hotaks444
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ससुरजी का लंड अब आधा खड़ा हो गया था, वो जंगली की तराह मेरे मूह में अपना पूरा लंड ठुस कर मेरे मूह को चोद रहे थे. मेरे मूह और जबड़े में बहुत दर्द हो रहा था. में डर रही थी कि अगर लंड पूरा खड़ा होने पे ससुरजी ने मेरे मूह को चोदना जारी रखा तो में तो मर जाऊंगी.
तभी अचानक हमारे घर का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई. मेरे पति घर पे आ गये थे. ससुरजी तुरंत खड़े हो के अपने कमरे की और दौड़ पड़े. में भी खड़ी हो गयी और अपने कपड़े इकट्ठे करके बाथरूम में घुस गयी. बाथरूम में जा के में काफ़ी देर तक रोती रही. मैने अपने प्यारे पति को धोका दिया था और मुझे इससे बहुत दुख हो रहा था.
मैने ठान लिया कि में अपने ससुर को आगे जा के कभी भी ऐसा मोका नही दूँगी कि वो मुझे चोद पाए.
अगले दिन सुबह के नाश्ते के वक़्त ससुरजी ने मेरे पति को कहा ‘किशोर बेटा मैं सोच रहा था कि ये जो तीन नर्स तुमने रखें हैं मेरी देखभाल करने के लिए उनको निकाल देते हैं’
‘जी ऐसा क्यूँ पिताजी’
‘ मेरी तबीयत अब काफ़ी बेहतर हो गयी हैं और सिर्फ़ दवाई टाइम पे लेने की बात हैं. इतना तो बहू भी कर सकती हैं’
‘जी ठीक हैं पिताजी, जैसी आप की मर्ज़ी, में आज ही उनको कल से ना आने की बात कह देता हूँ’
मैं समझ रही थी कि ससुरजी के दिमाग़ में क्या चल रहा हैं, पर मैने ठान लिया था कि में अब उनके चंगुल में फँसने वाली नही.
अगले दिन मैं दवाई लेके ससुरजी के पास गयी.
‘पिताजी आपकी दवाई का वक़्त हो गया’
‘अंदर आ जाओ बहू’
मैं कमरे में अंदर गयी तो मैने देखा कि ससुरजी पूरे नंगे हो के ज़मीन पे बैठे थे और मुझे मुस्कुरा कर देख रहे थे. उनका मोटा लंड शान से खड़ा था. वो लंड देख मेरे दिल में फिर से हलचल होने लगी पर मैने अपने आप को संभाला.
‘ये अच्छी बात नहीं ससुरजी, हमारे बीच जो हुआ वो फिर कभी नही होना चाहिए’ मैने ऐसा कह के दवाई उनके बगल पे ज़मीन पे रख दी. दवाई रख के मैं उठने लगी तो ससुरजी ने मेरा हाथ कस के पकड़ लिया. मैं अपना हाथ उनसे छुड़ाने की कोशिश कर रही थी. उन्होने मेरा हाथ खीच के अपने लंड की ओर ला दिया.
‘छोड़िए मुझे पिताजी, ये ग़लत बात हैं’
‘प्लीज़ बहू और कुछ नहीं पर थोड़ा हाथो से ही हिला दो’ ससुरजी मेरा हाथ अपने लंड पे दबा रहें थे, वो चाहते थे कि में उनका लंड अपने हाथो से पकड़लू पर मुझे वो मंज़ूर नहीं था. ससुरजी सुबह से उठके मेरे बारे में सोच के अपना लंड हिला रहें थे और अब बहुत ही उत्तेजित हो गये थे. उन्होने मुझे अब ज़बरदस्ती ज़मीन पे लेटा दिया और मेरे उपर बैठ गये. उनका लंबा लंड अब मेरे चेहरे पे था और वो लंड के उपर के हिस्से से मेरे होंठो पे रगड़ रहें थे. उनके लंड से बहुत ही गंदी बदबू आ रही थी. एक हाथ से उन्होने मेरे बाल पकड़के मेरे सर को मुड़ने से रोके रखा था.
