kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून - Page 4 - SexBaba
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kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून

रंभा बोली, "अर्रे भाभी उससे तो और उभर जाएँगे." भाभी ने उसके उभारो को दबा के कहा, "लगता है तूने दब्वाना शुरू कर दिया है, इसीलिए इन जोबनों पे इतने कस के उभर आ रहे है." एकदम खुल के मौज मस्ती छाइ थी, क्योंकि सिर्फ़ लड़किया थी. कई ने तो जोड़े बना के खूब खुल के और तभी ज्योत्सना और रश्मि ने आके मुझे कान मे बताया, कि दो तीन लड़के एक पर्दे के पीछे से छिप के देख रहे है. मेने छुप के देखा तो मेरा कज़िन संजय, और उसके साथ मोनू और सोनू थे. तीनो ही हमारे हम उम्र थे, 2-3 साल बड़े. मे कुछ बोलती उसके पहले भाभी ने मेरी सहेलियों के कान मे कुछ कहा, और वो दोनो मुस्कराते हुए दबे पाँव बढ़ गई. भाभी बोली अर्रे यार वो कौन से बाहर के है. घर के लड़के है. बुला लो उनको भी. तब तक रश्मि और मेरी बाकी सहेलिया उन्हे अंदर ले आई. वे बेचारे सर झुकाए शरमाये, खड़े थे. पर रश्मि उन्हे इतनी आसानी से छोड़ने वाली थोड़े ही थी,

"ए कुड़ी के भाई, ज़रा नाच के दिखा तू इतना ना शर्मा" नाचते हुए उसने संजय को चॅलेंज किया, थोड़ी देर तक तो शरमाता रहा पर भाभियों के उकसाने पे वो भी मैदान मे आ गया. फिर तो उसने रश्मि को पकड़ के जो नाचा. उसके बाद तो मेरे कज़िन्स की चाँदी हो गयी. संजय ने सावन भादों का 'कान मे झुमका, चाल मे ठुमका, बदन मे चोटी लटके वाले गाने पे रश्मि को खूब नचाया और वो भी साथ मे. सोनू ने भी ज्योत्सना को रफ़्ता रफ़्ता आँख मेरी लड़ी है के साथ और सिर्फ़ इतना ही नही, लिम्का के साथ जिन और कोला के साथ थोड़ा रम मिला के भी( मुझे बाद मे पता चला कि वो प्लानिंग असल मे भाभी की बनाई थी.)..और उसके बाद तो रही सही झिझक भी जो पार्टी शाम को 8-9 बजे तक ख़तम होने वाली थी वो 10 बजे के बाद ख़तम हुई. उसके बाद चाट पार्टी थी. मम्मी ने कहा तुम लोग रात मे रुक जाओ अब घर के अंदर गाने होंगे. रश्मि बोली, मम्मी घर पे लोग परेशान होंगे भाभी ने हंस के संजय के कान खींचते हुए कहा ये किस मर्ज की दवा है, इतना डॅन्स किया है. ये सब जाके अभी सबके घर पे खबर देंगे. उस दिन घर मे गाने मे थोड़ी ही देर मे शादी के गाने, सीधे गालियो पे पहुँच गये और वो भी पूरी तरह नोन-वेज और सिर्फ़ गालियाँ ही नही नाच भी. हां आज परदा पूरा था पहले काम वालियों ने शुरू किया. और नाच क्या पूरा आक्षन प्ले - अगर मेने कोई भी सेक्स मनुअल नही पढ़ा होता या ब्लू फिल्म नही देखी होती तब भी सब कुछ मालूम हो जाता और सिर्फ़ काम वालियाँ ही नही, चाची और मौसीयों ने बुआ जी को पकड़ा. फिर मेरी और रीमा की सहेलियों को ..सुहाग रात के पहले सुहाग रात मेरी भाभियों ने करवा दी और उसमे बसंती सबसे आगे थी.

अगला दिन शादी के ठीक पहले का दिन आराम का था. कौन्तेसि भाभी. उन्होने रस्मों की साइट इस तरह तय करवाई थी की ज़्यादातर पहले ही हो चुकी थी. सिर्फ़ कुछ ही उस दिन और शादी वाले दिन के लिए बची थी. दिन मे उन्होने बसंती को लगाया कि वो मेरी इस तरह मालिश कर दे कि मेरी थकान निकल जाय और मे सो जाउ .रात मे भी, ज़बरदस्ती उन्होने मुझे 10 बजे मेरे कमरे मे ले जा के सुला दिया और कहा कि,आज सो ले. आज के बाद सबसे मुश्किल से तुम्हे जो चीज़ नेसीब होगी वो सोना ही होगी. शादी वाले दिन भी हाला कि बहुत काम था, और बहुत सारा समय ब्यूटी पार्लर वालीयो ने ले लिया,लेकिन भाभी ने इंश्योर किया था कि मेरे कमरे मे सिर्फ़ मेरी कुछ सहेलिया ही जाएँगी. दिन मे भी मेने मौका पा के सो लिया और खूब आराम किया. इसका नतीजा हुआ कि शाम को मे एकदम ताज़ा दम थी. और जैसे ही बारात आई मुझे पुरानी रस्म के तहत मेरी सहेलिया, भाभीया अक्षत फेंकने के लिए ले आई और मेरा निशाना सीधे राजीव पे पड़ा.
 
जायमाला के समय चूड़ीदार और सुनेहरी शेरवानी मे वो बहुत ही हैडसम लग रहे थे ( और उनका कहना था, सुर्ख 24 कली के लहँगे मे मे भी बहुत हसीन लग रही थी. मेरे जोड़े मे जो सोने के तारों का काम था वो उनकी शेरवानी से मैंच कर रहा था). मेरी सहेलियों को सिर्फ़ एक प्राब्लम लग रही थी,और वो थी उनकी छोटी बेहन और मेरी छोटी ननद, अंजलि. वो उनके साथ स्टैम्प टिकिट की तरह चिपकी थी. और वो न तो खुल के अपने जीजा से बात कर पा रही थी ना उन्हे बना पा रही थी.तय हुआ कि गलियों मे सबसे ज़्यादा दूरगत आज उसी की की जाएगी. पर सवाल था, अभी क्या करे हर वार की तरह भाभी ने ही रास्ता निकाला. उन्होने संजय और सोनू को बुलाया और कहा की इत्ता मस्त माल शादी मे आया है और तुम लोग टाइम वेस्ट कर रहे हो. रीमा अंजलि को बुला के एक कोने मे ले आई कि उसे कोई बुला रही है और वहाँ उसे संजय, सोनू और उसके दोस्तों ने घेर लिया और उसके लाख कोशिश करने पे भी घंटे भर घेरे रहे, छेड़ते रहे.

जब शादी के लिए 'वो' आए तो सबसे पहले 'स्वागत' रश्मि और ज्योत्सना ने ही किया, गालियो से,

"बाराती साले आए गये छैल चिकनिया"

"दूल्हा साला उल्लू का पठ्ठा है" तब तक रीमा भी मैदान मे आ गई और जो हमारे यहाँ क़ी 'पारंपरिक' परम्परा थी..

"स्वागत मे गाली सूनाओ अर्रे स्वागत मे, अर्रे दूल्हे के तन पे शर्ट नही है उसको तो चोली अर्रे ब्रा और चोली पहनाओ.

"स्वागत मे गाली सूनाओ अर्रे स्वागत मे, अर्रे दूल्हे के संग मे रंडी नही है अर्रे दूल्हे की बहने अर्रे अंजलि छिनारो को नचाओ." फिर भाभी भी मैदान मे आ गई और फिर तो 'उनकी' तारीफ मे एक से बढ़ के एक " मूँछो वाले समधी का प्यारा बन्ना हरियाला बना, बन्ने के सर पे सेहरा सोहे लोग कहे मलिया का जना,

"मूँछो वाले समधी का प्यारा बन्ना हरियाला बने, अर्रे धोबी की गली होके आया रे बन्ने, अर्रे लोग कहे गदहे का जना."

