Hindi Sex Stories By raj sharma - Page 15 - SexBaba
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Hindi Sex Stories By raj sharma

मेरी एक शादीशुदा सहेली ने बताया की गांद मरवाने से बहुत दर्द होता है और तुम तो बहुत बेदर्दी से करते हो. तो मैने बोला कि नही मेरी जान इस बार मैं धीरे धीरे करूँगा ,तो बहुत मिंन्नत करने के बाद वो बोली की ठीक है लेकिन धीरे धीरे, मैने कज़िन को कहा कि वो एक टांग को दीवाल के सहारे फैला दे उसने वैसा ही किया और मैने आपने लंड का सूपड़ा उसकी चूत पर रख कर और उसके कमर को ज़ोर से पकड़ा और लंड को घुस्सा दिया और उसे चोदने लगा ,ऐसा करने से उसके मूह से ज़ोर से "आआआअहह" निकल गयी थी ,मैं उसके गांद के साइड से उसे खड़े खड़े चोद रहा था और नीलिमा मेरे बालो को और हाथ को पकड़ कर "आअहह आआहह आहह आस्स्स्स्स्स्स्स्सिईई सस्स्स्स्स्स्स्स्साइीइ की आवाज़ निकाल रही थी" करीब 10 मिनिट चोदने के बाद मैने देखा की नीलिमा ढीली पड़ गयी थी मैं समझ गया कि इसका पानी निकल गया है फिर मैने अपना लंड उसकी चूत से निकाल कर नीलिमा को झुकने को कहा और उसकी गांद पर सूपड़ा रख दिया और हल्का सा धक्का दिया लेकिन मेरा लंड भीतर नही जा रहा था .मैने तुरंत अपने मूह से थूक निकाल कर थोड़ी सी गांद के छेद पर और अपने लंड पर लगाई और फिर से गांद के छेद पर रख कर ज़ोर से पेला इस बार मेरा सूपड़ा अंदर चला गया नीलिमा ज़ोर ज़ोर से आहह भरने लगी वो चिल्लाईयौर बोली" आआआआहह.. भैय्ाआआ… निकालूओ… फट गाइिईईईई मेरी गांद…. कितना मोटा हाईईईई… दर्द हो रहा हाईईईई…..निकाल लो भैया बहुत दर्द हो रहा है "मैने बोला "थोड़ी देर रुक जाओ "और मैं उसकी कमर पकड़ कर ज़ोर से 3-4 शॉट मारा और मेरा पूरा लंड उसकी गांद मे घुस्स गया नीलिमा ज़ोर ज़ोर से कराह रही थी और मैं उसके चुचि को दबा रहा था और अपना लंड उसकी मस्त गांद मे अंदर बाहर कर रहा था .नीलिमा आआहाहह आआआअहह आह ऊऊओह किए जा रही थोड़ी देर के बाद नीलिमा सिर्फ़ सीईईईईई सीयी सीईइ कर रही थी अब उसे भी मज़्ज़ा आ रहा था वो भी गांद को धीरे धीरे पीछे कर रही थी . 10 मिनिट पूरे ज़ोर से पेलाई के बाद ,मैने आपना पानी नीलिमा रानी के गांद मे ही डाल दिया और मैं नीलिमा के होंठो को चूमने लगा और हल्के हल्के उसके चुचि दबा रहा था.थोड़ी देर मे हम दोनो ठंडे हो गये . 
नीलिमा ने मुझे प्यार से मारते हुए कहा कि मैं आप से कभी नही ये सब करवाउँगा आप बहुत ज़ोर से करते हो और मुझे मारने लगी मैने उसे किस कर के शांत किया और बोला मेरी प्यारी नीलू मुझे माफ़ कर दो मैने तुम्हारे प्यार मे पागल होकर ऐसा किया और फिर हमने कपड़े बदले और जाकर सो गये . 
समाप्त
 
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ख्वाब था शायद--1 

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और कहानी लेकर हाजिर हूँ
"छ्चोड़ क्यूँ नही देते ये सब?" वो प्यार से मेरे बाल सहलाती हुई बोली 

"क्या छ्चोड़ दूँ?" मैं उसके गले को चूमता हुआ अपनी कमर को और तेज़ी से हिलाता हुआ बोला 

"तुम जानते हो मैं किस बारे में बात कर रही हूँ" 


वो हमेशा यही करती थी. अच्छी तरह से जानती थी के सेक्स के वक़्त मुझे उसका ये टॉपिक छेड़ना बिल्कुल पसंद नही था पर फिर भी. 

"क्या यार तू भी ....." मैं उसके उपेर से हटकर साइड में लेट गया "साला हर बार एक ही मगज मारी. और कोई वक़्त मिलता नही है तेरे को? जब मैं तेरे उपेर चढ़ता हूँ तभी तुझे ध्यान आता है मुझे उपदेश सुनाना?" 

"हां" उसने चादर अपने उपेर खींच कर अपने नंगे शरीर को ढका "क्यूंकी यही एक ऐसा वक़्त होता है जब तुम मेरी सुनते हो, बाकी टाइम तो कोई तुम्हारे सामने ज़रा सी आवाज़ भी निकले तो तुम उस पर बंदूक तान देते हो" 

"तेरे पे कब बंदूक तानी मैने?" मैने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ करवट ली "साली जो दिल में आता है मेरे को बोलती है, कभी पलटके कुच्छ कहा मैं तुझे? साला आवाज़ ऊँची नही करता मैं तेरे आगे और तू बंदूक निकालने की बात कर रही है" 

"मेरे बोलने का कोई फ़ायदा भी तो हो मगर ...." 

"हां फायडा है ना" मैं उसके बालों में हाथ फिराया "पहले हर कोई कहता था के भाई शेर ख़ान सिर्फ़ नाम का ही शेर नही, जिगर का भी शेर है. अब हर कोई कहता है के शेर ख़ान सिर्फ़ नाम का शेर है, एक औरत से डरता है" 


मेरे बात सुनकर वो ऐसे चहकी जैसे कोई छ्होटी बच्ची. 


"हां पता है मुझे, कल वो फ़िरोज़ बता रहा था. मुझे तो बड़ा मज़ा आया सुनकर" 


उसका यही बचपाना था जिसका मैं दीवाना था. 5 साल पहले जब उसको पहली बार मेरे कमरे में लाया गया था तो वो उस सिर्फ़ एक डरी सहमी अपनी मजबूरी की मारी परेशन सी लड़की थी और मैं शराब के नशे में झूम रहा था. 


"चल कपड़े उतार" मैने बिस्तर पर बैठे बैठे कहा. 

उसके बाल बिखरे हुए थे जिनको उसने समेट कर अपने चेहरे से हटाया और मेरे आगे हाथ जोड़े. 

"मुझे जाने दीजिए" 

मैं गुस्से में उसकी तरफ पलटा और तब पहली बार मैने उसका चेहरा देखा था. बड़ी बड़ी आँखें, हल्की सावली रंगत, लंबे बाल, तीखे नैन नक्श. मुझे याद भी नही था के अपनी पूरी ज़िंदगी में मैं कितनी औरतों के साथ सो चुका था. मामूली रंडी से लेकर बॉलीवुड की खूबसूरत आक्ट्रेस, सूपर मॉडेल्स, सबको भोग चुका था मैं पर जाने क्यूँ जब पहली बार उसके चेहरे पर नज़र पड़ी फिर हटी नही. 


