hotaks444
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"माँ मज़ा आ रहा है ना बेटे से चुदवाने का" मैने माँ की चूत मे एक ज़ोरदार घस्सा लगाकर पूछा. माँ ने अपनी आँखे खोलीं. वो मदमस्त थी. उसके मुख से निकल रही सिसकियाँ उसका जबाब थी. मगर मुझे इस जवाब से संतुष्टि नही थी. मैने उसके चूतड़ो को ज़ोर से मसल कर फिर से पूछा, "माँ मज़ा आ रहा है अपने बेटे से चूत मरवाने का" माँ ने फिर से आँखे खोलीं और मेरी ओर देखकर हल्का सा सर हिलाया. मैने एक पल के लिए घस्से मारना रोक उसके चुतड पर कस कर थप्पड़ मारा. माँ 'हीईीईईईईईईई' कर चिल्ला उठी मगर मैने रुकने की वजाय दो तीन थप्पड़ दोनो चुतड़ों पर जमा दिए.
"मैने तुझसे कुछ पूछा है, जवाब देगी या?" माँ ने आँखे खोल मेरी ओर देखा और इस व्यवहार पर थोड़ा सा चकित नज़र आई मगर फिर तेज़ी से बोली "आ रहा है, बहुत मज़ा आ रहा है"
"किसमे बहुत मज़ा आ रहा है? क्या करवाने में मज़ा आ रहा है? पूरा बोल नही तो चुदाई ख़तम समझ!" मैं खुद अपने पर चकित था, वो लफ़्ज जैसे मैं नही बोल रहा था बल्कि मेरे अंदर बैठा कोई और सख्स बोल रहा था.
"तुमसे चुदवाने में, तुमसे चुदवाने मैं बहुत मज़ा आ रहा है" माँ एकदम से बोल उठी. लगता था जैसे वो मेरे चुदाई रोक देने की बात से ख़ौफज़ादा हो गयी थी.
"अपने बेटे के लंड से चुदवाने मैं मज़ा आ रहा है तुझको? अपने बेटे से अपनी चूत मरवाने में मज़ा आ रहा है" मैने लंड को वापस हरकत में लाते कहा. जाने क्यों उन लफ़्ज़ों के इस्तेमाल से मुझे एक अलग ही आनंद मिल रहा था.
"हां! हां! अपने बेटे से अपनी चूत मरवाने में बहुत मज़ा आ रहा है मुझे. हइईई.....मारो मेरी चूत....अपनी माँ की चूत मारो....चोदो अपनी माँ को.....आआअहज....चोदो....कस कस कर चोदो"
माँ के इन अल्फाज़ों को सुन मेरी नसों में बहने वाला लहू दुगनी रफ़्तार से दौड़ने लगा. मैं उसे कस कस कर पूरा ज़ोर लगाकर चोदने लगा. हर धक्के के साथ मेरे मुख से 'हुंग' , 'हुंग' करके आवाज़ निकलती. ज़ोरदार धक्के लगने से माँ फिर से अपने पुराने रूप में आ गयी थी. उसकी सिल्क जैसी मुलायम चूत की दीवारों को रगड़ता, घिसता मेरा लंड उसे कितना मज़ा दे रहा था उसके मुख से निकलने वाली सिसकियाँ बता रही थी. मगर ऐसे खड़े खड़े चुदाई करने से मैं पूरा लंड उसकी चूत में नही घुसेड पा रहा था मतलब जो चुदाई होनी चाहिए थी वो नही हो पा एही थी. मैने आसन बदलने का फ़ैसला किया.
"माँ अपनी बाहें मेरी गर्दन में डाल लो और अपनी टाँगे मेरी कमर पर लपेट लो. माँ को पहले शायद समझ नही लगी तो मैने उसके चुतड़ों के नीचे हाथ जमा उसे उपर को उछाला और उसका वज़न अपने हाथों पर ले लिया, वो अब मेरी गोदी मे थी. उसको समझ में आ गया और उसने तुरंत अपनी टाँगे मेरी कमर पर कस दी.' अब वो मेरी गर्दन में बाहें डाले मेरे लंड पर झूल रही थी.
