Horror Sex Kahani अगिया बेताल - Page 7 - SexBaba
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Horror Sex Kahani अगिया बेताल

मैं—मैं यहाँ आज तुझे चोदने आया हूँ बोल चुदेगि या नही…?

उसने अपना सिर ना मे हिलाते हुए म्‍म्म्मम की आवाज़ निकाली

मैं—चल छोड़…मेरे पास एक आइडिया है …

उसने अपनी आँखे नचाई जैसे पूछ रही हो …..कैसा…आइडिया…?

मैं—देख मुझे ग़लत मत समझना…लेकिन यही एक रास्ता है इस समय..

उसने छूटने की कोशिस की

मैने उस के दोनो हाथ उसकी चुचियो से अलग किए….और फिर धीरे धीरे उसकी दोनो चुचियो को बारी बारी से सहलाने लगा… अपनी चुचियो पर किसी मर्द का हाथ लगते ही उसके जिस्म मे सनसनी फैल गयी….एक सुखद आनंद की लहरे उसके बदन मे दौड़ गयी….चुचि
सहलाए जाने से वो धीरे धीरे मेरी ज़्यादती को भूल कर एक सुखद आनंदमयी दुनिया की सैर करने लगी.

मैने जब उस को मदहोश होते देखा तो थोड़ा ज़ोर ज़ोर से उसकी चुचियो को दबाने लगा….उस ने इस आनंद की कल्पना भी नही की थी जो उसको मिल रहा था.

उसके मुँह से म्म्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह…..की आवाज़ निकलने लगी

मैने उसकी आँखो मे अपनी आँखे डाल कर पूछा -अब कैसा लग रहा है ….?

—एम्म्मआआआअहह...... उसने मुझे मेरा हाथ अपने मुँह से हटाने का इशारा किया

मैने कहा अभी हटा लेता हू.. लेकिन अगर शोर करने की कोशिस की तो तेरा अंजाम बहुत बुरा होगा

उसने अपनी आँखो के इशारे से मुझे आश्वस्त किया तो मैने अपना हाथ उसके मुँह से हटा लिया

मैं उसके के कुर्ते को पकड़ कर उपर करने लगा….ये देख कर उस ने जल्दी से मेरा हाथ पकड़ लिया लेकिन फिर ना जाने क्या सोच कर अपने हाथ खुद ही हटा लिए….मैने उसके कुर्ते को उपर कर दिया जिससे ब्रा मे क़ैद उसकी बड़ी बड़ी चुचिया मेरे सामने आ गयी…..उस ने शरम से अपनी आँखे बंद कर ली.
 
मैने हाथ पीछे ले जा कर उसकी ब्रा का हुक खोल दिया….ब्रा खुलते ही उसकी गदराई मदमस्त चुचिया छलक कर मेरे सामने सीना तान कर खड़ी हो गयी….उसके गोरे गोरे दूध इतनी देर से घिसते रहने के कारण लाल हो गये थे…उसके चूचुक अंदर धन्से हुए थे…उसकी चुचियो
की खूबसूरती देखने के बाद मैं उनको देखने मे ही मग्न हो गया.. मुझे अपनी चुचियो को ऐसे घूरते देख कर वो शरम से दोहरी हो गयी.

वो (धीरे से)—….जल्दी से कुछ करो ना….नही तो कोई आ जाएगा..आआआअहह

मैं—अभी ठीक करता हूँ तेरी खुजली को…

मैने झुक कर उसकी चुचि के एक चूचुक को मूह मे भर कर चूसने लगा….वो सर से पैर तक काँप गयी ऐसा करते ही…मीठी गुदगुदी से उसका जिस्म झंझणा उठा…मैने उसकी चुचि को ज़ोर ज़ोर से चूस्ते हुए दूसरे दूध को मुट्ठी मे कस लिया और कस कस के दबाने
लगा….वो अपने दूध दबवाने का मज़ा ले रही थी वो भी एक अजनबी से.

—आआआआअहह…..थोड़ा…धीरे दबाओ…..आआआअहह…उउउफफफ्फ़…..आअहह

मैं कुछ देर तक उसके एक दूध को पीने के बाद दूसरे को मूह मे भर के चूसने लगा और एक दूध दबाता गया.. उसकी चुचियो के निपल अब बाहर तन्कर निकल आए थे उत्तेजना की वजह से….वो अब अपनी खुजली को भूल चुकी थी और उत्तेजित हो कर मेरा सिर अपने दूध पर दबाए जा रही थी…

—आआआहह…..……अब अच्छा लग रहा है….ऐसे ही चूस्ते रहो मेरे दूध को….आज आप मुझे पागल ही कर दोगे
…..आआआहह…..ऐसे ही दबाते रहो …मेरे दूध को…उउफफफफ्फ़

मैने पूछा—अब कैसा लग रहा है ….?

—आआआअहह....कुछ मत पूछो ......बहुत मज़ा आ रहा है.....आआआअहह....बस ऐसे ही करते रहो

मैने फिर से उसकी चुचियो को चूसना और मसलना शुरू कर दिया.....वो अब अपने आप मे नही थी...वो पूरी तरह से कामांध हो चुकी थी..इसका सबूत थे उसकी चुचियो के निपल्स जो अब कड़े हो चुके थे....मैने अपना हाथ दूध से हटा कर उसकी जाँघो के बीच बुर मे रख
दिया और सलवार के उपर से ही उसकी बर को मीसने लगा....मैने हाथ फेरते हुए महसूस किया की उसकी बर गीली हो चुकी है क्यों
की कुछ देर हाथ फिरने से ही उसकी सलवार भी उसकी बुर के पानी से भीगने लगी थी.

वो—आआआअहह............आप...ये कहाँ हाथ घुमा रहे हो.... ? आआअहह...

मैं—मुझे लगा कि तेरे यहाँ भी खुजली हो रही होगी...इसलिए हाथ से सहला कर देख रहा था...

वो—आअहह.....पहले तो नही हो रही थी लेकिन अब वहाँ भी खुजली होने लगी है ....आआआहह

मैं—वहाँ कहाँ मेरी रान्ड...उस जगह का कुछ नाम भी तो होगा.... ?

वो (शर्मा कर)—मुझे नही मालूम...

मैं—बता ना ....

वो—..आआआहह........मुझे शरम आती है...

मैं—बताएगी नही तो खुजली कैसे दूर होगी तेरी.... ?

वो—आप को सब पता है….आआहह

मैं—क्या पता है…?

वो—वही जिसका आप नाम पूछ रहे हो

मैं—फिर भी बता ना उसका नाम क्या है…? ..

वो—आआआआअहह…..आप बहुत गंदे हो ….….ठीक है..लेकिन कान मे बोलूँगी..

मैं—ओके

वो (कान मे धीरे से)—….जहा आप नीचे हाथ फेर रहे हो ना ….उसका नाम है………

वो —हां..हां बता ना क्या नाम है….?

