया था – भूल गया – मेरे आख़िरी अल्फ़ाज़ – सवे रूबी – क्या ऐसे ही रक्षा करेगा तू उसकी – देख ज़रा उसके चेहरे की तरफ – जिंदगी उसका साथ छोड़ रही है – मेरी फूल सी बच्ची दर्द से तड़प रही है .

डॅड सबकुछ तो कर रहा हूँ – एक भाई का पूरा फ़र्ज़ निभा रहा हूँ.

उसे सागर की तस्वीर में दर्द दिखाई देने लगा – जो कह रही थी – मैने तो एक मर्द को पाला था – वो इतना कमजोर कैसे हो गया – जो अपनो को ही तड़प्ते हुए देख रहा है और कुछ नही कर रहा – क्या होती है ये मर्यादा – एक ताकियानूसी क़ानून जो हम इंसानो ने खुद बनाया – तू उस क़ानून के पीछे लगा रह और मरने दे मेरी बेटी को मरने दे मेरी सवी को – क्या कह के लाया था तू उसे समर के यहाँ से .

डॅड ये ये क्या कह रहे हो.

तुझे जिंदगी का असली आयना दिखा रहा हूँ – जिसे तू देखना नही चाहता.

सुनील अपने ख़यालों में उलझा हुआ था कि सोनल बोल पड़ी.

सोनल : सुनो डॅड ने जो कहा था उसे कब पूरा करोगे – उनकी एक बात मान ली तो दूसरी को मानने में इतनी देर क्यूँ. मेरी रूबी की जिंदगी खुशियों से भर दो वरना डॅड की आत्मा को कभी शान्ती नही मिलेगी.

सुनील : सोनल तुम तुम जानती भी हो क्या कह रही हो.

सोनल : हां अच्छी तरहा से. कल तक मैं एक लड़की थी जो बस एक ही नज़रिए से सोचती थी – अब मैं माँ बनने वाली हूँ – एक माँ – जो जिंदगी के असली आयने को पहचान जाती है – बहुत लड़ी हूँ मैं अपने आप से – लेकिन एक माँ के रूप ने मुझे जो रास्ता दिखाया है – वही मुझे सही लगता है. बहुत प्यार करते हो ना मुझ से तो डाल दो मेरी झोली में रूबी की खुशियाँ बना दो उसे मेरी सौतन.
 
सुनील के दिमाग़ की नसें फटने लगी वो कमरे से बाहर निकल गया भूल गया कि वो नंग धड़ंग है और उसके कदम सवी के कमरे की तरफ बढ़ चले.

सुनील कमरे में घुस जाता है - और देखता है सवी नंगी सो रही थी - और सूमी भी नंगी ही थी पर बैठी ख़यालों में गुम थी.






सुनील चुप चाप उसके पास जा कर बैठ गया और उसके कंधे पे हाथ रख उसे अपने से लिपटा लिया- यूँ अपने आप से मत लडो जो तुम चाहोगी वही होगा -

सूमी होश में आती है और सुनील को अपने साथ नंगा चिपका हुआ पाती है उसी पल उसे ध्यान आता है कि साथ सवी भी नंगी सो रही है.

सूमी का चेहरा शर्म से लाल पड़ जाता है, वो नज़रें झुका लेती है - इतना तो वो भी समझ लेता जब दो बहने एक कमरे में नंगी हों तो उनके बीच क्या गुजरा होगा.

सुनील उसकी तोड़ी पे हाथ रख उसका चेहरा उपर उठता है - उसे सूमी की आँखों में दर्द के साए लहराते हुए दिखते हैं और आँखों के पोरों पे आँसू झिलमिला रहे होते हैं.

सुनील ; पगली मैं हूँ ना क्यूँ खुद को तकलीफ़ देती हो - बोलो क्या चाहती हो.

सूमी : तुम नही समझोगे - मैं भी नही समझ पा रही हूँ - पिस रही हूँ - मेरे अंदर की बीवी कुछ बोलती है - बेहन कुछ बोलती है - आनेवाले बच्चे की माँ कुछ बोलती है - इनमें से कोई भी जीते - एक औरत हमेशा किसी ना किसी रूप में हार जाती है.

सुनील : मत लडो खुद से बस बोल दो दिल एक बार में कॉन सी बात मानने को कहता है.

सूमी अपना सर सुनील के कंधे पे टिका देती है और सुनील उसके बदन को सहलाने लगता है.

सुनील : यूँ मत उलझाओ अपने आपको. आँखें बंद करो और अपने दिल की आवाज़ सुनो.

दोनो की बातों से सवी की नींद खुल जाती है और सुनील को अपना सामने नंगा बैठे सूमी के साथ चिपके देख उसकी हालत खराब होने लगती है. दिल में उमंग उठती है अभी चिपक जाए सुनील से, पर खुद को रोक लेती है और दोनो की बातें सुनने लगती है. इस वक़्त सुनील की पीठ उसकी तरफ थी.

सुनील की बात मानते हुए सूमी अपनी आँख बंद कर लेती है और उसे एक ही बिस्तर पे पाँच लोग एक साथ नंगे नज़र आते हैं जो एक दूसरे में खोए हुए थे और ये पाँच लोग और कोई नही सुनील/सोनल/सूमी/सवी और रूबी थे.

वो अपनी आँखें खोलती है सुनील की तरफ देखती है उसके होंठों को चूमती है और उसके हाथ को खींच सवी के उरोज़ पे रख देती है.

सवी की जान ही निकल जाती है इस अहसास से कि उसका प्यार आख़िर उसे मिल जाएगा अपनी बहन के लिए उसके दिल में इज़्ज़त और प्यार की भावना हज़ारों गुना बढ़ जाती है.,

सुनील को जैसे ही सवी के नाज़ुक और सख़्त उरोज़ का अहसास अपनी हथेली के नीचे होता है एक पल को बोखला जाता है वो.

सूमी खुद उसके हाथों का दबाव सवी के उरोज़ पे बढ़ाती है ....दोनो एक दूसरे की आँखों में ही देख रहे होते हैं.

बिजली सी कोंधती है और दोनो एक दूसरे से लिपट अपने होंठ एक दूसरे के होंठों से जोड़ देते हैं पर दोनो का हाथ सवी के उरोज़ पे ही रहता है.