मैने माँ के कुल्हों पर ज़ोर लगाकर उपर उठाया और फिर नीचे आने दिया. पुक्क्कक कर लंड जड़ तक उसकी चूत में जा टकराया. माँ 'उफफफफफफफफ्फ़' कर उठी.
"वैसे मेरा पूरा लंड तुम्हारी चूत में नही जा पा रहा था, अब यह पूरा अंदर जाएगा और देखना तुम्हे बेटे से चूत मरवाने में कितना मज़ा आएगा" माँ के कानो में बोलते हुए मैने उसे अपने लंड पर उछालना सुरू कर दिया. मज़ा माँ को ही नही,'मुझे भी पूरा आ रहा था. उसकी चूत में जब पूरा लंड अंदर बाहर होने लगा तो एक अलग ही मज़ा आने लगा और उपर से मेरी छाती पर रगड़ खाते उसके मम्मे मेरे मज़े को दुगना कर रहे थे. माँ की क्या कहूँ, उसको तो इतना मज़ा आ रहा था कि कुछ धक्कों के बाद मुझे ज़ोर लगाने की ज़रूरत ही नही रही, वो खुद ही मेरी गर्दन में बाहें डाले झूलती हुई मेरे लंड पर उछालने लगी. खूब उछल उछल कर मरवा रही थी माँ अपनी चूत. मैं तो बस अब उसके चूतड़ो को थामे वहाँ खड़ा था. माँ जब भी उपर होकर लंड बाहर करती और फिर एकदम से नीचे आती तो लंड सटाक से पूरा चूत में घुस जाता. मेरी उत्तेजना चरम पर पहुँचने लगी थी. चुदाई की आवाज़ों के साथ हमारे होंठो से निकलती सिसकियाँ हमारी मस्ती में और भी बढ़ोतरी कर रही थी.
"माँ कैसा लग रहा है अपने बेटे के लंड पर उछल उछल कर चुदवाने में? मज़ा आ रहा है ना मेरी माँ को?" मैं माँ के होंठो को चूमना चाहता था, उसके मम्मो को मसलना चाहता था मगर मेरे दोनो हाथ व्यस्त थे. माम ने मेरी बात सुनकर एक हुंकार सी भरी. वो और भी ज़ोरों से उछलने लगी. मेरे लफ़्ज़ों ने आग में घी का काम किया था.
"हाए बेटा ....बड़ा मज़ा...... आआ....रहा है....उफफफफफफ्फ़....ऐसे......ही मुझे........चोदता......रह........हाए.....मेरी चूत...........मारता.....रह"
"चुदवा ले माँ जितना चुदवाना है, जी भर कर चुदवा. ठुकवा ले अपनी चूत अपने बेटे से" मैं भी माँ को उछलने में मदद करते बोला.
