Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 15 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

"दीदी उठो न क्यों सता रही हो" विजय ने अपनी बहन की चुचियों के उपरी उभार को सहलाते हुए कहा।
"हमम्म सोने दो नींद आ रही है" कंचन ने हल्का मुस्कराते हुए सोने का नाटक करते हुए कहा।
"दीदी उठो वरना जो मुझे दिल में आएगा वह करुंगा" विजय ने अपनी बहन की चुचियों के ऊपर हाथ को ज़ोर से सहलाते हुए कहा ।
कंचन ने अपने भाई की बात का कोई जवाब दिए बगैर वेसे ही सोने का नाटक करने लगी । विजय समझ गया की उसकी बहन ऐसे नहीं उठेगी। उसने अपने हाथ से अपनी बहन की नाइटी को आगे से खोल दिया। कंचन अब विजय के सामने सिर्फ एक छोटी सी ब्रा और पेंटी में लेटी हुयी थी और उसकी साँसें बुहत ज़ोर से ऊपर नीचे हो रही थी। जिस वजह से उसकी बड़ी बड़ी चुचियां उसकी ब्रा में आधी नंगी बुहत ज़ोर से ऊपर नीचे हो रही थी।

अपनी बहन की गोरी गोरी चुचियों को देखकर विजय का लंड उसकी पेण्ट को फाडने के लिए उतावला हो रहा था, विजय ने सीधा होते हुए अपनी शर्ट और पेण्ट को अपने जिस्म से अलग कर दिया। अब वह सिर्फ एक अंडरवियर में था जिस में उसका लंड तनकर तम्बू जैसे उभार बनाये हुए था ।
विजय ने अपने कपडे उतारने के बाद बेड पर बैठते हुए अपनी बहन की आधी नंगी चुचियों को देखते हुए अपने हाथ से उसकी ब्रा को भी अपनी सगी बहन की चुचियों से खींचकर अलग कर दिया । कंचन की ब्रा के हटते ही उसकी चुचियां अपने भाई के सामने बिलकुल नंगी हो गयी।

विजय का दिल अपनी बहन की नंगी चुचियों को देखकर बुहत जोर से धडकने लगा, उसने अपनी तेज़ धडकनों के साथ अपने दोनों हाथ बढाकर अपनी बहन की चुचियों पर रख दिये । कंचन की साँसें भी बुहत जोर से चल रही थी। अपने भाई का हाथ अपनी चुचियों पर महसूस करते ही उत्तेजना के मारे उसकी चूत से रस टपकने लगा ।
विजय को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका हाथ किसी फोम के टुकडे पर रख दिया गया हो, उसे अपना हाथ अपनी सगी बहन की नरम नरम चुचियों पर बुहत ज़्यादा मजा दे रहा था।

विजय ने अपने हाथों से अब अपनी बहन की नरम नरम चुचियों को सहलाना शुरू कर दिया । कंचन को अब नाटक करना बुहत भारी पड रहा था, वह अपने भाई के हाथ से अपनी चुचियों को सहलाता हुआ महसूस करके बुहत ज्यादा एक्साइटेडट हो रही थी।
"आह्ह्ह्ह क्या कर रहे हो भैया" कंचन ने अखिरकार हार मानते हुए कह दिया।
"क्यों दीदी मजा नहीं आ रहा क्या" विजय ने अपनी बड़ी बहन की आवाज़ सुनकर उसकी दोनों चुचियों को ज़ोर से पकडकर सहलाते हुए कहा ।
 