जैसे ही सूमी सुनील के हाथ को सवी के उरोज़ पे रखती है दूसरे कमरे में बिस्तर पे लेटी सोनल फफक फफक के रोने लगती है - उसका दिल आवाज़ें लगा रहा था कुछ ग़लत हो गया है - पर क्या ये वो समझ नही पा रही थी.

यहाँ सुनील अपना हाथ सवी के उरोज़ से हटा लेता है और उसके हाथ के हटते ही सोनल को एक अंजाना सा चैन मिलता है.

सुनील के हाथ के हटते ही सवी को झटका लगता है और वो खुद सुनील के हाथ को खींच अपने उरोज़ पे रखने की कोशिश करती है . सुनील उसका हाथ झटकता है और खड़ा हो जाता है.

सुनील : ऐसे नही सवी, मैं तुम्हारा अपमान नही कर सकता.

सवी आँखें फाडे सुनील को देखती है जिसका लंड अब सवी की आँखों के सामने था.

सूमी भी सुनील की इस बात से थोड़ा विचलित हो जाती है.

सुनील : सूमी अपनी बेहन को अपनी सौतन बनाने की तायारी कर लो पर उससे पहले सोनल को राज़ी करो.

इतना कह वो कमरे से निकल जाता है और सोनल के पास चला जाता है.

सुनील के निकलते ही सवी सूमी के गले लग गयी - ओह दीदी आज मैं बहुत खुश हूँ तुम्हारा ये एहसान जिंदगी में कभी नही भूलूंगी, वादा करती हूँ तुम्हें और सोनल को मुझसे और रूबी से कभी कोई तकलीफ़ नही होगी. (बोलते हुए सवी की आँखों में आँसू थे.)

सूमी : बस बस ड्रामे मत कर आज मेरी बन्नो दुल्हन बनेगी और सारी रात अपने साजन की बाँहों में गुजारेगी - मुझे मेरी ये सौतेन कबूल है - तू एक काम कर ब्यूटीशियन को यहीं बुला ले और तैयारी कर मैं ज़रा तेरी दूसरी सौतेन को राज़ी कर लूँ.

सवी : दी सोनल मान जाएगी ना- कहो तो मैं उसके पैरों को छू कर अपनी जिंदगी की भीख माँग लूँ उससे.

सूमी : तू पागल तो नही हो गयी - वो तेरे सागर की बेटी है - शुरू में थोड़ा दर्द तो उसे होगा ही पर वो दिल की बहुत अच्छी है तेरे दर्द को समझ लेगी. अब तू तैयारी कर.

सूमी अपनी नाइटी पहन कमरे से निकल गयी सोनल की तरफ.

अभी सूमी सोनल के कमरे में घुसी ही थी कि घर की बेल बज गयी.

इतनी सुबह कॉन हो सकता है, सूमी नाइटी बदलती है एक चुन्नी डालती है और दरवाजा खोलने चली जाती है सामने दूधवाला खड़ा था.

सूमी : रामू काका आज इतनी जल्दी.

रामू : मेमसाहब वो हमारी बीवी की तबीयत कुछ खराब हुई गवा तो बस आज जल्दी चले आए बिटिया के लिए ई गाय का दूध लाए हैं कल शायद हम ना आ पाएँ.

सूमी उससे दूध लेती है और वो हाथ जोड़ के चला जाता है.

किचन में दूध रख सूमी फिर सोनल के कमरे में चली गयी.

सूमी : सोनल मुझे कुछ बहुत ज़रूरी बात करनी है.
सूमी के सीरीयस चेहरे को देख सोनल घबरा जाती है सुनील भी इस वक़्त सीरीयस था.

लेकिन पहले मेरी बात ध्यान से सुनो.

फिर सूमी सवी की पूरी दास्तान सोनल और सुनील को सुनाती है.

सब सुनने के बाद सोनल रोने लगती है.

'ये ये क्या बोल रही हो...बड़ी मुश्किल से मैने खुद को रूबी के लिए तयार किया और इन्हें बाँटने को राज़ी हो गयी और अब आप चाहती हो सवी भी......मत करो मेरे साथ ऐसा नही सह पाउन्गि'

सूमी : क्या सवी को कोई हक़ नही कि उसकी झोली में भी कुछ खुशियाँ आएँ, क्या सारी जिंदगी वो बस तड़पति रहे.

सोनल : मैने कब कहा कि वो तड़पने, पर ये ही क्यूँ, कोई और भी तो आ सकता है उनकी जिंदगी में.

सूमी : क्या तू तैयार थी किसी और को अपनी जिंदगी में लाने के लिए, भूल गयी वो तड़प जो तू महसूस किया करती थी जब सुनील तेरे प्यार को कबूल नही करता था, और भूल गयी तेरे डॅड ने क्या सिखाया था, प्यार बाँटने से और बढ़ता उसकी मिठास और बढ़ जाती है कम नही होती.

सोनल की नज़रें सामने दीवार पे लगी सागर की तस्वीर पे अटक जाती है.

'डॅड क्यूँ हो रहा है ये सब मेरे साथ, क्यूँ मुझे मेरे प्यार को इतना बाँटने के लिए मजबूर किया जा रहा है'
 
सागर की तस्वीर उसे बोलती हुई नज़र आई 'क्या सूमी ने अपने प्यार को तेरे साथ नही बाँटा, क्या सवी तेरी दुश्मन वो भी तो तेरी अपनी है,कुछ पल खुशियों के उसकी झोली में डाल देगी तो तेरा क्या बिगड़ेगा, उल्टा उसकी दुआएँ तेरे प्यार को और भी मजबूत कर देंगी - मान जा बेटी हां कर दे'

सुनील और सूमी दोनो ही सोनल के जवाब का इंतेज़ार कर रहे थे क्यूंकी उसे दुख दे कर सुनील कुछ नही करनेवाला था.

सोनल के चेहरे पे हँसी आ जाती है ' बुलाओ मेरी सौतेन को यहाँ'

सूमी उसके होंठों पे अपने होंठ रख देती है'लव यू डार्लिंग'

सोनल सूमी के होंठ चूसने लग गयी, जब से वो तीन महीने पार कर गयी थी तब से उसकी चुदाई बंद थी लेकिन सुनील रोज उसकी चूत को चूस कर शांत किया करता था और सोनल भी दिन में एक बार तो सुनील का लंड चूस्ति थी. अब इनके प्यार के सागर में एक और आनेवाली थी गोते लगाने.

