Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी - Page 13 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी

फिर मैंने कहा नहीं यार.....बेचारे की माँ ही चुद जाएगी ...इधर उधर देखा तो रस्सी वस्सी तो नहीं थी...
एक चादर दिखी...अपन लोग ने पिक्चर में देखा ही था की कैसे हेरोइन चादर की रस्सी बना के ५-6 मंज़िल निचे उत्तर जाती है...मैंने चादर को थोड़ा सा उमेठा और निचे लटका दी...

चाचा ने तुरंत उसे पकड़ा और लटक गया.

भेनचोद 

चादर थी 

पुरानी थी 

फट गयी ....

और चाचा धड़ाम से कोमल भाभी की छत पर जा गिरा.....कुछ तो गिरने से और कुछ गांड फटने से उसकी रही सही हिम्मत भी जवाब दे गयी और वो तो झड़े लंड जैसा ढीला हो गया.

मैं धीरे से फुसफुसाया ..."चाचा उठो......कोई आ गया तो...."

चाचा की किसमत गधे से लंड से लिखी थी......सो उसकी चुदना तो तय थी......कोमल भाभी की छत का दरवाजा धड़ाक से खुला और नशे में लहराता ऋषभ भैया छत पे आ गया और उसके पीछे कोमल भाभी ..
कोमल भाभी के चेहरे पे तो हवाइया उड़ रही थी.

ओ तेरी...

मैं तुरंत मुंडेर के निचे छुप गया ....ऋषभ भैया ने इधर उधर देखा और फिर निचे देखा...

चारो खाने चित्त पड़े चाचा को देख के वो बोला ..." अरे.... छगन चाचा....आप.......हिक्क.......आप......यहाँ क्या कर रहे हो.....हिक्क़क़...."

ये लो.........इस चूतिये को तो इतनी चढ़ी है की ये क्या लंड उखाड़ेगा.....

चाचा तुरंत उठ बैठा....मैंने सोचा आज तो चाचा और कोमल भाभी की मरी.....

चाचा कपडे झड़ते हुए उठा और बोला, " अरे ऋषभ, तू आ गया क्या......?"

ऋषभ भैया, नशे में आँखें सिकोड़ कर इधर उधर देख रहा था.....उसको मस्त वाला माल तेज़ था.

चाचा बोला ...." अरे यार ये कोमल बहु ने फ़ोन लगा के बुलाया था मुझे....."

कोमल भाभी की ऑंखें डर से फट गयी. साले चाचे ने सब बक दिया.

चाचा बोला, " ये कोमल बहु ने फ़ोन पर बोला की शायद छत वाले कमरे में बन्दर घुस आया है तो मैं देखने आया था.....क्यों बहु तुमने बिटवा को नही बताया की हम छत पर बन्दर ढूंढ रहे थे....?"

कोमल भाभी भी पक्की खुर्राट औरत निकली, " अरे कब बोलती चाचा जी......यह तो सीधे ही अंदर चले गए....घर में आने के बाद मुझसे ढंग से बात तक नहीं की......और फिर देखिये न....पी कर आये है....."

साला.......औरत की कितनी परते होती है ये ब्रह्मा जी को भी नहीं पता होगा....कितने सफाई से झूट बोल दिया.....अभी ५ मिनट पहले अपनी मुनिया में चाचा का मूसल पेलवा रही थी और अभी माथे पर अंचल लेकर घूँघट निकले खड़ी थी. 

मेरे देखते ही देखते तीनो निचे उत्तर गए......ऋषभ भैया लड़खड़ाते हुए और पीछे पीछे भाभी और चाचा.

चाचा ने मुड़ कर पीछे देखा और मुस्कुराते हुए मुझे हाथ हिला दिया.

दिन कुछ ऐसे चल रहे थे कि मुझे पता ही नहीं चल रहा था कि कब सुबह होती है और कब रात

इधर देखो तो मेरे बाबूजी ने मेरी गांड में डंडा डाल रखा था वह बार-बार मुझसे बोलते थे कि दुकान पर बैठो ये तुम्हारी पढ़ाई लिखाई में कुछ नहीं बचा है, अरे हमने पढ़-लिखकर कौन सा तीर मार लिया जो नवाब साहब पढ़ाई लिखाई कर के तीर मारेंगे, एक छोटा सा हिसाब तो तुमसे मिलता नहीं, घर का कोई काम होता नहीं

मैं इतना परेशान हो गया था कि क्या बताऊं

भोसड़ी का दिन भर चाची मेरे सामने गांड मटकाते घूमती रहती और मुझे कुछ करने का मौका नहीं मिलता बार बार बाथरूम में जाकर मुट्ठ मार के बिना को शांत करना पड़ रहा था 

कोमल भाभी की कहानी भी कुछ समझ नहीं आ रही थी क्योंकि वह भोसड़ी का ऋषभ भैया आज कल दिन भर घर पर ही रहता था लगता था साले मादरचोद को उसके बॉस ने नौकरी से निकाल दिया है 

चाची को दो तीन बार पकड़ने की कोशिश की तो चाची ने हाथ झटक दिया बोली मुझे पंडित जी ने अभी मना किया है कुछ भी गलत करने से 

ये भोसड़ी के पंडित क्या मालूम क्या मां चुदाते हैं

अरे बच्चा पैदा करना है तो चुदाई करनी पड़ेगी भोसड़ी के बच्चा अपने आप से पैदा हो जाएगा 

मैंने भी थक हारकर वापस इंटरनेट की शरण ली 

पिया से बात करने के अलावा मुलाकात का सीन ही नहीं बन पाता था क्योंकि वह उसका जल्लाद भाई भोसड़ी का दिनभर उसके साथ में घूमने लगा था 

पिया के घर पर गया तो मादरचोद ने मना कर दिया कि अभी उसे पढ़ना नहीं है उसकी ट्यूशन लगा दी है 

और पिया की माँ पम्मी आंटी अमेरिका अपनी माँ के पास गयी हुयी थी 

मुझे ऐसा लगा कि मेरे सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं 

अगर मैंने चूत का स्वाद नहीं चखा होता तो मैं मुट्ठ मार के खुश था 

मगर अब चूत नहीं मिल रही थी तो मैं बावला हो गया 

कैसे भी करके मुझे चूत चाहिए थी, कहने को तो मैं चारों तरफ से घिरा हुआ था मेरी चाची और शायद पिया भी 

मगर कहीं मेरा गेम सेट नहीं हो पा रहा था और उसके ऊपर से रोज सुबह शाम बाऊजी को ताने मारने के अलावा और कोई काम नहीं था आजकल मेरा मन किसी भी चीज़ में नहीं लगता था किसी भी चीज़ में नहीं 

संडे के दिन सुबह 9:30 बजे तक मैं बिस्तर पर ही पड़ा रहा अचानक मेरे कमरे का दरवाजा खुला और बाउजी चिल्लाते हुए घुसे कुंभकरण की औलाद 9:30 बज चुकी है अभी तक पढ़ा हुआ है 

बताओ भेनचोद कुंभकरण की औलाद मैं तो कुंभकरण कौन ?

रात को 3:00 बजे तक इंटरनेट पे मसाला देखा और दो बार मुठ मारी 
वह तो अच्छा हुआ कि रात को मुठ मारने के बाद में मैंने पजामा पहन लिया था नहीं तो मेरे बाप के सामने नंगा पूरा होता 

पिताजी जाने क्या-क्या चिल्लाते रहे मुझे तो कुछ समझ में आया नहीं फिर उन्होंने कहा नहा धो कर 

आओ तुमसे काम है तुरंत तैयार हुआ और बाहर जाकर बैठक वाले कमरे में पिताजी के पास गया मैंने कहा "जी बाबू जी"

वो बोले, "भाई सामान पैक कर लो तुम्हें बिजनौर जाना है"

" बिजनौर ? वहां क्या है ?" 

"जितना कहा है उतना करो ज्यादा सवाल जवाब मत करो"

फिर वो बोले " अरे वो लल्ली काकी है वहां.....छोटे काका वाली......पिछले साल वो एक्सीडेंट में नहीं मर गए थे.....छोटे काका......वहीँ......काका तो चले गए.....काकी की आंखे चली गयी......जो छोकरी वहां उनका ध्यान रखती थी वो किसी हरामी के साथ भाग गयी.....अब वहां उनका ध्यान रखने वाला कोई नहीं है.....तो उन्हें यहाँ ले आ....."

"जी.....अच्छा......पर....?"

"पर वर क्या ?.....सुबह जाना है और शाम को आना है......बस पकड़ लेना....४-५ घंटे का सफर है"

मैंने कहा लो अब संडे की भी माँ चुदी

भेनचोद किस्मत ही गांडू थी.
 
