Kamvasna कलियुग की सीता - SexBaba
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Kamvasna कलियुग की सीता

hotaks444

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Nov 15, 2016
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कलियुग की सीता—एक छिनार

लेखक - सीता

फ्रेंड्स एक और नई कहानी आपके लिए पढ़िए और मज़े लीजिए
हेलो दोस्तो,मैं हूँ सीता देवी!!ये मेरी पहली कहानी है लेकिन मेरी कहानी पढ़ने से पहले और अपने लंड को हाथ मे लेने से पहले एक बार सोचे ज़रूर क्योकि हो सकता है आपका कीबोर्ड बाढ़ मे ढह जाए!!

आपका कीमती टाइम वेस्ट नही करते हुए मैं सीता देवी,आपकी अपनी सीता देवी हाज़िर हूँ अपनी सच्ची आपबीती लेकर आपके सामने!मेरी उम्र 32 साल है,अभी एक महीने पहले ही मेरी शादी हुई है!सास ससुर गाओं मे रहते है,यहाँ मैं अपने पति परमेश्वर राम कुमार मिश्रा के साथ रहती हू…मेरा 22 वर्षीय छोटा भाई बबलू भी अपने पढ़ाई के वास्ते हमारे साथ ही रहता है!

वैसे तो मैं हमेशा छरहरी रही हू लेकिन कुछ महीनो से मेरा जिस्म भर जाने के कारण गद्देदार लगती हू…गाल फूलकर टमाटर की तरह लाल और मक्खन की तरह चिकने हो गये हैं!फिलहाल मेरी फिगर 34-30-36 है!बचपन से ही मैं बहुत बिंदास रही हू…मुझे रोक टोक बिल्कुल पसंद नही!शादी करके आई तो पातिदेव राम मिश्रा ने रोब गाँठने की कोशिस सुरू कर दी…मुझे साड़ी पहनना बहुत पसंद है लेकिन मेरे पति को ये बात नागवार गुज़रने लगी…कहते “मेडम सीता देवी जी, जब आप साड़ी पहन कर और गले मे मन्गल्सुत्र लटका के चलती हैं तो आपके ये भारी चूतड़ ऐसे मटकते है की पूरा मुहल्ला आपके मटकते चुतडो की थिरकन देखने रोड पर आ जाता है!और तो और,कितने लोग अपना लंड हाथ मे थाम कर आपके पीछे चल देते हैं”…और मैं पति देव से मूह फेर कर चुतडो को थिरका कर आगे बढ़ जाती,

पतिपर्मेश्वर अपनी नूनी हाथ मे लेकर कसमसाते रह जाते! खैर,ये खेल सिर्फ़ 2 हफ्ते चला,उसके बाद तो पातिदेव राम मिश्रा आपकी इस सेक्सी सीता देवी की चूत का गुलाम हो गया….अब तो पातिदेव आपकी सीता देवी के तलवे चाटने के लिए जीभ लपलपाते रहता है!हर रात पतिपर्मेश्वर आपकी सीतदेवी की रसीली चूत का दीदार करने के लिए मेरे पैरो पर गिर के गिडगीडाने लगता है!लेकिन साहेबान,आपकी चुदासी सीता देवी की चूत इतनी सस्ती नही कि किसी भी नमार्द की नूनी से चुद जाए!

पति परमेश्वर रोज रात को मेरे पैर दबाते है और फिर साड़ी उठाकर जैसे ही ज्वालामुखी के दहाने पर अपनी नूनी रखते हैं,गर्मी से उपर ही पिघल जाते है!मैं उस वक़्त तो खिलखिला के हंस देती हूँ लेकिन रात भर चूत मे उंगली डाल के सोने पर गुस्सा भी आता है…

अभी तक आपकी सीता देवी की टाइट चूत को फाड़ने की हिम्मत किसी ने नही कर पाई,मेरी रसीली चूत एक बंपिलास्ट लंड की तलाश मे दर दर भटक रही है!सुना है,मुस्लिम लंड बहुत ताकतवर होता है…बचपन मे देखा भी था बगल वाले बशीर ख़ान जब मेरी मम्मी को चोद्ते थे तो मम्मी की चीख पूरी बस्ती मे गूँजती थी और पापा बेड के नीचे दुबक कर फ़चफ़च फ़चफ़च की आवाज़ सुनते थे हाथ मे नूनी लेकर . आपकी इस सेक्सी सीता देवी ने कैसे नवाब जी के प्रचंड लंड से अपनी टाइट चूत की सील तोडवाई,वो भी पतिदेव और भाई के सामने..
 
सुबह मैं उठी पति परमेश्वर की आवाज़ से .वो हाथ मे चाइ की ट्रे लेकर खड़े थे.मैं बेड से उठी और तकिये के सहारे लेटकर नाइट गाउन के बटन बंद करते हुए बोली,’क्या आज ,इतनी सुबह सुबह क्यों उठा दिए?’मेरे पति की रोज की दिन चर्या थी वो बेड टी ले कर मुझे जगाने आते थे..पतिदेव बेड के एक कोने मे बैठकर मेरे पैरों को सहलाते हुए बोले;”भूल गयी मेडम जी,आज आपको मायके जाना है,10 बजे ही ट्रेन है आपकी..”

मैने टाइम देखा तो हड़बड़ा गयी,8 बज चुके थे.मैं जल्दी से बेड से उठी और गुसलखाने मे घुस गयी.तैयार होकर स्टेशन पहुचि और दौड़ते दौड़ते एसी 2न्ड टियर मे घुसी.अपने बर्थ पर जाके मैने सुकून की साँस ली.मेरे बगल वाली सीट पे एक 45साल का 6 फिट लंबा अधेड़ आदमी था, कसरती बदन और सावला था देखने मे,शायद मुस्लिम था,उसने पठानी सूट पहन रखा था….उसकी नज़रे मेरे गदराए बदन का ऐसे एक्स-रे कर रही थी जैसे आँखों ही आँखों से मुझे चोद डालेगा..

