Indian Sex Kahani डार्क नाइट - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Indian Sex Kahani डार्क नाइट

desiaks

Administrator
Joined
Aug 28, 2015
Messages
24,893
डार्क नाइट

चैप्टर 1

‘‘आपका नाम?’’ उसकी स्लेटी आँखों में मुझे एक कौतुक सा खिंचता दिखाई दिया। मुझसे मिलने वाली हर लड़की की तरह उसमें भी मुझे जानने की एक हैरत भरी दिलचस्पी थी।

‘काम।’

आई जी इंटरनेशनल एअरपोर्ट के प्रीमियम लाउन्ज की गद्देदार सीट में धँसते हुए मैंने आराम से पीछे की ओर पीठ टिकाई। हम दोनों की ही अगली फ्लाइट सुबह थी। सारी रात थी हम दोनों के पास एक दूसरे से बातें करने के लिए।

‘‘सॉरी, काम नहीं, नाम।’’

‘‘जी हाँ, मैंने नाम ही बताया है; मेरा नाम काम है।’’

‘‘थोड़ा अजीब सा नाम है; पहले कभी यह नाम सुना नहीं।’’ उसकी आँखों का कौतुक थोड़ा बेचैन हो उठा।

‘‘नाम तो आपने सुना ही होगा; शायद भूल गई हों।’’

‘‘याद नहीं कि कभी यह नाम सुना हो।’’

‘‘आपके एक देवता हैं कामदेव...’’ थोड़ा आगे झुकते हुए मैंने उसके खूबसूरत चेहरे पर एक शोख ऩजर डाली, ‘‘काम और वासना के देवता; रूप और शृंगार की देवी रति के पति।’’

उसका चेहरा, ग्रीक गोल्डन अनुपात की कसौटी पर लगभग नब्बे प्रतिशत खरा उतरता था। ओवल चेहरे पर ऊँचा और चौड़ा माथा, तराशी हुई नाक, भरे हुए होंठ और मजबूत ठुड्डी; और जॉलाइन, सब कुछ सही अनुपात में लग रहे थे। उसकी आँखों की शेप लगभग स्कार्लेट जॉनसन की आँखों सी थी, और उनके बीच की दूरी एंजेलिना जोली की आँखों के बीच के गैप से शायद आधा मिलीमीटर ही कम हो। वह लगभग सत्ताइस-अट्ठाइस साल की का़फी मॉडर्न लुकिंग लड़की थी। स्किनी रिप्ड ब्लू जींस के ऊपर उसने ऑरेंज कलर का लो कट स्लीवलेस टॉप पहना हुआ था। डार्क ब्राउन बालों में कैरामल हाइलाइट्स की ब्लेंडेड लेयर्स कन्धों पर झूल रही थीं। गोरे बदन से शेरिल स्टॉर्मफ्लावर परफ्यूम की मादक ख़ुशबू उड़ रही थी।

फिर भी, या तो कामदेव के ज़िक्र पर, या मेरी शो़ख ऩजर के असर में शर्म की कुछ गुलाबी आभा उसकी आँखों से टपककर गालों पर फैल गई। इससे पहले कि उसके गालों की गुलाबी शर्म, गहराकर लाल होती, मैंने पास पड़ा अंग्रे़जी का अखबार उठाया, और फ्रट पेज पर अपनी ऩजरें फिरार्इं। खबरें थीं,‘कॉलेज गर्ल किडनैप्ड एंड रेप्ड इन मूविंग कार’, ‘केसेस ऑ़फ रेप, मोलेस्टेशन राइ़ज इन कैपिटल।’ मेरी ऩजरें अखबार के पन्ने पर सरकती हुई कुछ नीचे पहुँचीं। नीचे कुछ दवाखानों के इश्तिहार थे: ‘रिगेन सेक्सुअल विगर एंड वाइटैलिटी', ‘इनक्री़ज सेक्सुअल ड्राइव एंड स्टैमिना।’

‘‘मगर यह नाम कोई रखता तो नहीं है; मैंने तो नहीं सुना।’’ उसके गालों पर अचानक फैल आई गुलाबी शर्म उतर चुकी थी।

‘‘क्योंकि अब कामदेव की जगह हकीमों और दवाओं ने ले ली है।’’ मैंने अ़खबार में छपे मर्दाना कम़जोरी दूर करने वाले इश्तिहारों की ओर इशारा किया। शर्म की गुलाबी परत एक बार फिर उसके गालों पर चढ़ आई।

सच तो यही है कि यह देश अब कामदेव को भूल चुका है। अब यहाँ न तो कामदेव के मंदिर बनते हैं, और न ही उनकी पूजा होती है। कामदेव अब सि़र्फ ग्रंथों में रह गए हैं; उन ग्रंथों में, जिन्हें समाज के महंतों और मठाधीशों को सौंप दिया गया है। ये महंत बताते हैं कि काम दुष्ट है, उद्दंड है। इन्होंने काम को रति के आलिंगन से निकालकर क्रोध का साथी बना दिया है- काम-क्रोध। रति बेचारी को काम से अलग कर दिया गया है। काम; जिसकी ऩजरों की धूप से उसका रूप खिलता था, उसका शृंगार निखरता था, उससे रति की जोड़ी टूट गई है। यदि काम, रति के आलिंगन में ही सँभला रहे, तो शायद क्रोध से उसका साथ ही न रहे; मगर काम और क्रोध का साथ न रहे, तो इन महंतों का काम ही क्या रह जाएगा। इन महंतों के अस्तित्व के लिए बहुत ज़रूरी है कि काम, रति से बिछड़कर क्रोध का साथी बना रहे।

‘‘मैं म़जा़क नहीं कर रहा; आपके देश में काम को बुरा समझा जाता है... दुष्ट और उद्दंड; आपको काम को वश में रखने की शिक्षा दी जाती है, इसलिए आप अपने बेटों का नाम काम नहीं रखते... आप भला क्यों दुष्ट और उद्दंड बेटा चाहेंगे।’’
 
‘‘वैसे कामदेव की कहानी तो आप जानती ही होंगी?’’ मैंने अंदा़ज लगाया, जो ग़लत था।

‘‘नहीं, कुछ ख़ास नहीं पता।’’

‘‘कामदेव ने समाधि में लीन भगवान शिव का ध्यान भंग किया था, और क्रोध में आकर भगवान शिव ने उन्हें भस्म कर दिया था; इसीलिए आप भगवान शिव को कामेश्वर कहते हैं... पालन करने वाले ईश्वर को आपने भस्म करने वाला बना दिया।’’

‘‘ओह! तो फिर रति का क्या हुआ?’’ स्त्री होने के नाते उसमें रति के लिए सहानुभूतिपूर्ण उत्सुकता होना स्वाभाविक था।

‘‘रति, काम को जीवित कर सकती थी; काम को और कौन जीवित कर सकता है रति के अलावा? काम तो रति का दास है। विश्वामित्र के काम को मेनका की रति ने ही जगाया था; ब्रह्मर्षि का तप भी नहीं चला था रति की शक्ति के आगे।’’ मैंने एक बार फिर उसके रतिपूर्ण शृंगार को निहारा।

‘‘तो क्या रति ने कामदेव को जीवित कर दिया?’’