अंजलि, उसकी बहने कुछ ज़्यादा ही चहक रहे थे, इसलिए की रीमा और उसकी सहेलियों का जूता चुराने का प्रोग्राम फेल हो गया था. अंजलि ने खुद जूते उतारे और अपनी स्कर्ट मे छिपा के, सब लोगों को चिढ़ाते हुए, दिखा के बैठ गयी. अब वहाँ से कौन ले आए. फिर गालियो के बीच अंजलि और उनकी बहनो ने कहा हम लोग भी गाएँगे, और गाना शुरू कर दिया. थोड़ी देर बाद भाभी बोली कि लगता है इन लोगों को मिर्च ज़्यादा पसंद है और वापस ढोलक लेके..गाँव की जो मेरी भाभीया थी उनके साथ

" चिट्ठि आय गयी सहर बानेरस से चिट्ठी आय गई.

अर्रे दूल्हा बहनेचोद चिट्ठी पढ़ाला कि ना चिट्ठी बन्चला कि ना,

तोरी बहने छिनार, अर्रे अंजलि छिनार, चूत मरावे,

चुचि दबवावे अर्रे चिट्ठी पढ़ाला कि ना चिट्ठी बन्चला कि ना,"

"अर्रे छम छम बटुआ, रतन जड़ा केकरे केकरे घर जाय कि ना

ई तो जाए दूल्हे के घर जिनकी बहने, बड़ी गोरी कि ना..

अर्रे गोरी चुदावे, अर्रे अंजलि चुदावे दौड़े दौड़े भैया भातरण की चोरी रे ना."

और फिर उनके घर की सारी औरतों के नाम से किसी को नही छोड़ा गया. बाराती भी खूब मज़े ले रहे थे. एक बार तो उनके मामा का नाम छूट गया तो उनके चाचा ने बताया लेकिन सबसे ज़्यादा गालियाँ अंजलि को ही पड़ी. और बीच मे एक बार पंडित ने मना किया तो बसंती ने उनके नाम से भी लेकिन जूते वाली बात बन नही पा रही थी. भाभी ने संजय को पानी ले के बारातियों के पास भेजा और जब वो अंजलि के पास पहुँचा तो उसके लाख मना करने पे भी उसने पानी थामने की कोशिश नही की.उसी मे पानी गिर गया.वो बेचारी चिहुकी पर रीमा और उसकी सहेलिया पहले से ही तैयार थी.वो तुरंत जूता ले के चंपत हो गई.

शादी के बाद कुहबार की रसम थी. कुहबार के दरवाजा पे भाभीया, मेरी बहने और सहेलिया दरवाजा रोक के खड़ी थी, शर्त थी गाना सुनाने की और 1000 रूपरे, जूते की. 'उनके' साथ, उनके दोस्त भाई, बहनें भाभीया. अंजलि कह रही थी जूता चुराया नही गया फाउल तरीके से लिया गया है इसलिए नेग नही बनता. वो बेचारे खड़े. खैर. मेरे लिए तो संजय एक कुर्सी ले आया और मे आराम से बैठ गयी. एकदम डेडलॉक की स्तिथि थी.
 
बहुत देर तक वो लोग खड़े रहे. किसी औरत ने कहा,"खड़े रहने दो, देखो कितनी देर खड़े रहते है."

"अर्रे आप लोगों को नही मालूम, हम लोग कितनी देर तक खड़े रह सकते है."

द्विअर्थि ढंग से उनका एक दोस्त बोला.

"अर्रे खड़े रहो, खड़े रहो बाहर. असली बात तो अंदर घुसने की है." उसी अंदाज़ मे आँख नचाके रश्मि ने जवाब दिया.

"अर्रे आप को नही मालूम, भैया, धक्के मार के अंदर घुस जाएँगे."

मुस्करा के अंजलि भी उसी अंदाज़ मे बोली.

"अर्रे बहुत अंदाज़ है इनको अपने भैया के धक्को की ताक़त का. लगता है बहुत धक्के खाए है अपने भैया से." रीमा भी मैदान मे आ गई. किसी ने कहा कुछ कम करो 1000 बहुत ज़्यादा है,किसी और ने बीच बचाव की कोशिश की. किसी ने कहा कि लगता है, इनेके पास है नही उधार कर दो तो मेरी एक भाभी, अंजलि और उनकी और बहनो की ओर, इशारा कर के बोली,

"अर्रे पैसो की क्या कमी है, ये टकसाल तो सामने दिख रही है. बस एक रात कलिन गंज ( उनके शहेर की रेड लाइट एरिया) मे बैठा दें, पैसो की बौछार हो जाएगी, या यही मान जाए मेरे देवरो के लिए, एक रात का मे ही दे दूँगी."

क्रमशः……………………….

शादी सुहागरात और हनीमून--10
 
शादी सुहागरात और हनीमून--11

गतान्क से आगे…………………………………..

ज़्यादातर बड़े बुजुर्ग तो शादी ख़तम होने के बाद बाहर चले गये थे, लेकिन एक कोई शायद 'उनके' चाचा थे. उन्होने सबको हड़काया, और कहा कि जूते का तो साली का नेग होता ही है, और उन्होने कैसे लिया इससे कोई फ़र्क थोड़े ही पढ़ता है, और 1000 रूपरे निकाल के रीमा को पकड़ा दिए. एक साथ ही सारी लड़कियाँ, मेरी बहनें सहेलिया, भाभीया, बोल उठीं,हिप्प हिप्प हुर्रे, लड़की वालों की. अब बची बात गाना गाने की तो उनकी ओर से सारे लड़के लड़कियाँ एक साथ गाने लगे,

"ले जाएँगे, ले जाएँगे दिल वाले दुलहानिया ले जाएँगे"

रीमा, रश्मि सब एक साथ बोली नही नही हमे दूल्हे का गाना सुनना है. पर उन साबो ने गाना पूरा किया ही.

अंजलि बोली, अच्छा भैया कुछ भी सुना दीजिए तो उनका मूह खुला,

"वीर तुम बढ़े चलो, सामने पहाड़ हो,सिंह की दहाड़ हो, वीर तुम रूको नही, वीर तुम झुको नही"

उन्होने सालियों और सलहजो की ओर देख के सुनाया. उनका मतलब साफ था लेकिन उनके एक जीजा ने और सॉफ कर दिया,

"देखा ये सिंह झुकने वाला नही है, सीधे गुफा मे घुस जाएगा. बच के रहने तुम लोग."

"अर्रे यहाँ बचना कौन चाहता है," मेरी सहेली ज्योत्सना बोली, "लेकिन जो सिंह के साथ गीदड़ है ना उनकी आने की मना ही है."

मेरी चाची बोली. " अर्रे लड़कियो पैसा तो तुम लोगों को मिल गया है, रहा गाना तो एक बार दूल्हे को कुहबार मे आने तो दो, ये गाना क्या, अपनी मा बहनो का सब हॉल सुर मे सुनाएँगे" और सब लोगों ने हमे अंदर आने दिया लेकिन उन लोगों की चाल भाभियों ने समझ रखी थी.उनकी बहने और भाभीया उन्हे कुहबार मे भी अकेला नही छोड़ना चाहते थे. इसलिए भाभी ने पहले मुझे अंदर किया और सब लड़कियो ने बस उतना ही रास्ता छोड़ा जिससे वो रगड़ते हुए अंदर जाएँ और उनके अंदर घुसते ही दरवाजा बंद कर लिया. बेचारी उनकी भाभीया, बहने और बाकी सब औरते ताकते ही रह गये.

