hotaks444
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एक हसीन ग़लती--3
गतान्क से आगे.........
अभी दर्द पूरा गया भी नही था कि उसने मेरे नितंबो को खुद ही दोनो हाथो से फैला कर ज़ोर से झटका मारा मेरी तो जान ही निकल गयी. मैने अपना हाथ मूह में दबा लिया कही मैं चिल्ला ना पडू.
“हटो मुझे नही करना अनल सेक्स. ये बहुत बेकार है. जान निकल गयी मेरी.” मैं गुस्से में बोली.
मगर वो नही माना. उसने तो झटके मारने शुरू कर दिए. मैं बेबस सी पड़ी रही. वो अब मज़े से मेरी मार रहा था. उसके बोझ के नीचे मैं मरी जा रही थी.
“आआहह नो आआहह.” मैं सिसकिया लेने लगी.
“धीरे धीरे जानेमन कोई सुन लेगा.”
मुझे अब जन्नत का स्वाद आने लगा था. उसका मोटा लिंग बहुत तेज रफ़्तार से मेरे नितंब के छेद से अंदर बाहर हो रहा था. मुझे यकीन ही नही हो रहा था कि मेरे छ्होटे से छेद में उसका इतना मोटा औजार घुस्स गया था. अजीब करिश्मा था ये भी. हम दोनो पसीने से लटपथ हो गये थे.
“आहह बस रुक जाओ अब आआहह.” मैं झड़ने वाली थी.
“नही आज तेरी बहुत अच्छे से गांद मारूँगा साली हिहिहीही.” और उसने रफ़्तार और बढ़ा दी. मैं झाड़ गयी उसी वक्त. मगर जालिम नही रुका. वो मारे जा रहा था मेरी मासूम गांद को बड़ी बेरहमी से.
वो बीच बीच में मेरी पीठ को भी चूम रहा था.
“तुमने निशा को देखा क्या रमन?”
“अरे ये तो मनीष की आवाज़ है रूको.” मैने कहा.
“तो रहने दो मैं अब नही रुकने वाला.”
“नही तो भैया, क्या हुआ?” रमन ने कहा.
“पता नही कहाँ चली गयी ये अचानक. मम्मी बुला रही है उसे. अपना फोन भी नही उठा रही.”
मैने तुरंत अपना मोबाइल देखा जो कि पास ही पड़ा था मेरे. उसमे 20 मिस्ड कॉल थी. क्योंकि मोबाइल साइलेंट पे था इसलिए मुझे पता नही चला था कि मनीष कॉल कर रहा है.
“हटो मुझे जाना होगा.” मैने मुकेश को धीरे से कहा.
“अभी तो मज़ा आने लगा है. मैं अब नही रुक सकता. पूरी गांद मार कर ही रुकुंगा.” वो ज़ोर से धक्का मारते हुवे बोला.
“देखो मनीष मुझे ढूंड रहा है, कुछ तो शरम करो और कितनी देर से तो कर रहे हो जी नही भरा तुम्हारा.”
“ऐसी गांद मिलेगी मारने को तो किसका जी भरेगा. इसे तो मैं दीन रात मारता रहूं हाई क्या मस्त गांद है उफ़फ्फ़.” उसने रफ़्तार बढ़ाते हुवे कहा. मैं रुक ना पाई और फिर से झाड़ गयी.
बाहर मनीष की आवाज़ आ रही थी और अंदर ये सुवर मेरे उपर पड़ा मेरी गांद मार रहा था. अजीब से सिचुयेशन थी ये. कुछ देर बाद मनीष की आवाज़ आनी बंद हो गयी और मैने राहत की साँस ली और फिर से पूरी तरह मुकेश के धक्को में खो गयी.
मगर कुछ देर बाद दरवाजा खुला. मेरे तो पैरो के नीचे से ज़मीन ही खिसक गयी.
गतान्क से आगे.........
अभी दर्द पूरा गया भी नही था कि उसने मेरे नितंबो को खुद ही दोनो हाथो से फैला कर ज़ोर से झटका मारा मेरी तो जान ही निकल गयी. मैने अपना हाथ मूह में दबा लिया कही मैं चिल्ला ना पडू.
“हटो मुझे नही करना अनल सेक्स. ये बहुत बेकार है. जान निकल गयी मेरी.” मैं गुस्से में बोली.
मगर वो नही माना. उसने तो झटके मारने शुरू कर दिए. मैं बेबस सी पड़ी रही. वो अब मज़े से मेरी मार रहा था. उसके बोझ के नीचे मैं मरी जा रही थी.
“आआहह नो आआहह.” मैं सिसकिया लेने लगी.
“धीरे धीरे जानेमन कोई सुन लेगा.”
मुझे अब जन्नत का स्वाद आने लगा था. उसका मोटा लिंग बहुत तेज रफ़्तार से मेरे नितंब के छेद से अंदर बाहर हो रहा था. मुझे यकीन ही नही हो रहा था कि मेरे छ्होटे से छेद में उसका इतना मोटा औजार घुस्स गया था. अजीब करिश्मा था ये भी. हम दोनो पसीने से लटपथ हो गये थे.
“आहह बस रुक जाओ अब आआहह.” मैं झड़ने वाली थी.
“नही आज तेरी बहुत अच्छे से गांद मारूँगा साली हिहिहीही.” और उसने रफ़्तार और बढ़ा दी. मैं झाड़ गयी उसी वक्त. मगर जालिम नही रुका. वो मारे जा रहा था मेरी मासूम गांद को बड़ी बेरहमी से.
वो बीच बीच में मेरी पीठ को भी चूम रहा था.
“तुमने निशा को देखा क्या रमन?”
“अरे ये तो मनीष की आवाज़ है रूको.” मैने कहा.
“तो रहने दो मैं अब नही रुकने वाला.”
“नही तो भैया, क्या हुआ?” रमन ने कहा.
“पता नही कहाँ चली गयी ये अचानक. मम्मी बुला रही है उसे. अपना फोन भी नही उठा रही.”
मैने तुरंत अपना मोबाइल देखा जो कि पास ही पड़ा था मेरे. उसमे 20 मिस्ड कॉल थी. क्योंकि मोबाइल साइलेंट पे था इसलिए मुझे पता नही चला था कि मनीष कॉल कर रहा है.
“हटो मुझे जाना होगा.” मैने मुकेश को धीरे से कहा.
“अभी तो मज़ा आने लगा है. मैं अब नही रुक सकता. पूरी गांद मार कर ही रुकुंगा.” वो ज़ोर से धक्का मारते हुवे बोला.
“देखो मनीष मुझे ढूंड रहा है, कुछ तो शरम करो और कितनी देर से तो कर रहे हो जी नही भरा तुम्हारा.”
“ऐसी गांद मिलेगी मारने को तो किसका जी भरेगा. इसे तो मैं दीन रात मारता रहूं हाई क्या मस्त गांद है उफ़फ्फ़.” उसने रफ़्तार बढ़ाते हुवे कहा. मैं रुक ना पाई और फिर से झाड़ गयी.
बाहर मनीष की आवाज़ आ रही थी और अंदर ये सुवर मेरे उपर पड़ा मेरी गांद मार रहा था. अजीब से सिचुयेशन थी ये. कुछ देर बाद मनीष की आवाज़ आनी बंद हो गयी और मैने राहत की साँस ली और फिर से पूरी तरह मुकेश के धक्को में खो गयी.
मगर कुछ देर बाद दरवाजा खुला. मेरे तो पैरो के नीचे से ज़मीन ही खिसक गयी.