‘ऐसा जुलम मत करो बहू, एक बूढ़े आदमी पे तरस खाओ, मूह खोलो अपना’ ससुरजी बहुत ही उत्तेजित हो गये थे और उनके लंड से अब वीर्य निकलने वाला था.
‘मुझे जाने दो पिताजी वरना में चिल्ला दूँगी’ ससुरजी को लगा कि में झूठ मूठ की धमकी दे रही थी और अब उनका झरना शुरू हो गया था.
‘आआहह बहू रानी तुम कितनी सुंदर हो आआआहह’ वो अपने काले लंड को मेरे चेहरे पे रगड़ते रगड़ते झरने लगे. मेरा गोरा चिकना चेहरा देख उनको बहुत ही मज़ा आ रहा था. मैने ठान लिया था कि में ऐसे पाप का हिस्सा अब नहीं बनने वाली, ससुरजी के लंड से वीर्य की पहली बूँद छूट के मेरे माथे पे गिरी, मैने अब चिल्लाना शुरू कर दिया
‘रामू, रमेश कहाँ हो तुम लोग’ घर के नौकरो को बुलाने से ससुरजी की गांद फॅट गयी. उनको पता था कि नौकर को बुलाने से वो भाग कर आ खड़े हो जाएँगे. उनके लंड से ढेर सारा वीर्य निकल रहा था और मेरे चेहरे पे गिर रहा था. अब डर कर वो खड़े हो गये और अपनी बाथरूम की तरफ जाने लगे. मैने कपड़े से अपना चेहरा सॉफ करना शुरू कर दिया. ससुरजी के लंड से अभी भी पैसाब के जैसे लगातार वीर्य बह रहा था. उनके बाथरूम मे घुसते ही घरके चार नौकर कमरे मैं दौड़े चले आए.
‘क्या हुआ मेम्साब’
‘जी कुछ नही, वो मुझे कॉकरोच दिखाई दिया इस लिए डर गयी थी, तुम लोग अब जाओ’
‘ठीक हैं मेम्साब’
‘अरे रामू, कल से तुम रोज़ सुबह पिताजी को दवाई देना, ठीक हैं ?’
‘ठीक हैं मेम्साब’
उस वक़्त से मैने ससुरजी को अकेले मिलना बंद कर दिया. अपने कमरे में जब भी जाती तो उसको अंदर से ताला लगा देती, और अगर ससुरजी से मिलना होता तो नौकर चाकर के सामने मिलती. मेरे बदन की बैचैनि मुझे बहुत ही सता रही थी. हर रोज़ मैं दो या तीन बार अपनी चूत को सहला सहला कर झरती. झरते वक़्त मेरे दिमाग़ के अंदर ससुरजी का मोटा लॉडा होता था. मैने सोचा कि उनके लंड के बारे में सोचने में कोई पाप नही.
मैं अपना सारा वक़्त अपने पागल बेटे सुभाष के साथ बिताया करती थी. काफ़ी दिन ऐसे ही बीत गये.
कुछ दिनो के बाद में एक दिन सुबह उठी और हर नहा कर नीचे नाश्ता करने गयी. नीचे जा कर देखा तो घर के नौकर दिखाई नही दे रहें थे घर पे कोई नही था. मुझे कुछ समझ में नही आया. तभी मैने ससुर जी की आवाज़ सुनी.
‘मैने सब को आज छुट्टी दे दी हैं, आज मेरा जनमदिन हैं’
मैने मूड के देखा तो ससुर जी पूरे नंगे मेरे सामने खड़े थे. उनका लॉडा पूरा खड़ा था और थोड़े झटके खा रहा था, उनके चेहरे पे मुस्कान थी. उनका बूढ़ा झुरियाँ वाला काला शरीर बहुत ही गंदा दिख रहा था.
