Hindi Sex Stories तीन बेटियाँ - SexBaba
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Hindi Sex Stories तीन बेटियाँ

hotaks444

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Nov 15, 2016
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चाय उबलने ही वाली थी। निशा आज सुबह फिर घर के काम में लग गायी। आज फिर उसे कॉलेज के लिए लेट नहीं होना था। कल उसके प्रोफेसर ने उसे डाँटा था। माँ के गुज़र जाने के बाद 6 महीने हो चुके थे पर फिर भी वह अपना डेली रूटीन संभाल नहीं पाई थी। 
पापा चाय के लिए वेट कर रहे थे। चाय पापा को देकर, आशा और सशा के लिए लंच भी तैयार करना था उसे। वह जानती थी अगर वह लंच नहीं बनायी, तो दोनों छोटी बहने भूखे रहेंगे और टीवी के सामने बैठी रहेंगी।
चाय कप में डाल कर वह ड्राइंग रूम में गयी।

पापा (जगदीश राय) सुबह का पेपर लेकर बेठे थे और रोबर्ट वाड्रा को बुरा-भला कह रहे थे।
निशा:पापा, ये लो चाय।
पापा: अरे, बना दिया। क्यों तकलीफ की। मैं बना देता। तू अपने कॉलेज जाने पे ज़ोर दे और पढाई ठीक से कर।


निशा( जाते हुए): पापा, अब आप हर सुबह की तरह फिर शुरू मत हो जाइए। चुप चाप चाय पिजिए और ऑफिस जाइए।
पापा: (थोडा मुस्कुराकर) ठीक है मेरी माँ। ला दे बैठ, थोड़ा चाय मेरे में से पी ले। 
निशा: नही, मुझे लंच भी बनाना है। दो महारानियों के लिये।
पापा: अरे वह मैं बना दूंगा। तू फिकर मत कर। मुझे आज ऑफिस लेट जाना है।
निशा: नही। किचन का काम मेरा है। आप उसमे दखल न दे।
पापा: अरे तेरी माँ जब थी, तब भी मैं कभी कभी लंच बना लेता था। तो अब क्यों नही।

मॉम का ज़िक्र सुनकर निशा चुप हो गयी और सर झुका के बैठ गयी। जगदीश राय भी चुप हो गया और उसका आँख भर गई। निशा ये देख कर बहुत उदास हो गयी। वह उठकर किचन में चली गयी।

मॉम(सीमा राय) की मृत्यु कोई 6 महिने पहले हुई थी। निशा जानती थी की पापा अभी तक उनके माँ को मिस कर रहे है। वह जानती थी की घर की स्त्री अब वह है, उसे ही सबको सम्भालना है।

तभी सीडियों से भूकम्प की तरह शोर मचाते हुए आशा और सशा उतर पडी। सशा चिल्लाकर रोती हुई बोल रही थी।

सशा: देखो न दीदी, आशा मुझे अपनी ड्रेस पहनने नहीं दे रही है।
निशा: अरे तुम दोनों फिर शुरू हो गई। पापा, आप ही सम्भालिए इन्हे।
पापा: अरे भाई क्या हुआ।
सशा: देखो न पापा, आशा मुझे अपनी ड्रेस पहनने नहीं दे रही है।
आशा: अरे बुद्धू, वह तेरी साइज की नहीं है। अपना चेस्ट तो देख। दीदी, तुम ही समझाओ इस फूल को
सशा: फूल होगी तु। सिर्फ 2 इंच कम है मेरी तुम से। जब मैं तेरी ब्रा पहन सकती हु तो ड्रेस क्यों नही।
निशा: यह बात तो सही है। आशा, तो फिर क्या प्रोब्लम।
आशा: दीदि, ये हैगिंग ड्रेस है। ये पहनेगी तो अच्छी नहीं लगेगी। इसके मम्मे भी नहीं दिखेंगे।
सशा: सब दिखेंगे और तेरी से भी अच्छे।
निशा: (हँसती हुई) सशा हम तुम्हारे लिए शाम को ऐसा ही ड्रेस ला देंगे। क्यों पापा?
 