‘‘आपके समाज के महंत, रति से उसकी यही शक्ति तो छुपाना चाहते हैं। वे जानते हैं कि जिस दिन रति को अपनी इस शक्ति का बोध हो गया, उस दिन पुरुष स्त्री का दास होगा।’’

शर्म की वही गुलाबी आभा एक बार फिर उसके गालों पर फैल गई। शायद उस समाज की कल्पना उसके मन में उभर आई, जिसमें पुरुष स्त्री का दास हो। सि़र्फ एक औरत के मन में ही पुरुष पर शासन करने का विचार भी एक लजीली संवेदना ओढ़कर आ सकता है।

‘‘तो फिर रति ने क्या किया?’’

‘‘रति ने कामदेव को जीवित करने के लिए भगवान शिव से विनती की; और जानती हैं भगवान शिव ने क्या किया?’’

‘क्या?’

‘‘उन्होंने कामदेव को जीवित तो किया, मगर बिना शरीर के; ताकि रति की देह को कामदेव के अंगों की आँच न मिल सके। अब कामदेव अनंग हैं, और रति अतृप्त है।’’

‘ओह!’ उसके चेहरे पर एक गहरा असंतोष दिखाई दिया; ‘‘वैसे आपके नाम की तरह आप भी दिलचस्प आदमी हैं; कितना कुछ जानते हैं इंडिया के बारे में... मुझे यकीन नहीं हो रहा कि आप पहली बार इंडिया आए हैं।’’

‘‘मेरी पैदाइश लंदन की है, मगर मेरी जड़ें इंडिया में ही हैं। मेरे ग्रैंडपेरेंट्स इंडिया से ईस्ट अप्रâीका गए थे, फिर मेरे पेरेंट्स, ईस्ट अप्रâीका से निकलकर ब्रिटेन जा बसे।’’

‘‘कैसा लगा इंडिया आपको?’’

‘‘खूबसूरत और दिलचस्प; आपकी तरह।’’ मैंने फिर उसी शो़ख ऩजर से उसे देखा। उसके गाल फिर गुलाबी हो उठे, ‘‘आपने अपना नाम नहीं बताया।’’

‘मीरा।’ वैसे मुझे लगा कि उसका नाम रति होता तो बेहतर था।

‘‘काम क्या करते हैं आप?’’ मीरा का अगला प्रश्न था।

मैं इसी प्रश्न की अपेक्षा कर रहा था। हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहाँ आपका काम, आपका व्यवसाय ही आपकी पहचान होता है। आप कैसे इंसान हैं, उसकी पहचान व्यवसाय की पहचान के पीछे ढकी ही रहती है। मेरी पहचान ‘योगा इंस्ट्रक्टर।’ की है... हिंदी में कहें तो ‘‘योग प्रशिक्षक।’’

इंस्ट्रक्शन्स या निर्देशों की योग में अपनी जगह है। ज़मीन पर सिर रखकर, गर्दन मोड़कर, टाँगें उठाकर, पैर आसमान की ओर तानकर यदि सर्वांगासन करना हो, तो उसके लिए सही निर्देशों की ज़रूरत तो होती ही है, वरना गर्दन लचक जाने का डर होता है; और यदि कूल्हों को हाथों से सही तरह से न सँभाला हो तो, जिस कमर की गोलाई कम करने के कमरकस इरादे से योगा सेंटर ज्वाइन किया हो, वो कमर भी लचक सकती है। मगर योग वह होता है, जो पूरे मनोयोग से किया जाए, और मन को साधने के लिए निर्देश नहीं, बल्कि ज्ञान की ज़रूरत होती है, और ज्ञान सि़र्फ गुरु से ही मिल सकता है, इसलिए मैं स्वयं को योग गुरु कहता हूँ।

‘‘मैं योग गुरु हूँ।’’

‘‘योग गुरू! वो कपालभाती सिखाने वाले स्वामी जी जैसे? आप वैसे लगते तो नहीं।’’ मीरा की आँखों के कौतुक में फिर पहली सी बेचैनी दिखाई दी।
 
मुझे पता था, उसे आसानी से यकीन नहीं होगा। दरअसल किसी को भी मेरा ख़ुद को योग-गुरु कहना रास नहीं आता। जींस-टी शर्ट पहनने वाला, स्पोट्र्स बाइक चलाने वाला, स्लीप-अराउंड करने वाला, योग गुरु? उनके मन में योग-गुरु की एक पक्की तस्वीर बनी होती है; लम्बे बालों और लम्बी दाढ़ी वाला, भगवाधारी साधू। मगर योग एक क्रांति है; साइलेंट रेवोलुशन। योगी क्रांतिकारी होता है; और क्रांतिकारी इंसान किसी ढाँचे में बँधकर नहीं रहता। निर्वाण की राह पर चलने वाला अगर किसी स्टीरियोटाइप से भी मुक्ति न पा सके, तो संसार से मुक्ति क्या ख़ाक पाएगा?

‘‘हा हा... वैसा ही कुछ अलग किस्म का... वैसे आप योग करती हैं?’’

‘‘हाँ कभी-कभी; वही बाबाजी वाला कपालभाती... इट्स ए वेरी गुड एक्सरसाइ़ज टू कीप फिट।’’

‘‘महर्षि पतंजलि कह गए हैं, डूइंग बोट आसना टू गेट ए फ्लैट टम्मी इ़ज मिसिंग द होल बोट ऑ़फ योगा।’’ मैंने एक छोटा सा ठहाका लगाया।

‘‘इंटरेस्टिंग... किस तरह?’’ अब तक मीरा मेरे विचित्र जवाबों की आदी हो चुकी थी।

‘‘कबीर के बारे में जानना चाहेंगी?’’

‘‘कबीर? कौन कबीर?’’

‘‘कबीर मेरा स्टूडेंट है; मुझसे योग सीखता है।’’

‘‘ह्म्म्म..क्या वह आपकी तरह ही दिलचस्प इंसान है?’’

‘‘मुझसे भी ज़्यादा।’’

‘‘तो फिर बताइए; आई विल लव टू नो अबाउट हिम।’’

‘‘कबीर की कहानी दिलचस्प भी है, डिस्ट्रेसिंग भी है; ट्रैजिक भी है और इरोटिक भी है; आप अनकम़्फर्टेबल तो नहीं होंगी?’’

‘‘कामदेव की कहानी के बाद तो अब हम कम़्फर्टेबल हो ही गए हैं... ‘‘आप शुरू करिए।’’ एक बहुत कम़्फर्टेबल सी हँसी उसके होठों पर खिल गई।

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
 
चैप्टर 2

वह जुलाई की एक रात का आ़िखरी पहर था। कबीर की रात, प्रिया के ईस्ट लंदन के फ्लैट पर उसके बिस्तर पर गु़जर रही थी। प्रिया, कबीर की नई गर्लफ्रेंड थी। प्रिया के रेशमी बालों की बिखरी लटों सा सुर्ख उजाला, रात के सुरमई किवाड़ों पर दस्तक दे रहा था। प्रिया ने अपने बालों की उन बिखरी लटों को समेटा, और कन्धों पर कुछ ऊपर चढ़ आई रजाई को नीचे कमर पर सरकाया। म़खमली रजाई उसके रेशमी बदन पर पलक झपकते ही फिसल गई: जैसे वार्डरोब मालफंक्शन का शिकार हुई किसी मॉडल के जिस्म से उसकी ड्रेस फिसल गई हो। रातभर, कबीर के बदन से लगकर बिस्तर पर सिलवटें खींचता उसका नर्म छरहरा बदन, लहराकर कुछ ऊपर सरक गया। उसकी गर्दन से फिसलकर क्लीवेज से गु़जरते हुए कबीर के होठों पर एक नई हसरत लिपट गई। उसकी छरहरी कमर को घेरे हुए कबीर की बाँहें कूल्हों के उभार नापते हुए उसकी जाँघों पर आ लिपटीं। एक छोटे से लमहे में कबीर ने प्रिया के बदन के सारे तराश नाप लिए; तराश भी ऐसे, कि एक ही रात में न जाने कितने अलग-अलग साँचों में ढले हुए लगने लगे थे।