वो —छी…मुझसे नही बोला जाएगा..

मैं उस की शरम दूर करने के लिए फिर से उसके दूध पीने मे लग गया..साथ ही एक हाथ से उसकी बुर को भी सलवार के उपर से मसलता जा रहा था….जिसकी वजह से वो जल्दी ही चुदासी हो गयी पूरी तरह….मैने इस मौके का फ़ायदा उठाते हुए उसकी की सलवार का नाडा
खोल कर चड्डी सहित थोड़ा नीचे खिसका दिया.
 
सलवार कुछ नीचे होते ही मैने अपना हाथ उस की चड्डी के अंदर डाला तो वो सीधे उसकी बड़ी बड़ी रेशम की तरह मुलायम झान्टो से
टकराने लगा….मैने उसकी बुर को टटोल कर छेद मे बीच वाली उंगली खच से पेल दी जिससे चिहुक कर उसकी आँखे खुल गयी.

वो—आआअहह….….ये आपने मेरी सलवार क्यो उतार दी….?

मैं—कुछ नही…वो बस देखने के लिए की खुजली कहाँ हो रही है…?

बुर गीली होने के कारण उंगली अंदर पेलने मे ज़्यादा दिक्कत नही हो रही थी….हालाँकि वो कसी कसी अंदर बाहर हो रही थी उस की बुर
मे….उस को भी धीरे धीरे मज़ा आने लगा था.

वो—आआआअहह…..…..धीरीई…..आआअहह

कुछ समय तक बुर मे उंगली पेलने के बाद मैने उसकी सलवार चड्डी सहित नीचे कर दी…उसकी झान्टो वाली बुर खुल कर मेरे सामने आ गयी…मैने झुक कर उसकी बुर को चाट लिया जिससे उस को एक करेंट सा झटका लगा…वो काँप गयी..उसकी एक चुचि को पकड़ कर
दबाते हुए मैने बुर मे जीभ भिड़ा दी और उसकी बुर से निकलते शहद को चाट चाट कर पीने लगा.

वो—आआआआहह…..….बहुत गुदगुदी हो रही है…..आआआहह……लेकिन अच्छा भी लग रहा है..एयेए ऐसे ही करते
रहो…..ऊहह..

वो ज़ोर ज़ोर से सिसकारी ले रही थी… मैं बिना रुके उस की बुर को चूस्ता रहा जिससे वो खुद को संभाल नही पाई और जल्दी ही अपने
पहले चरमोत्कर्ष पर पहुच गयी….उसके झड़ने के बाद भी मैं उसकी बुर और चुचि से खेलता रहा.

वो—….अब बस करो ना….मुझसे ये गुदगुदी बर्दास्त नही हो रही है अब…..

मैं —क्या कर रहा हू मैं ….?

वो—आप ना…..आप ना वो…मेरी चूस रहे हो…

मैं—क्या चूस रहा हू तेरी….?

वो—मुझे ना…शरम आती है…

मैं—अब मुझ से कैसी शरम…? चल बता ना ..की मैं तेरी क्या चूस रहा हू….?

वो—आपने मुझ को पूरी नंगी कर दिया है, तो क्या शरम नही आएगी मुझे…?

मैं—चल मैं भी नंगा हो जाता हूँ…ठीक है..

मैं अपने कपड़े उतार कर नंगा हो गया….उस की नज़र जैसे ही लंड महाराज पर पड़ी तो उसकी आँखे चौड़ी हो गयी… उसने अपने मूह पर
हाथ रख लिया आश्चर्य चकित हो कर.

वो (हैरान)—हे भगवान

मैं —क्या हुआ…?

वो—ये..क्या है …?

मैं—ये खुजली विनाशक इंजेक्षन है …

वो—धत्त…कुछ भी बोलते हो…जैसे की मैं कुछ जानती ही नही

मैं—तो तू ही बता दे कि क्या है…?

वो—नही बताती...आप तो फुल बेशरम हो...मुझ से इतनी गंदी गंदी बाते करते हुए ज़रा भी लाज़ शरम नही है आपको..सही मे आप बहुत गंदे हो..

मैं—इसमे शरम कैसी... ?

मैने उस की चुचि को दबाते हुए अपने होठ उसके होंठो से चिपका दिए और उनका मधुर रस पीने लगा...वो भी इस समय चुदासी थी तो आँखे बंद कर के मेरा साथ देने लगी....मैने लंड को उसकी बुर पर टिका कर उसमे घिसने लगा .. अपनी बुर मे मेरे लंड को महसूस करते ही वो हड़बड़ा गयी.

वो (हड़बड़ा कर)—नहिी..भैया...अंदर नही घुसेड़ना...

मैं—मैं अंदर नही घुसेड रहा हूँ बहन...बस तेरी बुर मे थोड़ा सा लंड को घिस रहा हूँ खुजली मिटाने के लिए..

वो—धत्त..कितना गंदा बोलते हो आप....

मैं—इसमे गंदा क्या है...बर को बर और लंड को लंड ही कहूँगा ना....क्या ये तेरी बुर नही है... ?

वो—हां है, तो क्या इसका नाम लेना ज़रूरी है.... ?
 
मैं—तेरी बुर बहुत खूबसूरत है …

वो—आआअहह…. ….अंदर घुस जाएगा…मत करो ना..

मैं—बस घिस ही तो रहा हू…नही घुसेगा…चिंता मत कर….अगर तेरी बुर मे घुसने लगे तो मुझे बता देना..मैं बाहर निकाल लूँगा..

वो—आआहह…ह्म्‍म्म्म

उस की चुचियो को कस कस के दबाते हुए मैं लंड को उसकी बुर की घाटी मे घिसता रहा…कभी क्लिट पर तो कभी उसके बुर के छेद पर…उसकी बुर पूरी तरह काम रस से सारॉबार हो चुकी थी…फिर से बुर के छेद मे लंड के सेट होते ही मैने एक तगड़ा धक्का पेल
दिया….फककक की आवाज़ के साथ ही लंड का टोपा उसकी बुर के दरवाजे को चोडा करते हुए अंदर घुस गया…उस के मूह से ज़ोर से चीख निकल गयी दर्द के कारण.

वो—आआआआआआआ…..मररररर गाइिईईई……….

मैं—क्या हुआ ….? लंड अंदर घुस रहा है क्या…?

वो—आआअहह…ह्म्‍म्म…….वो अंदर घुस गयाआअ..

मैं (बुर को देख कर)—अरे हां, ये तो सचमुच ही अंदर बुर मे घुस गया….लेकिन चिंता मत कर थोड़ा सा ही तो घुसा है…लगता है कि उसे
तेरी बुर बहुत पसंद आ गयी है…इससे ज़्यादा अंदर घुसने लगे तो मुझे बता देना, मैं बाहर निकाल लूँगा..

