Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी - Page 12 - SexBaba
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Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी

अगर मैं यहाँ से नही निकला तो आंटी तो यहीं पर मेरा पोस्टमॉर्टम कर देगी…..मैं सोच ही रहा था इतने मे आंटी ने टेबल के नीचे घुसे घुसे ही बाबूराव पर ही हाथ फेर दिया.

बस यार…..अब अति हो गयी….फटफती फुल स्पीड मे आ गयी और मैं तुरंत खड़ा हुआ और टर्राया….

“अंकल जी मैं चलता हूँ…….म….म….मुझे घर जाना है…..”

तभी पम्मी आंटी भी तुरंत टेबल के नीचे से निकल आई और बोली, “हाय हाय….अरे तू बड़ी जल्दी मे है……पिया को पढ़ाना नही है क्या….?”

“ज….ज….कल….कल….दिन मे…..आकर पढ़ा दूँगा……”

“ठीक है……2 बजे आइयो…….”, पम्मी आंटी ने मुस्कुराते हुए कहा.

यार…..पिया तो 2 बजे घर पहुँच ही नही पाएगी तो फिर…..

और अपुन को सीन क्लियर हो गया….आंटी जान बूझकर जल्दी बुला रही है…..ताकि….
 
“ज….ज….कल….कल….दिन मे…..आकर पढ़ा दूँगा……”


“ठीक है……2 बजे आइयो…….”, पम्मी आंटी ने मुस्कुराते हुए कहा.


यार…..पिया तो 2 बजे घर पहुँच ही नही पाएगी तो फिर…..


और अपुन को सीन क्लियर हो गया….आंटी जान बूझकर जल्दी बुला रही है…..ताकि….


मैं तुरंत सरदार जी के घर ने निकला और सड़क पर आ गया.

रास्ते तो सुनसान हो चुके थे पर अपने भेजे की वाट लगी हुई थी….

बाबूराव को देखो तो अपना सर उठाए अभी तक पम्मी आंटी को ही ढूँढ रहा था, पर कम से कम फटफटी तो नॉर्मल हो गयी थी…

साली….पम्मी आंटी भी क्या ठरकी औरत है यार, इतना महा मादरचोद पति होने के बाद भी मुझ पर ऐसे ही हाथ डाल दिया ?


तभी मेरी ट्यूब लाइट जली ……


आंटी को जो चाहिए…..वो मुझे से मिल भी जाएगा और किसी को शक भी नही….


अच्छा…..


कीड़ा कुलबुलाने लगा.


पम्मी आंटी की हरकटो ने भेजे को हिला डाला था…..बाबूराव इस कदर टन टना टन खड़ा था मानो पेंट ही फाड़ देगा…..मैं पेंट के उपर से ही बाबूराव को थोड़ा अड्जस्ट किया, साला मुंडी अंडरवियर की एलास्टिक से निकल के तैयार बैठा था ..


आज तो नीलू चाची की फाड़ के रख दूँगा….


सही मे यार….


इतना गरम तो मैं आज तक नही हुआ था.


जैसे जैसे मेरे कदम घर की और बढ़ रहे थे वैसे वैसे मेरी ठरक का मीटर बढ़ रहा था.


आज तो चाची को पकड़ के सीधा साड़ी उपर करूँगा और पेल दूँगा….


मैं अपनी ही धुन मे चला जा रहा था. मन ही मन प्लान करते करते कब सड़क के बीच आ गया पता ही नही चला.


पो... पो....


मेरी तो गांड ही फट गयी, भेन्चोद बस वाले ने ठीक पीछे आकर् ही हॉर्न मारा.


मैं हड़बड़ा कर फुटपाथ पर आया. बस क्रॉस हुई तो दरवाजे से लटका लोण्डा चिल्लाया....


“अबे ओ अंधे की औलाद, मरेगा क्या मादरचोद ....? “


“अबे जा...भेंन के लौड़े.....”, मैं चिल्लाया.


अचानक मैं रुक गया....आज पहली बार मैने किसी को गाली दी थी वो भी बिना हकलाये.


पम्मी आंटी ने तो बाबूराव पर हाथ फेर कर ही मुझे बदल दिया, अब जाने क्या क्या होगा.


चाची को पेलने के मंसूबे बनाता बनाता मैं घर पहुँचा....


ना चाचा का स्कूटर था ना पपाजी का....मा तो यूँ भी लेट आने वाली थी.


मतलब की मैदान साफ़...
 
मेरे पूरे बदन मे सुरसुरी ही होने लगी....मैने बेल बजाई.


दो बार और बजाने पर दरवाजा खुला और हाथ मे थाली लिए चाची दिखी.


ये थाली का क्या लोचा है भेन्चोद ?


चाची बोली, “राम....अच्छा हुआ तू आ गया.....जा ये थाली सामने शर्मा जी के यहाँ लेजा.....इसमे बाबाजी का खाना है"


बाबाजी....?


अच्छा वो बाबाजी.....चाची ने कहा था.


मैं शर्मा जी के यहा गया. दरवाजा खुला था.....

पहले कमरे मे 7-8 औरते बैठी थी....मैने आवाज़ लगाई..


“लता आंटी.....? “ ( शर्मा आंटी का नाम लता था.”


आंटी एक कमरे से बाहर निकली और मेरे हाथ मे थाली देख कर बोली, “अरे वाह....ले आया खाना....वाह...वाह.....ला....दे.....अब तो अनिता (नीलू चाची) की मुराद ज़रूर पूरी होगी....ला बेटा ला.....अच्छा सुन.....अनिता को याद दिला देना....उपवास का......और परहेज का.....”


उपवास ....? परहेज.....?


