Hindi Sex Kahaniya माया- एक अनोखी कहानी - SexBaba
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Hindi Sex Kahaniya माया- एक अनोखी कहानी

hotaks444

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माया- एक अनोखी कहानी

सूत्रपात
सन 1950, चांदीपुर गांव…

पौ फटते ही उस जवान विधवा की नींद एक झटके के साथ खुली और वह अपनी हालत देखकर एकदम हक्की बक्की रह गई| वह बिल्कुल नंगी बिस्तर पर लेटी हुई थी, उसके कोमल अंगों में हल्का हल्का दर्द हो रहा था... मानो रात भर किसी ने उसके साथ सहवास किया हो|

उसने डरते-डरते अपनी दोनों टांगों के बीच के हिस्से को देखा और दंग रह गई!

उसका वह हिस्सा अब बिल्कुल साफ सुथरा था| उसके जघन के बलों का कोई नामोनिशान ही नहीं था... कमरे में वह बिलकुल अकेली थी पर एकदम नंगी... उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था… फिर वह धीरे-धीरे याद करने की कोशिश करने लगी और फिर उसे याद आने लगा…

पति की मौत के बाद उसके ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल दिया था| हालांकि इसमें उसकी कोई गलती नहीं थी... गलती अगर थी तो सिर्फ उसकी किस्मत की; जो वह शादी के बाद इतनी जल्दी विधवा हो गई| यहां तक की गांव वालों के दबाव में आकर मायके में भी उसको जगह नहीं मिली|

अब लोगों का क्या है? जितने मुंह उतनी बातें... कुछ लोगों ने कहा यह लड़की मनहूस है... यह लड़की एक अपशकुन है... यहां तक की लोगों ने यह तक कह दिया कि यह एक डायन है- जो कि शादी के बाद इतनी जल्दी ही अपने पति को खा गई... इसलिए समाज के ठेकेदारों ने यह फैसला किया किस लड़की का गांव में रहना बिल्कुल वाजिब नहीं था... यह शायद अपना बुरा प्रभाव पूरे गांव में फैला देगी... इसीलिए अब तो उसका न कोई घर था और न ही कोई ठिकाना और वह पिछले दो दिनों से वह इधर उधर भटक रही थी...


स्टेशन से तो रेल गाड़ी आती जाती रहती थी, बस फिर क्या था? जो गाड़ी उसे सामनी दिखी थी वह उसमें चढ़ गई और पिछले दो दिनों तक वह इधर उधर भटक फिर रही थी...

आखिरकार वह इस गांव में आकर पहुंची… इस गांव का नाम था चांदीपुर|

यहाँ वह क्या करे? कहां जाए कहां? किस से मदद माँगे? सर छुपाने के लिए कहाँ जगह ढूँढे? इस बात का कोई आता पता नही था...

कुछ ही दूर पर उसे एक मंदिर दिखा, जहां शायद आज कोई भंडारा लगा हुआ था| पिछले दो दिनों से उसको ठीक से खाना भी नहीं नसीब हुआ था... बहुत तेज भूख लग रही थी उसे, इसलिए वह मंदिर के पास जहां लोग खाना खाने के लिए बैठे हुए थे, वह वहां जाकर उनके साथ ही बैठ गई| आखिरकार सुबह सुबह उसको पेट भर के खाने को मिल गया|

भंडारा खत्म हो गया... भीड़ छठ गई लोगबाग अपने अपने रास्ते चले गए| लेकिन विधवा का कोई ठिकाना नहीं था ... इसलिए वह मंदिर के पास ही बैठी रही| सुबह से दोपहर हुई... दोपहर से शाम और फिर रात हो गई... विधवा वहीं बसुध सी होकर बैठी हुई थी अब तो उसके आंसू भी सूख चुके थे...

तब एक औरत उसके पास आई और उसने पूछा, “क्या बात है बहन? मैंने गौर किया कि तुम सुबह से यहां बैठी हुई हो, आखिर बात क्या है?”

विधवा ने अपना सर उठाकर उसको देखा, यह औरत उसे दस या बारह साल बड़ी होगी| उसने काले रंग की एक साड़ी पहन रखी थी जिसमें लाल रंग का मोटा सा बॉर्डर था| उसके बाल एक बड़े से जुड़े में सर के ऊपर बँधे हुए थे... उसमें शायद काली पीली और हल्के नीले रंग की गोटियों की माला बंधी हुई थी... वह काफी सेहतमंद दिख रही थी... विधवा ने सोचा कि शायद यह औरत कोई पुजारिन या साधिका होगी…

पिछले दो दिनों में किसी ने उससे कोई बात नहीं की थी| किसी ने उसका हाल चाल नहीं पूछा था… विधवा को लग रहा था कि मानो एक अरसा बीत गया हो किसी से बात किए हुए| इसलिए जब उस औरत ने उससे सवाल किया तो उसके आंसुओं का बांध टूट गया… उसने फूट फूट कर रो कर अपनी आपबीती सुनाई|

उस औरत को शायद विधवा पर तरस आ गया| उसने उसे गले से लगाकर दिलासा दिया और बोली, “कोई बात नहीं… कोई बात नहीं… मैं समझ सकती हूं कि तेरे ऊपर क्या बीती है; पर तू चिंता मत कर... तू मेरे घर चल... मैं वादा करती हूं कि मैं तुझे सहारा दिलवाउंगी| लेकिन आज तू मेरे साथ चल... तुझ जैसी जवान लड़की का इस तरह अकेले अकेले भटकते फिरना खतरे से खाली नहीं... चल बहन चल मेरे घर चल…”

उस औरत का घर गांव से थोड़ी ही दूर एक जंगल के पास वीराने में था| जहां वह अकेली रहती थी|

घर पहुंचने के बाद उस औरत ने उसे नए कपड़े दिए… सिर्फ एक की साड़ी, ब्लाउज पेटीकोट ना ही अंतर्वास और बोली, “जा बहन, जा कर नहा ले और यह साड़ी पहन ले…”

“लेकिन यह साड़ी तो रंगीन है, मैं विधवा यह साड़ी कैसे पहन सकती हूं?”

“कोई बात नहीं| यहां कोई नहीं देखेगा... नहाने के बाद अपने कपड़े धो लेना और सूखने को टाँग देना मैंने कहा था मुझ पर भरोसा करो मैं तेरी मदद करूंगी...”

उस घर में गुसलखाने के नाम पर एक बिना छत की चारदीवारी ही थी| लेकिन उस पर एक बाँस का दरवाजा ज़रूर था| घर के आंगन में कुएं से पानी भरकर वह नहाई... नहाते वक़्त ना जाने क्यों उसे लग रहा था कि कोई उसे देख रहा है... लेकिन उसने वहम मान कर अपने इस एहसास को नज़रअंदाज़ किया| अच्छी तरह से नहाने के बाद उसने अपने कपड़े धोए फिर अपने बालों को खुला ही रख छोड़कर वह वापस कमरे में आई|

रात काफी हो गई थी इसलिए उस औरत ने खाना लगा दिया था| विधवा भूखी थी, प्यासी थी इसलिए उसने तनिक भी देर नहीं की वह भी उस औरत के साथ बैठकर खाना खाने लगी| यह बिल्कुल सीधा सादा खाना था, दाल चावल और गाजर मटर पत्ता गोभी की एक सब्जी... लेकिन उसे यह खाना किसी दावत से कम नहीं लग रहा था| उसने गौर किया कि वह औरत बिल्कुल ठुस- ठुस कर एक जाहिल की तरह खा रही थी... न जाने क्यों कहीं से शराब की बू भी आ रही थी... कहीं इस औरत ने पी तो नही रखी हो?

इतने में भी उसने गौर किया कि उसे बड़ी जोरों की नींद आने लगी थी, आखिर इन दो दिनों की थकावट और इतने बड़े मानसिक तनाव के बाद ना जाने कहाँ कहाँ वह भटकती फिर रही थी... आज के दिन उसे दो जून भर पेट खाना मिला था... अब उसका शरीर जवाब दे रहा था… या फिर खाने में कोई नशीली चीज़ मिली हुई थी?

खाना खत्म करने के बाद वह बाहर से किसी तरह जब हाथ धोकर कमरे में दाखिल हो रही थी, तब वह डगमगाने लगी और एकदम गिरने को हुई... उस औरत ने दौड़कर आ करके उसे सहारा दिया और धीरे-धीरे उसको बिस्तर पर लेटा दिया और फिर बड़े प्यार से मुस्कुराती हुई उसके माथे, बालों और उसके गालों को सहलाने लगी... फिर उसे लगा कि वह औरत शायद आँचल हटा कर उसकी साड़ी ढीली कर रही है... लेकिन वह कुछ कर नहीं पा रही थी... शायद उस पर बेहोशी छा रही थी| उसके बाद कुछ देर के लिए उसकी आंखों के आगे बिल्कुल अंधेरा छा गया...

थोड़ी देर बाद उसने हल्के से अपनी आंखें खोली और न जाने क्यों उसे लग रहा था अब वह बिल्कुल नंगी लेटी हुई है... कमरे में सिर्फ मिट्टी का एक दिया जल रहा था उसकी रोशनी में और उसने अपनी धुंधली नज़रों से उसने देखा वह औरत उसके सामने खड़ी थी... वह भी बिल्कुल नंगी है उसके बाल खुले हुए थे... उसकी आंखें लाल और बड़ी-बड़ी हो रखी थी उसके हाथ में एक उस्तरा था... उसके बाद उसे कुछ नहीं याद…

अब उस दिन सुबह उस विधवा को जब होश आया तो उसने देखा कि वह बिल्कुल नंगी है... उसका यौनंग हल्का हल्का दुख रहा है... उसके बदन पर अगर कुछ था तो सिर्फ उसका चांदी का लॉकेट- जिस पर उस का नाम लिखा हुआ था- और इसे बचपन से उसने अपने गले में पहन रखा था…

अचानक उसने उस औरत को कमरे में दाखिल होते हुए देखा| वह औरत अपनी पुरानी वेश भूषा में थी और वह मुस्कुरा रही थी|

उसने अपनी जीभ से अपने सूखे होठों को चाटा... तभी विधवा ने गौर किया कि इस औरत की जीभ बीच में से कटी हुई और दो भागों में बटी हुई थी... बिल्कुल सांपों की तरह...

डरी डरी फटी फटी सी आंखों उसने उस औरत से नज़रें मिलाई…

उसने कहा, “अब तुझे किसी बात का डर नहीं है बहन, मैंने तुझे कहा था ना कि मैं तेरी मदद करूंगी? मेरी बातों का यकीन कर... मैं एक अच्छे से घर में तेरे रहने खाने का इंतजाम कर दूंगी... लेकिन मैं जो तेरी इतनी मदद कर रही हूं; इसके बदले मुझे दो चीजों की जरूरत है- जिसमें से एक मुझे कल रात को ही मिल गया और दूसरा उधार रहा... वह मैं तुझे बाद में- वक़्त आने पर- बताऊंगी…”
 
अध्याय १
सन 1972, चांदीपुर गांव… सूत्रपात के बाइस साल बाद

'अरे बाप रे! मुझे तो मालूम भी नही था कि वैधजी के घर से आते आते इतनी देर हो जाएगी| ', मैने सोचा, 'एक तो उनके घर मरीज़ों की इतनी भीड़ और उसके बाद ऐसी ज़ोरों की बारिश और कड़ाके की बिजली का गिरना| मुझे जल्द से जल्द घर पहुँचना ही होगा| छाया मौसी का मेरे बारे में सोच-सोच कर बुरा हाल हो रहा होगा|'

मैं वैध जी के यहाँ से छाया मौसी के लिए उनके जोड़ों के दर्द की दवाईयाँ ले कर उनके घर से लगे दवाखने से बाहर निकली ही थी कि बारीश शुरू हो गई| शाम के वक़्त से ही आसमान में काले घने बादल छाए हुए थे, छाया मौसी ने मुझे बार बार कहा था कि, “माया, मेरी बच्ची, एक छाता ले कर जा... बारिश आने वाली है... भीग जाएगी... तेरे बदन से तेरे कपड़े चिपक जाएँगे और आते जाते लोग तुझे घूर घूर कर देखेंगे... अब तू बड़ी हो गई है, थोड़ा तो बकिफ़ हो ले...”