कबीर ने करवट बदलकर एक ऩजर प्रिया के खूबसूरत चेहरे पर डाली। रेशमी बालों की लटों से घिरे गोल चेहरे पर चमकती बड़ी-बड़ी आँखों से एक मोहक मुस्कान छलक रही थी। उसका बेलिबास म़खमली बदन अब भी कबीर के होंठों पर लिपटी ख्वाहिश को लुभा रहा था, मगर कबीर की ऩजरें जैसे उसकी आँखों के तिलिस्म में खो रही थीं, जैसे ऩजरों पर चले जादू ने होठों की हसरत को थाम लिया हो। अचानक ही कबीर को अपने दाहिने गाल पर प्रिया की नर्म हथेली का स्पर्श महसूस हुआ। उसकी ना़जुक उँगलियाँ कबीर के चेहरे पर बिखरी हल्की खुरदुरी दाढ़ी को सहला रही थीं।

‘लापरवाह!’ प्रिया की उन्हीं तिलिस्मी आँखों से एक मीठी झिड़की टपकी।

दाहिने गाल पर एक हल्की-सी चुटकी काटते हुए उसने कबीर के हाथ को अपनी जाँघ पर थोड़ा नीचे सरकाया। गाल पर ली गई चुटकी, कबीर को प्रिया की मुलायम जाँघ के स्पर्श से कहीं अधिक गुदगुदा गई।

प्रिया ने अपनी बार्इं ओर झुकते हुए, नीचे कारपेट पर पड़ी ब्रा उठाई, और बिस्तर पर कुछ ऊपर सरक कर बैठते हुए कत्थई ब्रा में अपने गुलाबी स्तन समेटे। कबीर की हथेली अब उसकी जाँघ से नीचे सरककर उसकी नर्म पिंडली को सहलाने लगी थी। कबीर के भीगे होठों की ख्वाहिश अब उसकी मुलायम जाँघ पर मचलने लगी थी। रजाई कुछ और नीचे सरककर उसके घुटनों तक पहुँच चुकी थी। प्रिया ने घुटनों से खींचकर रजाई फिर से कमर से कुछ ऊपर सरकाई। खुरदुरी दाढ़ी पर रगड़ खाते हुए रजाई ने कबीर की आँखों में उतर आई शरारत को ढँक लिया। उसी शरारत से उसने प्रिया की पिंडली पर अपनी हथेली की पकड़ मजबूत की, और उसकी दाहिनी जाँघ पर अपने दाँत हल्के से गड़ा दिए।

‘आउच!’ प्रिया, शरारत से चीखते हुए उछल पड़ी। उसकी पिंडली पर कबीर की पकड़ ढीली हो गई। एक चंचल मुस्कान प्रिया के होठों से भी खिंचकर उसके गालों के डिंपल में उतरी, और उसने अपना दायाँ पैर कबीर की जाँघों के बीच डालकर उसे हल्के से ऊपर की ओर खींचा। कबीर के बदन में उठती तरंगों को जैसे एम्पलीफायर मिल गया।

‘आउच!’ एक शरारती चीख के साथ कबीर ने प्रिया की जाँघ पर अपने दाँतों की पकड़ ढीली की, और उसकी छरहरी कमर पर होंठ टिकाते हुए उसे अपनी बाँहों में कस लिया।

प्रिया, पिछले एक महीने में तीसरी लड़की थी, जिसके बिस्तर पर कबीर की रात बीती थी। नहीं; बल्कि प्रिया तीसरी लड़की थी, जिसके बिस्तर पर उसकी रात बीती थी... कबीर की चौबीस साल की ज़िन्दगी में सि़र्फ तीसरी लड़की। इसके पहले की उसकी ज़िन्दगी कुछ अलग ही थी। ऐसा नहीं था कि उसके जीवन में लड़कियाँ नहीं थीं; सच कहा जाए तो कबीर की ज़िन्दगी में लड़कियों की कभी कमी नहीं रही। जैसे सर्दियाँ पड़ते ही हिमालय की कोई चोटी ब़र्फ की स़फेद चादर ओढ़ लेती है; जैसे वसंत के आते ही हॉलैंड के किसी बाग़ को ट्यूलिप की कलियाँ घेर लेती हैं, ठीक वैसे ही टीन एज में पहुँचते ही ख़ूबसूरत लड़कियों और उनके ख़यालों ने उसे घेर लिया था। ख़ूबसूरत लड़कियों की धुन उस पर सवार रहती। उनके कभी कर्ली तो कभी स्ट्रेट किए हुए बालों की खुलती-सँभलती लटें, उनकी मस्कारा और आइलाइनर लगी आँखों के एनीमेशन, उनके लिपस्टिक के बदलते शेड़्ज से सजे होठों की शरारती मुस्कानें, उनकी कमर के बल, उनकी नाभि की गहराई, और उनकी वैक्स की हुई टाँगों की तराश... सब कुछ उसके मन की मुँडेरों पर मँडराते रहते। हाल यह था कि सुबह की पहली अँगड़ाई किसी खूबसूरत लड़की का हाथ थामने का ख़याल लेकर आती, तो रात की पहली कसमसाहट उसे अपने भीतर समेट लेने का ख़्वाब लेकर। मगर कबीर के ख़्वाबों-ख़यालों की दुनिया में लड़कियाँ किसी सू़फियाना ऩज्म की तरह ही थीं, जिन्हें वह अपनी फैंटसी में बुनता था, एक ऐसी पहेली की तरह, जो आधी सुलझती और आधी उलझी ही रह जाती। उसे इस पहेली में उलझे रहने में म़जा आता, मगर साथ ही इस पहेली के खुल जाने का डर भी सताता रहता, कि कहीं एक झटके में फैंटसी का सारा हवामहल ही न ढह जाए। और यही डर, कबीर और लड़कियों के बीच एक महीन सा परदा खींचे रहता, जिस पर वह अपनी फैंटसी का गुलाबी संसार रचता रहता।
 
इस बीच कुछ लड़कियों ने इस पर्दे को सरकाने की कोशिश भी की, मगर वह ख़ुद ही हर बार उसे फिर से तान लेता; शायद इसलिए कि मौका वैसा एक्साइटिंग न होता, जैसा कि उसकी फैंटसी की दुनिया में होता; या फिर उसके करीब आने वाली लड़की उसके ख्वाबों की सब़्जपरी सी न होती... या फिर वैसा कुछ स्पेशल न होता, जिसकी उसे चाह थी; या फिर यह डर कि वैसा कुछ स्पेशल न हो पाएगा।

मगर फिर कुछ स्पेशल हुआ। कबीर की फैंटसी एक क्वांटम कलैप्स के साथ हक़ीक़त की ज़मीन पर आ उतरी, एक बेहद खूबसूरत हक़ीक़त बनकर। कौन कहता है कि फैंटसी कभी सच नहीं होती! क्या हर किसी की रियलिटी किसी और की फैंटसी नहीं है? हम सब किसी न किसी की कल्पना, किसी न किसी के सपने का साकार रूप ही तो हैं। प्रिया भी शायद वही रियलिटी थी, जो कबीर की फैंटसी में सालों पलती रही थी।