क्या चुतियाई है ?


मैं घर पहुँचा...चाची बाहर ही खड़ी थी.....


“दे आया.....वाह....लल्ला......ला दे....यह थाली मुझे दे दे....”


मुझे याद आया की शर्मा आंटी ने कुछ कहा था....


“चाची.....वो शर्मा आंटी ने कहा था.....की...उपवास और.....वो....हा....परहेज पूरा रखना “


चाची मुस्कुरई और बोली, “हन....रे.....रखूँगी रे.......गोद भर जाए बस...”


अच्छा तो यह लोचा है.....बाबाजी ने नया नुस्ख़ा दिया है. चलो बढ़िया है..


मगर मुझे तो चाची से कुछ काम था ना....


चाची किचन मे गयी और सींक मे थाली धोने लगी, मैं धीरे से उनके पीछे गया और अपने बाबूराव उनकी गांड पर चिपका कर आगे झुक कर पानी का ग्लास उठाने लगा. चाची एक दम से चिहुकि और अलग हट गयी, मैने पानी पिया और ग्लास रखने के लिए आगे बढ़ते हुए फिर से बाबूराव को चाची की गांड पर चिपका दिया...


“लल्ला......”, चाची चिल्लई.


मैने अपने हाथ चाची की कमर मे डालने की कोशिश की.


चाची फिर ज़ोर से चिल्लई, “अरे हट परे.......”


इसकी मा की चूत....


चाची हमको ही छका रही थी....


वही पुराना चूहे बिल्ली का खेल


मगर आज तो हम बिल्ली मारिबे


सालीयूँ इतनी गरम है की हाथ लगाओ तो कसमसने लगती है .....


सीन क्या है ?


चाची पीछे मूडी, उनका चेहरा बिल्कुल तमतमाया हुआ था....


मैने हाथ आगे बढ़ाया.,


चाची फिर बोली, “न..न...न.....नही.....मत कर हरामी.......”


फटफटी ......धीरे....धीरे.....चली.....रे.......


“क....क.....क.....क्या हुआ चाची......”


“मैने मना किया ना....अरे तेरी मोटी बुदधि मे कुछ आता नही है क्या रे.....अरे बाबाजी ने परहेज रखने को कहा है......नासपीटे ...उपवास तुडा देगा तू.......”


“हैं..... क…क…..क्या….?”
 
चाची ने मेरा लटका हुआ चेहरा देखा तो समझने के अंदाज़ मे बोली, “बाबाजी.....ने दवाई दी है.....और कहा हे की 1 महीने तक दवाई लेना है और परहेज से रहना है......,मतलब समझा ना तू....”



खड़े लॅंड को ऐसा धोका ???


भेजे की माँ, भेन, भाभी, आंटी सब हो गयी यार.....


एक बार तो मन किया की माँ की आँख.....चाची को पकड़ के पेल ही देता हूँ.....पर जब उनका चेहरा देखा तो ये आईडिया खिड़की से बाहर निकल गया.


चाची अभी तक मेरा मुंह ही तक रही थी....


"खाना लगा दूँ........."


"हाँ....?......क्या.....?"


"खाना लगा दूँ.......देख पूरी और भाजी बनायीं है.....बाबाजी ने कह कर बनवाई है........."


बाबाजी का घंटा......


"नहीं भूख नहीं मुझे........"


"हाय हाय......राम घी की पूरी और तरकारी है........खा....ले.....प्रसाद समझ कर....."


अरे यहाँ मेरे भेजे की टे पु हो रही थी और यह चाची की चबर चबर बंद नही हो रही....


""अरे.....मैंने......खाना......खा......लिया......है........नहीं......खाना......मुझे........"


चाची के चेहरे पर एक्सप्रेशन चेंज हो गए......बेचारी हर्ट हो गयी.


"...हैं लल्ला......नाराज़ हो गया......?"


मैंने न में सर हिलाया...मगर मेरे माथे पर बल अभी तक पड़े हुए थे.


अब यार.....इंसान का बाबुराव खड़ा हो.....उसका मूड बना हो.......उसके सामने चाची हो......घर में कोई नहीं हो.........


और ऐसी चुतियाई सुनने को मिले तो और क्या करे....?


लौड़ा चाची को कौन समझाए की बच्चा उपवास करने से नहीं.......सहवास करने से होता है.


बहुत बड़ी चोद हो गयी यार.......


चाची ठंडी साँस भरकर बोली, "...राम.....तो मैं क्या करू......तेरे चाचा न तो इलाज़ कराते है न कुछ और.......वो डॉक्टर मेडम ने कहा था की महीना आने के बाद दसवे दिन से बीसवे दिन तक रोज़..........कोशिश करना.......तो क्या मैं अकेले कर लूँ कोशिश......तेरे चाचा तो घर आते है.....खाना खाते हैं.....और जब तक मैं सब काम निबटा कर कमरे में जाती हूँ तब तक तो.....सो जाते है.......

राम इसमें मेरी क्या गलती है.........सब मुझे दोष देते है.......कल ही बड़ी बुआ का फ़ोन आया था.....मुझसे बोलती है की यह सब पिछले जनम का किया धरा है......तेरी दादी जी बोलती हैं की मेरे माँ बाप..........."


इतना बोलते बोलते चाची की आँख ही भर आई.


अब यार......यह कोनसा रायता फ़ैल गया.


मैंने चाची को बोला, "अरे ....अरे......चाची ऐसे मत करो......रोइयो मती......सब हो जायेगा......आपने उपवास किया है न.....बस.."


चाची तो आँख नाक पोछती हुयी चली गयी.


मगर मेरा क्या.....?