"नाम क्या है तेरा?" 

"नीलम" वो हाथ जोड़े किसी सूखे पत्ते की तरह काँप रही थी "ज़बरदस्ती उठाकर लाए मुझे" 


उसके बाप ने नया धंधा शुरू करने के लिए हमसे पैसे उधर लिए थे. धंधा तो चला नही उल्टा बुड्ढ़ा साला अपनी बीवी बेटी पर कर्ज़ा छ्चोड़कर ट्रेन के आगे जा कूदा. मेरे आदमी पैसा ना मिलने पर उसे उठा लाए. इरादा तो उसे कोठे पर ले जाकर बेचने का था पर उस रात के बाद वो सीधे मेरे दिल में आ बैठी. 


मैने कभी कोई ज़बरदस्ती नही की उसके साथ. इज़्ज़त से उसे वापिस घर भिजवाया, नया बिज़्नेस शुरू कराया, उसका और उसकी माँ का ध्यान रखने के लिए अपने कुच्छ आदमी लगाए और बदले में उससे कुच्छ नही माँगा. पर धीरे धीरे कब वो मेरी ज़िंदगी में आई, मुझे खुद भी एहसास नही हुआ. 


"मैं ये इसलिए नही कर रही के मैं तुम्हारा एहसान चुकाना चाहती हूँ. बल्कि इसलिए के मैं दिल-ओ-जान से तुम्हें चाहती हूँ" मेरे साथ पहली बार सोने से पहले उसने कहा था. 


मैं उसकी हर माँग, हर बात पूरी करता था. सिवाय एक के. के मैं धंधा छ्चोड़ कर एक शरिफ्फ आदमी की ज़िंदगी गुज़ारू. अब कोई एक शेर से कहे के वो शाका-हारी हो जाए तो ऐसा कभी हो सकता है भला? 


"मुझे डर लगता है" वो अक्सर रोकर मुझसे कहा करती थी. "सारी दुनिया में दुश्मन हैं तुम्हारे. किसी ने कुच्छ कर दिया तो?" 

"चिंता ना कर" मैं हमेशा हॅस्कर उसकी बात ताल देता था "शेर ख़ान को हाथ लगाए, वो साला अभी पैदा नही हुआ" 


जब वो देखती के मैं डरने वालों में से नही हूँ तो एमोशनल अत्याचार वाला तरीका अपनाती. 


"मेरे लिए इतना भी नही कर सकते क्या?" उसके वही एक घिसा पिटा डाइलॉग होता था 

"तेरे लिए इतना किया मैने. तू मेरे लिए एक इतना सा काम नही कर सकती के मेरे धंधे को बर्दाश्त कर ले?" मेरे वही घिसा पिटा जवाब होता था.
 
दिल ही दिल में मैं जानता था के उसका यूँ डरना वाजिब भी था. 5 बार मुझपर हमला उस वक़्त हुआ जबके मैं उसके साथ था. हर बार लाश हमला करने वाले की ही गिरी पर शायद कहीं ये बात मैं भी जानता था के बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी. 


मैने एक नज़र उसपर डाली तो मेरी बाहों में सिमटी, मेरी छाती पर सर रखे वो कबकि नींद के आगोश में जा चुकी थी. घड़ी पर नज़र डाली तो रात के 2 बाज रहे थे. 


ये फ्लॅट मैने ही उसे लेकर दिया था. इंसानी सहूलियत की हर चीज़ इस फ्लॅट में मौजूद थी. उसने जिस चीज़ की ख्वाहिश की, जिस चीज़ पर अंगुली रखी मैने वो लाकर उसे दे दी. 


"सब होता है मेरे पास, एक सिवाय तुम्हारे" वो अक्सर शिकायत किया करती थी. 

उसकी माँ को मरे 2 साल हो गये थे और उसके बाद से वो इस फ्लॅट में अकेली ही रहती थी. उसका दूर का कोई एक मूहबोला भाई भी था जिससे मैं कभी मिला नही था. मेरा तो वैसे ही कोई ठिकाना नही होता था. कभी शहर से बाहर तो कभी देश से बाहर. सच कहूँ मेरा आधे से ज़्यादा वक़्त धंधे के चक्कर में "बाहर" ही गुज़रता था पर जब भी शहर में होता, तो उसके यहाँ ही रुकता था. 


"एहसान करते हो ना बड़ा मुझपे. और बाकी रातें कौन होती है बिस्तर पर तुम्हारे साथ?" अक्सर वो चिड़कर कहा करती थी. 


मैने धीरे से उसका सर अपनी छाती से हटाया और नीचे तकिये पर रख दिया. वो बिना कोई कपड़े पहने बेख़बर सो रही थी. चादर खींच कर मैने उसके जिस्म को ढका और बिस्तर से उठा. 


मुझे सिगरेट की तलब उठ रही थी पर बेडरूम में सिगरेट या शराब पीने की मुझे सख़्त मनाही थी. यूँ तो मेरे साथ रह रहकर वो भी थोड़ी बहुत पीने लगी थी पर जाने क्यूँ बेडरूम में सिगरेट या शराब ले जाना उसे बिल्कुल पसंद नही था. 


बेडरूम से बाहर निकल कर मैने एक सिगरेट जलाई और हल्के कदमों से किचन की तरफ चला. मैं उस रात ही दुबई से इंडिया वापिस आया था और एरपोर्ट से सीधा उसके पास आ गया था. जैसा की हमेशा होता था, वो मेरे इंतेज़ार में बैठी थी और जिस तरह के कपड़े पहेन कर बैठी थी उस हालत में उसको देख कर किसी नमार्द का भी खड़ा हो जाता.


ऐसा ही कुच्छ मेरे साथ भी हुआ था. 


मेरे कमरे में घुसते ही हम एक दूसरे से भीड़ पड़े और फिर ऐसे ही सो गये. नतीजतन मुझे उस वक़्त बहुत तेज़ भूख लगी थी. 


फ्रिड्ज खोला तो उसमें अंदर कुच्छ नही था, सिवाय एक आधे बचे पिज़्ज़ा के. 
मैने एक ठंडी आह भरी और पिज़्ज़ा निकाल कर ओवेन में रखा. मुझे ये अँग्रेज़ी खाने कभी पसंद नही आते थे. दिल से मैं पक्का हिन्दुस्तानी था और जब तक दाल रोटी पेट में ना जाए, तसल्ली नही होती थी. 


पर दाल रोटी उस वक़्त मौजूद थी नही तो पिज़्ज़ा से ही काम चलाना पड़ा. 
क्रमशः....................
 
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ख्वाब था शायद--2 

गतान्क से आगे................................. 

उसके लिविंग रूम में ही हम दोनो ने एक छ्होटा सा बार बना रखा था जहाँ थोड़ी बहुत, पर उम्दा और महेंगी, शराब की बॉटल्स रखी हुई थी. गरम पिज़्ज़ा एक प्लेट में उठा कर मैं बार काउंटर पर ही आ बैठा. 


एक 1958 वाइन निकाल कर मैने ग्लास में डाली और पिज़्ज़ा खाते हुए हल्के घूंठ लेने लगा. 


जब कमरे में लगे बड़े से पुराने ज़माने के आंटीक घंटे ने 4 बजाए तो जैसे मेरा ध्यान सा टूटा. 