लेकिन मैं कहाँ सुननेवाली थी? सो अब भुगत रही थी अपनी करनी का फल|

अच्छा हुआ था की बारीश की वजह से रास्ते में ज़्यादा लोग नही थे, बाज़ार भी लगभह खाली ही था, ज़्यादातर दुकानों में दुकानदार ही थे, खरीदारों की कोई भीड़ नहीं थी| बारिश से बचने के लिए मैं एक दुकान के छज्जे के नीचे खड़ी हुई थी... यह गाँव के सबसे बड़े व्यापारी की किराने की दुकान थी, इस दुकान में उनके कई नौकर चाकर काम किया करते थे, जैसा कि मैने कहा, फिलहाल बारिश की वजह से ग्राहकों का आना जाना नही था, इसलिए दुकान के नौकर चाकर खाली ही बैठे हुए थे और उनकी नज़रें मेरे उपर ही टिकी हुई थी| घूर रहे थे वे मुझे…

छाया मौसी ठीक ही कहतीं हैं| मैं अब बड़ी हो गई हूँ मुझे थोड़ा सम्भल कर रहना होगा| अब मैं बच्ची नही रही... साड़ी पहनने लगी हूँ... लोगों के सुना है कि लोग कहते हैं कि मैं बहुत सुंदर हूँ... दिन ब दिन मेरा रूप निखरता जा रहा है... चलती हूँ तो कूल्हे मटकते हैं... हर कदम पर मेरे सुडौल स्तन थिरक्ते हैं... जान पहचानवाले अब यह भी कहतें हैं कि मैं जवान हो गई हूँ|

दुकान के अंदर बैठे लड़कों को मै काफ़ी देर तक नज़र अंदाज़ करती रही, लेकिन कुछ देर रुकने के बाद ही मुझे लगने लगा की अब ज़्यादा देर यहाँ रुकना ठीक नही होगा| दुकान में बैठे लड़कों की बातें और उनकी हँसी की आवाज़ धीरे धीरे बढ़ रही थी और यह बारिश है कि रुकने का नाम ही नही ले रही थी|

आख़िरकार मैने फ़ैसला किया, भीगती हूँ तो भीग जाने दो| मुझे अब घर की तरफ निकलना ही पड़ेगा|
बस! मैं एक झटके से वहाँ से निकल पड़ी|

पर मैने गौर किया की मेरे वहाँ से निकलते ही जैसे दुकान में बैठे वह दो लड़के शायद मुझे छेड़ने के लिए निराशा की आहें भरने लगे| हाँ, लोग ठीक ही कहते हैं, मैं जवान हो गई हूँ|

आसमान में मानो बादल फट पड़े थे, तेज़ बिजली कौंध रही थी, बादल भी शायद अपनी पूरी ताक़त से गरज़ रहे थे… काफ़ी रात हो चुकी थी… मेरे आगे घना अंधेरा था... पर मैं तेज़ कदमों से घर की तरफ बढ़ने लगी| मैं भीग कर जड़ बन गई थी... मुझे मालूम था की छाया मौसी घर के दरवाज़े पर ही खड़ी हो कर मेरा रास्ता देख रही होगी और मैं जानती हूँ कि आज घर में मुझे छाया मौसी से डाँट पड़नेवाली है... क्या करूँ ग़लती तो मेरी ही है जो छाया मौसी के बार- बार कहने पर भी मैं छाता जो नही लेकर आई थी... लेकिन इतनी तेज़ बारीश में छाता किसी काम का नही आता और मुझे उस दिन जल्दी से जल्दी घर पहुँचना था क्योंकि उस दिन माँठाकुराइन जो हमारे घर आने वाली थी|

क्रमश:
 
अध्याय २

मेरे घर पहुंचते-पहुंचते बारिश रुक चुकी थी लेकिन मैं तो पूरी तरह भीग गई थी, इसलिए जैसा मैने सोचा था वैसा ही हुआ| घर के दरवाज़े की चौखट पर छाया मौसी खड़ी- खड़ी मेरा रास्ता देख रही थी| बारिश की वजह से बिजली भी गुल थी इसलिए छाया मौसी ने हर कमरे में यहां तक कि गुसलखाने में भी मोमबत्ती जला कर रखी थी|

घर पहुँचते ही उन्होने मुझे डांटा| पर मैने उनकी बातों का बुरा नही माना क्योंकि मैं जानती हूँ, यह सब उनका प्यार है मेरे लिए| इसलिए मैं सिर्फ़ सिर झुकाए, उनकी फटकार सुनती रही|

फिर मैने कहा, “मौसी, वैधजी ने दवाइयाँ दी हैं...”

छाया मौसी अभी भी बहुत गर्म थी मेरे उपर, वह बोलीं, “वह वैध सिर्फ़ दवाइयाँ ही देता रहेगा और जब भी तू उसके पास जाती है, वह तेरे सिर पर हाथ फेरेगा और तेरी चोटी को अपनी दो उंगिलयों और अंगूठे से मल मल कर तेरे से बातें करेगा...”, मौसी को यह अच्छा नही लगता था की वैधजी जैसे प्रौढ़ व्यक्ति मेरे बालों को छुएँ...

“पर मौसी आज तो मैं जूड़ा बना कर गई थी…”, मैं मूह दबाकर हंस दी|

छाया मौसी को यह कैसे बताऊं कि आज भी वैधजी ने मेरे सर पर खूब हाथ फेरा और उन्होंने मेरा जुड़ा खूब दबा दबा कर देखा| पहले की तरह आज भी उनकी निगाहें मेरी छाती पर ही टिकी थी… जब वैध जी ऐसा करते थे तब न जाने क्यों मुझे अच्छा भी लगता था और एक अजीब तरह की गुदगुदी होती थी मेरे बदन में... खास कर पेट के निचले हिस्से में... जब लोग बाग राह चलते मुझे घूरते हैं न जाने क्यों मुझे थोड़ा थोड़ा अजीब सा लगता है पर अच्छा भी लगता है क्योंकि निगाहें मुझ पर पड़ रही है... आख़िर वे मुझ पर ध्यान भी दे रहे हैं...

छाया मौसी मेरे ऐसे जवाब की उम्मीद नही कर रही थी, इसलिए वह जैसे भौंचक्की सी रह गई, फिर थोड़ा संभाल कर वह बोली, “ठीक है- ठीक है- अब जा करके नहा ले, अपने बदन से बारिश के पानी को धो डाल| इस तरह से बारिश में भी कराना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता अगर तू भी बीमार पड़ गई तो क्या होगा, मैं तेरे लिए नए कपड़े निकाल कर रखती हूं… माँठाकुराइन आती ही होंगी… अब शायद उनकी दी हुई दवाई और दुआयों से मेरे इस जोड़ों के दर्द का कुछ इलाज हो सके|”

मैंने सोचा रात काफ़ी हो चुकी है और उपर से इतनी भारी बारिश और कड़कती हुई बिजली; ऐसे में माँठाकुराइन कैसे आएंगी? आखिरकार यह औरत है कौन? मैंने तो पहले कभी इनको नही देखा था, बस छाया मौसी इनके बारे में खूब बातें किया करती थी… क्यों छाया मौसी इतना मानती हैं इस औरत को? आखिर क्या है इस औरत का रहस्य?

मैं ऐसा सोच ही रही थी कि छाया मौसी ने कहा, “अब खड़ी खड़ी सोच क्या रही है, लड़की? जा जाकर नहा ले...”, फिर उन्होने बड़े प्यार से मेरे से कहा, “तेरे बाल सूख जाने के बाद मैं तेरे बालों में कंघी कर दूंगी|”

मेरे कपड़ों में जगह-जगह कीचड़ लग गए थे इसलिए मैं दूसरे कमरे में चली गई और वहां मैंने अपने सारे कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगी हो गई| कमरे में खुंटें से तौलिया लटक रहा था उसे उठाकर मैं सीधे कमरे से लगे गुसलखाने में घुस गई|

आह! मौसम अच्छा है| आज मैं साबुन घिस घिस कर नहाउंगी| यही सोचते हुए मैं गुसलखाने में घुसी और अपने बालों को खोलकर वहां रखी जलती हुई मोमबत्ती की रोशनी में बाल्टी में भारी पानी को माग्गे में भर कर अपने बदन पर पानी डालने लगी…

हमारे गुसलखाने में दो दरवाजे थे उनमें से एक बाहर की तरफ खुलता था| बाहर के दरवाजे में दो तीन छेद थे, न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि बाहर से कोई मुझे देख रहा है... लेकिन मैंने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया और मैं वैसे ही नंगी नहाती रही... अपने बदन पर साबुन घिस घिस कर…

छाया मौसी इतनी तकलीफ होने के बावजूद रसोई में घुसकर मछलियों के पकौड़े तल रही थी| सुबह जब मैं बाजार गई थी तो उन्होंने मुझसे इन मछलियों को लाने के लिए कहा था| जब घर लौटी थी तब मैंने देखा कि पड़ोस के मोहल्ले का लड़का आया हुआ है| उसने मौसी को एक थैला दिया जिसमें शायद कांच की कुछ बोतलें थी, मैंने पूछा भी था की “मौसी इस थैले में क्या है?”

लेकिन मौसी ने मुझे जवाब नहीं दिया वह बोली, “कुछ नहीं, माँठाकुराइन के लिए पीने के लिए...”, इतना कहकर उन्होंने मुझे घर के बाकी कामों में लगा दिया| आखिरकार शाम को तो मुझे उनकी दवाइयां लाने के लिए वैध जी के यहाँ जाना ही था... और आज घर में हमारी मेहमान- माँठाकुराइन आने वाली थीं|

***

नहाने के बाद मैं अपने कमरे में जा कर आईने के सामने वैसे ही बिल्कुल नंगी खड़ी होकर अपने आप को और अपनी जवानी को निहारती हुई अपने बालों को तौलिए से पोछ रही थी… मुझे इस तरह से आईने के सामने खड़ी होकर अपने आप को निहारना अच्छा लगता है, कमरे का दरवाजा बंद था; पर बाहर से आते हुई आवाज से मुझे पता चला कि घर में कोई आया है और यह एक औरत ही है|

मेरा अंदाजा सही था कि औरत कोई और नहीं, माँठाकुराइन ही है|

मैंने अपने बाल खुले ही रख छोड़े| छाया मौसी ने कहा था कि वह मेरे बालों में कंघी कर देगी और वैसे भी मुझे माँठाकुराइन जैसी गणमान्य महिला को प्रणाम भी करना था... बिल्कुल गाँव के तौर तरीकों जैसे...

जैसे तैसे मैंने मौसी के निकाले हुए कपड़े पहने| अजीब सी बात है मौसी ने मेरे लिए सिर्फ एक साड़ी, पेटिकोट और एक ब्लाउज ही निकाल कर रखा था और उन्होंने मेरे लिए अंतर्वास नहीं निकाले थे, शायद भूल गई होंगी| यह ब्लाउज मेरे लिए थोड़ी ओछी पड़ती थी और इसके हत्ते भी नहीं थे और इस ब्लाउज को पहनने से मेरे विकसित स्तनों का विपाटन काफी हद तक ज़ाहिर होता था…

मैं यह सब सोच रही थी कि बाहर से दूसरे कमरे से छाया मौसी ने मेरे को पुकारा, “अरी ओ माया? कहां रह गई जल्दी से बाहर आ लड़की...”