चाची की आदत ही गांड मटका कर चलने की है....अंदर जाते जाते भी गांड को ऐसे मटका रही थी की.......


कीड़ा कुलबुलाने लगा.


मगर अबे कछु नाइ होत.....


चाची तो निकल ली...मेरी साली खोपड़िआ काम नहीं कर रही थी की क्या करू.....?


चूत का स्वाद मिलने के बाद मुठ्ठी मारने में मजा ही नहीं आ रहा था......और न ही मन था.


मुझे तो ....चूत ......ही चाहिए थी.


कसम गंगा मैया की............. ऐसा खोपड़ा खोपरा हो गया था, अब का बताई….


अपुन तो मन मसोस भी लेते मगर बाबूराव तो माने नही मान रहा था. साला वैसा का वैसा ही खड़ा था.


उसके उपर से यह गर्मी….चिप चिपी ….


पंखे के नीचे खड़े होकर भी लग रहा था की जैसे भट्टी के मुहाने पर खड़ा हूँ, भोसड़ी का पंखा भी चु चु करके जितनी गरम हवा इक्कठी हो रही थी, समेट कर मेरे सर पर डाल रहा था.


बाई गोड … .खोपडिया खराब हो गयी थी.


कुछ समझ मे नही आया तो मैं बाहर आकर खड़ा हो गया…….रात की दस बज चुके थे….शर्मा अंकल के यहा से रह रह कर आवाज़ें आ जाती थी….बाबाजी जो आए हुए थे.


थोड़ी ठंडी हवा चली…..दिल को तो नही मगर बदन को थोड़ा सुकून मिला.


मैने सोचा चलो छत पर ही चलते है…..कमसकम अच्छी हवा तो मिलेगी.


हमारी छत दो मंज़िल की है…बाकी सब की एक मंज़िल की…तो हवा तो अच्छी मिल ही जाती.


मैं छत पर गया और कसम से यहा तो माहोल ही चेंज था.


मेरा शहर थोड़ा पहाड़ी ज़मीन पर है….थोड़ी उँची थोड़ी नीची…..हमारे घर की छत से आधा शहर दिखता था……रात की रोशनी मे नहाया….


बड़े तालाब के पानी पर पड़ती रोशनी……किसी के भी मन को शांत कर सकती थी.


मगर खड़े बाबूराव को तो एक ही चीज़ शांत कर सकती थी…..


मैं बेचैन सा छत पर चक्कर लगाने लगा.


मैं मुंडेर पर खड़ा था कोमल भाभी के घर की और मुँह किए….ठंडी हवा चेहरे पर टकरा रही थी…..सहला भी रही थी और उकसा भी रही थी. कोमल भाभी की छत हमारी छत से लगी थी मगर एक मंज़िल नीचे थी. हमारा घर मंज़िला था और उनका एक मंज़िला.
 
तभी कोमल भाभी की छत पर बना रोशनदान….एक दम से रोशन हो गया.


उनके बेडरूम का रोशनदान छत पर था….झिर्रिया बनी थी.


उधर रोशन दान रोशन हुआ और इधर….


कीड़ा कुलबुलाने लगा.


उड़ी मरने मे तो अपुन ऐसे ही एक्सपर्ट थे…….मेरी छत और कोमल भाभी की छत मे करीब दस फीट की छलाँग थी……मैने आव देखा ना ताव मुंडेर पर हाथ से लटक कर पैर दिवार पर निकली ईंटों पर जमाए और यह नीचे….


कसम से बिल्ली भी इतनी धीरे से नही कूद सकती….


मैं दबे पाँव रोशनदन की और बड़ा…..


अगले ही पल मैं रोशनदान के पास उकड़ू बैठा था और अंदर झाँक रहा था.


मगर बेडरूम खाली था.


किस्मत से रोशनदान बेडरूम की दीवार के उपर बीच मे बना था, पूरे रूम का नज़ारा ऐसा दिख रहा था मानो मैं स्टेडियम मे बैठा हूँ….


पवेलियन सीट पर….


अब तो मॅच शुरू होने का इंतेज़ार था.


भाभी की पतिदेव आने वाले थे ना आज.


मैं तो नही मगर बाबूराव आने वाले सीन की उम्मीद मे हथेलिया मसल रहा था.


तभी भाभी के बेडरूम के बाथरूम का दरवाजा खुला और……


दीदार – ए – यार हो गया.


सूरज की गर्मी से तपी हुई ज़मीन पर पानी की बूँदें गिरने लगी थी बाबू…..


कलेजे को ठंडक और आँखों को नज़ारा.


भाभी नहा कर आई थी……ऐसी गर्मी मे तो रात मे नहाना ही पढ़ता है ना, मगर आज तो प्रयोजन ही दूसरा था….भैया जी टूर से आने वाले थे.


कोमल भाभी के बाल गीले थे….और उन्होने एक गाउन पहना हुआ था…..वो आगे से खुला होता है ना ….वो वाला.


मगर उनकी पीठ थी मेरी तरफ……इस लिए आगे का सीन नही दिख रहा था…


एक तो यह रोशनदान की झिर्रिया भी…..भें चोद …..कभी मुंडी निचे कभी उपर करनी पढ़ रही थी.


कोमल भाभी जाकर ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो गयी और टेबल पर से एक बॉटल उठा ली.


भाभी ने अपने पैर ड्रेसिंग टेबल पर रखा……ओये….


भाभी का आगे से खुला गाउन उनके चिकने पैर से सरकता हुआ बगल मे लटक गया और उनका दूधिया पैर जाँघ तक लाइट की रोशनी से नहा गया.


गडप…..गडप….कसम से दो बार थूक निगलना पड़ा.