मेरी जाँघो के बीच की राजकुमारी मे चुनचुनी हो गयी.मैने कमर पर से साड़ी पकड़ के हल्का सा उठाई और अपनी
सीट पे गयी .उसने पूछा,’चलो मैं तो अकेला बोर हो गया था,आप आई तो अब सफ़र भी आराम से कट जाएगा,आपका नाम क्या है?’..

’मेरा नाम सीता है’ मैने अपनी आँखों को बंद करते हुए कहा.मुझे लग रहा था ये सख्स जबरन मेरे पीछे पड़ जाएगा,फिर भी तकल्लूफ के लिए पूछ दिया,’और आपका नाम?

उसने ज़रा सा मेरी ओर खिसकते हुए कहा,’वैसे तो हमारा पूरा नाम मुहम्मद.अब्दुल ख़ान है,शेखों से ताल्लुक रखते हैं.लेकिन आप मुझे शॉर्ट मे नवाब कह सकती हैं’.नवाब जी के हट्टे कट्टे बदन से मुसलमानी इत्र की खुसबू मेरे नथुनो मे चली गयी. मेरी रसीली चूत मे कीड़े रेंगने लगे थे,ध्यान बाँटने के लिए मैं मेगजीन निकाल के पढ़ने लगी….मैं बहुत ही गरम
हो रही थी क्यों कि शादी के बाद भी बिना चुदाई के रही थी अपने पातिदेव के लंड के बारे मे सोचते ही मैं ठंढी हो जाती थी….मेगजीन पढ़तेपढ़ते मैं सो गयी तभी रात के 9 बजे होंगे………..

मुझे नींद मे सपना आ रहा था कि मैं बशीर ख़ान चाचा से चुद रही हूँ. पता नही कब
नींद मे ही मेरा हाथ मेरी चूत पे चला गया और मैं अपनी कमसिन चूत को
सहलाने लगी, मैने पिंक कलर की बनारसी साड़ी पहनी थी,शादी के वक़्त तोहफे मे मिले सुहाग जोड़े को पहनने का मौका इस से पहले नही मिला था.. मैं अपने दोनो पैर फैलाके अपनी चूत को मसल रही थी,

कॉमपार्टमेंट मे अंधेरा था. तभी अब्दुल ख़ान जो सो रहे थेउनकी भी नींद खुल गयी और वो बैठ के मुझे देखने लगे, कुछ देर
देखने के बाद वो भी अपना हाथ मेरी चूत पे रख दिए और इस
तरह से सहलाने लगे कि उनका हाथ मेरे हाथो से टच ना हो, सो
काफ़ी देर तक नवाब जी ने मेरी चूत को सहलाया और उसमें उंगली भी करने का
ट्राइ किया साड़ी के ऊपर से ही. फिर अब्दुल ख़ान ने अपना लंड बाहर निकाला और मेरे नाज़ुक
हाथो मे दे दिया.

मुझे हाथ मे गर्मी का एहसास हुआ तो मेरी आँख खुल गयी
मैने देखा कि नवाब जी मेरी चूत को सहला रहे है और मेरे हाथ मे उनका
लंड है. मैं जल्दबाज़ी मे कुछ समझ नही पाई तब तक वो मेरी चादर
मे घुस गये और मुझे अपनी बाँहो मे कस के पकड़ लिया. मैं जो कि
पहले से ही गर्म थी इस हरकत के बाद मैं और भी गरम हो गयी और
मेरे ऊपर सेक्स इस तरह से हावी हो गया था कि मैं उनको अपने से दूर
करने के बदले उन्हें और भी अपने पास खीच लिया…पता नही कैसे लेकिन
मेरा दिमाग़ का काम करना एक पल के लिए बंद हो गया था…
 
.नवाब जीअब मेरी सीट पे ही थे और उनका लंड अभी भी मेरे हाथ मे था,ऐसा मूसल लंड मैने कभी सोचा भी नही था,
उनका लंड 9″ का था और बहूत मोटा भी था. तभी नवाब जी मुझे अपने से अलग
किया और मेरे एक एक कपड़े निकले. अगले ही मिनिट मे मैं पूरी नंगी हो
गयी. अब वो भी अपने पाजामे को नीचे सरका के अंडरवेर निकाल दिए.
फिर सामने खिड़की को अच्छे से मिला दिया और अब बाहर से अंदर नही
दिख रहा था……फिर ख़ान साहेब मेरे ऊपर चढ़ गये …. मेरी दोनो चूचियाँ नवाब जी की छाती से चिपकी हुई थी, नवाब जी ने अपने होंठ मेरे होंठो पे रख
दिए और चूसने लगे…..मुझे बहुत ही मज़ा आ रहा था मैं
ख़ान साहेब के लंड को उपर और नीचे कर रही थी…..फिर नवाब जी ने अपना एक हाथ
मेरी नंगी चूत पे रखा ,मैं तो मचलने लगी.अभी परसो ही तो पति परमेश्वर ने हेर रिमूवर से मेरी चूत साफ की थी. अब्दुल ख़ान ने अपनी एक उंगली मेरी सफाचट चूत के अंदर डाल दी ….. मेरी चपरगददे की तरह फूली हुई मक्खन जैसी चिकनी चूत गीली हो चुकी थी…