जगदीश राय के समझ में नहीं आ रहा था, क्या बोले। लड़किया बड़ी भी हो गयी थी और ओपन भी। इन्हे एक औरत ही संभाल सकती थी। हलाकी निशा उनमें से बड़ी थी , पर सिर्फ 3 साल। उसके रिश्तेदारों ने कहा की , दूसरी शादी की सोच ले। पर वह इस उम्र में दूसरी बीवी नहीं लाना चाहता था। 

पापा: (बौखला के)। हाँ हाँ क्यों नही।

दोनो वहां से चली गयी। जगदीश राय ने देखा की अनजाने में उसमे एक अजीब सी लहर आ गयी थी। और ये देखकर चौक गया की उसका लंड खड़ा था। उसने जल्द से अपने पायजामा के ऊपर से लंड को ठीक कर दिया। उसे समझ में नहीं आया की ऐसा क्यों हुआ।
पापा को लंड के ऊपर से हाथ फेरकर ठीक करते हुये निशा ने देख लिया। उसने तुरंत अपना मुह दूसरी ओर घुमा दिया और किचन में चली गयी।

लंच तैयार करके निशा कॉलेज को रवाना हो गई। शाम के 5 बजे जगदीश राय घर आया तो देखा की खाने के सभी प्लेट्स हॉल में फैला हुआ है। वह जानता था की यह हरकत आशा और सशा की है। उसने चील्लाकर उन्हें बुलाया पर कोई जवाब नहीं आया। फिर वह ऊपर उनके रूम में, देखने चला गया की यह दोनों कर क्या रहे है।
रूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ था। उसने धीरे से उसे खोला तो देखा की दोनों सो रही है। दोनों के गर्दन तक चद्दर चढा हुआ था सर हाथ भी अंदर थे।सशा हर वक्त की तरह अँगूठा मुह में ले कर सोयी थी।
जगदीश राय ने सोचा की उनको जगा देंना चाहिये और अंदर आ गया। पहले आशा के पास गया।

पापा: आशा उठ जा। होमवर्क नहीं करनी है। चल सशा बेटी तू भी उठ ज। मुह हाथ धो लो।

पापा की आवाज़ सुनकर सशा थोड़ी सी हिली और फिर करवट बदलकर चद्दर से लिपटकर सो गयी। अंगूठा नींद में चूसने लगी।

आशा: क्या पापा, सोने दो न।

जगदीश राय जानता था की तीनो बेटियां में सबसे झगड़ालू और बदतमीज़ आशा है।

पापा: उठती हो या पानी मारु।

आशा: ठीक है बाबा। उठती हूँ।

यह कहकर उसने अपना पैर चद्दर से बाहर निकाल लिया। पैर देखकर जगदिश राय चौक गया। पैर कमर से लेकर पूरा नंगा था।

पापा: यह क्या। तुम्हारा पायजामा कहाँ है।
आशा: अरे हा, उसमे दाल गिर गया तो मैंने उसे धोने को डाल दिया।
पापा: तो क्या कुछ भी नहीं पहनी।
आशा: पहनी हु न। पेंटी पहनी हूँ।
 
और ये कहकर आशा ने अपने ऊपर से चद्दर हटा दिया। जगदीश राय देखता ही रह गया।

आशा ने ऊपर सिर्फ एक स्लीवलेस बनियान स्टाइल टॉप पहनी थी। उसमे से उसकी ब्रा की स्ट्राप दिख रहा थी, जो लाइट ब्लू कलर का था। टॉप सिर्फ नाभि के होल के ऊपर तक था। टॉप काफी टाइट था, उसमे से उसके चूचे उभर कर निकल रहे थे। जगदीश राय ने देखा चुच्ची बहुत बड़ी भी नहीं है, पर शेप में थी। चूचो का शेप देखकर कोई भी कह सकता था की बहुत मज़ेदार शेप है उनकी।

नाभी के छेद से लेकर कमर तक का पूरा बदन खुला था। आशा थोड़ी सांवली थी। जगदीश राय ने ये जाना की भले ही आशा बहुत गोरी नहीं थी पर उसका फिगर क़ातिलाना था।

कमर के निचे उसने एक लाल रंग की पेंटी पहनी थी। जगदीश राय ने ऐसी पेंटी पहले नहीं देखि थी। उसने देखा सिर्फ बीच के भाग पर कपडा लगा हुआ है, साइड पे सिर्फ रस्सी के शेप की डोर लगी है।

