hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
तुम्हारा मन भी बहाल जाएगा..नही तो गाओं मे तो कहीं आने जाने लायक नही है औरतों के लिए... हर जगह आवारे कमीने घूमते रहते हैं जिन्हे बस शराब और औरतों के अलावा कुच्छ दिखाई ही नही देता. "
धन्नो चटाई पर लेटी हुई सावित्री के चेहरे के भाव को ध्यान से देखती हुई अब बात चीत मे कुच्छ गर्मी डालने के नियत से आगे बोली "लेकिन ये गाओं वाले कुत्ते तुम्हारे कस्बे मे काम पर आने जाने को भी अपनी नज़र से देखते हैं बेटी..मैने किसी से सुना की वी सब तुम्हारे साथ पंडित जी का नाम जोड़ कर हँसी उड़ाते हैं..मैने तो बेटी वहीं पर कह दिया की जो भी इस तरह की बात करे भगवान उसे मौत दे दे...सावित्री को तो सारा गाओं जानता है की बेचारी कितनी सीधी और शरीफ है...भला कोई दूसरी लड़की रहती तो कोई कुच्छ शक़ भी करे लेकिन सावित्री तो एक दम दूध की धोइ है..." धन्नो इस बात को बोलने के साथ अपनी नज़रों से सावित्री के चेहरे के भाव को तौलने का काम भी जारी रखा. इस तरह का चरित्रा. पर हमले की आशंका को भाँपते हुए सावित्री के चेहरे पर परेशानी और घबराहट सॉफ दिखने लगा. साथ ही सावित्री ने धन्नो के तरफ अपनी नज़रें करते हुए काफ़ी धीरे से और डरी हुई हाल मे पुछि "कौन ऐसी बात कह रहा था..आ" धन्नो हमले को अब थोड़ा धीरे धीरे करने की नियत से बोली "अरे तुम इसकी चिंता मत करो ..गाओं है तो ऐसी वैसी बातें तो औरतों के बारे मे होती ही रहती है...मर्दों का काम ही होता है औरतों को कुच्छ ना तो कुच्छ बोलते रहना ..इसका यह मतलब थोड़ी है की जो मर्द कह देंगे वह सही है...लेकिन मेरे गाओं की कुच्छ कुतिआ है जो बदनाम करने के नियत से झूठे ही दोष लगाती रहती हैं बेटी...बस इन्ही हरजाओं से सजग रहना है..ये सब अपने तो कई मर्दों के नीचे............. और शरीफ औरों को झूठे ही बदनाम करने के फिराक मे रहती हैं." फिर भी सावित्री की बेचैनी कम नही हुई और आगे बोली "लेकिन चाची मेरे बारे मे आख़िर कोई क्यों ऐसी बात बोलेगा?" धन्नो ने सावित्री के . और बेचैनी को कम करने के नियत से कही "अरे तुम तो इतना घबरा जा रही हो मानो कोई पहाड़ टूट कर गिर पड़ा हो...बेटी तुम ये मत भूलो की एक औरत का जन्म मिला है तुम्हे ......और ...औरत को पूरी जिंदगी बहुत कुच्छ बर्दाश्त करना पड़ता है..इतना घबराने से कुच्छ नही होगा...गाओं मे हर औरत और लड़की के बारे मे कुच्छ ना तो कुच्छ अफवाह उड़ती रहती है...झूठे ही सही..हम औरतों का काम है एक कान से सुनो तो दूसरे कान से निकाल देना..." धन्नो की इन बातों को सावित्री काफ़ी ध्यान से सुन रही थी और तभी अंदर वाले कमरे से पंडित जी के नाक बजने की . आने लगी और अब पंडित जी काफ़ी नीद मे सो रहे थे.
फिर धन्नो ने बात आगे बढ़ाते हुए काफ़ी धीमी आवाज़ मे लगभग फुसूस्सते हुए बोली "देख .मेरा गाओं ऐसा है की चाहे तुम शरीफ रहो या बदमाश ..बदनाम तो हर हाल मे होना है क्योंकि ये आवारों और कमीनो का गाओं है....किसी हाल मे यहाँ बदनामी से बचना मुस्किल है...चाहे कोई मज़ा ले चाहे शरीफ रहे ..ये कुत्ते सबको एक ही नज़र से देखते हैं ...तो समझो की तुम चाहे लाख शरीफ क्यों ना रहो तुम्हे छिनाल बनाते देर नही लगाते..."