सूमी ने सोनल के होंठों को छोड़ा और सवी को बुलाने चली गयी, सोनल ने सुनील को अपनी तरफ बुलाया और अपने लरजते हुए होंठ उसे चूसने को दे दिया.

सुनील सोनल के होंठों की मिठास में खो गया और दोनो को पता ही ना चला कब सूमी सवी को ले कर आ गयी और सवी दोनो को यूँ चिपके देख कुछ कुछ शरमा रही थी, उसने जाना चाहा पर सूमी ने उसे वहीं रोक दिया.

सोनल की सांस उखड़ने लगी तो सुनील ने उसे छोड़ा और दोनो अपनी सांस दुरुस्त करने लगे.

सोनल की नज़रें सवी पे पड़ी तो सोनल ने हान्फते हुए उसे पुकार ही लिया 'इधर आओ सौतेन रानी वहाँ क्यूँ खड़ी हो'

सवी सोनल के पास बैठ गयी और सूमी बिस्तर के दूसरी तरफ जा के सुनील से चिपक गयी.

सोनल : हां तो आप मेरी सौतेन बनना चाहती हैं, ज़रा अपने होंठों का रस तो चखाओ मैं भी तो देखूं मेरे मियाँ को क्या मिलने वाला है.

सवी : धत्त (और बूरी तरहा शरमा जाती है)

सोनल : आए हाई देखो तो सही कैसे शरमा रही है, तब क्या होगा जब सुहाग रात भी इसी कमरे में मेरे सामने मनाओगी.

सवी को ज़ोर का झटका लगा वो घबरा के सूमी और सुनील की तरफ देखने लगी.

सुनील : सवी डार्लिंग, यहाँ किसी से कुछ छुपाया नही जाता और मेरी बीवियाँ आपस में बहुत प्यार करती हैं.

सवी : लेकिन ...

सोनल : कोई लेकिन वेकीन नही इधर आओ ( सोनल सवी को अपनी तरफ खींचती है और उसके चेहरे को अपने हाथों में थाम उसके होंठ चूसने लग जाती है)

सवी की हालत खराब हो जाती है - ये सब तो उसने ख्वाब में भी नही सोचा था.

सोनल उसके होंठों को छोड़ती है और चटकारे लेते हुए बोलती है - मिया जी आपकी तो ऐश हो गयी बड़े मीठे हैं मेरी सौतेन के होंठ.

सवी के गाल शर्म के मारे लाल सुर्ख हो गये और सोनल उसे खींचने लगी तभी घर की बेल फिर बजी और सवी को मौका मिल गया अपनी जान छुड़ाने का, वो दरवाजा खोलने भागी और खोलते ही उसे तेज झटका लगा.

सामने विजय और आरती खड़े थे.

सवी उनको अंदर लाई हाल में बिठाया और सूमी के पास चली गयी.

सूमी और सुनील ने फटाफट कपड़े बदले और दोनो से मिलने हाल में चले गये. रूबी अब तक उठ चुकी थी वो किचन में सब के लिए चाइ कॉफी बना रही थी.

सवी को विजय और आरती का आना अच्छा नही लगा था वो अंदर सोनल के पास ही रहती है.

रूबी कॉफी ले कर हाल में जाती है क्यूंकी उसे हाल से आवाज़ें आती सुनाई देती है और वो भी विजय और आरती को देख हैरान होती है.

सुनील : विजय जी अचानक फोन कर देते तो मैं एरपोर्ट आ जाता.

आरती : बस बेटे अचानक ही प्रोग्राम बन गया, ये सवी कहाँ रह गयी मैं तो आई ही उससे मिलने हूँ, बिना बताए अचानक चली आई.

सूमी : वो अंदर सोनल के पास है.

आरती : मैं दोनो से मिल के आती हूँ.

सूमी : चलिए - और वो आरती को सोनल के पास ले गयी जहाँ सवी भी उसके पास बैठी थी.

आरती जब सोनल के कमरे में सूमी के साथ आई तो सोनल ने बिस्तर से उठने की कोशिश करी.

आरती : अरे नही नही आराम से लेटो.

सोनल : बड़ी खुशी हुई आंटी आपसे मिलके. कवि कैसी है वो भी आई है क्या.

आरती : नही बेटी आज कल तो वो अपनी एमडी की पढ़ाई में लगी रहती है.

सूमी : आप यहीं बैठो मैं चाइ यहीं ले आती हूँ.

सूमी के बाहर निकलने से पहले ही रूबी वहाँ सबके लिए चाइ ले आई.

सूमी : तू भी यहीं बैठ जा बेटी.

रूबी : नही मैं नाश्ते की तायारी करती हूँ. (कहके रूबी किचन की तरफ बढ़ गयी)

सवी : मैं भी आती हूँ जल्दी काम निबट जाएगा.

आरती : सवी जी मैं तो खास आपसे ही मिलने आई हूँ.

सवी : समधन जी मुझसे ऐसा क्या काम पड़ गया.

आरती : क्या हम अकेले कहीं...

सवी : समधन जी मेरी जिंदगी मेरे घरवालों के लिए खुली किताब है, आप को जो बात करनी है यहीं कर सकती हैं, सोनल से क्या छुपाना.

आरती को एक झटका सा लगा और सोनल को भी कुछ महसूस हुआ, सोनल के दिमाग़ में एक दम विजय और सवी की छवि उभर आई फिर उसने खुद ही इस बात को अपने दिमाग़ में नकार दिया, धागा बरसों पहले टूट चुका था और अब तो सवी के मन मंदिर में बस सुनील ही था, एक टीस सी उठी सोनल के दिल में जिसे उसने दबा डाला.
 
आरती कुछ पल सोचती रही.

आरती : सवी बरसों पहले मेरी वजह से तुम से बहुत कुछ छिन गया था, मैं.....

सवी : समधन जी बस, आगे एक शब्द भी नही, हमारा जो आपस में रिश्ता बन गया है उसकी गरिमा बनाएँ रखें यही बेहतर होगा.

इतना कह सवी कमरे से बाहर निकल गयी.

आरती अपनी कोशिश में ना कामयाब हो गयी, वो एक ही नज़रिए से सोचती आई थी, कभी उसने खुद को सवी की जगह रख के नही सोचा था आज उसे एक बहुत बड़ा झटका लगा था.

सवी का रियेक्शन देख सोनल भी सोचने को मजबूर हो गयी थी, सॉफ सॉफ दिख गया था उसे, सुनील सवी के रोम रोम में समा चुका था, लेकिन सुनील तो सब कुछ सूमी की खुशी के लिए कर रहा था, क्या ये रास्ता ठीक रहेगा.