"हे छिनारो के पूत, रंडी के जन्मे, मदर्चोद, अपनी बहनो के भन्डुवे.

वो जो तुम्हारी छिनार, भोसड़ी वाली, रंडी, चूत मरानी, चुदवासि बहने भाभीया, चाचिया सब थी ना, अब वो बाहर रह गयी है. अब इस कुहबार मे कोई तुम्हे बचाने नही आएगा. अब तुम हो तुम्हारी ससुराल वालियाँ. इस लिए जो कुछ कहा जाए चुप चाप करो." मेरी मामी ने कुहबार मे उनका जोरदार स्वागत किया.

और वास्तव मे कुहबार मे 14 से 44 तक की 25-30 लड़कियाँ, औरते (भाभी की भाषा मे कहु तो, 30बी से ले के 38डी तक की) और सब की सब एक दम मूड मे, जिनमे आधे से ज़्यादा उनकी सालिया (मेरी सहेलिया, मेरी बहने और उनकी सहेलिया), सलहजे और बाकी उनकी सास (मम्मी, मेरी चाचिया, मामिया, बुआ, मौसीया और मम्मी की सहेलिया) लगती थी लेकिन जो जोश मे लड़कियो से भी वो दो हाथ आगे थी.

वो पीढ़े पे बैठने वाले ही थे कि उन्होने झुक के उस पे रखा कुशन हटाया.

उसके नीचे ढेर सारे पापड रखे थे. उसे हटा के वो बैठ गये. सब लोगो ने चुप चाप प्रशंसा भर निगाह से उन्हे देखा ( अगर वो ऐसे बैठ जाते और पापड टूट करते तो मज़ाक का एक मौका मिलता). उसके बाद मेरी भाभियों ने उनसे कुल देवी के आगे सिर झुकानेको कहा. एक मूर्ति सी पर्दे के अंदर रखी गई थी. उन्होने कहा कि नही पहले मे पूजा करू तो वो करेंगे.

मौसी ने कहा कि लगता है तुम्हे सिखाया गया है, कि हर चीज़ खोल के देखना. वो हंस के बोले एकदम. भाभी ने कहा ठीक है हम आपकी दोनो शर्ते मान लेते है, लेकिन हमे दुख है कि आप को हम पे विश्वास नही. पहले मेने सर झुकाया और फिर इन्होने. भाभी ने कपड़ा उठाया तो वो वास्तव मे कुल देवी की मूर्ति थी. ऐसे तीन मूर्तिया थी. फिर दूसरी पे भी मेने सर झुकाया और उसके बाद इन्होने. जब वो झुके तो मेरी चाची ने आके पीछे से इनेके नितंबो पे हाथ फेर के कहा,

"लगता है, इसको झुकने से डर लगता है. बचपन मे कोई हादसा तो नही हो गया था, कि ये झुके हो और पीछे से किसी ने गांद मार ली हो." मेरी मामी और मौसीया भी मैदान मे आ गयी.

मौसी भी हाथ फिरा के बोली,

"अर्रे आपको मालूम नही क्या वो हादसा. जिसके कारण वो जो इसकी छिनाल बेहन है, अंजलि इसके साथ चिपकी रहती है, 'बता दूं बुरा तो नही मनोगे. उनसे पूछते हुए वो चालू रही, " हुआ ये. ये बात सच है कि एक लौंडेबाज इनके पीछे पड़ गया था, और वो तो इनेकी गांद मार ही लेता पर उसका मोटा हथियार देख के इसकी हालत खराब हो गयी. तब तक अंजलि वहाँ पहुँची और उसने कहा कि मेरे भैया के बदले मेरी मार लो. तो उसने बोला कि ठीक है लेकिन मे आगे और पीछे दोनो ओर की लूँगा. वो मान गई इसी लिए बस ये उस की"
 
उन की बात काट के मेरी मामी बोली,

"अर्रे तुम कहाँ उस के चक्कर मे पड़ गये.अहसान की कोई बात नही. ये कहो कि मोटा लौंडा देख के उस छिनाल की चूत पनिया गयी होगी, इसलिए उस चुदवासि ने चुदवा लिया." मम्मी ने बहुत देर तक अपने को रोका था लेकिन वो अब रोक नही पाई. उनके बाल सहलाते हुए वो बोली,

"अर्रे यहाँ डरने की कोई बात नही है. यहाँ हम सब औरते ही है, तुम्हारे पिछवाड़े पे कोई ख़तरा नही है."

और तब तक भाभी ने कपड़ा उठाया तो वो भी मूर्ति थी. अब इनको विश्वास हो गया था. तीसरी मूर्ति पे हम साथ साथ सर झुका रहे थी कि भाभी ने मुझे 'नही' का इशारा किया और मे पीछे हट गयी. और जैसे ही उन्होने सर झुकाया, भाभियों ने कपड़ा हटा दिया. हस्ते हस्ते सब की बुरी हालत हो गई. उसमे मेरी सारी चप्पलो सेंडलों का ढेर था, इस्तेमाल की हुई बाथ रूम स्लिपर से, हाई हिल तक. और साथ मे रीमा, मम्मी और भाभी की भी. भाभी बोली,

"ठीक से पूजा कर लीजिए, ये आपकी असली कुल देवी है. ये सब आपकी बीबी की है और ये साली, सलहज और सास की.आज से इस घर की औरतों की चप्पलो को सर लग के, छू के." किसी ने बोला अर्रे बीबी के पैर भी छू लो चप्पल तो छू ही लिया, तो कोई बोला अर्रे वो तो कल रात से रात भर सर लगाना पड़ेगा, तो किसी ने कहा अर्रे सिर्फ़ रात मे क्यों दिन मे भी. (उसका मतलब मुझे सुहाग रात के बाद समझ मे आया). रश्मि ने रीमा से कहा कहा अर्रे जीजू ने तेरी चप्पल छुई है ज़रा आशीर्वाद तो दे दे.रीमा से पहले भाभी ने आशीर्वाद दे दिया,

"सदा सुहागिन रहो, दुधो नहाओ पुतो फलो." पीछे से मामी ने टुकड़ा लगाया,

"अर्रे तुम्हारे घर मे आज से ठीक 9 महीने बाद सोहर हो. अंजलि और तेरी जितनी बहनें यहाँ आई है, सबका यहाँ आना फले और सब ठीक 9 महीने बाद बच्चा जने, और तुम मामा कहलाओ.

भाभी ने वापस उन्हे लाकर पीढ़े पे बैठाया.

और उस के बाद तो सब एक साथ चालू हो गये. कसे टॉप, फ्राक, कुर्ते और चोली से लेके सारी और ब्लाउस मे सजी, छोटी लड़किया, किशोरिया, युवतियों से ले के बड़ी औरतों तक बल्कि सबसे ज़्यादा तो मेरी मम्मी, मामी, मौसीया, चाचिया मज़ाक, गालियाँ, उन्हे छूने, छेड़ने..लगता है जब कुहबार का दरवाजा बंद हुआ तो उनकी बहनो के साथ हमारे यहाँ की लड़कियो,औरतों की भी सब झिझक बाहर रह गई. रीमा और उसकी सहेलियों, रम्‍म्भा, नीरा और नीतू ने पीछे मोर्चा सम्हाला. उन्होने पहले उन्हे रिलेक्स करना के नाम पे, उनका कोट, टाई उतारी, शर्ट के भी बटन ढीले किए और नीतू ने तो बेल्ट तक उतार ली. और उसके बाद उनका दाया हाथ पीछे पकड़ के कब्ज़े मे कर लिया. और अपनी प्लानिंग के हिसाब से उन्होने नेल पोलिश, थोड़ी सी मेहंदी लगानी शुरू कर दी. दोनो साइड मे मेरी सहेलिया रश्मि, ज्योत्सना, और सब भाभीया थी और ठीक सामने मम्मी, मौसीया, चाची और बाकी सब औरते.