"आहहहह हाँ भैया मजा तो आ रहा है" कंचन ने अपने भाई के हाथों से अपनी चुचियों को ज़ोर से मसलने से ज़ोर से सिसकते हुए कहा।
"दीदी जब मजा आ रहा है तो उठकर मजा लो न। क्यों नाटक कर रही हो" विजय ने अपनी बहन की दोनों चुचियों के कडे दानो को अपने उँगलियों के बीच ज़ोर से दबाते हुए कहा।
"ओहहहहहहह ईस्सस्स बदमाश आराम से इतनी ज़ोर से मत मसलो दर्द हो रहा है" कंचन ने अपनी आँखें खोलते हुए अपने भाई से कहा ।
"दीदी आपने ही शीला दीदी को ऐसा करने के लिए कहा था ना" विजय ने अपनी बहन की आँखें खुलने से खुश होते हुए उससे कहा।
"जब तुम जानते हो तो पूछ क्यों रहे हो" कंचन ने अपने भाई को दोनों हाथों से पकडकर अपने ऊपर गिराते हुए कहा।
"आआह्ह्ह्हह ओहहहह दीदी सच में आप दुनिया की सब से अच्छी दीदी हैं । मैं सच में आपसे प्यार करने लगा हूँ" विजय ने अपनी बहन की चुचियों को अपने नंगे सीने में दबने से सिसकते हुए कहा।

"आह्ह्ह्ह भैया में भी तो आपसे प्यार करती हूँ। इसीलिए तो मैंने नाटक करके तुम्हें अपने पास बुलाया ताकी मैं अपने प्यारे भैया के साथ जी भरकर प्यार कर सकुं। कंचन ने अपनी चुचियों को अपने भाई के नंगे सीने में दबता हुआ महसूस करके उसे अपनी बाहों में ज़ोर से दबाते हुए अपनी चुचियों को उसके नंगे सीने में ज़ोर से दबाकर मज़े से सिसकते हुए कहा ।
"दीदी मैं आज आपको इतना प्यार दूंगा के सारी ज़िंदगी आप मुझे याद रखेंगी" विजय ने यह कहते हुए अपने होंठ अपनी बहन के गुलाबी सुलगते हुए होंठो पर रख दिये । कंचन भी अपने भाई के होठ अपने होंठ पर पड़ते ही उसके साथ फ्रेंच किस में खो गयी। दोनों भाई बहन कुछ देर तक दुनिया से बेख़बर मज़े से एक दुसरे के होंठो को चूस्ते और चूमते रहे और जब दोनों की साँसें फूलने लगी तो उन्होने ने अपने होंठ एक दुसरे से अलग कर दिए।

विजय ने देखा की उसकी बहन उसके होंठो से अलग होते ही बुहत ज़ोर से साँसें ले रही है तो उसने अपने होंठ अपनी बहन के काँधे पर रख दिये और वह अपनी बहन के काँधे को चारो तरफ बड़े तेज़ी के साथ चूमने लगा । विजय का लंड अंडरवियर में क़ैद ही कंचन की पेंटी के ऊपर ज़ोर से रगड खा रहा था। जिस वजह से कंचन की चूत एक्साइटमेंट में बुहत ज़्यादा पानी बहा रही थी।
"आहहहहह भैया मुझे अपनी बाहों में ज़ोर से दबाओ मेरा सारा बदन टूट रहा है मुझे निचोड दो" कंचन ने उत्तेजना में सिसकते हुए कहा और अपने भाई को बालों से पकडते हुए अपने होंठ उसके होंठ पर रख दिये । कंचन ने अपने भाई के होंठो को चूमते हुए अपनी जीभ को निकालकर अपने भाई के मूह में डाल दिया और अपने चुतडो को अपने भाई के अंडरवियर में खडे लंड पर रगड़ने लगी।
 
विजय अपनी बहन की जीभ को कुछ देर तक अपने होंठो से चाटने के बाद उसके होंठो से अपने होंठो को अलग करते हुए नीचे होते हुए अपनी बहन की एक चूचि के गुलाबी कडे दाने को अपने मुँह में भर लिया।विजय अपनी बहन की चूचि के निप्पल को बुहत ज़ोर से चूस्ते हुए अपने हाथ से उसकी दूसरी चुचि को सहलाने लगा ।
विजय के मूह में अपनी चूचि का दाना जाते ही कंचन को अपने पूरे शरीर में अजीब किस्म की सनसनाहट होने लगी उसका पूरा बदन उत्तेजना के मारे सिहरने लगा।
"आजहहह भैया मुझे बुहत मजा आ रहा है । मुझे अपने पूरे शरीर में कुछ हो रहा है । ऐसे ही ज़ोर से मेरी दोनों चुचियों का रस पियो" कंचन मज़े को बर्दाशत न करते हुए जोर से सिसकते हुए अपने भाई से कहने लगी।