"हाए...ठोक....ठोक....मुझे........ठोक मेरी चूत...........हाए.....हाए........मार अपनी माँ....की चूत "
माँ के साथ उस जबरदस्त चुदाई और उस गर्मागर्म बातचीत से मुझे अहसास होने लगा कि मैं अब जल्द ही छूटने वाला हूँ. अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछेक मिंटो मे मैं स्खलित हो जाने वाला था. मगर उस समय जो असीम मज़ा मुझे प्राप्त हो रहा था उसके कारण मैं उस समय छूटना नही चाहता था. माँ की हालत एसी थी कि वो अब मेरे कहने से रुकने वाली नही थी. तभी मेरे मन में एक विचार आया. माँ को अपनी गोदी में उठाकर चोदते हुए में मकयि के खेत से बाहर की ओर जाने लगा. इससे धक्कों की रफ़्तार थोड़ी कम पड़ गयी. "उफफफ्फ़...क्या कर रहा है? कहाँ जा रहा है?" माँ ने वैसे ही लंड पर उछलते हुए कहा
मगर मैं कोई जवाब दिए बिना धीरे धीरे कदम उठाता चलता रहा. मकई से बाहर निकल धान के खेत के पास हमारा बोरेवेल्ल था. कदम दर कदम बढ़ाता मैं बोरेवेल्ल के पास पहुँच गया. मैं माँ को उठाए बोरेवेल्ल की धार के पास चला गया और वहाँ जाकर मैने धीरे से माँ को उतारा. माँ ने विरोध जताया मगर मैने उसे ज़ोर लगाकर उतार दिया और फिर वहीं पानी में लिटा दिया. माँ को कुछ समझ नही आ रहा था, वो मेरी ओर सवालिया नज़र से देख रही थी. पानी में लिटाकर मैने माँ को थोड़ा उपर को खींचा. अब उसका सर मिट्टी की उस बाढ़ पर था जो पानी को बाँध रही थी और बाकी पूरा जिस्म पानी के अंदर. मैने माँ को थोड़ा सा घुमाया, अब बोरेवेल्ल से पानी की धार सीधे उसके उपर पड़ रही थी. माँ को सही जगह करके मैं उसके उपर चढ़ गया और बिना किसी देरी के उसकी चूत में लंड पेल दिया. माँ हाए कर उठी. मैने बिना एक पल भी गवाए माँ की ताबड़तोड़ चुदाई सुरू करदी. लंड के साथ साथ उसकी चूत में पानी भी अंदर बाहर हो रहा था. दूसरे धक्के के साथ ही उसने अपनी कमर उछालनी सुरू करदी. मैने भी खींच खींच कर धक्के लगने सुरू कर दिए.
बोरेवेल्ल की धार के नीचे चुदाई करने से सबसे बड़ा फ़ायदा यह था कि मेरी कमर पर गिरती पानी की सीधी धार मुझे ठंडक प्रदान कर रही थी. अब मैं जल्द ही स्खलन नही होने वाला था. मैने माँ के मम्मे हाथो में थाम अपना ज़ोर लगाना चालू रखा. उधर माँ भी अब अपना रौद्र रूप दिखा रही थी. कमर उछाल उछाल कर चुदवाते हुए वो अपना सर इधर उधर पटक रही थी. उसके बालों और गालों पर इससे कीचड़ लग रहा था. वो उस समय शिकार पर निकली भूखी शेरनी के समान थी. पानी में छप छप करते हम दोनो जैसे एक दूसरे से ज़ोर आज़माइश कर रहे थे.
"माँ मज़ा आ रहा है ना" मैने घस्से लगाते पूछा.
"पूछ मत, बस चोदता जा...हाए ऐसे....मज़े के बारे मैं तो.......कभी सोचा भी नही था.......उफफफ़फगफ्फ ऐसे ही घस्से मारता रह.........हाए ऐसे ही, ऐसे ही...मार मेरी चूत......मैं अब छूटने ही वाली हुउऊन्न्नम"
"हाए माँ मेरा भी जल्द ही निकलने वाला है......,बड़ी कसी चूत है तेरी माँ........चोद चोद कर भोसड़ा बना दूँगा इसे मैं"
"बना दे....बना दे.......मेरी चूत को भोसड़ा....ठोक अपनी माँ को....उफफफफफफ्फ़ हाए...बेटा....मेरे...लाल.....ऐसे ही चोदते जा...आअहझहह...हाए....मेरी चूत...उउफफफ़फ़गगगगफ्फ"