और अब मम्मी ने सवाल जवाब चालू किए,

"हां आज तुम्हारी मा के दूध का इम्तहान है, अगर तुमने अपनी मा का दूध पिया है याद है कैसा है उनका. अभी.. आजकल"

"अर्रे बचपन का क्या, हॉल मे भी चखा होगा. देखा होगा.बताओ ना कैसा है.साइज, रंग, देखने, छुने,पकड़ने मे कैसा है." मामी बोली " अर्रे ये बेचारा शर्मा रहा है, अर्रे हमसे पूछो ना खूब बड़ा बड़ा, गोरा, गदराया रसीला जोबन है, या इसके मामा से पूछो," मौसी कैसे चूकती.

"अर्रे मामा से क्यों. क्या इसकी अम्मी का इसके मामा से ..चक्कर ." चाची ने बन कर पूछा.

"अर्रे क्या तभी तो ये बचपन मे थोड़ा दुबला था, एक से वो दूध पीता था और दूसरा इसके मामा के मूह डाल कर वो चुसवाती थी.वैसे चूसने लायक तो अभी भी है और चुसवाती भी है. क्यों बोलो है ना. इसकी शकल अपनी ममेरी बेहन से इतनी क्यों मिलती है, इसी लिए कि ये दोनो " मौसी ने जवाब दिया.

"अर्रे तो क्या इनकी मा अपने भाई से.." चौंक के चाची ने पूछा.

"अर्रे तो क्या गड़बड़ है, दिल है आ गया होगा. लेकिन, अभी चेक हो जाएगा. उस को, क्या नाम है उसका अंजलि. हां उसको बुला के शकल का मेल करके देख लेते है." मम्मी बोली, और बसंती को तुरंत हुक्म दिया,

"बसंती जाओ और जाके तुरंत अंजलि को जिस हालत मे हो, जो भी कर रही हो, तुरंत पेश करो."

"अच्छा ये बताओ, समधन जी को बारात मे क्यों नही लाए, क्या ये डर तो नही था, कि कहीं तुम्हारे ससुराल के मर्दों का देख के उनका दिल ने डोल जाए. अगर ये था तो मे एक बात सॉफ कर दूं जाके उनसे कह देना, हम लोग एकदम बुरा नही मानेंगे.जो भी पसंद हो, बन्नी के पापा, चाचा, मामा, ताऊ, फूफा, मौसाया अगर सब पे दिल आ जाय ना तो चाहें तो सब के साथ. बारी बारी से या एक साथ, जैसे उनकी मर्ज़ी हो. आख़िर हमारी प्यारी समधन है" अब मम्मी फूल फार्म पे आ गयी थी " अर्रे नही बीबी जी, मामी बोली. आप क्या समझती है वो अपने समधियों को छोड़ेंगी. अर्रे ऐसा नही अभी बारात यहाँ आ गई है, तो वहाँ खुला मैदान ना, धोबी, कहार, पंडित..सब. लंबी लाइन लगी होगी नाडा तो बँधता ही नही होगा."

मामी ने जोड़ा.
 
तक तक मेरी छोटी मौसी सामने आई और उन्होने सबको चुप कराया और बोली,

"मे देख रही हूँ कि जबसे बेचारा दामाद आया है. अकेला देख के सब उसके पीछे पड़े हो. अर्रे उससे ठीक से बात करो, उसको खुश करो तो वो सबका फ़ायदा करा सकता है. बोल बेटा मेरा एक छोटा सा काम है कराएगा. मुझे एक चीज़ चाहिए तू चाहे तो मिल सकती है बोल."

पहली बार कुहबार मे कोई ऐसे बोल रहा था, उनकी ओर से. वो तुरंत बोल पड़े, हां हां मौसी जी बोलिए ना.

"देखो मेरे एक गाँव मे है पहलवान उनके कोई जोरू नही है. बड़े गबरू जवान, तगड़े. एक दिन वो तुम्हारे शहेर गये थे. तुम्हारे घर के पास से गुजर रहे थे तो उन्होने तुम्हारे घर तार पे सुखता तुम्हारी अम्मा का पेटिकोट देख लिया. बस तभी से वो मचल गये है. तुम चाहो तो सिफारिश लगा सकते हो उन्हे बस वो पेटिकोट के अंदर वाला चाहिए. बस एक बार."

और पूरा कुहबार ठहाकों से गूँज गया. और जैसे मेरी मम्मी, मामी, मौसी अपनी समधन के पीछे पड़ी थी वैसे ही, भाभीया और मेरी सहेलिया, उनकी बहनो के.. और बाकी लड़कियाँ उनके साज सिंगार मे. नीरा ने उनके बाल फिर से काढ़ के बीच मे एक खूब चौड़ी सी सीधी माग काढ़ दी थी तब तक मौसी ने एक सवाल दागा.

"अच्छा तुम बहुत तेज हो ये बताओ, तुम्हारी अम्मा के पेटिकोट मे क्या है."

बेचारे शर्मा गये क्या बोलते. लेकिन मेरी भाभी उनकी सहायता मे आगे आई,

"अच्छा मे हिंट देती हूँ, अब बताओ. तुम्हारी बेहन अंजलि की शलवार मे क्या है." अब उनकी चमकी. वो तुरंत बोले,

"नाडा"

और सब लोग एक साथ मम्मी से कहने लगे, भाई मान गये तुम्हारे दामाद को वास्तव मे तेज है. लेकिन मामी बोली, लगता है नाडा खोलने की बहुत प्रॅक्टीस की है, किसके साथ की है, अपने अम्मा के साथ या बहनो के साथ..."

"दोनो के साथ" मेरी सहेली रश्मि बोली और उनके सामने एक गठरी रखी और बोली,

"ये आपका असली इम्तहान है तीन मिनिट मे इस खोलना है.और अगर खोल दिया तो मान लूँगी आपको तीन मिनिट क्या, 15 मिनिट मे भी उसे खोलना टेढ़ा था.

उसमे पहली गाँठ मेने ही लगाई थी और मुझसे कहा गया था कि अगर ये गाँठ खुल गई तो समझो सुहाग रात के दिन तेरा नाडा भी आसानी से खुल गया.

मेने तो खूब कस के गाँठ बाँधी और उसके बाद मेरी सहेलियों, भाभियों और मामी ने, सात गाँठे और सब एक से एक टेढ़ी. उनका दाया हाथ पीछे वैसे ही लड़कियो के कब्ज़े मे था. रीमा ने कहा भी कि जीजू बाए हाथ से खोलना है."

और बाएँ हाथ से ही थोड़ी देर मे उन्होने पहली गाँठ खोल ली और दो मिनिट मे उन्होने चार गाँठे खोल ली, और सब लड़कियाँ चिल्लाने लगी 50 सेकेंड 40..सेकेंड लेकिन 10 सेकेंड रहते उन्होने बाए हाथ से ही आख़िरी गाँठ भी खोल ली.

और भाभी ने जिस तरह से मुझे मुस्करा के देखा उनका मतलब साफ था कि अब कल रात को तेरा नाडा बचने से रहा.

तब तक रीमा की किसी सहेली ने पीछे से माथे पे एक चौड़ी सी बिंदी भी लगा दी और खूब ढेर सारा सिंदूर भी उनकी चौड़ी माँग मे भर दिया. सब एक साथ बोली, 'जीजा जी सिंदूर दान हो गया'.