बहनचोद इसको कहते हैं किस्मत गधे के लंड से लिखी होना 

पहले से ही दिमाग की मां बहन हो रही थी उसके ऊपर से हिटलर का ऑर्डर गांव जाओ 

अब बस में चार-पांच घंटे का सफर गांड फोड़ने का 

फिर क्या मालूम कौन अंधी बुढ़िया लल्ली काकी है, उसको लेकर आओ फिर चार-पांच घंटे बस में गांड टुटवाओ 

पर मरता क्या नहीं करता 

बाबूजी का आदेश था जाना तो था मन मसोसकर एक छोटा बैग लिया उसमें नैपकिन, मैगजीन रखी और चलने लगा 

बाहर निकल रहा था बल्लू चाचा मिल गया "और भाई लल्ला कहां निकल लिया सुबह-सुबह" 

मैंने कहाँ, "चाचा बिजनौर जा रहा हूं लल्ली काकी को लेने"

बल्लू चाचा बोला," हैं क्यों क्या हो गया"

"पता नहीं आप बाबू जी से पूछो" 

अब लंड बल्लुआ की इतनी औकात नहीं की पिताजी से पूछ सके.....

मैं घर से निकला उसके पहले मुझे पता था कि आज का दिन गांडू है 

संडे का दिन था बस में कुत्तों की तरह भीड़ टूट रही थी 

भोसड़ी का खड़ा होना तो दूर की बात है बहन चोद घुसने में ही पसीना आ जाए जैसे तैसे बस में घुसा कंडक्टर ने तुरंत बस के बीच में कर दिया हालत यह थी कि सांस लेने के लिए भी हवा नहीं आ रही थी और क्या पता कोई मादरचोद पादे ही जा रहा था 

जिन भाइयों ने बस का सफर किया है वही जानते हैं की क्या हालत होती है 2 घंटे तक ऐसा खड़ा रहा कि यह भी पता नहीं चला कि बाहर क्या है दिन या रात 

फिर धीरे-धीरे बिछड़ने लगी बस गिरफ्तार पकड़ चुकी थी आगे वाली सीट पर एक बुड्ढा और उसके पास में एक लड़की बैठी थी 

खुले लम्बे बाल , जीन्स, टीशर्ट 

मेरे ठीक बगल की सीट खाली हुई मगर मैं सोच रहा था की ये बुद्धा उतर जाये तो उस लड़की के पास मैं.....

थक कर मैं एक खाली सीट पर बैठ गया तभी वो बूढ़ा उठा....तुरंत मैं भी उठा की कोई भोसड़ी का मेरे पहले उस पटाखे के पास न बैठ जाये 

तभी सामने वाली सीट पर बैठा काला मोटा अंकल फुर्ती से उठ कर उस लड़की की पास बैठ गया 

मैंने अंदर ही अंदर 1000 गालियां दी और मेरी सीट पर बैठने लगा....

भेनचोद कोई लौड़ा मेरी सीट पर बैठा था....

मैं टर्राया, " भ भ भ भ....भाई....साहब.....ये सीट म.म.म.म ....मेरी है......"

वो भोला मुंह बनाकर बोला, " अच्छा आपकी है...क्या.....नाम कहाँ छापा है आपका......" और हंसने लगा....

साला मादरचोद.

हारकर मैं खड़ा ही रहा....मेरे आगे एक नाटा और थोड़ा थुलथुला लड़का खड़ा था.....वो भोसड़ी का हर झटके में मुझसे टकरा रहा था....

एक मिनट.....

मुझे ऐसा लगा की वो अपनी गांड मेरे बाबूराव पर घिस रहा है........इसकी माँ की आँख...

तभी एक बड़ा गड्डा आया और बस ज़ोर से हिली....उसने अच्छी तरह से उस का पिछवाड़ा मेरे बाबूराव पर रगड़ दिया...

ओ भेनचोद......ये तो साला गांडू है.

उसने धीरे से गर्दन घुमाई और मुस्कुराते हुए मुझसे कहा, " आप.....कहाँ जा रहे है.....बिजनौर...?"

बॉस अपनी तो फटफटी चल पड़ी......कैसा गांडू दिन है.....और कुछ बचा था...तो गंडिये से पाला पढ गया.

मैं तुरंत बस के सबसे पीछे की चौड़ी सीट पर जा बैठा और उस गांडू की तरफ देखा भी नहीं.....

मैंने कहा था ना कि आज का दिन ही गांडू है 

बिजनौर में उतरा तब तक दिन की 3:00 बज चुकी थी बाबू जी ने बताया था कि वहां से बस पकड़ कर अमीरपुर जाना था मैं अमीरपुर पहुंचा तब तक दिन ढलने लगा था मैंने सोचा कि कितनी भी जल्दी करो रात को 12:01 बजे के पहले घर नहीं पहुंच पाउंगा जब बसने अमीरपुर उतारा 

तो पूरा गांव सुनसान था मैं पूछते पूछते लल्ली काकी के घर तक पहुंचा पूरा घर अंधेरे में डूबा हुआ था मैंने किवाड़ की सांकल जोर से बजाई 

अंदर से आवाज आई " कौन "

"काकी मैं शील....."

काकी ने दरवाजा खोलने के पहले फिर पूछा, "कौन करमजला शील"

मैंने कहा, 'अरे काकी मैं लल्ला, इटावा से आया हूं"

काकी बोली, "अरे राम तो शील शील क्या कर रहा है सीधे नाम क्यों नहीं बताया"

फिर काकी ने दरवाजा खोला 

मैंने सोचा था की काकी ६०-७० साल की बुढ़िया होगी पर यहाँ तो मेरे गोटे टाइट हो गए 

काकी कम से कम 6 फुट की, 40 - 45 साल की भरी-पूरी औरत...ना गोरी ना काली....थोड़ा देसी ब्राउन रंग 

मैं एक दम हक्का बक्का रह गया. 

काकी सफेद साड़ी में 

जिस साड़ी को उन्होंने पतला कर के दोनों मम्मो के बीच में से लिया हुआ था काकी के बड़े-बड़े खरबूजे ब्लाउज में से फाटे जा रहे थे 

मानो बाहर आना चाह रहे थे 

सफेद साड़ी में काकी का भरा हुआ बदन जैसे समां ही नहीं पा रहा था 

मैंने काकी को ऊपर ने निचे , निचे से ऊपर कई बार देख लिया और भाई साहब मेरा तो मुंह सुख गया कानो में सीटी बजने लगी.

भेनचोद लल्ली काकी तो गददर माल निकली 

मैंने कब कहा कि आज का दिन गांडू है -376
 
लल्ली काकी ने मुझसे कहा, "आ जा बेटा"

उन्होंने फिर कहा, "अरे बेटा लल्ला अंदर आ जा बेटा"

तब जाकर कहीं मुझे होश आया और मेरी नजरे उनके बदन से हटकर उनके चेहरे पर टिकी 

लल्ली काकी के चेहरे पर सबसे पहले जो चीज दिखती थी वह थी उनकी बड़ी बड़ी आंखें और घनी पलके श्रीदेवी के जैसी 

उनका मुंह गोल था और थोड़ी मोटी नाक हल्की सी दबी हुई 

अगर लल्ली काकी का बदन खूबसूरत था तो उनका चेहरा किसी अप्सरा के जैसा था मैं हुमक हुमक कर आंखों से उनका हुस्न पी रहा था और फिर भी मेरा मन नहीं भर रहा था

काकी थोड़ा जोर से बोली, " अरे लल्ला बेटा अंदर आ जा" 

तो मैंने एकदम से कहा, " हैं ....अरे.... हां. हां.. हां" 

और मैं घर के अंदर दाखिल हुआ

घर जैसा की गांव में होता है, दरवाजे में घुसते से ही एक बड़ा चौक और उसके चारों तरफ छोटे छोटे कमरे 

चौक काफी बड़ा था और खुला आसमान था वहीं पर एक खाट थी मैं जा कर उस पर बैठ गया खाट मेरे बैठने से चरमराई 

काकी समझ गई कि मैं बैठ गया हूं 

उन्होंने कहा, "बेटा तू थक गया होगा रास्ते तो बहुत खराब है चाय बना दूँ"

मैंने कहा, " ज ज ज जी.....म..म..म... मुझे पानी ...." 

भेंनचोद मेरा हकलापन फिर शुरू हो गया 

काकी सधे हुए कदमों से चलते हुए कोने में गई और वहां रखे मटके से झुक कर पानी निकालने लगी 

मेरी आंखें तुरंत सीसीटीवी कैमरे जैसे काकी के बदन से चिपक गयी 

मेरी हालत उस इंसान के जैसी थी कि जो महीनों भोजन के लिए तरसा हो और तभी उसके सामने छप्पन भोग मालपुए रबड़ी आ जाए 

काकी ने मुझे पानी पकड़ाया और अपनी साड़ी संभालने लगी अंधी होते हुए भी उसे पता था कि उसके कपड़े कहां पर है काकी ने अपनी साड़ी के पल्लू को चौड़ा किया और अपने ब्लाउज को और कमर को ढक लिया 

लो बुझ गई बत्ती 

काकी वहीं रखे बांस के स्टूल पर धीरे से टटोल कर बैठ गई

"तेरे बाबूजी का फोन आया था कि तू आने वाला है मुझे लेने के लिए, इतने सारे काम पड़े हैं, बता भला मैं ऐसे कैसे उठ कर चली जाऊं ? पर फिर जब तेरे पिताजी ने कहा कि मेरी आंखें फिर से आ सकती है तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाई और मैंने हां कर दी एक बात तो बता बेटा आंखों के ऑपरेशन में कितने पैसे लगेंगे ? लल्ला बेटा क्या हुआ ?"