समझ में नही आया के मैं नींद में बैठा पी रहा था या नशे में बैठा सो रहा था क्यूंकी मेरे आगे वाइन की 2 खाली बॉटल्स रखी हुई थी. मैं पिच्छले 2 घंटे से अकेला बैठा पी रहा था और 2 बॉटल्स गटक चुका था. 


"वाउ" मैने अपने आप से कहा और खड़े होने की सोच ही रहा था के 2 चीज़ों का एहसास एक साथ हुआ. 

पहले तो ये के मैने बहुत ज़्यादा पी रखी थी. 

दूसरा एहसास या यूँ कह लीजिए यकीन ये हुआ के मैं कमरे में अकेला नही हूँ. मैं जिस आंगल पर बैठा था वहाँ से अगर बेडरूम का दरवाज़ा खुलता तो सबसे पहले मुझे दिखाई देता यानी के नीलम अब तक बेडरूम में ही थी. 

मतलब फ्लॅट में हम दोनो के सिवा कोई और तीसरा भी था. 


इतने साल अंडरवर्ल्ड में रहने के बाद और इतनी बार हमला होने के बाद जो एक चीज़ मैने सीखी थी वो ये थी के अपनी गन हमेशा अपने पास रखो, जब हॅगने मूतने जाओ तब भी. 


उस वक़्त भी मेरी रेवोल्वेर मेरे सामने ही रखी हुई थी. 

कमरे में रोशनी के नाम पर कोने में एक ज़ीरो वॉल्ट का बल्ब जल रहा था इसलिए रोशनी ना के बराबर ही थी. ख़ास तौर से बार में तो तकरीबन पूरा अंधेरा ही था फिर भी सामने रखी खाली शराब की बॉटल में मैने गौर से देखा तो अपने शक पर यकीन हो गया. 


कमरे में ठीक मेरे पिछे कोई खड़ा था. मैने बहुत ज़्यादा पी रखी थी और खुद मैं ये बात जानता था इसलिए कहीं दिमाग़ में ऐसा भी लग रहा था के ये सब मेरा वेहम है. 


वो जिस जगह पर खड़ा था वहाँ भी पूरी तरह अंधेरा ही था इसलिए मैं कुच्छ देख तो नही पाया पर इस बात का यकीन हो गया के वो आदमी पूरी कोशिश कर रहा था के मैं उसे देख ना सकूँ. 


मैने अपनी सामने रखी रेवोल्वेर उठाई और अँगुलिया ट्रिग्गर पर कस ली. नज़र अब भी सामने रखी वाइन बॉटल पर थी जिसमें मैं उस आदमी की हरकत देख सकता था. 
मेरी समझ में नही आ रहा था के क्या करूँ. या पलटकर खुद वार करूँ या फिर उस शख्स के वार करने का इंतेज़ार करूँ. पर इंतेज़ार करने में एक ख़तरा था. इंतेज़ार करने का मतलब था उसको आराम से निशाना लगाने का वक़्त देना. पर अगर उसके पास बंदूक की जगह चाकू हो तो? तब तो वो दूर से वार नही कर सकता. 


और जैसे उस इंसान ने भी मेरी दिल की बात सुन सी ली. वो अचानक अपनी जगह से हिलता हुआ मेरी तरफ बढ़ा. ठीक उसी वक़्त मैने अपना रेवोल्वेर वाला हाथ घुमाया और कमरे में एक गोली की आवाज़ गूँज उठी.
 
सोते सोते मेरी आँख अचानक खुल गयी. हाथ लगा कर देखा तो ए.सी. ऑन के बावजूद माथे पर पसीने की बूँदें थी. मैं फ़ौरन उठकर बिस्तर पर सीधा बैठ गया. 


नीलम अपनी जगह पर मौजूद नही थी. 


मैने साइड वेल ड्रॉयर से एक सिगरेट निकाली और जलाकर हल्के काश लगाने लगा. यूँ तो बेडरूम में सिगरेट या शराब पीने की मुझे सख़्त मनाही थी पर फिर भी कभी कभी मैं परेशान होता तो नीलम के मना करने के बावजूद एक सिगरेट जला ही लेता था. 

मेरे साथ रह रहकर वो भी थोड़ी बहुत पीने लगी थी पर जाने क्यूँ बेडरूम में सिगरेट या शराब ले जाना उसे बिल्कुल पसंद नही था. 


सिगरेट पीता हुआ मैं अपने ख्वाब के बारे में सोचने लगा. हैरत की बात थी के ख्वाब मैने अभी थोड़ी देर पहले ही देखा था पर मुझे कुच्छ भी याद नही आ रहा था के एग्ज़ॅक्ट्ली हुआ क्या था. 


हां इतना ज़रूर याद था के आख़िर में एक गोली चली थी जिसके आवाज़ से घबरा कर मेरी नीद टूट गयी थी. गोली चलने से पहले क्या हुआ था, मुझे कुच्छ याद ही नही आ रहा था. 


एक सिगरेट ख़तम होने के बाद मैं दूसरी जला ही रहा था तो मेरा ध्यान खाली पड़े बिस्तर की तरफ गया. जब मैने पहले नीलम को बेड पर नही पाया तो मुझे लगा के वो बाथरूम में होगी पर बाथरूम का दरवाज़ा खुला हुआ था और अंदर लाइट ऑफ थी मतलब के वो अंदर नही थी. 


"शायद बाहर होगी" सोचता हुआ मैं बेड से उठा और दूसरी सिगरेट जलाते हुए बेडरूम से बाहर निकला. 


लिविंग रूम में पूरी तरह से अंधेरा था बस कोने में एक ज़ीरो वॉल्ट का बल्ब जल रहा था. रोशनी ना के बराबर ही थी. 


लिविंग रूम के ही एक कोने में हम लोगों ने एक छ्होटा सा बार बना रखा था था जहाँ थोड़ी बहुत, पर उम्दा और महेंगी, शराब की बॉटल्स होती थी. बार बेडरूम के दरवाज़े की एकदम सीध में था इसलिए बाहर निकलते ही सबसे पहले नज़र आता था. 
बार के काउंटर पर हाथ में एक शराब का ग्लास लिए नीलम बैठी थी. 


मैं थोड़ी देर वहीं खड़ा उसे देखता रहा. कमरे के उस हिस्से में काफ़ी अंधेरा था पर बेडरूम का दरवाज़ा खुला होने की वजह से रोशनी सीधी नीलम पर पड़ रही थी. वो हाथ में एक ग्लास पकड़े बैठी हुई सो रही थी. 


मुझे समझ नही आया के वो नींद में बैठी पी रही थी या शराब के नशे में सो रही थी. 


बेडरूम से बाहर आकर मैं सबसे पहले बाथरूम की तरफ गया और जब फारिग होकर बाहर निकला तो वो तब भी वैसे ही ग्लास पकड़े बैठी सो रही थी. 


"एक वक़्त था जब ये शराब सिगरेट के बिल्कुल खिलाफ थी और आज अकेली बैठी पी रही है" दिल ही दिल में सोचकर मैं हस पड़ा. 


तभी कमरे में लगे पुराने आंटीक स्टाइल बड़े से घंटे ने 4 बजाए. उसकी अचानक आवाज़ से एक पल के लिए मैं ठिठक गया और बार पर बैठी नीलम के शरीर में भी हरकत हुई. 


