hotaks444
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राज ने कवि के गाउन के पट खोल दिए और उसे उसके जिस्म से अलग कर दिया....अब कवि पूरी तरहा नंगी थी बिस्तर पे और मारे शर्म के उसका बुरा हाल हो रहा था...
.हालाँक वो राज से आज काफ़ी खुल चुकी थी पर बिस्तर पे यूँ नग्न होना उसके लिए इतना आसान भी नही था...चाहे दिल चीख चीख के कह रहा था....आज तो मिलन की बेला है फिर ये शरमाना क्यूँ ....
लेकिन वो लड़की क्या जो लाज का गहना उतार दे कितनी भी वो अपने पति के साथ खुल जाए .....
पर शर्म अपनी जगह थोड़ी तो कायम रहती ही है.....
कवि के जिस्म से गाउन अलग करने के बाद राज ने अपना अंडरवेर भी उतार डाला ....
और कवि के साथ लेट गया....कवि के दिल की धड़कन और भी तेज हो गयी जब उसे
राज के नगन जिस्म का अहसास अपने जिस्म के साथ चिपकता हुआ मिला ......
कवि की शर्म-ओ-हया की दीवार को तोड़ने के लिए राज ने उसकी बाँह को सहलाते हुए
उसके हाथ को अपनी तरफ खींचा और उसकी हथेली को अपने लंड पे रख दिया ....
कांप के रह गयी कवि ...जब उसकी उंगलियों ने राज के मोटे लंबे लंड को छुआ..
.उसने अपना हाथ हटाने की कोशिश करी पर राज ने उसे हटाने नही दिया.....
गरम गरम लोहे की रोड की तरहा.राज का लंड छू कर कवि की सांस उपार नीचे होनी लगी..गला सूखने लगा .....
'अह्ह्ह्ह ...माआआआ' कवि ज़ोर से सिसक पड़ी
कवि के नर्म हाथों का अहसास पा राज भी सिसक उठा....
आज तक वो लड़कियों से दूर रहा था....आज पहली बार किसी लड़के हाथों का स्पर्श अपने लंड पे पा वो अंजाने अहसास को भोग रहा था...
उसे तो यूँ लगने लगा था की उसका लंड अभी फट जाएगा........
कवि को भी अपने हाथ में उसका लंड और भी फूलता हुआ लगा और अंजाने में ही उसने सख्ती से उसके लंड को भींच लिया......
'ओह्ह्ह्ह' राज फिर सिसका और कवि पे झुक उसके होंठों को चूसने लग गया....
कवि अपने होंठ चुस्वाती हुई ...उसके लंड को धीरे धीरे सहलाने लगी .....
इंसान को चाहे सेक्स के बारे में ना पता हो कहीं ना पड़ा हो ...किसी ने ना बताया हो ...
ये ज़ज्बात कुदरती होती हैं...जो इंसान को अपने आप हरकत करने पे मजबूर कर देते हैं.....
और कवि तो वैसे भी एमबीबीएस कर रही थी...उसे सब मालूम ही था...पर पहली बार किसी लंड को छूना....
और खुद बा खुद उसे सहलाने लग ना ..ये अहसास भी कवि के लिए अंजाना था...
कवि के होंठों को चूस्ते हुए राज उसके निपल से खेलने लगा ...
और कभी एक निपल को मसलता तो कभी दूसरे को....
कवि के अंदर कामग्नी बढ़ती जा रही थी....होंठों से और निपल से जो तरंगे उठ उठ के उसकी चूत की तरफ बढ़ती...
वो उसे बहाल करती जा रही थी....कवि ने अपनी जाँघो को कस के भींच लिया और आपस में रगड़ने लगी....
एह हाथ से वो राज की पीठ सहला रही थी और दूसरे से राज के लंड को सहला रही थी........
राज भी भी उसके निपल को ज़ोर से भींचता अपनी उंगलियों में ...चीख पड़ती वो पर उसकी चीख होंठों में दबी रह जाती....