वो (दबी आवाज़ मे)—ह्म्‍म्म्म

मैने उस की चुचि को मूह मे ले कर चूस्ते हुए लंड को धीरे धीरे अंदर बाहर करना शुरू कर दिया..कुछ देर ऐसा करने के बाद बीच मे एक धक्का फिर से पेल दिया….लंड बुर को फाड़ता हुआ आधा अंदर तक घुस गया…वो इस बार बहुत ज़ोर से चिल्लाई और फिर बेहोश हो गयी दर्द से हाथ पैर पटकते हुए…उसकी आँखो से आँसू बहने लगे….मैने वहाँ रखा पानी का ग्लास उठा कर उसके चेहरे पर कुछ पानी की बूंदे
डाली…होश मे आते ही वो रोने लगी तो मैने उसके होंठो को चूसना चालू कर दिया एक हाथ से चुचि दबाते हुए…

ऐसा कुछ देर करने से वो फिर से गरम होने लगी अपना दर्द भूल कर…मैने धीरे धीरे लंड को आगे पीछे सरकाना शुरू कर दिया…बुर तो पहले से ही काम रस से चिकनी हो चुकी थी.

वो (सिसकते हुए)—आआहह….….बहुत दर्द हो रहा है…..मेरी बुर फॅट गयी है… बाहर निकाल लो आप खुजली मिटा रहे हो या अपनी मुझ
को चोद रहे हो..

मैं —कुछ नही होगा मेरी रानी….अभी थोड़ी देर मे सारी खुजली मिट जाएगी….अब इससे अंदर नही घुसने दूँगा मैं लंड को जैसे ही ये बुर
मे और घुसने लगे तो मुझे बता देना…थोड़ा सा चोद लेने दे मेरी रानी अपनी बुर, अपने सैयाँ को..

वो—ह्म्‍म्म्म.

मैं चुचि दबाते हुए धीरे धीरे उस को चोदने लगा…थोड़ी ही देर मे वो पूरी तरह से चुदासी हो कर अपनी गान्ड उपर उठाने लगी…तो मैं समझ गया कि ये अब चुदने को तैयार है…मैने आख़िरी धक्का बहुत तेज़ी से लगा कर पूरा लंड उसकी बुर की गहराई मे उतार दिया…वो एक बार फिर से दर्द से अकड़ गयी

मैने चोदने की स्पीड अब थोड़ा बढ़ा दी...हर धक्के पर वो उछल जाती थी
 
मैं दनादन धक्के उसकी की बुर मे लगाते हुए चोदने लगा...थोड़ी ही देर मे उसकी बुर ने पानी का फव्वारा छोड़ दिया....उसके झाड़ते ही मैं उसको डॉगी स्टाइल मे कर के पीछे से हचक हचक के चोदने लगा...उसकी की नंगी गान्ड मेरे सामने थी...उसके गोरे गोरे फूले हुए खूब
गदराए चूतड़ बेहद कामुक और आकर्षक थे...जब पीछे से उसकी बुर मे लंड पेलते हुए उसके इन चुतड़ों से टक्कर होती तो ठप्प...ठप्प की मधुर आवाज़ होने लगती थी.

मैं—आआहह...मेरी जान...बहुत मस्त गान्ड है तेरी....तेरी ये गदराई गान्ड मारे बिना चैन नही मिलेगा मुझे ..

वो—आआआहह.....नही ....मैं बुर मे ही आप का ये घोड़े जैसा लंड बड़ी मुश्किल से ले पा रही हूँ.. गान्ड मे अगर ये गया तब तो मेरा जिंदा
बचना ही मुश्किल है…आप मेरी बुर चोद लो जितना चोदना है…गान्ड के बारे मे मत सोचो..

मैं—चल आज गान्ड नही मारता लेकिन किसी दिन ज़रूर मारूँगा तेरी ये मस्त गदराई गान्ड…

वो—आआहह…..ऊऊहह…..तब की तब देखी जाएगी ….अभी तो बुर को ही फाड़ लो जितना फाड़ने का दिल करे आप का…आअहह…..बहुत मज़ा आ रहा है…मैं फिर से झड़ने वाली हू…

मैं—मैं भी बस आने ही वाला हू अब…. और मैने अपना लंड उसकी चूत से निकाला और जब तक वो समझ पाती उससे पहले ही उसकी
गान्ड पर लंड टिका कर एक तगड़ा धक्का मारा जिससे मेरा चिकना लंड एक बार मे ही जड तक उसकी गान्ड मे घुस गया .

गान्ड मे लंड घुसते ही उसके मुँह से एक जोरदार चीख निकली और उसकी आँखे मानो बाहर को निकल आईं और वो दर्द की अधिकता से बेहोश हो गई

मैने उसके दर्द की परवाह ना करते हुए उसके अचेत शरीर पर टूट पड़ा। अपने धक्के चालू रखे और कुछ देर बाद अपना वीर्य उसकी गान्ड मे उडेल कर शांत हो गया

और उसके बाद यादगार के लिये उसके कपडे और गले का हार... अंगूठियां साथ ले ली... फिर आगे बढ़ गया। जल्द ही अन्य कमरों को देखने के उपरांत मुझे पता लगा की ठाकुर वहां है ही नहीं, अगर वह गढ़ी में कहीं होता तो इन्ही कमरों में होता। विभिन्न कमरों में जो प्राणी सोये हुए थे, उनमे ठाकुर नहीं था।

अचानक बाहर शोर उत्पन्न हुआ और घंटे से बजने लगे, उस वक़्त मैं ऐसे कमरे के सामने था, जहाँ ठाकुर का बच्चा अपनी मां के साथ सोया था, मैं समझ गया कि गढ़ी में कुछ गड़बड़ हो गई है और कुछ देर बाद ही सब जाग जायेंगे।

मैंने लपक कर बच्चे को उठा लिया और इससे पहले की वहां चीख पुकार मचती बच्चे को दबाकर खिड़की की तरफ भागा। उसके बाद मैं खिड़की से कूद गया। बेताल ने मुझे पहले ही समझा दिया था कि अनेक आदमियों के साथ वह सामूहिक संघर्ष नहीं कर सकता।

साथ ही उसने एक विशेष बात भी बताई थी। जिस व्यक्ति के पास कोई मिलिट्री या पुलिस का मैडल या तमगा होगा, उसे भी वह नहीं छू सकता। इसका कारण उसने मुझे नहीं बताया पर ऐसा किसी इंसान के साथ वह संघर्ष नहीं कर सकता था। यदि उसके पास मैडल या वर्दी तमगा न रहे, तब वह उससे निपट सकता था।इसका कारण यह भी हो सकता था कि सरकारी तंत्र के साये में मानव की सामूहिक शक्ति निहित होती है। बेताल का कथन था कि ऐसा व्यक्ति यदि कपटी हो, तब उससे निपटा जा सकता था। यही बात उसने धर्मगुरुओं के बारे में कहीं थी।