भुजे दिल के साथ आरती वापस हाल में चली गयी, और सोनल अपने पेट पे हाथ फेरते हुए अपने बच्चों से बात करने लगी'तुम्हारा पापा सच में एक मर्द है जो दर्द सहता चला आ रहा है, बिल्कुल अपने पापा जैसे बनना' अपनी आँखें बंद कर वो बच्चों को सुनील के कंधों पे चढ़े हुए देखने की कल्पना करने लगी - सुनील के चेहरे पे छाई वो खुशी देखने को सोनल अब बेताब होने लगी.

कुछ देर बाद विजय और आरती चले गये - सवी अपने कमरे में बैठी अपने ख़यालों में गुम थी, रूबी ने किचन संभाल रखा था और सुमन तो सवी की सुहागरात की तयारि में लग गयी थी जिसका अभी रूबी को कुछ पता ना था.

सुनील सोनल के पास आ कर बैठ गया.

सुनील : क्या सोच रही है मेरी जान.

सोनल : आपके बारे में.

सुनील : अच्छा जी तो क्या क्या सोचा

सोनल : कैसे सह लेते हो इतना दर्द.

सुनील : समझा नही

सोनल : जाइए बनिये मत, रग रग जानती हूँ आपकी.

सुनील :यार खुल के बोल ये पहेलियाँ मत भुजा वरना बच्चों से तेरी शिकायत कर दूँगा.

सोनल मखोल में सुनील को मुक्के मारने लगी.

सुनील : अरे ...अरे...लगती है...बाबा ...ऊओउूऊचह

सोनल अब थोड़ा सीरीयस हो गयी और सुनील की आँखों में झाँकने लगी.

सोनल : क्या आप दिल से चाहते हो सवी से शादी करना और रूबी से भी, कहीं दीदी और मेरे कहने पे तो नही कर रहे.

सुनील भी सीरीयस हो गया.

सुनील : दिल तो मेरा मेरे पास रहा ही नही उसपे तो तुमने और सूमी ने क़ब्ज़ा कर रखा है.

सोनल :देखिए अपने आप को कोई और दर्द मत दीजिए मुझसे देखा नही जाएगा.

सुनील :दर्द से तो लगता है जनम जनम का रिश्ता है मेरा, जिंदगी बार बार मुझे अपनी कसौटी पे परखने लगती है.

सुनील की आवाज़ यूँ थी जैसे किसी गहरे कुएँ के अंदर से आ रही हो, जिसके चारों तरफ बरफ जमी हुई हो, जहाँ सांस लेना एक पल के लिए भी मुनासिब ना हो.

सुनील की आवाज़ में छुपा उसके अंदर बसा दर्द महसूस कर सोनल की रूह तक रो पड़ी और उस दर्द की चोट सूमी तक भी पहुँच गयी जो किचन से निकल भागती हुई सोनल के कमरे में आई.

सोनल की आँखों से आँसू टपक रहे थे और सुनील कहीं और पहुँच चुका था. एक गहरे कुएँ के अंदर जहाँ उसकी रूह बेड़ियों में जकड़ी हुई थी, और छूटने की नाकाम कोशिश कर रही थी.

सूमी के कदम दरवाजे की चोखट पे जम के रह गये, जिस बात का उसे डर था वही हो रहा था, सुनील तड़प रहा था, सूमी के अंदर बसी बीवी की आँखों से भी आँसू टपकने लगे.

सुनील : सोनल बटवारा सिर्फ़ जिस्मो का हो सकता है रूह का नही और मेरी रूह के अंदर तुम और सूमी समा चुकी हो, ये जिस्म शायद किसी को कोई सुख देदे पर ये रूह किसी और की नही हो सकती.

सूमी की टपकती आँखों का रुख़ सागर की तस्वीर की तरफ मूड गया- जैसे उससे पूछ रही हो - क्या यही चाहते थे?- अगर यही चाहते थे तो ऐसे संस्कार क्यूँ दिए सुनील को.....क्यूँ? क्यूँ?क्यूँ?
 
सागर की तस्वीर मुस्कुराने लगी और सूमी के कानों में सागर की आवाज़ गूंजने लगी 'मर्द को दर्द नही होता, दर्द ही तो मर्द को जिंदगी की कसौटी पे परखता है, मुझे सुनील पे नाज़ है'

सूमी ने ठंडी साँस छोड़ी और सुनील के साथ जा के चिपक गयी.

सूमी: क्या सोच रहे हो

सुनील : ह्म्म कुछ नही बस ये सोच रहा था कि मैं सवी और रूबी को खुश रख पाउन्गा या नही.

सूमी : हेर्र अपनी चमक खुद नही जानता, प्यार अपना रंग अपना हक़ खुद पा लेता है- देखने जब तुम्हारे जिस्मो का मिलन होगा रूह रूह से बात करने लगेगी, और हम सब तुम्हारे प्यार की छाँव में खिलते रहेंगे.

सुनील सूमी को देखने लगा और सूमी ने उसके मन को पड़ लिया और अपने होंठ आगे कर दिए.

सुनील और सूमी के होंठ आपस में मिल गये और सोनल के चेहरे पे भी मुस्कान आ गयी.

तभी दरवाजा खटका सूमी और सुनील अलग हुए, और अंदर रूबी आ गयी - सोनल की दवाई का वक़्त हो गया था.

सोनल : आजा मेरी गुड़िया बहुत जल्द तू मेरी सौतन बननेवाली है.

रूबी के हाथ में पकड़ा पानी का ग्लास छूट गया, उसे अपने कानो पे भरोसा नही हुआ. क्या ये वही सोनल थी जो एक दिन शेरनी की तरहा सवी पे गर्जि थी.

सूमी हंसते हुए, क्या हुआ मेरी बन्नो को, पहले तेरी मम्मी की बारी है फिर तेरी आएगी.

ये एक और बॉम्ब फट गया रूबी के लिए, वो आँखें फाडे सब को देखने लगी. ना संभाल पाई खुद को और फफक फफक के रोने लगी.

सूमी ने उठ के रूबी को गले से लगा लिया- पगली रो क्यूँ रही है- अब तो खुशियों के दिन आनेवाले हैं.