आज तो बाबूराव की अग्निपरीक्षा ही हो रही थी……साला कितना सितम झेले कोई.


कोमल भाभी ने बॉटल मे से लोशन निकाला, अपनी दोनो हथेलियो पर रगड़ा और धीरे धीरे अपने पैरों पर लगाने लगी.


जाँघ से शुरू होकर पैरों तक….


काश यह हाथ मेरे होते….ऊ…..कोमल भाभी धीरे धीरे हाथ से लोशन लगा रही थी और मेरा तापमान


धीरे.......... धीरे……धीरे….धीरे…..बड़े जा रहा था.
 
मेरी निगाहें उनके लोशन लगी टाँगों पर इस कदर चिपकी थी जैसे गुड पर मखकी.


कोमल भाभी ने दूसरा पैर उठाया, उनके बदन के आड़ से मुझे यह पैर पूरा नही पूरा नही दिख रहा था मगर अब मेरे मन की आखें खुल चुकी थी…..


धीरे धीरे उनके हाथ चल रहे थे और धीरे धीरे बाबूराव अपने सर उठा रहा था


कोमल भाभी ने बड़े इतमीनान से अपने दोनो हाथों पर लोशन लगाया और थोड़ा लोशन हथेलियो पर लगाया और


अपने दोनो हाथ पीछे किए और अपनी मस्त गदराई गांड पर लोशन लगाने लगी….मुझे गाउन मे से सिर्फ़ एक झलक दिखी उनके नितंबो की……भेन चोद मैं तो बौरा गया.


गाउन का परदा सिर्फ़ एक पल के लिए हटा था और मुझे उनके गदराई गांड और जांघों का पिछला हिस्सा ही दिखा मगर……


अगर मगर गया भाड़ मे….बाई गोड मज़ा आ गया.


कोमल भाभी बड़े ही प्यार से धीरे धीरे अपने दोनो गोलों पर लोशन लगा रही थी…..


उनके हिलते हाथ ही दिख रहे थे गाउन मे से मगर मेरे फायर एंजिन की घंटी फुल टन टना रही थी.


कोमल भाभी की पीठ मेरी तरफ थी इस लिए मे सामने का कुछ नही देख पा रहा था….


भाभी ने ड्रेसिंग टेबल पर रही दूसरी क्रीम उठाई और शीशे के सामने खड़ी हो गयी.


अब दिखा…..गाउन तो आगे से खुला था मगर मम्मे छुपे थे….


मगर उनकी गोल गोल गहरी नाभि फुल फोकस मे दिख रही थी..


कितना सितम करोगे से इतने से बाबूराव पर.


भाभी ने थोड़ी क्रीम ली दोनो हथेलियो पर रगड़ी और…..



और धीरे से खुले गाउन मे हाथ डाल कर अपने मम्मो पर लगाने लगी…..


भईय्ये…..कोमल भाभी जैसा आइटम……सिर्फ़ एक गाउन मे …….वो भी जो आगे से खुला हो….अभी अभी नहाई हुई……अपने ही हाथों से…….अपने ही मम्मो को…..अगर रगड़ रही हो……वो भी आपके सामने……..तो क्या करोगे……


मेरा तो गला ही सुख गया था……इतनी देर से रोशनदान के बाहर बैठा था…..मादरचोद मच्छरो ने पूरे साल का खून दस मिनिट मे ही पी लिया था मगर मुझे लॅंड परवाह नही थी…


मैं तो देख रहा था….कोमल भाभी अपने स्तनो की मालिश कर रही थी…..


तभी शायद उनसे अपने निप्पलों पर रगड़ लग गयी और वो एक दम चिहुंकी, एक आह निकली उनके मुँह से…….एक आँख बंद करके…….अबे यार………..मान….जा…….प्लीज़


मेरे कानों मे मुझे मेरी ही धड़कन सुनाई दे रही थी…..भक …..भक….


इत्ती ठरक तो कोमल भाभी को आध नंगा देख कर ही…..आ गयी


अभी तो भय्या जी आने वाले थे..


आज तो जाने क्या क्या फटेगा……



किसी भी चीज़ की हद होती है यार…..


साला 10 वॉट के लट्टू पर 100 वॉट का लोड डालोगे तो कैसे झेलेगा.
 
मेरी तो साँसें आ….रही थी और जा…..रही थी जैसे की मैं दमे का मरीज़ हूँ.


भाभी ने तो मम्मो पर क्रीम लगा ली थी मगर मेरी क्रीम उबाल मार रही थी.


दूध को बहुत गरम किया जाए तो उफन जाता है और उसे गरम करते ही जाए और उफनने ना दे तो क्या होता है……


रबड़ी बन जाती है.


मेरी तो आज रबड़ी बन गयी थी, मेरे अंदर अरमान ऐसी उफान रहे थे की बस….


साली चुतियाई यह भी थी की काँच मे से थोड़ा बहुत तो दिख भी रहा था मगर आब-ए-ज़मज़म नही दिख रहा था…


कोमल भाभी का रनवे सॉफ था ....कि .....हरा भरा समझ नही आ रहा था….


एक तो यूँ भी रोशनदान पर कुछ पुराने अख़बार लगे थे…..ताकि मेरे जैसे हीरसु ताक झाँक ना कर सके मगर अखबार भी बेचारा कब तक मौसम झेलता…..जगह जगह से फटा था….इस लिए नज़ारे देखे जा रहे थे.