आशा खड़ी हो गयी और अपना हाथ ऊपर उठा कर बाल को बाँधने लगी। आशा को कोई शर्म नहीं आ रही थी अपने पापा के सामने ऐसा रहने से। जगदीश राय, एक छोटे बच्चे की तरह उसे देखे जा रहा था। उसका मुह सुख चूका था।
 
आशा: मेरी शॉर्ट्स कहाँ है। यहाँ पड़ी हुई थी। शायद निशा दीदी ने कप्बोर्ड में रखी होगी।

और ये कहकर आशा पलटी। जगदीश का मुह खुला रह गया। आशा की गांड पूरी नंगी थी। पेंटी की डोर गांड की दरार से चिरकर निकल रही थी, गाण्ड पर कोई कपडा नहीं था। और जहाँ वह डोर जाके मिल रहा था, वहां एक हार्ट शेप का प्लास्टिक लगा हुआ था, और उसमे लिखा था "लव यु"

जगदीश राय ने अपने आप को सम्भाला। वह जल्दी से मुड गया और जोर से कहा।

पापा: ठीक है। जल्दी से निचे आओ और उस सशा को भी उठा देना।

आशा: जो आज्ञा जहाँपनाह।

और फिर जगदीश राय बाहर आ गया। बाहर आते ही उसने चैन की सास ली। दिल ज़ोर से धड़क रहा था। वह कंफ्यूज सा हो गया की क्यों वह इतना बेचैन हुआ है। ऐसा तो नहीं की उसने आशा को पहले कभी नहीं देखा कम कपडो में, पर तब वह छोटी थी। तो अब कौन सी बहुत बड़ी है। उसे लगा की शायद उसे उनके रूम में नहीं आना चाहीए था। लड़किया अब बड़ी नहीं पर छोटी भी नहीं है। ये सब सोचकर वह सीडियों से निचे उतर रहा था, तब बेल बजा। उसने जा के दरवाज़ा खोला।

निशा: अरे पापा आप कब आए। मैं अभी चाय बनाती हूँ।
पापा: नहीं बेटी, मैं ऑफिस से पीके आया हूँ। बस अब नहाने जा रहा हूँ।।

निशा फ्रेश होकर अपने कमरे में गयी। ऊपर के तीन कमरो में, उसका एक छोटा सा कमरा था, जो वह किसी के साथ शेयर नहीं करती थी। पापा का कमरा बीच में था।
उसने अलमारी से एक वाइट टैंक-टॉप टीशर्ट पहन लिया और स्कर्ट उठा लिया। टैंक टोप पुरानी थी इसलिए छोटी थी। स्कर्ट कोई घुटनो तक का था। वह शॉर्ट्स पहनना चाहती थी पर पापा के होते हुये वह शॉर्ट्स में कम्फर्टेबले फील नहीं करती थी। मुह हाथ धोकर वह नीचे आ गई तो देखा पापा सर पर तेल मल रहे है। 

जगदीश राय एक वाइट टीशर्ट और ढिला पायजामा शॉर्ट्स पहना हुआ था। निशा की माँ थी तो वो पापा के सर और शरीर पर तेल लगा दिया करती थी, और अब पापा बेचारे खुद ही कर रहे है। निशा ने ठान लिया था की पापा को माँ की कमी कभी महसूस नहीं होने दूंग़ी।
 
निशा: पापा मैं लगा देती हूँ।
पापा: अरे नही, तुम कॉलेज से थकि आयी हो। जाओ कुछ खा लो।
निशा: नहीं मैं कैंटीन से खाके आयी हूँ।

जगदीश राय, आशा की वजह से गरम हुआ था। उसके दिमाग में वह दृश्य घूम रहा था।

तभी आशा उतरी और हॉल में आ गयी।
आशा: पापा दीदी मैं और सशा वैलेंटाइन कार्ड लेने जा रहे है।
निशा: अरे वो, तुम्हारा कौन सा बॉयफ्रेंड है।
आशा: कई है। सबको बताती फिरूंगी। और चिल्लाने लगी, सशा सशा जल्दी आ। मैं नहीं रूकुंगी तेरे लिये। उफ्फ,छोटी उम्र में इतना सवरना।

जगदीश राय निशा के तरफ देखने लगा, मानो की सवाल पूछ रहा हो। निशा समझ गयी। निशा ने नकारते हुये सर हिला दिया और जगदिश राय समझ गया की आशा सिर्फ मज़ाक़ कर रही है, उसका कोई बॉय फ्रेंड नहीं है।