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
 
चैप्टर 3

प्रिया से मिलने से पहले कबीर की फैंटसियों ने एक लम्बा स़फर तय किया था। भारत के छोटे से शहर वड़ोदरा की कस्बाई कल्पनाओं से लेकर लंदन के महानगरीय ख़्वाबों तक। कबीर पंद्रह साल का था, जब उसके माता-पिता लंदन आए थे। पंद्रह साल की उम्र वह उम्र होती है, जब किसी बच्चे के हार्मोन्स उसकी अक्ल हाइजैक करने लगते हैं। ऐसी उम्र में उसके पूरे अस्तित्व को हाइजैक कर वड़ोदरा से उठाकर लंदन ले आया गया था। दुनिया के नक़्शे में लंदन के मुकाबले शायद वड़ोदरा के लिए कोई जगह न हो, मगर कबीर के मन के नक़्शे में सि़र्फ और सि़र्फ वड़ोदरा ही खिंचा हुआ था।

वड़ोदरा के मोहल्ले, सड़कें, गली, बाग़, मैदान, सब कुछ उस ऩक्शे में गहरी छाप बनाए हुए थे, और साथ ही छाप बनाये हुई थी वड़ोदरा की ज़िन्दगी; जो लंदन की ज़िन्दगी से उतनी ही दूर थी, जितनी कि वड़ोदरा शहर की लंदन से दूरी। उस समय दुनिया वैसी ग्लोबल विलेज नहीं बनी थी, जैसी कि आज बन चुकी है। वह वक्त था, जो कि शुरूआत थी दुनिया के ग्लोबल विलेज और कबीर के ग्लोबल सिटी़जन बनने की; और जिस तरह किसी भी दूसरे मुल्क की सिटि़जनशिप लेना एक बड़े जद्दोजहद का काम होता है; कबीर के लिए ग्लोबल सिटि़जन बनना उतना ही मुश्किल भरा काम था। इस काम में उसकी मदद कर, उसकी मुश्किलें जिसने सबसे अधिक बढ़ाई थीं, वह था समीर। समीर, कबीर का ममेरा भाई है; उम्र में उससे दो साल बड़ा है, कद में एक इंच लम्बा है, और हर बड़े भाई की तरह अनुभव में ख़ुद को उसका बाप समझता है।

‘‘हे डूड, दिस इ़ज लंदन। इफ यू वांट टू सर्वाइव इन एनी टीन ग्रुप हियर, देन नेवर एक्ट लाइक ए फ्रेशी, अंडरस्टैंड?’’ कबीर के लंदन पहुँचते ही समीर ने उसे सलाह दे डाली। समीर की पैदाइश लंदन की है। समीर भले ही लंदन के नक़्शे को बहुत अच्छी तरह न जानता रहा हो, मगर वह लंदन की ज़िन्दगी को बहुत अच्छे से जानता था।

‘‘ये फ्रेशी क्या होता है?’’ उस वक्त तो अंग्रे़जी भाषा पर कबीर की पकड़ भी कम़जोर थी, उस पर वहाँ के स्लैंग; वे तो उसकी सबसे बड़ी कम़जोरी बनने वाले थे।

‘‘फ्रेशी इ़ज समवन लाइक भारत सरकार।’’ समीर ने तिरिस्कार पूर्ण भावभंगिमा बनाई।
‘‘गवर्नमेंट ऑ़फ इंडिया?’’
‘‘नो; दैट कॉर्नर शॉप ओनर डिकहेड; सेवेंटी वन में आया था ढाका से, और अभी तक बाँग्लाफ्रेशी है। सी, हाउ ही ऑलवे़ज स्मेल्स ऑ़फ फिश।’’ हालाँकि ‘फिश एंड चिप्स’ ब्रिटेन की नेशनल डिश रहा है, जिसकी जगह अब इंडियन करी ने ले ली है मगर, ‘स्मेल ऑ़फ फिश’ और ‘करी मंचर’ जैसे फ्रेज़ वहाँ देसी और फ्रेशी लोगों का म़जाक उड़ाने के लिए ही इस्तेमाल किए जाते हैं।
खैर, इस तरह कबीर का परिचय भारत सरकार से हुआ था। कबीर के घर से चार मकान दूर डेलीनीड्स की दुकान चलाने वाले बाबू मोशाय भारत सरकार।
‘‘कोबीर य्होर नेम इज एक्षीलेंट। हामारा इंडिया का बोहूत बॉरा शेंट हुआ था कोबीर।’’ कबीर के लिए ‘भारत सरकार’ का एक्सेंट समझना, लंदन के लोकल एक्सेंट को समझने से आसान नहीं था।
‘‘थैंक्स अंकल!’’ कबीर ने किसी तरह उसकी बात का अंदा़ज लगाते हुए कहा।
‘‘डोंट कॉल मी आंकेल, कॉल मी शॉरकार।’’
‘‘ओके, सरकार अंकल।’’
‘शॉरकार।’
‘‘कहाँ की सरकार है? एक्स्पायर्ड सामान बेचता है और वह भी महँगा।’’ समीर वाकई कोकोनट है। कोकोनट, यानी बाहर से ब्राउन और भीतर से वाइट। चाहे वह ख़ुद इंग्लिश की जगह हिंगलिश बोले, चाहे वह किंगफिशर बियर के साथ विंडलू चिकन गटक कर रातभर बैड विंड से परेशान रहे, या चाहे वह आलू-चाट खाते हुए देसी लड़कियों से इलू-इलू चैट करे; मगर यदि आप लोकल स्लैंग नहीं समझते हैं, लोकल एक्सेंट में बात नहीं करते हैं, तो समीर के लिए आप फ्रेशी हैं। चाहे वह ख़ुद अपने हाथों से तंदूरी चिकन की टाँग मरोड़े, मगर यदि आप खाना खाने में छुरी-काँटे का इस्तेमाल नहीं जानते हैं, तो आप फ्रेशी हैं। समीर की परिभाषा में कबीर ‘पूरी तरह फ्रेशी’ था।
 
