hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
अजय और चम्पा किसी मनोहर सपने में खोए से झरने के किनारे गीले रेत में लेटे हुए थे ,एक दूसरे के जिस्म को सहला रहे थे मानो दुनिया में बस यही एक चीज है जो उनके लिये हो..
लेकिन सपना तो आखिर सपना ही होता है ,कभी ना कभी तो उसे टूटना ही होता है ,
दोनो के जिस्म अभी भी पानी में थोड़े डूबे हुए थे और थोड़े बाहर ,,अजय के तेज धक्के के कारण वो फिसलते हुए पानी में आ गए थे …
दोपहर का समय था और धूप की तेजी अब बदन को जलाने लगी थी ,अजय चम्पा को उठाकर एक पेड़ के नीचे ले आया साथ ही अपने कपड़ो को भी ,ऐसे तो चम्पा बदन में एक ही कपड़ा पहनती थी वो उसकी कुछ मीटर की साड़ी ..
अब अजय चम्पा की गोद में लेटा हुआ था और चम्पा उसके बालो को सहला रही थी ….दोनो ही किसी दुनिया में खोए हुए थे की अजय बोल पड़ा ..
“चम्पा आखिर ऐसा क्या हुआ था मोंगरा एक डाकू बन गई और तुम यंहा आ गई “
उसकी बात सुनकर चम्पा थोड़े देर के लिए चुप हो गई …
और अजय के बालो में उंगलियां फसाये सहलाती रही ,अजय के गालो में उसके आंखों का पानी आ टपका ,अजय उठ खड़ा हुआ और चम्पा के गालो को दोनो हाथो से पकड़ लिया और उसके गालो में अपने होठ लगा कर उसके आंखों से झरते हुए खारे पानी को अपने होठो से अंदर कर लिया …
“मेरी जान अगर तुम्हे इस बारे में बात नही करना है तो मैं तुमसे कुछ भी नही पूछूंगा “
अजय ने गंभीरता से कहा जिससे चम्पा के होठो में भी एक मुस्कान आ गई और वो उससे लिपट गई ..
“क्या बताऊँ यही तो समझ नही आता ,ठाकुर की ज्यादतियों के बारे में बतलाऊ या फिर मोंगरा के जिस्म की भूख के बारे में,या मेरे पिता के बदले के बारे में या मेरी माँ की फूटी हुई किस्मत के बारे में क्या क्या बतलाऊ तुम्हे कुछ समझ नही आता ……”
इतना कह कर चम्पा तो चुप हो गई लेकिन अजय को जैसे एक बहुत ही बड़ा शॉक लग गया ,ये चम्पा क्या कह रही थी ..
वो चम्पा की आंखों में झांकने लगा
“मुझे सब कुछ ही जानना है …..”
इस बार चम्पा अजय के गोद में लेट गई और अजय उसके बालो को सहलाने लगा ..
चम्पा ने बोलना शुरू किया
चम्पा की जुबानी आगे की कहानी
ठाकुर के आतंक की सीमा बढ़ने लगी थी वो हमारे गांव और आसपास के गांव की बहु बेटियों को अपने हवस का शिकार बनाने पर तुला हुआ था ,पुलिस भी उसके साथ थी वो ज्यादती पर उतर आया था तभी मेरे पिता ने ठाकुर के खिलाफ हथियार उठा लिया ..
मेरे पिता गांव के सरपंच के बेटे थे और बहुत ही बहादुर और गुस्सेल थे उनका नाम था कालिया जो की बाद में कालिया डाकू के नाम से प्रसिद्ध हुए …
वो जब गांव छोड़कर जंगलों में गए तब उनकी नई नई शादी हुई थी,मेरी माँ देखने में बहुत ही सुंदर थी पिता जी उससे बहुत प्यार करते थे लेकिन ठाकुर से विरोध करने पर उन्हें गांव छोड़कर जंगल में जाकर रहना पड़ा था ,वो वही से ठाकुर के खिलाफ साजिश रचा करते थे ,उन्होंने ठाकुर को फंसा दिया था उनका साथ कांस्टेबल तिवारी और डॉ चुतिया दे रहे थे……
फ़्लैशबैक स्टार्ट
कालिया के विद्रोह से ठाकुर की मानो रीढ़ ही टूट गई थी ,जो लोग उसके वफादार थे कालिया उन्हें ढूंढ ढूंढ कर मारता था ,ठाकुर बौखला गया था और कालिया के परिवार पर हमला करना चाहता था लेकिन कालिया को मानो पहले से पता था की वो उसके परिवार को निशाना बनाएगा इसलिए उसने अपने परिवार को अपने पास बुला लिया था ,लेकिन जंगल की भागादौड़ी और भयानक माहौल में वो अपने परिवार को नही रख सकता था,खासकर उसकी फूल सी पत्नी और बहन दोनो जवान लडकिया जिसे कालिया सबसे ज्यादा प्यार करता था लेकिन ये ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी थे, इनके इज्जत की रक्षा करना उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती भी थी ,वो उन्हें एक आदिवासी काबिले के सरदार के पास रख कर अपना काम किया करता था ,..