"खुल गयी आँख" मैं उसकी तरफ देख कर सोचता हुआ मुस्कुराया. 


मैने कुच्छ बोलने के लिए मुँह खोला ही था के फिर मैने अपना इरादा बदल कर उसको डराने की सोची. मैं जिस जगह पर खड़ा था वहाँ पूरी तरह अंधेरा था और नीलम ने अब तक मुझे देखा नही था. मतलब मैं चुप चाप पिछे से जाकर उसे डरा सकता था. 


ऐसा करने की एक वजह ये भी थी के वो अक्सर ऐसा मेरे साथ करती थी. कभी बेख़बर बैठे हुए, कभी सोते हुए, कभी खाते हुए , अचानक पिछे से आती और ज़ोर से चिल्ला कर मेरी जान निकाल देती थी. 


"आज मेरी बारी है जानेमन" मैं सोचा और बहुत खामोशी से अपना एक कदम आगे बढ़ाया. 


मुझे हैरत तब हुई नीलम तेज़ी के साथ मेरी तरफ पलटी. जो आखरी चीज़ मैने देखी वो उसके हाथ में थमी मेरी रेवोल्वेर थी. 


जो आखरी चीज़ मैने सुनी वो एक गोली की आवाज़ थी. 

जो आखरी चीज़ मैने महसूस कि वो मेरी छाती में उठी दर्द की लहर थी. 

समाप्त 
 
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तजुर्बा

उईईईइमाआआअ…..बसस्स्स्सस्स करूऊओ नाआ….. आआज्ज्ज्ज तो तुम मेरी जान लेने का इरादा कर के आए हो.धीरे-धीरे करो ना,मैं कही भागी तो नही जा रही…..रात भर यही रहूंगी तुम्हारे पास.किरण मेरे साथ है तो मेरे घर वाले भी मेरी चिंता नही करेंगे. मैं बाहर खड़ी ये सब सुन रही थी और वैशाली की मस्त आवाज़े मेरे कान मे समा कर मेरे गालो को और भी लाल कर रहे थे. मुझे रह-रह कर आज शाम(ईव्निंग) की बाते याद आ रही थी जब ये मेरे स्टाफ क्वॉर्टर मे आकर मुझसे मिली थी………….

किरण!प्लीज़ आज तू मेरे घर पर बोल दे ना कि मैं तेरे साथ रात मे यही रुकूंगी…डॉक्टर.अशोक का मेरे साथ पार्टी मे जाने का प्लान है. पार्टी मे नही पगली! तेरी बजाने का प्लान है ये बोल,मैने हसते हुए कहा. ओये-होये तू इतनी भी सीधी-सादी नही है जितनी मैं तुझे समझती हू. अब ये तो तेरे पर निर्भर है की तू मुझे ग़लत समझती है, मैं रिज़र्व-नेचर हू पर ईडियट नही हू. तू जो भी सही पर मेरे घर मे तेरी इमेज बेहद मजबूत कॅरक्टर वाली लड़की की है वैशाली ने चिढ़ाते हुए कहा. सो तो मैं हू ही, मैने हंस के जवाब दिया. अरे यार हमसे छ्होटी उम्र की लड़किया हमसे आगे निकल गई है और हमे आज तक दुनिया की रंगीनियो का कोई तजुर्बा ही नही हुआ. देख वैशाली तुझे जो करना है वो तू कर पर मुझे इन सबमे मत घसीट, मेरे अतीत के बारे मे जानते हुए भी तू ऐसा कैसे कह सकती है.

कौन सा अतीत,कहे का अतीत, अरे जब उसमे तेरी कोई ग़लती थी ही नही तो तू अपने आप को कैसे सज़ा दे सकती है. तेरी शादी एक आर्मी के सेकेंड-ल्यूटेनेंट से हुई, शादी वाले दिन ही बिना अपनी सुहा रात मनाए वो बॉर्डर पर चला गया, और वाहा आतंकवादियो के साथ मुठभेड़ मे शहीद हो गया तो इसमे तेरी ग़लती कहा से हुई भला. तेरे सास ससुर ने तुझे अपने घर से मनहूस कह कर निकाल दिया,तेरे भाई-लोगो ने तुझे बोझ समझ कर तुझे अपने से दूर यहा इस छ्होटे से हॉस्पिटल मे नर्स बनवा कर यही रहने को मजबूर कर दिया, इन सब मे कहा से तेरी कोई ग़लती साबित होती है. मैने सरेंडर सा करते हुए वैशाली से कहा…….ठीक है मेरी मा,तू जीती मैं हारी. अब बता मुझे क्या करना है,ये सुनते ही वैशाली के चेहरे पर मुस्कान आ गयी और उसने कहा, ज़्यादा कुच्छ नही बस मेरे घर फोन कर दे,मुझे अपनी एक मस्त सी साड़ी दे-दे जिसमे मैं गजब की सेक्सी लगू और वो स्साला ड्र.अशोक मुझे सिस्टर वैशाली की जगह डार्लिंग वैशाली कहने लगे.इतना सुनते ही नमई हंस पड़ी जिसमे वैशाली ने भी मेरा साथ दिया. अरे हां! एक और बात , उसने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा . अब और क्या! मैने खीझते हुए कहा. तुझे भी मेरे साथ पार्टी मे चलना होगा. पार्टी यही पास वाले डॉक्टर्स बिल्डिंग के टेरेस पर है और मेडम किरण जी मेरे साथ आ रही हैं न तट’स फाइनल. उसकी बात सुनकर पहले तो मैने उसे मना करना चाहा पर फिर मैने सोचा कि सच मे मेरी जिंदगी कितनी बे-नूर और फीकी हो गयी है. ना दोस्तो का साथ बसेक ढर्रे पर चलती हुई बेमानी जिंदगी.


मैने वैशाली को अपने कलेक्षन की बेस्ट साड़ी पहन’ने को दी और खुद एक आसमानी रंग का साधारण सा सलवार-कुर्ता पहन लिया. वैशाली ने ज़बरदस्ती मेरे चेहरे पर अपने साथ लाया हुआ मेक-अप के सामान से कुछ क्रीम,लोशन्स,लिपस्टिक लगा दिया जिससे मेरी सुंदरता मे सादगी के बावजूद चार चाँद लग गये. कॉलेज के टाइम मे मेरे पीछे कयि लड़के पड़े थे मगर मैने कभी किसी को लिफ्ट नही दी थी. खैर वैशाली और मैं ड्र.अशोक की पार्टी मे गये.वाहा पार्टी अपने पूरे शबाब पर थी. कुच्छ को तो मैं जानती थी पर काफ़ी सारे चेहरे मेरे लिए अंजाने थे. ड्र.अशोक ने हमारा हॉस्पिटल नया-नया जाय्न किया था, सारी फीमेल स्टाफ मे वो आते ही काफ़ी मश’हूर हो गये थे. वैशाली अपने चंचल स्वाभाव के कारण सबकी चहेती थी. शीघ्र ही वो ड्र.अशोक के दिल मे उतर गयी. आज तो वैसे ही वैशाली मेरी वाली साड़ी मे गजब ढा रही थी. ड्र.अशोक ने हम दोनो का स्वागत किया और हमे अपने केयी अन्य दोस्तो से भी मिलवाया . सबके के साथ मिलते हुए जब हम दोनो उनके एक बेहद करीबी दोस्त(जोकि आज ही यूएसए से अपना एम.एस. कंप्लीट करके आया था)से मिलवाया. इनसे मिलो ये मेरा जिगरी दोस्त सौरभ है, ये मेरा हम-प्याला,हम-नीवाला और भी काई ‘हम-वाला’ है, जो सुन कर हम सब हंस दिए.सौरभ ने एकदम विलायती अंदाज मे पहले वैशाली तथा बाद मे मुझे अपने गले लगा कर हमारे गालो को चूम लिया.

