desiaks
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कड़ी_04
जब प्रवींद्र को यकीन हो गया की अब वो रात को अपने पिता के कमरे के अंदर देख सकेगा तो उसको आराम मिला और वो खुश हुआ और बेसब्री से इंतेजार किया की रात हो और वो पिता के कमरे में देखे। पाठकों को समझने के लिए की एक दूसरे के कमरे कहाँ-कहाँ थे और किधर से प्रवींद्र कमरे के अंदर झाँकेगा, मैंने एक स्केच बनाया है जिससे आप सबको अच्छी तरह से समझ में आए।
रात हुई और सब टीवी देखने के बाद अपने-अपने कमरे में चले गये। रवींद्र (नेहा का पति) टीवी बहत कम देखता था। वो हर रात को ठीक 9:00 बजे सोने चला जाता था, एक तो खेत के काम की थकान और उसकी आदत थी जल्दी सोने की बचपन से ही।
प्रवींद्र अपने कमरे में गया और इंतेजार करता रहा, रात के और गहरी होने की। अपने कमरे के अंदर से ही वो सुनने की कोशिश करता रहा की उसको किसी दरवाजे की खुलने या बंद होने की आवाज आए। वो प्रार्थना करता रहा की उसको कुछ दिख जाए इस रात को। पर उसको अभी तक यकीन ही नहीं था की यह सब उसका वहम था? या सच में उसके पिता और नेहा के बीच कुछ था भी की नहीं?
एक घंटे के बाद वो देखने के लिए दो बार बाहर गया, मगर उसे कुछ नहीं दिखा। निराश वापस आया अपने कमरे में- “क्या वह दोनों आज रात को नहीं मिलेंगे? कुछ नहीं होने वाला क्या?" ऐसा खुद से पूछा प्रवींद्र ने,
और यह खयालात उसको बहुत परेशान कर रहे थे।
पाठकों को दिखेगा स्केच में कि मैंने एक रेड (लाल) स्पाट बनाया है जो घर के बाहर है। प्रवींद्र उसी जगह से एक कुर्सी पर चढ़कर अपने पिता के रूम में देखता है। बाकी घर के अंदर किसका कमरा किधर है सब मैंने साफ-साफ बनाया है, इससे आप सबों की समझ में आ जाएगा की कौन किधर सोता है रात को वगैरह-वगैरह। घर का नक्शा बिल्कुल वैसा ही है जो मैंने बनाया है।
रात एक बजे तक 4 बार प्रवींद्र बाहर जाकर कमरे के अंदर झाँक आया मगर कुछ नहीं दिखा उसे। बहुत ही बेचैन था वो और सो नहीं पा रहा था। उसी बेचैनी में अपने बिस्तर पर करवटें बदलता गया की उसको 2:30 बजे कारिडोर में एक दरवाजे का बंद होना सुनाई दिया। (नक्शे में देखिएगा आप लोग) रवींद्र का कमरा ठीक उसके कमरे की उस तरफ है और प्रवींद्र के दरवाजे से दरवाजा भी दूर नहीं है। (नक्शे में मैंने दरवाजे के लिये एक छोटी सी खुली जगह छोड़ी है).. तो आवाज सुनकर झपटते हुए वो कमरे से निकला। अपने रूम के दरवाजे को बहुत ही धीरे से खोला, बिना कोई शोर किए हुए, और बिना किसी लाइट का स्विच ओन किए हुए वो किचेन के दरवाजे से बाहर निकला और कुर्सी जिसे उसने पहले से वहां रखा हुआ था उसपर चढ़कर ए.सी. के पास देखने गया अपने पिता के कमरे में।
उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं, जो नजारा उसकी आँखों ने अंदर देखा। नेहा, उसकी भाभी बिल्कुल नंगी थी, उसके पिता के पास उसके बिस्तर पर, उसकी नाइटी अलमारी पर लटकी हुई थी और नेहा अपने ससुर का लण्ड चूस रही थी, जबकी ससुर पीठ पर लेटा हुआ था, और वो भी नंगा था। नेहा अपने हाथ में ससुर के मोटे लण्ड को थामे जमके चूस रही थी और एकाध बार अपनी जीभ से चाट रही थी, फिर चूसती जा रही थी। बूढा अपनी कमर को ऊपर-नीचे करते हए हौले-हौले नेहा के मुँह में जैसे अंदर-बाहर कर रहा था।
वो दृश्य देखकर प्रवींद्र को गरम और ठंडा दोनों एक साथ लगा। वो सोचने लगा की इतने दिनों से वो नेहा को पाने की कोशिश कर रहा है और नेहा सती-सवित्री बन रही थी और यहाँ अपने ससुर के साथ यह सब कर रही है? 'यह सब कबसे चल रहा है?' प्रवींद्र ने सोचा। पहली बार कब हुआ था? उसके पिता को कैसे नेहा मिल गई?