लल्ला क्या लंड बोलता मेरी आंखें तो काकी के चेहरे से बदन, बदन से चेहरे पर जा रही थी 

" |ज..ज....ज....जी.....हाँ.....मतलब....."

"वही तो बेटा इस लिए सारा सामन कमरों में बंद करवा दिया ....तेरे पिताजी बोले...की एक महीना लगेगा वापस आने में....."

फिर काकी बोली, "बेटा रात होने वाली है शायद, चिड़िया चहचहा रही है मतलब अंधेरा होने ही वाला है, एक काम कर तू हाथ मुंह धो ले और मैं खाना लगा देती हूं"

मैंने कहा, "काकी हमें आज ही लौटना है ना.....आपका सामान.....?" 

काकी मुस्कुराई और बोली, " अरे बेटा अब रात पड़े तुझे कौनसी बस मिलेगी कल दिन वाली बस से चलेंगे"

मैंने कहा लो बहन चोद यहां तो चूतियापा हो गया 

मन मसोसकर मैंने इधर उधर देखा साइड में एक नल था वहां जाकर अपने जीन्स को ऊपर चढ़ाया और हाथ मुंह धोने लगा 

काकी धीरे धीरे चलती हुई आई और मुझे गमछा पकड़ा दिया मैंने गमछे से अपने हाथ पैर मुंह पूछा और फिर खाट पर बैठ गया खाट फिर चरमराई 

काकी इधर उधर की बातें करती रही और मैं पक्के बेशरम की तरह उनके बदन का मुआयना करता रहा 

थोड़ी देर बाद खाना लगा दिया और मैंने वही चौक में बैठकर खाना खाया एक बात थी कि भले काकी को अँधा हुए 2 साल ही हुए थे मगर उन्होंने अपने अंधेपन से जीना सीख लिया था वह लगभग बिना टटोले पूरे घर में घूम लेती थी और घर क्या था सिर्फ एक चौक उसके कोने में खुली रसोई और उसके पीछे काकी का कमरा बाकी सारे कमरों के दरवाजे बंद थे 

काकी बोली, "वो करम जली चमेली उस दर्जी के छोकरी के साथ भाग गई अपने मां बाप का तो मुंह काला किया ही मुझे भी अधर में छोड़ गई अब बेटा तू बता मैं अकेली अंधी बुढ़िया कैसे अपना काम चलाऊ, अरे बाजार जाना सामान लाना खेत देखना यह वाला मुझसे अकेले थोड़ी होगा. राम करे मेरी आंखें फिर से आ जाए तो मैं भले अकेले सब काम कर भी लूं. अब मेरी किस्मत में तो अकेलापन ही लिखा है पहले तेरे काका छोड़ गए और अब यह चमेली भाग गई"

मैं खाता रहा और हूँ हाँ करता रहा था 

काकी मेरे सामने ही एक छोटे से स्टूल पर बैठी थी, छोटा सा लकड़ी का स्टूल था और काकी उस पर बैठी ऐसी लग रही थी मानो स्टूल हो ही नहीं .

काकी का विशाल गदराया बदन उस स्टूल को पूरी तरह से ढके हुए था

मेरी नजरें काकी के साड़ी में कहीं झिर्री या दरार ढूंढ रही थी जिससे मुझे काकी के गदराये बदन का एक नजारा तो दिख सके मगर काकी को अंधेपन में भी अपनी साड़ी संभालने का एहसास था मुझे कुछ नहीं दिख रहा था दिख रहा था तो बस काकी का विशाल गदराया हुआ बदन

एक सफेद साड़ी के अंदर लिपटा हुआ 

बाबू राव ने अपना सर धीरे-धीरे उठाना शुरू कर दिया था क्योंकि भाई औरत औरत होती है और चूत चूत होती है 

मैंने काकी को देखते देखते ही बाबूराव को जीन्स में एडजस्ट किया 

काकी ने मेरी थाली उठाई और उसे फुर्ती से मांज दिया. उन्होंने वहीँ स्टूल खिंच लिया था.....काकी बर्तन वहीँ चौक के कोने में मांज रही थी और उनका 6 फूटा गदराया बदन उनके बर्तन धोने से धीरे धीरे हील रहा था. बाबूराव तो ऐसा बड़े जा रहा था की थोड़ी देर में बाबूराव ने धीरे से लोअर के इलास्टिक से बाहर मुंह निकाल लिया.

मैंने बाबूराव की धीरे से अंदर किया और मोबाइल निकाला तो उसमें सिग्नल नहीं आ रहा था 

"अरे...क...क..काकी.....यहां मोबाइल का सिग्नल नहीं आता है क्या"

काकी बोली, " अरे राम यहां सिर्फ bsnl का मोबाइल ही चलता है बाकी कुछ नहीं चलता"

लो लण्ड अब मैं जिओ की सिम से रात भर पिक्चर भी नहीं देख पाऊंगा 

पूरे घर में धीरे-धीरे अंधेरा सा छा गया, मैंने कहा कहा, "आपने लाइट नहीं जलाई" 

काकी ने फीकी सी हंसी हंसी और कहा, "अरे बेटा मुझे क्या फर्क पड़ता है अंधेरा हो या उजाला.... देख वहां सामने ही बिजली का बटन है जला ले बत्ती"

मुझे बेचारि अंधी कर दया आई पर दया की जगह बहुत जल्दी फिर ठरक ने ली. मैं आराम से खाट पर पड़े पड़े काकी का मुआयना करता रहा. 

तभी काकी बोली, " लल्ला सारे कमरों में अनाज भरा है सिर्फ मेरी कोठरी ही खाली है तू कहे तो तेरा बिस्तर बाहर खाट पर लगा दूं हल्की हल्की ठंड है तुझे अच्छी नींद आ जाएगी कोठरी में तो गर्मी लगेगी"

और मैं चुतिया......... मैंने कहा "ह...ह....हाँ....जी..... बाहर लगा दो"

फिर मुझे ध्यान आया कि अगर कोठरी में चाची के साथ होता तो कुछ..............

पर अब क्या अपनी चुटियाई का दुख मनाते हुए मैंने कहा, "मैं खाट पर ही सो जाता हूं"

काकी धीरे से उठी कोठरी में गई एक तकिया और एक मोटी सी चादर मुझे दी और मुझसे कहीं बेटा जल्दी सो जा यहां सब जल्दी उठ जाते हैं सुबह-सुबह बहुत काम होते हैं 

मैंने फिर मोबाइल निकाला और उसमें कुछ मसाला ढूंढने लगा मगर मेरा मोबाइल अक्सर पिताजी चेक कर लिया करते थे इसलिए मैं उस में कुछ भी नंगा पुंगा 
सामान नहीं रखता था और रात को जियो के सहारे CLIPS देखकर अपने आपको ठंडा कर लिया करता था मगर भोसड़ी का यहां तो नेटवर्क ही नहीं था 

अब क्या लंड होगा 

काकी धीरे से कोठरी में चली गई उन्होंने किवाड़ लगा लिया और मैं भी थक हार कर खाट पर लेट गया और सोचने लगा कि बहनचोद क्या किस्मत है मुझे इतनी जल्दी नींद नहीं आती थी तो मैं करवटें बदलते रहा थोड़ी देर बाद जब मैं खाट पर पेट के बल लेटा था तो मेरे दिमाग में काकी का बदन पिक्चर की तरह चलने लगा और मैं और मेरा बाबूराव दोनों धीरे-धीरे मस्ताने लगे. मैं खाट पर पेट के बल लेता था पर खाट पर लेटे लेटे बाबूराव उफन्ने लगा था मैंने उसको एडजस्ट किया मगर खाट के झुके होने से मेरा बाबूराव कंफर्टेबल नहीं हो पा रहा था वह खाट निवार की थी उसमें बीच बीच में काफी गैप था

ऐसा लग रहा था मानो चूत का गाला हो तभी मेरे दिमाग में कीड़ा कुलबुलाने लगा 

मैंने बाबूराव को लोअर नीचे सरका कर आजाद किया और खाट की निवार के बीच की जगह में फंसा दिया कसम उड़ान छल्ले की एक अलग ही फीलिंग आई 
अब मेरे पास मुठ मारने के लिए कुछ मसाला तो था नहीं मैं आंखें बंद करके धीरे-धीरे अपनी कमर हिलाने लगा और धीरे धीरे निवार में फंसा बाबूराव अंदर बाहर होने लगा मुठ मारने से तो यह ज्यादा अच्छा था 

आंखें बंद करके मैं कल्पना करने लगा कि मैं नीलू चाची के बदन पर लेटा हूं और उनके बदन को मसलते हुए उनकी चिकनी चमेली के अंदर अपने बाबूराव को पेल रहा हूं ऐसा मजा आ रहा था कि मैं बता नहीं सकता 

थोड़ी ही देर में मेरे गोटों में उबाल आने लगा और अचानक मेरी आँखों में चाची की जगह लल्ली काकी का चेहरा आया बाबूराव ने फचक फचक रस की धार पर धार छोड़ना शुरू कर दी 

खाट के निवास में फंसा मेरा लंड पिचकारी पिचकारी चला रहा था आनंद के अतिरेक से मेरी आंखें बंद हो गई और कब मुझे नींद गई मुझे पता ही नहीं चला 

निवार में लण्ड फंसाये मैं यूँही सो गया 

अचानक मेरी नींद खुली मुझे लगा की कुछ मेरे बाबूराव से टकराया है मेरी आंखें एकदम खुली 

लल्ली काकी झाड़ू लिए खाट के नीचे घुसी हुई थी और उनके झाड़ू लगाने से उनका हाथ और सर मेरे निवार में फंसे बाबूराव से टकरा रहा था 

मेरी गांड फट कर गले में आ गयी. 