विजय भी अपनी बहन की बाते सुनकर बुहत ज़्यादा एक्साइटेडट हो गया और अपनी बहन की दोनों चुचियों को बारी बारी अपने मूह में भरकर चाटने लगा।
"आह्ह्ह्हह्ह भैया मुझे नीचे कुछ हो रहा है । प्लीज कुछ करो ओह्ह्ह्हह में मर जाऊँगी" कंचन अब अपने होश में नहीं थी। अपनी भाई के प्यार से वह उत्तेजित होकर जाने क्या क्या कह रही थी। जो उस वक्त उसे भी नहीं पता था की उसके मूह से यह सब क्या निकल रहा है ।
"दीदी आपको क्या हो रहा है और नीचे कहाँ?" विजय ने अपनी बहन की चुचियों से अपने होंठो को हटाते हुए अन्जान बनने का नाटक करते हुए कहा।
"यहाँ भैया" कंचन ने जल्दी से विजय का हाथ पकड कर अपनी पेंटी पर रखते हुए कहा।

"यहाँ पर यह तो आपकी पेंटी है और यह इतनी गीली क्यों हो गयी" विजय ने वैसे ही नाटक करते हुए कहा।
"हाँ भैया इसी के अंदर कुछ हो रहा है। आप इसे उतारकर देखो न की यह गीली क्यों है" कंचन ने फिर से अपने भाई से कहा ।
"ओह देखता हूँ" यह कहते हुए विजय ने अपनी बहन के टांगों के बीच आते हुए अपनी बहन की पेंटी में हाथ डालकर उसे अपनी बहन के जिस्म से अलग कर दिया।
"वाह दीदी आपकी चूत तो बुहत ख़ूबसूरत है" विजय ने अपनी बहन की पेंटी के उतारते ही उसकी हलके भूरे बालों वाली गुलाबी चूत को देखकर अपनी जीभ को अपने होठो पर फिराते हुए कहा।

"भइया यहीं तो मुझे कुछ हो रहा है । जल्दी से कुछ करो वरना मैं मर जाऊँगी" कंचन ने अपनी पेंटी के उतरने के बाद अपनी टांगों को फ़ैलाकर अपने भाई को अपनी ख़ूबसूरत कुँवारी चूत को दिखाते हुए कहा।
"ओह तो ऐसा कहो न की आपको अपनी प्यारी चूत में कुछ हो रहा है" विजय ने अपनी बहन की चूत को गौर से देखते हुए कहा ।
"हाँ भैया मुझे अपनी चूत में कुछ हो रहा है" कंचन ने उत्तेजना में अपने भाई से कहा।
"मरे तुम्हारे दुश्मन अभी तक तुम्हारा भाई ज़िंदा है । अभी कुछ करता हूँ" विजय यह कहता हुआ नीचे होते हुए अपना मुँह अपनी बहन की चूत की तरफ ले जाने लगा।
 
"वाह दीदी आपकी चूत की ख़ुश्बू तो बुहत अच्छी है ज़रा इसका ज़ायक़ा भी चखा कर देखों । यह कहते हुए विजय ने अपनी जीभ निकालकर अपनी बहन की चूत के छेद पर रख दी और उसकी चूत से निकलता हुआ रस चाटने लगा।

"आह्ह्ह्हह ह्ह्ह्हह्ह भैया हाँ अपनी बहन की चूत का सारा रस चाट लो। ओह्ह्ह्ह हमारी चूत को ज़ोर से चाटो। हमें बुहत मज़ा आ रहा है" कंचन जो इतनी देर से उत्तेजना के मारे तडप रही थी। अपने भाई की जीभ अपनी चूत पर लगते ही बुहत ज़ोर से सिसकते हुए बोली ।
विजय अपनी बहन की बात सुनकर अपनी बहन की चूत को अपनी जीभ से चाटते हुए उसकी चूत के होंटों को अपना मूह खोलकर पूरा अपने मूह में लेकर चाटने लगा।
"आह्ह्ह्हह्ह ओहहहहहह भैया" विजय की इस हरकत से कंचन का पूरा जिस्म काम्पने लगा।