.और नतिजन वो राज के लंड को ज़ोर से भींच डालती ...सिसक पड़ता राज और उसकी पकड़ निपल पे अपने आप ढीली पड़ जाती...
काफ़ी देर तक कवि के होंठों को चूसने और निपल से खेलने के बाद राज अलग हुआ और उसकी टाँगों के बीच आ कर बैठ गया.....
कवि की टाँगें अपने आप फैलती चली गयी ....वो पल अब नज़दीक था जब राज उसके अंदर सामने वाला था.....
इससे पहले राज कोई हरकत करता अपना लंड उसकी चूत में घुसाने की...
वो सम्भल गया क्यूंकी ऐसे कवि को बहुत दर्द होता....
अपने आप को रोक कर वो कवि की टाँगों को और फैला उसकी चूत पे झुक गया और उसे चाटने लगा......
अहह उफफफफफफफ्फ़ राज की गरम ज़ुबान का अहसास अपनी चूत पे पा कवि ज़ोर से सिसकी ...........
क्या कर रहे हो राज.....ओह माआअ अहह कवि फिर सिसकी ..
जब राज ने उसकी चूत को उंगलियों से फैलाते हुए अपनी जीब उसकी चूत में डाल दी......ज़ोर का झटका लगा था .....
कवि को....उसकी चूत ने ज़ोर से कुलबुलाना शुरू कर दिया था......ये लज़्ज़त ये अहसास ...
उसे दूर कहीं लेता जा रहा था...जहाँ उसका ज़ोर अपने जिस्म पर से ख़तम होता चला जा रहा था.....
.रह गयी थी तो बस एक कामना ...दो जिस्मो के मिलन की ताकि उनकी रूह का एक दूसरे से एककार हो जाए....
.कवि उस मंज़िल की तरफ अब तेज़ी से बढ़ना चाहती थी...
पर राज की तरफ से होता ये खिलवाड़ उसे अच्छा भी लग रहा था और बुरा भी ...
अपने मुँह से कह नही पा रही थी ...कि आओ अब देर मत करो ...
समा जाओ मुझ में और भुजा दो वो प्यास जो तुमने जगा दी है......
उसकी चूत को अपनी ज़ुबान से लपलपाते हुए जब राज ने अपनी एक उंगल उसकी चूत में डाल दी तो तड़प गयी कवि...
दर्द की तेज लहर उसकी चूत से उठी........उूुुुुउउइईईईईईईईईईईईईईईईईईई
पर ये दर्द धीरे धीरे ख़तम होने लगा और लज़्ज़त का अहसास फिर से भड़कने लगा ....
राज ने अप्नी उंगली की हरकत तेज कर दी और उसकी चूत को चाटते हुए अपनी उंगल अंदर बाहर करने लगा .....
उफफफफफफफ्फ़ हहाऐईयईईई अहह
कवि ज़ोर से सिसकी और अपना सर बिस्तर पे पटाकने लगी .........दोनो हाथों से उसने बिस्तर को जाकड़ लिया
......और कमरे में उसकी सिसकियों का संगीत गूंजने लगा....
राज चाहता था के कवि भी उसका लंड चूज़ ...पर अभी शायद ये बहुत जल्द हो जाता
...अभी उसे कवि को अपने इतने करीब करना था ....
की उसके दिल-ओ-दिमाग़ से शर्म की सभी दीवारें ढह जाएँ...
और वो खुल के उसके साथ सेक्स का आनंद ले........
राज ने उसकी चूत के एक एक लब को ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया ..
कभी एक लब को अपने होंठों में दबा लेता तो कभी दूसरे को.....
कवि खुद को रोक ना पाई ....और उसकी कमर में थिरकन आ गयी...
वो अपनी चूत उठा उठा के राज के मुँह पे मारने लगी ...
जिसमे धीरे धीरे तेज़ी आने लगी...राज की उंगली भी तेज़ी से अंदर बाहर हो रही थी.....