अचानक काकी पीछे हुई और उनका हाथ फिर मेरे बाबूराव से टकराया का की बोली, "अरे राम यह क्या है लगता है कोई चूहा खाट में फंस गया, अरे लल्ला ...ओ ..लल्ला ...देख तो बेटा ..."

मैं उठता इसके पहले काकी ने मेरे बाबू राव को चूहा समझकर पकड़ लिया
बहनचोद.............फटफटी चल पड़ी . 
 
मेरी गांड फट गई 

साला यह क्या चुतियापा हो गया 

मैंने फटाक से अपने बाबू राव को खाट से बाहर खिंचा, बाबूराव काकी की मुठ्ठी से सर्र से फिसलता हुआ निकल गया, मैंने लोअर को ऊपर चढ़ाया और खाट पर उठ बैठा 

लल्ली काकी चिल्लाई, " अरे भागा भागा, देख बेटा कहां गया"

मैंने अपने घबराहट पर काबू पाया और कहा, "अरे ह...ह.....हाँ..... हाँ ...वो भाग गया"

लल्ली काकी खाट के निचे से बाहर निकली, इस आपधापी में उनका आंचल सरक गया था और उसी सफेद ब्लाउज में वो दोनों खरबूजे मानो मुझे चिढ़ाने लगे मैंने नजर भर के उन खरबूजा का रसपान किया और बोला.

"च...च...चूहा था काकी.....भाग गया"

लल्ली काकी के चेहरे पर थोड़े अचरज के भाव थे वह बोली

"हे राम ऐसा कैसा चूहा था, था तो अच्छा बड़ा,,,,,,, छोटा चूहा तो नहीं लगता था पर इतना नरम था. 
जैसे छोटे चूहे की खाल बिल्कुल चिकनी होती है वैसा....... कहां भागा बेटा"

मैंने कहा, "ज...ज...वो... सामने वाली नाली में भाग गया"

काकी ने ठंडी सांस ली, "भगवान बहुत चूहे हो गए हैं घर में, इतना अनाज़ रखा है क्या करें...... दवाई डालो तो भी मरते नहीं है....फिर मैं ये सब किसके भरोसे छोड़ कर जाऊँ ......"

मैं क्या बोलता मेरी तो फटफटी.....

काकी ने कहा, "चल बेटा हाथ मुंह धो ले फिर तब तक हरिया आता होगा उसके साथ खेत देख आना" 

मैंने कहा, "अरे......हमें तो चलना था..... आप तैयारी कर लो हमें चलना था ना....इटावा....."

लल्ली काकी बोली, "अरे हां बेटा..... चल ठीक है........ मैं तैयार होती हूं"

यह कहकर काकी धीरे धीरे चलती हुई अपनी कोठरी में गई. भेनचोद इस औरत का पिछवाड़ा क्या क़यामत है.

६ फुट का बदन......हल्का गोरा गेंहुआ रंग......मोटे मोटे भरे हुए हाथ. खरबूजे जैसे चुचे....चूची बोलना गलत हो जाता.

5 - ५ के तरबूज जैसी बिलकुल गोल गोल गांड. सफ़ेद साड़ी में लिपटी लल्ली काकी की गांड गांड नहीं, बुलावा थी.

काकी का पेट थोड़ा सा निकला हुआ था मगर मोती तो वो कतई नहीं थी... वो तो गाँव की असली भरी पूरी औरत थी.

40 -45 की उम्र में एक औरत अपने चरम पे होती है.....सुंदरता.....मादकता.......गदराया बदन....

भेनचोद मेरी तो उनके देख कर ही छूट होनी थी. 

काकी कोठरी से अपने हाथों में कपड़े लिए बाहर निकली 

"बेटा मैं नहा लूं तब तक तू यहीं बैठे रहना"

यह बोलकर लल्ली का कि कोने में बने बाथरूम में चली गई 

मेरी सांसे तेज चलने लगी भेनचोद बाथरूम में दरवाजा ही नहीं था 

सिर्फ एक पर्दा डाला हुआ था काकी अंदर गयी और पर्दा गिरा लिया.

अंदर पानी गिरने की आवाज आने लगी मैं धीरे धीरे चलता हुआ बाथरुम के बाहर तक पहुंच गया बाल्टी में गिरते पानी की आवाज के बीच मुझे कपड़ों की सर सर की आवाज़ भी आ रही थी इसकी मां की चूत यह ६ फीटी गदराए बदन की औरत नंगी हो रही थी और उसके और मेरे बीच में सिर्फ एक पर्दे का फासला 

कीड़ा कुलबुलाने लगा 

घर काफी पुराना था और पुराने घरों में बाथरूम और लैट्रिन नहीं बने होते थे तो शायद यह बाथरूम बाद में बनाया गया था और इसमें दरवाजे की जरूरत इसलिए नहीं पड़ी होगी कि दरवाजा होने से अंधी लल्ली काकी को समस्या होती मगर यह समस्या मेरे लिए वरदान बनने वाली थी 

काकी के विशाल गदराये नंगे बदन का दीदार करने के विचार मात्र से मेरा रोम-रोम सनसनाने लगा 

अंदर से काकी के गुनगुनाने की आवाजें आने लगी मैंने धीरे से परदे को पकड़ा और उठाने लगा तभी जोर की हवा का झोंका आया और मैं इसके पहले कि मैं काकी के बदन का दीदार कर पाता पर्दा मेरे हाथ से छूट गया और काकी को एहसास हो गया कि शायद वहां कोई है 

काकी जोर से चिल्लाई, " हाय.. राम.... कौन है ?"

मेरी गांड फटी और मैं उल्टे पैर भागा. मेरे भागने में मेरा पैर वहां रखे बर्तनों से जा टकराया और सारे बर्तन बिखर गए काकी फिर चिल्लाई, "लल्ला..... बेटा कौन है यहां...?"

मैंने अपनी फटी गांड और धड़कते दिल को काबू में किया और कहा, " क..क..काकी....व्...व्...वो.....वहीँ चूहा......उस चूहे के पीछे बिल्ली भागी थी....."

काकी बाथरूम के अंदर से ही चिल्लाई, "है राम वो चूहा फिर आ गया....राम कैसा दुष्ट चूहा है"

मैंने लोअर में तंबू बनाए बाबूराव को देखते हुए कहा, "हाँ....काकी....."

काकी बाथरूम से नहाकर निकली तो फिर से वही सफेद ब्लाउज और साड़ी पहना हुआ था मगर उनके गीले बाल ब्लाउज पर पड़ने से सफेद रंग का ब्लाउज पारदर्शी होने लगा था और उनकी गोरी मासल पीठ ब्लाउज के अंदर से दिख रही थी देखने वाली बात यह थी कि उस सफेद ब्लाउज में मुझे ब्रा का नामोनिशान भी नहीं दिख रहा था मैंने समझ गया ह गांव की औरतें क्या ब्रा-पैंटी पहनती होंगी 

तभी मेरे दिमाग में विचार आया कि अगर काकी का ब्लाउज पूरा गीला हो जाए तो नजारा दिख सकता है 

इसके पहले कि मैं कुछ दिमाग लगाता. किवाड़ बजने लगा 

काकी ने कहा " देख तो बेटा कौन आया है ?"

मैं भारी कदमों से चलता हुआ दरवाजे के पास पहुंचा और फिर अंदर से चिल्लाया " कौन ...."

बाहर से आवाज आई, " हम हैं हरिया........... मालकिन है क्या...?"

मैंने मुड़कर काकी से पूछा , " कोई हरिया है "

" अरे ...तो खोल दे बेटा.... हरिया ही तो अपने खेत खलिहान संभालता है....उसे बिठाओ मैं आती हूं"

यह कहकर काकी कोठरी में घुस गई और दरवाजा बंद कर लिया मैंने दरवाजा खोला 35 40 की उम्र का गठीले बदन का काला कलूटा आदमी खड़ा था

हरिया मुझे देखकर ऐसा खुश हुआ जैसे मैं कोई राहुल गाँधी हूँ ...वह मेरे पैरों में गिर पड़ा और बोला 

"अरे लल्ला बाबूजी आप कितने बड़े हो गए.....कितने लम्बे हो गए......"

बहनचोद मैं लोगों के पैर छूता था खुद के पैर छूआने का मौका पहली बार हुआ मुझे कुछ समझ नहीं पड़ा

वो लौडू तो मारे ख़ुशी के फटा जा रहा था.

