hotaks444
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चंदर एक कोठी में रहता था.. कोई चौकीदार ना दिखते हुए ललिता ने दरवाज़ा
खोला और अंदर चली गयी.. एक छोटा सा गार्डेन था अंदर और उसके आगे में दरवाज़ा था.. ललिता ने चंदर को मैसेज करके बताया कि वो आगयि है तो एक दम से दरवाज़ा
खुला और ललिता अंदर गयी. तभी ललिता की आँखों पे एक रेशमी रुमाल से पट्टी
बाँध दी.. ललिता ने शर्मा के बोला 'ये क्या कर रहे हो" तो उसने बोला "स्शह कुच्छ ना बोलो"
... ललिता अपनी नंगी बाँहो पे उसके मर्दाने हाथ को महसूस कर रही थी....
सीडी चढ़ते चढ़ते ललिता को एक कमरे में ले गया और उसको बिस्तर पे बिठा दिया.
फिर ललिता ने अपने आँखो से पट्टी हटाई और दंग रह गयी. ललिता के सामने
चंदर और उसके छोटे भाई का दोस्त मयंक खड़ा था. ललिता ने हड़बड़ाते हुए
अपनी ड्रेस को नीचे करा और पूछा "तुम यहाँ कैसे" मयंक ने ललिता से नज़रे
मिलाते हुए कहा "चंदर ने नहीं मैने ही तुमको बुलाया था यहाँ"
"क्या मतलब है तुम्हारा" ललिता ने गुस्से में पूछा
मयंक बोला " जो मैं कहने वाला हूँ वो ध्यान से सुनना बड़ी लंबी और
रंगीन कहानी है.. याद है तुम्हे कि मैं चेतन के घर आया था और
जब हम दोनो मिले थे?? उसी दिन जब मैं टाय्लेट ढूँढने गया था तब वहाँ
मुझे फर्श पे तेरी उतरी हुई एक खुश्बुदार सफेद पैंटी मिली थी.. उसी बात से
मुझे समझ आ गया था कि मेरे दोस्त की बहन कितनी अच्छी लड़की है.."
ललिता हैरान परेशान होके ये सब सुनती रही.. " मन था तुझे उसी वक़्त चोद्ने
का मगर मैने अपने आप को रोका ताकि मैं सोच समझ के कदम उठाउ....
मुझे पूरी तरह बात तब समझ आई जब हम डार्क रूम खेल रहे थे..
याद है कि तू बिस्तर के पीछे छुपी हुई थी अपनी गान्ड उपर करके और मैने
हिम्मत दिखाते हुए तेरी गुलाबी सफेद फ्रोक में अपना हाथ डाल दिया था
और तेरी मदमस्त चूत को रगरहने लगा था.. उस वक़्त कैसे जल बिन मछली की
तरह तड़प रही थी तू.." ललिता के गोरे बदन को घूरते घूरते उसकी
साँसें तेज़ होने लग गयी और ललिता अभी भी थोड़े झटके में थी....
मयंक बोला "मुझे लगा तुझे पता है कि ये मैं यानी के मयंक कर रहा है मगर
जब तू वहाँ से भाग गयी तो मैं डर गया था.... असली राज़ तब सामने आया
जब मेरी ये आँखें फॅट गयी तुझे चंदर को तुझे चूमते हुए देख के मैं
समझ गया कि तेरा उसका चक्कर चल रहा है.. साले चंदर को तो लॉटरी लग गयी थी...." कुच्छ देर रुकने के बाद वो फिर बोला " मुझे यकीन नही हो रहा था कि
वो साला भी इतनी आगे जा सकता है... खैर सबसे हसीन बात थी जब मैने तुझे
सबके लिए कोल्ड ड्रिंक डालते हुए देख लिया था.. तूने सबके ग्लास में नींद की गोली
डाली थी सिवाए अपने आशिक़ चंदर के.. मगर मैं भी कितना बड़ा हरामी हू...
मैने अपनी कोक चंदर को ज़बरदस्ती देदि और वो बिचारे ने पी भी ली...
फिर वो रात आई जब तू बिस्तर पे पड़े चंदर का इंतजार कर रही थी...
उस रात तेरे कमरे में मैं आया था." ये सुनके ललिता के होश उड़ गये..
"उस रात को तो हम दोनो ही नहीं भूल सकते.. हैईना?? क्या राप्चन्दुस रात थी वो
मज़े आ गये थे.. मैने पूरी कोशिश करी थी कि तुझे पता ना चले कि मैं
मयंक हूँ चंदर नहीं और उसमें मैं सफल भी हो गया और तू भी कैसी कुतिया
की तरह तड़प रही थी चुद्ने के लिए.. उस रात के बाद हर बारी मुझे तेरे सपने आने लगे.. मैं किसी तरह तुझसे मिलना चाहता था मगर मुझे रास्ता नहीं मिल रहा था..