तभी सशा हॉल में आ गयी। उसने एक छोटा स्कर्ट पहने हुआ था और बड़ी प्यारी लग रही थी। सीडियों से कुदते वक़्त उसके छोटे चुचे हिल रहे थे और स्कर्ट भी उछल रहा था। जगदीश राइ ने सोचा की सशा ठीक कह रही है, की उसके बूब्स छोटे नहीं है।

ये सोच आते ही, जगदीश राय अपने आप को कोसने लगा की उसे यह ख्याल आया कैसे।
सशा और आशा दोनों चले गये। निशा अपने पापा के पास आयी और कहा।

निशा: लाओ तेल की शीशी।

जगदीश राय नीचे बैठ गया और निशा सोफे पर बैठ गयी।

निशा: पापा, आप मेरे पैरो के बीच बैठ जाइये ताकि मैं आपके सर पर तेल लगा सकुं।
पापा: ठीक है बेटी
निशा: रुको, अपना शर्ट उतार लो।
पापा: क्यु
निशा: आपके शरीर पर तेल नहीं लगाना है क्या। और तेल से शर्ट ख़राब हो जाएगा। और मुझे फिर धोना पडेगा, आपका क्या।

निशा अब पूरा एक घर सँभालने वाली औरत की तरफ बोल रही थी। जगदीश राय भी मुस्कुरा दिया।
और उसने शर्ट उतार दिया। अब जगदीश राय सिर्फ एक ढीला पायजामा शॉर्ट्स पहने बेठा था।
 
पापा: शरीर पर मैं लगा दूंगा। तू बस सर पर लगा।
निशा कुछ नहीं बोली और तेल सर पर लगाना शुरू कर दिया। तभी उसने कहा।

निशा: ओह ओह। तेल स्कर्ट पर गिर रहा है। रुको।

और उसने अपना स्कर्ट बीच से पकड़ कर ऊपर उठा लिया और उसे अपने थाइस के बीच में घुसा दिया। इससे स्कर्ट एक शॉर्ट्स जैसे हो गया था। मानो, बहुत ही छोटा शॉर्टस।

निशा: हाँ अब ठिक़। पीछे आओ पापा। मेरे पैरो के बीच ठीक से बैठो।

जगदीश राय पीछे मुड़कर देखा तो नज़ारा बहुत प्यारा था। सोफे पर उसकी बेटी पूरी जाँघ दिखा कर बैठी थी। गोरी मुलायम जांघ। जांघ इतना सॉफ्ट दिख रहा था की हाथ लगाओ तो फिसल जाए।निशा ने स्कर्ट इतना अंदर घुसा दिया था और पैर इतना खुला रखा था, की जाँघ के अंदर का भाग भी दिख रहा था जो थोड़ा सांवला था।

जगदीश राय का दिल धड़क रहा था , और वह इस परिस्थिती से बचना चाहता था।
पापा: अरे बेटी, मैं एक काम करता हु , चेयर पर बैठता ह, तुम पीछे से खड़ी होकर लगा देना, ठीक है। 
निशा: नही, खड़े रहकर सर पर तेल लगाना मुश्किल होता है। मुझे पता है।

जगदीश राय वैसे ही बड़े भोले और चुप किसम के इंसान थे। तो वह जानता था की इन लड़कियों से जीतना मुश्किल है।
मचलते और धडकते दिल लेकर जगदीश राय मुड गया और अपना नंगा शरीर निशा की जांघ से टेक कर बैठ गया।


यहाँ जगदीश राय का गरम और खुरदरा जांघ जैसे ही निशा की जांघ से टकराया , जगदीश राय के शरीर में एक अजीब सी ग़र्मी मच गयी। मानो एक साथ 2 व्हिस्की के गिलास पेट में गया हो। 
वो अपने जांघो द्वारा निशा के गरम जांघ की गर्मी चूस रहा था। और चूसा हुआ गर्मी सीधे उसके लंड पर जाकर रुक रहा था। उसका लंड अपने पुरे आकार में खड़ा था। 