और रवींद्र.. क्या उसको पता भी है? अगर वो अचानक उठ गया तो क्या होगा? भाभी ने कैसे इतना बड़ा रिस्क ले लिया? इतनी हिम्मत कैसे हुई उसे? यह सब सोचते हुए प्रवींद्र का सर चकराने लगा।
फिर अंदर देखा तो नेहा अपनी पीठ पर लेटी हुई थी और उसका पिता नेहा की चूत को चूस रहा था। नेहा अपने ससुर के सर को हाथों में दबाए हुए बिस्तर पर अपने जिश्म को रगड़ रही थी। उसका खूबसूरत जवान नंगा जिश्म उस वक्त ससुर के कब्जे में था। फिर जल्द ही ससुर ऊपर गया और अपने मजबूत हाथों में नेहा की जवान चूचियों को मसलते हुए उसके खड़े निपल्स पर अपनी जीभ फेरने लगा, 18 साल की जवान बहू के निपल्स।
जब प्रवींद्र को यकीन हो गया की अब वो रात को अपने पिता के कमरे के अंदर देख सकेगा तो उसको आराम मिला और वो खुश हुआ और बेसब्री से इंतेजार किया की रात हो और वो पिता के कमरे में देखे। पाठकों को समझने के लिए की एक दूसरे के कमरे कहाँ-कहाँ थे और किधर से प्रवींद्र कमरे के अंदर झाँकेगा, मैंने एक स्केच बनाया है जिससे आप सबको अच्छी तरह से समझ में आए।
रात हुई और सब टीवी देखने के बाद अपने-अपने कमरे में चले गये। रवींद्र (नेहा का पति) टीवी बहत कम देखता था। वो हर रात को ठीक 9:00 बजे सोने चला जाता था, एक तो खेत के काम की थकान और उसकी आदत थी जल्दी सोने की बचपन से ही।
प्रवींद्र अपने कमरे में गया और इंतेजार करता रहा, रात के और गहरी होने की। अपने कमरे के अंदर से ही वो सुनने की कोशिश करता रहा की उसको किसी दरवाजे की खुलने या बंद होने की आवाज आए। वो प्रार्थना करता रहा की उसको कुछ दिख जाए इस रात को। पर उसको अभी तक यकीन ही नहीं था की यह सब उसका वहम था? या सच में उसके पिता और नेहा के बीच कुछ था भी की नहीं?