कंचन झरने के बिलकुल क़रीब आ चुकी थी,विजय ने वैसे ही अपनी बहन की चूत को चूसते हुए अपने हाथ से उसकी चूत के दाने को सहलाने लगा।


"आह्ह्ह्ह शह्ह्ह्हह्ह भैया ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह में झर रही हूँ" कंचन अपने भाई का हाथ अपनी चूत के दाने पर लगते ही अपना कण्ट्रोल खो बैठी और बुहत ज़ोर से चिल्लाते हुए अपनी आँखें बंद करके झरने लगी ।
कंचन ने झरते वक्त अपने दोनों हाथों से अपने भाई के बालों को पकडकर अपनी चूत पर दबा दिया । कंचन की चूत से जाने कितनी देर तक पानी निकलता रहा। विजय जितना हो सकता था । अपनी कुंवारी सगी बहन का पानी चाट लिया और बाकी का उसके मुँह पर लग गया।

कंचन का झरना जब ख़तम हुआ तो उसने अपने भाई के बालों को छोड दिया । विजय हाँफता हुआ अपनी बहन की चूत से अलग हुआ । उसका पूरा मुँह अपनी बहन की चूत के पानी से गीला हो चुका था।
"भइया आपका मुँह तो हम ने गन्दा कर दिया" कंचन ने जब झरने के बाद अपनी आँखें खोली तो अपने भाई की तरफ देखकर हँसते हुए कहा ।
"दीदी कोई बात नहीं बस आप अपनी जीभ से इसे साफ़ कर दो" विजय ने अपनी बहन की साइड में सोते हुए कहा । कंचन ने अपने भाई की बात सुनकर अपनी जीभ निकाल कर अपने भाई के पूरे चेहरे पर लगे हुए अपनी चूत के पानी को चाटकर साफ़ कर दिया।
 
दीदी आपको अपनी चूत से निकले हुए पानी का ज़ायक़ा कैसा लगा" । विजय ने अपनी बहन की जीभ से अपना पूरा मुँह चाटकर साफ़ करने के बाद उसकी तरफ देखते हुए कहा।
"भइया मुझे नहीं पता था के मेरी चूत का पानी इतना नमकीन और टेस्टी होगा" कंचन ने अपनी जीभ को अपने होंठो पर फिराते हुए कहा ।
"हाँ दीदी आपकी चूत का पानी सच में बुहत टेस्टी है। पर अब ज़रा हमारे मुन्ने का भी थोडा जायका चख लो" विजय ने अपनी बहन को अपने ऊपर गिराते हुए कहा और उसके गुलाबी होठो को चूस्ते हुए अपनी जीभ को उसके मूह में डाल दिया । कंचन अपने भाई की जीभ को अपने नरम नरम होंठो के बीच लेकर चूसने लगी। कुछ देर तक कंचन ने अपनी भाई की जीभ को चाटने के बाद उसकी जीभ को अपने मूह से निकालकर नीचे होते हुए अपने भाई के सीने को चूमने लगी।

कंचन अपने भाई के नंगे सीने को चूमते हुए अपनी जीभ निकलकर उसकी दोनों बूब्स के बीच फिराने लगी।
"आजहहहहह दीदी" विजय अपनी बहन की जीभ को अपने सीने पर महसूस करके ज़ोर से सिसकने लगा। कंचन अपनी जीभ को अपने भाई के दोनों बूब्स पर फिराते हुए अचानक उसका एक बूब अपने मूह में लेकर ज़ोर से चूसने लगी ।
"ओहहहहहहह दीदी क्या कर रही हो" विजय अपने एक बूब को अपनी दीदी के मूह में जाते ही ज़ोर से सिसकते हुए बोला । अपने बूब्स के चूसने से विजय को अपने पूरे शरीर में अजीब किस्म की गुदगुदी हो रही थी और उत्तेजना के मारे उसका लंड ज़ोर के झटके खाने लगा।