.तभी नवाब जी ने अपना लंड मेरी चूत पे रगड़ना सुरू कर किया……मैं तो ऊह और आह
ही कर रही थी,पहली बार किसी शेख का लंड अपनी चूत पर रखवाई थी….अचानक शेख जी ने अपने लंड को मेरी चूत के उपर रखा और उसको भीतर पुश करने लगे… शादी के बाद भी मैं चुदि नही थी सो मेरी चूत बहुत
टाइट तो थी ही ,उस पर से पहला ही लंड ऐसा फौलादी मिला कि जाने पे मुझे बहुत दर्द हुआ.आपकी इस सील बंद सीता की चूत से जैसे खून की नदी बह निकली. नवाब जी ने जो अपनी लूँगी नीचे बिछाई थी,वो आपकी सीता की चूत से लाल-लाल हो गयी थी.और नवाब जी का बंपिलाट लंड आपकी इस सीता की चूत के अंदर मुस्तैदी से झंडा फहरा रहा था. अभी तो नवाब जी का सिर्फ़ 3 इंच लंड ही अंदर गया था आपकी सीता देवी की चूत के अंदर.सच कहती हू मेरे चुड़क्कड पाठको, मुझे तो समझ नही आ रहा था कि अगर पूरा 9इंच अंदर गया तो मेरी चूत का
क्या हाल होगा….फिर नवाब जी ने एक कस के धक्का मारा और मेरी आँखो मे
आँसू आ गये बहुत ही दर्द हुआ मुझे……उनको ये बात समझ मे आई
सो वो लंड घुसाने के बाद मुझ से ऐसे ही चिपके रहे और मेरे रसदार होठों
को चूस्ते रहे….जब 3-4 मिनिट के बाद मैं थोड़ी सी नॉर्मल हुई तो
अब्दुल ख़ान साहेब ने अपने लंड को अंदर और बाहर करना सुरू किया…..ऐसे कर के
वो मुझे धीरे धीरे चोदने लगे……फिर नवाब जी ने मेरी निपल्स को
चूसना सुरू किया मुझे बहुत ही मज़ा आरहा था …….. ऐसे ही
लगभग 8-10 मिनिट चुदाई के बाद मैं झाड़ गयी. 2-3 मिनिट के
बाद वो भी झाड़ गये और अपने लंड का सारा पानी मेरे अंदर डाल
दिया….वो फिर भी मुझ से चिपके रहे….कुछ देर के बाद हम दोनो
अलग हुए तो मैने किसी तरह से ही अपने कपड़े पहने….पैंटी और ब्रा
तो नही पहन पाई लेकिन बाकी कपड़े मैने पहन लिए…


.अभी रात के 11 बज रहे था मैं नवाब जी के सीने पे अपना सिर रख के सोई थी
और उनका एक हाथ मेरी चूचियों का भूगोल नाप रहा था.तभी ट्रेन स्टेशन पर रुक गयी.
….अब्दुल ख़ान नीचे जाने लगे और मुझे भी
बोले कि तुम भी चलो और कुछ खा लो मैने कहा कि मैं ऑलरेडी खा
चुकी हूँ…..फिर वो ज़िद करने लगे तो मैने भी सोचा कि अब इस.से
क्या ख़तरा ऑलरेडी ये मुझे चोद तो चुका ही है सो अब क्यों नखरे
करना और मैं नीचे उतर गयी. वहाँ सामने एक रेस्टोरेंट था. उधर ही एक
साइड के टेबल पे हम दोनो बैठ गये और खाना खाए.खाना खा के वो बुकस्टॉल पर चले गये.
मैं ट्रेन मे आकर अपने सीट पे चादर ओढ़
के सो गयी. तभी कुछ देर मे नवाब जी पीछे से आए और मेरी दोनो मदमस्त चूचियों को ब्लाउस के उपर से ही पकड़ कर मसल दिए.मेरी ओवरसाइज़ चूचियाँ अब्दुल ख़ान की हथेली मे दबकर सीत्कार उठी.मैं पाजामे के ऊपर से सेख जी के बंपिलाट लंड को सहलाते हुए सीसीयाई,’उफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़,मेरी चूचियों को आटे की तरह गुंथने का इरादा है क्या ख़ान साहेब??’
 
नवाब जी का लंड फूफ्कार मारने लगा.दोनो हाथो को ब्लाउस के अंदर घुसा कर नवाब जी ने फिर से मेरी नंगी चूचियों को मसल दिया और मेरे मक्खन दार गालो पर एक ज़ोर की पप्पी लेते हुए कहा,’सीता डार्लिंग,मुझे तुम्हारी चूचियों का दूध पीना था,क्यो,बहुत दर्द हुआ क्या?’.ख़ान साहेब के खुर्दरे हाथो से अपनी मस्तानी चूचियों को मसलवा के मैं फिर चुदाई के लिए तड़पने लगी थी उपर से ऐसी बाते सुनकर मेरी चूत फिर फुदकने लगी.नवाब साहेब के लंड को और झटके देने के लिए मैने उनकी ओर देखकर आँख मारी और नवाब जी के मूसल लंड पर एक प्यार भरी चपत लगाते हुए कहा,सेख जी,लेकिन दूध निकलेगा कैसे मेरी चूचियों से,अभी तक तो मैं कुँवारी शादी शुदा थी.नवाब जी ने दोनो चूचियों की घुंडी को चुटकी मे दबा के मसल दिया और मेरे फूले हुई गालो पे चुम्मि लेते हुए कहा,’घबराओ मत सीता डार्लिन्,अब्दुल ख़ान तुम्हे बच्चा भी देगा और चूचियों मे दूध भी,नवाब का ये वादा है सीता कि तुम्हारी चूत से एक दर्ज़न बच्चे निकालूँगा.’नवाब जी की बात सुनकर मैं शर्मा गयी

अब्दुल ख़ान ने मुझे सीधा किया और मुझे फिर से
नंगी कर दिया तब तक ट्रेन खुल चुकी थी….मैं चादर के अंदर पूरी
नंगी थी और वो भी मेरे चादर मे आगये और अपना लंड मेरी चूत मे
डाल कर मुझे चोदने लगे………मुझे तो
बहुत ही मज़ा आ रहा था….फिर मेरी चूत ने पानी छोड़ा और वो भी
झाड़ गये. उसी चादर मे हम दोनों सो गये….थोड़ा अच्छा नही लग रहा था लेकिन अब क्या
फ़ायदा मैं तो चुड चुकी थी ………. मैने यही सोचा कि एक रात मे
मैं लड़की से औरत बनी थी और आज एक ही रात मे मैं औरत से रंडी
बन गयी …..सुबह स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो हम दोनो नीचे उतरने के लिए बढ़ गये.नवाब जी ट्रेन से उतर गये लेकिन मैं साड़ी पहने थी ,सो दिक्कत हो रही थी.नवाब जी देख कर मुस्कुराए और आगे बढ़ कर मेरी कमर पर अपने हाथ रख दिए,फिर फिसला कर दोनो हाथ साड़ी के उपर ही मेरी मदमस्त चूतडो पर जमा दिए.मैं नवाब जी की छाती से चिपकी नीचे पहुँच गयी.लोगो को हमारी तरफ ही देखते देख कर मैने शर्म से नज़रे झुका ली.अचानक नवाब जी ने मेरे चूतडो पर चुटकी काटी तो मैं चिहुनक कर उनकी तरफ देखने लगी.वो मुझसे अड्रेस माँग रहे थे.अड्रेस दे कर मैं अपने मायके घर आ गयी.1 हफ्ते बाद वापस पातिदेव के पास भी चली गयी लेकिन इस बार किसी अब्दुल ख़ान से मुलाकात नही हुई,मन मसोस कर रह गयी………………….