मगर कोमल भाभी की मुनिया का दीदार नही हो पा रहा था……भाभी पलटी और बेडरूम से बाहर निकल गयी….मैं तुरंत दूसरे रोशनदान की और भगा…


यहाँ थोड़ा मामला ठीक था, रोशनदान पर अख़बार तो यहा भी लगा था मगर झिर्रिया बड़ी थी….मज़ेदार 20 मेगा पिक्सेल की क्लॅरिटी आ रही थी.


कोमल भाभी का घर कुछ ऐसा बना था की….एक पोर्च था जिसकी छत पर मैं कूदा था….उसके नीचे एक गॅरेज और कार खड़ी करने की जगह थी…..और घर का मेन गेट ड्रॉयिंग रूम मे खुलता था….फिर उस से जुड़ा हुआ डाइनिंग रूम और एक खुला किचन ….


अपुन का स्पॉट इतना शानदार था की लग भग पूरा घर का एक एक कोना दिख रहा था….


बॉस आज तो लाइव शो देखूँगा….मगर एक चोद थी.


मैं जिस जगह बैठा था वो सेफ नही थी….सामने वाले घरों से कोई भी मुझे देख सकता था….


मगर मैं तो परवाह नाम के गाँव से बहुत आगे निकल आया था ......बाबुराव माने ना….


मैने रोशनदान से झाँका……कोमल भाभी ने गाउन आगे से बाँध लिया था और सोफे पर से कागज और दूसरी चीज़े उठा रही थी…..वो सोफे के पीछे खड़ी थी और झुक कर चीज़े उठा रही थी…


कोमल भाभी ने सिर्फ़ वो गाउन पहना हुआ था…..हालाँकि गाउन आगे से बँधा था मगर टाइट बँधा होने से गाउन उनके बदन से चिपक गया था…


गाउन सॅटिन के कपड़े का था शायद……हल्का भूरा….गुलाबी…..हाँ पीच कलर का…


अब कोमल भाभी ने गाउन के अंदर तो कुछ पहना था नही….उस नरम सॅटिन कपड़े को उनके एक एक अंग अंग से और एक एक उभार से चिपकना ही था….सो चिपक गया.


पता नही कोमल भाभी को बिना गाउन मे देख के मेरी ढेबरी ज़्यादा टाइट होती या ऐसी हालत मे देख कर…


वो चीज़े उठा रही थी और सोफे के साइड मे बनी टेबल पर रख रही थी और उनके हिलने से हिल रहे थे उनके मम्मे ……


कोमल भाभी मोटी तो नही थी….बस भरी पूरी थी…..शादी को ज़्यादा समय नही हुआ था शायद 2-3 साल….बदन भर गया था उनका.


दोनो मम्मे गाउन के अंदर सावन के झूले झूल रहे थे…..रोशनदान 8-9 फुट उँचा था और भाभी मुझसे 8-9 फुट की दूरी पर थी थी…..मेरे देखते ही देखते उनके निप्पल गाउन मे उभर आए…..गाउन का चिकना कपड़ा उनके हिलते मम्मो और निप्पल को रग़ड रहा था और रग़ड का उत्तर निप्पलों से अपने सर उठा कर दिया था…


कसम गंगा मैय्या की……मुँह सुख गया था ठरक के मारे……


भाभी के चेहरे पर एक बाल की लट गिर आई….मेरा ध्यान उस पर गया….भाभी ने झुके झुके ही अपने हाथ के पिछले हिस्से से उसे उपर किया ….मगर लट भी मेरी जैसी थी…..ज़िद्दी….फिर से लटक गयी….अब भाभी ने थोड़ी चिड से साथ उसे उठाकर अपने कान के पीछे बिठा दिया.


भाभी के मम्मे ऐसे हिल रहे थे की मुझे दया आ गयी….आओ बेचारो….तुम्हे सहारा दें दे…..भाभी सीधी हुई तो गाउन उनके बदन पर कस गया……


हाय…..कितना सितम झेलेगा यह कमज़ोर दिल….


बाबूराव तो सितम झेलने को तैय्यर था….मगर भाभी सेवा का मौका दे तब ना.


भाभी सोफे के पीछे से घूम कर आई और सोफे के कुशन ठीक करने लगी….अब मेरे सामने कोमल भाभी की कोमल गदराई गांड थी…..


भाभी की हिलने डुलने से उनकी गांड भी हिल रही थी…..ऐसे लग रहा था मानो कोई सेक्सी गाना बज रहा हो….और कोमल भाभी अपने आशिक़ को उकसाने के लिए अपनी गदराई गांड को थिरका रही थी…...


मेरी आँखें भाभी के बदन पर ऐसे दौड़ रही थी की बस…मैं एक नज़ारे को पूरा पी लेना चाहता थी…..पेंट के अंदर बाबूराव ने तो गदर मचा रखा था…बार बार सेट करना पढ़ रहा था…


भाभी सीधी खड़ी हुई और अपने दोनो हाथों से चेहरे पर आए बाल पीछे कर दिए….


भाभी की एक एक हरकत मुझे अदा लग रही थी.


तभी डोर बेल बजी……. भैय्या आ गये थे.


मैं तुरंत दूसरे रोशनदान की और भागा….शो छूटना नही चाहिए बॉस.


यहाँ थोड़ा पंगा था…..नया अख़बार लगा था पुराने के उपर…..दरवाजा तो नही दिख रहा मगर उसके आस पास की जगह दिख रही थी. कोमल भाभी मुझे दरवाजे की और जाती दिखी….


भाभी ने पहले दरवाजे के छेद मे से बाहर झाँका….ज़रूरी था बॉस अगर बगैर देखे खोल दे और सामने भाभी के पतिदेव की जगह पर सुबह का अख़बार माँगते हुए शर्मा अंकल हुए तो..?


