hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
इधर सवी अमर को अपने घर ले आई थी .....उसके पास एक ही बेड रूम था ...तो उसने एक और बेड लगवा लिया था .....दिन भर अमर वहीं रहता अपनी यादों को तलाशने की कोशिश करता और शाम तक थक जाता ....सवी दिन भर काम करती हॉस्पिटल में और शाम को अमर से खूब बातें करती ....सवी बहुत कोशिश कर रही थी कि अमर को कुछ तो याद आए पर उसकी हर कोशिश बेकार हो रही थी ....कई बार उसका दिल किया कि कम से कम सुनील को तो अमर के बारे में बता दे ...पर फिर खुद को रोक लेती ..क्यूंकी वो अच्छी तरहा समझ चुकी थी कि सुनील सुमन और सोनल से कभी कुछ नही छुपाता .....और वो सुमन को कोई सदमा नही देना चाहती थी ...
सुनील पढ़ कर फ्री हुआ .....तो थक चुका था .....रात के 9 बज चुके थे ....उसके पास ही सोनल बैठी पढ़ रही थी ....
सुनील के नज़रें सोनल के खूबसूरत चेहरे पे जम गयी और याद आने लगे वो पल जब इनकी सुहाग रात हुई थी.....
खुशियों से सजी सजी फुलो की वो रात
याद आती है मुझे वो मेरी सुहागरात
मेरा वो उसके रुख़ से घूँघट उठाना
मेरे देखते ही उसका नज़ारे चुराना
चूम कर उसकी आँखो को सीने से लगाना
हुई थी उस दिन हमारी ज़िंदगी की नयी सुरुआत
याद आती है मुझे वो मेरी सुहागरात
उसके सुर्ख होंठो की लाली चुराना
बातो ही बातो में हद से गुज़र जाना
आँचल में उसके सर को छुपाना
उन दो ज़िस्मों का एक हो जाना
मध्यम-2 सी धड़कने वो पिघलते जज़्बात
याद आती है मुझे वो मेरी सुहागरात
कुछ ही पॅलो में सब कुछ बदल जाना
अपनी उंगलियो से उसके सर को सहलाना
बिखरे हुए उन लम्हो को को समेटना
उससे वो प्यारी-2 बातें करना
ये कोई कविता नही बस मेरे थे एहसास
याद आती है मुझे वो मेरी सुहागरात
खुशियो से सजी सेज फुलो की वो रात
याद आती है मुझे वो मेरी सुहागरात
सोनल भी थक चुकी थी पढ़ते पढ़ते ...वो अपनी किताब बंद करती है ...नज़र उठाती है तो सुनील को यूँ मंत्रमुग्ध निहारता हुआ पाती है ...शर्म के मारे उसके गाल लाल पड़ जाते हैं...
उठ के सुनील की आँखों पे हाथ रख देती है ....ऐसे मत देखो .....
सुनील यथार्थ में वापस आता है और सोनल को अपनी बाँहों में समेट लेता है ........सुनील की बाँहों के कसाव से सोनल सिसक पड़ती है और उसके गले में अपनी बाँहें डाल देती है .......
दोनो यूँ ही चिपके रहते हैं....कुछ देर बाद सोनल खुद को छुड़ाने की कोशिश करती है.....
'छोड़ो ना ...अभी भाभी आ जाएगी खाने के लिए कहने ...'
उँ हूँ
सुनील उसके होंठ अपने होंठों के क़ब्ज़े में लेलेता है और शिद्दत से चूसने लगता है .....सोनल उसकी बाँहों में पिघलने लगती है ...आँखों में गुलाबी डोरे तैरने लगते हैं......
तभी दरवाजे पे नॉक होता है .......मिनी बाहर से ही बोलती है ....सोनल खाने के लिए आ जाओ ......वो अंदर नही आती .....जानती थी मिया बीवी किसी भी पोज़िशन में हो सकते हैं..और वो नही चाहती थी कि सुनील उसके बारे में कुछ भी ग़लत सोचे...
सोनल....अपने होंठ सुनील से अलग करती है ......चलो ...रात को कसर पूरी कर लेना ......उसके होंठों पे नशीली मुस्कान थी .....
सुनील फिर उसके सर को अपने हाथों में थाम एक ज़ोर का चूमा लेता है और फिर छोड़ देता है ...
सोनल...उई माँ लगता है आज मेरी खैर नही ..बड़े बेसबरे हो रहे हो ....
सुनील ....तुम हो ही ऐसी दिल करता है बस तुम्हें बाँहों में लिए पड़ा रहूं और जिंदगी यूँ ही गुजरती रहे ......
सोनल......अच्छा जी ....और पहले तो देखते तक नही थे मेरी तरफ ............शायद आज भी वो दिन सोनल को याद थे ...या फिर मिनी उन दिनो की याद को ताज़ा कर रही थी...
सुनील ....का मूड ऑफ हो जाता है....वो खट से सोनल को छोड़ बाहर चला जाता है .....
सोनल को उसी वक़्त अपनी ग़लती का अहसास हो जाता है और भागती है सुनील के पीछे .......और सबके सामने उसे अपनी बाँहों में भींच .......ग़लती हो गयी प्लीज़ नाराज़ मत होना....