उसकी ये बेबाकी हमे ख़ास तौर पर मुझे बड़ी अजीब लगी मगर उसकी आँखो की कशिश ने मुझे कुछ कठोर शब्द कहने से रोक दिया. रात के 12:30 बजते-बजाते पार्टी की भीड़ छाटने लगी थी और चंद ख़ास लोग ही वाहा बचे थे,वैशाली को काई बार इशारो मे मैने भी कहा कि अब चलो यहा से बहुत लेट हो गये है मगर वो ‘बस थोड़ी देर और’ कहते हुए और देर करे जा रही थी. उसको ड्र.अशोक की संगत का असर खूब रास आ रहा था. उसने शायद कुच्छ हार्ड-ड्रिंक्स भी किए थे जिसका सुरूर उसकी आँखो से पता चल रहा था. फिर वो मेरे पास आकर बोली कि ड्र.अशोक हम दोनो को रुकने के लिए बार रिक्वेस्ट कर रहे हैं और मैं उनका रिक्वेस्ट ठुकरा नही पा रही हू . पल्ल्ल्लज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़ नाराज़ मत हो और मेरे साथ रुक जाओ ना, वैशाली जब ऐसे बच्चो की तरह मचल कर मुझसे कोई बात कहती थी तो मैं उसे मना नही कर पाती थी. वही आज भी हो रहा था. मैं पार्टी मे होते हुए भी अकेला महसूस कर रही थी की तभी मुझे अपने पीछे से आवाज़ सुनाई दी

ढलती शाम सी खामोश हो,
हँसी ले चेहरे पर यू उदास हो,
मैने तेरे दीदार मे पाया है कुच्छ ऐसा,
जैसे तेरी आँखो से ही मुझे कुच्छ आस हो.

पीछे मूड कर देखने पर मैने पाया कि सौरभ अपने दोनो हाथो मे ग्लास लेकर खड़ा था.उसने मुझे एक ग्लास पकड़ा दिया,मैने एक मुस्कुराहट के साथ उससे पुच्छा कि गोयो आप शायर भी हैं, उसने उसी बेबाक अंदाज मे मेरी आँखो मे झाँकते हुए कहा

यू तो मैं कुछ कहता नही,
सबसे यू घुलके-मिलता नही,
पर तेरी संगत है या रंगत तेरे चहरे की ,
दिल बेचारा अब संभाले यू संभलता नही.


ये सुनते ही मैं खिलखिला कर हंस पड़ी जिसे देख कर सौरभ ने ताली बजाते हुए कहा! ये आज शाम का पहला ओरिजिनल लाफटर दिया है आपने. मैने शर्मा कर नज़र नीचे कर ली मगर मेरी मुस्कुराहट अभी कायम थी, जिसे देख कर उसने फिर से कहा कि अब ऐसा तो कोई गुनाह नही हुआ मुझसे जो आप हमे अपनी नायाब हँसी देखने से वंचित रखेंगी. मैने उसे कहा! आप कि भाषा और लहजे से आप यूरोप रिटर्न कम और लनोव रिटर्न ज़्यादा लगते है, उसने तुरंत जवाब दिया की मोह्तर्रिमा आपने खाकसार को क्या खूब पहचाना, नाचीज़ वही की पैदावार है. एम.एस. तो मैने अपने बाप की ख्वाहिश पूरी करने के लिया किया है पर दिल से एकदम लिटरेचर की पूजा करता हू. आपको देखकर सोचता हू कि आपके पेशेंट्स पर क्या गुजरती होगी जब वो आपको बुलाते होंगे. क्या मतलब,मैं समझी नही…….मैने हैरानी से कहा. अरे जब आप जैसी हसीना को कोई बेचारा ‘सिस्टर’ बुलाता होगा तब उसके दिल पर तो च्छूरिया चल जाती होंगी. ओह ऐसाआ……..मैं फिर से उसकी बात समझ कर हँसने लगी.
 
ऐसे ही बातो का सिलसिला चल निकाला, उसकी बातो से हँसते-हँसते मेरी आँखो से पानी निकलने लगा और पेट दर्द करने लगा.मुझे याद नही कि मैं आख़िरी बार कब इतना हँसी थी.कब रात के 2 बज गये मुझे पता ही नही चला. अचानक मेरा ध्यान मेरी घड़ी की तरफ गया और मैं चौंक पड़ी.जिंदगी मे पहली बार मैं इतनी देर तक घर से बाहर रही हू. मैने चारो तरफ गर्दन घुमा कर देखा,मुझे वैशाली कही नज़र नही आई.मेरे हाथ मे पकड़ा ग्लास भी अब खाली हो चुका था, सौरभ की बातो को एंजाय करते हुए मैने ध्यान भी नही दिया कि मैने पिया क्या था पर वो जो भी था पीने मे अच्च्छा लगा और पीने के बाद भी मुझे अच्च्छा महसूस हो रहा था. मेरे हाथ-पाँवो मे रात की ठंडक अब सिहरन बन कर दौड़ रही थी. मैने ड्र.अशोक के लिए भी चारो तरफ नज़र दौड़ाई मगर वैशाली की तरह वो भी नदारद थे. मुझे यू इधर-उधर देखते हुए पाकर सौरभ ने मुस्कुरा कर कहा की जिनको आप ढूँढ रही हैं उन्ही दोनो ने मुझे आपका ख़याल रखने को कहा है. मैं उसकी तरफ ना-समझने वाले अंदाज मे देखा तो उसने कहा कि वैशाली और अशोक ने ही मुझे आपकी तन्हाई का ख्याल रखने को कह कर खुद किसी तन्हाई की तलाश मे गये हैं.


मैने उसकी बातो का मतलब समझते हुए उससे पुछा कि क्या तुम्हे कुच्छ अंदाज़ा है कि वो कहाँ गये है.उसका जवाब था की हां मैं जानता हू की वो दोनो कहा गये है पर उनकी प्राइवसी का ख्याल रखते हुए मैं आपको वाहा जाने से मना ही करूँगा. क्यो? ऐसा क्यो भला?मैने हैरानी जताते हुए पुच्छा. आप जानती नही या ना-समझी का नाटक कर रही है. मैने अपने चेहरे पर बिना कोई भाव लाए उसको फिर से पुच्छा की वैशाली कहा है, मुझे अभी उससे मिलना है. उसने धीरे से मेरे कान मे कहा ,बता तो क्या मैं दिखा भी दूँगा मगर आप उनको डिस्टर्ब नही करेंगी……ऐसा प्रॉमिसस करने के बाद ही मैं आपको वाहा ले जाउन्गा.मैने झक मार कर प्रॉमिसस कर दिया कि चलो तुम मुझे जल्दी से वाहा ले चलो.सौरभ ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे टेरेस से नीचे बने फ्लॅट्स की तरफ ले जाने लगा जहा एक फ्लॅट मे अंदर जाते हुए उसने अपनी एक उंगली को अपने होंठो पर रखते हुए मुझे खामोश रहने का इशारा किया,मैने भी हामी मे सर हिला दिया. फ्लॅट के अंदर मैने वही आवाज़ सुनी जिसका ज़िकरा मैने उपर किया था.