बेताल पादरी... मौलवी या मंदिर के पुजारी को हानि नहीं पहुंचा सकता था। ऐसे पाक साफ़ लोगों को वह पास भी नहीं फटक सकता था। उन पर ईश्वर का साया रहता है– और ईश्वर के नियम ब्रह्माण्ड के सभी दृश्य अथवा अदृश्य शक्तियों को बांधे रहते है। जिस दिन बेताल इन नियमों को तोड़ता उसकी शक्ति समाप्त हो जाती।
 
मैं बच्चे को लेकर गढ़ी की चारदीवारी की तरफ भागा... फिर बेताल की सहायता से चारदीवारी पार कर गया। गढ़ी में जोर-जोर की आवाजें आ रही थी। इसमें चीख-पुकार और रुदन भी शामिल था।

मुझे पकड़ पाना उन लोगों के वश का रोग नहीं था।

अगले दिन सूरजगढ़ में आतंक की फिजा बन गई थी।

लोग दबी जुबान में मेरे नाम की चर्चा करने लगे थे। मैं एक खण्डहर की शरण में था। सूरजगढ़ पुराने खण्डरात के लिये प्रसिद्ध था। ऐसे बहुत से स्थान थे, जहाँ दिन में भी उजाला नहीं होता था। इन स्थानों पर डाकू चोर लुटेरे छिप कर रहते थे। बच्चे को कैद करने के लिये मैंने ऐसा ही स्थान चुना।

बच्चा दिन भर भूखा-प्यासा रहा और न मुझे उसके खाने-पीने की चिंता थी। मैं एक बहुरूपिया बनकर बस्ती में घूमता रहा। हर किसी की जुबान पर गढ़ी के कत्लेआम की चर्चा थी। पुलिस की सरगर्मी बढ़ गई थी, परन्तु ठाकुर भानुप्रताप के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।

गढ़ी वालों से इंतकाम लेने की शुरुआत हो चुकी थी।

अगली रात गढ़ी प्रचंड अग्नि लपटों से घिर गई। यह आग दूर दूर तक दिखाई पड़ती थी। गढ़ी के लोग अपनी जान बचाने के लिये भाग रहे थे। आग बुझाने का हर प्रयास असफल रहा... और सूरजगढ़ के लोग सहमे-सहमे से इस दृश्य को देखते रहे। कुछ लोग गढ़ी में ही घिर कर रह गये थे।

मैं दूर से उस नज़ारे को देखता रहा। गढ़ी की तबाही मेरे सामने ही हो रही थी। उस वक़्त मुझे अपने मकान का जलता दृश्य याद आ रहा था। आज ठाकुर भानुप्रताप को अपनी उस कारगुजारी का फल भोगना पड़ रहा था।

फिर मैं वापिस लौट पड़ा। मैंने खण्डहरों का रास्ता पकड़ा और शीघ्र उस खण्डहर में जा पँहुचा, जहाँ बच्चे को कैद कर आया था। मैं भानुप्रताप के बारे में सोच रहा था, आखिर वह कहां चला गया है।

जैसे ही मैंने खण्डहर में कदम रखा, खँडहर में एका-एक टार्च का प्रकाश जल उठा। यह उजाला मेरे चेहरे पर पड़ा तो मैं बुरी तरह चौंक पड़ा।

“कौन है यहाँ?” मैंने पूछा।

“मैं हूं तांत्रिक रोहताश।”

मुझे स्वर कुछ जाना पहचाना लगा।

“टार्च बुझाओ, वरना नुक्सान उठाओगे।”

“पहले मेरी बात सुन लो, मुझ पर किसी प्रकार का हमला न करना। मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं। याद दिलाने के लिये इतना बता दूँ की मेरा नाम अर्जुनदेव है और मैं तुम्हारे उस वक़्त का साथी हूं जब तुम अंधे हो गये थे।”

“अर्जुनदेव! आह खूब याद दिलाया। दोस्त तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

“तुम्हारा इन्तजार कर रहा था।”

“उधर मोमबत्ती रखी है, उसे जला लो, फिर आराम से बातें करेंगे।”

टार्च बुझ गई, फिर मोमबत्ती का प्रकाश खँडहर में फ़ैल गया। मैंने पहली बार उस हमदम दोस्त का चेहरा देखा। उसके चेहरे से कठोरता का बोध होता था। उसके आधे बाल सफ़ेद थे और गहरी मूंछें थी। कंधे चौड़े और भुजाएं बलिष्ट। आँखों में चीते जैसा फुर्तीलापन। कद लगभग छः फीट।

“तुमने मुझे कैसे खोज लिया?”

“मेरे लिये यह कोई मुश्किल काम नहीं था। मैं तुम्हारी कारगुजारी तभी से सुन रहा हूं जब से तुमने शमशेर की ह्त्या की थी। तुम्हें शायद पता न हो की मैं अक्सर गढ़ी के पास ही मंडराता रहता हूं। पिछली रात भी मैं वहीँ था, और मैंने तुम्हें देख लिया था, फिर बड़ी सरलता से पीछा करके तुम्हारा ठिकाना मालूम कर लिया।”

“आश्चर्य है कि मुझे पता नहीं लगा।”

“आदमी की चालाकी हर जगह काम नहीं करती, मेरी जगह वहां अगर कोई खुफिया होता तो वह भी यहाँ पहुँच जाता और अब तो तुम वैसे भी खुला खेल खेलने लगे हो।”

“जब आदमी का उद्देश्य एक ही रह जाता है और उसका जिन्दगी से कोई मोह नहीं रह जाता तो वह खुली किताब की पढ़ा जा सकता है।”

“क्या तुम्हें यह भी मालूम है की तुम्हें गिरफ्तार करने करने के लिये पुलिस ने चारों तरफ ख़ुफ़िया जाल फैला दिया है और मैं यहाँ न होता तो पुलिस अब तक यहां घेरा अवश्य डाल चुकी होती। फिर तुम्हारा बेताल भी तुम्हें न बचा पाता।

“क्या मतलब?”

“तुम्हें यह नहीं मालूम होगा कि पुलिस ऐसे कुत्तों की भी व्यवस्था कर सकती है, जो मात्र गंध पाते ही उस रास्ते पर चल पड़ते है, जहाँ से अपराधी गया होता है। आज शाम ऐसे दो कुत्तो ने गढ़ी से अपना काम शुरू कर दिया था। तुम तो जानते ही हो कि गढ़ी वालों की पहुँच कितनी है। तुम ठाकुर के बच्चे का अपहरण कर लाये, उन्होंने उसी बच्चे के कपड़ो की गंध पाकर उसे तलाश करना शुरू किया और अगर मुझे रास्ते में इसका पता न चल गया होता तो वे इस जगह तुम्हारा इन्तजार कर रहे होते।

“तो क्या वे यहाँ तक नहीं पहुचे?”