मायके से मैं घर लौटी तो पतिपर्मेश्वर स्टेशन पर फूलों का गुलदस्ता लिए खड़े थे…आज करवा चौथ थी,इस लिए मैं जल्दी से घर पहुच कर पूजा करना चाहती थी….मैने येल्लो कलर की साड़ी पहन रखी थी,गले मे मंगल सुत्र और माथे मे सिंदूर…बाहर निकले तो पतिपर्मेश्वर ने कार का गेट खोला और मैं पीछे बैठ गयी…..पतिदेव ड्राइवर की सीट पर जा बैठे…रास्ते मे एक दुकान पर अब्दुल ख़ान को देखकर मैं चौंक पड़ी….मेरी चूत मे चुनचुनी हो गयी…ट्रेन के सारे नज़ारे आँखो के सामने घूमते चले गये….मैं वो हादसा याद करके सिहर गयी जिस वक़्त मेरी चूत से खून की नदियाँ बह निकली थी….मुझे लगा अब्दुल ख़ान तो मेरी सील तोड़ चुके हैं लेकिन निशानी के तौर पर वो मेरी चूत के खून से भींगी लूँगी साथ लेते चले गये…मुझे वो माँग लेनी चाहिए…

मैने पतिदेव को गाड़ी रोकने को कहा और दुकान की ओर चल पड़ी…और अब्दुल के पास जा के कहा ‘हाई’.अब्दुल ख़ान मुझे देखकर उछल पड़े खुशी से… हम दुकान से बाहर आए तो देखा पतिपर्मेश्वर एक निहायत ही खूबसूरत बुर्क़ापोश लड़की को सीटी बजा कर छेड़ रहे हैं….लड़की की आँखो से ही बयान हो रहा था कि वो कितनी खूबसूरत होगी…शायद पतिपर्मेश्वर उसका हुस्न देखकर अपने होश मे नही रह गये थे…वो लड़की जिसका नाम शायद तबस्सुम था,ने पतिपर्मेश्वर के पास आते ही उनके गालो पे थप्पड़ लगा दिया..तुमने हिमाकत कैसी की तबस्सुम को छेड़ने की…पतिदेव हैरान थे कि जिसे वो अभी तक नाज़नीन समझ रहे थे,अचानक डाइनमाइट कैसे बन गयी थी…भीड़ जमा हो गयी थी वहाँ ,पातिदेव अपने गाल सहला रहे थे और तबस्सुम अपनी आँखो से शोले बरसाते हुए चीख रही थी:हम सब जानते हैं तुम जैसे लोगो को,घर मे तो बीवी को चोद नही पाते हो और बाहर जैसे ही किसी परदानशीन देखते हो कि फिसल जाते हो…

पतिदेव तबस्सुम के पैरो पर गिर पड़े:मुझे माफ़ कर दीजिए मोहतार्मा,आज से वादा करता हूँ कि किसी भी मुस्लीम लड़की की तरफ ग़लत नज़र से नही देखूँगा,देखूँगा तो इज़्ज़त की नज़र से.

तबस्सुम:हरामज़ादे,तूने मेरा पैर क्यो छुआ.तुम सारे लोग लातों के भूत हो ऐसे नही मनोगे,आज तो मैं तुझे ऐसा सबक सिखाउन्गि कि ज़िंदगी भर मुस्लिम लड़कियो से दूर भागोगे
 
कहते हुए तबस्सुम ने अपने पैरो से सॅंडल निकाला और पतिदेव के सर पर बरसाते चली गयी…बीच रोड तबस्सुम पतिदेव की ठुकाइ कर रही थी और लोग सोच रहे थे कैसा नमार्द आदमी है जो एक मामूली सी मुसलमान लड़की के हाथो कुत्ते की तरह पिट रहा है….फिर तबस्सुम ने भीड़ की तरफ मुखातिब हो कर कहा…भाईजान,आप लोग अपनी अपनी चप्पले उतार के दे…सबसे चप्पल कलेक्ट कर तबस्सुम ने एक चप्पलो का हार बनाया और पतिदेव के गले मे लटका दिया…

तबस्सुम ने पतिदेव की बेल्ट निकाली और उन्ही के गले मे कुत्ते के पट्टे की तरह लटका दी…जैसे पतिपर्मेश्वर कुत्ते हो और तबस्सुम गले का पट्टा ले के आगे आगे चल रही थी…अचानक पातिदेव शर्म से झुक कर रुक गये तो तबस्सुम गुस्से मे पलट गयी और पतिदेव के चेहरे पर आके थूक दिया…फिर ज़मीन पर थूक के बोली:चलो चाटो मेरे भैया…पतिदेव थूक पर ऐसे झपट पड़े जैसे कुत्ता कटोरी मे रखे गोश्त पर झपट ता है और तबस्सुम का थूक चाटने लगे….


अचानक वो आदमी जिसका नाम सलीम था और तबस्सुम का शौहर था आया और बोला:क्या हुआ तबस्सुम,क्यो मार रही हो बेचारे को.शौहर को सामने देखकर तबस्सुम ने अपना बुर्क़ा उतार दिया,बला की खूबसूरत थी वो,ज़िस्म भरा भरा जीता जागता कयामत था तबस्सुम.उसने ग्रीन कलर का एक टाइट सलवार सूट पहन रखा था,उसकी चूचियाँ बहुत बड़ी बड़ी और चूतड़ कसे कसे .