मैंने जैसे-तैसे जल्दी-जल्दी कपड़े पहने और बाहर वाले कमरे में चली गई जहां छाया मौसी और माँठाकुराइन पलंग पर पालती बैठी हुई बातें कर रहीं थी|

माँठाकुराइन की उम्र शायद 55 साल से ऊपर की थी| वह मौसी से उम्र में शायद दस बारह साल बढ़ी होंगी; लेकिन उनके बदन में एक अजीब सा कसाव था उनके बाल कच्चे-पक्के और करीब करीब कमर के नीचे तक लंबे थे और अभी भी काफी घने थे| उन्होंने अपने बालों को खुला छोड़ रखा था| अजीब सी बात है कि इतनी बारिश के बावजूद भी न जाने क्यों वह बिल्कुल भी भीगी नहीं | उनके बदन पर कोई ब्लाउज नहीं था, उन्होंने सिर्फ एक साड़ी पहन रखी थी साड़ी का रंग काला था और उस पर लाल रंग का चौड़ा बॉर्डर था| पलंग के पास जमीन पर एक बड़ा सा थैला रखा हुआ था जो माँठाकुराइन शायद अपने साथ लाई थी|

मौसी के सिखाए तौर-तरीकों के अनुसार मैं जमीन पर घुटनों के बल बैठ गई और अपना माथा जमीन पर टेक कर अपने खुले बालों को सामने की तरफ फैला दिया ताकि माँठाकुराइन मेरे बालों पर पैर रखकर मुझे आशीर्वाद दे सके|

क्रमश:
 
अध्याय ३

माँठाकुराइन ने अपने दोनों पैरों के तलवों को उनके सामने एक मखमली फुज्जीदार रेशमी शाल तरह फैले हुए मेरे बालों पर रखा है और उसके बाद वह फिर पैर उठाकर पालती मारकर बैठ गई|

मैंने उसी झुकी हुई हालत में कहा, “छाया मौसी आप भी अपने पैर मेरे बालों पर रखिए उसके बाद ही मैं अपना सर उठाऊंगी|”

“अरी! अरी! पागल लड़की यह तू क्या कह रही? मैं भला तेरे बालों में अपना पैर क्यों रखूंगी?”, मौसी हिचकिचा रही थी|

मैने कहा “तो क्या हुआ मौसी? तुम तो मेरी मौसी हो, मेरी बड़ी हो| मुझे आशीर्वाद नहीं दोगी?”

मौसी अपने जोड़ों के दर्द से लड़ती हुई अपनी टांगों को बिस्तर से उतार कर मेरे बालों पर रखा फिर वह भी वापस पालती मारकर बैठ गई|

उनके चरणो की धूल कों अपने सर में लेकर जैसे ही मैं उठ कर बैठी, मेरा आंचल सरक गया| मैं वह तंग ब्लाउज पहन रखा था और मेरे अच्छी तरह से विकसित सुडौल स्तन और उनका विपाटन माँठाकुराइन और छाया मौसी के सामने बिल्कुल बेपर्दा हो गया.... यहाँ तक कि मेरे ब्लाउज में से मेरी चुचियाँ भी साफ उभर आई थी, वह भी उन दोनों एक ही झलक में पक्का साफ़ देख लिया होगा... हाय दैया!

मैंने जैसे-तैसे जल्दी-जल्दी अपना आंचल संभाला उसके बाद अपने बालों को गर्दन के पास इकट्ठा करके एक जुड़ा बना कर हाथ बँधे उन दोनों औरतों के सामने खड़ी हो गई| आखिर मैंने अपने बड़ों की पैरों की धुल को अपने माथे पर लिया था, ऐसे कैसे मैं अपने बाल यूँ ही खुले छोड़ दूँ?

“अरी वाह, छाया!”, माँठाकुराइन ने मुझे काफ़ी देर नख से शीख तक निहारने के बाद बोली, “आज बहुत दिनों के बाद मैंने किसी लड़की के अध्-गीले बालों पर अपने पैर रखे हैं, मुझे बहुत अच्छा लगा…. यह लड़की तो गाँव के तौर तरीकों और तहज़ीबों से पूरी तरह वाकिफ़ लगती है... अच्छे संस्कार हैं इसके... मैं तो न जाने कब से ऐसी ही एक लड़की की तलाश में हूं जिसे मैं अपने पास अपनी रखैल (नौकरानी) बनाकर रखूं… कौन है यह? पहले तो तूने इस लड़की ज़िक्र नहीं किया था... फिर कौन है यह लड़की?”

छाया मौसी जैसे थोड़ा सोच में पड गई| उन्हे अपने जीवन की कुछ पुरानी बातें जो याद आ गई... उसने अपनी नज़रें माँठाकुराइन के चेहरे से हटा कर कमरे एक कोने में देखने लगी, जैसे की शायद अपनी पिछली ज़िंदगी की यादों के कुछ पन्नों पलट रहीं हों, फिर वह बोली, “हाँ, माँठाकुराइन, आपने सही कहा, मैं आप तो जानती ही हैं... शादी के कुछ ही दिनों बाद पति की मौत हो गई थी... फिर क्या था? ससुरालवालों ने मुझे घर से निकाल दिया, सिर्फ़ अठारह साल की थी मैं तब| मेरे मयके के गाँववालों ने भी मुझे घर में नही रहने दिया, उनका मानना थी की मैं शादी के बाद ही अपने पति को खा गई... शायद मैं इस दुनियाँ में अपशकुन बन कर आई हूँ... उस वक़्त अगर आप की सिफारिश की वजह से दुर्गापुरवाले बक्शी बाबू और उनकी पत्नी नें मुझे सहारा नही दिया होता; तो मैं ना जाने किस हाल में होती... आप तो जानती ही है कि यह उन्ही का घर है... उन्होने मुझे यहाँ बतौर नौकरानी के हिसाब से रहने को दिया...”

इतना कहते- कहते छाया मौसी की आँखों में आँसू आ गये| मैने अपना आंचल ठीक करके, उसके एक कोने से छाया मौसी के आँसू पोंछे और उनके एक कंधे पर अपना सिर रख कर और दूसरे हाथ से उनका पीठ सहला- सहला उन्हे दिलासा देती रही|

“यह बातें तो मैं जानती हूँ, छाया...”, माँठाकुराइन नें बड़े प्यार से मेरे चेहरे और बालों में हाथ फेरा और जैसे उन्होंने फिर से पुछा, “लेकिन तू ने अभी तक यह नही बताया कि आख़िर यह लड़की है कौन?... मैं जानती हूँ की बक्शी बाबू तेरे उपर बहुत मेहेरबान भी थे और यह लड़की तेरी बेटी की उम्र की तो ज़रूर है”, माँठाकुराइन के चेहरे पर एक टेढ़ी सी मुस्कान खिल उठी... माँठाकुराइन इस बात की ओर इशारा कर रही थी कि मैं अपने पिता और छाया मौसी के अवैध संबंध की निशानी हूँ| मैंने उनकी इस बात का बुरा नहीं माना, क्योंकि ऐसी बातें मैं पहले भी सुन चुकी हूं| लोग सोचते थे की छाया मौसी मेरे पिताजी की रखैल थी| अब असलियत का तो मुझे नहीं पता लेकिन मैंने इस बारे में इतना सुन रखा था कि अब मुझे इन बातों का कोई असर ही नहीं होता था| चाय मौसी ने अभी तक कुछ नहीं बोला था, वह बस सिसकियाँ भर रही थी... लेकिन माँठाकुराइन मुद्दे पर अड़ी रहीं और बोलीं, “पर यह लड़की तेरी पैदा की हुई तो नही लगती है, बहुत ही सुंदर है यह, हाँ मेरे हिसाब से इसका रूप-रंग अभी और भी निखरेगा, लेकिन कौन है यह?... पड़ौस की रहनेवाली? या फिर इसे तू किसी पेड़ से तोड़ कर लाई है... आख़िर अगर तू अपना सारा कुछ बेच भी देगी तो भी इस तरह की लड़की को किसी गुलाम बाजार से खरीद के घर में अपनी रखैल बनाकर रखने के पैसे नहीं जुटा पाएगी तू… ऐसी खूबसूरत सी हूर को कहीं से उठा के तो नही ले कर आई?... आ- हा- हा- हा”, इतना कह कर माँठाकुराइन ठहाका मार कर हंस पड़ी…

यह सुन कर मैं थोड़ा चौंक सी गई, की माँठाकुराइन यह क्या कह रहीं हैं? लेनिक फिर मैने सोचा कि शायद माँठाकुराइन मज़ाक कर रही थीं, छाया मौसी का मिज़ाज ठीक करने के लिए, लेकिन वह मेरी तारीफ़ भी तो कर रही थी… और वैसे भी आख़िर किस लड़की को माँठाकुराइन जैसी एक प्रसिद्ध और सम्मानित औरत के मूह से अपनी तारीफ सुनना अच्छा नही लगेगा?

माँठाकुराइन ने गौर किया कि मैं अपनी ही तारीफ सुनकर शर्म से लाल हो रही थी...

अब छाया मौसी भी थोड़ा मुस्कुराके बोली, “हा- हा- हा... नही, नही यह बक्शीजी की ही बेटी है| बक्शीजी तो वैसे भी कारोबार के सिलसिले में गाँव से दूर शहर में रहा करते थे, यहाँ इस गाँव के इस तीन कमरों के दो मंज़िला मकान में बक्शी जी की विधवा माँ और उनकी बीवी के साथ मैं रह रही थी..." फिर उन्होंने मेरे उद्देश में कहा, "यह भी मेरी तरह अभागन है, माँठाकुराइन| बक्शीजी की माँ को तो एक दिन परलोक सिधारना ही था... बेचारी बुढ़िया चल बसी एक दिन... उसके बाद उसके बाद इसकी मां- बेचारी को न जाने कौन सी बीमारी हुई थी- वह भी चल बसी… अपनी बीवी की भी मौत के बाद बक्शीजी भी जैसे बेसुध से हो गये थे... वह इसे मेरी देख रेख में ही छोड़ कर शहर में अपना कारोबार सम्भलने लगे... पहले तो वह हर महीने गाँव का चक्कर लगते थे, पर धीरे-धीरे उनका यहाँ आना जाना जैसे रुक सा गया... लेकिन महीने के महीने घर चलाने के और इसकी देख रेख के पैसे वह बराबर भेजते रहते हैं... तीन साल की भी नही थी यह जब इसकी माँ भी चल बसी थी... तबसे मैं ने ही इसे पाल पोस कर बड़ा किया है...”

एक बार फिर मैने गौर किया कि माँठाकुराइन मुझे न ज़ाने किस इरादे से घुरे जा रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि उनकी नज़र जैसे मेरे पुरे बदन को छु -छु कर परख रही थी... फिर वह मुस्कुराके बोली, “मैने ठीक ही समझा था, मैं इसको एक झलक देख कर ही समझ गई थी कि यह लड़की ज़रूर एक अच्छे और ऊँचे जात की है…”

"हां माँठाकुराइन! पर क्या करूं मुझे मैं तो अपने जोड़ों के दर्द से लाचार हूं, कुछ काम ही नहीं कर पाती कहां मैं इस लड़की की देखभाल करूंगी और कहा यह मेरे लिए रखैल की तरह खट-खट के मर रही है... एक दासी एक बांदी की तरह घर के सारे काम कर रही है यह...."

माँठाकुराइन सीधे मेरी आँखों में न जाने क्या देख रही थी? मैने अपनी नज़रें झुका ली|

माँठाकुराइन ने मुझ से कहा, “ज़रा पास आ तो री छोरी…”

क्रमश:
 
अध्याय ४

माँठाकुराइन जैसा कहा मैंने वैसे ही किया| मैं उनके बगल में जाकर बैठ गई| वह बड़े प्यार से मेरे सर पर मेरी पीठ पर अपने हाथों से मुझे सहलाती हुई बोली, “क्या उम्र है तेरी, छोरी?”
मैंने कहा, “जी उन्नीस साल...”