कुच्छ-कुच्छ समझते हुए मेरे हाथ पाँव ढीले पड़ गये थे. तभी मुझे एहसास हुआ की मैं एक ऐसे शख्स के साथ खड़ी हू जिसे मैं अभी मुश्किल से 3-4घंटो पहले मिली हू . सौरभ मेरे ठीक पिछे खड़ा था और उसने मेरे कानो मे अपना मूह(माउत) सटा कर धीरे से कहा , क्या तुम ये सब देखना भी चाहती हो? मैं निरुत्तर वही खड़ी रही, उसने फिर से अपना सवाल दोहराया….. इससबार मैने ना जाने कैसे हा मे सर हिला दिया,वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे दूसरे कमरे ले गया जहा की एक आल्मीराः के पिछे लगे शीशे का परदा हटाने से वो सब दिख रहा था जो उस कमरे मे हो रहा था. मेरे सभी मसामो से पसीने छूट गये.पढ़ा-सुना अलग होता है मगर आँखो के सामने सजीव(लाइव) सेक्स होता देख कर और वो भी अपने जाने-पहचाने लोगो के बीच, मैं तो अर्धमुरछछित अवस्था मे आ गयी.पूरे कमरे मे उन्न दोनो के कपड़े फैले पड़े थे जिनको देख कर समझा जा सकता है की ये उतारे गये थे या नोचे गये थे.सामने एक बेड के उपर अशोक और वैशाली एकदम जन्मजात नग्न-अवस्था मे लिपटे हुए थे अशोक बेतहाशा वैशाली के यौवन-उभारो को चूसे जा रहा था और बीच-बीच मे उनपर अपने दाँत(टीत) भी गढ़ा देता जिसकी वजह से वैशाली के मूह से कामुक सिसकी निकल जाती. वैशाली के हाथो मे अशोक का लंबा-मोटा लिंग था जिसे वो अपने हाथो से सहला रही थी. अशोक ने उसके हाथो को पकड़ कर उसके सर के उपर ले गया और वैशाली की आँखो मे देखते हुए अपने लिंग को वैशाली की योनि पर रगड़ने लगा.वैशाली का तो मानो बुरा हाल हो गया वो उत्तेजना से च्चटपटाने लगी और अशोक से लिंग को अपनी योनि मे घुसाने की विनती करने लगी. अशोक पर भी मस्त पूरी सवार थी उसने अपने खेल को जो जाने कितनी देर से चल रहा था उसको और लंबा ना खींचते हुए अपने लिंग को वैशाली की योनि मे प्रवेश करवा दिया.उययययीीईईईईईई….माआआआआआअ….
.पहले ही अपने जीभ और दांतो से मुझे इतना घायल कर दिया था और अब इसको भी एक झटके घुस्साअ दिया.और ये सब कहते हुए अपने मूह से ज़ोर-ज़ोर से कुच्छ बड़बड़ाती हुई वैशाली अपनी कमर को उचकाने लगी.कमरे मे थ्वप-थ्वप की आवाज़े गूंजने लगी और कमरे का तापमान बढ़ने लगा.
 
ये सब देखते हुए मुझे होश भी नही रहा कि कब सौरभ का एक हाथ मेरे कुर्ते के अंदर मेरे यौवन-शिखरो को तथा दूसरा मेरे सलवार के नाडे को खोलकर मेरी पॅंटी मे घुस चुका था.वो धीरे-धीरे मेरी योनि और मेरे यौवन-शिखरो को सहला रहा था,मेरी मस्ती बढ़ती चली गयी……मगर दिमाग़ को झटका देते हुए मैने उसके हाथो को पकड़ कर उसको रोक दिया.उसने मेरे कान मे धीरे से पुच्छा , क्या हुआ?अच्च्छा नही लग रहा क्या….मैं खामोश खड़ी रही,मेरी खामोशी को मेरी मंज़ूरी समझते हुए वो फिर से अपने काम मे मशगूल हो गया.उसके हाथो के जादू ने मुझे एक नशे की हालत मे पहुचा दिया था. सर्र्ररर-सर्र्र्ररर कब मेरी सलवार मेरे पैरो से और कब मेरा कुर्ता मेरे उपरी-शरीर से अलहदा हो गये मुझे पता ही नही चला.जब उसने मेरी पॅंटी और ब्रा को भी उतार दिया तो मैने उसकी तरफ देखा जो, वो वही चिर-परिचित मुस्कान लिए मेरी तरफ देखा रहा था.उसकी आँखो मे मनुहार थी,मेरे शरीर की तारीफ़ थी और लाल रंग केड ओर भी थे जो उसकी खुमारी की निशानी थी. उसने धीरे से मेरे बूब्स को चूमा,मैं उसके चूमने की सिहरन बर्दाश्त नही कर पाई और काँपने लगी.उसने अपने दोनो हाथो मे मुझे उठा लिया और बड़े नज़ाकत के साथ मुझे बेड पर लिटा दिया.


उसकी ज़बान मेरे शेरर पर हलचल मचती हुई अपना असर छ्चोड़ रही थी और मैं उत्तेजना के शिखार पर पहुचि हुई ततर काअंप रही थी.मेरी योनि से पानी का बहाव निकले ही जा रहा था. मगर सौरभ एकदम शांत-चित्त भाव से अपनी रफ़्तार से जुटा हुआ था.ना कम नाजयदा, वो एक रफ़्तार से मुझे चूमे-चाते जा रहा था. माने बेखयाअली मे उसकी पीठ को अपने नाखुनो से खरोंच-खरोंच कर लाल कर दिया था. उसने अपने कपड़े उतारे और फिर से मेरी तरफ आगेया उसके लिंग को देखा कर मैं घबरा गयी. ये तो अशोक के लंड से भी लंबा था. मैने सौरभ को बताया कि मैं वर्जिन हू प्ल्ज़्ज़ बी जेंटल विथ मी. उसने मुझे प्यार से देखते हुए हामी मे सर हिला दिया. सौरभ ने मेरे पैरो को फैला कर अपने लिंग को मेरी योनि पर टीका दिया और मुझ पर झुकता चला गया, उसका लिंग धीरे-धीरे मेरी योनि मे समाने लगा.मुझे दर्द के साथ-साथ एक सुखद और अंजाना एहसास प्राप्त हुआ जो मैं अपनी जिंदगी मे पहली बार तजुर्बा कर रही थी. उसने धीरे-धीरे घर्षण चालू किया जिससे मैं उत्तेजना के शिखर पर पहुच गयी और झाड़ गयी. मगर वो ना रुका और लगभग 30मिनट तक अपना काम करता रहा,अचानक वो हान्फता हुआ मेरे उपर गिर पड़ा.मैने अपनी योनि मे उसके वीर्य को महसूस किया. जाने कब तक हम ऐसे ही पड़े रहे.खुमारी उतरने के बाद मुझे मेरी हालत का अंदाज़ा हुआ और मैं फ़ौरन अपने कपड़े पहन कर बाहर की तरफ निकल पड़ी. बाहर मुझे वैशाली ड्र.अशोक के साथ खड़ी मिली जो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी मानो इशारो ही इशारो मे मुझसे पूछना चाह रही हो कि ये तजुर्बा कैसा रहा जो तुम अभी-अभी करके आ रही हो.