रूबी : ऐसा भयानक मज़ाक मेरे साथ मत करो, मर जाउन्गि मैं, बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला है, मत करो ऐसा मेरे साथ.

अब सुनील उठ के पास आया और सूमी और रूबी दोनो को अपनी बाँहों के घेरे में ले लिया.

एक चुंबन सूमी के गाल पे जड़ा और एक रूबी के-जैसे ही रूबी को अपने गालों पे सुनील के होंठों का अहसास हुआ वो अपनी खुशी ना सँभाल पाई उसे यकीन हो गया कि सोनल ने जो कहा वो सच था और सूमी ने जो कहा वो सच था. पहले आँखों से दर्द भरे आँसू निकले थे अब उन आँसुओं की फ़ितरत बदल गयी नये आँसू निकल के खुशी का इज़हार करने लगे और वो सुनील की बाहों में सिमटती चली गयी.

सूमी : बस अब रोना बंद कर, सोनल को दवाई दे और फिर चलते हैं तेरी माँ को तयार करने.

रूबी ने अपने आँसू पोंछे और भाग पड़ी किचन की तरफ सोनल के लिए पानी लाई उसे दवाई खिला के उसके पैरों पे गिर पड़ी.

सोनल : अरे क्या करती है, उठ मेरे पैर को क्यूँ छू रही है.

रूबी : दीदी आपने ही तो मुझे नयी जिंदगी दी है वरना ये मेरी तरफ कहाँ देखते.

सोनल :चल उठ इधर आ, पहले मुझ परखने तो दे.

अब रूबी फिर घबरा गयी और धड़कते दिल से उठ के सोनल के करीब बैठ गयी. सोनल ने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और अपने होंठ उसके होंठों से चिपका दिए.

रूबी की सिटी पिटी गुम हो गयी सोनल की इस हरकत से.

रूबी के होंठ अच्छी तरहा चूसने के बाद सोनल ने चटकारे लिए.

सोनल : हाई मर जावां गुड ख़ाके, क्या टेस्ट है, आपके तो सच में मज़े हो गये मिया जी.

रूबी का तो शर्म के मारे बुरा हाल हो गया, उसका बस चलता तो अभी ज़मीन में घुस जाती.

सुनील हंस पड़ा और रूबी उठ के भागी पीछे से सबके हँसने की आवाज़ सुन वो और भी शरमा गयी और भागते हुए सवी के कमरे में गयी और उससे लिपट गयी.

सवी अपने ख़यालों में बैठी आयेज आने वाली जिंदगी के बारे में सोच रही थी. और रूबी के यूँ चिपकने से वो वापस यथार्थ में चली आई.

सवी : क्या हुआ मेरी गुड़िया को.

रूबी : गुड़िया नही अब तो हम एक दूसरे की सौतेन बनेंगी, अब तो मैं आपको दीदी बुलाउन्गी जैसे सोनल सूमी को बुलाती है.

सवी के चेहरे पे मुस्कुराहट आ गयी.

सवी : अच्छा जी अभी से रिश्ता बदल लिया.

रूबी : क्यूँ आपको बुरा लगा क्या, सच कभी नही सोचा था मेरी झोली में इतनी खुशियाँ आ जाएँगी और अपने से ज़्यादा तो मैं आपके लिए खुश हूँ.

सवी :कुछ अजीब नही लगेगा, हम दोनो का पति एक ही होगा.

रूबी : दीदी जब दिल दिल से मिलते हैं फिर कुछ अजीब नही लगता, है आज तो आपकी सुहाग रात होगी, मज़ा आएगा ना, सोच रही हूँ कमरे में छुप जाउ और आपकी सुहाग रात का मज़ा लूँ.

सवी :चल हट बेशर्म, मारूँगी.

रूबी : क्यूँ कल तो दोनो एक साथ ही होंगी, देख लेने दो ना प्लीज़.

सवी :हाई कितनी बेशर्म हो गयी है, कुछ भी बोले जा रही है.

रूबी : हाई वो मंज़र कैसा होगा जब दीदी अपने साजन की बाँहों में होगी, दो गरम गरम होंठ आपस में लिपटेँगे.

सवी : बस कर अब ( कहने को सवी गुस्सा दिखा रही थी पर अंदर ही अंदर अरमान मचल रहे थे)

तभी सूमी कमरे में आती है.

सूमी : क्या चल रहा है.

रूबी : कुछ नही दीदी से थोड़ी मस्ती कर रही थी.

सूमी : ओ ओ सो फास्ट, बड़ी जल्दी रिश्ते बदल लिए.

रूबी : जी हां बहुत तड़प लिए अब तो थोड़ी मस्ती के दिन आए हैं.

सूमी रूबी को अपने सीने से लगा लेती है - हां मेरी रानी - हम लोगो की वजह से तुमने और सवी ने बहुत दुख झेले हैं अब बस, अब सिर्फ़ खुशियाँ ही खुशियाँ.

रूबी : नही बड़ी दीदी अब तो नया जीवन मिल गया बस और कुछ नही चाहिए.

सूमी : रूबी जल्दी चेंज कर ले बहुत काम करना है, आज बहुत शॉपिंग करनी है हमारी दुल्हन को सजाने के लिए.

रूबी : इय्यहूऊऊऊऊओ अभी आई बस.

सूमी : सवी आधे घंटे में ब्यूटीशियन आ जाएँगे अच्छी तरहा तयार होना (फिर सूमी सवी के कान में कुछ बोलती है और उसे एक ट्यूब पकड़ा देती है)

सवी के गाल शर्म से लाल सुर्ख हो जाते हैं.

सूमी रूबी को साथ ले जाती है और सवी के लिए काफ़ी शॉपिंग करती है, सुनील के लिए भी वेड्डिंग कुर्ता पाजामा लेती है, सवी के लिए हो रही शॉपिंग को देख रूबी के अरमान मचलने लगते हैं और वो खुद उन ड्रेसस में देखने की कल्पना करती रहती है. आख़िर में सूमी सवी के लिए मंगलसूत्र लेती है और एक अच्छा डाइमंड का हार जो सुनील उसे मुँह दिखाई पे देगा.

दोनो को लगभग शाम हो जाती है घर लॉटते लॉटते.
 
सूमी रूबी के साथ घर पहुँची तो सिमरन उसका इंतेज़ार कर रही थी.

सिमरन को देख सूमी को झटका सा लगा और वो समझ गयी कि सिमरन किस लिए आई है.