माँ के अल्फाज़ों ने, उसकी सिसकियों ने और उसे काम वासना में इधर उधर सर पटकते देख मेरे टट्टों मे मेरा वीर्य उबलने लगा. अब मैं चाह कर भी चुदाई रोक नही सकता था. मैं माँ के निप्प्लो को चुटकियों में मसलते अपनी कमर पूरी स्पीड से चलाने लगा. माँ ने अपनी टाँगे हवा में उठा दी. मेरे लंड पर उसकी चूत कुछ संकुचित सी होती महसूस हो रही थी. माँ की सांसो की रफ़्तार बढ़ गयी थी, उसने कमर उछालनी बंद कर दी, वो अपने हाथ पाँव पाटने लगी, मछली की भाँति तड़फ़ड़ने लगी और इससे पहले कि मैं छूटता वो छूटने लगी. मैने चुदाई उसी तरह चालू रखी. माँ बहुत ज़ोरों से चीख रही थी. उसकी आवाज़ काफ़ी दूर तक जा रही होगी मगर हम दोनो में से किसी को भी इसकी परवाह नही थी. उधर माँ अपने सखलन की तीव्रता में मेरी गर्दन को अपनी बाहों में कस्ति मेरे कंधो को अपने नखुनो से कुरेद रही थी, उधर मेरे लंड से पिचकारियाँ निकलनी सुरू हो गयीं. मैने वीर्य निकलते निकलते उसकी चूत में कुछ धक्के लगाए फिर उसके उपर गिर गया. लंड से अब भी पिचकारियाँ निकल रही थीं. मुझे ऐसे महसूस हो रहा था जैसे मेरे सरीर से पूरी उर्जा निकल रही है. मेरा जिस्म बेजान होता जा रहा था. मैं माँ की छाती पर सर रखे गहरी साँसे ले रहा था और माँ जिसका सखलन अब धीमा पड़ चुका था, मेरे गाल को चूमती मेरी पीठ सहला रही थी
हम दोनो कुछ देर बिना हीले डुले वहीं पड़े रहे. मुझे बहुत थकान महसूस हो रही थी. बदन का अंग अंग टूट रहा था, हालाँकि बदन में एक हलकापन सा भी महसूस हो रहा था, मन में एक संतोस सा अनुभव हो रहा था, जैसे जिस्म में घर किए एक बैचैनि ने मेरा पीछा छोड़ दिया हो. एक तरफ अच्छा लग रहा था तो दूसरी तरफ मैं पूरा निढाल हो गया था जैसे बरसों का थका मांदा हूँ. कुछ देर बाद बदन में हल्की सी जान आई तो मैं माँ के उपर से हट गया. मेरा छोटा पड़ चुका लंड फिसल कर माँ की चूत से बाहर आ गया. माँ की ओर मैने हाथ बढ़ाया तो उसने मेरा हाथ थामा और उठ खड़ी हुई. हम दोनो बोरेवेल्ल की धार के नीचे खड़े होकर नहाने लगे. माँ अपने सर और गालों से कीचड़ धो रही थी. अच्छी तरह मल मल कर बदन धोने और नहाने के बाद हम पानी से बाहर निकले. माँ ने मेरी तरफ देखा तो मैने उससे कहा "तुम शेड में चलो, मैं कपड़े लेकर आता हूँ" माँ ने इधर उधर देखा जैसे किसी के वहाँ होने का शक हो.
"ओह माँ क्यों बेकार मैं इतनी चिंता करती हो. यहाँ कभी कोई नही आता. तुम्हे खुद भी तो पता है. तुम चलो मैं अभी कपड़े लेकर आया" माँ ठंडी साँस लेकर शेड की ओर चल पड़ी और मैं वापस मकयि के खेतों की ओर.
वापस उसी स्थान पर से मैने अपने कपड़े उठाए, जब माँ के कपड़े उठाए तो उसके पेटिकोट में से उसकी कच्छि नीचे गिर पड़ी. मैने उसे उठाया और ध्यान से देखा. वो अब सुख चुकी थी मगर चूत के रस का धब्बा सा वहाँ रह गया था. मैने जिग्यासा वश उसे धब्बे को अपनी उँगुलियों से मसला, फिर कच्छि उठाकर अपने नाक के पास ले जाकर उसे सूँघा. उसकी वो तीखी गंध मेरे नथुनो से टकराई तो जिस्म मे एक बिजली की लहर सी दौड़ गयी. मैने नाक पर कच्छि लगाकर एक ज़ोर से साँस खींची तो मेरा अंदर सनसनाहट से भर गया. माँ की चूत की महक पुरानी शराब के नशे जैसी थी. मैने अपनी जाँघो के बीच झूलते अपने लंड में एक सुरसुरी सी महसूस की. अपना सर झटकते मैं वहाँ से निकल शेड की ओर चल पड़ा.
