“हाईए……जान कद दिति…” रीदा ने बेड पर बिछी हुई बेडशीट को दोनो हाथो से कस्के पकड़ लिया….मैने बिना रुके तेज़ी से लंड को फुल स्पीड से अंदर बाहर करना शुरू कर दिया…उसकी कमीज़ मे उसके मम्मे मेरे झटके लगने के कारण ऊपेर नीचे झूल रहे थे…हम दोनो खामोशी से चुदाई कर रहे थे….ताकि हमारी आवाज़ कमरे से बाहर ना जाए…तकरीबन 6-7 मिनिट बाद रीदा का जिस्म अकड़ने लगा….उसने नीचे लेटे हुए अपनी गान्ड को ऊपेर की तरफ पुश करना शुरू कर दिया…और फिर एक दम से मचलते हुए उसकी फुददी ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया….और साथ ही मेरे लंड से भी पानी निकलने लगा…जैसे ही मैने अपना लंड रीदा की फुददी से बाहर निकाला तो, रीदा बेड से खड़ी हो गयी….उसने डोर से बाहर देखते हुए अपनी सलवार का नाडा बांधना शुरू कर दिया….”क्या बात है समीर…..आज कल तुम हमारी तरफ नही आ रहे…” रीदा ने सलवार का नाडा बाँधा और अपनी कमीज़ ठीक करते हुए बोली….”
मैं: ऐसे ही तबयत कुछ ठीक नही थी…..
रीदा: अच्छा मैं बाहर जाकर बैठती हूँ….नजीबा बाहर आने वाली होगी….
रीदा के बाहर जाने के बाद मैं सिर्फ़ अंडरवेर में ही बेड पर लेट गया….अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि, मुझे बाहर से रीदा और नजीबा दोनो की बातें करने की आवाज़ आने लगी…मैं ये तो नही सुन पा रहा था कि, वो आपस मे क्या बात कर रहे है…लेकिन पता नही क्यों मुझे ऐसा लग रहा था….जैसे रीदा और नजीबा मेरे बारे मे ही बात कर रही होंगी….जब दोनो के हँसने की आवाज़ आती तो, मेरे दिल मे बेचैनी से उठती कि मैं उनकी बातें किसी तरह सुनू…मैं बेड से उठा और डोर के पास जाकर खड़ा हो गया…लेकिन वहाँ से भी कुछ भी ठीक से सुन नही पा रहा था…मैने थोड़ा सा सर बाहर निकाल कर चोरी से देखा तो, दोनो एक दूसरे की तरफ फेस किए हुए बैठी थी… दोनो की साइड मेरी तरफ थी….
तभी मेरे नज़र किचन के डोर पर पड़ी…जो मेरे रूम के बिकुल साथ था….डोर खुला हुआ था…मुझे अपने रूम से निकल कर किचन के अंदर जाने मे चन्द सेकेंड्स का वक़्त ही चाहिए था….बस प्राब्लम ये थी कि, कही दोनो मे से कोई भी मुझे किचन के अंदर जाता हुआ ना देख ले…नही तो, दोनो मुझे किचन मे जाता देख बातें बंद कर देती…खैर मैने हॉंसला करके बाहर की तरफ कदम रखा…दोनो बातों मे मसरूफ़ थी…और मैं बड़ी फुर्ती से बिना आवाज़ किए किचन के अंदर चला गया….अंदर लाइट ऑफ थी…किचन मे बाहर गेट की तरफ एक विंडो थी.. जो खुली हुई थी…विंडो के आगे जाली लगी हुई थी….और किचन से सिर्फ़ 1 फुट के फाँसले पर दोनो चारपाई पर बैठी हुई थी….
मैं धीरे-2 बिना शोर किए विंडो के पास जाकर खड़ा हो गया…अब मुझे उन दोनो की बातें सॉफ सुनाई दे रही थी….लेकिन जो मैं सोच रहा था….दोनो उसके उलट बात कर रही थी…रीदा ने नजीबा से कहा सनडे के दिन सिटी मे जाकर शॉपिंग करने की बात कर रही थी…”आपी मैं आपको पक्का नही कह सकती….अम्मी को आने दै…मैं उनसे बात करके आप को बता दूँगी….अगर अम्मी अब्बू राज़ी हो गये तो, फिर आप के साथ ज़रूर चलूंगी….मुझे भी शॉपिंग करनी है….”
रीदा: अच्छा ठीक है अम्मी से पूछ कर बता देना…और अगर वो मना करे तो, तुम्हे जो चाहिए मुझे बता देना…मैं वहाँ से खरीद लाउन्गि….
नजीबा: जी आपी…..