सूमी : रूबी ये समान अंदर रख दो सोनल के कमरे में और आंटी के लिए कॉफी ले आओ.

रूबी अंदर चली गयी.

सूमी सिमरन के पास बैठ गयी.

सिमरन : क्यूँ री जब से तूने शादी की है हमे तो भूल ही गयी.

सूमी : यार तू तो जानती ही है आजकल लाइफ कितनी बिज़ी चलती है. सुना कैसे आना हुआ.

रूबी कॉफी देकर अंदर चली गयी सोनल के पास. बहुत घबरा रही थी वो.

सोनल : क्या हुआ तुझे?

रूबी : वो सिमरन आंटी आई हुई हैं, मुझे बहुत डर लग रहा है.

सोनल समझ गयी रूबी क्यूँ घबरा रही है.

सोनल : जा उनको बुलाला कहना मैने बुलाया है.

रूबी फिर हॉल में गयी और सुनील को बुला लाई.

सोनल : सुनिए आप रूबी को अभी रिंग पहना दीजिए.

सुनील : ऐसी भी क्या जल्दी....

सोनल : पहना दीजिए ना, उसे तस्सल्ली हो जाएगी, वो मुई पता नही फिर अपने बेटे की बात ना ले बैठे.

सुनील : ओह तो तुम्हें अब भी इस बात का डर है.

सोनल : मुझे नही हमारी छुटकी को, अब पहना दो इसे रिंग. सोनल ने पहले ही ज्वेल्लेरी बॉक्स में से रिंग निकाल ली थी.

सुनील ने रूबी के कोमल हाथ को अपने हाथ में लिया तो रूनी की सांस उपर नीचे होने लगी और जैसे ही सुनील ने उसे रिंग पहनाई वो सुनील से लिपट गयी आँखों से मोती छलक पड़े.

सोनल : लो अब ये भी मुझे ही बताना पड़ेगा कि होनेवाली दुल्हन को किस भी किया जाता है.

थरथरा गयी रूबी ये सुन और सकती से सुनील की साथ चिपक गयी जैसे अभी उसके अंदर समा जाएगी.

सुनील ने धीरे सेउसकी तोड़ी को उपर उठाया ...रूबी की आँखें बंद हो चुकी थी होंठ कमकपा रहे थे और सुनील उन होंठों की लाली को चुराने के लिए झुकता गया जब तक दोनो के होंठ आपस में मिल ना गये.

रूबी की तो जान ही आफ़त में आ गयी क्यूंकी सब कुछ सोनल के सामने हो रहा था, दिल की बेचैनी और भी बढ़ गयी,होठों की थरथराहट जिस्म में फैल गयी और वो काँपने सी लगी, कुछ देर बाद जब सुनील ने उसके होंठों को छोड़ा तो मारे शर्म के रूबी की हिम्मत ना हो रही थी कि वो अपनी आँखें खोल सके.

सोनल : बस बस आज के लिए इतना काफ़ी है, बाकी शादी के बाद.

रूबी होश में आई और मारे शर्म के कमरे से निकल भागी और किचन में खड़ी हो अपनी साँसे दुरुस्त करने लगी.

सुनील के गर्म होंठों ने उसके जिस्म के तापमान को बढ़ा डाला था पूरा जिस्म पसीने पसीने हो गया था.

अपने आप को संभालने के बाद रूबी हॉल में गयी कप्स उठाने. और उठाने का तरीका यूँ था कि सिमरन की निगाह उसके उंगली में पड़ी रिंग पे चली गयी, वो बस अब फिर एक बार प्रपोज़ल सामने रखनेवाली थी कि उसे झटका लगा और उसके मुँह के बोल मुँह में ही दबे रह गये. फिर कुछ इधर उधर की बात कर वो चली गयी.

उसके जाते ही रूबी ने राहत की सांस ली और सूमी भी उसके हाथ में एंगेज्मेंट रिंग नोट कर चुकी थी.

सूमी : ये कब किया री.

रूबी : बड़ी दीदी वो आपकी सहेली क्यूँ आई थी मैं समझ गयी थी फिर सोनल दीदी ने ही उनको कहा कि रिंग पहना दे.

सूमी : ओह तो ये बात है. चल देखें सवी तयार हुई या नही इस सिमरन ने भी काफ़ी टाइम बर्बाद कर दिया.

दोनो सवी के कमरे में गयी और देखा अभी ब्यूटीसियन लगी हुई थी कम से कम एक घंटा और लगना था उसे दुल्हन के रूप में आने के लिए.

सूमी ने फिर दूसरे कमरे को देखा जहाँ फ्लोरिस्ट लगे हुए थे कमरे को सजाने में और सुहाग्सेज तयार करने में उन्हें बस आधे घंटे का काम रह गया था.

वर मालाएँ उसी कमरे में रखी हुई थी.

सूमी फिर सुनील के पास गयी जो सोनल के पास बैठा उससे बातें कर रहा था.

सूमी : जानी अब तुम भी तो तयार हो जाओ.

सुनील : अरे मैने क्या करना है बस कपड़े ही तो बदलने हैं.

सोनल : ओए होए आज मेरा राजा सुहाग रात मनाएगा - यार यहीं इस कमरे में मना लो ना मज़ा आ जाएगा.

रूबी को अपने कानो पे भरोसा नही हुआ कि सोनल अभी क्या बोली थी.

सूमी : चल चल ...आज की रात तो सवी की अपनी रात है कल से तो हम एक साथ ही होंगे.

रूबी तो सब सुन शर्म के मारे ज़मीन में गढ़ी जा रही थी.

सुनील फ्रेश होने बाथरूम में घुस गया और रूबी सोनल से पूछ उसके लिए कॉफी बनाने चली गयी.

आज की शॉपिंग से सूमी काफ़ी थक गयी थी तो वो थोड़ी देर के लिए सोनल के पास ही लेट गयी. दिमाग़ में दस सवाल घूम रहे थे सवी की शादी के बारे में दुनिया को क्या बताएगी.

अब जब सुनील रूबी से भी शादी करेगा तो मामला और भी पेचीदा हो जाएगा. सोनल की जो हालत थी उस हिसाब से वो कहीं शिफ्ट नही हो सकते थे.

क्या सवी मानेगी उसी तरहा रहने को जिस तरहा वो खुद शुरू के दिनो में रही - यानी रात को सुहागन और दिन में विधवा.

सोचते सोचते सूमी की आँख लग गयी.