दूसरी तरफ निशा का हाल बुरा हो चला था। पहले तो अनजाने में उसने अपने पापा को बुलाकर बैठाया था पर अब अपने जांघ पापा के कंधे पर टीका होने से उसे अजीब सा महसूस हो रहा था। उसने सोचा की पापा को बोलू थोड़ा आगे होने के लिए पर वह पापा को कोई गलत सिग्नल नहीं देना चाहती थी। उसने सोचा की जल्दी से तेल लगा लूँगी और उठ जाऊंगी।

पर पापा का गरम हाथ और कंधा उसके जाँघ और जिस्म को गरम कर चला था। निशा की चूत अपने स्कर्ट और पेंटी में ढकी हुई थी पर पापा के गर्दन से कुछ 6 इंच की दूरी पर थी। 

एक जवान कुवारी लड़की के लिए इतना मिलन उसको मदहोश करने के लिए काफी था। खास कर निशा जैसे लड़की के लिए।
उसका कोई बॉयफ्रेंड नहीं था, हालाकी वो हर वक़्त अपने बाकि सहेलीयों की तरह एक बार शादी से पहले चुदना चाहती थी। पर वह ऐसा साथी चाहती थी जो उसका ख्याल करे और वह केवल चुदना नहीं बल्कि प्यार करता हो। उसके मन में अभी वो सभी ब्लू फिल्म के पिक्चर दौड रहे थे जो उसने छुप छुप के इंटरनेट में देखी थी।

वही जगदीश राय ऑंखें बंद करके उस पल को पूरी तरह एन्जॉय कर रहा था और उसका हाथ अपने लंड के ऊपर से उसको दबा रहा था।
 
निशा ने काँपते स्वर से कहा,
निशा: पापा आप।। अपना सर थोड़ा पीछे करो, तेल लगाना चालु करती हूँ।

पापा के सर पीछे करते ही निशा ने हाथो में तेल लिया और पापा के सर पर मल दिया। 
और वह धीरे धीरे पापा के सर को मलने लगी। वह अनजाने में अपना उंगलिया और हाथ बहुत धीरे और गोल गोल घुमा रही थी। कभी वह पापा के बालों को पकड़ कर मरोड़ देती। 

जगदीश राय ने ऐसी तेल मालिश कभी नहीं कारवाई थी और पूरी तरह एन्जॉय कर रहा था। वह अपने आप में नहीं था और नहीं कुछ सोचना चाहता था । वह बस इस पल को पूरी तरह एन्जॉय करना चाहता था।

मालिश करते करते निशा जगदिश राय के कानो तक पहुच गयी। उसने देखा कान बहुत लाल हो चुके है। उसने कानो को अपने हाथो में पकड़ा और धीरे सहलाना शुरू किया।
दोनो बाप बेटी कुछ नहीं बोल रहे थे। पुरी रूम में बस उनकी तेज़ साँसे और तेल मलने की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
जगदीश राय का दिमाग बहुत सारे खयालो से गुज़र रहा था। उसने सोचा की मालिश अभी बंद होने वाली है क्युकी उसने कहाँ की शरीर पर तेल वह लगा लेगा। और वह धीरे धीरे अपने शॉर्ट्स को सेट कर रहा था ताकि निशा उसका खड़ा लंड न देख सके।
पर निशा उनके कान को सहलाती जा रही थी। फिर निशा ने धीरे से अपना दोनों हाथ पापा के कंधो में ले गई और वहां मसाज करना शुरू कर दिया। कंधो का मसाज करने के लिए उसे अपने पैरो को खोलना पडा, और उसने पैरो को खोला। और ऐसा करते ही वह पापा के सर के क़रीब आ गई।

निशा मन में बोल रही थी: ये मेरे प्यारे पापा है, जो अब बहुत दुखी है। इनका ख्याल मुझे रखना है। मैं अब पीछे हट नहीं सकती। 

और वह अपने पापा को दिखाना चाहती थी की वह उनकी प्यारी बेटी है।

निशा पुरे ताकत से अपने आप को झुका कर , पापा के कंधो से हाथ फेरते हुआ पूरा उनकी कलाई तक ले जा रही थी। और ऐसा करते वक़्त निशा के बूब्स पापा के सर पर टकरा रहे थे।