"मैने तुझसे कुछ पूछा है, जवाब देगी या?" माँ ने आँखे खोल मेरी ओर देखा और इस व्यवहार पर थोड़ा सा चकित नज़र आई मगर फिर तेज़ी से बोली "आ रहा है, बहुत मज़ा आ रहा है"
"किसमे बहुत मज़ा आ रहा है? क्या करवाने में मज़ा आ रहा है? पूरा बोल नही तो चुदाई ख़तम समझ!" मैं खुद अपने पर चकित था, वो लफ़्ज जैसे मैं नही बोल रहा था बल्कि मेरे अंदर बैठा कोई और सख्स बोल रहा था.
"तुमसे चुदवाने में, तुमसे चुदवाने मैं बहुत मज़ा आ रहा है" माँ एकदम से बोल उठी. लगता था जैसे वो मेरे चुदाई रोक देने की बात से ख़ौफज़ादा हो गयी थी.
"अपने बेटे के लंड से चुदवाने मैं मज़ा आ रहा है तुझको? अपने बेटे से अपनी चूत मरवाने में मज़ा आ रहा है" मैने लंड को वापस हरकत में लाते कहा. जाने क्यों उन लफ़्ज़ों के इस्तेमाल से मुझे एक अलग ही आनंद मिल रहा था.
"हां! हां! अपने बेटे से अपनी चूत मरवाने में बहुत मज़ा आ रहा है मुझे. हइईई.....मारो मेरी चूत....अपनी माँ की चूत मारो....चोदो अपनी माँ को.....आआअहज....चोदो....कस कस कर चोदो"
माँ के इन अल्फाज़ों को सुन मेरी नसों में बहने वाला लहू दुगनी रफ़्तार से दौड़ने लगा. मैं उसे कस कस कर पूरा ज़ोर लगाकर चोदने लगा. हर धक्के के साथ मेरे मुख से 'हुंग' , 'हुंग' करके आवाज़ निकलती. ज़ोरदार धक्के लगने से माँ फिर से अपने पुराने रूप में आ गयी थी. उसकी सिल्क जैसी मुलायम चूत की दीवारों को रगड़ता, घिसता मेरा लंड उसे कितना मज़ा दे रहा था उसके मुख से निकलने वाली सिसकियाँ बता रही थी. मगर ऐसे खड़े खड़े चुदाई करने से मैं पूरा लंड उसकी चूत में नही घुसेड पा रहा था मतलब जो चुदाई होनी चाहिए थी वो नही हो पा एही थी. मैने आसन बदलने का फ़ैसला किया.
"माँ अपनी बाहें मेरी गर्दन में डाल लो और अपनी टाँगे मेरी कमर पर लपेट लो. माँ को पहले शायद समझ नही लगी तो मैने उसके चुतड़ों के नीचे हाथ जमा उसे उपर को उछाला और उसका वज़न अपने हाथों पर ले लिया, वो अब मेरी गोदी मे थी. उसको समझ में आ गया और उसने तुरंत अपनी टाँगे मेरी कमर पर कस दी.' अब वो मेरी गर्दन में बाहें डाले मेरे लंड पर झूल रही थी.
मैने माँ के कुल्हों पर ज़ोर लगाकर उपर उठाया और फिर नीचे आने दिया. पुक्क्कक कर लंड जड़ तक उसकी चूत में जा टकराया. माँ 'उफफफफफफफफ्फ़' कर उठी.