वह स्कूल में कबीर का पहला दिन था। ब्रिटेन के स्कूलों में ख़ास बात यह है कि वहाँ पीठ पर भारी बस्ता लादना नहीं पड़ता; हाँ, कभी-कभी स्पोर्ट्स किट या पीई किट ले जानी होती है, मगर वह भी भारतीय बस्ते जितनी भारी नहीं होती। उस दिन कबीर की पीठ पर कोई बोझ नहीं था, मगर उसके दिमाग पर ढेर सारा बोझ था। ब्लैक शू़ज, ग्रे पतलून, वाइट शर्ट, ब्लू ब्ले़जर और रेड टाई में वैसे तो वह ख़ुद को का़फी अच्छा महसूस कर रहा था, मगर मन में एक घबराहट भी थी कि टीचर्स कैसे होंगे? साथी कैसे होंगे? स्कूल कैसा होगा? ब्रिटेन में स्कूलों में सुबह प्रार्थना नहीं होती, राष्ट्रगान नहीं गाया जाता; बस सीधे क्लासरूम में। शायद वहाँ लोग प्रार्थनाओं में यकीन नहीं रखते। ब्रिटेन में ही सबसे पहले सेकुलरिज्म शब्द ईजाद हुआ था, जिसने धर्म को सामाजिक जीवन से अलग कर व्यक्तिगत जीवन में समेटने की क़वायद शुरू की थी। वहीं पेरिस में बैठकर कार्ल माक्र्स ने धर्म को अ़फीम कहा था। अब तो ब्रिटेन में चर्च जाने वाले ईसाई गिनती के ही हैं, और उनके घरों में प्रार्थना तो शायद ही होती हो। राष्ट्रीय प्रतीकों का भी तकरीबन यही हाल है। ब्रिटेन के राष्ट्रीय-ध्वज यानी यूनियन जैक के डोरमैट और कच्छे बनते हैं।
पहला पीरियड एथिक्स का था; टीचर थीं मिसे़ज बर्डी। कबीर ने क्रो, कॉक और पीकॉक जैसे सरनेम ज़रूर सुन रखे थे, मगर बर्डी सरनेम पहली बार ही सुना था। मिसे़ज बर्डी ऊँचे कद, स्लिम फिगर और गोरे रंग की लगभग तीस साल की महिला थीं। उनकी हाइट कबीर से आधा फुट अधिक थी, और उनकी स्कर्ट की लम्बाई उसकी पतलून की लम्बाई की आधी थी। उनकी टाँगों जितनी लम्बी, खुली और गोरी टाँगें कबीर ने उसके पहले सि़र्फ फिल्मों या टीवी में ही देखी थीं। पूरे पीरियड, कबीर का ध्यान उनकी लम्बी टाँगों पर ही लगा रहा। मिसे़ज बर्डी का अंग्रे़जी एक्सेंट उसे ज़रा भी समझ नहीं आया, मगर उस पीरियड के बाद के ब्रेक में बर्डी नाम का रहस्य ज़रूर समझ आ गया।
‘‘आई एम कूल।’’ सिर पर लाल रंग की दस्तार बाँधे एक सिख लड़के ने कबीर की ओर हाथ बढ़ाया।
‘‘मी टू।’’ कबीर ने झिझकते हुए हाथ बढ़ाया।
‘‘ओह नो! माइ नेम इ़ज कूल... कुलविंदर; पीपल कॉल मी कूल।’’ कूल ने कबीर का हाथ मजबूती से थामकर हिलाया। पहली मुलाकात में ही उसने कबीर को अपने पंजाबी जोश का अहसास करा दिया।
‘‘ओह! आई एम कबीर।’’ कबीर ने कूल के हाथों से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा। संकोची सा कबीर, ऐसी गर्मजोशी का आदी नहीं था।
‘‘न्यू हियर?’’ कूल ने पूछा।
‘‘यस, फ्रॉम इंडिया।’’
‘‘बी केयरफुल मेट, नए स्टूडेंट्स को यहाँ बहुत बुली करते हैं।’’
‘‘आई नो।’’ कबीर ने ब्रिटेन के स्कूलों में नए छात्रों को बुली किए जाने के बारे में समीर से का़फी कुछ सुन रखा था।
‘‘यू नो नथिंग।’’ कूल की आँखों में शरारत थी या धमकी, कबीर कुछ ठीक से समझ नहीं पाया।
‘‘यू लाइक मिसे़ज बिरदी? नाइस लेग्स, हुह।’’ कूल ने एक बार फिर शरारत से अपनी आँखें मटकाईं।
‘‘यू मीन मिसे़ज बर्डी?’’ एथिक्स की टीचर के लिए ही इस तरह का शरारती सवाल कबीर को कुछ पसंद नहीं आया, मगर फिर उसे ध्यान आया कि पूरे पीरियड में उसका ख़ुद का ध्यान मिसे़ज बर्डी की लंबी खूबसूरत टाँगों पर ही टिका हुआ था। इस बात से उसे थोड़ी ग्लानि भी हुई, और यह शंका भी, कि कूल को भी इस बात का अहसास होगा।
‘‘नो नो, बिरदी; वो जर्मन हैं, उनकी शादी एक इंडियन से हुई है, मिस्टर बिदरी से।’’
‘‘ओह, फिर सब उनको मिसे़ज बर्डी क्यों कहते हैं?’’
‘‘हाउ इ़ज बिरदी स्पेल्ड? बी आई आर डी आई, बर्डी; गॉट इट?’’
‘‘ओह! ओके।’’ कबीर ने मुस्कुराकर सिर हिलाया।
दो पीरियड बाद लंच का समय हुआ। कबीर, कूल के साथ अपना लंच बॉक्स लिए लंच रूम पहुँचा।
‘‘आर यू सैंडविच?’’ डिनरलेडी ने कबीर के हाथ में लंच बॉक्स देखकर पूछा।
‘सैंडविच? आई ऍम ए बॉय, नॉट सैंडविच।’ कबीर ने ख़ुद से कहा।
 