कंचन अपने भाई की कोई बात सुने बगैर उसके बूब्स को अपने मूह से निकालते हुए अपनी जीभ से उसके सीने को चूमते हुए नीचे होते हुए अपने भाई के अंडरवियर में तने हुए लंड तक आ गयी । कंचन ने अपने भाई के अंडरवियर के उभार को घूरते हुए अपनी जीभ अंडरवियर के ऊपर ही अपने भाई के लंड पर रख दी ।
"ओहहहहह हहहहह दीदी" अपनी बहन की जीभ अपने अंडरवियर के ऊपर से ही अपने लंड पर लगते ही विजय का पूरा जिस्म काम्पने लगा । कंचन ने कुछ देर तक अपने भाई के लंड को उसके अंडरवियर के ऊपर से चूमने के बाद अपने दोनों हाथों से उसके अंडरवियर को खींचकर उसके जिस्म से अलग कर दिया, विजय ने भी अपने चूतड़ ऊपर करते हुए अपनी बहन के हाथों अपने अंडरवियर को उतारने में उसकी मदद की।
 
विजय का अंडरवियर उतरते ही उसका लंड उछल उछल कर अपनी बहन की आँखों के सामने नाचने लगा । कंचन अपने भाई के तने हुए लंड को झटके खाता हुआ गोर से देखने लगी।
"क्या देख रही हो दीदी" विजय ने अपनी बहन को यो अपने लंड की तरफ गौर से घूरता हुआ देखकर कहा।
"भइया आपका लंड कितना सूंदर है । मेरा दिल तो कर रहा है के सारी ज़िंदगी इसे अपने होंठो से चूमती रहूं" कंचन ने अपने भाई के लंड की तरफ यों ही गौर से देखते हुए कहा।
"तो फिर चूमो न इसे सिर्फ देख क्यों रही हो" विजय ने उत्तेजित होते हुए कहा।

"हाँ भैया मगर पहले मुझे अपने भाई के प्यारे लंड को गोर से देखने तो दो" कंचन ने अपने भाई की बात का जवाब देते हुए कहा।
"दीदी प्लीज मेरा भी कुछ करो। मैं कितने दिनों से तडप रहा हू" विजय ने अपनी बहन की तरफ तडपति नज़रों से देखते हुए कहा।
"हा भैया अभी कुछ करती हूँ मेरे होते हुए मेरा प्यारे भाई को कोई तकलीफ कैसे होने दूँगी" कंचन ने अपने भाई की बात सुनते ही उसके लंड को अपने हाथ में पकरते हुए कहा।
कंचन अपने भाई के मोटे लंड को अपने दोनों हाथों से पकडकर आगे पीछे करने लगी । कंचन की साँसें अपने भाई के गरम लंड को छूते ही बुहत ज़ोर से चल रही थी और वह ज़ोर से हाँफते हुए अपने भाई के लंड को ऊपर नीचे करते हुए सहलाने लगी।

कंचन ने कुछ देर तक अपने भाई के लंड को ऊपर नीचे करने के बाद नीचे झुकते हुए अपने भाई के लंड के गुलाबी सुपाडे को चूम लिया।
"आआह्ह्ह्ह दीदी" विजय अपनी बहन के होंठ अपने लंड के सुपाडे पर पड़ते ही ज़ोर से सिसकने लगा । कंचन अपने भाई के पूरे लंड को पागलो की तरह ऊपर से नीचे तक चूमने लगी ।
कंचन अपने भाई के लंड को चूमते हुए बुहत ज़ोर से हांफ भी रही थी । विजय की हालत भी बिगडती जा रही थी। उसके लंड से उत्तेजना के मारे वीर्य की कुछ बूँदे निकलने लगी, कंचन ने अपने भाई के लंड से पानी की बूँदों को निकलता हुआ देखकर अपनी जीभ निकालकर उसके लंड के छेद पर रख दी और अपने भाई के लंड से निकलता हुए वीर्य की बूँदों को चाट लिया।