"वैसे मेरा पूरा लंड तुम्हारी चूत में नही जा पा रहा था, अब यह पूरा अंदर जाएगा और देखना तुम्हे बेटे से चूत मरवाने में कितना मज़ा आएगा" माँ के कानो में बोलते हुए मैने उसे अपने लंड पर उछालना सुरू कर दिया. मज़ा माँ को ही नही,'मुझे भी पूरा आ रहा था. उसकी चूत में जब पूरा लंड अंदर बाहर होने लगा तो एक अलग ही मज़ा आने लगा और उपर से मेरी छाती पर रगड़ खाते उसके मम्मे मेरे मज़े को दुगना कर रहे थे. माँ की क्या कहूँ, उसको तो इतना मज़ा आ रहा था कि कुछ धक्कों के बाद मुझे ज़ोर लगाने की ज़रूरत ही नही रही, वो खुद ही मेरी गर्दन में बाहें डाले झूलती हुई मेरे लंड पर उछालने लगी. खूब उछल उछल कर मरवा रही थी माँ अपनी चूत. मैं तो बस अब उसके चूतड़ो को थामे वहाँ खड़ा था. माँ जब भी उपर होकर लंड बाहर करती और फिर एकदम से नीचे आती तो लंड सटाक से पूरा चूत में घुस जाता. मेरी उत्तेजना चरम पर पहुँचने लगी थी. चुदाई की आवाज़ों के साथ हमारे होंठो से निकलती सिसकियाँ हमारी मस्ती में और भी बढ़ोतरी कर रही थी.
"माँ कैसा लग रहा है अपने बेटे के लंड पर उछल उछल कर चुदवाने में? मज़ा आ रहा है ना मेरी माँ को?" मैं माँ के होंठो को चूमना चाहता था, उसके मम्मो को मसलना चाहता था मगर मेरे दोनो हाथ व्यस्त थे. माम ने मेरी बात सुनकर एक हुंकार सी भरी. वो और भी ज़ोरों से उछलने लगी. मेरे लफ़्ज़ों ने आग में घी का काम किया था.
"हाए बेटा ....बड़ा मज़ा...... आआ....रहा है....उफफफफफफ्फ़....ऐसे......ही मुझे........चोदता......रह........हाए.....मेरी चूत...........मारता.....रह"
"चुदवा ले माँ जितना चुदवाना है, जी भर कर चुदवा. ठुकवा ले अपनी चूत अपने बेटे से" मैं भी माँ को उछलने में मदद करते बोला.
"हाए...ठोक....ठोक....मुझे........ठोक मेरी चूत...........हाए.....हाए........मार अपनी माँ....की चूत "
माँ के साथ उस जबरदस्त चुदाई और उस गर्मागर्म बातचीत से मुझे अहसास होने लगा कि मैं अब जल्द ही छूटने वाला हूँ. अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछेक मिंटो मे मैं स्खलित हो जाने वाला था. मगर उस समय जो असीम मज़ा मुझे प्राप्त हो रहा था उसके कारण मैं उस समय छूटना नही चाहता था. माँ की हालत एसी थी कि वो अब मेरे कहने से रुकने वाली नही थी. तभी मेरे मन में एक विचार आया. माँ को अपनी गोदी में उठाकर चोदते हुए में मकयि के खेत से बाहर की ओर जाने लगा. इससे धक्कों की रफ़्तार थोड़ी कम पड़ गयी. "उफफफ्फ़...क्या कर रहा है? कहाँ जा रहा है?" माँ ने वैसे ही लंड पर उछलते हुए कहा
