hotaks444
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"मेरा भाई.....मेरा भाई...." वो मेरा माथा चूमती दोहराती रही. उस की बाहें मुझे भींच रही थी. वो सूबक सूबक कर रो रही थी. उसकी भावुकता देख मैं हैरान रह गया कि यह वोही दिलेर औरत है जिसकी गर्दन पर मैने चाकू रखा था और उसने बिना किसी डर के मेरा सामना किया था. मेरी भी आँखो में आँसू आ गये थे. बहन दूर खड़ी देख रही थी मगर जब उससे ना रहा गया तो वो भी हम से लिपट कर रोने लगी. डेविका की आँखो से तो जैसे दरिया फूट रही थीं. इतने सालों से वो उस गम को अपने सीने में दबाए जी रही थी.
अब मेरी एक नही दो-दो बहने थी, दोनो बड़ी बहने. मैने डेविका को बचन दिया कि वो हमेशा हमेशा मेरी बड़ी बहन रहेगी. मैं हमेशा राखी के दिन उसके पास होउँगा. जब हम वहाँ से गये तो उसके चेहरे पर कुछ सकून नज़र आ रहा था. रो रोकर दिल का गुबार निकल गया था. अब उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी थी. आँखो मे सदा मौजूद रहने वाली वो उदासी घट गयी थी. जानता था मैं उसके उस भाई की जगह कभी नही ले सकता था जैसे उसने कभी प्यार किया था मगर मैं उसके जिंदगी से वो दुख, वो घर के गेट पर वो फिर से हम दोनो से गले मिली और हमे रुखसत किया इस वायदे के साथ कि वो जल्द ही मुंबई आकर हम से मिलेगी.
उसके घर से अपने घर तक जाते हुए हम दोनो चुप रहे मगर बहन ने मेरा हाथ थामे रखा और वो बीच बीच में मेरा हाथ दबा देती और मेरी तरफ देख लेती. घर पहुँचे तो गाड़ी आ चुकी थी, हमने सामान लादा. माँ अब भी रोए जा रही थी. समान लाद मैने गाड़ी वाले को विदा किया और खुद माँ और बहन को लेकर दूसरी गाड़ी में सहर को चल पड़ा, जहाँ से हमे बॉम्बे के लिए ट्रेन पकड़नी थी. गाड़ी चलते ही माँ की रुलाई निकल गयी, बहन भी मुँह हाथों में छिपाए सुबकने लगी. मैं चेहरा घूमाकर बाहर देखने लगा. गली में लोग हमे गाँव छोड़ कर जाते देख रहे थे. कुछ लोगों के चेहरे पर उदासी थी तो कुछ के चेहरे भावहीन थे.
हम सदा गाँव छोड़ कर जाने की बातें किया करते थे. हमारे उज्ज्वल भविष्य के सपनो में हमारे गाँव की कोई जगह नही थी. जब छोटे छोटे थे तब से लेकर आज तक हमने सेंकडो वार सहर के सपने देखे थे. किसने सोचा था कि हमारे उस श्रापित गाँव को छोड़ना इतना दुख भरा होगा, लगता था जैसे अपनी रूह पीछे छोड़ कर जा रहे थे
आज तीन साल गुज़र चुके हैं हमे गाँव छोड़ सहर में बसे हुए. इन तीन सालों में ज़िंदगी धीरे बहुत धीरे वापस पटरी पर आई है.
अतीत से नाता तोड़ना बहुत मुस्किल था मगर ज़िंदगी के तेज़ बहाव में बहते हम अब वर्तमान से जुड़ चुके हैं. यह सफ़र बहुत लंबा था, बहुत थकाने वाला था और कयि बार ऐसा समय भी आया जब इस सफ़र में मेरी हिम्मत जबाव देने लगती. मगर हार मान लेने का मतलब वो खो देना था जिसके बिना ज़िंदगी अर्थहीन हो जाती. इसलिए मैं कभी रुका नही, मुझे विश्वास था कि मैं एक दिन मंज़िल को हासिल कर लूँगा. मैने अपने विश्वास को डोलने नही दिया, विपरीत परिस्थितियों में भी मेरे कदम डगमगाए नही क्योंकि कोई था जो मंज़िल पर मेरा इंतजार कर रहा था. इसलिए अगर मैं हार मान जाता तो मेरे साथ वो भी तबाह हो जाता जिसके बिना जीने की कल्पना ही बेमानी थी.