“कुत्तों को बहकाने के लिये मुझे काफी तरकीबें आती है इसलिये वे यहाँ तक पहुचने से पहले ही भटक गये। लेकिन अब वे इस इलाके का चप्पा-चप्पा छान डालेंगे। इसलिये बेहतर यही है कि तुम यह जगह छोड़ दो... मेरे पास एक पुराना मकान है – मैं अक्सर वहां रहता हूं और वह आधा उजड़ चुका मकान घने जंगल में है। उस जंगल में मैं अक्सर शिकार खेलने जाया करता था, इसलिये मकान को रहने लायक बना लिया है। वैसे मैंने ठाकुर के बच्चे को पहले ही वहां पंहुचा दिया है। मैं जानता था कि मैं तुम्हें राजी कर लूंगा।”

“ठीक है... यह अच्छा हुआ कि तुम जैसा चतुर आदमी मुझे मिल गया। मुझे ऐसे ही साथी की जरुरत थी।”

हम दोनों वहां से चल पड़े।

एक घंटे बाद हम उस उजाड़ मकान पर पहुँच गये, जहाँ एक भयानक शक्ल का हब्शी पहले से मौजूद था।

“यह हब्शी कौन है?”

“इस मकान का रखवाला है। न जाने मेरे भाई ने इसे कहाँ से प्राप्त किया था। यह इसी देश में भटक रहा था, शायद रोजी रोटी की तलाश में था, उस वक़्त यह मेरे भाई को टकरा गया।”

“तुम्हारा भाई! तुमने पहले तो कोई जिक्र नहीं किया। तुम्हारा भाई कहाँ है ?”

“यह भी एक लम्बी कहानी है। मैंने तुम्हें पहले बताया था की मैं एक रिटायर फौजी हूं और शिकार खेलना मेरा शौक है इसलिये जंगलों में भटकता रहता हूं। यह तो सच है की मेरा अधिकांश जीवन फ़ौज में बीता है। दूसरा सच यह है की मैं युद्ध से उकता कर फ़ौज से भाग आया था। यूँ समझो कि मैं फौजी भगोड़ा हूं। मेरा भाई उन दिनों सूरज गढ़ में रह रहा था।

मैं आर्मी से भाग कर उसके पास चला आया पर यहाँ आने के बाद मुझे पता लगा कि मेरा भाई साल भर से लापता है। उसके परिवार के किसी सदस्य का कोई पता न था। बस तब से मैं जंगलों में मारा -मारा फिरने लगा। मुझे डर था कि यदि मैं पकड़ा गया तो कोर्ट मार्शल का शिकार बन जाऊँगा, इसलिये मैं कुछ अरसा जंगलों में बिताना चाहता था। इसके साथ-साथ मैं अपने भाई की खोज भी करता रहा। इस बीच में मैंने अपना नाम बदल लिया था और बहुत से लोगों से ताल्लुकात भी बनाये। धीरे-धीरे मुझे पता लगा कि मेरा भाई ठाकुर के परम मित्रों में से एक था। कुछ ऐसी अफवाह भी कान में पड़ी कि गढ़ी वालों ने मेरे भाई व उसके परिवार का खात्मा कर दिया है, इसलिये मैं ठाकुर से नहीं मिला बल्कि असलियत की खोज चुपचाप करता रहा।
जब तुम मुझे मिले थे तो मेरी खोज अधूरी थी, लेकिन ठाकुर के बहुत से जुल्मों का मुझे पता लग चुका था, तुम्हारा उदाहरण देखते ही मुझे पूरा यकीन भी हो गया इसलिये तुम्हारी अभियान में मैं साथ हुआ था परन्तु बाद में मुझे पता लगा कि पुलिस भी उसका कुछा नहीं बिगाड़ सकती।

बाद में अचानक मुझे अपने भाई का पता लग गया और इस मकान तक पहुँच गया। मेरा भाई यहाँ छिप कर जीवन बिता रहा था और मृत्यु के निकट था। यह हब्सी उसकी रक्षा करता था। अंत में उसकी मृत्यु मेरे सामने हो गई।

पर मुझे बहुत सी बातों का पता लगा।
 
मेरा भाई गढ़ी के उस धन का पता लगा रहा था जो कहीं दबा था... वह इस रजवाड़े का ऐसा खजाना था, जो पूर्वकाल से ही कहीं रख दिया गया था, सिर्फ उस रजवाड़े के वंशज के पास नक्शा रहता था। मेरे भाई ने यह भेद प्राप्त करके नक्शा चुरा लिया, जो न जाने कैसी सांकेतिक भाषा में था। नक्शा पाने के बाद वह सिर्फ चंद बातें ही मालूम कर पाया, पर उसे प्राप्त न कर सका।

उसके बाद उसने किसी तांत्रिक की मदद ली और खोज-बीन में लग गया। यही बात दुश्मनी की जड़ थी, जिसने न जाने कितनी जाने ली। यहाँ तक कि तांत्रिक भी मर गया और मेरा भाई चल बसा, पर धन किसी को नहीं मिला। उसने मुझे यह सारी बातें बताई थी... बाद में मुझे पता चला कि वह तांत्रिक तुम्हारा बाप साधुनाथ था। बस यह कहानी इतनी ही है।”

“तुम्हारे भाई का नाम लखनपाल था।”

“हाँ... क्या तुम जानते हो?”

“थोड़ा बहुत... इसका मतलब हम दोनों का उद्देश्य बहुत कुछ समानता लिये है। तुम भी शायद ठाकुर से अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहते हो।”

“जहाँ तक ठाकुर को मारने का सवाल है, यह काम तो मैं कभी का कर चुका होता, जब मैंने तुम्हारे बारे में अफवाहें सुनी तो ऐसा लगा जैसे तुमने उसका अंत करने के लिये कमर कस रखी है और तुम कुछ गुप्त शक्तियों के स्वामी भी हो – तो मेरी हार्दिक इच्छा हुई कि तुमसे भेंट करूँ...आखिर मैं अपनी कोशिश में सफल रहा।”

“तो तुम क्या चाहते हो मैं उसे न मारूं।”

“नहीं! पर उसे खाली मारने से क्या लाभ, मेरा मतलब यह है कि जिस काम को मेरा भाई न पूरा कर सका उसे हम दोनों पूरा कर सकते है। मेरे भाई ने इस बारे में जो डायरी लिखी वह तुम पढोगे तो आश्चर्य में पड़ जाओगे। इस वक़्त सारे तुरुप के पत्ते हमारे हाथ में है।”

“तुम्हारा मतलब उस खजाने से है।”

“हाँ...।”

“मैं उसकी सत्यता का प्रमाण जानना चाहता हूं।”