पतिपर्मेश्वर की जाँघो के बीच पैरो से किक लगाते हुए तबस्सुम बोल पड़ी:देखिए ना,ये मुझे छेड़ रहा था…फिर नीचे बैठ ते हुए पतिदेव के चेहरे को उपर उठाई,आँखो के सामने सलवार सूट मे कसी बड़ी बड़ी चूचिया देखकर पातिदेव के लंड ने झटका ज़रूर खाया होगा लेकिन शायद पिटने के डर से तुरंत वो अपना चेहरा झुका लिए….तबस्सुम खिलखिला के हंस पड़ी और पतिदेव के कानो मे फुसफुसा के बोली:भैया,मेरे शौहर सलीम का लंड बहुत बड़ा है…अगली बार किसी मुसलमान लड़की को छेड़ने की गुस्ताख़ी ना तो तेरी गान्ड मार लेंगे और घर मे घुस कर तेरी मा-बेहन-बीवी सबको चोद डालेंगे..कहते हुए तबस्सुम बुर्क़ा हाथ मे ली और ज़ुल्फो को लहराते हुए अपने शौहर की ओर चल पड़ी…चलते वक़्त ऐसा बिल्कुल नही लग रहा था कि अभी अभी ये आरडीएक्स बनी हुई थी…चलते वक़्त तबस्सुम की कमर मे बहुत हसीन लचक थी और टाइट सलवार सूट मे तबस्सुम के चूतड़ बहुत सेक्सी अंदाज़ मे मटक रहे थे.

पतिपर्मेश्वर तबस्सुम के बलखाते चूतड़ को हवा मे लहराते हुए तब तक देखते रहे जब तक वो सलीम के पास नही पहुच गये.सलीम ने तबस्सुम की चूतड़ पर हाथ रख के सहला दिया और तबस्सुम ने पतिदेव की ओर मुड़कर आँख मार दी और उंगली हिलाते हुए बोली:बाइ बाइ भैया

हम और अब्दुल खड़े खड़े ये तमाशा देख रहे थे…लेट हो रहा था इसलिए मैने अब्दुल ख़ान से कहा प्लीज़,मुझे वो ट्रेन वाली लूँगी दे दीजिए ,एक हिंदू औरत के लिए उसकी चूत के खून से बड़ा कुछ नही होता.अब्दुल ख़ान चूत की बात सुनकर भूल गये कि हम बीच बाज़ार खड़े हैं और लोग हमे देख रहे हैं.अब्दुल ख़ान ने मुझे आगोश मे कस लिया और गालो पे पप्पी ले ली.मैं शर्म से लाल लाल हो गयी ये सोच कर कि आज करवा चौथ के दिन कोई गैर मर्द बीच बाज़ार मेरे गालो की पप्पी ले रहा है…मैने ठुनक्ते हुए कहा:छोड़िए ना ख़ान साहब,लोग देख रहे हैं.


अब्दुल ख़ान ने शरारत से मेरे चूतड़ पर हाथ रख दिया और चिकोटी काट ली.मैं चिहुनक उठी:उफफफफफ्फ़ ख़ान साहेब आप बड़े बदमाश हैं….

अब्दुल ख़ान ने हंसते हुए मेरे गाल पे पप्पी ले ली और कहा:सीता डार्लिंग,अब जब मैं तुम्हारी चूत फाड़ ही चुका हू तो लोगो को भी देखने दो कि किस मूसल लंड से तुम चुदती हो.और रही बात लूँगी की तो तुम्हारी चूत तो तुम्हारे पास है,मेरे पास अपनी चूत की निशानी तो रहने दो.वैसे मैने अभी अभी उसे मस्ज़िद की दीवाल पर सूखने के लिए पसारी है. मेरी चूत और गाल दोनो शर्म से लाल लाल हो गये.ये मस्ज़िद हमारे मोहल्ले के बगल मे ही था.
 
मैने अब्दुल ख़ान को गले मे लटकी मन्गल्सुत्र की ओर इशारा करते हुए कहा:ख़ान साहेब,आज करवा चौथ है,मुझे पति के लिए पूजा करनी है.चलती हूँ…लेकिन अब्दुल ख़ान मेरा मन्गल्सुत्र कहाँ देख रहे थे ,वो तो मेरे मन्गल्सुत्र के दोनो तरफ तनी तनी चूचियो पर नज़र टिकाए हुए थे.अब्दुल ख़ान ने चूतड़ पर हाथ फिराते हुए फिर से मेरे गालो पे पप्पी ले ली और कहा:सीता डार्लिंग,कितने दिनो बाद तो मिली हो,आते ही पूजा पूजा,पहले चुद तो लो.मेरी चूत के होंठो पे लाली आ गयी करवाचौथ मे किसी गैरमर्द से चुदने की बात सुनकर…इस से पहले कि मैं इनकार करती, अब्दुल ख़ान ने मेरे गले मे हाथ डाल दिया और मुझे लेकर चल पड़े.मेरी चूचियो के सामने उनका हाथ झूल रहा था जिसे लोगो की नज़रो से बचाकर वो मसल देते थे…सामने लटका मन्गल्सुत्र चूचियों की मीस्साई मे दिक्कत कर रहा था…मैने उसे दूसरी चूची के ब्लाउस मे डाल कर अंदर कर दिया….पता नही कौन से खंडहर मे ले जाके अब्दुल ख़ान ने मेरी दो बार चुदाई की…चुदाई के बाद मेरी चूत और गालो दोनो मे रंगत आ गयी थी….फिर मैं खंडहर से निकल कर मंदिर गयी और पूजा करके वापस घर आ गयी.


सारे मुसल-मान भाइयो और हिंदू भाइयो को फिर से सीता देवी की तरफ से आदाब….आप सोच रहे होंगे कि मैं आदाब क्यो बोल रही हूँ…..तो जब से मैं ट्रेन मे नॉवब साहेब से चुद्कर आई हू,मेरे मन मे मुस्लिम तहज़ीबों के सीखने की ललक आ गयी है.10 दिन हो गये थे नवाब जी से मिले हुए लेकिन रोज रात को सपने मे आकर मुझ पर चढ़ जाते थे.पतिदेव से पैर और तलवे चटवा कर थक चुकी थी,अब चाहती थी कि ब्लाउस फाड़ कर बाहर आने को बेताब चूचियों को दाब कर अंदर करे.