समाप्त
 
कोका - पंडित



एक बार ब्रज भूमि मैं एसी एक चुड़ैल ओरात पैदा हुई जिस'की चूत मैं हमैशा आग लगी रहती थी. उस'की सदैव एक ही इच्च्छा रहती थी कि उस'की चूत मैं दिन रात मोटा और तगरा लंड रहे. वह हमैशा मर्दों की सोहबत मैं रहती. उस'ने अप'ने कई प्रेमी बनाए लेकिन कोई भी उस'की चूत की ज्वाला को शांत नहीं कर पाया. जब उस'की कामाग्नि और बढ़ गई तो उस'ने अप'ने सारे वस्त्र उतार दिए और रास्तों पर नंगी ही फिर'ने लगी. लोग उस'से तरह तरह के सवाल पूच्छ'ने लगे, जिस'के जबाब मैं वह कहती,
"मैं'ने अप'ने सारे कप'रे उतार दिए हैं और जो चाहे मुझे ले सक'ता है और अप'नी मर्दान'जी साबित करे. मैं कसम खाती हूँ मैं जब तक नंगी घूम'ती रहूंगी तब तक की मुझे एसा मर्द न मिल जाए जो मेरी काम की ज्वाला को पूर्ण रूप से शांत कर सके."
एसा कह कर वह ब्रज भूमि के समस्त शहरों मैं घूम'ने लगी. कई लोगों ने उस'की प्यास बुझाने की चेस्टा भी की पर कोई भी सफल न हुआ. इस'से उस'की हिम्मत और बढ़ गई और वह ब्रज की राज'धानी मथुरा के दर'बार मैं नंगी ही पहून्च गई. यह देख'कर पूरी राज सभा अचम्भित हो गई और एक दर'बारी ने पूचछा,
"अरे हराम'जादी कुतिया तुम कौन हो और कहाँ से आई हो? इस तरह से राज दर'बार में आने में तुम्हें ज़रा भी लज्जा नहीं आई."
तब वह पूरी सभा की और बिल्कुल निडर'ता से मूडी और बोली,

"अरे हराम'जादे मुझे तुम क्या कुत्ती बोल रहे हो. तुम तो साले सब के सब हिंज'रे हो. क्या यहाँ एक भी एसा मर्द मौजूद है जो मेरी वास'ना शांत कर सके. अरे तुम लोगों ने तो अप'ने रनिवास और हारमों मैं रंडिया पाल रखी है जिन'की आग तुम आप'ने लौरों से नहीं बल्कि उन्हें धन दौलत और जेवर देकर बूझाते हो." वह अप'ने चुत्तऱ पर हाथ रखे हुए और अप'नी मस्त चूचियों को आगे उभार'ती हुई पूरी सभा को लल'कारे जा रही थी. फिर उस'ने अप'नी टाँगें फैलाई और इस प्रकार पूरी सभा को अप'नी भोस'री ठीक से दिखाई और कहा,
"अरे मथुरा के दर'बार के हिंज'रों देखो, तुम सारे के सारे चूतिए हो, अगर किसी मैं दम है तो मेरे पास आ जाए."
सारे के सारे दर'बारी आपस मैं चर्चा कर'ने लगे. "इस बेशर्म रन्डी का क्या उपा'य किया जा'य जो सरे आम हमारी बेइजाती कर रही है."
तभी सभा मैं से एक रंजीत सिंग नाम के राजपूत ने दर'बारियों से कहा,
"मेरे दर'बारी दोस्तों! मैं अप'ने आप को इस दर'बार की इज़्ज़त बचाने के लिए समर्पित कर'ता हूँ. मैं अलग अलग जाती की 10 ओरटों के साथ रहा हूँ और मुझे काम का अच्च्छा ख़ासा अनुभव है. मुझे आगे बढ़'ने दीजिए मैं इस'की चुनौती स्वीकार कर'ता हूँ."
यह सुन'कर दर'बारियों के चह'रे खिल गये और रंजीत सिंग ने राजा से आग्या माँगी की उसे इस ओरात के साथ एक रात बिताने दी जा'य. उसे आग्या मिल गई और वह उसे अप'ने महल मैं ले गया. रात मैं उस'ने हर तरह से कोशीस की पर वह उस ओरात की काम अग्नि शांत न कर सका. उस ओरात ने उसे बूरी तरह से निचौऱ लिया. दूसरे दिन वह बहुत ही थका हुआ राज'दरबार मैं पाहूंचा और अप'नी हार स्वीकार कर ली.
"महाराज! मुझे क्षमा करें. मैं अप'नी हार स्वीकार कर'ता हूँ. यह ओरात मेरे बस की नहीं." वह ओरात भी वहाँ मौजूद थी और दुगुने जोश से कहे जा रही थी,
"अरे राजपूतों तुम पर शर्म है. तुम केवल बऱी बऱी बातें कर'ना जान'ते हो. इस सभा मैं एक भी मर्द का बच्चा नहीं है. अरे तुम से तो हिंज'रे ही भले. यह सिद्ध हो गया कि राजपूत लंड एक कम'ज़ोर लंड है."
राज'दरबार मैं सन्नट छा गया और दर'बारियों ने अप'ने सर झुका लिए. किसी के मूँ'ह से बोल नहीं फूट रहा था. तभी राजा ने सभा का सनाट भंग कर'ते हुए कहा,
"हे रंजीत सिंग तुम'ने पूरी राजपूत जाती की नाक कटा दी. अब हम क्या कर सक'ते हैं? अब यह ओरात और शोर मचाएगी और पूरी राजपूत जाती की बाद'नामी करेगी. इस'की तुम्हें सज़ा मिलेगी."
"महाराज! क्षमा करें, क्षमा करें. यह ओरात एक नंबर की रन्डी और कुत्ती है. मैने अप'ने जीवन मैं एसी कामिनी ओरात नहीं देखी. पता नहीं इस'की चूत मैं क्या है, शायद कोई जादू टोना जान'ती हो."
यह सुन कर एक दूसरा राजपूत हीरो आगे आया, जिस'का नाम मान सिंग था. वह आप'नी जवानमर्दी के लिए विख्यात था. उस'ने उस ओरात के साथ एक रात बिताने की इच्च्छा जाहिर की. उस'ने दावा किया कि वह उस'की एसी चुदाई करेगा की रन्डी आने वाले 10 दिनों तक चल भी नहीं पाएगी. सारे दर'बारी बहुत खुस हुए और एक स्वर से महाराज से वीं'टी की कि मान सिंग को एक मौका दिया जा'य.
"ठीक है मान सिंग हम तुम्हें यह मौका देते हैं. पर ख़याल रहे यदि तुम काम'याब नहीं हुए तो हम तुम्हें देश निकाला दे देंगे."
"महाराज यदि मैं अस'फल रहा तो राज'सभा को अप'ना मूँ'ह नहीं दिखऊन्ग." एसा कह कर मान सिंग उस ओरात को आप'ने साथ ले गया.
 