एक घंटे के बाद वो देखने के लिए दो बार बाहर गया, मगर उसे कुछ नहीं दिखा। निराश वापस आया अपने कमरे में- “क्या वह दोनों आज रात को नहीं मिलेंगे? कुछ नहीं होने वाला क्या?" ऐसा खुद से पूछा प्रवींद्र ने,
और यह खयालात उसको बहुत परेशान कर रहे थे।
पाठकों को दिखेगा स्केच में कि मैंने एक रेड (लाल) स्पाट बनाया है जो घर के बाहर है। प्रवींद्र उसी जगह से एक कुर्सी पर चढ़कर अपने पिता के रूम में देखता है। बाकी घर के अंदर किसका कमरा किधर है सब मैंने साफ-साफ बनाया है, इससे आप सबों की समझ में आ जाएगा की कौन किधर सोता है रात को वगैरह-वगैरह। घर का नक्शा बिल्कुल वैसा ही है जो मैंने बनाया है।
रात एक बजे तक 4 बार प्रवींद्र बाहर जाकर कमरे के अंदर झाँक आया मगर कुछ नहीं दिखा उसे। बहुत ही बेचैन था वो और सो नहीं पा रहा था। उसी बेचैनी में अपने बिस्तर पर करवटें बदलता गया की उसको 2:30 बजे कारिडोर में एक दरवाजे का बंद होना सुनाई दिया। (नक्शे में देखिएगा आप लोग) रवींद्र का कमरा ठीक उसके कमरे की उस तरफ है और प्रवींद्र के दरवाजे से दरवाजा भी दूर नहीं है। (नक्शे में मैंने दरवाजे के लिये एक छोटी सी खुली जगह छोड़ी है).. तो आवाज सुनकर झपटते हुए वो कमरे से निकला। अपने रूम के दरवाजे को बहुत ही धीरे से खोला, बिना कोई शोर किए हुए, और बिना किसी लाइट का स्विच ओन किए हुए वो किचेन के दरवाजे से बाहर निकला और कुर्सी जिसे उसने पहले से वहां रखा हुआ था उसपर चढ़कर ए.सी. के पास देखने गया अपने पिता के कमरे में।
उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं, जो नजारा उसकी आँखों ने अंदर देखा। नेहा, उसकी भाभी बिल्कुल नंगी थी, उसके पिता के पास उसके बिस्तर पर, उसकी नाइटी अलमारी पर लटकी हुई थी और नेहा अपने ससुर का लण्ड चूस रही थी, जबकी ससुर पीठ पर लेटा हुआ था, और वो भी नंगा था। नेहा अपने हाथ में ससुर के मोटे लण्ड को थामे जमके चूस रही थी और एकाध बार अपनी जीभ से चाट रही थी, फिर चूसती जा रही थी। बूढा अपनी कमर को ऊपर-नीचे करते हए हौले-हौले नेहा के मुँह में जैसे अंदर-बाहर कर रहा था।
वो दृश्य देखकर प्रवींद्र को गरम और ठंडा दोनों एक साथ लगा। वो सोचने लगा की इतने दिनों से वो नेहा को पाने की कोशिश कर रहा है और नेहा सती-सवित्री बन रही थी और यहाँ अपने ससुर के साथ यह सब कर रही है? 'यह सब कबसे चल रहा है?' प्रवींद्र ने सोचा। पहली बार कब हुआ था? उसके पिता को कैसे नेहा मिल गई?
और रवींद्र.. क्या उसको पता भी है? अगर वो अचानक उठ गया तो क्या होगा? भाभी ने कैसे इतना बड़ा रिस्क ले लिया? इतनी हिम्मत कैसे हुई उसे? यह सब सोचते हुए प्रवींद्र का सर चकराने लगा।
फिर अंदर देखा तो नेहा अपनी पीठ पर लेटी हुई थी और उसका पिता नेहा की चूत को चूस रहा था। नेहा अपने ससुर के सर को हाथों में दबाए हुए बिस्तर पर अपने जिश्म को रगड़ रही थी। उसका खूबसूरत जवान नंगा जिश्म उस वक्त ससुर के कब्जे में था। फिर जल्द ही ससुर ऊपर गया और अपने मजबूत हाथों में नेहा की जवान चूचियों को मसलते हुए उसके खड़े निपल्स पर अपनी जीभ फेरने लगा, 18 साल की जवान बहू के निपल्स।