“तेरी नदिया का बांध कब टूटा?”

यह सुनकर मैं थोड़ा शर्मा गई क्योंकि मुझे पता था माँठाकुराइन यह जानना चाहती थी कि मेरा मासिक किस उम्र से शुरू हुआ है| मैंने मुस्कुराते हुए सर झुका कर कहा, “जी आज से करीब सात आठ साल पहले से ही शुरू हो गया था…”

“फिर तो सबकुछ ठीक ही चल रहा है… बड़ी हो गई है तू... तेरी जवानी का फल पक चुका है... बहुत सुंदर भी है तू... मुझे तू पसंद है| यह लड़की तो सयानी हो गई है; देख छाया… मैं तो हूं एक तांत्रिक औरत… मैं तेरे जोड़ों का दर्द ठीक कर दूंगी, लेकिन मेरी क्रिया कर्म के लिए मुझे ऐसी जवान कच्ची उम्र की लड़की की जरूरत थी| अच्छा हुआ यह लड़की तेरे साथ ही रहती है वरना मैं तो सोच रही थी कि बारिश की वजह से जितनी देर हो गई पता नहीं किसको बुला कर लाना पड़ेगा कौन मिलेगी इस वक्त? कहां मिलेगी? जैसा जैसा मैं कहूंगी क्या तू इस लड़की से वैसा वैसा करवाएगी, छाया?”

माँठाकुराइन वैध जी की तरह मेरा बड़ा सा जुड़ा दबा दबा कर देख रही थी मानो अंदाजा लगा रही हो कि मेरे बाल अगर खुल जाए तो कितने लंबे दिखेंगे| हालांकि जब मैंने उनको प्रणाम किस करने के लिए जमीन पर घुटने टेक कर बैठ के अपना माथा जमीन पर टिका कर अपने बालों को आगे की ओर फैला दिया था, तब शायद उन्होंने देखा होगा कि मेरे बाल बहुत ही लंबे हैं, पर उनका आशीर्वाद लेने के बाद ही मैं उठ कर खड़ी हो गई थी और अपने बालों को समेट कर जुड़े में बाँध लिया था तो शायद उन्होंने गौर नहीं किया होगा| कुछ भी हो उनका मुझे इस तरह से छूना मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था| क्या बड़ी हो जाने से, जवान हो जाने से, ऐसा ऐसा महसूस होता है?

“जैसा आप कहेंगी माँठाकुराइन, मैं वैसा ही करूंगी और मेरी यह लड़की; मेरी लाडली... मेरा सब कहा मानती है| इसके बारे में आप चिंता मत करना| आपको इससे जो भी काम करवाना हो आप एक बार कह कर तो देखो यह जरूर कर देगी| बोलिए क्या हुकुम है इसके लिए?”, छाया मौसी बोलीं| वह शायद किसी भी सूरत में अपने इस जोड़ों के दर्द का इलाज करवाना चाहती थीं|

“बड़ी खुशी की बात है और मेरी पसंद की मछलियां भी तो तू लाई होगी?”

“जी हां, माँठाकुराइन; मुझे मालूम है इसलिए सुबह ही मैंने आपका सामान मंगवा लिया था”

“अरे वाह! तो देर किस बात की है? अपनी इस लड़की से बोल रसोई में जा कर के हम तीनों के लिए पीने के लिए ले कर आए और साथ में मेरी पसन्द की मछलियाँ भी”

छाया मौसी ने बड़े प्यार से मेरी तरफ देखते हुए बोली, “जा माया जा, हम तीनों के लिए थाली में खाना परोस के ला| माफ करना बिटिया मैं तेरे से दासी बंदियों की तरह काम करवा रही हूं| कहां मैं तेरा ख्याल रखूंगी लेकिन इस कमबख्त जोड़ों के दर्द की वजह से मैं कोई काम ही नहीं कर पाती... और हां सुन रसोई में रखे थैले में एक शराब की बोतल होगी उसमें से एक गिलास में एक चौथाई शराब और बाकी पानी डालकर माँठाकुराइन के लिए लेकर आना और माँठाकुराइन की थाली मैं कम से कम चार मछलियां रखना|”

मैं उठ कर रसोई की तरफ़ जाने को हुई कि माँठाकुराइन बोलीं, “इसके बाल अभी भी गीले है| इससे कही कि अपने बॉल खोल दे| मौसम अच्छा नही है, मैं नही चाहती कि इसे ठंड लग जाए... मुझे अभी इसके बदन और जवानी की ज़रूरत होगी|”

छाया मौसी ने मुस्कुराकर बड़े प्यार से मेरे से कहा, “हां हां ठीक बिटिया- अपने बाल खोल दे”

मैं उठ कर खड़ी हुई अपने बालों बालों का जुड़ा खोलने लगी कि कितने में माँठाकुराइन बोली “नहीं, नहीं इसके बाल मैं खोलूँगी...”

मैं भी मुस्कुरा कर उनकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गई| माँठाकुराइन ने बड़े प्यार से मेरे बाल खुले और उन्होंने मेरी पीठ पर उनको फैला दिया मेरे बाल लंबे हैं, मेरे नितंबों के नीचे तक पहुंचते हैं यह देख कर उनको जरूर अच्छा लगा होगा|

“वाह क्या काले घने लंबे रेशमी बाल है तेरे”, माँठाकुराइन ने तारीफ की|

उन्होंने मेरे बालों को सहलाया और फिर मेरे कूल्हे थपथपा कर बोली, “जा छोरी मेरे लिए कुछ पीने को लेकर आ...”

मेरे रसोई में चली गई|

इतने में माँठाकुराइन छाया मौसी से बोली, “बड़ी हो गई है यह लड़की... जवान हो गई है... सुंदर है... इसका खून गर्म है, क्या इरादा है? क्या सोच रखा है इसके बारे में? कोई अच्छा सा लड़का देखकर के इसकी शादी करवा दोगी क्या?”

“अब क्या बोलूं? मुझे एक न एक दिन मुझे इसे विदा तो करना ही होगा| इसके बाप का तो कुछ अता पता है ही नहीं... बस पैसे ही भेजता रहता है| इसकी शादी करवाने के लिए मुझे ही कुछ ना कुछ करना होगा|”, छाया मौसी ने कहा|

“तूने तो इस लड़की को बिल्कुल सांस्कारिक तौर से पाल पोस कर बड़ा किया है, लेकिन तूने इसको पुराने जमाने की रखैल तहज़ीब के बारे में नहीं बताया?”, माँठाकुराइन ने पूछा|

“लेकिन यह सब तो दासी बांदियों के लिए होता था... और मैने तो इस लड़की को अपनी बेटी की तरह पाला है... इस लिए हमारी इस बारें में कोई बात ही नही हुई...”, छाया मौसी बोलीं|

“अगर तूने इसकी शादी करा दी तो यह तो अपने ससुराल चली जाएगी... और तू तो बिल्कुल अकेली पड़ जाएगी| फिर तेरी देखभाल कौन करेगा? अभी घर में यह जवान लड़की है घर के सारे काम काज कर लेती है अच्छा होगा तो इसे अपने पास ही रख|”

“लेकिन ऐसे कैसे मैं इसे अपने पास रखूं? एक न एक दिन तो इसकी शादी करानी ही होगी”

“वह बाद की बात है लेकिन फिलहाल कुछ सालों तक तू इसे अपने पास ही रख…”

“यह आप क्या कह रही है माँठाकुराइन?” मौसी थोड़ा अचरज के साथ बोली|

“मैं ठीक ही कह रही हूं यह तेरे पास रहेगी मैं भी इसका इस्तेमाल कर सकूँगी| तंत्र मंत्र की क्रिया कलापों में जवान लड़कियों की यौन ऊर्जा की जरूरत पड़ती है| इस लड़की के अंदर मुझे लगता है वह सब कुछ है जो मुझे चाहिए... मैं आज ही इसे वश में कर दूंगी| जब तक तू चाहे है यह तेरी रखैल- तेरी दासी बनके रहेगी साथ में यह मेरी भी सेवा करेगी|”

“लेकिन माँठाकुराइन मैं ऐसा कैसे कर सकती हूं? आखिर यह किसी और की लड़की है मैं तो सिर्फ इसकी देखभाल करती हूं...”, छाया मौसी थोड़ा हिचकिचाई|

माँठाकुराइन ने छाया मौसी को डांटते हुए कहा, “बस बस ज्यादा हिचकिचा मत| तू मुझे ज़ुबान दे चुकी है और भूल गई मेरे कितने एहसान है तेरे ऊपर? बख्शी बाबू को मैंने ही राजी करवाया था तुझे घर में पनाह देने के लिए| अब तुझे अपना उधार चुकाने का वक़्त आ चुका है... तेरे पास यह जो लड़की है, मुझे चाहिए… और तुझे इस लड़की को मुझे देना ही होगा...”

क्रमश:
 
अध्याय ५

छाया मौसी और माँठाकुराइन के बीच क्या बातचीत हुई इसका मुझे कोई अता-पता नहीं था| लेकिन रसोई में से मैं उनकी आवाज सुन रही थी| माँठाकुराइन ने जब डाँट कर मौसी से कुछ कहा यह भी मुझे सुनाई दिया था... खैर जो भी हो मैं एक थाली में मछलियां सजाकर और दूसरी थाली में दो गिलास और शराब की बोतल ले कर छाया मौसी के कमरे कमरे में दाखिल हुई, तो देखा कि माँठाकुराइन ज़मीन पर बैठी हुईं हैं अपने आगे उन्होने तीन मोमबत्तियाँ जला रखी है|

उनका झोला उनके पास ही रखा हुआ है उसमें से उन्होने एक मिट्टी से बना लोटा निकाला और एक शीशी में से शायद कोई भस्मी जैसी कोई चीज़ निकली|

कमरा मोमबत्तियों की सुनहरी रौशनी से भरा हुआ था| खुली हुई खिड़कियों से ठंडी- ठंडी हवा आ रही थी और बाहर फिर से जोरों की बारिश शुरू हो गई थी- बिजली कड़क रही थी| छाया मौसी सेहरे पर एक अज़ीब सा भाव लिए पलंग पर बैठी हुई थी|

मैने दोनों थालियाँ माँठाकुराइन सामने रख दी|

माँठाकुराइन ने मुझसे कहा, “लड़की इस लोटे में कुए का पानी भरकर ला|”

“लेकिन बाहर तो बारिश हो रही है, माँठाकुराइन”, मैंने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा|

“जानती हूं लेकिन मेरे तंत्र-मंत्र के लिए कुएं का पानी जरूरी है मुझे तेरी मौसी का इलाज करना है ना, इसलिए…”

मैंने मुस्कुराकर उनके हाथों से वह मिट्टी का लोटा लिया और भरी बारिश में आंगन के कोने में खुदे हुए कुएं से पानी लेने दौड़ती हुई गई| घर से बस में दो कदम ही बाहर निकली थी कि भारी बारिश में मैं पूरा का पूरा भीग गई| वापस आते आते मैं यही सोच रही थी कि मौसी ने तो अपना इतना इलाज करवाया लेकिन उनके जोड़ों का दर्द आज तक ठीक नहीं हुआ, शायद तंत्र-मंत्र से वह ठीक हो जाए|

मैं वैसे ही भागती हुई कमरे में दाखिल हुई|

मैंने देखा की छाया मौसी भी माँठाकुराइन के साथ नीचे ज़मीन पर बैठ कर शराब पी रही है|

जिंदगी में आज तक कभी मैंने छाया मौसी को शराब पीते हुए नहीं देखा था लेकिन आज देख रही थी और तो और न जाने क्यों मुझे लगा कि माँठाकुराइन मुझे एक अजीब सी ललचाई नजरों से देख रही है| उनकी आंखों में कुछ ऐसा था जिसे देख कर मैं थोड़ा डर सा गई| मुझे याद है एक दिन मैं बाजार से लौट रही थी, तब रस्ते में एक पेड़ के नीचे दो रिक्शावाले बैठे हुए थे| वह मुझे कुछ इसी तरह से ही देख रहे थे| उनकी आंखों में एक हवस की प्यास थी, “अच्छा हुआ कि तू मेरी तांत्रिक क्रिया से बिल्कुल पहले इस अमावस की रात की बारिश में भीग कर नहा गई”

मैंने पानी का लोटा उनके सामने रखा, इतने में माँठाकुराइन बोली, “मेरे सामने जरा घुटनों के बल बैठ जा लड़की मैं तेरे माथे पर इस भस्मि का तिलक लगा देती हूँ”

उन्होंने जैसे ही मेरे माथे पर वह तिलक लगाया मेरा सर चकरा सा गया और आंखों के सामने कुछ देर के लिए अंधेरा सा छा गया… उस वक्त मुझे तो मालूम ही नहीं था की माँठाकुराइन ने वह तिलक मुझे वश में करने के लिए लगाया था और उसका असर भी होने लगा था...