‘कई दिनो से इसका इंतेज़ार था मुझे. आओ बहू, मेरे जनमदिन का जश्न मनाते हैं’ ऐसा कह के ससुरजी मेरी ओर बढ़े....
दोस्तो इस कहानी पर भी अपनी नज़रे इनायत कीजिए
तभी अचानक हमारे घर का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई. मेरे पति घर पे आ गये थे. ससुरजी तुरंत खड़े हो के अपने कमरे की और दौड़ पड़े. में भी खड़ी हो गयी और अपने कपड़े इकट्ठे करके बाथरूम में घुस गयी. बाथरूम में जा के में काफ़ी देर तक रोती रही. मैने अपने प्यारे पति को धोका दिया था और मुझे इससे बहुत दुख हो रहा था.
मैने ठान लिया कि में अपने ससुर को आगे जा के कभी भी ऐसा मोका नही दूँगी कि वो मुझे चोद पाए.
अगले दिन सुबह के नाश्ते के वक़्त ससुरजी ने मेरे पति को कहा ‘किशोर बेटा मैं सोच रहा था कि ये जो तीन नर्स तुमने रखें हैं मेरी देखभाल करने के लिए उनको निकाल देते हैं’
‘जी ऐसा क्यूँ पिताजी’
‘ मेरी तबीयत अब काफ़ी बेहतर हो गयी हैं और सिर्फ़ दवाई टाइम पे लेने की बात हैं. इतना तो बहू भी कर सकती हैं’
‘जी ठीक हैं पिताजी, जैसी आप की मर्ज़ी, में आज ही उनको कल से ना आने की बात कह देता हूँ’
मैं समझ रही थी कि ससुरजी के दिमाग़ में क्या चल रहा हैं, पर मैने ठान लिया था कि में अब उनके चंगुल में फँसने वाली नही.
अगले दिन मैं दवाई लेके ससुरजी के पास गयी.
‘पिताजी आपकी दवाई का वक़्त हो गया’
‘अंदर आ जाओ बहू’
मैं कमरे में अंदर गयी तो मैने देखा कि ससुरजी पूरे नंगे हो के ज़मीन पे बैठे थे और मुझे मुस्कुरा कर देख रहे थे. उनका मोटा लंड शान से खड़ा था. वो लंड देख मेरे दिल में फिर से हलचल होने लगी पर मैने अपने आप को संभाला.
‘ये अच्छी बात नहीं ससुरजी, हमारे बीच जो हुआ वो फिर कभी नही होना चाहिए’ मैने ऐसा कह के दवाई उनके बगल पे ज़मीन पे रख दी. दवाई रख के मैं उठने लगी तो ससुरजी ने मेरा हाथ कस के पकड़ लिया. मैं अपना हाथ उनसे छुड़ाने की कोशिश कर रही थी. उन्होने मेरा हाथ खीच के अपने लंड की ओर ला दिया.
‘छोड़िए मुझे पिताजी, ये ग़लत बात हैं’
‘प्लीज़ बहू और कुछ नहीं पर थोड़ा हाथो से ही हिला दो’ ससुरजी मेरा हाथ अपने लंड पे दबा रहें थे, वो चाहते थे कि में उनका लंड अपने हाथो से पकड़लू पर मुझे वो मंज़ूर नहीं था. ससुरजी सुबह से उठके मेरे बारे में सोच के अपना लंड हिला रहें थे और अब बहुत ही उत्तेजित हो गये थे. उन्होने मुझे अब ज़बरदस्ती ज़मीन पे लेटा दिया और मेरे उपर बैठ गये. उनका लंबा लंड अब मेरे चेहरे पे था और वो लंड के उपर के हिस्से से मेरे होंठो पे रगड़ रहें थे. उनके लंड से बहुत ही गंदी बदबू आ रही थी. एक हाथ से उन्होने मेरे बाल पकड़के मेरे सर को मुड़ने से रोके रखा था.