"अर्रे जिसने सिंदूर दान किया है वो सामने तो आए. "अब उनकी भी हिम्मत बढ़ गयी थी.

"और क्या, शादी के बाद सुहागरात भी तो होनी चाहिए. "भाभी अपने नेंदोई की ओर से बोली और फिर ननदो को छेड़ने का मौका वो क्यो जाने देती.

"मेने किया है, सिंदूर दान. "छोटे से कसे कसे तंग टॉप और स्कर्ट मे, अपनी आइ लॅशस लगी बड़ी बड़ी आँखो को मटकाती रीमा की सहेली रंभा बोली. भाभी ने धक्का देके उसे इनकी गोद मे बिठा दिया और बोली ये है आपकी छोटी साली.

"जीजू, पकड़ लो ना वरना मैं सरक जाउन्गि. "उसने और उकसाया. उन्होने कमर मे दोनो हाथ डाल दिए.

"अर्रे यहाँ नही यहाँ, कस के ठीक से पकडिए ने, "भाभी ने सीधे उनका हाथ उसके उभारो पे रख दिया. बेचारे शरमा के, हल्के से पकड़े रहे.

"अर्रे जीजू ज़रा कस के पकडिए ना, ऐसे हल्के से पकड़े है"रंभा ने खुद उन्हे उकसाया.

"अर्रे ये बेचारी सुहाग रात के लिए आई है तो क्या सुहाग रात मे मेरी ननद को ऐसे ही हल्के से पकडिएगा. अर्रे ज़रा कस के पकडिए, दबाइए. दिखाइए ना सुहाग रात मे कैसे दबाया जाता है. "भाभी अब खुल के जोश मे आ गयी थी.

"अर्रे भाभी, ये आपकी ननद का क्या दबाएँगे. लगता है मेरी ननदो का दबा दबा के इनके हाथ थक गये है क्यो जीजू, सारी ताक़त अंजलि के साथ तो नही खर्च कर दी. "अपने उरोजो को और उभार के, और अपने हाथ से उनका हाथ पकड़ के अपने सीने पे दबाते वो बोली. अब सारी भाभीया भी उनके साथ आ गयी थी. ज़ोर ज़ोर से बोल रही थी 'दबा दो दबा दो साली की'. और उन्होने भी खुल के नाप जोख शुरू कर दी. भाभी ने उनके सामने आ के पूछा,

"अच्छा, एक सवाल और ज़रा ठीक से कस के पकड़ के, दबा के नाप के बताइए, इस साली के जोबन का साइज़.

"34 सी" बिना रुके उन्होने जवाब दिया. अब वो भी अपनी झिझक खो के बाकी लोगो की तरह मूड मे आ रहे थे.

"एकदम सही जवाब" रंभा बोली.

"ये तू ही चढ़ि रहेगी या हम लोगो को भी मौका देगी.. "अब सामने नीरा खड़ी थी.

क्रमशः……………………….

शादी सुहागरात और हनीमून--11
 
शादी सुहागरात और हनीमून--12

गतान्क से आगे…………………………………..

नीरा और उसके बाद नीतू दोनो उन की गोद मे बैठी और दोनो का काफ़ी देर नाप जोख के बाद उन्होने साइज़ भी बताया, 32-सी और 30-डी. और दोनो एकदम सही था.

उसके बाद चाची बोली हे अच्छा अब कुछ रस्म भी होने दे ना, बहुत देर तक चढ़ ली जीजा की गोद मे और उन्होने बाटी मिलाने के लिए भाभी को बुलाया. ये रसम सलहज ही करती है.

"बोलो भैया नेग मे क्या चाहिए"मम्मी ने मुस्करा के पूछा.

"माँग लीजिए, माँग लीजिए जीजा जी"अब उनकी सालिया उनके साथ थी.

"मुझे बाटी मिलाने वाली. "मुस्करा के उन्होने भाभी की ओर इशारा कर के कहा.

"मुझे कोई ऐतराज नही है, पर पहले अपनी बीबी से पूछ लो. "बाटी मिलावती भाभी, मुस्करा के बोली.


मेने घूँघट मे से ही सर हिला के इशारा किया कि मुझे कोई ऐतराज नही है.

बाटी मिलने के साथ ही बाटी मिलने की गाली शुरू हो गई, मम्मी चाची और मौसी ने गाना शुरू किया,


हमारी बाटी मे बाटी मिला लो,
अपनी अम्मा को,
हमर्रे सैयाँ के संग सुवा दो.
नीचे तुम्हारी अम्मा उपर हमर्रे सेया,
चुदाये तुम्हारी अम्मा, अर्रे चोदे हमर्रे सेया,
रश्मि और भाभियो ने भी गाने आगे बढ़ाया,
अर्रे अपनी बहने को हमर्रे भैया के संग सुवा दो,
नीचे तुम्हारी बहने उपर हमर्रे भैया,
चुदवामे तुम्हारी बहने, अर्रे चोदे हमर्रे भैया,
चुदवावे अंजलि छिनारो, अर्रे चोदे संजय भैया , अर्रे चोदे सोनू भैया ,


और तब तक अंजलि आ गई, बसंती के साथ, थोड़ी हैरान परेशान. एक छोटी सी फ्रॉक मे.

"अर्रे अभी तुम्हारा ही नाम ले रहे थे, सब लोग. सही समय पे आए. अये लड़कियो एक बार फिर से सुनाओ, "भाभी बोली. इस बार सबने, रीमा और उस की सहेलियो ने भी मिल के गाया,


नीचे तुम्हारी बहने उपर हमर्रे भैया,
चुदावे तुम्हारी बहने, अर्रे चोदे हमर्रे भैया,
चुदावे अंजलि छिनारो, अर्रे चोदे संजय भैया , अर्रे चोदे सोनू भैया..


बेचारी अंजलि, उस की बोलती बंद थी. रश्मि और ज्योत्सना ने उसे खींच के अपने बीच मे बैठा लिया और कहा कि तुम कुहबार मे अपने भैया के पास रहना चाहती थी ना, इसलिए हमने कहा कि तुम्हे बुला लेते है जिससे तुम भी देख लो कि कुहबार मे क्या क्या होता है. तब तक कोई औरत बोल उठी, अर्रे लड़कियो ज़रा इनकी बहनो का 'स्वागत' तो करो गाने से, तो मेरी गाव से आई एक भाभी ने अपनी ननदो,मेरी बहनो, सहेलियो को चैलेंज करते हुए कहा, कि अर्रे आज हमारी ननदे भी तो अपनी ननदो को सुनाए. रश्मि ने चैलेंज आक्सेप्ट कर लिया. ढोलक ले के अंजलि को सुनाते हुए वो चालू हो गई. उसके साथ मे रीमा, उसकी सहेलिया और मेरी बाकी कज़िन्स भी थी. अंजलि के गले मे पड़ी सोने की माला को देख के उन्होने शुरू किया,


"गले डार गये मोहन माला जी गले डार गये,

अर्रे हमर्रे जीजा की बहनी, अर्रे अंजलि रानी,

यू तो अँगने मे ठाडी,

हमर्रे द्वारे पे ताड़ी,

अपने यार को बुलावे,

लगवार को बुलावे.

कोई ताडे ताडे आवे,

कोई बैठे बैठे आवे,

कोई रुपैया ले आवे कोई पैसा ले आवे,

कोई लड्डू ले आवे,

कोई पेड़ा ले आवे,

कोई चोली ले आवे,

कोई पैंटी ले आवे.

कोई देवे आशीष,

कोई देवे बखसीश.