मैं थोड़ा संभल कर बोली, “मैं कपड़े बदल कर आती हूं”

“इसकी कोई जरूरत नहीं, मैं यही चाहती हूं कि तू अपने सारे कपड़े यही उतार दे.... मैं तुझे नंगी देखना चाहती हूं…मैं तेरी मौसी के लिए जो तांत्रिक क्रिया करने जा रही हूं उसके लिए तुझ जैसी एक जवान लड़की को अपनी सारी शरम भूल कर मेरे सामने बिल्कुल खुली नंगी होना पड़ेगा...

यह सुनकर मैं एकदम चौंक गई| अजीब सी बात है माँठाकुराइन का ऐसा कहने पर भी मौसी ने उनसे कुछ नहीं कहा... लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी मैं पूरी तरह माँठाकुराइन के वश में आ चुकी थी|

मैं चुपचाप उठ कर खड़ी हो गई धीरे धीरे अपनी साड़ी उतारने लगी|

“लड़की तुझे याद होगा मैंने कुछ देर पहले ही रखैल तहज़ीब का जिक्र किया था; मैं जो तंत्र-मंत्र करने वाली हूं उसके लिए मुझे एक रखैल की जरूरत है; जो कि तेरे जैसे ही जवान हो, खूबसूरत हो और जिसका खून तेरे खून जैसा गर्म हो... और मैं उसे अपनी दासी- एक बाँदी- की तरह इस्तेमाल कर सकूं| रखेल तहज़ीब के तहत दासियाँ- बांदिया को बदन पर कपड़े रखने की इज़ाज़त नही होती है| इसलिए जबतक मैं ना कहूँ तू इस घर में नंगी ही रहेगी... न तो तू कपड़े पहनेगी और ना ही अपने बालों को बांधेगी... मेरे मुझे तेरे बाल बिल्कुल खुले के खुले चाहिए और हां तेरा बदन बिल्कुल नंगा... ”, माँठाकुराइन ने कहा|

छाया मौसी भी चुपचाप मुझे एक एक कर के अपनी साड़ी ब्लाउज और पेटिकोट उतारते हुए देखा| मैंने कोई अंतर्वास नहीं पहन रखा था इसलिए अब मैं माँठाकुराइन के सामने मैं बिल्कुल नंगी खड़ी थी मेरे बाल भी खुले हुए थे…

यह देख कर माँठाकुराइन बोली, “तुम लोगों के घर में घुसने से पहले, मुझे गुसलखाने से किसी के नहाने की आवाज़ आ रही थी| इसलिए मैं चुपचाप घर के पिछवाड़े में जा कर देखने की कोशिश की कौन है? उससे पहले मैने रास्ते में मैने इस लड़की को तेरे घर की तरफ जाते हुए देखा था... मुझे गुसलखाने के दरवाजे में छेद दिख जाई क्योंकि उनमे से रौशनी आ रही थी| उनमें से झाँक के मैंने देखा था कि यही लड़की नहा रही है| हालांकि इसकी पीठ मेरी तरफ थी लेकिन इसको देखकर मैंने ठीक ही समझा था कि यह लड़की अच्छे जात की है, क्या लंबे घने काले घने रेशमी बाल है इसके, बड़े-बड़े सुडौल दुद्दु (स्तन), अच्छे मांसल कूल्हे… मुझे जैसी लड़की की जरूरत थी यह बिलकुल वैसी ही है|”

यह कहकर माँठाकुराइन ने अपने झोली से एक तस्वीर निकाली| यह तस्वीर एक बुजुर्ग औरत की थी उसके सर पर बड़ी बड़ी मोटी मोटी लंबी लंबी जटाएँ थी शायद यह माँठाकुराइन की गुरु रही होंगी... उन्होंने तस्वीर निकालकर छाया मौसी से कहा कि वह भी सिर्फ़ एक जंघीए के सिवाय अपने सारे कपड़े उतार दे और उनको कमरे के एक तरफ बैठने के लिया कहा|

फिर माँठाकुराइन ने छाया मौसी को वह तस्वीर पकड़ा दी और बोली कि वह इस तस्वीर को अपनी गोद में लेकर बैठे| उसके बाद उन्होंने मुझसे कहा कि उनके आगे जो तीन मोमबत्तियां जल रही थी; मैं उन्हें छाया मौसी के पास एक त्रिकोण आकर में सजा के रखूं- एक मोमबत्ती उनके सामने और बाकी दो मोमबत्तियाँ उनके एक एक तरफ|

फिर माँठाकुराइन ने मेरे से कहा कि मैं अपनी छाया मौसी- जो कि अपनी गोद में वह तस्वीर लिए बैठी हुई थी- उनके सामने उकडूँ होकर बैठ जायुं|

माँठाकुराइन जैसे जैसा बोलती गई मैं बिल्कुल वैसा वैसा करती गई| उसके बाद माँठाकुराइन ने अपने लोटे से थोड़ा पानी लेकर पता नहीं क्या मंत्र बड़बड़ाती हुई के मेरे सर के ऊपर कुछ छींटे मारे- उनके ऐसा करते ही मेरे पूरे बदन में मानों एक तरह की बिजली सी दौड़ गई| इस बारे में अब कोई दो राय नही थी की बस्तव में वह एक ताकतवर और तजुर्बेदार तांत्रिक थी|

उसके बाद माँठाकुराइन ने अपने लोटेसे पानी लेकर के मेरी योनि और मेरा गुदा धोया और जो पानी बच गया था उन्होंने उसमें थोड़ी सी शराब मिलाकर उसे पीने को दी|

उस दिन के पहले मैंने कभी शराब नहीं पी थी| इसलिए शराब की झांस लगते ही मैं खांसने लग गई| लेकिन माँठाकुराइन मेरे बालों को सहला- सहला कर मुझे दिलासा देती हुई मुझे शराब और पानी का मिश्रण पीने को उकसाती रही|

मैंने बस थोड़ी सी ही शराब पी थी, पर मुझे नशा चढ़ गया था| कहीं मंत्रों का असर तो नहीं था? पता नहीं|

पर माँठाकुराइन का इंतजाम शायद अभी पूरा नहीं हुआ था| उन्होंने मुझे ज़मीन पर चित लिटा कर मेरे बालों को मेरे सर के ऊपर एक चादर की तरह फैला दिया| फिर उन्होंने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए और बिल्कुल नंगी होकर, उस लोटे में थोड़ा सा तेल- जो कि वह अपने साथ लेकर आई थी- वह डाला और लोटे को बिल्कुल मेरी योनि के सामने रख दिया| उसके बाद वह मेरे बालों पर पालती मारकर बैठ गई… जैसे कि वह मेरे बालों का एक आसान बनाकर उसके ऊपर बैठी हो|

मैंने नशे की हालत में किसी तरह से नजरें उठाकर उनको देखा उनकी आंखें मानो उनके माथे के अंदर धँस गई थी... आंखों का सिर्फ सफेद हिस्सा ही दिख रहा था और वह अपने दोनों हाथ ऊपर उठाएं कुछ मंत्र बड़बड़ा रही थी... और मेरी छाया मौसी एकदम जड़ बनी हुई सिर्फ़ एक जंघिया पहने माँठाकुराइन की गुरु की तस्वीर अपने गोद में लिए बैठी हुई थी… उसके बाद मैं ना जाने कहाँ खो गई…

क्रमश:
 
अध्याय ६

जब मुझे होश आया तब मैंने देखा कि मैं जमीन पर ही पड़ी हुई हूं, मेरी गर्दन एक तरफ लुढ़की हुई है और मेरे खुले हुए मुंह से टपकते हुए लार से मेरे चेहरे का एक हिस्सा बिलकुल गीला हो गया था| मेरे सिर के बाल बिल्कुल उसी तरह खुले और फैले हुए थे… जिन पर माँठाकुराइन अपना आसान लगा कर बैठी थी|

उसके बाद मैने देखा माँठाकुराइन और छाया मौसी कमरे की एक तरफ बैठी हुईं हैं| मोमबत्तियां तभी भी जल रही थी लेकिन उनका आकर काफ़ी छोटा हो गया था| मोम गल कर फैल गई थी|

मोमबत्ती से बने उस त्रिकोण के अंदर, जहां पहले छाया मौसी बैठी हुई थी, अब वहां वह लोटा रखा हुआ था और अभी भी छाया मौसी सिर्फ जांघिया पहने हुए ही बैठी थी; पर माँठाकुराइन ने अपने बदन पर एक साड़ी लपेट ली थी और वह छाया मौसी को बड़े प्यार से खाना खिला रही थी|

“यह देख, छाया! देखा मैंने कहा था ना कि हमारी रखैल को थोड़ी ही देर में होश आ जाएगा?” मुझे धीरे-धीरे जागते देखकर के माँठाकुराइन बोली|

मेरा सर दर्द से फटा जा रहा था... मुझे बहुत तेज प्यास भी लग रही थी| शायद माँठाकुराइन यह बात भाँप गई और उन्होंने गिलास में थोड़ी सी शराब डाली और उसमें थोड़ा सा पानी मिलाया और बोली, “अपने चेहरे से मुँह से टपकी हुई लार को पोंछ ले लड़की... उसके बाद थोड़ा सा पी भी ले... इससे तेरे सर का दर्द गायब हो जाएगा…”

मैं किसी तरह उठकर डगमगाते हुए उनके पास गई और आदत अनुसार अपने बालों को गर्दन के पीछे इकट्ठा करके एक जुड़ा बांधने को हुई; तभी माँठाकुराइन ने मुझे रोका, “अरी नहीं-नहीं लड़की! भूल गई मैंने तुझसे कहा था ना कि जब तक मैं ना कहूं, तुझे अपने बालों को बांधने की इजाजत नहीं है? और फिलहाल तू नंगी ही रहेगी चल अब हमारे सामने उकडूँ होकर बैठ जा और गटागट थोड़ी सी शराब पी लें.... नशा कर ले… उसके बाद मैं अपने हाथों से तेरे को खाना खिलाऊंगी...”

फिर वह छाया मौसी से बोली, “अभी तो इसे तेरी मालिश करनी है| तेरे सो जाने के बाद मैं भी इस से इसके नरम नरम हाथों से अपनी मालिश करवाऊंगी...”

मैं उनके सामने उकडूँ हो कर बैठ कर, छोटे छोटे घूँट ले ले कर धीरे धीरे शराब पी रही थी|

माँठाकुराइन बड़े प्यार से मेरे बालों को सहलाती रही... मेरे स्तनों पर हाथ फेरती रही... उन्हें हल्के हल्के दबा दबा कर देखती रही फिर उन्होंने कहा, “बहुत अच्छे बड़े- बड़े से दुद्दु हैं इसके… बिल्कुल तने-तने से...”

