hotaks444
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आधी से अधिक रात्री बीत चुकी थी. ओरात की साँसे उखाड़'ने लगी थी. तब कोका ने बहुत ही शान्ती के साथ उस'की योनि मैं अप'ना लिंग प्रवेश किया. वह ताबाद तोड़ चुदाई के मूड मैं कतई न था. वह लंड को घूमा फिराकार उस'की चूत के अंदर की हर जगह को छ्छू रहा था, उस'की चूत की हर दीवार का घर्सन कर रहा था. जब भी ओरात अप'नी चूत से लंड को कस के निचोड़ना चाह'ती. कोका लंड बाहर निकाल लेता और आसान बदल लेता. उस रात कोका ने 64 बार आसान बद'ले जो काम सुत्र मैं वर्णित हैं. उस'ने हर आसान से उस'की शान्ती पूर्वक चुदाई की. जेसे ही भोर होने को हुआ वह ओरात पूरी तरह से पस्त हो चुकी थी. अब उस मैं हिल'ने डुल'ने की भी ताक़त नहीं बची थी. बहुत ही धीमी आवाज़ मैं वह कह रही थी,
"हे पंडित मेरी जिंद'गी मैं तुम पह'ले आद'मी हो जिस'ने मुझे पूर्ण रूप से तृप्त किया है. किसी ने भी मेरे साथ इस तरह नहीं किया जेसा तुम'ने किया. और तुम्हारी चुदाई हा'य क्या कह'ना. इत'ने तरीकों से भी किसी ओरात को चोदा जा सक'ता है मैं अभी तक आश्चयचकित हूँ. तुम'ने सच कहा था ओरात को सन्तुश्ट कर'ने के लिए बड़े लंड की दर'कार नहीं बल्कि तरीका आना चाहिए. पंडित मैं तुम'से हार गई हूँ और आज से मैं तुम्हारी दासी हूँ. तुम मेरे मालिक हो और इस दासी पर तुम्हारा पूर्ण अधिकार है."
यह सुन'कर कोका ने उसे नित्य कर्म से निवृत हो स्नान कर आने को कहा.
कुच्छ सम'य बाद कोका और वह कम'रे मैं फिर आम'ने साम'ने थे. कोका ने उसे आप'ने पास बैठाया. उसके पाओं मैं पाजेब पहनाई, हाथों मैं चूरियाँ पहनाई फिर सुंदर सी सारी और अंगिया दी. जब वह अच्छी तरह से वस्त्र पहन आई तब कोका ने अप'ने हाथों से उस'का शृंगार कर'ना प्रारंभ किया. हाथों मैं मेहंदी रचाई, पाँव मैं आल'ता, आँखों मैं काजल और फिर हर अंग के आभुश्ण. फिर कोका ने कहा,
"जो ओरात नंगी रहती है वह एक नंगे छोटे बच्चे के समान है, काम के सुख से सर्वथा अन्भिग्य. तुम नंगी होके सारी दुनिया मैं फिर'ती रही, और तुम्हारे अंदर की नारी समाप्त हो गई. तुम्हारे काम अंगों की सर'सराहट ख़त्म हो गई. अब जो भी तुम्हारी चुदाई कर'ता तुम सन्तुश्ट नहीं होती थी. ओरात वस्त्रा केवल अप'ने अंगों को ढक'ने के लिए नहीं पहन'ती बल्कि अच्छे वस्त्र पहन के बनाव शृंगार कर'के वह अप'नी काम क्षम'ता को बढाती है. इस'से पुरुश उस'की ओर आकर्शित होते हैं. यह बात नारी बहुत अच्छी तरह से समझ'ती है कि वह आकर्शण दे रही है. और इसी मनोस्थिति मैं नारी जब स्वयं आकर्शित होके किसी पुरुश को अप'ना देह सौंप'ती है तभी उसे सच्ची संतुष्टि मिल'ती है."