‘ऐसा जुलम मत करो बहू, एक बूढ़े आदमी पे तरस खाओ, मूह खोलो अपना’ ससुरजी बहुत ही उत्तेजित हो गये थे और उनके लंड से अब वीर्य निकलने वाला था.
‘मुझे जाने दो पिताजी वरना में चिल्ला दूँगी’ ससुरजी को लगा कि में झूठ मूठ की धमकी दे रही थी और अब उनका झरना शुरू हो गया था.
‘आआहह बहू रानी तुम कितनी सुंदर हो आआआहह’ वो अपने काले लंड को मेरे चेहरे पे रगड़ते रगड़ते झरने लगे. मेरा गोरा चिकना चेहरा देख उनको बहुत ही मज़ा आ रहा था. मैने ठान लिया था कि में ऐसे पाप का हिस्सा अब नहीं बनने वाली, ससुरजी के लंड से वीर्य की पहली बूँद छूट के मेरे माथे पे गिरी, मैने अब चिल्लाना शुरू कर दिया
‘रामू, रमेश कहाँ हो तुम लोग’ घर के नौकरो को बुलाने से ससुरजी की गांद फॅट गयी. उनको पता था कि नौकर को बुलाने से वो भाग कर आ खड़े हो जाएँगे. उनके लंड से ढेर सारा वीर्य निकल रहा था और मेरे चेहरे पे गिर रहा था. अब डर कर वो खड़े हो गये और अपनी बाथरूम की तरफ जाने लगे. मैने कपड़े से अपना चेहरा सॉफ करना शुरू कर दिया. ससुरजी के लंड से अभी भी पैसाब के जैसे लगातार वीर्य बह रहा था. उनके बाथरूम मे घुसते ही घरके चार नौकर कमरे मैं दौड़े चले आए.
‘क्या हुआ मेम्साब’
‘जी कुछ नही, वो मुझे कॉकरोच दिखाई दिया इस लिए डर गयी थी, तुम लोग अब जाओ’
‘ठीक हैं मेम्साब’
‘अरे रामू, कल से तुम रोज़ सुबह पिताजी को दवाई देना, ठीक हैं ?’
‘ठीक हैं मेम्साब’
उस वक़्त से मैने ससुरजी को अकेले मिलना बंद कर दिया. अपने कमरे में जब भी जाती तो उसको अंदर से ताला लगा देती, और अगर ससुरजी से मिलना होता तो नौकर चाकर के सामने मिलती. मेरे बदन की बैचैनि मुझे बहुत ही सता रही थी. हर रोज़ मैं दो या तीन बार अपनी चूत को सहला सहला कर झरती. झरते वक़्त मेरे दिमाग़ के अंदर ससुरजी का मोटा लॉडा होता था. मैने सोचा कि उनके लंड के बारे में सोचने में कोई पाप नही.
मैं अपना सारा वक़्त अपने पागल बेटे सुभाष के साथ बिताया करती थी. काफ़ी दिन ऐसे ही बीत गये.
कुछ दिनो के बाद में एक दिन सुबह उठी और हर नहा कर नीचे नाश्ता करने गयी. नीचे जा कर देखा तो घर के नौकर दिखाई नही दे रहें थे घर पे कोई नही था. मुझे कुछ समझ में नही आया. तभी मैने ससुर जी की आवाज़ सुनी.
‘मैने सब को आज छुट्टी दे दी हैं, आज मेरा जनमदिन हैं’
मैने मूड के देखा तो ससुर जी पूरे नंगे मेरे सामने खड़े थे. उनका लॉडा पूरा खड़ा था और थोड़े झटके खा रहा था, उनके चेहरे पे मुस्कान थी. उनका बूढ़ा झुरियाँ वाला काला शरीर बहुत ही गंदा दिख रहा था.
‘कई दिनो से इसका इंतेज़ार था मुझे. आओ बहू, मेरे जनमदिन का जश्न मनाते हैं’ ऐसा कह के ससुरजी मेरी ओर बढ़े....
दोस्तो इस कहानी पर भी अपनी नज़रे इनायत कीजिए