.और कवि की चूत लगातार रस बहती जा रही थी ...जिसे राज पीता जा रहा था.........
जब कवि की कमर और भी तेज़ी से हिलने लगी.....
.हालाँक वो राज से आज काफ़ी खुल चुकी थी पर बिस्तर पे यूँ नग्न होना उसके लिए इतना आसान भी नही था...चाहे दिल चीख चीख के कह रहा था....आज तो मिलन की बेला है फिर ये शरमाना क्यूँ ....
लेकिन वो लड़की क्या जो लाज का गहना उतार दे कितनी भी वो अपने पति के साथ खुल जाए .....
पर शर्म अपनी जगह थोड़ी तो कायम रहती ही है.....
कवि के जिस्म से गाउन अलग करने के बाद राज ने अपना अंडरवेर भी उतार डाला ....
और कवि के साथ लेट गया....कवि के दिल की धड़कन और भी तेज हो गयी जब उसे
राज के नगन जिस्म का अहसास अपने जिस्म के साथ चिपकता हुआ मिला ......
कवि की शर्म-ओ-हया की दीवार को तोड़ने के लिए राज ने उसकी बाँह को सहलाते हुए
उसके हाथ को अपनी तरफ खींचा और उसकी हथेली को अपने लंड पे रख दिया ....
कांप के रह गयी कवि ...जब उसकी उंगलियों ने राज के मोटे लंबे लंड को छुआ..
.उसने अपना हाथ हटाने की कोशिश करी पर राज ने उसे हटाने नही दिया.....
गरम गरम लोहे की रोड की तरहा.राज का लंड छू कर कवि की सांस उपार नीचे होनी लगी..गला सूखने लगा .....
'अह्ह्ह्ह ...माआआआ' कवि ज़ोर से सिसक पड़ी
कवि के नर्म हाथों का अहसास पा राज भी सिसक उठा....
आज तक वो लड़कियों से दूर रहा था....आज पहली बार किसी लड़के हाथों का स्पर्श अपने लंड पे पा वो अंजाने अहसास को भोग रहा था...
उसे तो यूँ लगने लगा था की उसका लंड अभी फट जाएगा........
कवि को भी अपने हाथ में उसका लंड और भी फूलता हुआ लगा और अंजाने में ही उसने सख्ती से उसके लंड को भींच लिया......
'ओह्ह्ह्ह' राज फिर सिसका और कवि पे झुक उसके होंठों को चूसने लग गया....
कवि अपने होंठ चुस्वाती हुई ...उसके लंड को धीरे धीरे सहलाने लगी .....
इंसान को चाहे सेक्स के बारे में ना पता हो कहीं ना पड़ा हो ...किसी ने ना बताया हो ...
ये ज़ज्बात कुदरती होती हैं...जो इंसान को अपने आप हरकत करने पे मजबूर कर देते हैं.....
और कवि तो वैसे भी एमबीबीएस कर रही थी...उसे सब मालूम ही था...पर पहली बार किसी लंड को छूना....
और खुद बा खुद उसे सहलाने लग ना ..ये अहसास भी कवि के लिए अंजाना था...
कवि के होंठों को चूस्ते हुए राज उसके निपल से खेलने लगा ...
और कभी एक निपल को मसलता तो कभी दूसरे को....
कवि के अंदर कामग्नी बढ़ती जा रही थी....होंठों से और निपल से जो तरंगे उठ उठ के उसकी चूत की तरफ बढ़ती...
वो उसे बहाल करती जा रही थी....कवि ने अपनी जाँघो को कस के भींच लिया और आपस में रगड़ने लगी....
एह हाथ से वो राज की पीठ सहला रही थी और दूसरे से राज के लंड को सहला रही थी........
राज भी भी उसके निपल को ज़ोर से भींचता अपनी उंगलियों में ...चीख पड़ती वो पर उसकी चीख होंठों में दबी रह जाती....
.और नतिजन वो राज के लंड को ज़ोर से भींच डालती ...सिसक पड़ता राज और उसकी पकड़ निपल पे अपने आप ढीली पड़ जाती...