" मालकिन ...कहा है....?"

मैंने कहा आ रही है बैठो....

वो तुरंत खाट पर बैठ गया 

फिर उचका...."लल्ला बाबूजी...आप मालकिन को ले जा रहे हो इनकी आंखें सही करा दोगे न......लखन बाबूजी के जाने के बाद से मालकिन ने ही हमें संभाला है.....हम तो बेघर लोग थे बाबूजी........आज पूरी खेती हमारे हवाले कर दी.....मालकिन बहुत ध्यान रखती है सबका.......हमारी जोरू को भी साड़ी कपडा अनाज देती रहती है......वो तो हमरा बिटवा छोटा है इसलिए धन्नो मालकिन के साथ दिन भर नहीं रह पाती.......नहीं तो वो छिनाल...चमेली की क्या जरुरत थी......माफ़ करना लल्ला बाबू.......हम गलत बोल दिए.....पर..."

यह भोसड़ी का क्या फेविकोल का जोड़ है......मादरचोद साँस भी नहीं ले रहा 

वो फिर चालू हो गया 

"मालिक पर अभी आप शहर कैसे जाओगे ? "

मैंने कहा, " (भोसड़ी के..) दिन की बस से... भाई .............."

हरिया खींसे निपोरते हुए बोला, "पर मालिक चम्बल नदी पर बना पुल तो कल रात को गिर गया और नदी में पानी ज्यादा है इसलिए यहां से बस वहां नहीं जा सकती.... तीन-चार दिन में नाव वगैरह चले तो चले.... तब तक तो आपको यहीं रुकना पड़ेगा"

बहनचोद अब ये क्या हुआ.....मेरे पास तो कपडे तक नहीं थे.

हरिया बोला, " अब तो चलो मालिक आपको खेत ले चलूँ " 

यहाँ भोसड़ी का....मैं इस बियाबान गाँव में फँस गया और इस मादरचोद के दस्त ही बंद नहीं हो रहे है....खेत चलो खेत चलो....अरे तेरी गांड में भर ले खेत.....भोसड़ी का.

मैंने कहा, "अरे... टूट गया...ऐसे कैसे टूट गया.....दूसरा रास्ता होगा.....बस होगी.....?"

हरिया धीरज से मुस्कुराते हुए बोला, " नहीं है मालिक.....एक ही रास्ता है...."

"रुको मुझे काकी से बात करने दो......नहीं....बाबूजी से बात करता हूँ.......अरे मेरा फोन....."

लो गधे के लंड से लिखी दास्तान.

मोबाईल में सिग्नल नहीं. 

मैंने लल्ली काकी को आवाज़ लगाई. 

काकी कोठरी से बहार आयी. उन्होंने अपने कपड़े ठीक ठाक कर लिए थे और बालों को टॉवल में लपेट लिया था उनका ब्लाउज भी सूख चुका था इसलिए कुछ नहीं दिख रहा था. वो अपने भरे-पूरे बदन को संभालते हुए धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए आई और रुक कर बोली 

"क्यों रे हरिया क्या हुआ"

"मालकिन वह चम्बल का पुल गिर गया.....रात में......अब तो तीन-चार दिन जाने का कोई इंतजाम नहीं है....छोटे बाबू को वही समझा रहे है.......रुकना ही पड़ेगा...."

न जाने क्यों काकी को यह खबर सुन कर बड़ी खुशी हुई उनका चेहरा मानो खिल गया 

वह बोली, "चलो अच्छा....कोई बात नहीं लल्ला बेटा तीन-चार दिन बाद चलेंगे"

लंड तीन-चार दिन बाद चलेंगे बहनचोद गांव में 4 दिन में तो मैं पागल हो जाऊंगा
 
मेरे दिमाग का टोटल फालूदा हो चुका था 

पुल गिर गया भेनचोद क्या मिटटी गारे का बना हुआ था ...गिर गया

जब साली किस्मत ही हो गांडू तो क्या करेगा पांडू 

हरिया भी बैठा-बैठा क्या पता क्या बोले जा रहा था. मैंने गुस्से में तिलमिलाते हुए इधर उधर देखा 

हरिया फिर टर्राया, "बाबूजी खेत चलेंगे"

साले भेन के लंड....तेरी माँ का भोसड़ा ...खेत ....खेत 

मैं गुर्राया, "मेरी तबीयत ठीक नहीं मेरा सर दुख रहा है तुम जाओ"

हरिया मुंह लटका कर निकल लिया. 

लल्ली काकी को शायद मेरे गुस्से का एहसास हो गया था अंधे लोग यूं भी बहुत सेंसिटिव होते हैं अपने आसपास के माहौल के लिए

उन्होंने कहा, "कोई बात नहीं बेटा दो-तीन दिन की बात है इसी बहाने तुम मेरे यहां रह जाओगे क्या बताऊं चमेली के भाग जाने के बाद तो मैं किसी से बात करने को भी तरस गई अंधा होना दुनिया का सबसे बड़ा दुख है उसके ऊपर से तेरे लखन काका नहीं रहे अकेलापन दुनिया की सबसे बेकार चीज़ है रे बेटा

मैंने तुरंत बात को संभालने के लिए कहा, " अरे काकी आप बोलोगी तो मैं दो-तीन दिन 5 दिन 10 दिन रुक जाऊंगा इटावा में मेरा कौन सा काम है"

यह सुनते ही काफी का चेहरा एकदम खिल गया मानो सूरज के सामने से बादल हट गए हो 

यार यह औरत कितनी खूबसूरत है काकी का चेहरा उनके विशाल शरीर के अनुपात में थोड़ा छोटा था पर उनके होंठ काफी मोटे मोटे थे......बड़ी बड़ी ऑंखें और मोटे मोटे होंठ. इस उम्र में भी उनके होठों पर गुलाबी रंगत थी शहर की लड़कियां गेलचोदी सवा मन लिपस्टिक लगाती है तो भी खूबसूरत नहीं लगती.

मैंने अपने आप को नार्मल करने के लिए इधर उधर की बात शुरू कर दी थोड़ी देर में गर्मी बढ़ने लगी तो काकी साड़ी से अपने आप को हवा करने लगी उनका साड़ी को ऊपर करना होता और उनके पेट की झलक मुझे दिखती उनका पेट बैठे होने होने से बाहर आया हुआ था उसमें को देखकर मुझे किसन हलवाई की दुकान पर रखे खोये मावे की याद आने लगी खोया भी तो ऐसा ही नरम-नरम चिकना चिकना दिखता है 

एक ही सेकंड में मेरा सारा गुस्सा और परेशानी हवा हो गए और मैं काकी के रूप का रसपान करने लगा 

भले काकी अंधी हो गयी थी ही हो गई थी मगर वो जब बात करती थी तो उनके चेहरे पर खूब सारे भाव आते थे वो आंखे मटका मटका कर और सेल्फी वाला पॉउट बना बना कर बोलती. कभी चेहरे पर शरारत कभी ख़ुशी कभी मस्ती . कोई भी उनका चेहरा देखकर कोई भी उनके मन में चल रही बात बड़ी आसानी से पढ़ सकता था मैंने भी सोचा यहां पिक्चर देखने को मिल रही है इटावा में जाकर कौन सा खंभा उखाड़ लेता न चाची पेलने देती ना पिया के पास कोई सीन और रही पम्मी आंटी. तो जब पिया घर ही नहीं जा पाऊंगा तो आंटी से लौड़ा मिलूंगा 

साली किस्मत ही हो गांडु क्या करेगा पांडू 
 
काकी कुछ बोल रही थी....

मैंने कहा, "क्या हुआ. क्या काकी ? आप लखन काका का कुछ बता रही थी " 

काकी बोली, " अरे हाँ वही तो .....जब तेरे काका फ़ौज में थे तो वह भी जब गांव आया करते थे तो उन्हें किसी न किसी बहाने से मैं ऐसे ही रोक लिया करती थी"

अब बताओ.......काकी कहां मेरा कंपैरिजन काका से करने लगी 

बात बदलने के लिए मैंने कहा, "काका के बारे में कुछ बताओ तो"

काकी मुस्कुराई. बाबा काकी के चेहरे का रंग ही बदल गया.

"लल्ला...रे...... उनके बारे में क्या बताऊं बेटा इंसान नहीं देवता थे. देवता 6:30 फीट ऊँचे, लंबे चौड़े वह बचपन से ही पहलवानी करते थे और उनकी पकड़....... एक बार हाथ पकड़ ले तो कोई छूटा नहीं सकता था.....अब हमारी शादी कम उम्र में ही हो गई थी जब मैं बिहा कर आई तो मेरे बालिग होने में 4 साल थे तेरे काका ने मुझे बहुत प्यार से रखा मुझे कभी परेशान नहीं किया जब मैं सयानी हुई........."

"सयानी मतलब", मैंने टपक से पूछा .