माँठाकुराइन ने अपनी झोली से एक उस्तरा निकाला और बोलीं, “मैं उस्तरे से अपनी इस रखैल के झाँटों (जघन के बालों) की सफाई करूंगी| देखा नहीं कैसा जंगल सा बना हुआ है इसके दो टांगों के बीच में? मुझे तो इसका भग (योनांग) भी दिखाई नहीं दे रहा… और अभी तो मैंने इसकी जवानी का स्वाद भी नहीं चखा| काफी दिन हो गए मुझे अकेले रहते रहते… मैं अपनी मालिश करवाऊंगी इससे... खूब प्यार करूंगी इसको... जी भरके भोगुंगी इसकी ज़वानी को... इस खिलती हुई कली को मैं एक सुंदर सा फूल बना दूंगी और यकीन मान छाया उसके बाद यह सिर्फ तेरी ही होकर रह जाएगी| बस जब जब मैं तेरे पास आऊं… बस रात भर के लिए इस लड़की को मेरे पास छोड़ देना... “, माँठाकुराइन मेरे दो टांगों के बीच के हिस्से में हाथ फेरती हुई- मुस्कुराती हुई बोलीं|

मेरे सर का दर्द ठीक हो गया था मैं थोड़ा चंगा भी महसूस कर रही थी| लेकिन मुझे नशा चढ़ता जा रहा था, माँठाकुराइन की बातें न जाने क्यों मुझे अच्छी लग रही थी|

मेरे बदन में एक अजीब सी सिहरन सी जाग रही थी और मेरा मन में पता नहीं क्यों एक अजीब सा यौन एहसास भरता जा रहा था|


क्रमश:
 
अध्याय ७

हम सब खाना खा चुके थे| मुझे पूरी तरह से नशा चढ़ गया था... बहुत हल्का हल्का महसूस हो रहा था मुझे... मेरे पेट के निचले हिस्से में मुझे हल्की हल्की गुदगुदी सी महसूस भी हो रही थी, मानो सैकड़ों तितलियाँ उड़ती फिर रही हों… दोनों टांगों के बीच का हिस्सा गीला- गीला सा महसूस हो रहा था.... मैं बीच-बीच में बिना किसी बात के खिलखिलाकर हंस भी दे रही थी...

शायद यह माँठाकुराइन को और यहां तक की छाया मौसी को भी अच्छा लग रहा था|

मैं अपनी सारी लाज शर्म हया में बिल्कुल भूल चुकी थी... इतने में माँठाकुराइन ने मुझे फिर से लिटा कर मेरी दोनों टांगो को फैला कर बड़ी सावधानी से मेरे झाँटों (जघन के बालों) की सफाई कर दी थी... वह चाहती थीं कि मेरा भग (योनांग) कोरा- गंजा रहे -एकदम सॉफ सुथरा और अछूता- बिल्कुल मेरी कौमार्य की तरह| उन्होंने अपनी साड़ी के आंचल से मेरे दोनों टांगों के बीच का हिस्सा साफ किया फिर अपने हाथों से जमीन पर बिखरे हुए झांटो को इकट्ठा करके एक कपडे की पुड़िया में धागे से बांधा और उसे चूम कर अपने झोले में रख लिया|

छाया मौसी भी माँठाकुराइन के साथ बैठ के शराब पी रही थी, उनको भी नशा चढ़ गया था| लेकिन आखिरकार उन्होंने माँठाकुराइन से पूछ ही लिया, “माँठाकुराइन, यह आप क्या कर रही हैं?”

माँठाकुराइन बोली, “कुछ नहीं है बस इसकी झांटे संभाल के रख रही हूं| पहले इसको कुछ देर के लिए अपने वश में करने के लिए मैंने उसके माथे पर भस्मी का तिलक लगाया था लेकिन उसका असर ज्यादा देर तक नहीं रहता और अब, जब तक इसकी झांटे मेरे पास रहेंगी यह पूरी तरह मेरे वश में रहेगी और तेरी दासी- तेरी बाँदी- तेरी रखैल बन कर रहेगी... तू जो चाहे उसके साथ कर सकेगी”

छाया मौसी को जोड़ों के दर्द की शिकायत काफी सालों से है और उस दौरान से ही मैं घर के सारे काम करती थी… उनका पूरा पूरा ख्याल रखती थी| शायद अब छाया मौसी को इसकी आदत पड़ गई थी इसलिए… शायद इसलिए… माँठाकुराइन की बातें सुनकर छाया मौसी मुक्सुराई- आखिरकार माँठकुराइन ने उनके लिए मुझ जैसी एक रखैल का इंतज़ाम जो कर दिया था |

माँठाकुराइन ने मुझसे कहा, “चल छोरी! बहुत हो गया लाड़-प्यार अब उठ जा एक चटाई लाकर के कमरे में बिछा दे| फिर मैं तुझे बताती हूं कि मेरे हुए मेरे जादू टोने और मंत्र फूँके हुए तेल से तेरी मौसी का कैसे मालिश करनी है...”

फिर माँठाकुराइन ने अपना मिट्टी का लोटा लाकर मेरे सामने रख दिया और उसमें जो बचा हुआ पानी रखा हुआ था, उसको मुझे पीला दिया। फिर अपनी झोली में से एक तेल की शीशी निकाल कर बोलीं, “चल री लड़की... यह तेल दोनों हाथों में मलले और धीरे-धीरे मौसी के जोड़ों की मालिश करती रह...”

माँठाकुराइन जैसे जैसे बोलती गई, वैसा वैसा मैं करती गई- कलाई... कंधा.. गर्दन... छाती- दुद्दु (स्तन)... कमर...
मेरे खुले हुए बालों का कुछ हिस्सा मेरे सामने से लटक रहा था और बार बार मौसी के बदन को सहला रहा था|
पता नहीं क्यों मौसी को मेरी बालो की छुअन मौसी बहुत अच्छा लग रहा था|

वह एक टक मेरी तरफ से देखे जा रही थी मेरे झूलते हुए खुले बाल.... मेरे डोलते हुए स्तन.. मेरा नंगे बदन का स्पर्श... न जाने क्यों उन्हें बहुत अच्छा लग रहा… यह बात उनकी अधखुली नशीली आंखों की चमक और होठों पर एक अजीब सी हलकी मुस्कुराहट से साफ जाहिर थी और सच मानो तो इस हालत में मुझे भी एक अजीब सा सुकून सा महसूस हो रहा था… ख़ास कर तब, जब वह मुझे देख- देख कर हल्का- हल्का मुस्कुरा रही थी और बीच- बीच में मेरे बालों को... गालों को... यहाँ तक के मेरे स्तनों को सहला- सहला कर मुझे प्यार भी कर रहीं थी...

ऐसी बात नहीं है कि से पहले मैंने छाया मौसी को छुआ ना हो लेकिन तब हालात कुछ और ही थे| मैं उनके बालों मे तेल लगा दिया करती थी... नहाने के बाद उनके के बालों में कंघी कर दिया करती थी चोटी या फिर जुडा बना दिया करती थी और अभी कुछ महीनों से तो जोड़ों के दर्द की वजह से छाया मुझसे ठीक तरह से अपने हाथ पैर नहीं हिला पाती थी इसलिए मैं उन्हें कपड़े बदलने में भी मदद किया करती थी... तब मैंने उनका नंगा सीना देखा था| मुझे याद है जब मैं बहुत छोटी थी तब एक बार मैंने छाया मौसी से पूछा था मौसी आपके कितने बड़े बड़े दूध है मेरे कब होंगे? तब उन्होंने कहा था जब तू बड़ी हो जाएगी तो तेरी भी होंगे...

अब मैं बड़ी हो गई थी... मेरे स्तनों का विकास भी अच्छी तरह से हुआ था... चलते वक्त हर कदम पर मेरा स्तनों का जोड़ा थिरकता था... बहुत अच्छे बड़े- बड़े से दुद्दु हैं अब तो मेरे… बिल्कुल तने-तने से... जैसा की माँठाकुराइन ने कहा था… मेरे पेट के निचले हिस्से में गुदगुदी बढ़ती ही जा रही थी…

मेरा चेहरा गरम हो रहा था.... हल्का हल्का पसीना आ रहा था... मेरी सांसे लंबी और गहरी होती जा रही थी मेरे स्तनों की चूचियां खड़ी होकर एकदम सख़्त हो चुकी थी और न जाने क्यों मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरी यौनांग के आस-पास का हिस्सा गीला व थोड़ा चिपचिपा सा लग रहा है…

मुझे शायद अपनी जिंदगी में पहली बार अपने अंदर यौन उत्तेजना का ऐसा ज्वार आता हुआ महसूस हो रहा था…
मैं इतनी बड़ी और समझदार तो हो चुकी थी कि यह समझ सकूँ कि आते जाते लोग मुझे घूर घूर कर क्यों देखते हैं… क्यों बैध जी मेरे बालों को छूते हैं और उसके बाद ही मेरी नज़रें बचा कर अपने दो टांगों के बीच के हिस्से को सहलाते हैं... क्यों लोगों की नजरें पहले मेरे चेहरे पर और उसके बाद मेरी छाती पर जाकर टिकती है... मैं तो यहां तक जान चुकी थी कि बंद कमरे के अंदर पति पत्नी आपस में क्या करते हैं... और हां, मैं यह जान गई थी कि कि सहवास किसे कहते हैं... बच्चे कैसे पैदा होते हैं... मेरी कुछ सहेलियां शादीशुदा थी, वह भी कुछ इस तरह की बातें किया करती थी, उन्हें सुन सुन कर मुझे बड़ा मजा आता था|

तब भी मेरे बदन में एक अजीब सी सिहरन से पैदा होती थी और पेट के निचले हिस्से में ऐसी ही थोड़ी-थोड़ी गुदगुदी सी महसूस होती थी|

लेकिन आज यह एहसास शायद कुछ ज्यादा ही मेरे उपर हावी हो रहा था...

लेकिन मेरी तो अभी शादी नहीं हुई और यहां?... यहां तो सिर्फ माँठाकुराइन, मेरी छाया मौसी और मैं ही हूं… और हम तीनो के तीनों औरतें ही हैं… अब मेरा क्या होगा? मेरे बदन में आग सी लग रही है… अगर इस पर सुकून की बरसात नहीं हुई, तो शायद मैं इसी आग में जल कर आज मर ही जाऊंगी…

मेरी आंखों के आगे बाजार में देखे हुए दो चार आदमियों के याद रहने वाले चेहरे... वैधजी... दुकान के वह लड़के... इन सब की तस्वीरें घूमने लगी... मैं जानती थी कि लोगों की नज़रें मुझ पर हैं…

मेरी जवानी का फल पक चुका है... मैं सुंदर हूं... और इस वक्त इस बरसात की इस रात में, मैं बिल्कुल नंगी हूं… मेरे अंदर एक प्यास भड़क रही है....

काश माँठाकुराइन एक औरत ना होकर एक आदमी होती…

क्रमश:
 
अध्याय ८

छाया मौसी सो चुकी थी| उनके बदन पर सिर्फ उनके जंघीए के सिवाय एक भी कपड़ा नहीं था... बाल भी खुले और अस्त व्यस्त थे... पर उनको ऐसे चैन की नींद सोते हुएदेख कर न जाने क्यों मेरे मन को भी थोड़ी शांति से मिल रही थी...

लेकिन इधर शायद मेरा अपना शरीर मेरे काबू से बाहर हो रहा था मैं एक अजीब से आवेश में आकर के अब थोड़ाथोड़ा कांपने लगी थी मेरा पूरा बदन पसीने से तर हो चुकाथा... मेरी आंखों की पुतलियां बड़ी बड़ी सी हो चुकी थी…

माँठाकुराइन मुझे देखते हुए शराब पी रही थी... फिर उन्होंने मुझसे कहा, “ले माया... जो बची खुची शराब है, इसको गटक जा...”, यह कहकर उन्होंने अपना जूठा गिलासमेरी तरफ बताया बढ़ाया...