उस रात मान सिंग ने उस'की कस के चुदाई क़ी. मान सिंग ने उस के अंदर 3 बार अप'ना वीर्या झाड़ा पर वह ओरात फिर भी सन्तुश्ट नहीं हुई. वह चोथी बार मान सिंग को चुदाई कर'ने के लिए उक्'साने लगी, पर उस'में और ताक़त नहीं बची थी. वह सुबह उस ओरात को सोता छोड़ के ही न जाने कहाँ चला गया.
दूस'रे दिन वह ओरात अकेली और बिल'कुल नंगी फिर दर'बार मैं पाहूंची. उस ओरात को दरबार मैं देख'ते ही राजा के साथ साथ सारे दर'बारी भी सक'ते मैं आ गये. वह कह'ने लगी,
"महाराज! मैने आप राजपूतों की ताक़त देख ली. आप'का लौंडा तो न जाने कहाँ चला गया. किसी राजपूत लंड मैं और ताक़त बची है तो ज़ोर आज'मा ले."
सारे दर'बारियों के सर शर्म से झुक गये. तभी एक दुबला पतला ब्राह्मण आगे आया. उस ब्राह्मण का नाम कोका पंडित ( राज शर्मा )था और वह दर'बार का ज्योत्शी था. उस'ने कहा,
"महाराज आप एक अव'सर मुझे दें. यदि मेरी हार हो जाती है तो सारे दर'बार की हार मान ली जाएगी."
इस पर सारे राजपूत बहुत क्रोधित हुए. यह दुब'ला पात'ला ब्राह्मण अप'ने आप को क्या समझ'ता है. इस उम्र में इस'की मति क्यों फिर गई है. एक दर'बारी चिल्ला कर बोला,
"अरे जब बड़े बड़े राजपूत लंड इस ओरात की चूत की गर्मी ठन्डी नहीं कर सके तो तेरा छोटा सा ब्राह्मण लंड क्या कर लेगा. यह तो सब जान'ते हैं कि क्षत्रिया लंड के मुकाब'ले ब्राह्मण लंड छ्होटा और कम'ज़ोर होता है."
चारों तरफ से लोग उस'के सुर मैं सुर मिलाने लगे. और उस ब्राह्मण का हंस हंस के उप'हास उड़ाने लगे. पर ब्राह्मण शांत था और राजा के बोल'ने का इंत'ज़ार कर रहा था. जब दर'बारी शांत हो गये तो राजा ने कहा,
"राजपूत जाती के श्रेस्ठ व्यक्ति भी इस ओरात की प्यास बुझाने मैं असफल रहे हैं. हम अब'तक असफल रहे हैं और यदि अब हम'ने इस ओरात को एसे ही जाने दिया तो हम अप'ने सर कभी भी उँचे नहीं उठा सकेंगे. हम मैं से कोई भी ब्रज की नारी को छ्छूने की कभी भी हिम्मत नहीं जुट पाएगा. अब यदि इस ब्राह्मण के अलावा और कोई इस ओरात के साथ रात बिताना चाह'ता है तो वह आगे आए. नहीं तो इस ब्राह्मण को मौका नहें देना अन्याय होगा."
राजा की यह बात सुन'कर सभा मैं एक बार फिर सन्नाटा छा गया. कोई भी आप'नी बेइज़्ज़ती के डर से आगे नहीं आ रहा था. तब राजा ने कोका पंडित को आग्या दे दी. कोका उस ओरात को अप'ने घर ले गया.

कोका पंडित ने सारी समस्या पर गंभीर'ता से विचार किया और उस'ने ठान लिया कि वह जल्द बाजी से काम नहीं लेगा. रात मैं वे दोनों एकांत मैं अप'ने कम'रे मैं आए और कोका ने अप'नी धोती उतारी. धोती के उतार'ते ही कोका के लंड और उस'के शरीर की कम'ज़ोर बनावट को देख वह ओरात हंस पड़ी और कह'ने लगी,
"पागल ब्राह्मण तुम्हारा लंड तो दूस'रे राजपूतों के लंड, जिन्हों ने मुझे चोदा, उनसे आधा भी नहीं है. अरे तुम से तो सीधा खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा है फिर भी तुम सोच रहे हो मेरी प्यास बुझा दोगे. तुम पागल ही नहीं पूरे अक्खऱ और सन'की भी हो."
कोका ने कहा, "हराम'जादी कुतिया आज तुम्हे तुम्हारे लायक कोई आद'मी मिला है. अरे ओरात को शांत कर'ने के लिए लंड का आकार और शरीर का तगड़ा होना ही केवल ज़रूरी नहीं है. मर्द को काम कला आनी चाहिए. मेरा लंड छोटा है तो यह कोई भी योनि मैं आराम से समा जाता है. अब तुम'ने बहुत बातें कर ली. चलो अब अप'नी टाँगें फैलाओ, वैश्या कहीं की."
तब वह बिस्तर पर चित होके लेट गई और अप'नी टाँगें फैला दी. कोका काम कला का जान'कार था जो राजपूत नहीं जान'ते थे. सब'से पह'ले उस'ने चुंबन लेने प्रारंभ किए. वह उस'की जीभ और उपर नीचे के होठों को चूस'ने लगा. वह उस'के होठों को पूरी तरह से जाकड़ उस'का पूरा साँस अप'ने फेफ'रों में ले लेता जिस'से वह बिना साँस के व्याकुल हो छट'पटाने लग'ती और जब कोका उसे छोड़ता तो ज़ोर ज़ोर से साँस भर'ने लग'ती. यह क्रिया काफ़ी देर तक चली, जिस'से वह शिथिल पड़'ने लगी.
फिर वह उस'के स्तनों पर आ गया. पह'ले उस'ने धीरे धीरे स्तन मर'दन कर'ना प्रारंभ किया. फिर चूचुक पर धीरे धीरे जीभ फेर'नी शुरू की. इस'से उस ओरात की काम ज्वाला भड़क के सात'वें आस'मान पर जा पाहूंची. वह चूत मैं लंड लेने के लिए व्याकुल हो उठी. पर इधर कोका को कोई जल्दी नहीं थी.
तब कोका उस'की नाभी के इर्द गिर्द जीभ फेर'ने लगा. कभी कभी बीच मैं उस'के पेऱू (पेल्विस) पर झांतों मैं हल्के से अंगुली फिरा देता. साथ मैं वह उस'के नितंबों के नीचे अप'नी हथैली ले जा उन्हे सहलाए भी जा रहा था और उस'के भारी चुट्टरों पर कभी कभी हल'के से नाख़ून भी गाढ रहा था. इन क्रियाओं के फल'स्वरूप वह चुड़ैल ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी और कोका से चोद'ने के लिए विनती कर'ने लगी.
तब कोका ने आख़िर में उस'की चूत मैं एक अंगुली डाली. कोका धीरे धीरे उस'के चूत के दाने पर अंगुली की टिप का प्रहार कर रहा था. फिर उस'ने दो अंगुल डाली और अंत मैं तीन अंगुल उस'की चूत मैं डाल दी. वह काफ़ी देर तक उस'की अंगुल से चुदाई कर'ता रहा. वह ओरात भी गान्ड उपर उठा उठा के झट'के देने लगी मानो उस'का पूरा हाथ ही अप'नी चूत मैं समा लेना चाह'ती हो.
 
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