खैर अब मैं उस हसीन हादसे के बारे मे बात करूँ जिसने मेरी ज़िंदगी मे ख़ुसीयों की किल्कारी ला दी.उस दिन रक्षाबन्धन था.मैं सुबह सुबह नाहकर तैयार हुई मंदिर जाने के लिए,वापस आकर मुझे अपने भाई बबलू को राखी बांधनी थी.मैने ब्लॅक कलर की सिफ्फोन की साड़ी पहनी थी.बाल खुले हुए थे और कमर तक आ रहे थे.बदन गदरा जाने के कारण बॉडी से चिपक सी गयी थी और एक एक उतार चढ़ाव बयान कर रही थी.हाथ मे पूजा की थाली लेकर मैं आगे बढ़ी तो साड़ी की क़ैद मे फँसे मेरे मतवाले चूतड़ सिहर गये और आपस मे लड़ गये.मेरे चूतड़ के दोनो पाट एक दूसरे को थप्पड़ मारते हुए आगे बढ़े तो हाथ मे पूजा की थाली भी थरथरा गयी.नीचे सड़क पर आई तो महसूस किया कि जो जहाँ है, वहीं से मेरे मदमस्त चूतडो के डॅन्स का मज़ा ले रहा है.हो भी क्यों ना जबकि इन्ही चूतडो की बस कुछ थिरकन देख कर पतिदेव अपनी नूनी लिए हाथ मे ही झाड़ जाते थे.

कुछ दूर आगे बढ़ी तो एक मस्ज़िद के पास से गुज़र रही थी,अचानक मैने मस्ज़िद की दीवार पर देखा तो चौंक गयी…वहाँ वोही अब्दुल ख़ान वाली जैसी कोई लूँगी सूखने के लिए पसारी हुई थी,मेरी चूत मे एक हुक सी उठी.मन हुआ कि जा के देखु कि ये वोही लूँगी है या नही.लेकिन कोई देख लेगा ये सोच कर नही गयी और सोचा कि अब जब ख़ान साहेब मेरी चूत फाड़ ही चुके हैं तो ये फाडी हुई लूँगी ले कर मैं करूँगी भी क्या…

पूजा की थाली मे देखा तो दिए की लौ फक फक कर रही थी.मैने सोचा लेट ना हो जाउ,सो तेज़ी से आगे बढ़ गयी.मंदिर की पहली सीढ़ी पर पाँव रखते ही मेरे पैर लड़खड़ा गये.मैं गिर ही जाती अगर किसी ने पीछे से आकर मेरी कमर को थाम ना लिया होता..उसकी हाथों के दम पर मेरे चूतड़ और मैं अटकी हुई थी.देखा तो अब्दुल ख़ान साहेब थे.अपने चूतडो को अब्दुल जी के पंजो से छुड़ाते हुए मैं पूजा की थाल लेने आगे बढ़ी जो नीचे गिर गयी थी.पूजा की थाल उठा कर मैं पीछे मूडी तो ख़ान साहेब के हाथ मे वोही खूनी लूँगी थी..पाँव थोड़ा मुचक जाने के कारण मैं ठीक से चल नही पा रही थी..अब्दुल जी ने लूँगी बाए हाथ मे लेकर दाए हाथ से मुझे सहारा दिया.

मैने एक हाथ मे पूजा की थाली ले ली और दूसरा हाथ अब्दुल जी के कंधे पर रखा और अब्दुल जी ने मेरी कमर पर हाथ रख दिया..हम मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे और अब्दुल जी का हाथ फिसल कर मेरे मदमस्त चूतडो पर आ गया था.एक तो साड़ी इतनी पतली और मेरा गदराया हुआ ज़िस्म उसपर साड़ी इतनी टाइट.लग रही थी जैसे ख़ान साहेब मेरे नंगे चूतडो को दबा रहे हैं.मेरी चूत मे खलबली मच गयी और इधर ख़ान जी इतने शैतान कि जैसे मंदिर मे ही मेरी चूतडो की मालिश कर देंगे.नवाब जी मेरे चूतडो को भगवान की मूर्ति सामने आने के बाद ही पंजे से आज़ाद किए और फिर पीछे जाकर खड़े हो गये.मैं पूजा की थाल लेकर नीचे झुकी और पूजा करके पीछे मूडी तो देखा अब्दुल जी की नज़रे बदस्तूर मेरे चूतडो पर थी…मैं पूजा की थाल लेकर आगे बढ़ी तो मेरी साड़ी का पल्लू नीचे लहरा गया और दोनो बड़ी बड़ी चूचियाँ कारगिल पर तैनात सिपाही की तरह तन गयी.अब्दुल जी ने मेरा पल्लू उठाया और मेरी चूचियों को हाथ से रगड़ते हुए पल्लू मेरे कंधे पर रख दिया. शैतान इतने अब्दुल जी कि हाथ को लौटते वक़्त मेरी चूचियों को ज़ोर से मसलना नही भूले.मैं सिसकी तो ख़ान साहेब ने सहारा देते हुए मेरे चूतडो पर हाथ रख दिया और हम मंदिर से बाहर की तरफ निकले.ख़ान साहेब जाना चाहते थे,लेकिन मैने ज़िद्द करके कहा,नही भाईजान,आज से आप मेरे भाई हैं बिना राखी बाँधे मैं आपको जाने नही दूँगी.घर आने तक रास्ते भर अब्दुल जी ने मेरी चूतडो की मालिश की.बीच बीच मे वो मेरे चूतडो पर ऐसी चपत लगा देते कि पूजा की थाली डोलने लगती.
 