मैंने तुरंत उनके हाथ से गिलास लिया और एक ही घूंट में बचा खुचा शराब पी गई... शायद मैं यह सोच रही थी की उनका दिया हुआ शराब पीने से शायद मेरे मन और मेरेबदन को थोड़ी शांति मिलेगी... लेकिन नही... मैं उठकर बाहर जाने लगी…

“कहां जा रही है?”, माँठाकुराइन ने मुझ से पूछा|

मैंने कहा, “थोड़ा बाहर जा रही थी...”

“क्यों?”

“मुझे बहुत जोर की पिशाब लगी है...”

“ठीक है, चल मैं तेरे साथ चलती हूं, तू नंगी है... तेरे बाल भी खुले हुए हैं; ऐसी हालत में तेरा अकेले बाहर जाना ठीक नहीं|”
यह कहकर माँठाकुराइन ने मेरे बालों को समेट कर मेरी गर्दन के पास अपने बाँये हाथ की मुठ्ठी मे एक पोनी टेल जैसे गुच्छे में करके पकड़ कर बड़े जतन के साथ मुझे कमरे से बाहर ले गई|

पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे बालों को इस तरह से पकड़कर माँठाकुराइन यह जताना चाहती है कि अब उसका मेरे ऊपर पूरा पूरा अधिकार है, वह जो चाहेमेरे साथ कर सकती है.... तबतक बारिश रुक चुकी थी ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी और उन हवाओं ने मानो मेरे बदन में कामना की इच्छा की आग को और भी भड़का दिया|

गुसलखाने में जब मैं पेशाब करने बैठी तब माँठाकुराइन ने मेरे बालों को सिरों के पास से अपने हाथों से उठाकर पकड़ के रखा था ताकि वह जमीन पर ना लगे| फिर वहबोली, “शर्मा मत लड़की, मूत दे… मैं तुझे मूतते हुए देखना चाहती हूं”

माँठाकुराइन जो कहा मैंने वही किया| उसके बाद मैंने अपने गुप्तांग को धोया और फिर खुटे से टाँगे गमछे से उसको पोछा फिर माँठाकुराइन ने वैसे ही मेरे बालों को मेरेबालों को गर्दन के पास पोनी टेल जैसे गुच्छे में पकड़कर मुझे दूसरे कमरे में ले गई|

मैं बहुत बेचैनी सी महसूस कर रही थी| इसलिए मैंने खुद ने उनसे पूछा, “माँठाकुराइन, आप मुझसे अपना मालिश नहीं करवाएँगी?”

कम से कम इसी बहाने मैं किसी गैर औरत के बदन को तो छू तो पाऊंगी... नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि उन को छूने से मेरे अंदर जो एक यौन कामना की आग भड़करही है, वह शायद थोड़ी सी शांत होगी…

“हाँ री… नंगी लड़की मैं जरूर करवाउंगी... जरा मेरे पास तो आ मेरे”, यह कहकर माँठाकुराइन ने मेरे चेहरे को अपनी हथेली में लेकर मेरे होंटो को चूमा...मेरे पूरे बदन मेंमानो बिजली से तो दौड गई... एक पल के लिए मुझे बड़ा अजीब सा लगा... लेकिन मेरा मन मेरा बदन दोनों को ही जरूरत थी प्यार की बारिश की...

माँठाकुराइन ने मुझसे कहा “जा लड़की उस कमरे से मेरा लोटा लेकर आ| उसमें मेरा बनाया हुआ तेल है... आज अच्छी तरह से मालिश करवाऊंगी मैं तेरे से... बड़े दिन होगए अपने आप को थोड़ा खुश किए हुए, अच्छा हुआ मुझे आज तुझ जैसी सुंदर सी जवान लड़की मिल गई…”

जब मैं तेल का लोटा लेने उस कमरे में जहां छाया मौसी सो रही थी... मैंने देखा कि वह आराम से चैन की नींद सो रही है और हर जब मैं लोटा लेकर वापस माँठाकुराइन केकमरे में आआी तो मैने देखा उन्होने अपनी साड़ी उतार दी थी और खुद ब खुद एक चटाई बिछा कर उस पर बिल्कुल नंगी बैठी हुई थी, बस उन्होंने अपनी यौनंग को कपड़े सेढक रखा था|

मुझे लोटा लेकर आती देखकर वह चटाई के लिए गई मैं भी जाकर उनके पास बैठकर फिर मैंने धीरे-धीरे उनके पैरों की उंगलियों पर मालिश करना शुरू किया न जाने क्योंमेरे मन में बार-बार यह बात घूम रही थी कि उनके शरीर की अच्छी तारह से मालिश करूँ| यह उनके किए ह जादू टोने कस असर था या फिर मेरी उत्सुकता... मालूमनही.. पे मैंने उनकी पैरों की उंगलियों से शुरू करके उनके तलवे, पैर, घुटने जांघों, कमर, छाती और फिर हाथों की मालिश करने लग गई...

और जब मैं उनके स्तानो पर हाथ फेरने लगी तब मैंने फिर से महसूस किया कि मेरे अंदर यौन उत्तेजना बढ़ती जा रही है...

इतने में माँठाकुराइन मेरे पर स्तनों को दबा दबा कर देख रही थी… मेरे खुले बालों को सहला रही थी… कभी कबार वह मेरे कुल्हों पर भी हाथ फेर रही थी… मानो मुझेप्यार कर रही हो… मुझे बहुत अच्छा लग रहा था|

फिर उन्होंने मुझसे कहा “चल लड़की मेरे ऊपर लेट जा अपने दुद्दयों से मेरे दुद्दयों को रगड़...”

मैं वैसा ही करने लगी... मैं उनके ऊपर लेट कर अपने स्तनों से उनके स्तनों को रगड़ने लगी दाएं बाएं दाएं बाएं… लेकिन अब माँठाकुराइन बेलगाम मुझे चूमने चाटनेलगी…

मुझे इस तरह से प्यार करने के कुछ देर बाद उन्हें मुझसे से कहा, “मालिश करवाना तो एक बहाना था... जब से मैंने तुझे देखा है, मेरे अंदर एक प्यास सी भड़क रही है… अब मुझसे रहा नहीं जा रहा मुझे प्यास बुझा लेने दे...”, यह कहकर माँठाकुराइन ने मेरे चेहरे को अपनी हथेली में लेकर मेरे होंटो को चूमा... एक पल के लिए मुझे बड़ाअजीब सा लगा... लेकिन मेरा बदन को प्यार की बारिश की जरूरत थी...

मेरे मन में फिर ख्याल आया इस बार मैनें बोल ही दिया, “माँठाकुराइन काश इस वक्त आप औरत नहीं होती….”

“हा… हा… हा…”, यह सुनकर माँठाकुराइन हंस पड़ी और अपने सूखे होंठ उन्होंने अपनी जीभ से चाटा मानो वह मुझे चूमने के बाद उनके होठों पर लगा हुआ मेरा स्वादचख रही थी... पता नहीं; लेकिन अब, इतनी देर बाद मैंने गौर किया कि उनकी जीभ बीच में से कटी हुई थी और दो भागों में बटी हुई थी बिल्कुल साँप के जीभ की तरह…


क्रमश:
 
अध्याय ९

“क्या देख रही है लड़की? मेरी कटी हुई जीभ?”

मैंने फटी फटी आंखों से उनकी तरफ देखते हुए स्वीकृति में अपना सर हिलाया|

“हा हा हा हा| कोई बात नहीं मैंने जादू टोना और तंत्र विद्या सीखने के लिए बहुत ही कम उम्र में ने अपनी जीभ इस तरह से कटवा कर अपना खून चढ़ाई थी- उन अंधेरे में रहनेवाली आत्माओं को… उन जादू टोने वाली रूहानी ताकतों को… जिनसे मुझे ऐसी जादुई ताकतें मिल सके... लेकिन यह फिर एक दूसरी लंबी कहानी है… इसके साथ-साथ जैसे जैसे मैं बड़ी होती हुई मुझे लगा कि मर्दों की तुलना में मुझे लड़कियां ज्यादा पसंद है इसलिए मैंने एक सिद्धि और प्राप्त की…”

“कौन सी?” मैंने पूछा

माँठाकुराइन ने कहा, “एक ऐसी शक्ति जिससे मैं अपना भगांकुर बड़ा कर सकती हूं... मेरा भगांकुर बड़ा होकर लंबा होकर बिल्कुल एक आदमी की लिंग की तरह बन जाता है… और अब तू नादान तो नहीं रही… बड़ी हो गई है... सबकुछ जान चुकी है… मैं अपने इस अंग को किसी भी औरत के भग में डाल के उसके साथ बिल्कुल मर्दों की तरह सहवास कर सकती हूं और वही आज तेरे साथ मैं वही करूंगी... मुझे तंत्र मंत्र जादू टोने के लिए कभी कभार ऊर्जा की जरूरत पड़ती है... जिसे मैं तुझ जैसी लड़कियों के साथ सहवास करके प्राप्त करती हूं... वैसे तो मैं कई लड़कियों को अपने साथ बहला-फुसला करके या फिर सम्मोहित करके अपने घर ले आती थी और मेरा काम हो जाने के बाद, उन्हें दूर कहीं छोड़ आती थी और यह जरूर ठीक कर लेती थी कि बाद में उन्हें कुछ भी याद न रहे... आज तू मेरी है... आज मैं जो भी चाहती हूं, उसे वसूल करूँगी... तू तो जवान है... सुंदर है और सबसे बड़ी बात कुंवारी है... बड़े दिनों बाद मुझे तुझ जैसी लड़की मिली है... मैं जी भर के तुझे प्यार करूंगी... भोगुंगी तुझे… लेकिन तुझे सब कुछ याद रहेगा क्योंकि मैं यह जान गई हूं तुझे भी इसमें बड़ा मजा आने वाला है, क्योंकि दूसरी लड़कियों से थोड़ी अलग है... तेरे मन का झुकाव औरतों के तरफ भी है, तू उनकी खूबसूरती की तारीफ करती है… उनका साथ तुझे अच्छा लगता है… अगर कोई खूबसूरत है तू उसकी खूबसूरती की कद्र करती है… मैं जानती हूं तू और लड़कियों से बिल्कुल अलग है... शायद तुझे नहीं पता लेकिन तू इस बात को मान ले कि तू भी मेरी तरह समकामी है… मेरे साथ बड़ा मज़ा आएगा तुझे… मैं तुझे एक औरत का और एक मर्द का दुगना मजा दूंगी…”

“लेकिन...”, मेरे दिमाग में एक वाजिब सा सवाल था... उसे माँठाकुराइन भांप गई...

“चिंता मत कर... तेरे पेट में बच्चा नही आएगा...” माँठाकुराइन ने कहा, “इसके लिए तुझे एक मर्द की ही ज़रूरत पड़ेगी.... बाकी मैं भी एक औरत ही हूँ बस उम्र की वजह से मेरा मासिक रुक गया है.... हा हा हा मैने तो सिर्फ़ अपने भगांकुर अंग का विकास किया है.... देखेगी?”