भाभी के ऐसे जलवे देख कर बेचारे बुढ्ढे को तो अटेक ही आ जाए..


भाभी ने शायद दरवाजा खोल दिया, कुछ आवाज़ भी आई पर समझ नही नही आई….तभी मुझे भाभी फिर से दिखी…दो हाथ उनको बाहों मे जकड़े थे..


भैय्या तो फुल मूड मे दिख रहे है….


मादरचोद अख़बार की वजह से कुछ दिख ही नही रहा था……की क्या चल रहा है…..भाभी उन बाहों मे कसमसा रही थी……मैं तो भेन्चोद एक दम सतर्क हो गया…..भेन्चोद भैय्या जी तो भाभी की दहलीज़ पर ही ठोक देंगे लगता है.


भैय्या का एक हाथ हटा और शायद कोमल भाभी के कोमल कोमल जोबनों को मिसने लगा…


अरे लंड…..यह रोशनदान की तो मैं……साला पिक्चर पूरी नही दिख रही थी…


भैय्या जी एक दूसरा हाथ कोमल भाभी की गदराई गांड का नाप लेने लगा….मेरी तो हालत ही खराब….


बाबूराव एक कदर कड़क हो गया था की अब तो साला बैठने मे दिक्कत होने लगा….


मैने सोचा की शो तो स्टार्ट हो ही गया है….बाबूराव को भी बाहर निकल कर सीन दिखा दूं…. थोड़ा सर पर हाथ फेर दूं…..शांत हो जाएगा…


तभी कोमल भाभी भैय्या से छिटक कर दूर हो गयी और पीछे हटी….भैय्या जी ने हाथ बदाए तो उन्होने अंदर की और इशारा किया और किचन की और बढ़ चली….


भैय्या जी आगे बढ़े इसके पहले मैं डाइनिंग रूम से रोशनदान पर पहुँच गया…


मैने तुरंत अपने स्थान संभाला और आखें रोशनदान से भिड़ा दी…


भैय्या जी सोफे पर बैठे थे….


मगर एक मिनट ….


ओ मादर चोद ……यह भेन का लंड….बेटीचोद कौन हैं…?
 
मैं हक्का बक्का रह गया

ये साला भैया भाभी की इश्टोरी में अमरीश पूरी कहाँ से आ गया.

साला आदमी भी अनजान ही दिख रहा था. और वो तो ऐसा चौड़ा होकर सोफे पर पसरा हुआ था मानो उसके बाप का घर है.

भाभी अपने गाउन को लहराते हुए रूम में आयी और बड़े ही कंटीले अंदाज़ में मुस्कुराते हुए उस चूतमारी के को पानी का गिलास पकड़ाने लगी. उसने गिलास रखा साइड में और भाभी को दबोच लिया.

साला मादर चोद भाभी के मम्मो को जोंक के जैसे जकड़े हुए था.....ऐसे मसल रहा था जैसे कंजूस दुकानदार निचुड़े हुए निम्बू से और रस निकलने के लिए पूरी जान लगाकर निचोड़ता है 

भाभी के तो क्या कहने....उसकी आँखें मस्ती से बंद हो चुकी थी और इतनी ज़ोर ज़ोर से सांस ले रही थी जैसे बेचारी का दम घुट रहा हो.

अपने तो टट्टे शार्ट हो गए....माँ की चूत.....साला सब को मिल रहा है....और हमको ....?

भाभी की उत्तेजना तो कांच में से निकल निकल कर मेरे चेहरे पर छपेड़े मार रही थी. बाबूराव कड़क हो कर सरिया हो गया था. 

कोमल भाभी को पलट कर दीवार से चिपका दिया और भाभी के पीछे चिपक गया....भाभी अपनी गदरायी गांड को उस आदमी के लंड पर घिस रही थी.....मामला कैसा गरमाते ही जा रहा था.....साली क्या ठरकी औरत थी .

मैं तो अपनी चाची को सबसे बड़ी ठरकी मानता था ये कोमल भाभी तो साली सनी लेओनी की माँ निकली.

कोमल भाभी ने अपना हाथ दीवार से हटा कर पीछे लाया और शायद उस अजनबी का बाबूराव थाम लिया ....अरे भाभी मेरे बाबूराव का क्या ?

हाँ भाभी ने उसका लंड ही पकड़ा था.....और मुठियाने लगी...

वो अजनबी तो जानवर के जैसे भाभी की गर्दन और गाउन में झांकती पीठ पर काट रहा था चाट रहा था..

ये भोसड़ी का तो कोई प्यासा सावन लग रहा था. हाँ,, मतलब मैं भी ठरकी हूँ पर ये भाई साहब तो मान ही नहीं रहे.


उसने कोमल भाभी के गाउन को ऊपर उठाना शुरू किया, मेरे एंटीने खड़े हो गए, चलो थोड़ी दूर से ही सही मगर आज भाभी के जोबन का नज़ारा तो दिखेगा.

उसने अपना हाथ भाभी गाउन में डाला और अंदर ही भाभी की मस्त जांघों को सहलाने लगा. भेन के लंड, हमको भी तो दिखा..

उधर कोमल भाभी अपनी ठरक दिखने में कोई कसर नहीं छोड रही थी. ऐसे कसमसा रही थी मानो पानी से बहार निकली मछली.

अजनबी कोमल भाभी की गर्दन पर लगातार काट रहा था उनके कान की लौ को मुंह में लेकर चूस रहा था....

कोई जन्मो का भूखा हो और कोई उसी के सामने छप्पन भोग उड़ा रहा हो तो उसकी कैसी हालात होगी.

अजनबी ने मानो मेरे मन की सुन ली और धीरे धीरे भाभी का साटिन गाउन ऊपर उठाने लगा....