अचानक काकी का चेहरा लाल हो गया 

"यानी..... मतलब.....मेरा मतलब.....", काकी सकपका गई 

मतलब तो मैं समझ गया कि अपनी माहवारी शुरू होने की बात बता रही है पर अपुन तो बहुत सयाने

"मैं समझा नहीं"

"अरे वो.....तू ये सुन.....जब मैं 18 साल की थी उसके बाद तेरे काका की फौज में नौकरी लग गयी और वह साल में कुल जमा 1 महीने के लिए आते थे और उसकी एक महीने में वह पूरे घर को आसमान पर उठा लेते थे..... खेत जाते...... तब हरिया छोटा था...... हरिया को मार-मार कर उससे काम कराते.......... सुबह से लेकर रात तक बस काम काम काम.......... रात को जब घर आते तो इतने थके होते पर फिर भी मेरे पास बैठते ...........मुझसे बातें करते........... हम कभी-कभी तो पूरी रात नहीं सोते थे (लम्बी सांस)

मैंने फिर चुतिया बनके पूछा, "पूरी रात बातें करते थे ? "

अब की बार काकी के चेहरे पर लाली दौड़ गयी 

काकी अपने होठों को दबाते मुस्कुराते बोली ,"अरे बेटा खूब बातें करते थे.....वह बातें .......पूरी रात बातें किया करते थे ......मुझे सोने नहीं देते थे.....बस....."

मुझे सब समझ आ रहा था.....पूरी रात टांगे खोल कर ...पलंग तोड़ बाते.....

तभी ऊपर से आवाज आने लगी भाड़ भाड़ भाड़ तो मैं घबरा के ऊपर देखा 

"अरे..ये...क्या....है.....क्या ...हुआ.....", मैं उछला 

"कुछ नहीं रे बेटा बन्दर है यहां बड़ी तकलीफ है बेटा....... घर का सामान उठाकर ले जाते हैं....कपड़े भी खींच ले जाते हैं इसीलिए कपड़े खुले में नहीं सुखाती.....हरे राम.... देखना मेरी साड़ी.....सब कपडे.... ऊपर ही सूखा आयी थी आज.... 

(मेरे सामने चड्डी और ब्लाउज़ सुखाने में शर्म आ रही थी क्या.....) 

"देख बेटा....मेरे कपड़े लेकर ना भाग जाए....."

"मैं देख कर आता हूँ..."

चौक से ही संकरी से सीडिया थी .....मैं ऊपर गया बंदर तो चले गए थे लेकिन मैं तुरंत दौड़ता हुआ छत पर गया और वहां पर सूखती साड़ी को उठाया और उसे समेट कर छत के कोने में रख दिया वहीं पर काकी का ब्लाउज भी पढ़ा था उसे भी उठाकर उस में रख दिया पेटीकोट को भी वहीँ फंसा दिया मैंने ऐसा क्यों किया मुझे पता नहीं

मैं नीचे आया मैंने कहा, " अरे....काकी....वो...बंदर सारे कपड़े लेकर भाग गया"

काकी ने सर पीट लिया, "सत्यानाश जाए मरे बंदरों का........... मेरे पास कल पहनने के लिए साड़ी ही नहीं रहेगी....हाय राम सारे कपडे ले गए क्या........ मैं कल क्या पहनूंगी..........मैं गंदे कपड़े पहन कर पूजा कैसे करूंगी मेरी सारी साड़ियां तो मैंने अनाज बांधने के लिए रस्सी बनाने के लिए दे दी. ...सोचा था शहर से नई खरीद लूंगी हाय राम अब क्या होगा ? "

मैंने कहा. " त...त. तो काकी कुछ दूसरे कपड़े तो होंगे..?"

काकी बोली, "अरे बेटा कुछ भी नहीं है दो साड़ी ही बची थी बाकी सब पुरानी थी फटने लगी थी इसलिए मैंने अनाज बंधवा दिया उनमे....अब यह तो आज पहली कल क्या पहनूंगी.....?"

यह कहकर काकी उठी और बोली, "बेटा इधर आ...."

काकी धीरे धीरे टटोलट हुयी मुझे कोठरी में ले गई. और हाथ से टटोल कर अलमारी के सामने खड़ी हुई 
अपनी कमर से चाबी का गुच्छा निकाला और उस में चाबी लगाई और मुझसे कहा, " बेटा इसमें तेरी रूपा दीदी के कुछ कपड़े रखे हैं उसमें कोई सलवार कमीज हो तो मुझे दे दे"

मैंने अलमारी में देखा तो उसमें कुछ सलवार सूट पड़े थे.......मैंने उन्हें उठाने लगा..

तभी मेरी नज़र वहां रखी लेगिंग्स और टीशर्ट पर पड़ी. 

कीड़ा.......कुलबुलाने लगा.
 
मैंने सलवार सूट धीरे से उठाया और अपने बगल में दबा लिया और कहा, "काकी सलवार सूट तो नहीं है यह कुछ लड़कियों के पाजामे है और एक टी-शर्ट है" 

काकीक बोली, "हाय राम मैं यह पजामा...टी-शर्ट पहनूंगी क्या.....देख बेटे...देख....सलवार सूट भी होगा मुझे ध्यान है रूपा छोड़ गई थी"

मैंने कहा, "नहीं है....काकी .... यहां तो बस ३-4 कपड़े रखे हैं और कोई सलवार सूट नहीं है"

काकी बोली, " अरे...वो रूपा तो बोली थी कि सलवार सूट यहीं रह गया .....राम जाने यह लड़की भी इतनी लापरवाह है..... कुछ ध्यान नहीं रहता.......... यह सब कपड़े भी उसने ही छोड़ दिए थे तो मैंने संभाल लिए बता तो बेटा क्या कपड़ा रखा है अंदर"

मैंने दो लेग्गिंग उठाई और उनको उठाते से ही मेरे दिमाग में हथौड़े बजने लगे क्योंकि वह लेग्गिंग काकी ने नाप की बिल्कुल नहीं थी भले रूपा दीदी काकी जितनी लंबी थी मगर उनका बदन काकी जैसा इस कदर गद्दर गदराया हुआ नहीं था अगर काकी यह लगीन पहन लेगी तो...... पहने या ना पहने एक ही बात है

ये लेग्गिंग उनके बदन से ऐसी चिपकेगी की छुपायेगी कम दिखाएगी ज्यादा 

लंड मेरा
विनोद मेहरा

मेरी लॉटरी खुल गई थी 

दो थी एक सफेद और एक भूरी ....सफ़ेद बिलकुल पतली और भूरी थोड़ी मोटी.

मैंने ईमानदारी से भूरी लेग्गिंग को भी अपनी बगल में दबा लिया...और सफेद काकी को पकड़ा दी 

काकी बोली, "हाय राम यह नासपीटे मरे बंदर...... आग लगे इनको...... अब मैं इतना छोटा सा पजामा कैसे पहन लूँ... अरे राम ......बेटा इसके ऊपर पहनने का क्या है ....उठा तो.... "

फिर मैंने देखा तो कुछ टी-शर्ट पड़ी थी उसमें से मैंने सफेद रंग की टीशर्ट उठाई और काकी को पकड़ा दी 

काकी ने उसे हाथों में टटोला....और बोली , "राम राम यह तो टीशर्ट है बेटा यह तो बहुत छोटी लगती है लंबी नहीं है क्या "

मैंने कहा कि एक ही टीशर्ट था काकी 

"अरे नहीं रे बेटा.....ढंग से देख.....यहां तो बहुत सारे कपड़े रखे हैं..... देख बेटा देख"

मैंने बाउंसर डाली, " अरे काकी बाकी सब तो छोटी छोटी सी है ब्लाउज जैसी ...और ये सब चिंदे है......"

तो काकी ने ठंडी सांस ली और कपड़े लेकर अपने बिस्तर के सिरहाने धीरे से टटोल कर टेबल पर रख दिए

"चल...बेटा....जैसी हरि इच्छा....."

अचानक ही मेरा मूड बदल गया था .......अब मैं लौड़ा इटावा नहीं जाना चाहता था

अब तो लंड पे ठहरी बारात.....निकलेगी गाजे बाजे के साथ
 
मैं बैठा बैठा काकी से इधर उधर की बाते करता रहा....

वो मेरे सामने उकडू बैठ कर आटा गूँथ रही थी.....साडी थोड़ी सी ऊपर की हुयी थी जिस से उनकी गोरी गोरी चिकनी पिण्डलिया दिख रही थी.
बैठ कर ज़ोर लगाने से जांघो से चिपकी पिण्डलिया फ़ैल गयी थी....मक्खन जैसी मुलायम ......

एक बात थी....काकी की पिण्डलिया बिलकुल चिकनी थी....बिना बाल की......अब काकी गांव में वैक्सिंग कराती हो ये तो संभव नहीं था. मतलब काकी की खाल इन्ही बिना बालों की थी......भेनचोद....बाबूराव सर उठाने लगा.

काकी ज़ोर से आटे को मसलती और उनके चुच्चे दब कर ब्लाउस में से बाहर आने लगते....उनके मम्मों की बिच की गहराई.

कसम उड़न छल्ले की.....मैं तो गांव में ही बस जाऊंगा.