गले डार गये मोहन माला जी,

गाल डार गये अर्रे हमर्रे जीजा की बहनी,

अर्रे अंजलि चिनार,

अर्रे गुड़िया छिनार उ तो अँगने मे ठाडी,

हमर्रे द्वारे पे ताड़ी,

अपने यार को बुलावे,

लगवार को बुलावे,

कोई गाल सहलावे,

कोई चुचि दबावे,

कोई बुर मे घुसाए,

कोई पीछे से लगाए,

कोई मूह मे चुसाए कोई हाथ मे थमाए,

अर्रे कोई चोदे आधी रात कोई चोदे भीने सार,

गले डार गये मोहन माला जी गले डार गये
 
"अर्रे ये तो वही है, जिसने जूते अपने भोसड़े मे छिपाए था, बड़ी केपॅसिटी है तुम्हारी बेहन की, एक दम दूल्हे की अम्मा पे पड़ी है." छोटी मौसी बोली. किसी ने और जोड़ा अर्रे इनके घर की सभी औरतो की यही हालत है. मामी बोली तो अर्रे सूनाओ ना, ज़रा कस के वो भजन और इनकी अम्मा और बहिनियो के हाल. और सब औरते और भाभीया मिल के गाने लगी,

गंगा जी तुम्हारा भला कर्रे गंगा जी,

अर्रे तुम्हारी बेहन की अर्रे तुम्हारी अंजलि की बुरिया,

अर्रे तुम्हारी अम्मा की तुम्हारी चाची की भोन्सडि,

पोखड़ा जैसे, तलवा जैसी, गधैया जैसी, सागरवा जैसी,

उसमे 900 छैला नहाया कर्रे, मज़ा लूटा कर्रे बुर चोदा कर्रे,

गंगा जी, गंगा जी तुम्हारा भला कर्रे अर्रे

तुम्हारी बहनो की तुम्हारी अम्मा की भोसड़ा, बटुलिया जैसे पतिलवा जैसे,

जिसमे 9 मन चौल पका कर्रे, बुर भदभाड़ हुआ कर्रे,

गंगा जी, गंगा जी तुम्हारा भला कर्रे.


ये गाना ख़तम नही हुआ था कि मेरी एक गाव की कजिन और ज्योत्सना ने अंजलि को पकड़ लिया और कहा कि एक सवाल ये तुम्हारे लिए है, सच सच बताना. रश्मि समझ गई और उसने अंजलि के गाल पे हाथ फेरते हुए कहा अर्रे ये बताएगी पूछो तो,

"मैं तुमसे पुच्छू हे जीजा की बहिनी, हे अंजलि रानी,

तुम्हारी बुर मे क्या क्या समाए क्या घुसाए,

अर्रे हमारी बुर मे तुम्हार्रे जीजा घुसाए,

जीजा के सब सार समाए, सारो के भी सब सार समाए,

कलिन गंज के सब भंदुए समाए,

सब गुंदुए समाए, हाथी समय घोड़ा समय ऊँट बिचारा गोता खाए.


तब तक बसंती एक चाँदी की तश्तरी मे पान ले के आ गई थी. अंजलि अब तक नही सुधरी थी, लगता है, इतनी गालिया सुन के भी. उसने हल्के से मेरे कान मे कहा कि भाभी भैया पान नही खाते है. वो एक रसम थी, जिसमे दुल्हन दूल्हे को अपने हाथ से पान खिलाती है. फिर मुझे याद आ गया कि इस पान मेमुझे एक बड़ी सी सुपाडि मूह मे रखने को दी गयी थी. मौसी ने मुझे चिढ़ाते हुए कहा था कि इस सुपाडि को जितने देर तक मूह मे रखोगी, उतने देर तक सूपड़ा एकदम कड़ा रहेगा. चाची बोली अर्रे भूल गई अपना जमाना तब मूह मे नही,

कही और रखनी पड़ती थी. और सब हँसने लगे.. मेने भी पूरे तीन घंटे उसे मूह मे रखा और चुभलाती रही. उसके बाद मम्मी ने एक छोटा सा पान दिया और कहा इसको तुम थोड़ा सा कूच लो लेकिन ज़रा भी घोंटना नही. मेने उसे भी अच्छी तरह चुभला के बसंती को दे दिया. बसंती ने बताया कि ये पान अगर कुहबार मे दुल्हन दूल्हे को खिला देती है, तो वो हमेशा उसका गुलाम हो जाता है, लेकिन दूल्हे की बहनें या उसके घर की औरते अक्सर मना कर देती है उसे.

मेने घुघाट के अंदर से देखा उन्हे और अपनी लंबी उंगलियो मे ले के,

मेने उनेके होंठो पे चुलाया. शायद घूँघट के अंदर से झलकते मेरे चेहर्रे का असर था , या मेरी आँखो मे नज़र आ रहे इसरार का, या फिर मेरी उंगलियो का. मुझे लग रहा था कि वो होंठो से थोड़ा सा काट के रस्म अदायगी कर देंगे, पर उन्होने तो पूरा मूह खोल के मेरी पूरी उंगली अंदर कर ली और पूरा पान गदप कर लिया. बेचारी अंजलि.लेकिन फिर वो बोली,

"ठीक है भैया कस के उंगली काट लीजिए""आपके भैया कटखने है क्या"रीमा बोली.

"अर्रे वो तो नही ये ज़रूर कटखनी लगती है. "रंभा बोली "कटखनी क्या कोई कुतिया है क्या"मेरी सहेली रश्मि बोली.

"अर्रे तब तो बहुत बढ़िया है, टामी के लिए. "मेरी एक भाभी ने अब मोर्चा संभाला और अंजलि से बोली,

"आ जाना अबके कार्तिक मे तुम्हारा जोड़ करवा देंगे उससे.. एकदम तगड़ा अल्शेशियन है, खूब लंबा और मोटा है उसका. बहुत लोग अपनी कुतिया लेके आते है, लेकिन तुम दूल्हे की बहन हो तो तुम्हारा नंबर सबसे पहले लगवा देंगे. वही आँगन मे एक संकल लगी है उसमे हम कुतिया को बाँध देते है क्यो कि उसका पहला धक्का सब बर्दास्त नही कर पाती. पहले तो वो चूत चाट के गरम कर्रेगा, और उसके बाद पेलेगा. जहा थोड़ा सा घुसा ना तो बस उसी की देर है.उसके बाद तो तुम लाख चूतड़ पटको, चिल्लाओ बाहर निकाल नही पओगि,

जैस तुम्हारी कलाई है इतना मोटा है.और जब थोड़ी देर मे उसका फूल जाता है,

कुतिया की बुर मे गाँठ बन जाती है ना, तो बस दम मुट्ठी जैसी. फिर तो हम संकल खोल देते है फिर तुम्हे इतना मज़ा आएगा ना, जब वह आँगन मे तुम्हे रगड़ रगड़ के चोदेगा, घंटे भर के बाद ही उसकी गाँठ खुलती है. एक बार उससे चुदवा लो बस अपने मायके के सारे यारो को भूल जाओगी. हर दम उसी से चुदवाने का मन कर्रेगा. "अब तो सब लोग अंजलि के पीछे पड़ गये कि अब तो टामी की किस्मत खुल गयी.
 
रश्मि, ज्योत्सना और रंभा 'इनके' पीछे पड़ गई कि गाने सुनाए.

थोड़ा हाथ पैर जुड़वाने के बाद वो मान गये और शुरू किया,


"जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे,

तुम दिन को अगर रात कहेंगे चाहेंगे, सराहेंगे निभाएँगे आप ही को..