भाभी ने एक हाथ ने निचे करने की कोशिश की मगर अजनबी पर तो प्रेम चोपड़ा सवार था ...लंड माने ना

उसने भाभी को दीवार पर धक्का दिया और एक झटके में उनका गाउन कमर तक उठा दिया और आगे झुकी भाभी की कमर पर इकठ्ठा कर दिया.

कसम उड़ान छल्ले की मेरे तो तोते उड़ गए.....फड़ फड़ करके 

भाभी .....आगे की और झुकी......गांड निकल कर .....खड़ी थी....

वो गदराई गांड....जो उनके हर कदम पर ऐसे थिरकती थी जैसे पानी में तरंगे....

भाभी अपनी वही गांड हवा में ऊँची किये .......अपनी टाँगे चौड़ी किये कुतिया बन के खड़ी थी...

मेरे दिल की धड़कन एक सेकोंड में ३ बार थी और बाबूराव तो ठुनक मर मर कर बावला हो गया था.

अजनबी ने अपनी पेंट की ज़िप खोल कर अपने पपलू फॉर बहार निकल और भाभी की गोल गर्दराइ गांड की दरार पर घिसने लगा.

लंड उसका था और ईमान की कसम मज़ा मेरेको आ रहा था.

उसने देर ना सबेर की और थोड़ा सा थूक अपने टोपे पर लगाया और भाभी की मुनिया में पेल दिया.

साला मेरा एंगल ऐसा था की दोनों की पीठ ही दिख रही थी असली खेल नही दिख पा रहा था,

उसका लंड पेलना हुआ और भाभी ने अपनी गर्दन पींछे फ़ेंक दी....साली हरामन मस्ता गयी थी. 

इसकी जात का बैंदा मारू....क्या गरमगरम आइटम है यार....इतनी मस्ती से चुदाने वाली औरतें तो या फिल्मो में देखि थी और का फिर चाची..

आज तो लग रहा था की चाची को ही पकड़ के.....
 
अजनबी ने तो अपनी गांड को सिकोड़ कर ऐसे धक्के मारना शुरू कर दिया जैसे ये उसकी आखिरी चुदाई हो....

भाभी का मुंह तो ओ के शेप में खुला हुआ ही था....और वो बार बार पीछे मुड़ कर उस अजनबी की आँखों में देख रही थी. क्या मस्त सीन था..

उस अजनबी ने भाभी की कमर को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और जो ठाप लगाने शुरू किये....तो भूचाल ही आ गया

लाइव चुदाई देखने का कोई जोड़ नही भाई...

मेरे तो पुरे शरीर में सनसनी होने लगी थी .....मैंने भी मस्ती में आके बाबूराव को पाजामे की कैद से बहार किया

बेचारा बाबूराव भी इस घमासान चुदाई को देख देख कर पसीना पसीना हो गया था....सुपाड़ा तो ऐसा लाल भभुका हो रहा था मानो कोई अंगार हो ....प्रीकम से भीगा सुपाड़ा स्ट्रीट लाइट की रौशनी में बाबूराव का सुपाड़ा चमक उठा 

मैं कोमल भाभी के टेरेस पर बैठा उनके रोशनदान से अंदर झांक रहा था....अपना बाबूराव बाहर निकले....

अगर कोई भी ऊपर देखता तो मुझे पकड़ लेता मगर अपुन तो लंड परवाह नही कर रहे थे. मैंने कमरे में चलती घमासान ठुकाई को देख कर अपने शेर को सहलाना शुरू कर दिया.....बाबूराव ठरक के मारे ठुनकी पे ठुनकी मारे जा रहा था. 

अंदर कमरे में उस अजनबी ने तो मानो भाभी की मुनिया का भुर्ता बनाने की ठान ली थी. वो घचा घच कोमल भाभी की गरमगरम मुनिया में अपने हथियार को पेले जा रहा था...आज समझ में आया की पेलना किसे कहते है....

भाभी चीख चीख कर पेलवा रही थी मगर रोशनदान में से आवाज़ नहीं आ रही थी.....अगर मैं उनकी मादक सिसकारियां सुन लेता तो शायद वहीँ अपना माल ढोल देता.

भाभी ने अपनी मुनिया में पिलवाते हुए फिर पीछे देखा और अजनबी की आँखों में देखने लगी...मगर वो भेन का लंड तो हवस से बावला हो रहा था....उसने भाभी की सर को पकड़ा और फिर आगे झुका दिया....

उसके हर एक धक्के पर भाभी की गदराई गांड थरथरा जाती....मानो को jelly को हिला रहा हो.

अचानक दोनों चोंक गए.....

डोर बेल बज गयी थी..

भाभी ने अजनबी को पीछे धकेला मगर वो अपने लंड को भाभी की चूत में ठांसे खड़ा था....तभी फिर से घंटी बजी.

भाभी ने उसे धक्का दिया और अपने गाउन को तुरंत निचे कर लिया....भेन चोद पर्दा गिर गया.

भाभी ने दौड़ लगाई.

मैंने भी तुरंत दूसरे रोशनदान पर आंख भिड़ाई....

भाभी ने दरवाजे के छेद में से देखा की कौन आया है....अचानक ही भाभी की चेहरे पर हवाइयां से उड़ती दिखी.

उसने तुरंत अंदर दौड़ कर अजनबी को कुछ कहा....और बाहर भागी...

मैं देखना चाहता था की कौन बेटी चोद आया है जिसने रंग में भंग डाली.

भाभी ने तुरंत अपने गाउन के ऊपर नाईट कोट डाला अपने बाल सही किये....और दरवाजा खोल दिया..