अब्दुल जी और हम घर पहुचे और बेल बजा दी….दरवाज़ा पतिदेव ने खोला,उनके हाथ मे एक पानी भरी थाल थी.मैने पतिदेव से कहा दो थाल लेकर आइए और फिर हम सोफे पर जा कर बैठ गये.पतिदेव दो थाल लेकर आए और आकर हमारे पैरो के पास नीचे बैठ गये.मेरा एक पाँव थाली मे डालते हुए पतिदेव मेरे तलवे धोने लगे और पूछा;
पतिदेव-मेडम जी,ये साहब कौन हैं???इनको तो पहले कभी नही देखा.

मैं(सीता)-अरे,आपको बताया तो था,ट्रेन मे एक अब्दुल भाईजान मिले थे,मेरी बहूत मदद की थी.

पतिदेव -ओह्ह्ह….तब तो मेरे लिए ये भगवान हैं
कहकर पतिदेव मेरा पाँव धोना बंद कर दिए और अब्दुल ख़ान की तरफ मुड़कर हाथ जोड़कर खड़े हो गये और कहा

पतिदेव-अब्दुल जी ,किस मूह से शुक्रिया अदा करूँ,ये मेरी बीवी ही नही ,देवी हैं,मैं अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करता हूँ इनसे,पूजा करता हूँ मैं इनकी,इनको खरॉच भी आने के ख़याल से मैं कांप जाता हूँ,आपने इनकी मदद करके मुझ पर बहुत बड़ा अहसान किया है. कहकर पतिदेव मेरे पैरों पर हाथ रखकर रोने लगे.इतने मे पातिदेव ने अब्दुल ख़ान जी के भी पाँव धो दिए थे.

मैने अब्दुल जी को मुस्कुरा के आँख मारी तो अब्दुल जी ने वही खूनी लूँगी निकाल के झटका और पास मे ही फैला दिया.मैने पतिदेव के आँसू पोंछे और दिलासा देते हुए कहा;

मैं(सीता)-क्यों घबराते हो जी,मैं तुम्हे छोड़कर कही नही जाने वाली

पतिदेव-आप नही जानती मेडम जी,आपके बिना मेरा समय कैसे कटता है

मैं(सीता)–अच्छा चलिए अब अच्छे बच्चे बनिये और मेरे भाई को भेज दीजिए,मुझे राखी बांधनी है बबलू को.

उधर पतिदेव सरपट भागे और इधर अब्दुल जी मेरे पीछे आकर प्यार से ज़ोर का तमाचा मेरी चूतडो पर जड़ दिए,मेरे चूतड़ थरथरा गये…तभी बबलू,मेरे छोटे भाई ने दरवाज़े पे कदम रखा और बोला;

बबलू-सीता दीदी,ये कैसी आवाज़ थी?

मैं(सीता)-कुछ नही भाई,अब्दुल भाईजान ने मच्छर मारा था,चलो अब जल्दी से राखी बँधवा लो.

बबलू-सीता दीदी,जानता हू,इस त्योहार मे हर भाई अपनी बेहन का पहरेदार बना रहता है मैं भी तुम्हारी ख़ुसी के लिए ज़िंदगी भर आगे रहूँगा.

मैने जब तक बबलू को सोफे पर बैठके उसके हाथ मे राखी बँधी तब तक वो पास पड़ी हुई लूँगी को छू छू के देखता रहा और फिर मेरा भाई ट्यूशन के लिए चला गया…तब मैने अब्दुल जी को सोफे पर लाके बैठा दिया और पूजा की थाली लेने चली गयी…अब्दुल जी मेरे मदमस्त चूतडो की मतवाली चाल का मज़ा तब तक लेते रहे जब तक मैं ओझल ना हो गयी…पूजा की थाल लेकर मैं अब्दुल जी के पास पहुचि और हाथ पकड़ के खड़ा कर दिया उनको,फिर मैने नीचे बैठे हुए कहा

मैं(सीता)-नवाब जी…आज से आप मेरे अफीशियल भाई हैं और पहले रक्षाबन्धन मे आपकी ये हिंदू बेहन इस रेशम की डोर को बाँधने के अलावा और कुछ नही कर सकती…चलिए अपने पाजामे का ज़ारबंद खोलिए

अब्दुल-लेकिन क्यों??????

मैं(सीता)–आप खोलिए तो भाईजान

अब्दुल-मैं नही खोलता,काम तुम्हारा है,तुम ही खोलो

मैंने हाथ बढ़ाकर उनके पाजामे के ज़ारबंद को तोड़ दिया और नीचे गिरा दिया,हाफ कट अंडरवेर मे अब्दुल जी का 9 इंच लंबा लंड चिंघाड़ रहा था.मैने आगे बढ़कर जैसे ही उनकी अंडरवेर नीचे की,अब्दुल जी का फौलादी लंड मेरे होठों पर दस्तक देने लगा …एकबारगी तो मेरी चूत ही सिहर उठी अब्दुल जी का लंबा और मोटा लंड देख कर..उस रात मैने इसको हाथ और चूत मे तो लिया था लेकिन देखने का सौभाग्य नही मिला था…जल्दी से मैने पूजा की थाल उठाई और उसमे से चंदन निकाल कर अब्दुल जी के खड़े लंड पर टीका लगा दिया,,अब्दुल जी का लंड घोड़े की तरह हिनहिनाने लगा…मैने एक दिया जला कर पूजा की थाली मे रखा और मन्त्र पढ़ते हुए अब्दुल जी के लंड को आरती दिखाने लगी…फिर फूलों की एक छोटी सी माला लेकर अब्दुल जी के लंड को पहना दी और खड़ी हो गई.अब्दुल जी ठगे से देखते रहे फिर बोले

अब्दुल-लेकिन सीता बेहन,मेरा प्रसाद कहाँ है

मैं(सीता)-अब्दुल भाईजान,आपने तो दिखा दिया कि आप मुस्लिम भाई अपनी हिंदू बहनो की रक्षा के लिए कैसे कैसे मिज़ाइल रखते हैं,अब मैं बताती हूँ कि हम हिंदू बहनें अपने मुस्लिम भाइयों के लिए कौन सा प्रसाद मक्खन मार के रखती हैं
 
मैं अब्दुल जी के ठीक सामने पहुच गयी और उनके दोनो हाथ पकड़कर अपनी ब्लाउस के उपर चूचियों पर रख दिया.फिर कहा,नवाब साहेब,ये है आपका प्रसाद और इन ही से चरना-अमृत निकाल कर आपको पीना है.अब्दुल ख़ान जी ने मेरी ब्लाउस मे क़ैद कबूतरों को इतनी ज़ोर से मसल दिया जैसे पूरा हिन्दुस्तान उनकी मुट्ठी मे आ गया हो.मैं दर्द से चीख उठी और छिटक कर अलग खड़ी हो गयी.