दिन भर इधर उधर की बातें करते करते शाम हो गयी....मैं मस्ती से काकी के रूप का रसपान करता रहा. उन्हें काम में हाथ बंटाता रहा. कई बार मेरे उनके शरीर में रगड़ हुयी मगर जहाँ काकी इन सब से अनजान थी वहां अपनी तो हालत ख़राब थी. दिल कर रहा था की बाथरूम में जाके मुठ मार लूँ और हल्का हो लूँ मगर काकी काम पे काम बताती जा रही थी और मुझे भी इस बहाने उनके करीब होने का मौका मिल रहा था. 

शाम ढले किवाड़ बजा....मैं और काकी दोनों एक साथ चिल्लाये....."कौन है....?"

काकी की मुस्कराहट फूट पड़ी. वो मुस्कुराते हुए बोली," देख तो बेटा कौन है......पहले पूछ लेना...."

मैंने आवाज़ लगाई " कौन...."

बाहर से खनखनाती हुयी आवाज़ आयी, ''अरे हम है....छोटे बाबू...."

अब ये कौन कॅरक्टर आया ?

मैंने काकी से पूछा...."काकी......ये...?"

काकी बोली " अरे हाँ बेटा खोल्दे......धन्नो....आयी है...."

मैंने किवाड़ खोला और धन्नो आंधी तूफान के जैसे घर में घुसी....उसने अपनी कमर पर एक छोटे से बच्चे को टिकाया हुआ था....पीली साड़ी में लिपटी धन्नो मेरे सामने रुकी...और बोली, " अरे वाह.....बताओ.....कितने लम्बे हो गए .....हाँय.......जब पहले देखी थी तो कितने छोटे थे.....६-७ साल हुए होंगे....क्यों काकी......अरे...हाँ तो.....बाबू तुम्हारी अम्मा कैसी है......बहुत पुन्न आत्मा है.....और अनीता भाभी कैसी है.......उनकी गोद भरी क्या......हम को तो बहुत याद आती है उनकी.....भाभी तो बहुत मज़ाक करती थी हमसे भी....अब हम भी चलते इटावा काकी के साथ .....मगर.....एक तो ये राजू छोटा है फिर खेत भी देखना पड़ता है न....."

भोसड़ी के .....पति पत्नी दोनों बगैर ब्रेक की बैलगाड़ी है .....

काकी मुस्कुराते हुए बोली, " आ इधर आ......ला राजू को मुझे दे...."

धन्नो ने अपने बच्चे को काकी को दिया,. काकी उसको दुलारने लगी.

धन्नो चौक के बीच कड़ी कमर पर हाथ रखे हुए पुरे घर का मुआयना करने लगी.

और मैं धन्नो का.....

30 -35 साल की सांवली सी औरत....नाटी मगर सुतां हुआ बदन.....धन्नो का बदन तो छरहरा था. मगर थन बड़े बड़े थे.
बल्कि साडी को यूँही कंधे पर डाले होने से दोनों बोबों के बिच की गली....नहीं गलियारा....मस्त दिख रहा था. 

अपुन ठहरे अकाल की पैदाइश.....अपनी नज़रे वहीँ जाके के जाम हो गयी. धन्नो ने गहरी सांस ली...और बोली, " ओ हो...काकी....अपने तो पूरी तैयारी कर ली जाने की.....सब खाली खाली दिख रहा है.....हैं....पुरा सामान कमरों में ठूंस दिया क्या....?'

"अरे तो पागल....यूँही बाहर पटक क्र चली जाती क्या.....कौन जाने महीना लगे या दो महीना...."

"काकी...मैं बोल देती हूँ.....जल्दी से आ जाना.....हमारा मन नहीं लगेगा....."

" तो तू साथ चल...."

"अब बताओ...छोटे बाबू....काकी ने तो कह दिया साथ चल....यहाँ कितना काम है....हमें नहीं पता जल्दी से ऑंखें ठीक करा लो और आ जाओ." 

काकी बोली, " अच्छा सुन....ये मरे बंदरों ने नाक में दम क्र रखा है.....आज फिर आये थे......मेरी साड़ी और सब कपडे ले गए....बताओ..."

धन्नो अपनी कजरारी ऑंखें गोल गोल कर के बोली, " हैं.....फिर आये थे.....सब कपडे ले गए मतलब......सब....?"

काकी ने धीरे से कहा, " अरे छोरी......एक कपडा न छोड़ा मेरा.....साड़ी हैं नहीं....सब फाड़ कर अनाज बांध दिया.....बाकि दूसरे उस दिन वो तेरी बहन आयी थी उसको दे दिए थे.....मैंने कहा था ना तुझसे .......नई साड़ी लुंगी.......अब मेरे तो कपडे भी ना बचे.....कल क्या पहनूंगी...."

धन्नो अचरज से बोली, " हैं....काकी.....सारे...कपडे.....मतलब......सब........अरे...अंदर के कपडे भी ले गए मरे ......?"

काकी का मुंह शर्म से लाल हो गया. वो चुप रही. मगर धन्नो तो धन्नो थी.

"अरे काकी.....अंदर के कपडे तो होंगे....."

काकी ने अपनी गर्दन निचे करके धीरे से कहाँ, " ना.....रे.....वो भी ना है....सोचा था इटावा से......"

धन्नो बोली, " तो क्या काकी मैं अभी अपने कपडे ला देती हूँ........"

काकी थोड़ा चिढ़ कर बोली, " अरे गधी .....तेरे कपडे मुझे किस तरह आएंगे....पागल....."

"हाँ काकी...ये तो है.....फंस ना जायँगे आपको......." और खी खी हंसने लगी.

"चल फालतू बातें छोड़......एक काम कर... एक साड़ी और कपडे दे जा...."

"साड़ी और क्या......कपडे दूँ काकी..."

"अरे करमजली.....बाकि के कपडे...." काकी दबी ज़ुबान में बोली..

" ओ......चोली और साया.....पर काकी...." 

"तुझसे जितना कहा उतना कर...." 

धन्नो अभी आयी कह कर निकल ली.
 
धन्नो थोड़ी दे में आयी और एक कपड़ो का बण्डल पटक गयी. काकी ने मुझसे कहा उनके बिस्तर पर रख दूँ.

मैंने बिस्तर पर रखे लेग्गिंग और टी शर्ट को देखा और मेरी झांटे सुलग गयी. कहाँ तो सीन बनने वाला था और कहाँ ये भेन की लोड़ी आ गयी.

रात को मुझे नींद ही नहीं आयी....इतने मच्छर काटे की मैंने उनके पुरे खानदान को याद कर कर के गालियां दी.

सुबह सुबह नींद लगी. 

पूरी रात मैंने बाबूराव को हाथ में लिए निकाली. सुबह 5 30 पर नींद अपने आप खुल गयी मगर मैं खाट पर ही पड़ा रहा काकी की कोठरी से आवाज़ आयी और काकी किवाड़ खोल कर बाहर निकली उनके हाथ में तौलिया था. 

और दूसरे हाथ में थी सफेद लेग्गिंग और सफ़ेद टीशर्ट.

वो मारा पापड़ वाले को.....

काकी धीरे धीरे सधे हुए कदमो से चौक में आयी और बाथरूम की तरफ चली. मैंने भी उठने की कोशिश की तो भेन की लौड़ी खाट चरमरा उठी.काकी ने चौंक कर कपडे अपने सीने से लगा लिए और बोली, 

" उठ गया क्या लल्ला...?"

मेरे को काटो तो खून नहीं....

मैं चुपचाप पड़ा रहा. काकी फिर से बोली, "लल्ला......."

जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो काकी समझी की मैंने नींद में हिला हूँ. वो खाट के पास आयी.

अब क्या था की अपुन सोये थे नंगे......

खुल्ले आसमान में इस मौसम में नंगा सोने का सुख ही कुछ और है भाई....

सुबह सुबह बाबूराव भी मुर्गे की जैसे मुंडी ऊपर कर के खड़ा रहता है यार....मैंने अपने मुट्ठी में बाबूराव को लिया और खाट पर पड़े पड़े काकी को देखता रहा...

मैंने खाट को सरका कर चौक के बीच में कर लिया था...काकी मेरे पैरों की तरफ से आ रही थी. काकी बेचारी समझी की खाट चौक के कोने में है तो तेज़ी से आगे बड़ी और बेचारी अंधी को खाट के कोने की ठोकर लगी वो ऐसे के ऐसे खाट पर आ गिरी. 

उनका मुंह मेरे जांघों पर आ गया और सहारे के लिए हाथ मेरे.......बाबूराव पर...

औ तेरी......

काकी कुछ समझती और मैं कुछ संभालता उसके पहले काकी ने गफलत में टटोलते हुए मेरे फनफनाये कोबरा को पकड़ लिया. अपना सवा आठ इंच का सरिया काकी के हाथों में समा ही नहीं पा रहा था.

काकी के चेहरे पर पहले तो आश्चर्य के भाव आये और तुरंत ही उनके गोरे गाल और कान लाल सुर्ख हो गए.
काकी ने एक पल के लिए जैसे मेरे मुगदर को नापा और जायज़ा लिया और दूसरे ही पल फुर्ती से खड़ी हो गयी.