यह कहकर उन्होंने अपने दो टांगों के बीच से वह कपड़ा हटा दिया और जो मैंने देखा उसे देखकर मैं दंग रह गई... मैंने देखा उनकी योनि बिल्कुल बाकी औरतों की तरह ही है... लेकिन उसके अंदर से एक लंबी सी, मोटी सी गुलाबी रंग की नली की तरह कुछ निकल आया है…

यही था उनका विकसित भागंकुर जिसे वह एक लिंग की तरह इस्तेमाल कर सकती थी…

कहां तो मैं यौनाग्नि में तड़प रही थी... कहाँ तो मैं सोच रही थी यहां इस वक्त अगर कोई मर्द होता तो कितना अच्छा होता... लेकिन जो मैंने देखा जो समझा उसकी मैंने उम्मीद भी नहीं की थी... बड़े ताज्जुब की बात थी, लेकिन अंदर ही अंदर मुझे ना जाने क्यों इस बात की खुशी थी कि चलो, अब इतनी देर बाद मेरे अंदर जलती हुई आग को कोई बुझा सकेगी…

माँठाकुराइन ने कहा, “घबरा मत तू इसे हाथ में लेकर देख सकती है…”

मैंने उत्सुकतावश उनके उस अंग अपने हाथ में लिया| वह गीला गीला सा था... चिपचिपा सा… लिजलिजा सा था... उस पर शरीर के अंदर के रस लगे हुए थे... मुझे यह समझते देर न लगी कि कुछ ही देर में माँठाकुराइन अपना यह अंग मेरे भग में घुसा देंगी- वैसे ही जैसे एक आदमी एक औरत योनांग में अपना लिंग घुसा देता है- खैर मन ही मन मैं भी तो यही चाहती थी कि आज कोई ना कोई मेरे साथ सहवास करे... मेरे अंदर की प्यास को बुझा सके आखिर मैं बड़ी हो चुकी हूँ... मेरी जवानी का फल पक चुका है...

मैं एक अजीब सी प्यासी निगाहों से माँठाकुराइन की ओर देख रही थी… माँठाकुराइन मुझे देख कर मुस्कुरई… उन्हें शायद पता चल गया था कि अब देर नहीं करनी चाहिए…. उन्होंने मुझे पकड़कर धीरे-धीरे लिटा दिया फिर बड़े प्यार से मेरे चेहरे को सहलाने लगी और मेरे होठों को चूमने लगी…

वह तो खुद अध-लेटी अवस्था में बैठी हुई थी लेकिन मैं बिल्कुल खुली की खुली- नंगी उनके बगल में लेटी हुई थी…
वह मुझे चूमती गई है चाटती गई है... मेरे पूरे बदन पर हाथ फिरती रही... मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद वह मेरे बदन में कुछ ढूंढ रही थी... और ना जाने क्यों मुझे ऐसा भी लग रहा था कि शायद उसे वह मिल गया था... लेकिन नहीं... वह रुकी नहीं वह मारे बदन पर हाथ फेरती गई… मानो जो उसे खजाना मिल गया था... उसे वह परख कर देखना चाहती थी…

“कितनी अच्छी है तू... कितनी प्यारी है तू... उम्र के हिसाब से तेरे बदन का विकास भी अच्छी तरह से हुआ है.... क्या लंबे बाल है तेरे घने- मुलायम और रेशमी... क्या बड़े-बड़े कसे कसे तने तने से दुद्दु (स्तन) है तेरे... तेरे बदन से और तेरे बालों से एक अजीब सी मदहोश कर देने वाली खुशबू आती है... तेरे कूल्हे भी सुडौल और मांसल है...” माँठाकुराइन बोलती गई, “जब मैंने पहली बार तुझे गुसलखाने में नहाते हुए देखा था, तो तेरी पीठ मेरी तरफ थी… लेकिन तब से ही मैं तुझे सामने से नंगी देखने के लिए तड़प रही थी… अच्छा हुआ आज तो मेरे साथ लेटी हुई है.... कुछ ही देर में मैं तुझ जैसी एक खिलती कली को एक अच्छा सा फूल बना दूंगी मेरे ऊपर भरोसा रख… मैं तेरी जिंदगी को एक नया मोड़ देने वाली हूं… पर हां; काश मैं तुझे पाल पाती”, यह कहकर उन्होंने अपनी कटी हुई थी उससे मेरे होठों को और मेरे गालों को कई बार चाटा मानो शायद वह मेरे बदन का स्वाद लेना चाहती थी…

मेरे अंदर कामना की आग बढ़ती जा रही थी... मेरी सांसे गहरी और लंबी हो रही थी और अब तो आवेग से मैं थोड़ा थोड़ा काँपने भी लगी थी... लेकिन माँठाकुराइन कहां रुकने वाली थी? उन्होंने मुझे प्यार करना जारी रखा.... मेरे पूरे बदन पर हाथ फेरती गई... और उसके बाद मेरे स्तनों को सहलाते हुए एक स्तन की चूची को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी... और ऐसा करते हुए उनका एक हाथ मेरे दो टांगों के बीच में चला गया, वह मेरे भग को सहला सहला कर देख रही थी... मेरा भग गीला हो चुका था... रस छोड़ रही थी मैं... उन्हें पता चल गया कि अब मैं संभोग के लिए बिल्कुल तैयार हो चुकी हूं... अब देर नहीं करनी चाहिए…

मेरे से भी अब रहा नहीं जा रहा था मैं छटपटाने लगी थी... मैं चाहती थी कि माँठाकुराइन ऐसा कुछ करें जिससे मुझे थोड़ी शांति मिले...

मैंने अपनी कांपती हुई आवाज में आखिर बोल ही दिया, “माँठाकुराइन, कुछ कीजिए ना... मेरे बदन में आग सी जल रही है...”

“मैं जानती हूँ लड़की... यह आग मैंने ही जानबूझकर लगाई है...”

मुझे ज्यादा दिन इंतजार नहीं करना पड़ा वह धीरे-धीरे उठ कर बैठ गई और उन्होंने मेरी टांगों को पकड़कर काफ़ी फैला दिया... मेरी दोनो टाँगों के बीच अब इतना फासला था कि वह उनके बीच मे आ सके... उन्होने वैसा ही किया…

जादू टोने तंत्र मंत्र से तब्दील किया हुआ उनका भगांकुर अब - खड़ा और सक्त चुका था… बिल्कुल एक कृत्रिम लिंग जैसा…

उन्होंने अपनी उंगलियों से मेरे यौनंग के अधरों को हल्के से थोड़ा खोला और उसके बाद उन्होंने अपने कृत्रिम लिंग जैसे रुपांतरित भागंकुर को मेरी योनि से छुयाया… बाहर बहुत तेज़ बिजली चमकी और कहीं से बहुत ज़ोरों से बादल गरजने की आवाज आई... लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था कि वह बिजली जमीन पर ना गिर कर शायद मेरे ऊपर गिरी हो... मैं फिर से काँप उठी और न जाने क्यों मैंने अपनी कमर ऊपर उठा दी…

बस सर फिर क्या था माँठाकुराइन ने अपना रूपांतरित भगांकुर मेरे यौनंग के अंदर घुसा दिया…

इससे पहले कभी भी मेरे नारीत्व का उल्लंघन नहीं हुआ था, आज पहली बार था कि किसी दूसरे व्यक्ति का कठोर अंग मेरे कोमल अंग के अंदर घुसा हुआ हो… इसलिए मैं दर्द से कराह उठी… मेरी कौमार्य की झिल्ली फट गई…
माँठाकुराइन ने अपना अंग मेरे अंदर कुछ देर तक ऐसे ही रख छोड़ कर मेरे ऊपर लेटी रहीं... मैं उनके नीचे उनका वज़न से दबी हुई थी और एक कटी हुई मुर्गी की तरह छटपटा रही थी.... कुछ देर तक उन्होंने मुझे ऐसे ही अपने नीचे दबा के रखा और उसके बाद उन्होंने अपना भगांकुर निकाल लिया फिर एक लंबी सी सांस ली और दोबारा उन्होंने अपना अंग मेरे यौनांग में घुसा दिया…

“कितनी ताज़ी और कसी कसी-कासी सी है तू, वाह मजा आ गया…” माँठाकुराइन ने कहा और वह दुबारा मेरे उपर लेट गई… मेरे यौनांग में उनका अंग घुसा हुआ था और उनकी वज़न से मेरा शरीर दब रहा था... लेकिन यह सब मुझे बहुत अच्छा लग रहा था... इससे पहले मुझे ऐसा एहसास कभी नहीं हुआ था... यह बिल्कुल नया नया लग रहा था|

माँठाकुराइन करीब दो मिनट तक मेरे ऊपर चुपचाप ऐसे ही लेटी रही| फिर उन्होंने मेरे से कहा, “चल लड़की अपना जीभ तो निकाल…”

मैंने वैसा ही किया| उन्होंने मेरी जीभ को अपने मुंह के अंदर ले कर चूसने लगी और फिर धीरे-धीरे उन्होंने अपनी कमर को ऊपर नीचे ऊपर नीचे हिलने लगी और शुरू कर दी अपनी मैथुन लीला… मैने उनको कस कर जकड लिया…

सच कहूं तो इससे पहले मैंने किसी के साथ यौन संबंध नहीं बनाया था, हलाकि ऐसे ख्याल मेरे दिल में आते रहते थे, लेकिन मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन एक औरत जिसने अपना भागंकुर एक लिंग की तरह तब्दील किया हो; वह मेरी जवानी का लुफ्त उठाएगी... और मुझे भी एक अंजाने एहसास से भर देगी... पर इससे पहले मैं एक कुंवारी लड़की थी इसलिए माँठाकुराइन के लगाए हुए धक्के और उनका तब्दील किया हुआ भगांकुर जो कि फिलहाल मेरी योनि के अंदर बाहर हो रहा था... उससे मुझे थोड़ी तकलीफ हो रही थी लेकिन एक अनजानी संतुष्टि मिल रही थी.... इसलिए मैं कसमसाती रही- छटपटाती रही और माँठाकुराइन मेरे साथ मैथुन करती रही...

थोड़ी देर तक ऐसा चलने के बाद मानो मुझे ऐसा लगने लगा कि अब सबकुछ ठीक हो गया है.... मुझे अब इतनी तकलीफ नहीं हो रही थी लेकिन माँठाकुराइन ने अपने मैथुन की गति बढ़ा दी… कुछ देर के लिए तो मुझे थोड़ा सुकून का एहसास हुआ लेकिन उसके बाद मुझे लगने लगा कि मेरा दम घुटने लगा है... ऐसा प्रतीत होने लगा कि मेरा पूरा शरीर उत्तेजना में शायद फट जाएगा ... पर माँठाकुराइन नहीं रुकी, उसका रूपांतरित भागंगकुर तेजी से मेरी योनि के अंदर अपनी क्रिया करता रहा... मेरी जीभ उनके मुँह के अंदर ही थी को वह शायद अपने पूरे चाव से उसे चूसे जा रही थी…

और फिर अचानक मुझे लगा कि मेरी पूरी दुनिया में एक विस्फोट सा हुआ मेरा बदन दो तीन बार सिहर उठा और उसके बाद न जाने में एक अनजानी सुख सागर में डूब सी गई… लेकिन मैंने महसूस किया कि मेरा यौनंग जिसने माँठाकुराइन के भगांकुर को निगल रखा था उसमें एक अजीब तरह का स्पंदन और संकुचन सा हो रहा है मानो मेरा यौनंग माँठाकुराइन के उस अंग को काटने की कोशिश कर रहा हो…

माँठाकुराइन ने और थोड़ी देर मेरे साथ मैथुन किया और उसके बाद वह भी ढीली पड़ गई और उन्होंने अपना मुंह मेरे मुंह से अलग कर लिया और थोड़ा सुसताने लगी फिर धीरे-धीरे मुझे लगने लगा कि उनका भगांकुर अब शिथिल पड़ने लग गया है…

उन्होंने अपना बदन मेरे बदन से अलग कर लिया और मेरे बगल में लेट गई फिर मेरे बालों को पकड़ कर के मेरा सिर अपने स्तनों के पास ले गई... मुझे उनका इशारा समझ में आ गया मैं उनकी एक स्तन की चूची अपने मुंह में लेकर चूसने लगी और दूसरे स्तन की चुचि से खेलने लगी... माँठाकुराइन मेरे दो टांगों के बीच के हिस्से को बड़े प्यार से सहलाने लगी, मुझे बहुत अच्छा लग रहा था…

क्रमश:
 
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