जगदीश राय, निशा की इन हरक़तों से पागल हो चला था। 6 महीने से उसने मुठ तक नहीं मारी थी और आज उसे लग रहा था की उसका कम वही निकल जाएगा। निशा ज़ोर ज़ोर से पापा के हाथो का मालिश करते जा रही थी और फिर जल्द उसने थोड़ा और तेल लिया और पापा के पीछे से झूक कर उनके छाती पर मलना शुरू किया।
पापा की छाती उसने आज पहली बार इतनी मदहोशी में छुआ था। और उसने पाया की उनकी छाती भट्टी की तरह गरम है। और वह उस पर तेल मलने लगी, ज़ोर ज़ोर से।
 
जगदीश राय से यह रहा नहीं गया, और उसने अपना सर पीछे मोड़ दिया। और तभी निशा झुकी और उसने अपना बूब्स पापा के मुह से सटा पाया। पापा के मुह की गरम साँस उसे चूचो पर लग रहा था। वह कसमसायी, पर अपने कर्त्तव्य से पीछे नहीं हटी।
जगदीश राय निशा की बूब्स अपने मुह के ऊपर पाकर ऐसा महसूस कर रहा था की मानो जन्नत प्राप्त हुआ हो। उसे पता था की निशा की बूब्स बड़ी है पर आज उसने जाना की कितनी भरी हुई है। उसके दोनों चूचो के बीच उसका पूरा मुह अंदर समां गया। और निशा अब तक 20 की भी नहीं थी।
उसने दो बार निशा के बूब्स से अपना मुह सहलाना के बाद , अपना सर आगे की तरफ सीधा कर दिया।

निशा अभी भी अपने आप को झुका कर , पापा के छाती पर तेल मली जा रही थी। वह अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी। पैर खुले होने के वजह से, उसका चूत पूरा खुला हुआ था। और चूत पूरी गिली हो गई थी। उसका मन लग रहा था की उसके पेंटी को फाडकर, अपना तेल से लथपथ हाथ लेकर चूत को मसले। पर वह पापा के सामने नहीं करना चाहती थी। 

मालिश करने के जोश में उसने अपने स्कर्ट पर ध्यान नहीं रखा और स्कर्ट अब तक कमर तक पहुच चुकी थी। अब उसकी चूत पर सिर्फ एक पतली सी पेंटी थी जो उसकी पूरी चूत को छुपा तो रही थी, पर वह पूरी गिली हो चुकी थी। निशा की चूत ने लगतार पानी छोडा था।

न जगदीश राय जानता था की निशा का यह हाल और न निशा जानती थी अपने पापा का हाल। निशा अब पूरी लगन से , झुक झुक कर, चूचो को अपने पापा पे मसल कर तेल लगायी जा रही थी। वह पूरी गरम और मदहोश हो चुकी थी। उसे लगा उसका पानी अब कभी भी छूट सकता है, पर अपने आप को कण्ट्रोल कर रही थी।

तब जगदीश राय ने अपनी खुद की मदहोशी में अपना गर्दन पीछ को सरकाया। निशा उसी वक़्त आगे सरकी और निशा की गोरी मुलायम पेंटी में छिपी गीली चूत अपने पापा के नंगे गरम जाँघ से जा मिली। एक ४०० वाट करंट निशा की पूरी शरीर पर एक लहर की तरह फ़ैल उठी और वह ज़ोर से चिल्लायी और चिल्लाती गयी।
निशा : अहहहहहहह…। अह्हह्ह्ह्ह…।डहह्हह्हह…अह्ह्ह्।। आह।
 
जगदीश राय चौक पड़ा और वह तुरन्त पीछे मुडा। और वह नज़ारा देखकर वह बौखला गया।उसने देखा निशा सोफे पर लेटी, मुह खोले हाँफ़ रही है और उसकी ऑंखें बंद है। निशा का पूरा गोरा बदन पसीने से चमक रहा है।उसकी वाइट टी शर्ट पसीने से पूरी चिपकी हुई है, जिसमें से उसकी लाल ब्रा साफ़ दिखाई दे रही है। वह हाफ़ और कांप रही है और तेज़ सासो से उसकी बड़ी मुलायम चूचे ऊपर नीचे हो रही है। उसका स्कर्ट पूरा ऊपर पेट तक चढा हुआ है। दोनों पैर पूरी खुली हुई है। और पैर के बीच में उसकी वाइट पेंटी दिख रही है। पेंटी पूरी गीली है मानो किसी ने पानी मारा हो। और गीली पेंटी में छिपा हुआ चूत के बाल साफ़ दिख रहे है। निशा की जाँघ अभी भी कांप रही थी। जगदीश राय को देर नहीं लगी समझने में की उसकी बेटी को ओर्गास्म आया है और उसकी चूत अभी भी पानी छोडे जा रही है।