"आप'ने आज मेरी आँखें खोल दी. पह'ले तो लोग मुझे खिलौना समझ'ते थे. मेरी जेसी अकेली नारी को जिस'ने चाहा जेसे चाहा आप'ने नीचे सुलाया. बात यहाँ तक पाहूंछ गई क़ी मैं स्वयं अप'नी चूत मैं हरदम लंड चाह'ने लगी. जब मैं इस'के लिए आगे बढ़ी तो जो पह'ले जिस काम के लिए मुझे बहलाते फूस'लाते थे वही मुझे देख कर दूर भाग'ने लगे. इस'से मैं विद्रोह'नी हो गई और उस'का चर्म राज'सभा तक पहून्च कर हुआ."
फिर वे दोनों राजसभा मैं पहून्चे. राजा और दर'बारी उसे सजी धजी और लज्जा की प्रतिमूरती बनी देख द्न्ग रह गये. कल की नंगी घूम'ने वाली बेशर्म रन्डी आज एक सभ्रान्त महिला नज़र आ रही थी. तब कोका ने उसे बोल'ने के लिए इशारा किया,
"महाराज मैं अप'नी हार स्वीकार कर'ती हूँ. जिस ब्राह्मण का सब उप'हास उड़ा रहे थे उसी ने मुझे जीवन का सब'से आद'भूत काम सुख दिया है." उस'ने सर पर पल्लू ठीक कर'ते हुए कहा. इस पर राजा ने कोका पंडित को आदर मान देते हुए कहा,
"इस दर'बार की मान मर्यादा बचाने के लिए आप'का बहुत बहुत धन्यवाद. फिर भी मेरी उत्सुक'ता यह जान'ने के लिए बढ़ी जा रही है कि जिसे हट्टे कट्टे राजपूत नहीं कर सके वो आप किस तरह कर पाए."
"राजन यह कार्य मैने अप'ने काम शास्त्रा के ग्यान के आधार पर पूरा किया. पर राजन उन सब'का इस सभा मैं एसे वर्णन कर'ना शिश्टाचार के विरुद्ध होगा."
तब राजा ने एकांत की व्यवस्था कर दी और कोका पंडित ने विस्तार से कई दिनों मैं राजा के सम्मुख उस'का वर्णन किया. तब राजा ने आग्या दी की वह इस'को एक ग्रंथ का रूप दे. तब कोका पंडित अप'ने कार्य मैं जुट गये और परिणाम एक महान ग्रंथ "रतिरहस्य" या "कोक-शास्त्र" के रूप मैं दुनिया के समक्ष आया.
एंड
"हे पंडित मेरी जिंद'गी मैं तुम पह'ले आद'मी हो जिस'ने मुझे पूर्ण रूप से तृप्त किया है. किसी ने भी मेरे साथ इस तरह नहीं किया जेसा तुम'ने किया. और तुम्हारी चुदाई हा'य क्या कह'ना. इत'ने तरीकों से भी किसी ओरात को चोदा जा सक'ता है मैं अभी तक आश्चयचकित हूँ. तुम'ने सच कहा था ओरात को सन्तुश्ट कर'ने के लिए बड़े लंड की दर'कार नहीं बल्कि तरीका आना चाहिए. पंडित मैं तुम'से हार गई हूँ और आज से मैं तुम्हारी दासी हूँ. तुम मेरे मालिक हो और इस दासी पर तुम्हारा पूर्ण अधिकार है."
यह सुन'कर कोका ने उसे नित्य कर्म से निवृत हो स्नान कर आने को कहा.