अब मेरी एक नही दो-दो बहने थी, दोनो बड़ी बहने. मैने डेविका को बचन दिया कि वो हमेशा हमेशा मेरी बड़ी बहन रहेगी. मैं हमेशा राखी के दिन उसके पास होउँगा. जब हम वहाँ से गये तो उसके चेहरे पर कुछ सकून नज़र आ रहा था. रो रोकर दिल का गुबार निकल गया था. अब उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी थी. आँखो मे सदा मौजूद रहने वाली वो उदासी घट गयी थी. जानता था मैं उसके उस भाई की जगह कभी नही ले सकता था जैसे उसने कभी प्यार किया था मगर मैं उसके जिंदगी से वो दुख, वो घर के गेट पर वो फिर से हम दोनो से गले मिली और हमे रुखसत किया इस वायदे के साथ कि वो जल्द ही मुंबई आकर हम से मिलेगी.
उसके घर से अपने घर तक जाते हुए हम दोनो चुप रहे मगर बहन ने मेरा हाथ थामे रखा और वो बीच बीच में मेरा हाथ दबा देती और मेरी तरफ देख लेती. घर पहुँचे तो गाड़ी आ चुकी थी, हमने सामान लादा. माँ अब भी रोए जा रही थी. समान लाद मैने गाड़ी वाले को विदा किया और खुद माँ और बहन को लेकर दूसरी गाड़ी में सहर को चल पड़ा, जहाँ से हमे बॉम्बे के लिए ट्रेन पकड़नी थी. गाड़ी चलते ही माँ की रुलाई निकल गयी, बहन भी मुँह हाथों में छिपाए सुबकने लगी. मैं चेहरा घूमाकर बाहर देखने लगा. गली में लोग हमे गाँव छोड़ कर जाते देख रहे थे. कुछ लोगों के चेहरे पर उदासी थी तो कुछ के चेहरे भावहीन थे.
हम सदा गाँव छोड़ कर जाने की बातें किया करते थे. हमारे उज्ज्वल भविष्य के सपनो में हमारे गाँव की कोई जगह नही थी. जब छोटे छोटे थे तब से लेकर आज तक हमने सेंकडो वार सहर के सपने देखे थे. किसने सोचा था कि हमारे उस श्रापित गाँव को छोड़ना इतना दुख भरा होगा, लगता था जैसे अपनी रूह पीछे छोड़ कर जा रहे थे
आज तीन साल गुज़र चुके हैं हमे गाँव छोड़ सहर में बसे हुए. इन तीन सालों में ज़िंदगी धीरे बहुत धीरे वापस पटरी पर आई है.
अतीत से नाता तोड़ना बहुत मुस्किल था मगर ज़िंदगी के तेज़ बहाव में बहते हम अब वर्तमान से जुड़ चुके हैं. यह सफ़र बहुत लंबा था, बहुत थकाने वाला था और कयि बार ऐसा समय भी आया जब इस सफ़र में मेरी हिम्मत जबाव देने लगती. मगर हार मान लेने का मतलब वो खो देना था जिसके बिना ज़िंदगी अर्थहीन हो जाती. इसलिए मैं कभी रुका नही, मुझे विश्वास था कि मैं एक दिन मंज़िल को हासिल कर लूँगा. मैने अपने विश्वास को डोलने नही दिया, विपरीत परिस्थितियों में भी मेरे कदम डगमगाए नही क्योंकि कोई था जो मंज़िल पर मेरा इंतजार कर रहा था. इसलिए अगर मैं हार मान जाता तो मेरे साथ वो भी तबाह हो जाता जिसके बिना जीने की कल्पना ही बेमानी थी.