काफ़ी देर तक कवि के होंठों को चूसने और निपल से खेलने के बाद राज अलग हुआ और उसकी टाँगों के बीच आ कर बैठ गया.....
कवि की टाँगें अपने आप फैलती चली गयी ....वो पल अब नज़दीक था जब राज उसके अंदर सामने वाला था.....
इससे पहले राज कोई हरकत करता अपना लंड उसकी चूत में घुसाने की...
वो सम्भल गया क्यूंकी ऐसे कवि को बहुत दर्द होता....
अपने आप को रोक कर वो कवि की टाँगों को और फैला उसकी चूत पे झुक गया और उसे चाटने लगा......
अहह उफफफफफफफ्फ़ राज की गरम ज़ुबान का अहसास अपनी चूत पे पा कवि ज़ोर से सिसकी ...........
क्या कर रहे हो राज.....ओह माआअ अहह कवि फिर सिसकी ..
जब राज ने उसकी चूत को उंगलियों से फैलाते हुए अपनी जीब उसकी चूत में डाल दी......ज़ोर का झटका लगा था .....
कवि को....उसकी चूत ने ज़ोर से कुलबुलाना शुरू कर दिया था......ये लज़्ज़त ये अहसास ...
उसे दूर कहीं लेता जा रहा था...जहाँ उसका ज़ोर अपने जिस्म पर से ख़तम होता चला जा रहा था.....
.रह गयी थी तो बस एक कामना ...दो जिस्मो के मिलन की ताकि उनकी रूह का एक दूसरे से एककार हो जाए....
.कवि उस मंज़िल की तरफ अब तेज़ी से बढ़ना चाहती थी...
पर राज की तरफ से होता ये खिलवाड़ उसे अच्छा भी लग रहा था और बुरा भी ...
अपने मुँह से कह नही पा रही थी ...कि आओ अब देर मत करो ...
समा जाओ मुझ में और भुजा दो वो प्यास जो तुमने जगा दी है......
उसकी चूत को अपनी ज़ुबान से लपलपाते हुए जब राज ने अपनी एक उंगल उसकी चूत में डाल दी तो तड़प गयी कवि...
दर्द की तेज लहर उसकी चूत से उठी........उूुुुुउउइईईईईईईईईईईईईईईईईईई
पर ये दर्द धीरे धीरे ख़तम होने लगा और लज़्ज़त का अहसास फिर से भड़कने लगा ....
राज ने अप्नी उंगली की हरकत तेज कर दी और उसकी चूत को चाटते हुए अपनी उंगल अंदर बाहर करने लगा .....
उफफफफफफफ्फ़ हहाऐईयईईई अहह
कवि ज़ोर से सिसकी और अपना सर बिस्तर पे पटाकने लगी .........दोनो हाथों से उसने बिस्तर को जाकड़ लिया
......और कमरे में उसकी सिसकियों का संगीत गूंजने लगा....
राज चाहता था के कवि भी उसका लंड चूज़ ...पर अभी शायद ये बहुत जल्द हो जाता
...अभी उसे कवि को अपने इतने करीब करना था ....
की उसके दिल-ओ-दिमाग़ से शर्म की सभी दीवारें ढह जाएँ...
और वो खुल के उसके साथ सेक्स का आनंद ले........
राज ने उसकी चूत के एक एक लब को ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया ..
कभी एक लब को अपने होंठों में दबा लेता तो कभी दूसरे को.....
कवि खुद को रोक ना पाई ....और उसकी कमर में थिरकन आ गयी...
वो अपनी चूत उठा उठा के राज के मुँह पे मारने लगी ...
जिसमे धीरे धीरे तेज़ी आने लगी...राज की उंगली भी तेज़ी से अंदर बाहर हो रही थी.....
.और कवि की चूत लगातार रस बहती जा रही थी ...जिसे राज पीता जा रहा था.........
जब कवि की कमर और भी तेज़ी से हिलने लगी.....