रूबी ....भाभी .....उन्ह उन्ह ....ये आपका बेडरूम नही है .....
सोनल फट से अलग होती है .......सुनील के चेहरे पे गुस्सा देख .,...सोनल की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वो वापस कमरे में भाग जाती है ....
सुनील उसके पीछे नही जाता ....और टेबल पे बैठ जाता है .....
रूबी उठती है तो सुनील गुस्से से उसे देखता है ...बेचारी सहम के बैठ जाती है .....फिर सुमन खड़ी हो जाती है ....सुनील गुस्से से उसे भी देखता है तो उसकी आँखों में भी गुस्सा आ जाता है और सुनील की परवाह ना करते हुए चली जाती है ......
सुनील उठ जाता है और घर से बाहर ...जाने लगता है ....
मिनी ......सुनील रूको ..क्या करने जा रहे हो .....वो गुस्से से पलट के उसकी तरफ देखता है .....
मिनी ...तुम से ये उम्मीद नही थी ....पति पत्नी में मन मुटाव हो ही जाता है कभी कभी ...इसका मतलब ये नही अपनी ईगो को ले कर बैठ जाओ .....सोनल ने सबके सामने ग़लती मानी ना ...जो भी बात थी ....फिर तुम क्यूँ ऐसा कर रहे हो ....बस इतना ही प्यार ......
ये बात अगर सुमन बोलती तो सुनील शायद कुछ और तरीके से लेता लेकिन मिनी के मुँह से सुन वो तिलमिला गया .....अब उसे क्या बोलता ..क्यूँ उसे गुस्सा चढ़ा .......पैर पटकता हुआ वो हाल में बने एक छोटे बार पे जा के बैठ गया .....और विस्की की बॉटल उठा मुँह से लगा ली ....नीट पीता चला गया .....
मिनी और रूबी दौड़ के उसके करीब पहुँची ......और रूबी ने बॉटल खींच ली उस से .......
रूबी ....शराब किसी दर्द का इलाज़ नही भाई ....और आप तो नीट पीने लग गये ......
सुनील की आँखों में आँसू थे .........
मिनी .....तुम रोते हुए अच्छे नही लगते .....
सोनल की बात ने उन दिनो की याद ताज़ा कर दी थी जब वो अपनी मर्यादा की दीवारों से लड़ता था ......क्या कहता वो इन दोनो से .......बस इतना ही बोल पाया ...ठीक है नीट नही पियुंगा ....प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दो .....
मिनी ......जाओ जाके सोनल को मना के लाओ .......उसकी आवाज़ में गुस्सा सॉफ दिख रहा था ........इस वक़्त उसे माँ भी नही मना पाएगी ....बस यही प्यार है क्या तुम्हारा ....
सुनील ...मिनी को देखता रह गया
मिनी .....जाओ .......भूखा रखोगे क्या उसे
रूबी ...जाओ ना भाई ...भाभी को मना के ले आओ
सुनील पढ़ कर फ्री हुआ .....तो थक चुका था .....रात के 9 बज चुके थे ....उसके पास ही सोनल बैठी पढ़ रही थी ....
सुनील के नज़रें सोनल के खूबसूरत चेहरे पे जम गयी और याद आने लगे वो पल जब इनकी सुहाग रात हुई थी.....
खुशियों से सजी सजी फुलो की वो रात
याद आती है मुझे वो मेरी सुहागरात
मेरा वो उसके रुख़ से घूँघट उठाना
मेरे देखते ही उसका नज़ारे चुराना
चूम कर उसकी आँखो को सीने से लगाना
हुई थी उस दिन हमारी ज़िंदगी की नयी सुरुआत
याद आती है मुझे वो मेरी सुहागरात
उसके सुर्ख होंठो की लाली चुराना
बातो ही बातो में हद से गुज़र जाना
आँचल में उसके सर को छुपाना
उन दो ज़िस्मों का एक हो जाना
मध्यम-2 सी धड़कने वो पिघलते जज़्बात
याद आती है मुझे वो मेरी सुहागरात
कुछ ही पॅलो में सब कुछ बदल जाना
अपनी उंगलियो से उसके सर को सहलाना
बिखरे हुए उन लम्हो को को समेटना
उससे वो प्यारी-2 बातें करना
ये कोई कविता नही बस मेरे थे एहसास
याद आती है मुझे वो मेरी सुहागरात
खुशियो से सजी सेज फुलो की वो रात
याद आती है मुझे वो मेरी सुहागरात
सोनल भी थक चुकी थी पढ़ते पढ़ते ...वो अपनी किताब बंद करती है ...नज़र उठाती है तो सुनील को यूँ मंत्रमुग्ध निहारता हुआ पाती है ...शर्म के मारे उसके गाल लाल पड़ जाते हैं...
उठ के सुनील की आँखों पे हाथ रख देती है ....ऐसे मत देखो .....
सुनील यथार्थ में वापस आता है और सोनल को अपनी बाँहों में समेट लेता है ........सुनील की बाँहों के कसाव से सोनल सिसक पड़ती है और उसके गले में अपनी बाँहें डाल देती है .......