फिर धन्नो बात लंबी करते बोली "ऐसी बात भी नही है कि वो सब हमेसा झूठ ही बोलते है सावित्री ...मेरे गाओं मे बहुत सारी छिनार किस्म की भी औरतें हैं जो गाओं मे बहुत मज़ा लेती हैं....तुम तो अभी बच्ची हो क्या जानोगी इन सब की कहानियाँ की क्या क्या गुल खिलाती हैं ये सब कुट्तिया...कभी कभी तो इनके करतूतों को सुनकर मैं यही सोचती हूँ कि ये सब औरत के नाम को ही बदनाम कर रही हैं...बेटी अब तुम्हे मैं कैसे अपने मुँह से बताउ ...तुमको बताने मे मुझे खूद ही लाज़ लगती है..की कैसे कैसे गाओं की बहुत सी औरतें और तुम्हारी उम्र की लड़कियाँ उपर से तो काफ़ी इज़्ज़त से रहती हैं लेकिन चोरी च्छूपे कितने मर्दों का ...छी बेटी क्या कहूँ मेरे को भी अच्च्छा नही लगता तुमसे इस तरह की बात करना .....लेकिन सच तो सच ही होता है...और यही सोच कर तुमसे बताना चाहती हूँ की अब तुम भी जवान हो गयी हो इसलिए ज़रूरी भी है की दुनिया की सच्चाई को जानो और समझो ताकि कहीं तुम्हारे भोलेपन के वजह से तुम्हे कोई धोखा ना हो जाय."
धन्नो के इस तरह की बातों से सावित्री के अंदर बेचैनी के साथ साथ कुच्छ उत्सुकता भी पैदा होने लगी की आगे धन्नो चाची क्या बताती है जो की वह अभी तक नही जानती थी. शायद ऐसी सोच आने के बाद सावित्री भी अब चुप हो कर मानो अपने कान को धन्नो चाची के बातों को सुनने के लिए खोल रखी हो. धन्नो चाची सावित्री के जवान मन को समझ गयी थी की अब सावित्री के अंदर समाज की गंदी सच्चईओं को जानने की लालच पैदा होने लगी है और अगले पल चटाई पर धीरे से उठकर बैठ गयी ताकि सावित्री के और करीब आ करके बातें आगे बढ़ाए और वहीं सावित्री लाज़ और डर से अपनी सिर को झुकाए हुए अपनी नज़रे दुकान के फर्श पर गढ़ा चुकी हो मानो उपर से वह धन्नो चाची की बात नही सुनना चाहती हो.
धन्नो चटाई पर लेटी हुई सावित्री के चेहरे के भाव को ध्यान से देखती हुई अब बात चीत मे कुच्छ गर्मी डालने के नियत से आगे बोली "लेकिन ये गाओं वाले कुत्ते तुम्हारे कस्बे मे काम पर आने जाने को भी अपनी नज़र से देखते हैं बेटी..मैने किसी से सुना की वी सब तुम्हारे साथ पंडित जी का नाम जोड़ कर हँसी उड़ाते हैं..मैने तो बेटी वहीं पर कह दिया की जो भी इस तरह की बात करे भगवान उसे मौत दे दे...सावित्री को तो सारा गाओं जानता है की बेचारी कितनी सीधी और शरीफ है...भला कोई दूसरी लड़की रहती तो कोई कुच्छ शक़ भी करे लेकिन सावित्री तो एक दम दूध की धोइ है..." धन्नो इस बात को बोलने के साथ अपनी नज़रों से सावित्री के चेहरे के भाव को तौलने का काम भी जारी रखा. इस तरह का चरित्रा. पर हमले की आशंका को भाँपते हुए सावित्री के चेहरे पर परेशानी और घबराहट सॉफ दिखने लगा. साथ ही सावित्री ने धन्नो के तरफ अपनी नज़रें करते हुए काफ़ी धीरे से और डरी हुई हाल मे पुछि "कौन ऐसी बात कह रहा था..आ" धन्नो हमले को अब थोड़ा धीरे धीरे करने की नियत से बोली "अरे तुम इसकी चिंता मत करो ..गाओं है तो ऐसी वैसी बातें तो औरतों के बारे मे होती ही रहती है...मर्दों का काम ही होता है औरतों को कुच्छ ना तो कुच्छ बोलते रहना ..इसका यह मतलब थोड़ी है की जो मर्द कह देंगे वह सही है...लेकिन मेरे गाओं की कुच्छ कुतिआ है जो बदनाम करने के नियत से झूठे ही दोष लगाती रहती हैं बेटी...बस इन्ही हरजाओं से सजग रहना है..ये सब अपने तो कई मर्दों के नीचे............. और शरीफ औरों को झूठे ही बदनाम करने के फिराक मे रहती हैं." फिर भी सावित्री की बेचैनी कम नही हुई और आगे बोली "लेकिन चाची मेरे बारे मे आख़िर कोई क्यों ऐसी बात बोलेगा?" धन्नो ने सावित्री के . और बेचैनी को कम करने के नियत से कही "अरे तुम तो इतना घबरा जा रही हो मानो कोई पहाड़ टूट कर गिर पड़ा हो...बेटी तुम ये मत भूलो की एक औरत का जन्म मिला है तुम्हे ......और ...औरत को पूरी जिंदगी बहुत कुच्छ बर्दाश्त करना पड़ता है..इतना घबराने से कुच्छ नही होगा...गाओं मे हर औरत और लड़की के बारे मे कुच्छ ना तो कुच्छ अफवाह उड़ती रहती है...झूठे ही सही..हम औरतों का काम है एक कान से सुनो तो दूसरे कान से निकाल देना..." धन्नो की इन बातों को सावित्री काफ़ी ध्यान से सुन रही थी और तभी अंदर वाले कमरे से पंडित जी के नाक बजने की . आने लगी और अब पंडित जी काफ़ी नीद मे सो रहे थे.