मगर मैं कोई जवाब दिए बिना धीरे धीरे कदम उठाता चलता रहा. मकई से बाहर निकल धान के खेत के पास हमारा बोरेवेल्ल था. कदम दर कदम बढ़ाता मैं बोरेवेल्ल के पास पहुँच गया. मैं माँ को उठाए बोरेवेल्ल की धार के पास चला गया और वहाँ जाकर मैने धीरे से माँ को उतारा. माँ ने विरोध जताया मगर मैने उसे ज़ोर लगाकर उतार दिया और फिर वहीं पानी में लिटा दिया. माँ को कुछ समझ नही आ रहा था, वो मेरी ओर सवालिया नज़र से देख रही थी. पानी में लिटाकर मैने माँ को थोड़ा उपर को खींचा. अब उसका सर मिट्टी की उस बाढ़ पर था जो पानी को बाँध रही थी और बाकी पूरा जिस्म पानी के अंदर. मैने माँ को थोड़ा सा घुमाया, अब बोरेवेल्ल से पानी की धार सीधे उसके उपर पड़ रही थी. माँ को सही जगह करके मैं उसके उपर चढ़ गया और बिना किसी देरी के उसकी चूत में लंड पेल दिया. माँ हाए कर उठी. मैने बिना एक पल भी गवाए माँ की ताबड़तोड़ चुदाई सुरू करदी. लंड के साथ साथ उसकी चूत में पानी भी अंदर बाहर हो रहा था. दूसरे धक्के के साथ ही उसने अपनी कमर उछालनी सुरू करदी. मैने भी खींच खींच कर धक्के लगने सुरू कर दिए.
बोरेवेल्ल की धार के नीचे चुदाई करने से सबसे बड़ा फ़ायदा यह था कि मेरी कमर पर गिरती पानी की सीधी धार मुझे ठंडक प्रदान कर रही थी. अब मैं जल्द ही स्खलन नही होने वाला था. मैने माँ के मम्मे हाथो में थाम अपना ज़ोर लगाना चालू रखा. उधर माँ भी अब अपना रौद्र रूप दिखा रही थी. कमर उछाल उछाल कर चुदवाते हुए वो अपना सर इधर उधर पटक रही थी. उसके बालों और गालों पर इससे कीचड़ लग रहा था. वो उस समय शिकार पर निकली भूखी शेरनी के समान थी. पानी में छप छप करते हम दोनो जैसे एक दूसरे से ज़ोर आज़माइश कर रहे थे.
"माँ मज़ा आ रहा है ना" मैने घस्से लगाते पूछा.
"पूछ मत, बस चोदता जा...हाए ऐसे....मज़े के बारे मैं तो.......कभी सोचा भी नही था.......उफफफ़फगफ्फ ऐसे ही घस्से मारता रह.........हाए ऐसे ही, ऐसे ही...मार मेरी चूत......मैं अब छूटने ही वाली हुउऊन्न्नम"
"हाए माँ मेरा भी जल्द ही निकलने वाला है......,बड़ी कसी चूत है तेरी माँ........चोद चोद कर भोसड़ा बना दूँगा इसे मैं"
"बना दे....बना दे.......मेरी चूत को भोसड़ा....ठोक अपनी माँ को....उफफफफफफ्फ़ हाए...बेटा....मेरे...लाल.....ऐसे ही चोदते जा...आअहझहह...हाए....मेरी चूत...उउफफफ़फ़गगगगफ्फ"
माँ के अल्फाज़ों ने, उसकी सिसकियों ने और उसे काम वासना में इधर उधर सर पटकते देख मेरे टट्टों मे मेरा वीर्य उबलने लगा. अब मैं चाह कर भी चुदाई रोक नही सकता था. मैं माँ के निप्प्लो को चुटकियों में मसलते अपनी कमर पूरी स्पीड से चलाने लगा. माँ ने अपनी टाँगे हवा में उठा दी. मेरे लंड पर उसकी चूत कुछ संकुचित सी होती महसूस हो रही थी. माँ की सांसो की रफ़्तार बढ़ गयी थी, उसने कमर उछालनी बंद कर दी, वो अपने हाथ पाँव पाटने लगी, मछली की भाँति तड़फ़ड़ने लगी और इससे पहले कि मैं छूटता वो छूटने