इधर
ठाकुर ने कई नए लोगो को अपने साथ शामिल करना शुरू कर दिया ताकि वो कालिया का मुकाबला कर सके और उसमे सबसे खास था परमिंदर ..
परमिंदर बहुत ही सुलझा हुआ व्यक्ति था जो की ताकत में किसी से कम नही था ,वो ठाकुर के एक दोस्त के पास काम किया करता था वो शादीशुदा था और उसका एक बेटा भी था जिसका नाम बलवीर था (जो बाद में मोंगरा के गिरोह में जा मिला ) परमिंदर के पास ताकत के साथ साथ दिमाग भी तेज था इसलिए ठाकुर उसे पसंद करने लगा था ,परमिंदर की सूझ बुझ ने ठाकुर को कारोबार में बहुत फायदा पहुचाया था लेकिन उसकी असली परेशानी थी कालिया ……
“ठाकुर साहब मेरी बात मानो तो कालिया के बारे में सोचना छोड़कर आप उसके बीवी और बहन को ढूंढो “
परमिंदर ठाकुर के लिए जाम बना रहा था ,
“लेकिन कैसे साले ने ना जाने कहा उन्हें छिपा कर रखा है मिलती ही नही “
“तो कोई मुखबिर कालिया के गिरोह में क्यो नही भेज देते आप ऐसे लोगो की कमी तो नही जो पैसे के लिए अपने गांव से दगा करेंगे “
ठाकुर ने एक नजर परमिंदर की ओर देखा
“तुम्हे क्या लगता है की मैं गांव वालो को तकलीफ देता हु “
परमिंदर जोरो से हँस पड़ा
“मैं स्वामिभक्त हु ठाकुर साहब जो बोलोगे करूंगा चाहे वो सही हो या गलत लेकिन मुझे पता है की कालिया क्यो डाकू बना है ,आप किसी डाकू से नही लड़ रहे हो आप अपने अहंकार से पैदा हुए हैवान के कारण मिले श्राप से लड़ रहे हो …”
परमिंदर की बात सुनकर ठाकुर कुछ देर के लिये बस उसे देखता रहा लेकिन कुछ भी ना कह सका क्योकि वो जानता था की परमिंदर सही कह रहा है और साथ ही ये भी जानता था की उससे ज्यादा खुलकर कहने वाला और सही सलाह देने वाला साहसी आदमी उसे नही मिलेगा ….
परमिंदर की सलाह मानकर ठाकुर ने एक आदमी ढूंढ ही लिया और कालिया के गिरोह में उसे शामिल भी करवा दिया ..
और वही हुआ जो की ठाकुर चाहता था कालिया की कमजोरी का पता ठाकुर को चल गया था ………...
लेकिन सपना तो आखिर सपना ही होता है ,कभी ना कभी तो उसे टूटना ही होता है ,
दोनो के जिस्म अभी भी पानी में थोड़े डूबे हुए थे और थोड़े बाहर ,,अजय के तेज धक्के के कारण वो फिसलते हुए पानी में आ गए थे …
दोपहर का समय था और धूप की तेजी अब बदन को जलाने लगी थी ,अजय चम्पा को उठाकर एक पेड़ के नीचे ले आया साथ ही अपने कपड़ो को भी ,ऐसे तो चम्पा बदन में एक ही कपड़ा पहनती थी वो उसकी कुछ मीटर की साड़ी ..
अब अजय चम्पा की गोद में लेटा हुआ था और चम्पा उसके बालो को सहला रही थी ….दोनो ही किसी दुनिया में खोए हुए थे की अजय बोल पड़ा ..
“चम्पा आखिर ऐसा क्या हुआ था मोंगरा एक डाकू बन गई और तुम यंहा आ गई “
उसकी बात सुनकर चम्पा थोड़े देर के लिए चुप हो गई …
और अजय के बालो में उंगलियां फसाये सहलाती रही ,अजय के गालो में उसके आंखों का पानी आ टपका ,अजय उठ खड़ा हुआ और चम्पा के गालो को दोनो हाथो से पकड़ लिया और उसके गालो में अपने होठ लगा कर उसके आंखों से झरते हुए खारे पानी को अपने होठो से अंदर कर लिया …
“मेरी जान अगर तुम्हे इस बारे में बात नही करना है तो मैं तुमसे कुछ भी नही पूछूंगा “
अजय ने गंभीरता से कहा जिससे चम्पा के होठो में भी एक मुस्कान आ गई और वो उससे लिपट गई ..
“क्या बताऊँ यही तो समझ नही आता ,ठाकुर की ज्यादतियों के बारे में बतलाऊ या फिर मोंगरा के जिस्म की भूख के बारे में,या मेरे पिता के बदले के बारे में या मेरी माँ की फूटी हुई किस्मत के बारे में क्या क्या बतलाऊ तुम्हे कुछ समझ नही आता ……”
इतना कह कर चम्पा तो चुप हो गई लेकिन अजय को जैसे एक बहुत ही बड़ा शॉक लग गया ,ये चम्पा क्या कह रही थी ..
वो चम्पा की आंखों में झांकने लगा
“मुझे सब कुछ ही जानना है …..”