फिर धन्नो ने बात आगे बढ़ाते हुए काफ़ी धीमी आवाज़ मे लगभग फुसूस्सते हुए बोली "देख .मेरा गाओं ऐसा है की चाहे तुम शरीफ रहो या बदमाश ..बदनाम तो हर हाल मे होना है क्योंकि ये आवारों और कमीनो का गाओं है....किसी हाल मे यहाँ बदनामी से बचना मुस्किल है...चाहे कोई मज़ा ले चाहे शरीफ रहे ..ये कुत्ते सबको एक ही नज़र से देखते हैं ...तो समझो की तुम चाहे लाख शरीफ क्यों ना रहो तुम्हे छिनाल बनाते देर नही लगाते..."
फिर धन्नो बात लंबी करते बोली "ऐसी बात भी नही है कि वो सब हमेसा झूठ ही बोलते है सावित्री ...मेरे गाओं मे बहुत सारी छिनार किस्म की भी औरतें हैं जो गाओं मे बहुत मज़ा लेती हैं....तुम तो अभी बच्ची हो क्या जानोगी इन सब की कहानियाँ की क्या क्या गुल खिलाती हैं ये सब कुट्तिया...कभी कभी तो इनके करतूतों को सुनकर मैं यही सोचती हूँ कि ये सब औरत के नाम को ही बदनाम कर रही हैं...बेटी अब तुम्हे मैं कैसे अपने मुँह से बताउ ...तुमको बताने मे मुझे खूद ही लाज़ लगती है..की कैसे कैसे गाओं की बहुत सी औरतें और तुम्हारी उम्र की लड़कियाँ उपर से तो काफ़ी इज़्ज़त से रहती हैं लेकिन चोरी च्छूपे कितने मर्दों का ...छी बेटी क्या कहूँ मेरे को भी अच्च्छा नही लगता तुमसे इस तरह की बात करना .....लेकिन सच तो सच ही होता है...और यही सोच कर तुमसे बताना चाहती हूँ की अब तुम भी जवान हो गयी हो इसलिए ज़रूरी भी है की दुनिया की सच्चाई को जानो और समझो ताकि कहीं तुम्हारे भोलेपन के वजह से तुम्हे कोई धोखा ना हो जाय."
धन्नो के इस तरह की बातों से सावित्री के अंदर बेचैनी के साथ साथ कुच्छ उत्सुकता भी पैदा होने लगी की आगे धन्नो चाची क्या बताती है जो की वह अभी तक नही जानती थी. शायद ऐसी सोच आने के बाद सावित्री भी अब चुप हो कर मानो अपने कान को धन्नो चाची के बातों को सुनने के लिए खोल रखी हो. धन्नो चाची सावित्री के जवान मन को समझ गयी थी की अब सावित्री के अंदर समाज की गंदी सच्चईओं को जानने की लालच पैदा होने लगी है और अगले पल चटाई पर धीरे से उठकर बैठ गयी ताकि सावित्री के और करीब आ करके बातें आगे बढ़ाए और वहीं सावित्री लाज़ और डर से अपनी सिर को झुकाए हुए अपनी नज़रे दुकान के फर्श पर गढ़ा चुकी हो मानो उपर से वह धन्नो चाची की बात नही सुनना चाहती हो.