"ओहहहहस्स्सस्स्स्स दीदी कुछ करो प्लीसस्सस्सीी" विजय अपनी बहन की जीभ अपने लंड के सुपाडे के छेद से निकलती हुयी वीर्य की बूँदों पर पड़ते ही ज़ोर से सिसकते हुए बोला । कंचन को अपने भाई के लंड से निकलता हुआ वीर्य बुहत अच्छा लगा। इसीलिए वह अपनी जीभ से अपने भाई के लंड के छेद को ज़ोर से कुरेदने लगी, ऐसा करने से विजय का पूरा जिस्म झटके खाने लगा ।
 
कंचन ने कुछ देर तक ऐसा करने एक बाद अपना पूरा मुँह खोलते हुए अपने भाई के लंड का मोटा सुपाडा अपने मूह में ले लीया और अपने भाई के लंड के सुपाडे पर अपने होंठ को ज़ोर से दबाते हुए उसपर अपने होंठो को आगे पीछे करने चूसने लगी।

"आह्ह्ह्ह दीदीईई ओह्ह्ह्हह्हह ऐसे ही ज़ोर से मेरे लंड को चाटो बुहत मजा आ रहा है" विजय अपनी बहन के नरम होंठो के बीच अपने लंड को दबोचने से मज़े के मारे बुहत ज़ोर से सिसकते हुए बोली । कंचन अपने भाई की बात सुनकर अपने होंठो से अपने भाई के लंड को ज़ोर से चूसने लगी।
"ओहहहहह इस्स्स्सह्ह्ह्हह्ह दीदी सच में आप बुहत अच्छी हो । हाँ ऐसे हो चाटती रहो मुझे बुहत मजा आ रहा है" विजय अपनी बाहन के लबों से अपना लंड चुसवाते हुए जन्नत जैसे मजा लेते हुए बोला।

कंचन को पहले तो अपने भाई के लंड अपने मुँह में बुहत अजीब महसूस हो रहा था मगर अब उसके लंड से उत्तेजना के मारे वीर्य की बूँदे निकलने से कंचन को अपने भाई का लंड चूस्ते हुए बुहत ज़्यादा मजा आ रहा था। इसीलिए वह अपने भाई के लंड को जितना हो सकता था उतना ज़ोर से उसका लंड चूस रही थी ।
विजय अब ज़ोर से सिसकते अपने हाथों को अपनी बहन के सर में डालकर अपने लंड पर दबाने लगा ।

कंचन के मूह में अपने भाई के हाथ के दबाव की वजह से विजय का लंड आधा उसके मूह में चला गया, कंचन का मूह अपने भाई का आधा लंड अपने मूह में जाते ही पूरा भर गया और उसे अपने भाई का लंड चूसने में बुहत तकलीफ हो रही थी।

विजय तो जैसे पागल हो चुका था वह अपने हाथों से अपनी बहन को बुहत ज़ोर से अपने लंड पर ऊपर नीचे कर रहा था और उत्तेजना के मारे उसका पूरा जिस्म कांप रहा था। वह झरने के बिलकुल क़रीब था । कंचन के मुँह में अपने भाई का लंड इतनी ज़ोर से अंदर बाहर हो रहा था की उसके मूह से सिर्फ गो गो की आवाज़ें निकल रही थी, ऐसा लग रहा था की उसे बुहत ज़्यादा तक़लीफ हो रही थी ।।

विजय का जिस्म अचानक झटके खाने लगा और वह अपनी बहन के सर को ज़ोर से पकडते हुए अपने लंड पर दबाते हुए ज़ोर से सिसकते हुए झरने लगा।
"आह्ह्ह्हह ओहहहह दीदीईई इसशहहहहहह में गया" विजय झरते हुए बुहत ज़ोर से काँपते हुए सिसक रहा था । विजय के लंड का वीर्य सीधा कंचन के मुँह में गिरने लगा और विजय का आधा लंड अपने मूह में घुसा होने के कारण विजय के लंड का वीर्य उसकी बहन के मूह से सीधा उसके गले में उतरने लगा ।
 
कंचन की आँखों से आंसू निकल रहे थे, विजय ने अपने लंड की आखरी बूँद निकलने के बाद अपना लंड अपनी बहन के मुँह से निकाल दिया । कंचन अपने भाई का लंड निकालते ही बुहत ज़ोर से खाँसने लगी।

