desiaks
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इधर हमें कोई सफलता नहीं मिल पा रही थी। हम उन पर भटकते रहे पर कोई भी ऐसा चिन्ह दृष्टिगोचर नहीं हुआ, जिसे हम अपनी मंजिल कह सकें। मुझे निराशा होने लगी परन्तु अर्जुनदेव आशावादी था। इधर कुमार को कै होने लगी थी, सारी दवा दारू व्यर्थ साबित हो रही थी।
एक रात जब सम्पूर्ण वातावरण चांदनी तले खामोश था... तब अर्जुनदेव परेशानी की सी मुद्रा में खुली हवा में चहल-कदमी करने चला गया। उस रात वह बहुत सुस्त नजर आ रहा था और परेशानी में खजाने के कागजात देखता रहा था फिर वह बाहर निकल गया।
कुछ देर बाद ही मैंने उसकी चीख सुनी और मैं उछल कर खड़ा हो गया। आशंका से घिरा मैं बाहर निकला और उसे पुकारने लगा।
शीघ्र ही उसकी आवाज सुनाई दी।
“इधर आओ।”
मैंने उस तरफ घूमकर देखा – वह एक ऊँची चट्टान पर खड़ा था। मैं भी उस चट्टान पर चढ़ गया।
“क्या बात है... तुम चीखे क्यों?”
“वह ख़ुशी की चीख थी रोहताश।”
“क्यों – क्या खजाना मिल गया।” मैंने व्यंगपूर्ण स्वर में कहा।
“वह देखो...।”
मैंने उस तरफ देखा जिधर वह संकेत कर रहा था। काफी दूर मुझे एक चमकीली सी वस्तु नजर आई। चांदनी ने उसकी चमक को जैसे रौशन कर दिया था। वह एक छत्र जैसा था। मेरी समझ में नहीं आया कि वह क्या है?
“वह है क्या?”
“यह लो...अब ज़रा दूरबीन से देखो।”
मैंने दूरबीन आँखों पर चढ़ा ली, अब मुझे एक मीनार नजर आई, जिसके उपर वह धातु सा चमकीला छत्र रखा था। मीनार के दोनों तरफ खतरनाक तीखी चट्टानों वाली पहाड़ियां थी। एक प्रकार से वह मीनार खाई में बनी थी और छत्र पहाड़ियों को जोड़ता नजर आ रहा था। इस प्रकार छत्र उस खाई के लिये पुल का सा काम कर रहा था और यदि वह रात के समय चमकता प्रतीत न होता तो उसे कोई भी पहाड़ी चट्टान मान सकता था, किन्तु इस समय चांदनी रात के कारण उसका लाल खाका काले पत्थरों के बीच उभर आया था।
“गनीमत है कुछ तो सफलता मिली।” मैंने दूरबीन हटाते हुए कहा।
“मेरा अनुमान है की इन चारमीनारों के बीच पुराने नगर के अवशेष होने चाहिए और ये चारों मीनारें उस पुराने नगर का प्रवेश द्वार हो सकती है, ऐसा मैंने नक्शा देखकर अनुमान लगाया है।”
“सम्भव है।”
“प्यारे रोहताश अब हम खजाने के द्वार पर है...........दौलत हमारा इन्तजार कर रही है। कल हम वहां तक पहुँच जायेंगे। उस छत्र में पहुँचने के बाद हमें आनंद की आनुभूति होगी।
“शायद ठाकुर वहीँ कहीं होगा।”
“अगर वह हमारे हाथ आ गया तो शेष काम भी पूरा हो जायेगा उस पर कब्जा करने के लिये हमारे पास तुरुप का पत्ता है – उसका बेटा हमारे कब्जे में है, इसलिये उसे बिना शर्त हथियार डालने होंगे।”
उसके स्वर में ख़ुशी थी।
एक रात जब सम्पूर्ण वातावरण चांदनी तले खामोश था... तब अर्जुनदेव परेशानी की सी मुद्रा में खुली हवा में चहल-कदमी करने चला गया। उस रात वह बहुत सुस्त नजर आ रहा था और परेशानी में खजाने के कागजात देखता रहा था फिर वह बाहर निकल गया।
कुछ देर बाद ही मैंने उसकी चीख सुनी और मैं उछल कर खड़ा हो गया। आशंका से घिरा मैं बाहर निकला और उसे पुकारने लगा।
शीघ्र ही उसकी आवाज सुनाई दी।
“इधर आओ।”
मैंने उस तरफ घूमकर देखा – वह एक ऊँची चट्टान पर खड़ा था। मैं भी उस चट्टान पर चढ़ गया।
“क्या बात है... तुम चीखे क्यों?”
“वह ख़ुशी की चीख थी रोहताश।”
“क्यों – क्या खजाना मिल गया।” मैंने व्यंगपूर्ण स्वर में कहा।
“वह देखो...।”
मैंने उस तरफ देखा जिधर वह संकेत कर रहा था। काफी दूर मुझे एक चमकीली सी वस्तु नजर आई। चांदनी ने उसकी चमक को जैसे रौशन कर दिया था। वह एक छत्र जैसा था। मेरी समझ में नहीं आया कि वह क्या है?
“वह है क्या?”
“यह लो...अब ज़रा दूरबीन से देखो।”
मैंने दूरबीन आँखों पर चढ़ा ली, अब मुझे एक मीनार नजर आई, जिसके उपर वह धातु सा चमकीला छत्र रखा था। मीनार के दोनों तरफ खतरनाक तीखी चट्टानों वाली पहाड़ियां थी। एक प्रकार से वह मीनार खाई में बनी थी और छत्र पहाड़ियों को जोड़ता नजर आ रहा था। इस प्रकार छत्र उस खाई के लिये पुल का सा काम कर रहा था और यदि वह रात के समय चमकता प्रतीत न होता तो उसे कोई भी पहाड़ी चट्टान मान सकता था, किन्तु इस समय चांदनी रात के कारण उसका लाल खाका काले पत्थरों के बीच उभर आया था।
“गनीमत है कुछ तो सफलता मिली।” मैंने दूरबीन हटाते हुए कहा।
“मेरा अनुमान है की इन चारमीनारों के बीच पुराने नगर के अवशेष होने चाहिए और ये चारों मीनारें उस पुराने नगर का प्रवेश द्वार हो सकती है, ऐसा मैंने नक्शा देखकर अनुमान लगाया है।”
“सम्भव है।”
“प्यारे रोहताश अब हम खजाने के द्वार पर है...........दौलत हमारा इन्तजार कर रही है। कल हम वहां तक पहुँच जायेंगे। उस छत्र में पहुँचने के बाद हमें आनंद की आनुभूति होगी।
“शायद ठाकुर वहीँ कहीं होगा।”
“अगर वह हमारे हाथ आ गया तो शेष काम भी पूरा हो जायेगा उस पर कब्जा करने के लिये हमारे पास तुरुप का पत्ता है – उसका बेटा हमारे कब्जे में है, इसलिये उसे बिना शर्त हथियार डालने होंगे।”
उसके स्वर में ख़ुशी थी।