मैं सोचने लगा कि, जो मैं दो दिनो से सोच रहा था….शायद वो मेरे मन का वेहम हो…..ये मुझे क्या होता जा रहा है…जो हर वक़्त मेरा दिमाग़ सिर्फ़ सेक्स के बारे मे सोचता रहता है…मुझे याद है….जब शादी के बाद नजीबा अपनी अम्मी के साथ यहाँ रहने आई थी तो, मैं इस बात से किस हद तक खफा था….मैं कैसे सारा दिन अपने जेहन में उसकी अम्मी और उसके लिए नफ़रत लिए घूमता रहता था…वो नजीबा ही थी….जिसने मेरे गुस्से और नफ़रत को सहन किया…उसकी हर एक के साथ घुलमिल जाने वाली ख़ासियत के कारण ही…मैं अपने आप को अपनी सौतेली बेहन और सोतेली माँ के साथ इस घर मैं अड्जस्ट कर पाया था….मैं अभी वहाँ से हट कर वापिस अपने रूम मे जाने ही वाला था कि, रीदा ने कुछ ऐसा कहा…जिसकी वजह से मैं वही रुक गया… “नजीबा….वैसे आज तूने जो तरीका अपनाया है वो है एक दम सेट…ऐसे ही अपनी आपी का ख़याल रखना…” फिर दोनो हँसने लगी…फिर मुझे नजीबा की सरगोशी से भरी आवाज़ आई….
नजीबा: आपी आप से एक बात पूछूँ….?
रीदा: हां पूछो….तुम मुझसे जो चाहे पूछ लिया करो….
नजीबा: आपी आपको भाई के साथ वो सब करते हुए अजीब नही लगता….
रीदा: क्या अजीब…मैं समझी नही खुल के बोल ना क्या पूछना चाहती है….
नजीबा: आपी मेरा मतलब भाई आपसे उमर मे बहुत कम है….और आप उनके साथ वो सब कुछ कर लेती है….तो आप को अजीब नही लगता उनके साथ….
नजीबा की बात सुन कर रीदा हसते हुए बोली…”अजीब क्यों लगेगा….देख इसमे उमर का क्या लेना देना…उसके पास वो गन्ना है जो एक औरत को चाहिए होता है..और मेरे पास रस निकालने वाली मशीन है…तो फिर अजीब क्यों लगेगा….” रीदा ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा….”तोबा आपी आप भी ना कैसी -2 मिसाले देती है….”
रीदा: चल तुझे मेरी दी हुई मिसाल पसंद नही आती तो, आगे से सीधी बात किया करूँगी…दरअसल तेरे समीर भाई का लंड है ही इतना तगड़ा कि, जब फुददी मे जाता है तो उमर सुमर सब भूल जाती है…फिर तो दिल करता है…वो मेरी टांगे उठा कर अपना लंड मेरी फुददी के अंदर बाहर करता रहे…
नजीबा: छी खुदा का खोफ़ करे…कैसे गंदी बातें करती है आप….
रीदा: आए बड़ी खुदा का खोफ़ दिखाने वाली….चल आगे से ऐसी बात नही करती तुझसे…
रीदा चुप हो गये…थोड़ी देर दोनो खामोश रही….”आपी नाराज़ हो मुझसे…?” रीदा ने धीरे से कहा….”नही तो मैने क्यों नाराज़ होना….” रीदा ने नॉर्मल से टोन मे कहा….”तो फिर आप चुप क्यों हो गये….?”
रीदा: अब तुम ही कह रही थी कि, ऐसे बातें ना करें…
फिर थोड़ी देर के लिए खामोशी छाई रही…”आपी एक बात पूछूँ…” रीदा ने नजीबा की बात का कोई जवाब ना दिया…थोड़ी देर खामोशी के बाद रीदा बोली…”हां बोल क्या पूछना है….?”
नजीबा: आपी आप कह रही थी कि, भाई वो आपकी….(नजीबा शायद शरमा गयी थी… या फिर उसकी हिम्मत नही हो रही थी ऐसे अल्फ़ाज़ बोलने के लिए…)
रीदा: अब बोल भी….
नजीबा: आप कह रही थी कि, आपा का दिल करता है कि, भाई आपकी टांगे उठा कर करते रहें….लेकिन वो सब करने के लिए आपकी टांगे क्यों उठाएँगे….
रीदा: (नजीबा के बात सुन कर हंसते हुए…) हहहाः पागल है तू भी मेरे भोली नादान बच्ची…वैसे वो सब करते हुए ज़रूरी नही है कि, टांगे उठाई जाए…पर टांगे उठा कर फुददी देने मे मज़ा बहुत आता है….तू अभी ये सब नही समझेगी…लेकिन जब तेरी किसी से यारी लगेगी और तब तेरा यार तेरी टांगे उठा कर तेरी लेगा तो, तुझे मेरी बात का यकीन होगा….
नजीबा: क्या आपी आप भी…
रीदा: (हंसते हुए) हाहः सच कह रही हूँ….देखना वक़्त मेरी बात की गवाही देगा…और तब तू कहेगी कि रीदा आपी सच कहती थी…हाए तोबा मैं तो तुमसे यहाँ बातों मे ही उलझ गयी…बच्चो को अम्मी के पास छोड़ कर आई थी…अम्मी तो मेरी जान ही नही छोड़ेंगी अब…बहुत देर हो रही है अब मैं चलती हूँ….
रीदा चारपाई से उठी और गेट की तरफ जाने लगी….नजीबा भी गेट बंद करने के लिए उसके पीछे चली गयी….मोका अच्छा था…मैं किचन से बाहर निकला और अपने रूम मे आ गया…और बेड पर लेट गया…अब कुछ कुछ मेरी समझ मे आ रहा था कि, नजीबा के रवैये में जो बदलाव आया है…वो क्यों आया है….तो क्या नजीबा मेरे साथ वो सब नही नही….नजीबा मेरे बारे मे ऐसा क्यों सोचेगी…यही सब सोचते हुए मेरी आँख लग गयी..