करीब 2 मिनट में निशा ने आँख खोला और पाया की पापा उसके नीचे बैठे उसकी तरफ देख रहे है। उसने देखा की पापा की ऑंखों में एक अजीब सा भाव था जो वह जान न सकी। तब उसकी नज़र अपने आप पर पड़ी और वह शर्मा गयी। उसने तुरंत अपना स्कर्ट से अपने गीली चूत को छुपाया। निशा और पापा दोनों एक दूसरे को घुरे जा रहे थे और बिना कुछ बोले ही वह दोनों बहुत कुछ बोल चुके थे। निशा उठी और चुपचाप ऊपर अपने कमरे में गयी। जगदीश राय अपने बेटी की सीडी चढ़ते हुए मटकड़े गांड को एक नये नज़रिये से देखने लगा और अपना लंड तेल से मलने लगा।
 
निशा के पैर सीढी चढने के क़ाबिल नहीं थे, कांप रहे थे। थोडा तो ओर्गास्म का असर था और थोड़ा गुज़रे हुये पल का। 
फिर भी वह अपने कमरे तक तेज़ी से चली गयी और अंदर जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया।

दरवज़ा बंद करते ही वह अपने बेड पर लेट गयी। ऑंखे मूंदकर अपने सासों को काबू में लाने का प्रयत्न करने लगी।
पर उसके ऑंखों के सामने अपना पापा का तेल से लथपथ शरीर और उनकी काम वासना की नज़र लगतार झलक रहा था। वह चाहते हुए भी उसे दूर नहीं कर पा रही थी।वह बेड से उठी और अपनी चिपचिपी पेंटी में हाथ डालकर उसे खीच कर बाहर निकाल फेका।पेंटी की हालत देखकर वह हैरान रह गयी।

निशा (मन ही मन में): क्या इतना सारा पानी निकला मेरा। ओह गॉड़। पेंटी पूरी गिली हो गयी। 

वह अपना हाथ चूत में ले गयी और अपने दाए हाथ की बड़ी ऊँगली चूत में घुसा दी।

निशा: आहहः।।।

मुह से एक ख़ुशी की आह निकली। फिर उसने धीरे से ऊँगली बहार खीच लिया। ऊँगली पूरी गिली थी और उसपर लगा हुआ पानी बल्ब की रौशनी में चमक रहा था।

निशा बहुत बार मुठ मार चुकी थी, पर इतना पानी और मज़ा उसे कभी नहीं मिला था।

वह उठी और बाथरूम जाकर पिशाब करने के बाद, वह थोड़ा बेहतर महसूस कर पायी। और झूक कर वॉशबेसिन में अपने चेहरे पर बहुत सारा पानी मारा। 
अपना पानी लगा चेहरा , मिरर में देखने लगी। और सोचने लगी।।।।

निशा: यह क्या हो गया था मुझे। अपने पापा को कैसे मैं ऐसा देखने लगी। और पापा मुझे ऐसा क्यों घूर रहे थे। क्या उनका भी हाल मेरे जैसा हुआ होगा? नहीं , बिलकुल नही। पर उनका चेहरे का भाव में तो वासना भरी हुई थी। और वह मेरी चूत को क्यों घूर रहे थे?

यह सवाल वह अपने आप से कर रही थी। वह अपना मुह पोंछ कर एक दूसरी टीशर्ट पहन ली और शॉर्ट्स पहन ली। इस बार उसने एक मोटी पेंटी पहन लिया जो वह अपने पीरियड्स के वक़्त पहनती है।
उसे अब अपने चूत पर भरोसा नहीं रहा या यु कहिये अपने आप पर भरोसा नहीं था।

अब उसे बाहर जाकर खाना बनाना था। रात होने वाली थी, आशा सशा आती ही होंगी। पर वह पापा को फेस नहीं करना चाहती थी। दरवाज़ा के पास आकर वह सोचने लगी की क्या करे।

निशा मन में: शायद मैं पापा के नहाने जाने तक वेट करती हूँ, फिर चली जाऊंगी।
 
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