बाथरूम में शवर के नीचे खड़ा सुनील - सवी के बारे में ही सोच रहा था. जाने क्यूँ उसे लग रहा था कि भावना में बह कर सूमी और सोनल ग़लती करने जा रही हैं.

जब वो विजय के साथ अकेला था तब विजय ने भी उसके सामने सच रख दिया था, आरती के बहुत ज़ोर देने पे ही वो आया था सवी से माफी माँगने और उसके साथ एक नयी शुरुआत करने. पर सवी ने सॉफ इनकार कर दिया था.

कहीं ऐसा तो नही के सवी अपने दिल में बसी भावनाओं को कुचल उस रास्ते पे चल पड़ी हो - कि जो सूमी को मिला वो उसे मिलेगा तब ही वो खुश रह पाएगी.

आज एक मृग तृष्णा के पीछे भाग रही है वो - कहीं उसकी आशाओं पे पानी ना फिर जाए - क्यूंकी एक मर्द और 4 औरतें - ये जिंदगी जीना आसान नही है, बहुत बार खुद की इच्छाओं को कुचलना पड़ेगा.

क्या सूमी और सोनल भी इस बात को समझती हैं - या अभी सिर्फ़ भावनाओं के वशीभूत ये कदम उठा रही हैं, जब यथार्थ से पाला पड़ेगा तब कहीं बहुत देर ना हो जाए.

सुनील ने आगे बढ़ने से पहले एक बार सबसे खुल के बात करने का विचार बना लिया ख़ास कर सवी के साथ.

सुनील जब बाथरूम से बाहर निकला तो वो तयार था - सोनल आँखें मटकाते हुए उसे देखने लगी और सोनल ने सूमी को भी जगा दिया.
 
सुनील बहुत ही सीरीयस मूड में था और वो दोनो के पास बैठ गया.

सूमी : क्या बात है जानू इतने सीरीयस और वो भी आज.

सुनील : हां, मैं तुम दोनो से एक बात पूछना चाहता हूँ.

सूमी और सोनल अवाक सी उसे देखने लगी.

सुनील : क्या तुम दोनो सच में इस राह पे चलना चाहती हो, या ये सिर्फ़ ये वक़्ती भावनात्मक निर्णय है जिसपे तुम दोनो बाद में पछताओगी.

अब बारी थी सोनल और सूमी के सीरीयस होने की. जिस गहराई से सुनील ने सवाल किया था वो सवाल उन दोनो की अंतरात्मा को छू रहा था.

कमरे में शांति छा जाती है केवल साँसों की हरकत और दिल की धड़कने ही सुनाई दे रही थी.

सोनल ही शुरुआत करती है जवाब देने की .....

सोनल : आपको क्या लगता है, ये सब हमारे लिए आसान है, दुनिया की कोई भी औरत अपने पति का बटवारा नही कर सकती. ऐसे किसी काम को करने से पहले ना जाने वो कितनी बार मरती होगी. याद करो वो दिन जब दीदी ने मुझे अपनी सौतेन के रूप में अपनाया था. ये आसान नही था दीदी के लिए पर फिर भी अपने दिल पे पत्थर रख उन्होंने ये कदम उठाया - क्यूंकी अंदर बैठी माँ से मेरा दुख नही देखा गया था उस वक़्त एक माँ जीत गयी थी और एक औरत हार गयी थी, मेरे साथ साथ दीदी को आपकी भी चिंता रहती थी हर वक़्त एक डर के साए में रहती थी वो उनके बाद क्या होगा, इसीलिए तो आपसे वादा लिया था शादी करने से पहले.

प्यार बाँटने से बढ़ता है कम नही होता यही सिखाया था ना डॅड ने और हम उनकी ये बात ही भूल गये थे. आग लगती थी मुझे जब भी मैं सवी या किसी और को आपकी तरफ आसक्त भरी नज़रों से देखते हुए देखती थी. खून खोलने लगता था मेरा. लेकिन जब से प्रेग्नेंट हुई हूँ - एक माँ मेरे अंदर समा चुकी है - उसने तो जीने और प्यार की परिभांशा ही बदल डाली.
रूबी की सूनी आँखों में बसे दर्द को मैने पहचानना शुरू कर दिया और बहुत सोच के इस नतीजे पे पहुँची कि क्यूँ ना उसे उसका प्यार दे दिया जाए.

सूमी और सुनील दोनो ही शायद जानते थे कि सोनल के दिल में क्या है पर सुनील सब कुछ उसके मुँह से सुनना चाहता था ताकि आगे चल के कोई समस्या ना खड़ी हो.

सोनल की बदली सोच को देख सूमी बहुत खुश थी. लेकिन शायद सोनल ने अभी भी दिल से सवी को स्वीकार नही किया था और सूमी को इस बात की चिंता थी. उसे सुनील के सवाल का मक़सद समझ में आ गया और उसे सुनील पे बहुत गर्व महसूस हुआ जो बिल्कुल शांत भाव से हर पहलू का मूल्यांकन कर रहा था.

सोनल बोलती बोलती चुप हो गयी थी, और सुनील इंतेज़ार कर रहा था उसे कोई जल्दी नही थी.

सुनील जानता था कि सोनल ने दिल से सवी को स्वीकार नही किया था, यही वजह थी कि वो इस विषय को लेकर बैठ गया था. जब आत्माओं का मिलन हो जाता है तो दिल के कोने में छुपे और दबे भाव पता चल जाते हैं.

सूमी भी इस बात को समझ चुकी थी कि सोनल जो कर रही है वो सूमी की खुशी के लिए कर रही है, शायद सोनल खुद को अहसान तले दबा मानती थी, और ये मौका शायद उसे अहसान उतारने का मिला था, क्यूंकी सूमी की वजह से उसे उसका प्यार नसीब हुआ था तो सूमी की खुशी के लिए वो कुछ भी कर सकती थी.

लेकिन सुनील अलग था, वो अपनी दोनो बीवियों में से किसी एक दिल में कोई भी चुभन का अहसास महसूस होते हुए नही बर्दाश्त कर सकता था.

उसकी नज़रें अब भी सोनल पे टिकी हुई थी जो कुछ सोच रही थी कि आगे क्या बोले.