‘‘कबीर, कम दिस साइड।’’ कूल ने उसे बुलाया, ‘‘जो स्टूडेंट्स घर से लंच बॉक्स लेकर आते हैं, उन्हें यहाँ सैंडविच कहते हैं; और जो स्कूल में बना खाना खाते हैं, उन्हें डिनर।’’
अजीब लोग हैं ये अंग्रे़ज भी; ज़रूर बोलने में इन लोगों की ज़ुबान दुखती होगी, तभी तो कम से कम शब्दों में काम चलाते हैं।
कूल ने अपना लंच बॉक्स खोला। उसमें ब्राउन ब्रेड का बना ची़ज एंड टोमेटो सैंडविच था, साथ में एक केला और सेब। हाउ बोरिंग! कबीर ने सोचा। क्या कूल हर रो़ज यही खाता है? इस देश में लोगों को खाने का शऊर नहीं है। मगर कूल तो इंडियन है, वह क्यों यह बोरिंग खाना खाता है। कबीर ने अपना लंच बॉक्स खोला। अहा! बटाटा वड़ा, थेपला और आम का अचार... इसे कहते हैं खाना। कबीर को अपनी माँ पर फ़ख्र महसूस हुआ। कितना टेस्टी खाना बनाती है माँ; और एक कूल की माँ... क्या उसे पराठा या पूड़ी बनाना भी नहीं आता।
‘‘स्मेल्स सो नाइस, व्हाट इ़ज इट?’’ पास बैठे एक गोरे अंग्रे़ज लड़के हैरी ने पूछा।
‘‘बटाटा वड़ा।’’ कबीर ने गर्व से कहा।
‘‘वाओ! बटाटा वरा। कबीर इ़ज नॉट सैंडविच, ही इ़ज बटाटा वरा।’’ हैरी ने हँसते हुए कहा। अंग्रे़ज होने के नाते वह ‘ड़’ का उच्चारण ‘र’ करता था।
‘‘नो नॉट बटाटा वरा, बटाटा वड़ा।’’ कूल ने वड़ा पर ज़ोर देकर कहा। उसके बटाटा वड़ा कहने के अंदा़ज पर पास बैठे सारे छात्र भी हँसने लगे। कबीर को बड़ी शर्म आई। बड़ी मुश्किल से उससे एक थेपला खाया गया।
उस दिन के बाद से कबीर के लंच बॉक्स में कभी बटाटा वड़ा नहीं आया, मगर उसका नाम हमेशा के लिए बटाटा वड़ा पड़ गया।
‘‘डू यू नो दैट गर्ल?’’ अगले दिन प्लेटाइम में एक लम्बी, स्लिम और गोरी लड़की की ओर इशारा करते हुए कूल ने कबीर से पूछा। लड़की ने सिर पर रंग-बिरंगा डि़जाइनर स्का़र्फ बाँधा हुआ था, जिससे कबीर ने अंदा़ज लगाया कि वह कोई मुस्लिम लड़की होगी।
‘‘नो, हू इ़ज शी?’’
‘‘शी इ़ज बट्ट।’’
‘‘बट्ट? यू मीन बैकसाइड?’’ कबीर को लगा कि वह कूल की कोई शरारत थी।
‘‘हर फॅमिली नेम इ़ज बट्ट, हर फॅमिली इ़ज फ्रॉम कश्मीर।’’
‘‘ओह! आई सी।’’
कश्मीर के ज़िक्र पर कबीर को भारत सरकार की दुकान पर काम करने वाले लड़के बिस्मिल का ध्यान आया। कितने फ़ख्र से उसने कहा था कि वह आ़जाद कश्मीर से है। हुँह, आ़जाद कश्मीर... इट्स पाक ऑक्यूपाइड कश्मीर।
‘‘दोस्ती करोगे उससे?’’ कूल ने आँखें मटकाकर पूछा।
वह आम कश्मीरी लड़कियों से भी ज़्यादा सुन्दर थी। ख़ासतौर पर उसके कश्मीरी सेब जैसे गुलाबी लाल गाल तो बहुत ही खूबसूरत थे।
‘‘व्हाट्स हर फर्स्ट नेम?’’ कबीर ने उत्सुकता से पूछा।
‘लिकमा।’
‘‘लिकमा? ये कैसा नाम हुआ?’’ कबीर को वह नाम बड़ा अजीब सा लगा।
‘‘इट्स एन अरेबिक वर्ड, इट मीन्स विज़्डम।’’
‘‘हम्म! ब्यूटीफुल नेम।’’
‘‘गो... टेल हर, दैट यू लाइक हर नेम।’’ कूल ने लड़की की ओर इशारा किया।
‘अभी?’
‘‘हाँ, लड़कियों को अपनी तारी़फ सुनना पसंद होता है। यू टेल हर, यू लाइक हर नेम, शी विल लाइक इट।’’
कबीर को का़फी घबराहट हुई। जिस लड़की को दूर से देखकर ही उसका दिल धड़क रहा था, उसके पास जाकर क्या हाल होगा। मगर उसके गुलाबी लाल गाल कबीर को लुभा रहे थे। उस वक्त उसे लगा कि उन गालों के लिए वह उससे दोस्ती तो क्या, पाकिस्तान से दुश्मनी भी कर सकता है। हिम्मत करके किसी हिन्दुस्तानी सिपाही की तरह कबीर उसकी ओर बढ़ा। सिर उठा के, कंधे थोड़े चौड़े करके, अपनी घबराहट को काबू करने की कोशिश करते हुए।
‘हाय!’ कबीर ने लड़की के सामने पहुँचकर बड़ी मुश्किल से कहा। एक छोटा सा हाय भी उसे एक पूरे पैराग्राफ जितना लम्बा लग रहा था।
‘हाय!’ लड़की ने बड़ी सहजता से मुस्कुराकर कहा। कबीर को उसकी स्माइल बहुत प्यारी लगी। वह एक लड़की थी। एक अजनबी लड़के से बात करते हुए घबराहट उसे होनी चाहिए थी, मगर वह बिल्कुल नॉर्मल थी, और कबीर एक लड़का होते हुए भी घबरा रहा था। कबीर का दिल ज़ोरों से धड़क रहा था। किसी तरह अपनी धड़कनों को सँभालते हुए उसने कहा, ‘‘आई लाइक योर नेम, लिकमा!’’
‘व्हाट?’ लड़की ने चौंकते हुए पूछा।
‘‘लिकमा बट्ट।’’
तड़ाक। कबीर के बाएँ गाल पर एक ज़ोर का थप्पड़ पड़ा। उसे पता नहीं था कि कोई ना़जुक सी लड़की इतनी ज़ोर का थप्पड़ मार सकती है। कबीर का गाल उस लड़की के गाल से भी अधिक लाल हो गया; कुछ तो थप्पड़ की वजह से, और कुछ किसी लड़की से थप्पड़ खाने के अपमान की वजह से। कबीर को कुछ समझ नहीं आया कि आ़िखर उस लड़की ने उसे थप्पड़ क्यों मारा। उसने ऐसा क्या कह दिया; उसके नाम की तारी़फ ही तो की थी... और कूल का कहना था कि लड़कियों को तारी़फ पसंद होती है।
चैप्टर 4
‘‘हा हा...लिकमा बट्ट, लिक माइ बट्ट, लिक माइ बैकसाइड... बटाटा वरा, यू आर लकी टू हैव बीन स्पेयर्ड विद ओनली वन स्लैप।’’ हैरी की हँसी रुक नहीं रही थी।
‘‘इ़ज दैट नॉट हर नेम?’’ कबीर अभी भी अपना गाल सहला रहा था।
 