“मैं वह कागजात तुम्हारे हवाले कर देता हु तुम्हें खुद आभास होगा की उसमें सत्यता है।”

कुछ देर बाद अर्जुनदेव एक पोटली ले आया और सबसे पहले उसने कपडे में लिपटा एक ऐसा कागज निकला जो देखने में बदामी रंग का कागज लगता था परन्तु वास्तव में वह तांबे की पतली चादर थी। इसमें विभिन्न किस्म की आडी-तिरछी रंग-बिरंगी रेखायें पड़ी थी। कुछ जगह अंक भी लिखे थे।

मैं काफी देर तक उस पर माथा पच्ची करता रहा पर मेरी समझ में नहीं आया।

“तुम्हें आश्चर्य होगा कि यह किसी तांत्रिक का बनाया हुआ है इसलिये यह जो कुछ नजर आता है, वह है नहीं। इसकी वास्तविक रूप रेखा किसी गुप्त शक्ति से ही ज्ञात हो सकती है। मेरे भाई ने साधुनाथ की सहायता से जो नोट्स तैयार किये उनमे आधा नक्शा तो हल हो गया लगता है – शेष रह गया है। अब यह देखो इस नक़्शे के नोट्स।”

उसने मेरे सामने एक डायरी रख दी।

मैंने उसे पढ़ना शुरू किया।
(1) “दो काली रेखाएं जो समान्तर नजर आती है, वह समान्तर नहीं है... यह दो रेखायें सारे खजाने की सीमा रेखाएं है परन्तु तंत्र विद्या से इन्हें देखा जाए तो इसका स्वरुप पहाड़ जैसा दिखाई पड़ता है। काली रेखा का आशय काला पहाड़ है। अर्थात यह गुप्त धन काले पहाड़ में है।
(2)
दूसरा नोट था-
(2) जिस तांत्रिक ने इसे बनाया वह कई विद्यायें जानता था उसने बड़ी सूक्ष्म बातें उसमें अंकित की है, जो नजर नहीं आती। इसके पीछे तांत्रिक का एक लेख भी है। यह व्यवस्था इसलिये की गई है ताकि इस नक़्शे को पाने के बाद भी हर कोई वहां तक न पहुँच पाए। तांत्रिक का नाम कृपाल भवानी था , जो इस रजवाड़े के खजाने की रक्षा करता था। खजाने में जाने के लिये राजा को तांत्रिक की सहायता लेनी पड़ती थी। कृपाल भवानी के घराने का ही कोई तांत्रिक आगे चल कर इसका रहस्य जान सकता था, दूसरा कोई नहीं... या ऐसा कोई व्यक्ति जो कृपाल भवानी के बराबर महत्त्व रखता हो। इसके अलावा जो कोई व्यक्ति इसे पाने को प्रयास करेगा वह अपने प्राण गंवायेगा।

(3) काले पहाड़ में काले जादू का प्रभाव बड़ी तेजी से होता है। रजवाड़े ने यह जगह तांत्रिकों के लिये खाली कर दी थी। उसी के पास मंगोल घाटी है... जो बेतालों की धरती मानी जाती है और बेताल काले पहाड़ तक किसी को अपने मार्ग से नहीं जाने देते और न काले पहाड़ से किसी को अपनी सीमा में आने देते हैं। काले पहाड़ की गुप्त शक्तियों ने उनसे समझौता कर रखा है और वे इसका उल्लंघन नहीं करते।

(4) काला पहाड़ प्रारंभ से ही रहस्यमय प्रदेश रहा है – यहाँ सिर्फ राजवंश के लोगों के आने-जाने का एकाधिकार है, जिस पर गुप्त शक्तियां हमलावर नहीं होती।

(5) नक़्शे के मध्य लाल रंग के चार घेरे है – वस्तु स्थिति में यह चार घेरे नहीं मीनार है– जिसका रंग सुर्ख है और ये मीनारें अधिक ऊँची भी नहीं है इसकी ऊं चाई नीचे लिखे अंकों से प्रकट होती है। ये अंक बड़े हिसाब से लिखे गये है.... पता चलता है कि पांच गुना चार का अर्थ पचास गुना चार है... शून्य अदृश्य नंबर है। इसका अर्थ यह निकलता है कि मीनारों की लम्बाई पचास हाथ लम्बी है। खजाने की कुंजी ये चारो मीनार है।

(6) पांच गुना चार से ही दूसरा संकेत मिलता है। एक मीनार की बीस सीढियाँ है दूसरे में चौवन तीसरे में पैंतालिस और चौथे में चालीस...शून्य चार में दूसरी सीढ़ी पर अदृश्य है। इन सीढियों का सम्बन्ध खजाने से जुड़ा है।

(7) सीढ़ियों के हिसाब से मीनारों को क्रमबद्ध रखो या कम से अधिक या अधिक से कम.... इस बात का संकेत चार अजनबी पांव है जो सीढ़ी पर टिके है और ये पांव छोटे-बड़े के हिसाब से क्रमबद्ध रखे है।

इतनी बातें काफी खोज के बाद तांत्रिक साधुनाथ ने हल की। और आगे का नक्शा वह नहीं पढ़ पाया, इस शेष भाग में वहां तक जाने का मार्ग... सुरक्षा का रास्ता और खजाने की ठीक सही कुंजी दर्ज है। साथ ही उसका ब्योरा सबसे बड़ी समस्या काला जादू है, जो वहां किसी पर भी असर कर सकता है, राज घराने के लोगो को छोड़कर।
 
डायरी में शेष बातें लखनपाल ने व्यक्ति गत जीवन के बारे में लिखी थी। उसमें भैरव तांत्रिक से ले कर साधूनाथ की मृत्यु तक का विवरण था। इसमें यह भी लिखा था कि भैरव तांत्रिक कृपाल भवानी का वंशज है, जो कहीं अज्ञात वास कर रहा था और ठाकुर भानु प्रताप की पुकार पर उसकी सहायता के लिये आया है।

भानु प्रताप उस विपुल धनराशि को अपने अधिकार में लेकर कहीं दूसरी जगह स्थानान्तरित कर देना चाहता है। एक ही समस्या उसके गले अटकी हुई है – नक्शा उसके पास नहीं इसी कारण वह कठिनाई में पड़ गया है और मुझे तलाश करता फिर रहा है और इन दिनों तुम्हारी तरफ से खतरे का संकेत पाकर वह काले पहाड़ की ओर चला गया है। शायद इस बार वह बिना नक़्शे के खजाने की तलाश करने गया है।”

“तुम्हारा मतलब वह काले पहाड़ पर गया है।”

“हाँ...।”

“ओह! न जाने वह कब लौटेगा। तब तो उसे इन घटनाओं का पता भी न होगा।”

“उसकी रवानगी का पता किसी को नहीं होगा और न कोई उसे खबर देने वहां पहुँच पायेगा। अब हमारे सामने एक ही समस्या है किसी तरह काले पहाड़ तक पहुंचा जाये। अगर हम वहां सकुशल पहुँच जाते है तो सारी बाजी हमारे हाथ आ सकती है – धन भी मिलेगा और ठाकुर भी।”

“बात तो ठीक है, परन्तु जैसा कि इस डायरी में लिखा है, यहाँ काले जादू का प्रकोप है उसका क्या इलाज़ है?”