दोनो यूँ ही चिपके रहते हैं....कुछ देर बाद सोनल खुद को छुड़ाने की कोशिश करती है.....
'छोड़ो ना ...अभी भाभी आ जाएगी खाने के लिए कहने ...'
उँ हूँ
सुनील उसके होंठ अपने होंठों के क़ब्ज़े में लेलेता है और शिद्दत से चूसने लगता है .....सोनल उसकी बाँहों में पिघलने लगती है ...आँखों में गुलाबी डोरे तैरने लगते हैं......
तभी दरवाजे पे नॉक होता है .......मिनी बाहर से ही बोलती है ....सोनल खाने के लिए आ जाओ ......वो अंदर नही आती .....जानती थी मिया बीवी किसी भी पोज़िशन में हो सकते हैं..और वो नही चाहती थी कि सुनील उसके बारे में कुछ भी ग़लत सोचे...
सोनल....अपने होंठ सुनील से अलग करती है ......चलो ...रात को कसर पूरी कर लेना ......उसके होंठों पे नशीली मुस्कान थी .....
सुनील फिर उसके सर को अपने हाथों में थाम एक ज़ोर का चूमा लेता है और फिर छोड़ देता है ...
सोनल...उई माँ लगता है आज मेरी खैर नही ..बड़े बेसबरे हो रहे हो ....
सुनील ....तुम हो ही ऐसी दिल करता है बस तुम्हें बाँहों में लिए पड़ा रहूं और जिंदगी यूँ ही गुजरती रहे ......
सोनल......अच्छा जी ....और पहले तो देखते तक नही थे मेरी तरफ ............शायद आज भी वो दिन सोनल को याद थे ...या फिर मिनी उन दिनो की याद को ताज़ा कर रही थी...
सुनील ....का मूड ऑफ हो जाता है....वो खट से सोनल को छोड़ बाहर चला जाता है .....
सोनल को उसी वक़्त अपनी ग़लती का अहसास हो जाता है और भागती है सुनील के पीछे .......और सबके सामने उसे अपनी बाँहों में भींच .......ग़लती हो गयी प्लीज़ नाराज़ मत होना....
रूबी ....भाभी .....उन्ह उन्ह ....ये आपका बेडरूम नही है .....
सोनल फट से अलग होती है .......सुनील के चेहरे पे गुस्सा देख .,...सोनल की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वो वापस कमरे में भाग जाती है ....
सुनील उसके पीछे नही जाता ....और टेबल पे बैठ जाता है .....
रूबी उठती है तो सुनील गुस्से से उसे देखता है ...बेचारी सहम के बैठ जाती है .....फिर सुमन खड़ी हो जाती है ....सुनील गुस्से से उसे भी देखता है तो उसकी आँखों में भी गुस्सा आ जाता है और सुनील की परवाह ना करते हुए चली जाती है ......
सुनील उठ जाता है और घर से बाहर ...जाने लगता है ....
मिनी ......सुनील रूको ..क्या करने जा रहे हो .....वो गुस्से से पलट के उसकी तरफ देखता है .....
मिनी ...तुम से ये उम्मीद नही थी ....पति पत्नी में मन मुटाव हो ही जाता है कभी कभी ...इसका मतलब ये नही अपनी ईगो को ले कर बैठ जाओ .....सोनल ने सबके सामने ग़लती मानी ना ...जो भी बात थी ....फिर तुम क्यूँ ऐसा कर रहे हो ....बस इतना ही प्यार ......
ये बात अगर सुमन बोलती तो सुनील शायद कुछ और तरीके से लेता लेकिन मिनी के मुँह से सुन वो तिलमिला गया .....अब उसे क्या बोलता ..क्यूँ उसे गुस्सा चढ़ा .......पैर पटकता हुआ वो हाल में बने एक छोटे बार पे जा के बैठ गया .....और विस्की की बॉटल उठा मुँह से लगा ली ....नीट पीता चला गया .....
मिनी और रूबी दौड़ के उसके करीब पहुँची ......और रूबी ने बॉटल खींच ली उस से .......
रूबी ....शराब किसी दर्द का इलाज़ नही भाई ....और आप तो नीट पीने लग गये ......
सुनील की आँखों में आँसू थे .........
मिनी .....तुम रोते हुए अच्छे नही लगते .....
सोनल की बात ने उन दिनो की याद ताज़ा कर दी थी जब वो अपनी मर्यादा की दीवारों से लड़ता था ......क्या कहता वो इन दोनो से .......बस इतना ही बोल पाया ...ठीक है नीट नही पियुंगा ....प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दो .....
मिनी ......जाओ जाके सोनल को मना के लाओ .......उसकी आवाज़ में गुस्सा सॉफ दिख रहा था ........इस वक़्त उसे माँ भी नही मना पाएगी ....बस यही प्यार है क्या तुम्हारा ....
सुनील ...मिनी को देखता रह गया
मिनी .....जाओ .......भूखा रखोगे क्या उसे
रूबी ...जाओ ना भाई ...भाभी को मना के ले आओ