आँखो मे दम है जब तक, देखेंगे आप ही को

हम जिंदगी को आप की सौगात कहेंगे "


और जिस तरह से वो खुल के मुझे देख रहे थे कि शरमा के मेने पलके नीचे कर ली. उनेकी आवाज़ इतनी अच्छी थी कि बस पिन ड्रप सेलेंस. किसी को शक नही था कि वो किसके लिए गा रहे है. जब गाना ख़तम हुआ तो बस सबने एक साथ जम के तालिया बजाई. और फिर मेरी झुकी निगाहो को देख के उन्होने फिर शुरू कर दिया,

"तेरी आँखो के सिवाय दुनिया मे रखा क्या है,

ये उठे, सुबह चले, ये झुके शाम ढले,

मेरा जीना मरना इन्ही पलको के तले,

तेरी आँखो के सिवाय"
और अबकी बार तो तालिया रुक ही नही रही थी. और मैं बस शर्म से गुलाबी हो रही थी,

ज़मीन मे गढ़ी जा रही थी कि सबके समानती तक रंभा ने इन्ह घेरा. हम सबको मालूम चल गया कि दीदी के लिए आप ने क्या कहा लेकिन थोड़ा बहुत तो इन सालियो पे भी नजर्रे इनायत हो जाए. और जिस तरह उसने कहा मुस्करा कर,उन्होने उसे पकड़ के अपने सामने बैठा लिया और सारी सालियो को देख गाने लगे,

"कच्ची कली कचनार की ना समझेगी बाते प्यार की. "भाभी बोली, "वो अच्छी तरह समझेगी. बस समझाने वाला चाहिए. ""बंदा तैयार है बस बोलिए कब से शुरू करू और किधर से. "वो बोले. अब सालियो के शरमाने की बारी थी.

"जीजा जी आप ने इतना अच्छा गाया बस एक औउटोग्राफ दे दीजिए, "नीतू ने एक मुड़ा कागज पेश किया. उन्होने खुश होके तुरंत साइन कर दिया. अर्रे इनकी बेहन का भी तो ले लो, इनके बगल मे, भाभी बोली और अंजलि ने भी औउटोग्राफ दे दिया.

तब तक भाभी एक थॉल ले आई, जिसमे दूध और गुलाब की पंखुड़िया पड़ी थी. इस रसम मे भाभी एक अंगूठी डालती है और उसे फिर दूल्हे दुल्हन ढूँढते है.

रसम शुरू होने के पहले रश्मि बोली, भाभी बिना दाव के जुए मे क्या मज़ा.

जीजा जी कुछ दाव लगा के खेलिए. ज्योत्सना बोली, लेकिन ये दाँव मे लगाएँगे क्या. थी तक मेरी एक भाभी अंजलि की ओर इशारा कर के बोली "अर्रे इतना मस्त माल अपने साथ ले के आए है, लगा दे उसी को. ""ठीक है तो फिर जीजू, अगर आप हार गये ना तो मेरे सारे भाई, संजय सोनू,

आपके सारे साले आपकी बेहन के साथ, जब चाहे थी, जहाँ चाहे वहाँ, जिधर से चाहे उधर से, जितनी बार चाहे उतनी बार बस ये समझ लीजिए कि आप अपनी बेहन हमेशा के लिए हार जाएँगे"रश्मि जुए की तैयारी पूरी करते बोली.

"अर्रे वाह ये कोई बात हुई अगर भैया जीत गये तो. ये तो एक तरफ शर्त हुई.

उधर से भी भैया की कोई साली दाव पे लगे. "अंजलि बोली.

"अर्रे अगर तुम्हारे भैया जीत गये तो तुम्हे बचा लेंगे. ये कम बड़ी बात है.और जहाँ तक उनेकी सालियो का सवाल है, तो वो तो अपने इस जीजू के साथ जब चाहे, जहा चाहे वहाँ, जिधर से चाहे उधर से, जितनी बार चाहे उतनी बार जिसने ना कहा वो साली नही"रंभा ने जवाब दिया. पहले भाभी ने थॉल मे हाथ डाल दिया था और फिर हम ने और 'उन्होने'. वो बेचारे बड़ी तेज़ी से दूध मे अंगूठी ढूंढते रहे, और मैं भी लेकिन मुझे भाभी ने आँख से इशारा कर दिया था. और थोड़ी देर के बाद, जब मेरा हाथ भाभी की मुट्ठी के पास गया तो चुपके से उन्होने अंगूठी अपनी मुट्ठी से मेरी मुट्ठी मे कर दी. थोड़ी देर तक ढूढ़ने का बहाना कर के मेने अंगूठी बाहर निकाल के सबको दिखाई.

अंजलि बोली नही नही बेईमानी हुई है, तो रश्मि बोली अर्रे तुम चुप रहो. अब तुम हमर्रे भाइयो की रखैल बन गई हो तुम्हार्रे भैया तुम्हे हार गये है.

भाभी बोली कि नही अभी अगर तुम्हार्रे भैया तुम्हे बचाना चाहते है तो एक मौका और है, और अगर तुम्हे शक है तो अगली बार इन लोगो को दूर दूर बैठाते है और अंगूठी मैं उपर से गिराउन्गि.

सेकेंड राउंड शुरू हुआ. अबकी बार हम दोनो आमने सामने थे. रश्मि ने शर्त ये रखी थी कि अगर ये जीत गये तो अंजलि को वापस जीत लेंगे और अगर हर गये तो हमर्रे यहाँ जितने काम करने वाले है नौकर मजदूर उन सबका उस पर हक हो जाएगा. भाभी बीच मे थी और दोनो साइड मे हम दोनो. और उन्होने अंगूठी सबको दिखा के हवा मे ही गिराई, लेकिन उसको इस तरह झटका दिया कि वो खुद अपने आप मेरे हाथ मे जा गिरी. और वो राउंड भी मैं जीत गयी.

उनको एक मौका और दिया गया. इस बार फिर अंजलि दाव पे थी लेकिन भाभी ने शर्त रखी थी कि अगर अबके वो हार गये तो उसे ना सिर्फ़ मेरे भाइयो से,

बाकी मर्दो से , बल्कि टामी और मेरे गाव के कुत्ते, गधे सब से.

और ये दाव भी मैं जीत गयी. हालाँकि अबकी बार मुझे थोड़ी मेहनेत भी करनी पड़ी,लेकिन मेरे लंबे नाख़ून काम मे आए और अंगूठी ऑलमोस्ट उनकी मुट्ठी मे जाते जाते बची. आख़िर मेरे भाइयो का सवाल था.

अब तो सारी लड़किया और औरते उसके पीछे पड़ गयी. वो बिचारी, बोलने लगी, क्या सबूत है.

रीमा और उसकी सहेलियो ने वो काग़ज़ दिखाया, जिसपे उन्होने 'उनका' और अंजलि का ऑटोग्राफ लिया था. वो असल मे एक 500 रुपये का स्टंप पेपर था और उस पर वो सारी शर्ते लिखी थी और नीचे जहाँ लिखा था कि 'मैं अपनी बेहन अंजलि को हार गया हू', उसके ठीक नीचे उन्होने उनके और 'मुझे मंजूर है ' के नीचे अंजलि के दस्तख़त करा लिए थे.

कुहबार मे शादी की वीडियो रेकॉर्डिंग तो नही हो रही थी पर ज्योत्सना अपने कैम्कर्दर से रेकॉर्ड कर रही थी. उसने भी कहा कि देखो अब तो पक्का सबूत है.

सुबह होने वाली थी और उसी समय वीडियो की साइट थी.

अब सब लोग अंजलि के पीछे पड़े थे. वो 'उनके' पास मे ही खड़ी थी. रश्मि और भाभी ने उसको हल्का सा धक्का दे दिया, और वो सीधे 'उनकी' गोद मे जा गिरी.

और 'उन्होने' उसको बचाने के लिए उसे पकड़ लिया.