"क्या हुआ दीदी" विजय ने अपना लंड निकालते ही अपनी बहन को खाँसता हुआ देखकर कहा।
"कुछ नहीं भैया बस आपका वीर्य इतना था की वह मेरे गले में चला गया। इसीलिए खांसी आ रही थी" कंचन ने अपने हाथों से अपनी आँखों को पोछते हुए कहा ।
"दीदी कैसा लगा मेरे लंड के वीर्य का स्वाद" विजय ने हँसते हुए अपनी बहन की तरफ देखते हुए कहा।
"भाई मुझे तो बुहत अच्छा लगा। मगर आपको भी अपने वीर्य का स्वाद चखना चाहिये"

यह कहते हुए कंचन अपने भाई को बेड पर गिराते हुए उसके ऊपर चढते हुए अपने होठ अपने भाई के होंठो पर रखते हुए अपनी जीभ जो उसके भाई के वीर्य से गीली थी अपने भाई के मूह में डाल दी । कंचन कुछ देर तक अपने भाई को उसके ही लंड के वीर्य का स्वाद चखाने लगी और फिर अपने भाई के होंठो से अपने होंठ अलग कर दिए।
 
भैया क्या मैं आपका बाथरूम यूज कर सकती हूँ" विजय के जाने के बाद शीला ने दरवाज़ा अंदर से बंद करते हुए कहा।
"क्यों क्या करना है" नरेश ने परेशान होते हुए पुछा।
"वो भैया सोने से पहले फ्रेश हो जाती हूँ" शीला ने मुस्कुराते हुए कहा ।
"ठीक है मगर तुम्हारे कपडे कहाँ है" नरेश ने अपनी बहन की तरफ देखते हुए कहा।
"मैं आपका टॉवल ले जाती हूँ और अपना जिस्म पोंछने के बाद यही नाइटी पहन कर आ जाऊँगी" शीला ने अपने भाई की बात का जवाब देते हुए कहा।
"ठीक है जैसे तुम्हें अच्छा लगे" नरेश ने बेड पर लेटते हुए कहा।

शीला वहां से अपने भाई का टॉवल उठाते हुए बाथरूम में चलि गयी । शीला ने अपने पूरे कपडे उतारे और पूरी नंगी होकर शावर के नीचे आकर अपने गरम जिस्म पर ठण्डा पानी गिराने लगी।
"भाइया साबुन कहाँ है" शीला को अचानक एक आईडिया आया और उसने अपने भाई को पुकारते हुए कहा ।
"वही पर पडा होगा दीदी देख लो" नरेश ने अचानक अपनी बहन की आवज़ सुनकर चौकते हुए जवाब दिया,
"मगर भैया यहाँ पर मुझे नज़र नहीं आ रहा है" शीला ने नाटक करते हुए कहा।
"दीदी मैंने वहीँ रखी थी ठीक तरीके से देखो" नरेश ने अपनी दीदी को कहा।

"भइया प्लीज तुम आकर दूंढ कर दो मुझे नहीं मिल रहा है" शीला ने वैसे ही अपने भाई से नाटक करते हुए कहा।
"मगर दीदी में वहां कैसे आ सकता हूँ" नरेश ने अपनी बहन से कहा । अपनी बहन की बात सुनकर उसका लंड उसके अंडरवियर में फनफनाने लगा ।
"भइया आओ शर्माओ मत तुम मेरे भाई हो कुछ देख भी लिया तो कोई बात नहीं है" शीला ने मुस्कराते हुए अपनी भाई से कहा । शीला ने साबून उठाकर अपनी टांगों के आगे रख दिया, नरेश अपनी बहन की बात सुनकर बेड से उठते हुए बाथरूम की तरफ जाने लगा।