खोला और अंदर चली गयी.. एक छोटा सा गार्डेन था अंदर और उसके आगे में दरवाज़ा था.. ललिता ने चंदर को मैसेज करके बताया कि वो आगयि है तो एक दम से दरवाज़ा
खुला और ललिता अंदर गयी. तभी ललिता की आँखों पे एक रेशमी रुमाल से पट्टी
बाँध दी.. ललिता ने शर्मा के बोला 'ये क्या कर रहे हो" तो उसने बोला "स्शह कुच्छ ना बोलो"
... ललिता अपनी नंगी बाँहो पे उसके मर्दाने हाथ को महसूस कर रही थी....
सीडी चढ़ते चढ़ते ललिता को एक कमरे में ले गया और उसको बिस्तर पे बिठा दिया.
फिर ललिता ने अपने आँखो से पट्टी हटाई और दंग रह गयी. ललिता के सामने
चंदर और उसके छोटे भाई का दोस्त मयंक खड़ा था. ललिता ने हड़बड़ाते हुए
अपनी ड्रेस को नीचे करा और पूछा "तुम यहाँ कैसे" मयंक ने ललिता से नज़रे
मिलाते हुए कहा "चंदर ने नहीं मैने ही तुमको बुलाया था यहाँ"
"क्या मतलब है तुम्हारा" ललिता ने गुस्से में पूछा
मयंक बोला " जो मैं कहने वाला हूँ वो ध्यान से सुनना बड़ी लंबी और
रंगीन कहानी है.. याद है तुम्हे कि मैं चेतन के घर आया था और
जब हम दोनो मिले थे?? उसी दिन जब मैं टाय्लेट ढूँढने गया था तब वहाँ
मुझे फर्श पे तेरी उतरी हुई एक खुश्बुदार सफेद पैंटी मिली थी.. उसी बात से
मुझे समझ आ गया था कि मेरे दोस्त की बहन कितनी अच्छी लड़की है.."
ललिता हैरान परेशान होके ये सब सुनती रही.. " मन था तुझे उसी वक़्त चोद्ने
का मगर मैने अपने आप को रोका ताकि मैं सोच समझ के कदम उठाउ....
मुझे पूरी तरह बात तब समझ आई जब हम डार्क रूम खेल रहे थे..
याद है कि तू बिस्तर के पीछे छुपी हुई थी अपनी गान्ड उपर करके और मैने
हिम्मत दिखाते हुए तेरी गुलाबी सफेद फ्रोक में अपना हाथ डाल दिया था
और तेरी मदमस्त चूत को रगरहने लगा था.. उस वक़्त कैसे जल बिन मछली की
तरह तड़प रही थी तू.." ललिता के गोरे बदन को घूरते घूरते उसकी
साँसें तेज़ होने लग गयी और ललिता अभी भी थोड़े झटके में थी....
मयंक बोला "मुझे लगा तुझे पता है कि ये मैं यानी के मयंक कर रहा है मगर
जब तू वहाँ से भाग गयी तो मैं डर गया था.... असली राज़ तब सामने आया
जब मेरी ये आँखें फॅट गयी तुझे चंदर को तुझे चूमते हुए देख के मैं
समझ गया कि तेरा उसका चक्कर चल रहा है.. साले चंदर को तो लॉटरी लग गयी थी...." कुच्छ देर रुकने के बाद वो फिर बोला " मुझे यकीन नही हो रहा था कि
वो साला भी इतनी आगे जा सकता है... खैर सबसे हसीन बात थी जब मैने तुझे
सबके लिए कोल्ड ड्रिंक डालते हुए देख लिया था.. तूने सबके ग्लास में नींद की गोली
डाली थी सिवाए अपने आशिक़ चंदर के.. मगर मैं भी कितना बड़ा हरामी हू...
मैने अपनी कोक चंदर को ज़बरदस्ती देदि और वो बिचारे ने पी भी ली...
फिर वो रात आई जब तू बिस्तर पे पड़े चंदर का इंतजार कर रही थी...
उस रात तेरे कमरे में मैं आया था." ये सुनके ललिता के होश उड़ गये..
"उस रात को तो हम दोनो ही नहीं भूल सकते.. हैईना?? क्या राप्चन्दुस रात थी वो
मज़े आ गये थे.. मैने पूरी कोशिश करी थी कि तुझे पता ना चले कि मैं
मयंक हूँ चंदर नहीं और उसमें मैं सफल भी हो गया और तू भी कैसी कुतिया
की तरह तड़प रही थी चुद्ने के लिए.. उस रात के बाद हर बारी मुझे तेरे सपने आने लगे.. मैं किसी तरह तुझसे मिलना चाहता था मगर मुझे रास्ता नहीं मिल रहा था..