सोनल ने बोलना शुरू किया : रूबी के अंदर मैं वो दर्द देख सकती हूँ जो कभी मैने खुद महसूस किया था. पर सवी में मुझे वो दर्द और तड़प और प्यार नही दिखाई देता. ऐसा लगता है जैसे वो हर उस चीज़ और इंसान को पाना चाहती हैं जिनकी वजह से सूमी खुश है, वो इनमें ही खुशी ढूँढ रही है, शायद दिमाग़ से काम कर ही नही रही.

सुनील : तो फिर तुमने हां क्यूँ की, जानती हो ना जब तक तुम दोनो एक मत ना हो जाओ मैं कोई ऐसा काम नही करूँगा जिसमें किसी एक को ज़रा सी भी तकलीफ़ हो.

सोनल : जानती हूँ, पर मुझे दीदी की खुशी दिख रही थी तो मैने हां कर दी, दीदी की खुशी के लिए तो कुछ भी कर सकती हूँ.

सूमी : पगली ये जीवन भर का निर्णय है, बस मुझे खुश करने के लिए तूने हां कर दी, तुझे अपने दिल की बात सामने रखनी चाहिए थी, या मैं तेरी बात समझ जाती या तू मेरी. काश ये बात तूने पहले बोली होती तो शायद एक बेहन के प्यार का परदा जो मेरी आँखों पे पड़ा था वो ना पड़ा होता.

सुनील : बस मैं तुम दोनो की बात समझ गया अब मैं सवी से ज़रा खुल के बात करूँगा. फिर देखते हैं क्या करना है.

सुनील सोनल के कमरे से बाहर निकल गया इस बात से बेख़बर के रूबी बाहर खड़ी सब सुन रही थी और सुनील के निकलने से पहले गायब हो गई वहाँ से.

अपने कमरे में पहुँच रूबी सोचने लगी जिंदगी कितने रंग बदलती है जहाँ उसे इस बात की खुशी थी जहाँ उसकी अपनी भटकती जिंदगी को किनारा मिल जाएगा वहीं सवी के बारे में सोच उसका दिल दहल रहा था - सवी जो आज दुल्हन बनी बैठी इंतजार कर रही थी सुनील की बाँहों में समाने के लिए वहीं सोनल की बातों ने रूबी के दिल को चीर डाला था कहीं ऐसा ना हो जाए के सुनील सवी को अब ना अपनाए - ओह गॉड नही नही अगर ऐसा हुआ तो सवी जी नही पाएगी - सुहाग्सेज पे बैठी किसी भी औरत को ये कहना कि ये बस एक भावनात्मक निर्णय था इसका कोई वजूद नही - वो मर जाएगी - नही भगवान ऐसा मत होने देना. रूबी की आँखों से आँसू टपकने लगे और वो कमरे में इधर से उधर भटकने लगी आने वाली घड़ियाँ क्या खबर ले कर आती हैं इस पल के इंतेज़ार में.

सुनील सवी के कमरे तक जाते जाते जाने क्या क्या सोच बैठा था. सबसे बड़ा सवाल जो उसके सामने था वो था सूमी और सोनल की खुशी - जहाँ एक तरफ सूमी खुश होती वहीं सोनल को कुछ दुख होता. और वो सब कुछ हर एक की रज़ामंदी से करना चाहता था आज फिर एक लड़ाई लड़ रहा था अपने आपसे - क्या मैं सवी को वो खुशियाँ दे पाउन्गा जिसकी वो हक़दार है - क्या मेरे दिल में सवी के लिए प्यार की वो भावनाएँ जागृत होंगी जो सूमी और सोनल के लिए हैं. क्या सिर्फ़ सूमी और सवी को खुश रखने के लिए मुझे ये कदम उठाना चाहिए? अगर आज का कोई फ़ैसला कल ग़लत साबित हुआ तो क्या होगा? क्या मैं सुहाग्सेज पे बैठी सवी को ना कहने की हिम्मत जुटा पाउन्गा? तभी उसे लगा जैसे सागर उस से कुछ कह रहा है - तू तो जन्मा ही प्यार बाँटने के लिए है - फिर प्यार बाँटने से क्यूँ कतराना. औरत के विभिन्न रूप होते हैं वो अपने हर रूप से हर समय अपने आप में लड़ती रहती है कभी कोई रूप भारी पड़ जाता है तो कभी कोई यही हाल आज सोनल का है. कल सोनल बहुत खुश थी सवी को अपनाने के लिए आज सोनल कुछ और कह रही है, कल उसका कोई दूसरा रूप कुछ और कहेगा- उसके इन सभी रूपों को तुझे अपने प्यार से शांत करना है - एक डर जो अंजाने में उसके दिमाग़ में बैठ गया है उसे दूर करना है. जा आगे बढ़ अपनी सवी को उसे वो खुशियाँ दे जिनसे वो आज तक दूर रही है.

सुनील के धीमे धीमे उठते कदमो में एक मजबूती आ गयी और वो सवी के दरवाजे पे जा खड़ा हुआ.

सवी के कमरे के पास पहुँच सुनील रुक गया. एक बार फिर वो सोचने लग गया कि सवी से वो क्या बात करेगा. एक निर्णय लेने के बाद उसने दरवाजे को धकेल के खोल लिया.

सुनील कमरे में घुसा तो देखा सवी दुल्हन के लिबास में बेहद खूबसूरत लग रही थी आख़िर सूमी की बहन जो थी.

सवी सुनील को देख शरमा गयी और नज़रें नीचे झुका ली, उसका दिल धड़कने लगा, होंठ काँपने लगे.

सुनील : सवी क्या तुम दिल से ये रिश्ता चाहती हो?

ये सवाल सुनते ही सवी के तनबदन में आग लग गयी.

सवी :ये क्या बेहूदा सवाल है?

सुनील : बेहूदा नही ज़रूरी सवाल है. तुम जानती हो मेरी जिंदगी में जो जगह सूमी और सोनल की है वो शायद ही मैं किसी और को दे सकूँ. तो क्या ऐसी हालत में तुम मेरे साथ खुश रह पाओगि, पता नही तुम्हें मैं वो खुशियाँ दे पाउ या नही जिसकी तुम हक़दार हो, फिर कहीं तुम्हें बाद में ये ना लगे कि तुमने ग़लती कर दी.

सवी : प्यासे को कुएँ तक ला कर अब ये पूछ रहे हो पानी पीना है या नही. मत करो ऐसा मेरे साथ मर जाउन्गि मैं. मैं वादा करती हूँ मेरी वजह से दीदी और सोनल को कभी कोई तकलीफ़ नही होगी.
 
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