यही बातें तो तुम्हें सुलझानी है। तुम किसी गुप्त शक्ति के मालिक हो इसलिये ऐसे मामलों को सुलझा सकते हो।”

“ठीक है... मैं मालूम करता हूँ। धन के बारे में तो मैंने अभी तक सोचा ही नहीं था। धन तो इंसान की खुशियों का खजाना है।”

मैंने बेताल को याद किया।
बेताल उपस्थित हुआ।

“बोल अगिया बेताल! मेरी एक समस्या हल करेगा।”

“हाँ आका! आपके हुक्म का गुलाम हूं।”

“मुझे पता लगा है की ठाकुर भानुप्रताप काले पहाड़ पर वास कर रहा है और वह कब लौट पायेगा, इसका कुछ पता नहीं। मुझे काले पहाड़ पर जाना है।”

“काला पहाड़!” बेताल चौंका – “आका! यह आप क्या कह रहे हैं। बेताल वहां आपका साथ नहीं दे सकता।”

“क्यों...।”

“वह कृपाल भवानी का क्षेत्र है। बहुत पहले बेतालों में और काले पहाड़ की गुप्त शक्तियों के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें दोनों की शक्ति बराबर रही। महीनों तक युद्ध चलता रहा पर हार-जीत का फैसला नहीं हुआ तभी हमारे बीच संधि हुई थी, जिसे न वे भंग कर सकते है न हम...।”

“किस प्रकार की सन्धि।”

“हमारे बीच एक सीमा है जिसे न तो बेताल पार कर सकते हैं और न काले पहाड़ की गुप्त शक्तियां हमारी सीमा में आ सकती है और न उस ओर से कोई मनुष्य हमारी सीमा में आयेगा न हमारी तरफ से वहां जायेगा। सिर्फ राजघराने के वंशजों पर यह प्रतिबन्ध नहीं, जो वहां राज्य कर चुके है। हमारी संधि कृपाल भवानी ने करवाई थी और तब से हम उसमे बंधे आ रहे है। इसलिये मेरे आका मैं इसमें आपकी मदद नहीं कर सकता, और यह तब तक नहीं हो सकता जब तक मैं सर्व शक्तिमान नहीं हो जाता।”

“सर्व शक्तिमान से तुम्हारा क्या अर्थ?”

“मुझे आपने तेईस चरणों में सिद्ध किया है... यह तेईस का अंक ही मुझे सर्व शक्तिमान बना सकता है। तेईस दिन के अन्दर में जैसे आपने मुझे एक नरबली चढ़ाई थी उसी प्रकार मैं तेईस बलि मांगूंगा और इसका अंतर तेईस दिन ही होगा। यह आपकी लम्बी साधना का फल होगा कि आप कृपाल भवानी के बराबर गुप्त शक्ति वाले माने जायेंगे और उस वक़्त मैं मंगोल घाटी का राजा बना दिया जाऊँगा, क्योंकि जब मुझसे शक्तिशाली बेताल वहां नहीं रहेगा। ऐसी हालत में संधि आप तोड़ेंगे और मैं उन शक्तियों पर हमला बोल दूंगा और अब कृपाल भवानी तो रहा नहीं इसलिये निःसंदेह जीत हमारी होगी और वे गुप्त शक्तियां हमारी दास होगी। हर बेताल शहजादा यह स्वप्न देखता है... मैं तो आप से एक दिन अपने दिल की यह बात बता देता परन्तु तब तक न बताता जब तक आप का कार्य संपन्न न होता। किन्तु ऐसी हालत में मैं आपकी सहायता नहीं कर सकता।”

इस काम में तो लगभग दो वर्ष लग जायेंगे... अच्छा बेताल क्या तुम इस नक़्शे को पढ़कर बता सकते हो।” मैंने नक्शा फैला दिया।

वह एकदम पीछे हट गया और ठिठुरते स्वर में बोला – “मैं इसे छू भी नहीं सकता। यह कृपाल भवानी का नक्शा है और इसमें सूरज गढ़ी के गुप्त खजाने का वर्णन है। मैं इसे पढ़कर नहीं सुना सकता, इसे उनमे से कोई गुप्त शक्ति पढ़ सकती है, जिसका मालिक कृपाल भवानी था।”

“तो बेताल – या मैं मंगोल घाटी के रास्ते काले पहाड़ नहीं जा सकता?”
 
“इसके लिये वर्तमान बादशाह से आज्ञा लेनी पड़ेगी।”

“तुम्हारा क्या ख्याल है – क्या बादशाह इजाजत दे देगा।”

“शायद नहीं।”

“अच्छा बेताल। तुम यही रुके रहो, मैं जरा अपने साथी से विचार विमर्श कर लू।”

मैंने अर्जुनदेव को सारी समस्या बताई।

“उससे पूछो यदि हमारे साथ राजघराने का कोई वंशज रहा तो क्या हमें सीमा पार करने दी जायेगी।”

“मैंने बेताल से पूछा।”

“हाँ – तब सम्भव है।” उसका जवाब था।

मैंने अर्जुनदेव को उसका उत्तर सुना दिया।

“उससे पूछो – काले जादू से बचने का क्या तरीका है। विशेषकर काले पहाड़ पर पहुँचने के बाद।”

मैंने यह प्रश्न दोहराया।

“अगर मैं साथ रहूँ तो हर जादू की पूर्व सूचना दे सकता हूं साथ ही उसे काट भी सकता हूं परन्तु काले पहाड़ पर मैं आपके साथ नहीं रहूँगा। फिर भी वहां काले जादू में एक विशेष बात है– वह राजघराने के किसी वंशज पर हमला नहीं करता इस लिये जब तक कोई व्यक्ति आपके साथ रहेगा आप सुरक्षित है और यदि वह आपकी नजरों से ओझल हो जाता है तो आप उस जादू के प्रकोप में आ सकते हैं। राजघराने के वंशज के चारो तरफ एक परिधि लगभग सौ गज के दायरे तक होती है या राजघराने का सदस्य इस परिधि को इच्छाशक्ति से बढ़ा सकता है। यह पहाड़ियां बड़ी रहस्यमय है, इसलिये कोई इस तरफ नहीं जाता और जाता है तो लौटकर नहीं आता।”

मैंने अर्जुनदेव को यह बात बताई।

“फिर तो काम बन जायेगा।” अर्जुनदेव ने कहा।

“लेकिन किस प्रकार! हमारे साथ राजघराने का कौन सा सदस्य है।”

