hotaks444
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महेश अपनी बेटी के कमरे से निकलकर अपने कमरे में जाने लगा वह अपने कमरे में आते ही बेड पर लेट गया और अपनी बेटी के बारे में सोचने लगा । वह सोच रहा था की जब उसकी बेटी उसके इतना नज़दीक आ गयी है तो अब वह बचकर कहाँ जायेगी। यही सोचते सोचते कब वह नींद के आग़ोश में चला गया उसे पता ही नहीं चला, ऐसे ही दिन बीत गया और रात का खाना खाने के बाद सभी अपने कमरों में जाकर सोने की तैयारी करने लगे।
महेश अपने कमरे में करवटे लेते हुए आने वाले टाइम के बारे में सोच रहा था उसकी आँखों के सामने उसकी बहु का ख़ूबसूरत जिस्म घूम रहा था जिसे सोचते हुए उसका लंड ज़ोर के झटके मार रहा था । इधर नीलम भी बेड पर लेटे हुए अपने पति के जाने का इंतज़ार कर रही थी क्योंकी जो मजा उसे अपने ससुर से मिला था शायद वह उसे ज़िंदगी भर न भुला पाएगी।
"नीलम इधर आओ न कब तक यूँ ही रूठी रहोगी" समीर ने अचानक नीलम को अपनी बाहों में भरते हुए कहा।
"क्या है मुझसे दूर हटो" नीलम ने गुस्से से अपने पति को दूर करते हुए कहा।
"क्या हुआ नीलम क्या अब मैं इतना गिर गया की तुम मुझे अपने क़रीब भी आने नहीं देती?" समीर ने गुस्से और गम से अपनी पत्नी को देखते हुए कहा।
"हाँ तुम मुझे नहीं छू सकते क्योंकी मुझे भी तुम्हारी तरह किसी और से ज्यादा लगाब हो गया है" नीलम ने गुस्से में सीधे अपने पति को बताते हुए कहा।
"नीलम तुम्हें क्या हो गया है? पहले तो तुम ऐसी नहीं थी वह तुम्हारे पिता के समान है कुछ तो शर्म करो" समीर ने लगभग रोते हुए कहा।
"हाँ शायद तुम सही हो मगर मुझे ऐसा करने में भी तुम्हारा हाथ है और शायद तुम ने अच्छा ही किया क्योंकी उसके बाद ही मुझे ज़िंदगी के अनमोल मज़े का अहसास हुआ जो मुझे तुमने नहीं किसी और ने दिलाया" नीलम ने अपने पति को जवाब देते हुए कहा।
"नीलम अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ" समीर ने गुस्से से बेड पर मुक्का मारते हुए कहा।
"अरे इतना गुस्सा मत हो और अब जाओ यहाँ से तुम्हारी बहन तुम्हारा इंतज़ार कर रही होगी" नीलम ने मुस्कराते हुए कहा।
"बुहत चिंता हो रही है तुम्हें मेरी बहन की सब समझता हूँ मैं तुम्हें उसकी नहीं अपनी पड़ी है क्योंकी तुम मेरे जाने के बाद ही पिता जी के साथ रंगरलियां मनाओगी" समीर ने अपनी पत्नी की बात सुनते ही गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा।
"हाँ यार तो इसमें गुस्से की क्या बात है तुम भी तो वही करने जाते हो अपनी बहन के पास" नीलम ने फिर से एक क़ातिल हँसी के साथ अपने पति को जवाब देते हुए कहा।
"ठीक है भाड़ में जाओ मैं जाता हू" समीर ने गुस्से से कहा और अपने कमरे से निकलकर अपनी बहन के कमरे में आ गया।
महेश अपने कमरे में करवटे लेते हुए आने वाले टाइम के बारे में सोच रहा था उसकी आँखों के सामने उसकी बहु का ख़ूबसूरत जिस्म घूम रहा था जिसे सोचते हुए उसका लंड ज़ोर के झटके मार रहा था । इधर नीलम भी बेड पर लेटे हुए अपने पति के जाने का इंतज़ार कर रही थी क्योंकी जो मजा उसे अपने ससुर से मिला था शायद वह उसे ज़िंदगी भर न भुला पाएगी।
"नीलम इधर आओ न कब तक यूँ ही रूठी रहोगी" समीर ने अचानक नीलम को अपनी बाहों में भरते हुए कहा।
"क्या है मुझसे दूर हटो" नीलम ने गुस्से से अपने पति को दूर करते हुए कहा।
"क्या हुआ नीलम क्या अब मैं इतना गिर गया की तुम मुझे अपने क़रीब भी आने नहीं देती?" समीर ने गुस्से और गम से अपनी पत्नी को देखते हुए कहा।
"हाँ तुम मुझे नहीं छू सकते क्योंकी मुझे भी तुम्हारी तरह किसी और से ज्यादा लगाब हो गया है" नीलम ने गुस्से में सीधे अपने पति को बताते हुए कहा।
"नीलम तुम्हें क्या हो गया है? पहले तो तुम ऐसी नहीं थी वह तुम्हारे पिता के समान है कुछ तो शर्म करो" समीर ने लगभग रोते हुए कहा।
"हाँ शायद तुम सही हो मगर मुझे ऐसा करने में भी तुम्हारा हाथ है और शायद तुम ने अच्छा ही किया क्योंकी उसके बाद ही मुझे ज़िंदगी के अनमोल मज़े का अहसास हुआ जो मुझे तुमने नहीं किसी और ने दिलाया" नीलम ने अपने पति को जवाब देते हुए कहा।
"नीलम अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ" समीर ने गुस्से से बेड पर मुक्का मारते हुए कहा।
"अरे इतना गुस्सा मत हो और अब जाओ यहाँ से तुम्हारी बहन तुम्हारा इंतज़ार कर रही होगी" नीलम ने मुस्कराते हुए कहा।
"बुहत चिंता हो रही है तुम्हें मेरी बहन की सब समझता हूँ मैं तुम्हें उसकी नहीं अपनी पड़ी है क्योंकी तुम मेरे जाने के बाद ही पिता जी के साथ रंगरलियां मनाओगी" समीर ने अपनी पत्नी की बात सुनते ही गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा।
"हाँ यार तो इसमें गुस्से की क्या बात है तुम भी तो वही करने जाते हो अपनी बहन के पास" नीलम ने फिर से एक क़ातिल हँसी के साथ अपने पति को जवाब देते हुए कहा।
"ठीक है भाड़ में जाओ मैं जाता हू" समीर ने गुस्से से कहा और अपने कमरे से निकलकर अपनी बहन के कमरे में आ गया।