ओ माँ की चूत

उसका पति आ गया था......मुझे हंसी आ गयी.....KLPD हो गयी भेन के लंड के साथ....
 
ऋषभ भैया ने भाभी को अपने बैग थमाया और कुर्सी पर बैठ कर जूते उतारने लगा....भाभी बेचारी बैग लिए खड़ी थी

ये वही औरत थी जो एक मिनट पहले घोड़ी बनी अपनी मस्तानी चूत में जड़ तक लौड़ा पेलवा रही थी अभी सती सावित्री बनी खड़ी थी.

मैं मुस्कुराया की साली त्रिया चरित्र कोई नही समझ पाया.

अब पिक्चर तो ख़तम हो गयी थी....यह ऋषभ भैया तो ऐसी हालात में आया था की चोदना तो दूर खड़े ही नही हो पा रहा था....दारू पी के आया था शायद.

चलो....अब घर कैसे जाऊं......कोमल भाभी की छत हमारे घर की छत से एक मंज़िल निचे थी.....कूद कर यहाँ आ तो सकते थे मगर चढ़ के जाना जरा टेडी खीर था....

मैं अभी भी रोशनदान से अंदर झांक रहा था. पिक्चर ख़त्म थी....

मैं पलटा और

"क....क......कौन है.......भ....भ....भोसड़ी के.......", वो साया हकलाया 

ओ तेरी...मेरी तो गांड फट के गले में आ गयी. वो मादर चोद जो अभी कोमल भाभी की ले रहा था, छुपने के लिए छत पर आ गया था.

और ये भोसड़ी का भी हकला था.......

भेनचोद.

मैंने घबरा कर कहा, " त....त .....त.....तू.....क......क.....क....कौन है......."

वो अजनबी बोला, " भ....भ.....भ......भोसड़ी के......म......म......मज़ाक उडाता है......म.म.म.मेरी नक़ल....करता है....."

अब मैं क्या बोलू.......

फटफटी चल पड़ी थी.

"म..म...म.....मैं..म...म.. मज़ाक नहीं....क...क....कर रहा...."

"त...त....तो क्या.....क......क....कर रहा है.....भ...भ....भोसड़ी के .....च....च....चोर...", अजनबी हकलाया.

साला चूत चोर ....मुझे चोर बोल रहा था...गुस्सा आ गया.

मैंने कहा, " च....च.....चोर तो....तुम हो.....पड़ोस का घ....घ....घर मेरा हैं.......आ....आ.....अभी म...म....म...मचाऊ शोर..."

अब तो वो घबराया..." न....न....न.....नहीं......भाई......प.....प....प्लीज़......"

अब अपुन को शांति मिली.....

तभी उसकी नज़र मेरे पाजामे से बाहर लटके बाबूराव पे पड़ी......और उसने रोशनदान पे लगे अखबार को फटा देखा....

साला शातिर था....तुरंत समझ गया.

"भ....भ.....भ.....भोसड़ी के.....ल....ल.....लोगों के....घ...घ....घर में टांक झांक करता है....."

मैंने तुरंत बाबूराव को अंदर डाला. मेरी गांड फिर फटफटी.... 

:न...न....नहीं......म.....म....मैं.....नहीं..."

अब वो कमीनेपन से मुस्कुराया...." स....स....साले.....कोमल .को देख कर मुठ मार रहा था.....च....च....चिरकुट"

चिरकुट बोला अपुन को....

मैंने धमकाया, " ..म...म....म....मैं.....चिल्लाऊँ क्या....च...च...चोर...."

वो घिघियाया " न....न.....नहीं भाई.....म.....म.....मुझे ऋषभ मार ही डालेगा.....मैं उसका चाचा हूँ...."

"तो....ब....ब.....बैठो चुपचाप......जब सब सो जायेंगे तो च....च..... चले जाना......"

साला बहु चोद 

अब मैं घर कैसे जाऊं....

तभी घर के आगे से बाउजी की आवाज़ आयी...."लल्ला......ओ......लल्ल्ला.....कहाँ है...."

बाबूजी को भी एक बीमारी है

एक बात गला फाड़ना शुरू करते है तो बंद ही नहीं होते

"अरे.......ओ.........लल्ला........."

"लल्ला.......रे........."

इसकी माँ की चूत उधर कुआँ इधर खाई.

मैंने पलट के चाचा को देखा तो उसकी तो ऐसी गांड फटी हुई थी की कोई हप्प बोल देता तो वो मर जाता.

मैंने दिमाग लगाया.....मेरे घर की छत करीब ७-८ फुट ऊपर थी....मैंने चाचा को बोला..

"आप मुझे धक्का दो....मैं मेरे घर की छत पर पहुँच जाऊंगा"

चाचा सयाना था...उसे कुटिलता से मुस्कुराते हुए कहा, " और मैं भइये ?"

मैंने तुरंत कहा, " ऊपर रस्सी पड़ी होगी, मैं आपको खिंच लूंगा..."

चाचा फटाफट तैयार हो गया. मैंने दिवार पर हाथ टिकाया चाचा ने मेरी पीठ पर हाथ से सहारा दिया..

मैंने दिवार के ऊपर अपनी उंगलिया फंसे और ज़ोर लगाया .....पीछे से चाचे ने ज़ोर लगाया और मैं ऊपर उठा.

चाचा ने मेरे पैरों को सहारा दिया और मैं अपने घर की छत पर पहुँच गया. मैंने निचे झाँका....चाचा बेचारा बड़ी उम्मीदों से मेरी तरफ देख रहा था....

मैंने सोचा माँ चुदाने दो चाचा को....
 
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