कुच्छ सम'य बाद कोका और वह कम'रे मैं फिर आम'ने साम'ने थे. कोका ने उसे आप'ने पास बैठाया. उसके पाओं मैं पाजेब पहनाई, हाथों मैं चूरियाँ पहनाई फिर सुंदर सी सारी और अंगिया दी. जब वह अच्छी तरह से वस्त्र पहन आई तब कोका ने अप'ने हाथों से उस'का शृंगार कर'ना प्रारंभ किया. हाथों मैं मेहंदी रचाई, पाँव मैं आल'ता, आँखों मैं काजल और फिर हर अंग के आभुश्ण. फिर कोका ने कहा,
"जो ओरात नंगी रहती है वह एक नंगे छोटे बच्चे के समान है, काम के सुख से सर्वथा अन्भिग्य. तुम नंगी होके सारी दुनिया मैं फिर'ती रही, और तुम्हारे अंदर की नारी समाप्त हो गई. तुम्हारे काम अंगों की सर'सराहट ख़त्म हो गई. अब जो भी तुम्हारी चुदाई कर'ता तुम सन्तुश्ट नहीं होती थी. ओरात वस्त्रा केवल अप'ने अंगों को ढक'ने के लिए नहीं पहन'ती बल्कि अच्छे वस्त्र पहन के बनाव शृंगार कर'के वह अप'नी काम क्षम'ता को बढाती है. इस'से पुरुश उस'की ओर आकर्शित होते हैं. यह बात नारी बहुत अच्छी तरह से समझ'ती है कि वह आकर्शण दे रही है. और इसी मनोस्थिति मैं नारी जब स्वयं आकर्शित होके किसी पुरुश को अप'ना देह सौंप'ती है तभी उसे सच्ची संतुष्टि मिल'ती है."
"आप'ने आज मेरी आँखें खोल दी. पह'ले तो लोग मुझे खिलौना समझ'ते थे. मेरी जेसी अकेली नारी को जिस'ने चाहा जेसे चाहा आप'ने नीचे सुलाया. बात यहाँ तक पाहूंछ गई क़ी मैं स्वयं अप'नी चूत मैं हरदम लंड चाह'ने लगी. जब मैं इस'के लिए आगे बढ़ी तो जो पह'ले जिस काम के लिए मुझे बहलाते फूस'लाते थे वही मुझे देख कर दूर भाग'ने लगे. इस'से मैं विद्रोह'नी हो गई और उस'का चर्म राज'सभा तक पहून्च कर हुआ."
फिर वे दोनों राजसभा मैं पहून्चे. राजा और दर'बारी उसे सजी धजी और लज्जा की प्रतिमूरती बनी देख द्न्ग रह गये. कल की नंगी घूम'ने वाली बेशर्म रन्डी आज एक सभ्रान्त महिला नज़र आ रही थी. तब कोका ने उसे बोल'ने के लिए इशारा किया,
"महाराज मैं अप'नी हार स्वीकार कर'ती हूँ. जिस ब्राह्मण का सब उप'हास उड़ा रहे थे उसी ने मुझे जीवन का सब'से आद'भूत काम सुख दिया है." उस'ने सर पर पल्लू ठीक कर'ते हुए कहा. इस पर राजा ने कोका पंडित को आदर मान देते हुए कहा,
"इस दर'बार की मान मर्यादा बचाने के लिए आप'का बहुत बहुत धन्यवाद. फिर भी मेरी उत्सुक'ता यह जान'ने के लिए बढ़ी जा रही है कि जिसे हट्टे कट्टे राजपूत नहीं कर सके वो आप किस तरह कर पाए."
"राजन यह कार्य मैने अप'ने काम शास्त्रा के ग्यान के आधार पर पूरा किया. पर राजन उन सब'का इस सभा मैं एसे वर्णन कर'ना शिश्टाचार के विरुद्ध होगा."
तब राजा ने एकांत की व्यवस्था कर दी और कोका पंडित ने विस्तार से कई दिनों मैं राजा के सम्मुख उस'का वर्णन किया. तब राजा ने आग्या दी की वह इस'को एक ग्रंथ का रूप दे. तब कोका पंडित अप'ने कार्य मैं जुट गये और परिणाम एक महान ग्रंथ "रतिरहस्य" या "कोक-शास्त्र" के रूप मैं दुनिया के समक्ष आया.
एंड