“क्या तुम उस बच्चे को भूल गये, जिसका तुम अपहरण कर लाये थे।”

मैं एकदम चौंक पड़ा।

और अर्जुनदेव हंस पड़ा।

यह छोटी सी बात मेरी समझ में क्यों नहीं आई थी कि वह बच्चा भी तो राजघराने का है– ठाकुर की संतान है।
 
एक माह का राशन पानी लेकर हम दोनों यात्रा पर चल पड़े। हमारे साथ दो घोड़े और दो खच्चर थे। खच्चरों में सामान लदा हुआ था। अर्जुनदेव जंगलों और पहाड़ियों का अनुभवी था अतः उसने ऐसा सामान साथ लिया था, जो इस प्रकार की यात्रा के लिये अनिवार्य था।

हमारा चौथा पड़ाव मंगोल घाटी में पड़ा। अब हम आबादी पीछे छोड़ चुके थे। आगे कोई भी बस्ती या आदिवासी गांव नहीं था। मंगोल घाटी मीलो लम्बी थी। और मैं जानता था, यहाँ तक बेताल हमारी रक्षा करता आ रहा है।

हमारे साथ आठ बरस का कुमार था, जिसका इन दिनों हम पूरा ध्यान रखे थे। प्रारंभ में वह रोता रहता था पर बाद में उसने रोना बंद कर दिया था। फिर भी वह दो खतरनाक अजनबियों के बीच सहमा सहमा रहता था।

मुझसे तो वह हमेशा भयभीत रहता था। अर्जुनदेव से थोड़ा घुल मिल गया था इसलिये वह अर्जुनदेव के घोड़े पर ही यात्रा करता रहा था।

अब तक मेरी जटाएं और दाढ़ी काफी बढ़ आई थी। हमेशा की तरह मेरे शरीर पर मैले कपडे होते थे और न जाने मैं कबसे नहाया नहीं था। मेरे शरीर से दुर्गन्ध आती थी, परन्तु अर्जुनदेव इसका आदी हो गया था। मंगोल घाटी में विश्राम की रात मुझे फिर चन्द्रावती की याद आई और एक आवारा रूह को मैंने अपने आस-पास मंडराते देखा, परन्तु वह मुझे किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचा सकती थी।

मंगोल घाटी में वह मेरे साथ-साथ रही। कई बार उसने मेरे पास आने की कोशिश की परन्तु मैंने उसे दुत्कार दिया।

मैंने बेताल से मालूम किया कि सीमा पार करने में कोई संकट तो नहीं। उसका उत्तर मिल गया। वह सीमा तक मुझे छोड़ने आ रहा था और फिलहाल हम पर कोई संकट नहीं था।

मंगोल घाटी की सीमा तक पहुँचते-पहुँचते बेताल उदास हो गया।

और जब हम सीमा पर पहुंचे तो उसने मुझे विदा देते हुए कहा –” मैं यहीं आपका इंतज़ार करूंगा... मेरी शक्ति आपको खींचती रहेगी, मुझे दुःख है की मैं आगे नहीं जा सकता। अगर आप सुरक्षित लौटे तो आपकी सेवा में उपस्थित हूँगा। मैं आपको फिर याद दिलाऊंगा की आप भैरव तांत्रिक से बचकर रहें।”

“बेताल! विश्वास रखो, मैं जल्दी लौट आऊंगा और यदि मैंने उस धन का पता पा लिया तो मैं तुम्हें सर्वशक्तिमान बनाऊंगा उसके बाद हम इसी घाटी में साथ-साथ रहेंगे।”

बेताल घुटनों के बल झुक गया और उसने मुझे प्रणाम किया। हम आगे बढ़ गये। अब हम काले पहाड़ की सीमा में आ गये थे। उसके पत्थरों के स्याह रंग से आभास होता था कि वह सचमुच रहस्यमय प्रदेश है। बड़े दुर्गम रास्ते थे और जंगल की भयानक छाया चहुँ ओर फैली हुई थी।

नोकदार पहाड़ी के लिये आगे की यात्रा शुरू हो गई।

मेरा दोस्त घाटियों और पहाड़ियों पर पुल बनाना भी जानता था। और यह कार्य वह बड़ी जल्दी पूर्ण कर लेता था। वह इस प्रकार की यात्रा का दक्ष था। हम पहाड़ी के उपर चढ़ते रहे। कोई रास्ता न था अतः जिधर से मन करता उसी ओरे से बढ़ चलते। हमारे पास इस बात का हिसाब था कि वह कितने मील के दायरे में फैला है। इसका बोध उस नक़्शे में होता था।

पहाड़ी के उपर पहुँचते-पहुँचते शाम हो गई और रात की स्याह चादर तनने लगी। वृक्ष घना आवरण ओढने लगे, चट्टानों का काला रंग रात से मिलन करने लगा और धीरे-धीरे गहन अन्धकार छा गया। हमने खेमा गाड़ दिया और मोमबत्ती जला दी।

यहाँ पहुँचते-पहुँचते हम बुरी तरह थक गये थे। हमने तुरंत भोजन किया और विश्राम करने लगे। कुमार सिंहल यही नाम था तुरंत सो गया। हम लेटे-लेटे कुछ देर तक बात करते रहे, फिर तय हुआ कि चार-चार घंटे की नींद ली जाये - वह भी बारी-बारी। इस प्रकार दोनों का एक साथ बेसुध हो कर सो जाना खतरे से खाली नहीं था। फिर मैं सो गया और वह पहरा देता रहा, पर उस जगह बड़े-बड़े मच्छर मंडरा रहे थे, जिनके कारण नींद नहीं आती थी, फिर भी मैं मच्छरों के काटने की चिंता किये बिना सो गया, फिर मैं पहरे के लिये जागा।

काले पहाड़ की रात बड़ी डरावनी थी। बाहर निकल कर टहलने से दिल में भय बैठता था। कभी-कभी ऐसा लगता जैसे असंख्य अजगर सांस ले रहे हो। जैसे-तैसे रात कटी– पर सवेरे तक मच्छरों के काटने के चिन्ह सारे बदन पर छा गये थे।

अपने मार्ग पर चिन्ह अंकित करते हुए हम इसी प्रकार आगे बढ़ते रहे और पांच रोज बाद कुमार सिंहल मलेरिया का शिकार बन गया। अर्जुनदेव को भी हल्का-हल्का बुखार चढ़ा था पर वह किसी तरह उसका मुकाबला करने में समर्थ था।

वह अपने साथ छोटी-मोटी दवाइयां भी लाया था। उसने कुमार को दवाई पिलाई– बुखार थोड़ी देर के लिये उतर गया पर फिर चढ़ गया... और इस प्रकार वह बुखार उतरता और चढ़ता रहा। उसकी हालत पतली होती गई।
 
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