‘‘हर नेम इ़ज हिकमा, नॉट लिकमा।’’ हैरी की हँसी अब भी नहीं रुकी थी।
‘‘वाय डिड यू डू दिस टू मी?’’ कबीर को कूल पर बहुत गुस्सा आ रहा था।
‘‘कूल-डाउन बडी।’’ कूल के होंठों पर तैर रही बेशर्म मुस्कान कबीर को बहुत ही भद्दी लगी।
‘‘कूल-डाउन? क्यों?’’ उस वक्त कबीर को इतना अपमान महसूस हो रहा था कि जैसे उसने सि़र्फ एक लड़की से नहीं, बल्कि पूरे आ़जाद कश्मीर से थप्पड़ खाया हो; हिंदुस्तान ने पाकिस्तान से थप्पड़ खाया हो।
‘‘सी बडी, इसी तरह प्यार की शुरूआत होती है; जब उसे पता चलेगा कि उसने तुझे तेरी ग़लती के बिना चाँटा मारा है, तो उसे तुझसे सिम्पथी होगी, फिर वह तुझसे मा़फी माँगेगी, फिर तू उसे ऐटिटूड दिखाना, फिर वह तुझे मनाएगी...।’’
प्यार? हिकमा जैसी खूबसूरत लड़की को कबीर से? कश्मीरी सेब को गुजराती फाफड़े से? कबीर अपनी फैंटसी की दुनिया में खो गया। कूल को तो उसने कब का मा़फ कर दिया, वह बस इस सोच में खो गया, कि जब हिकमा उससे मा़फी माँगेगी तो उसका जवाब क्या होगा। क्या वह उसे कोई ऐटिटूड दिखा पाएगा? कहीं हिकमा उसके ऐटिटूड से नारा़ज न हो जाए। एक मौका मिलेगा पास आने का, वह भी न चला जाए। कबीर ने सोच लिया कि वह उसे झट से मा़फ कर देगा। शी वा़ज सच ए स्वीट गर्ल। कबीर अपने गाल पर पड़ा थप्पड़ भूल गया था; उसका दर्द भी और उसका अपमान भी। कबीर यह सोचना भी भूल गया था कि हिकमा को यह कौन बताएगा कि ग़लती उसकी नहीं थी।
अगले कुछ दिन कबीर, प्ले टाइम में हिकमा से ऩजरें मिलाने से बचता रहा, मगर छुप-छुपकर कभी इस तो कभी उस आँख के कोने से उसे देख भी लेता। इस बात की बेसब्री से उम्मीद थी कि हिकमा को यह अहसास हो कि ग़लती उसकी नहीं थी, मगर वह अहसास किस तरह हो यह पता नहीं था। एक बार सोचा कि कूल की शिकायत की जाए, मगर उससे बात के निकलकर दूर तलक चले जाने का डर था। अच्छी बात यह थी कि हिकमा ने उसकी शिकायत किसी से नहीं की थी। इस बात पर कबीर को वह और भी अच्छी लगने लगी थी। अब बस किसी तरह उसकी ग़लत़फहमी दूर कर ऩजदीकियाँ बढ़ानी थीं।
‘‘कबीर, वॉन्ट टू वाच सम किंकी स्ट़फ?’’ समीर ने कबीर से धीमी आवा़ज में, मगर थोड़ी बेसब्री से पूछा।
‘‘ये किंकी स्ट़फ क्या होता है?’’ कबीर को कुछ समझ नहीं आया।
‘‘चल तुझे दिखाता हूँ; वो सेक्सी बिच लूसी है न।’’ लूसी का नाम लेते हुए समीर की आँखें शरारत से मटकने लगीं।
‘‘वह, जिसका मकान पीछे वाली सड़क पर है?’’
‘‘हाँ उसका बॉयफ्रेंड है, चार्ली चरणदास।’’
‘‘चार्ली चरणदास?’’ ब्रिटेन आकर कबीर को एक से बढ़कर एक अजीबो़गरीब नाम सुनने मिल रहे थे; उसी देश में, जहाँ विलियम शेक्सपियर ने लिखा था, व्हाट्स इन ए नेम? नाम में क्या रखा है? मगर कोई कबीर से पूछे कि नाम में क्या रखा है? वह आपका मनोरंजन करने से लेकर आपको थप्पड़ तक पड़वा सकता है।
‘‘चार्ली द फुटस्लेव।’’ समीर ने हँसते हुए कहा; ‘‘उनका विडियो रिकॉर्ड किया है; शी इ़ज स्पैकिंग हिम व्हाइल ही किसेस हर फुट।’’
‘‘व्हाट द हेल इ़ज दिस?’’ पैर चूमना? थप्पड़ मारना? कबीर को कुछ समझ नहीं आया, मगर उसे विडियो देखने की उत्सुकता ज़रूर हुई।
‘‘शो मी।’’ कबीर ने बेसब्री से कहा।
‘‘यहाँ नहीं, मेरे कमरे में चल।’’
कबीर बेसब्री से समीर के पीछे उसके कमरे की ओर दौड़ा। अपने कमरे में पहुँचकर समीर ने स्टडी टेबल के ड्रॉर से अपना लैपटॉप निकाला।
‘‘लुक द फ़न स्टाट्र्स नाउ।’’ लैपटॉप ऑन करके एक विडियो फाइल पर क्लिक करते हुए समीर की चौड़ी मुस्कान से उसकी बत्तीसी झलकने लगी।
विडियो चलना शुरू हुआ। लूसी बला की खूबसूरत थी। ब्लॉन्ड हेयर, ओवल चेहरा, नीली नशीली आँखें, लम्बा कद, स्लिम फिगर, गोरा रंग; सब कुछ बिल्कुल हॉलीवुड की हीरोइनों वाला। लूसी की उम्र लगभग सत्ताइस-अट्ठाइस साल थी, मगर वह इक्कीस-बाइस से अधिक की नहीं लग रही थी। वह ब्राउन कलर के लेदर सो़फे पर बैठी हुई थी, लाल रंग की जालीदार तंग ड्रेस पहने; जिसमें उसके प्राइवेट पाट्र्स के अलावा सब कुछ ऩजर आ रहा था। उसने बाएँ हाथ की उँगलियों के बीच एक सुलगती हुई सिगरेट पकड़ी हुई थी। उसके सामने, नीचे फर्श पर, घुटनों के बल पीठ के पीछे हाथ बाँधे और गर्दन झुकाए एक नौजवान बैठा हुआ था... चार्ली चरणदास। उम्र लगभग पच्चीस; गोरा रंग, तगड़ा शरीर, कसी हुई मांसपेशियाँ, खूबसूरत चेहरा।
लूसी ने दायें हाथ से चार्ली के सिर के बाल पकड़कर उसका चेहरा ऊपर उठाया।
‘‘चार्ली, यू इडियट! लुक हियर।’’ लूसी की आवा़ज बहुत मीठी थी। यकीन नहीं हो रहा था कि कोई किसी का इतनी मीठी आवा़ज में भी अपमान कर सकता है।
‘‘यस मैडम।’’ ऐसा लगा मानों चार्ली ने बड़ी हिम्मत से सिर उठाकर लूसी से ऩजरें मिलाई हो।
लूसी ने चार्ली के बायें गाल पर एक थप्पड़ मारा। समीर की बत्तीसी से हँसी छलक पड़ी, मगर कबीर को हिकमा का मारा हुआ थप्पड़ याद आ गया; हालाँकि लूसी का थप्पड़ वैसा करारा नहीं था।
‘‘चार्ली बॉय, यू नो दैट यू डिन्ट इवन नो हाउ टू पुट योर पेंसिल डिक इनसाइड ए पुस्सी; आई हैड टू टीच यू इवन दैट।’’
‘‘यस मैडम।’’ चार्ली ने शर्म से आँखें झुकाई।
 
