desiaks
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डार्क नाइट
चैप्टर 1
‘‘आपका नाम?’’ उसकी स्लेटी आँखों में मुझे एक कौतुक सा खिंचता दिखाई दिया। मुझसे मिलने वाली हर लड़की की तरह उसमें भी मुझे जानने की एक हैरत भरी दिलचस्पी थी।
‘काम।’
आई जी इंटरनेशनल एअरपोर्ट के प्रीमियम लाउन्ज की गद्देदार सीट में धँसते हुए मैंने आराम से पीछे की ओर पीठ टिकाई। हम दोनों की ही अगली फ्लाइट सुबह थी। सारी रात थी हम दोनों के पास एक दूसरे से बातें करने के लिए।
‘‘सॉरी, काम नहीं, नाम।’’
‘‘जी हाँ, मैंने नाम ही बताया है; मेरा नाम काम है।’’
‘‘थोड़ा अजीब सा नाम है; पहले कभी यह नाम सुना नहीं।’’ उसकी आँखों का कौतुक थोड़ा बेचैन हो उठा।
‘‘नाम तो आपने सुना ही होगा; शायद भूल गई हों।’’
‘‘याद नहीं कि कभी यह नाम सुना हो।’’
‘‘आपके एक देवता हैं कामदेव...’’ थोड़ा आगे झुकते हुए मैंने उसके खूबसूरत चेहरे पर एक शोख ऩजर डाली, ‘‘काम और वासना के देवता; रूप और शृंगार की देवी रति के पति।’’
उसका चेहरा, ग्रीक गोल्डन अनुपात की कसौटी पर लगभग नब्बे प्रतिशत खरा उतरता था। ओवल चेहरे पर ऊँचा और चौड़ा माथा, तराशी हुई नाक, भरे हुए होंठ और मजबूत ठुड्डी; और जॉलाइन, सब कुछ सही अनुपात में लग रहे थे। उसकी आँखों की शेप लगभग स्कार्लेट जॉनसन की आँखों सी थी, और उनके बीच की दूरी एंजेलिना जोली की आँखों के बीच के गैप से शायद आधा मिलीमीटर ही कम हो। वह लगभग सत्ताइस-अट्ठाइस साल की का़फी मॉडर्न लुकिंग लड़की थी। स्किनी रिप्ड ब्लू जींस के ऊपर उसने ऑरेंज कलर का लो कट स्लीवलेस टॉप पहना हुआ था। डार्क ब्राउन बालों में कैरामल हाइलाइट्स की ब्लेंडेड लेयर्स कन्धों पर झूल रही थीं। गोरे बदन से शेरिल स्टॉर्मफ्लावर परफ्यूम की मादक ख़ुशबू उड़ रही थी।
फिर भी, या तो कामदेव के ज़िक्र पर, या मेरी शो़ख ऩजर के असर में शर्म की कुछ गुलाबी आभा उसकी आँखों से टपककर गालों पर फैल गई। इससे पहले कि उसके गालों की गुलाबी शर्म, गहराकर लाल होती, मैंने पास पड़ा अंग्रे़जी का अखबार उठाया, और फ्रट पेज पर अपनी ऩजरें फिरार्इं। खबरें थीं,‘कॉलेज गर्ल किडनैप्ड एंड रेप्ड इन मूविंग कार’, ‘केसेस ऑ़फ रेप, मोलेस्टेशन राइ़ज इन कैपिटल।’ मेरी ऩजरें अखबार के पन्ने पर सरकती हुई कुछ नीचे पहुँचीं। नीचे कुछ दवाखानों के इश्तिहार थे: ‘रिगेन सेक्सुअल विगर एंड वाइटैलिटी', ‘इनक्री़ज सेक्सुअल ड्राइव एंड स्टैमिना।’
‘‘मगर यह नाम कोई रखता तो नहीं है; मैंने तो नहीं सुना।’’ उसके गालों पर अचानक फैल आई गुलाबी शर्म उतर चुकी थी।
‘‘क्योंकि अब कामदेव की जगह हकीमों और दवाओं ने ले ली है।’’ मैंने अ़खबार में छपे मर्दाना कम़जोरी दूर करने वाले इश्तिहारों की ओर इशारा किया। शर्म की गुलाबी परत एक बार फिर उसके गालों पर चढ़ आई।
सच तो यही है कि यह देश अब कामदेव को भूल चुका है। अब यहाँ न तो कामदेव के मंदिर बनते हैं, और न ही उनकी पूजा होती है। कामदेव अब सि़र्फ ग्रंथों में रह गए हैं; उन ग्रंथों में, जिन्हें समाज के महंतों और मठाधीशों को सौंप दिया गया है। ये महंत बताते हैं कि काम दुष्ट है, उद्दंड है। इन्होंने काम को रति के आलिंगन से निकालकर क्रोध का साथी बना दिया है- काम-क्रोध। रति बेचारी को काम से अलग कर दिया गया है। काम; जिसकी ऩजरों की धूप से उसका रूप खिलता था, उसका शृंगार निखरता था, उससे रति की जोड़ी टूट गई है। यदि काम, रति के आलिंगन में ही सँभला रहे, तो शायद क्रोध से उसका साथ ही न रहे; मगर काम और क्रोध का साथ न रहे, तो इन महंतों का काम ही क्या रह जाएगा। इन महंतों के अस्तित्व के लिए बहुत ज़रूरी है कि काम, रति से बिछड़कर क्रोध का साथी बना रहे।
‘‘मैं म़जा़क नहीं कर रहा; आपके देश में काम को बुरा समझा जाता है... दुष्ट और उद्दंड; आपको काम को वश में रखने की शिक्षा दी जाती है, इसलिए आप अपने बेटों का नाम काम नहीं रखते... आप भला क्यों दुष्ट और उद्दंड बेटा चाहेंगे।’’