नरेश का दिल बाथरूम की तरफ जाते हुए ज़ोर से धडक रहा था और उसका लंड उसके अंडरवियर में पूरी तरह तनकर झटके मार रहा था ।
"दीदी दरवाज़ा खोलो। मैं देखता हूँ" नरेश ने बाथरूम के दरवाज़े पर पुहंचकर अपनी बहन से कहा।
"भइया दरवाज़ा खुला हुआ है आप आ जाओ" शीला ने शावर बंद करके सीधा होते हुए कहा ।
नरेश ने अपनी तेज़ धडकनों के साथ बाथरुम का दरवाज़ा खोल दिया, अंदर का नज़ारा देखकर नरेश का लंड उसके अंडरवियर को फाडने के लिए उतावला होने लगा । नरेश यह देखकर हैंरान रह गया की उसकी बहन ने टॉवल भी नहीं लपेटा था वह अपने भाई के सामने बिलकुल नंगी खडी थी।
 
शीला बिलकुल नंगी अपने भाई के सामने खडी थी और उसका पूरा जिस्म पानी से भीगा हुआ था।
"भइया आप ही देख लो मुझे तो कहीं भी नज़र नहीं आ रहा है" शीला ने अपने भाई को अपने जिस्म की तरफ घूरता हुआ देखकर हल्का मुस्कराते हुए कहा ।
नरेश को अपनी बहन की नंगी चुचियां जो पानी से भीगी हुयी थी। इतनी अच्छी लग रही थी की वह अपनी दीदी की बात सुनकर भी बूत बनकर अपनी बहन की जवान नंगी चुचियों को देखने में खोया रहा।
"भइया क्या देख रहे हो साबुन ढूँढो ना" शीला ने अपने भाई को यो बूत बनकर अपनी तरफ घूरता हुआ देखकर शर्म का नाटक करते हुए अपने हाथों से अपनी चुचियों को ढकते हुए बोली।

"हाँ दीदी अभी ढूढ़ता हूँ" नरेश का ध्यान अपनी बहन की चुचियों के सामने उसका हाथ आते ही ठिकाने आ गया और वह अपनी नज़रें नीचे करके इधर उधर साबुन को ढूढ़ने लगा।
"ये पडा है दीदी" नरेश ने कुछ देर तक इधर उधर ढूँढ़ने के बाद नीचे झुकते हुए साबुन को उठाते हुए कहा ।
नरेश की नज़रें नीचे थी उसे बिलकुल पता नहीं चला के जहां से वह साबुन उठा रहा है उसके पास ही उसकी दीदी बिलकुल नंगी खडी है । नरेश ने साबुन उठाकर जैसे ही अपनी नज़रें ऊपर करते हुए उठने लगा उसकी साँसें वहीँ पर थम गयी । क्योंकी नज़रें ऊपर करते हुए उसे अपनी सागी बहन की हलके बालों वाली गुलाबी चूत नज़र आ गयी जो पानी से बिलकुल गीली होकर चमक रही थी।

नरेश सीधा होते हुए उठ गया मगर उसकी नज़र अपनी बहन की गुलाबी प्यारी सी चूत पर टीक गई।
"भइया आप कहाँ खो गये। थैंक्स आपने साबुन ढूंढ लिया" शीला ने अपने भाई की आँखों को अपनी चूत पर टीका हुआ देखकर अपने दोनों हाथों को अपनी छूट के आगे करके मुस्कराते हुए कहा ।
"दीदी आप बुहत सूंदर हो" नरेश के मूह से सिर्फ इतना निकला और वह साबुन को वहीँ पर रखते हुए बाहर आ गया । शीला का प्लान कामयाब हो चुका था। वह अपने भाई को अपने कुँवारे जिस्म का दीवाना बना चुकी थी।

नरेश बाहर आते हुए अपने बेड पर जाकर लेट गया, अपनी कुँवारी बहन को अपने सामने नंगा देखकर नरेश का गला ख़ुश्क हो चुका था और उसका लंड अपनी बहन को याद करके ज़ोर के झटके खा रहा था । शीला की हालत भी खराब हो चुकी थी । उसकी चूत अपने भाई का तस्वूर करते ही पानी टपका रही थी ।
शीला नहाने के बाद अपने भाई के टॉवल से अपना जिस्म पोछकर वही नाइटी पहन कर बाहर आ गयी।

शीला बेड के पास पुहंचते हुए जानबूझकर अपनी एक टाँग को उठाकर बेड पर रख दिया और अपनी नाइटी को अपनी टाँग से हटाते हुए उसको टॉवल से साफ़ करने लगी।
 
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