‘‘सो नाउ यू थिंक यू कैन जर्क दैट टाइनी कॉक विदाउट माइ परमिशन?’’ लूसी का लह़जा कुछ सख्त हुआ।
‘‘आई एम सॉरी मैडम; इट वा़ज ए बिग मिस्टेक।’’ चार्ली ने अपना सिर भी झुकाया।
‘‘आर यू अशेम्ड ऑ़फ व्हाट यू डिड?’’ लूसी ने सिगरेट का एक लम्बा कश लिया।
‘यस।’ चार्ली का चेहरा शर्म से लाल हो रहा था; ठीक वैसे ही, जैसा कि हिकमा से थप्पड़ खाने के बाद कबीर का चेहरा हुआ था।
‘‘यस व्हाट?’’ लूसी की भौहें तनीं।
‘‘यस मैडम।’’
‘‘सो व्हाट शैल आई डू विद यू?’’ लूसी ने आगे झुकते हुए सिगरेट का धुआँ चार्ली के मुँह पर छोड़ा, और फिर पीछे सो़फे पर पीठ टिका ली।
‘‘प्ली़ज फॉरगिव मी मैडम।’’
‘‘ह्म्म्म...आर यू बेगिंग?’’
‘‘यस मैडम, प्ली़ज फॉरगिव मी।’’ चार्ली का सिर झुका हुआ था, हाथ पीछे बँधे हुए थे।
‘‘इ़ज दिस द वे टू बेग? आई एम नॉट इम्प्रेस्ड एट ऑल।’’ लूसी ने सिगरेट का एक और कश लिया।
‘‘प्ली़ज, प्ली़ज मैडम, प्ली़ज फॉरगिव मी... प्ली़ज गिव मी वन मोर चान्स; आई प्रॉमिस, दिस विल नॉट हैपन अगेन।’’ चार्ली लूसी के पैरों पर सिर रखकर गिड़गिड़ाया।
‘‘हूँ... दिस इ़ज बेटर।’’ लूसी ने अपनी आँखों के सामने गिर आई बालों की एक लट पीछे की ओर झटकी, और सिगरेट की राख चार्ली के सिर पर, ‘‘ओके, गेट अप एंड मेक मी ए ग्लास ऑ़फ वाइन।’’
चार्ली के होठों पर एक राहत की मुस्कान आई। वह उठकर अपनी बार्इं ओर दीवार में बने शोकेस की ओर बढ़ने लगा।
‘‘गेट ऑन योर नी़ज चार्ली; आई हैवंट आस्क्ड यू टू वॉक ऑन योर फीट यट, हैव आई?’’ लूसी ने आँखें तरेरीं।
‘‘सॉरी मैडम।’’ अपने घुटनों पर बैठते हुए घुटनों के बल चलके चार्ली शोकेस तक पहुँचा; बाँहें तानकर उसने काँच का स्लाइडर सरकाया, और एक वाइट वाइन की बोतल और क्रिस्टल का वाइन गिलास निकाला। वाइन गिलास को बाएँ हाथ में पकड़ते हुए, वाइन की बोतल को बायीं बाँह और सीने के बीच जकड़ के दाहिने हाथ से शोकेस को स्लाइडर सरका कर बंद किया, और घुटनों के बल चलते हुए लूसी के सामने आया। लूसी ने सिगरेट का एक लम्बा कश लेते हुए चार्ली को आँखों के इशारे से वाइन का गिलास भरने को कहा। सो़फे के पास रखे साइड स्टूल पर वाइन गिलास रखकर, चार्ली ने वाइन की बोतल खोली, और गिलास में वाइन भरकर उसे बड़े आदर से लूसी को पेश किया।
‘‘हूँ, आई एम इम्प्रेस्ड।’’ लूसी ने सो़फे पर अपनी पीठ टिकाते हुए वाइन का सिप लिया।
‘‘चार्ली, कान्ट यू सी दैट माइ फीट आर डर्टी? डू, आई नीड टू टेल यू व्हाट यू हैव टू डू?’’ लूसी ने अपने नंगे पैरों की ओर इशारा करते हुए चार्ली को झिड़का।
‘‘सॉरी मैडम।’’ चार्ली ने लूसी के पैरों पर झुकते हुए अपनी जीभ बाहर निकाली।
‘‘चार्ली बॉय! हैव यू आस्क्ड फॉर परमिशन?’’ लूसी की आँखों से दंभ की एक किरण उठकर उसकी भौंहों को तान गई।
‘‘सॉरी मैडम... कैन आई?’’
‘‘ओके, गो अहेड।’’
‘‘थैंक यू मैडम।’’ चार्ली की जीभ, लूसी के बाएँ पैर के तलवे पर कुछ ऐसे फिरने लगी, मानों किसी चॉकलेट बार पर फिर रही हो।
‘‘गेट योर टंग बिटवीन द टो़ज।’’ लूसी ने हुक्म किया।
‘‘यस मैडम।’’ चार्ली ने जीभ उसके पैर की उँगलियों के बीच डाली, और उँगलियों को एक-एक कर चूसना शुरू किया। चार्ली के चेहरे के भावों से ऐसा लग रहा था, मानों उसे किसी रसीली कैंडी को चूसने का आनंद आ रहा हो।
चार्ली की जीभ लूसी के पैरों पर फिरती रही, और लूसी सो़फे पर आराम से टिक कर वाइन के घूँट भरती रही।
कुछ देर बाद लूसी ने अपने दायें पैर की उँगलियाँ, चार्ली की ठुड्डी में अड़ाकर चार्ली के चेहरे को ऊपर उठाया।
‘‘चार्ली! यू हैव बीन ए गुड बॉय; आई थिंक यू डि़जर्व ए रिवार्ड नाउ।’’
‘‘थैंक यू मैडम।’’ चार्ली ने हसरत भरी ऩजरों से लूसी के खूबसूरत चेहरे को देखा।
लूसी ने अपने वाइन गिलास से थोड़ी वाइन अपनी दाहिनी टाँग पर उड़ेली, जो नीचे बहते हुए उसके पैर से होकर चार्ली के होठों तक पहुँची। चार्ली ने वाइन का घूँट भरा, और उसकी आँखों की हसरत चमक उठी। लूसी ने अपने गिलास की बची हुई वाइन भी अपनी टाँग पर उड़ेली। चार्ली के होंठ वाइन की धार को पकड़ने लूसी की टाँगों पर ऊपर सरके।
लूसी ने शरारत से हँसते हुए अपनी टाँग खींची, और आगे झुककर चार्ली के गले में बाँहें डालकर उसके उसी गाल को प्यार से सहलाया, जिस पर उसने थप्पड़ जड़ा था, और फिर उसी जगह एक हल्का सा थप्पड़ मारते हुए मुस्कुराकर कहा, ‘‘चार्ली बॉय, कान्ट यू सी, दैट माइ ग्लास इ़ज एम्प्टी, मेक मी एनअदर ग्लास आँफ वाइन।’’
कबीर को पूरा सीन बड़ा भद्दा सा लगा। उन दिनों उसे न तो बीडीएसएम का कोई ज्ञान था, और न ही ‘डामिनन्स एंड सबमिशन’ के प्ले में यौन-आनंद लेने वाले प्रेमी-युगलों की कोई जानकारी थी। न तो तब ऐसे युगलों पर लिखी ‘फिफ्टी शेड्स ऑ़फ ग्रे’ जैसी कोई लोकप्रिय किताब थी, और न ही इस बात का कोई अंदा़ज, कि ऐसा भी कोई मर्द हो सकता है, जो अपमान और पीड़ा में यौन-आनंद ले, या ऐसी कोई औरत, जो अपने प्रेमी का अपमान कर, और उसे पीड़ा देकर प्रसन्न हो। उस वक्त यदि कोई उस प्ले को बीडीएसएम कहता, तो कबीर को उसका अर्थ बस यही समझ आता, ब्लडी डिस्गस्टिंग सेक्सुअल मैनर्स। मगर अचानक ही कबीर को अहसास हुआ कि वह सारा सीन उसे भद्दा लगकर भी एक किस्म का सेक्सुअल एक्साइट्मन्ट दे रहा था। वह लूसी की ख़ूबसूरती थी, या फिर उसकी अदाएँ; या फिर उसका अपनी ख़ूबसूरती और अदाओं पर गुरूर, या उस गुरूर को पिघलाता यह छुपा हुआ अहसास कि उस प्ले की तरह ही उसकी ख़ूबसूरती और जवानी की उम्र भी बहुत लम्बी नहीं थी। मगर कुछ तो था, जो कबीर के मन के किसी कोने में अटककर उसे लूसी की ओर खींच रहा था। और जिस तरह कबीर के लिए यह अंदा़ज लगा पाना मुश्किल था, कि उसके मन में अटकी कौन सी बात उसे लूसी की ओर खींच रही थी, उसके लिए यह जान पाना भी मुश्किल था, कि वह उसे लूसी के किस ओर खींच रही थी? क्या वह ख़ुद को चार्ली की जगह देख सकता था, लूसी के पैरों में सिर झुकाए? क्या उसे अपमान या पीड़ा में कोई यौन आनंद मिल सकता है? क्या हिकमा से थप्पड़ खाकर उसे किसी किस्म का आनंद भी मिला था? आ़िखर क्यों उसका मन उसे उसका अपमान करने वाली लड़की की ओर खींच रहा था? कबीर को हिकमा पर गुस्सा आने की जगह प्यार क्यों आ रहा था?
 
Back
Top