इस बार चम्पा अजय के गोद में लेट गई और अजय उसके बालो को सहलाने लगा ..
चम्पा ने बोलना शुरू किया
चम्पा की जुबानी आगे की कहानी
ठाकुर के आतंक की सीमा बढ़ने लगी थी वो हमारे गांव और आसपास के गांव की बहु बेटियों को अपने हवस का शिकार बनाने पर तुला हुआ था ,पुलिस भी उसके साथ थी वो ज्यादती पर उतर आया था तभी मेरे पिता ने ठाकुर के खिलाफ हथियार उठा लिया ..
मेरे पिता गांव के सरपंच के बेटे थे और बहुत ही बहादुर और गुस्सेल थे उनका नाम था कालिया जो की बाद में कालिया डाकू के नाम से प्रसिद्ध हुए …
वो जब गांव छोड़कर जंगलों में गए तब उनकी नई नई शादी हुई थी,मेरी माँ देखने में बहुत ही सुंदर थी पिता जी उससे बहुत प्यार करते थे लेकिन ठाकुर से विरोध करने पर उन्हें गांव छोड़कर जंगल में जाकर रहना पड़ा था ,वो वही से ठाकुर के खिलाफ साजिश रचा करते थे ,उन्होंने ठाकुर को फंसा दिया था उनका साथ कांस्टेबल तिवारी और डॉ चुतिया दे रहे थे……
फ़्लैशबैक स्टार्ट
कालिया के विद्रोह से ठाकुर की मानो रीढ़ ही टूट गई थी ,जो लोग उसके वफादार थे कालिया उन्हें ढूंढ ढूंढ कर मारता था ,ठाकुर बौखला गया था और कालिया के परिवार पर हमला करना चाहता था लेकिन कालिया को मानो पहले से पता था की वो उसके परिवार को निशाना बनाएगा इसलिए उसने अपने परिवार को अपने पास बुला लिया था ,लेकिन जंगल की भागादौड़ी और भयानक माहौल में वो अपने परिवार को नही रख सकता था,खासकर उसकी फूल सी पत्नी और बहन दोनो जवान लडकिया जिसे कालिया सबसे ज्यादा प्यार करता था लेकिन ये ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी थे, इनके इज्जत की रक्षा करना उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती भी थी ,वो उन्हें एक आदिवासी काबिले के सरदार के पास रख कर अपना काम किया करता था ,..
इधर
ठाकुर ने कई नए लोगो को अपने साथ शामिल करना शुरू कर दिया ताकि वो कालिया का मुकाबला कर सके और उसमे सबसे खास था परमिंदर ..
परमिंदर बहुत ही सुलझा हुआ व्यक्ति था जो की ताकत में किसी से कम नही था ,वो ठाकुर के एक दोस्त के पास काम किया करता था वो शादीशुदा था और उसका एक बेटा भी था जिसका नाम बलवीर था (जो बाद में मोंगरा के गिरोह में जा मिला ) परमिंदर के पास ताकत के साथ साथ दिमाग भी तेज था इसलिए ठाकुर उसे पसंद करने लगा था ,परमिंदर की सूझ बुझ ने ठाकुर को कारोबार में बहुत फायदा पहुचाया था लेकिन उसकी असली परेशानी थी कालिया ……
“ठाकुर साहब मेरी बात मानो तो कालिया के बारे में सोचना छोड़कर आप उसके बीवी और बहन को ढूंढो “
परमिंदर ठाकुर के लिए जाम बना रहा था ,
“लेकिन कैसे साले ने ना जाने कहा उन्हें छिपा कर रखा है मिलती ही नही “
“तो कोई मुखबिर कालिया के गिरोह में क्यो नही भेज देते आप ऐसे लोगो की कमी तो नही जो पैसे के लिए अपने गांव से दगा करेंगे “
ठाकुर ने एक नजर परमिंदर की ओर देखा
“तुम्हे क्या लगता है की मैं गांव वालो को तकलीफ देता हु “
परमिंदर जोरो से हँस पड़ा
“मैं स्वामिभक्त हु ठाकुर साहब जो बोलोगे करूंगा चाहे वो सही हो या गलत लेकिन मुझे पता है की कालिया क्यो डाकू बना है ,आप किसी डाकू से नही लड़ रहे हो आप अपने अहंकार से पैदा हुए हैवान के कारण मिले श्राप से लड़ रहे हो …”
परमिंदर की बात सुनकर ठाकुर कुछ देर के लिये बस उसे देखता रहा लेकिन कुछ भी ना कह सका क्योकि वो जानता था की परमिंदर सही कह रहा है और साथ ही ये भी जानता था की उससे ज्यादा खुलकर कहने वाला और सही सलाह देने वाला साहसी आदमी उसे नही मिलेगा ….
परमिंदर की सलाह मानकर ठाकुर ने एक आदमी ढूंढ ही लिया और कालिया के गिरोह में उसे शामिल भी करवा दिया ..
और वही हुआ जो की ठाकुर चाहता था कालिया की कमजोरी का पता ठाकुर को चल गया था ………...