भेनचोद मेरी तो हंसी नहीं रुक रही थी...कहाँ तो मैं सपने देख रहा था और कहाँ काकी ने आके खुद ही अपुन के हथियार को नाप लिया.....

पर मैंने मौके की नज़ाकत को समझा और सोने का ढोंग करता रहा...काकी ने कुछ गहरी सांस ली और मैं उनके पपीतों को उठता गिरता देखता रहा....काकी बोली...."लल्ला......?"

लल्ला एकदम चुप.....सुई पटक सन्नाटा.

काकी ने तौलिया और कपडे जो की गिर गए थे उनको टटोल कर उठाया और मैं उनके झुकने से उभर आये पिछवाड़े को देखता रहा....

कसम अरविन्द केजरीवाल की .......काकी का पिछवाड़ा तो.....

काकी ने तौलिया और कपडे उठाये और बाथरूम में चली गयी. 

मुझे न जाने ऐसा क्यों लगा की काकी के चेहरे पर बहुत हलकी से मुस्कान थी और मेरे बाबूराव को पकड़ के उतनी आश्चर्यचकित नहीं थी...जितनी होना चाहिए थी...

फटफटी.....चल पड़ी.
 
अपुन ने सोचा काकी को नहाने जाने दो फिर काकी की राम तेरी गंगा मैली देखेंगे. 

पर साला काकी मुस्कुराई तो थी....

ज्यादा स्पीड में चलो तो एक्सीडेंट होता है....थोड़ा हल्लू हल्लू....



मगर कल जिस तरह काकी को मेरी मौजूदगी का एहसास हो गया था मेरी गांड फटी....मैंने सोचा कुछ न्य एंगल बनाते है. उस बाथरूम की दीवारें 6 -7 फूट ऊँची थी मगर छत से मिली हुयी नहीं थी.....काफी गेप था. मैंने गार्डन घुमाई और देखा की अगर सामने से छत पर खड़ा हो जॉन तो कुछ सीन बन सकता है. 

लौड़ा क्या चाहे.....कुछ नज़ारे.
मैं भाग कर छत पर गया. अपना idea बिलकुल सही था बाबा.

फुल बालकनी नज़ारा था.....

मगर काकी का सर ही दिख रहा थी. वो इतनी देर में नहा भी ली थी.और झुक क शायद अपने बदन को पोंछ रही थी.
मैंने मुंडेर से झाँकने की कोशिश भी की लेकिन लंड बाबाजी.

निर्मल बाबा की सलाह के जैसे ये idea भी फुस्सी फटाका निकला. 

काकी का सर देखकर क्या करूँगा......बाथरूम की दीवार पर लगा एक लकड़ी का पटिया पुरे view की मां कर रहा था.

काकी ने अपना हाथ उठाया.....नरम नरम ...गोरा...गोरा.....मोटा......ताज़ा हाथ.....भेनचोद....हाथ नहीं देखना......सीन दिखा दो काकी.

काकी ने ब्लाउस जो की धन्नो का था उसमे हाथ डाला और वो आधे में फंस गया....

वो मारा पापड़वाले को.

धन्नो के कपडे तो छोटे है.. काकी ने कोशिश की मगर उनका हाथ कोहनी के ऊपर से ही ब्लाउस में फंस गया. फिर उन्होंने हार कर ब्लाउस खोला....और शायद झुक कर पेटीकोट में पैर डाले.....उनके सर हिलने से लग रहा था की वो भी छोटा था....

कहाँ 6 फ़ीट की कद्दावर औरत और कहाँ पौने 5 फ़ीट की धन्नो.

लंड धन्नो के कपडे लल्ली काकी को नहीं आने वाले. मैंने तो पहले ही लेग्गिंग और टी-शर्ट निकाल कर बाथरूम मे टाँग रखी थी काकी के लिए.


साला मौका छुट गया.

मैं कुछ झलक के इंतज़ार में वहीँ खड़ा हो गया....मगर काकी की शायद मेरी मौजूदगी का एहसास हो गया. उन्होंने कहा " लल्ला....."

भाई कसम से डर वाले शाहरुख़ खान वाली फीलिंग आयी...

."क़....क़.....क़......किरण ...." 

"क़....क़.....क़......काकी....." 



मैं तुरंत पीछे हटा.....आज थोड़ा सावधान था नहीं तो फिर बर्तनों में जा गिरता.....



भेनचोद मारे ठरक के मेरा मुंह सूखा जा रहा था..

बाथरूम से काकी की आवाज़ आ रही थी....वो ज़ोर लगा लगा कर कपडे पहन रही...थी.

मैं जल्दी से नीचे आया और चुपचाप आँखे बंद करके चारपाई परलेट गया

मैं खाट पर ही पड़ा रहा....काकी 20 मिनट बाद बाहर निकली. मैं चटपट उठ बैठा.

सफ़ेद झीनी लेग्गिंग......सफ़ेद पतली छोटी टीशर्ट....

माँ.....धुरी.....

काकी ने अपने कन्धों पर तौलिया डाला हुआ था.....आगे से पूरा ढंका हुआ. 

लेग्गिंग काकी के नाप से कम से कम २ साइज छोटी थी.....उनकी टांगों से ऐसी चिपक गयी थी मानो चमड़ी हो.. 

काकी की मोटी मोटी गदराई जाँघे ऐसी लग रही थी की चिकन का लेग पीस हो....रसीली ..

गीले बदन पर ही लेग्गिंग पहनने से लेग्गिंग हलकी से गीली हो गयी थी. 

एक तो पतला सफ़ेद कपडा, उस पर भीगा हुआ....

तू ही समझ ले प्यारे...

अपने कान फूंक फूंक गरम हो गए बे.

काकी ने तौलिये को सामने से शाल की तरह लिया हुआ था.....वो मेरे सामने ने पंजो के बल चलती हुयी गयी और मेरी नज़र जा चिपकी लेग्गिंग में फंसे उनके विशाल पिछवाड़े पर....

गीले बालों से गिरता पानी पीछे से उनकी लेग्गिंग को पूरा पारदर्शी बना चूका था....काकी की चड्डी तो मैंने कल ही छुपा दी थी..

काकी की २१ गज़ की विशाल गांड सफ़ेद भीगी लेग्गिंग में लिपटी मानो मेरे को चिड़ा रही थी.

लेग्गिंग पुरानी सी थी. उसका रेशा रेशा काकी की विशाल गांड के वजन से चौड़ा हो गया था....गांड की दरार क्या मेरेको तो उनके दांये कूल्हे पर एक मोटा सा तिल भी दिख रहा था.....

कसम उड़ान छल्ले की ...

बाबू अपन कही नहीं जा रहे...

अब मामला गंभीर हो चुका था. सुबह सुबह अपने बाबूराव को काकी को पकड़ा के अपना एंजिन वैसे ही सिटी मार रहा था. मेरी नज़रे काकी को ऐसे घूर रही थी की मुझे पक्का यकीन था की काकी भी अपने बदन पे मेरी निगाहों को महसूस कर रही है.

काकी मेरे सामने से धीरे धीरे चलती हुई चोक के कोने मे गयी और अपने तौलिए को हटा कर अपने बालों को फटकारने लगी. 

काकी की पीठ मेरी तरफ थी और उनके झुक जाने से उनकी विशाल गददर गांड फेल कर मुझे मुँह चिडाने लगी. ऐसा लग रहा था की लेगिंग अब फटी.

लेगिंग काकी की जाँघ के पिछले हिस्से पर कस गयी और उनकी जाँघ के पिछले हिस्से का गदराया हुआ नरम नरम नाज़ुक माँस लेगिंग के रेशों मे से झाँकने लगा.

किसी भी औरत मे लोग जाने क्या क्या देखते है. मम्मी गांड होन्ट. आँखें, कमर.

अबे भैय्ये.....किसी औरत की भारी भारी जाँघे देखो….जाँघ का पिछला हिस्सा देखो.

काकी के इस राम तेरी गंगा मैली रूप को मे अपनी आँखों से हुमक हुमक के पी रा था.

काकी तो अपने बालों को फटकारने मे व्यस्त थी और मैं रूप दर्शन मे.

ना जाने कब मेरा हाथ अपने बाबूराव पर पहुँचा और मैं अपने भन्नाये बाबूराव को हाथ फेर कर समझने लगा. 

काकी की तो लेनी है बाबू…

और हाँ घोड़ी बना के ही...

शायद मैं सोचते सोचते ज़ोर से बोल गया. काकी एक दम पलटी और बोली…

“हैं….लल्ला….जाग गया क्या….?”

अपुन चुप.

काकी का सफेद टी शर्ट आगे से भी भीग चुका था. शर्ट उनके निप्पल और उसके आसपास का भूरे हिस्से पर लेमिनेशन जैसा चिपका हुआ था. 

ठंडे पानी से शायद काकी के चूचुक टनटना गये थे. काकी के जामुन जैसे निप्पल शान से सिर उठा के खड़े थे. 

इसकी मा की

अबे बच्चे की जान लोगे.

मैं तो काकी के इस गदराये हुस्न को ही देखे जा रा था. नीचे से देखना शुरू किया.
 
Back
Top