लगी. मैने चुदाई उसी तरह चालू रखी. माँ बहुत ज़ोरों से चीख रही थी. उसकी आवाज़ काफ़ी दूर तक जा रही होगी मगर हम दोनो में से किसी को भी इसकी परवाह नही थी. उधर माँ अपने सखलन की तीव्रता में मेरी गर्दन को अपनी बाहों में कस्ति मेरे कंधो को अपने नखुनो से कुरेद रही थी, उधर मेरे लंड से पिचकारियाँ निकलनी सुरू हो गयीं. मैने वीर्य निकलते निकलते उसकी चूत में कुछ धक्के लगाए फिर उसके उपर गिर गया. लंड से अब भी पिचकारियाँ निकल रही थीं. मुझे ऐसे महसूस हो रहा था जैसे मेरे सरीर से पूरी उर्जा निकल रही है. मेरा जिस्म बेजान होता जा रहा था. मैं माँ की छाती पर सर रखे गहरी साँसे ले रहा था और माँ जिसका सखलन अब धीमा पड़ चुका था, मेरे गाल को चूमती मेरी पीठ सहला रही थी
हम दोनो कुछ देर बिना हीले डुले वहीं पड़े रहे. मुझे बहुत थकान महसूस हो रही थी. बदन का अंग अंग टूट रहा था, हालाँकि बदन में एक हलकापन सा भी महसूस हो रहा था, मन में एक संतोस सा अनुभव हो रहा था, जैसे जिस्म में घर किए एक बैचैनि ने मेरा पीछा छोड़ दिया हो. एक तरफ अच्छा लग रहा था तो दूसरी तरफ मैं पूरा निढाल हो गया था जैसे बरसों का थका मांदा हूँ. कुछ देर बाद बदन में हल्की सी जान आई तो मैं माँ के उपर से हट गया. मेरा छोटा पड़ चुका लंड फिसल कर माँ की चूत से बाहर आ गया. माँ की ओर मैने हाथ बढ़ाया तो उसने मेरा हाथ थामा और उठ खड़ी हुई. हम दोनो बोरेवेल्ल की धार के नीचे खड़े होकर नहाने लगे. माँ अपने सर और गालों से कीचड़ धो रही थी. अच्छी तरह मल मल कर बदन धोने और नहाने के बाद हम पानी से बाहर निकले. माँ ने मेरी तरफ देखा तो मैने उससे कहा "तुम शेड में चलो, मैं कपड़े लेकर आता हूँ" माँ ने इधर उधर देखा जैसे किसी के वहाँ होने का शक हो.
"ओह माँ क्यों बेकार मैं इतनी चिंता करती हो. यहाँ कभी कोई नही आता. तुम्हे खुद भी तो पता है. तुम चलो मैं अभी कपड़े लेकर आया" माँ ठंडी साँस लेकर शेड की ओर चल पड़ी और मैं वापस मकयि के खेतों की ओर.
वापस उसी स्थान पर से मैने अपने कपड़े उठाए, जब माँ के कपड़े उठाए तो उसके पेटिकोट में से उसकी कच्छि नीचे गिर पड़ी. मैने उसे उठाया और ध्यान से देखा. वो अब सुख चुकी थी मगर चूत के रस का धब्बा सा वहाँ रह गया था. मैने जिग्यासा वश उसे धब्बे को अपनी उँगुलियों से मसला, फिर कच्छि उठाकर अपने नाक के पास ले जाकर उसे सूँघा. उसकी वो तीखी गंध मेरे नथुनो से टकराई तो जिस्म मे एक बिजली की लहर सी दौड़ गयी. मैने नाक पर कच्छि लगाकर एक ज़ोर से साँस खींची तो मेरा अंदर सनसनाहट से भर गया. माँ की चूत की महक पुरानी शराब के नशे जैसी थी. मैने अपनी जाँघो के बीच झूलते अपने लंड में एक सुरसुरी सी महसूस की. अपना सर झटकते मैं वहाँ से निकल शेड की ओर चल पड़ा.