"अर्रे यहाँ क्यो पकड़े हो सही जगह पकडो ना, "मेरी एक भाभी ने ये कह के, उनका हाथ उठा के जबरन उसके उभर्रे उरोजो पर रख दिया.

"अर्रे सिर्फ़ पकड़ क्यो रहे है, आप ही का माल है, दबाइए, मसलिए. "और रश्मि और भाभी ने कह के कस कस के उसकी छातिया दबवा दी. भाभी ने छेड़ा,

"अपने अपनी सारी सालियो के जोबन का साइज़ तो एकदम सही सही बताया था, अब ज़रा अपनी बहन का तो बताइए. "वो बिचारे क्या बताते, बस शरमा के रह गये. हां भाभी और रश्मि ने उनका हाथ इतने कस के पकड़ा था कि वो छुड़ा नही पाए.

"अर्रे ये अपने भाई की गोद मे बैठ के मस्ती मे चुचि मिसवा रही है. ज़रा इससे उनका खुन्टा तो पकड़वाओ. "मौसी बोली.

क्रमशः………………………
 
शादी सुहागरात और हनीमून--13

गतान्क से आगे…………………………………..

बस क्या था. रीमा, रंभा और उसकी बाकी सहेलियो ने उनकी बेल्ट तो उतार ही दी थी, छेड़छाड़ मे ना सिर्फ़ पॅंट के उपर के बटन खोल दिए थे बल्कि जिप भी थोड़ी खोल दी थी. बस भाभी ने पूरी ताक़त से अंजलि का हाथ पकड़ा और 'उनके' पॅंट मे कस के घुसेड दिया और ऐसा लग रह था कि जबरन 'पकड़वा' भी दिया और उनकी पॅंट मे 'टेंट' तन गया.(बाद मे पता चला कि उस बेचारी का तो हाथ भी ठीक से अंदर नही गया था, हां भाभी ने ज़रूर वो भी ब्रीफ़ के उपर से और जो टेंट' ताने था, वो भाभी ने अपने अंगूठे से उनके पॅंट को 'उठा' दिया था.) भाभी ने मुझे भी छेड़ते हुए कहा,

"देख तेरी ननद कैसे खुल के सबके सामने अपने भैया का खुन्टा पकड़ के रगड़ मसल रही है. "मेने घूँघट से ही मुस्काराकार ऐसे सर हिलाया, जैसे मेरी ओर से पूरा 'ग्रीन सिग्नल' हो.

लेकिन इतने से भी संतोष नही था. मेरी मामी और गाव की एक भाभी बोली,

"अर्रे भैया, वो तो तुम्हारा पकड़ के सहला रही है तो ज़रा तुम भी तो कम से कम फैला के दिखाओ तो चिकनी है या घास फूस है. "बस अब क्या था मेरी दो तीन भाभियो ने मिल के, 'उनका' हाथ पकड़ा और (उनका हाथ तो बस दिखाने को था वो तो मेरी सारी भाभियो की पूरी ताक़त थी जो उसकी दोनो जाँघो को फैलाने मे लगी थी), उसका फ्रॉक उठा के जांघे फैला दी उसने झट से फिर टांगे सिकोड ली. और जो दिखा हम सब दंग रह गये) सिवाय उसके भैया के क्यो कि वो तो उनकी गोद मे ही थी.). उसकी 'वो' पैंटी विहीन थी. हां लेकिन ये ज़रूर पता चल गया कि 'घास फूस', भूरी, घूंघराली सी, थी.

(पता ये चला कि, बसंती और मेरे कज़िन्स संजय और सोनू का हाथ था. जब बसंती अंजलि को ले के कुहबार की ओर आ रही थी तो रास्ते मे एक बहुत सांकरा गलियारा पड़ता था, जैसे ही वो लोग उधर मुड़े, लाइट चली गयी. बसंती ने झट से उसके दोनो हाथ सहारा देने के लिए पकड़ लिए. तब तक पीछे से किसी ने उसे पकड़ लिया और सबसे पहले अपने हाथ से उसका मूह कस के बंद कर दिया.

दूसरे हाथ से फ्रॉक के उपर से ही उसके उभार पकड़ लिए और मसलने शुरू कर दिया. तब तक दूसरे ने, एक हाथ से उसकी कमर पकड़ी और दूसरा हाथ उसकी जाँघो के बीच डाल कर पैंटी के उपर से उसकी 'बुलबुल' को दबोच लिया. जल्द ही उसकी फ्रॉक के अंदर उसकी ब्रा भी खुल गई थी. कस के उसके जोबन का मसलन रगड़न चालू हो गया और नीचे उंगलियों भी. 7-8 मिनिट्स तक अंधेरे का फ़ायदा उठा के खूब खुल के चुचियो का मज़ा लिया और मन भर के उंगली अलग की, यहा तक कि उसकी पैंटी भी उतार दी. और जैसे ही बिजली आई,

उसके साथ वो गायब हो गये. बसंती ने बताया कि अंजलि थोड़ी नाराज़ परेशान थी, लेकिन उसने उसे समझाया कि आख़िर चोदा तो है नही खाली उंगली की है,

फिर इतने लड़के शादी के घर मे रहते है. पता नही कौन था.फिर जिन्होने ये हरकत की वो तो किसी से कहेंगे नही, बसंती किसी से बोलेगी नही तो वो अगर ना बोले तो किसी को कहाँ पता चलेगा. बस वो इसको छेड़ छाड़ मान ले. और बसंती ने भी उसका फ़ायदा उठाया. चेक करने के नाम पे जब तक वो समझे उसने "उसकी उसका"ना सिर्फ़ दर्शन कर लिया, बल्कि जाँचने के लिए ना सिर्फ़ उंगली अंदर भी कर दी बल्कि जम के मज़े ले ले के उगलिया भी. उसके शब्दो मे, 'बीबी जी, उसकी बुर एकदम मचमच कर रही थी. जब उंगली मेने अंदर डाली तो पूरा अंदर तक पनिया गयी थी, बुर उसकी.

इसका मतलब साफ था कि तुम्हारी ननद रानी गुस्सा होने का बहाना कर रही थी और बुर मे उंगली का उसको भी खूब मज़ा आया. इसीलिए जब वो कुहबार मे घुसी तो थोड़ा घबड़ाई लग रही थी.) अब मुझे लगा कि वो ज़रूर गुस्सा हो जाएगी और कही 'वो' भी..लेकिन मम्मी और भाभी ने बात संभाल ली.

मम्मी ने अंजलि को खींच के अपनी गोद मे बिठा लिया और सबको डांटा कि तुम सब लोग मिल के मेरी इस सीधी बिटिया को तंग करती हो. फिर समझा के बोला,

(जिसका इशारा, 'इनकी' ओर ज़्यादा था.), "अर्रे कुहबार की बात कुहबार मे ख़तम हो जाती है. इसका मतलब है कि कुहबार मे, कोई शर्म लिहाज नही होती. कुछ जगहो, कामो और रिश्तो मे शर्म लिहाज हट जाती है. हर जगह तो बेचारी लड़किया चुप मूह दबा के बैठी रहती है पर ये सब मौके होते है मन की भडास और अंदर की सब बात जाहिर करने की. और तुम ये समझ लो कि जितना इसका हक तुम्हारे उपर है ना, (मेरी ओर इशारा कर के) उतना ही हक जितना तुम्हारी ये सब सालिया, सलहजे बैठी है ना, उतना ही उन सबका है तुम पर.

(बीच मे किसी ने टोका, और सास का. तो वो मुस्करा के बोली, और क्या मैं कौन सी मैंभी तो अभी जवान हू) और तुम्हारा भी उन सब पे बराबर का हक है.
 
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