खाना खाकर हम अपने डेलक्स रूम मे आ गये….पातिदेव पूजा की थाल लेने चले गये,हर जुम्मे को पतिदेव मेरी पूजा करते थे रात मे और फिर रात भर मेरे पैरो तले बैठ कर सेवा करते थे कि शायद किसी दिन मेरा दिल उन पर रहम खाए और मैं अपने बदन के उतार चढ़ाव को छूने दूं…पतिदेव की बदक़िस्मती कि मैने रात भर तड़पने के डर से कभी हाथ भी ना लगाने दिया.

अब्दुल ख़ान रूम मे पहुच के नमाज़ पढ़ने लगे.मैने भी सोचा अब तो मैं भी मुस्लिम ही हो चुकी हूँ सो उनके बगल मे बैठ कर मैं भी नमाज़ पढ़ने लगी…ख़त्म हुआ तो देखा पतिदेव बगल मे पूजा की थाल लेकर खड़े हैं…अब्दुल ख़ान मेरी चूत के खून से भींगी अपनी लूँगी बिछा कर नमाज़ पढ़ रहे थे…मैने पतिदेव से कहा,आप नीचे बैठ जाइए,पूजा कुछ देर बाद सुरू होगी,पहले मुझे अब्दुल भाई जान की खिदमत करनी है….बिना जवाब सुने मैं अपने भारी चूतड़ पतिदेव के सामने लहराते हुए अब्दुल जी के पास चली गयी जो अभी अभी नमाज़ पढ़ कर उठे थे.पतिदेव का नूनी और चेहरा दोनो झुक गये.अब्दुल ख़ान ने पास आते ही मेरे मदमस्त चूतडो पर हाथ रखके उठा लिया और मेरे गालो पर एक ज़ोर की पप्प्प्पी जड़ दी…मैने अब्दुल भाई जान के लिए स्पेशल मेकप किया था खाने के बाद,और सोने की एक नथनी भी पहन ली थी…एक तो मेरे गाल ऐसे माखन की तरह चिकने उस पर पाउडर ने उसे पेरिस की सड़कों की तरह चिकना कर दिया था..अब्दुल ख़ान लगातार मेरे गालो पे पप्प्पी लिए जा रहे थे,लेकिन मुझे लग रहा था जैसे वो मेरी चूत पे पप्प्पी ले रहे हैं…अचानक वो मेरे होंठो को चूसने लगे…मैं मचलने लगी तो अब्दुल जी ने मुझे नीचे उतार दिया और कहा;

अब्दुल-सीता डार्लिंग,अब तो मेरा प्रसाद दे दो,मुझे चरना-अमृत भी पीना है

मैने इतराते हुए भौं मटकाई और कमर को झटका देते हुए चूतड़ मटकाए और कहा;

मैं(सीता)-नवाब जी,ये प्रसाद तो ज़िंदगी भर आपका है,जब चाहे तब डब्बे से निकाल के खा सकते हैं

सुनते ही अब्दुल जी का लंड हिनहिनाने लगा..वो तुर्रंत आगे बढ़े और कंधे से मेरी साड़ी का आँचल नीचे गिरा दिया…मेरी चूचियाँ इतनी ओवरसाइज़ हैं कि ब्लाउस मे कसी हुई थी ,मेरी चूचियों का बहुत सा पार्ट बाहर झाँक रहा था,साँस के उतार चढ़ाव के साथ मेरी चूचियाँ भी अप-डाउन हो रही थी,लग रहा था जैसे हिमालय के तो पहाड़ सीना ताने खड़े हैं और उनकी चोटियाँ इतनी नोकिली जैसे किसी ने वहाँ परचम गाढ दिया हो.अब्दुल ख़ान ने मेरे पीछे आकर दोनो हाथो से मेरी चूचियों को गिरफ़्त मे लिया और ऐसे मसल्ने लगे जैसे संतरा मसल रहे हो…मेरी चूत सनसना गयी..मैं अलग हुई तो वो अपने पाजामे का ज़ारबंद खोलते हुए सारे कपड़े उतार दिए…अब अब्दुल जी मेरे सामने जन्मजात खड़े थे और उनका खूटे जैसा तना हुआ लंड सलामी दे रहा था…मैने अपने होंठो पर ज़ुबान फेरी तो अब्दुल जी हाथ पीछे कर के मेरे ब्लाउस के बटन चटकाने लगे .नीचे मैने ग्रीन कलर की ब्रा पहनी थी..अब्दुल ख़ान ने मेरी ब्रा का हुक तोड़ दिया…लगा जैसे किसी पिंजड़े का दरवाज़ा तोड़ दिया हो.घंटो क़ैद मे फँसे मेरे दोनो कबूतर फर्फरा के उड़ना चाहे लेकिन अब्दुल ख़ान के हाथों मे फँस गये…मेरी नंगी चूचियों को छूते ही नवाब साहेब जोश मे आ गये..बाई चूची के निपल को चुटकी मे दबा कर सहलाते रहे और दाई चूची को ज़ोर से मसल दिए,

मेरी चूत मे जैसे करेंट लगा…मेरी हालत देखकर अब्दुल ख़ान ने बाई निपल को भी पकड़ कर ज़ोर से मसल दिया….मैं सिसक उठी,’उईईईईई मुंम्मी’मेरी चूची से दूध की एक मोटी धार निकल के ज़मीन पर गिर पड़ी…मैं ख़ुसी से पागल हो उठी,ख़ान साहेब ने महज़ 10 दिनो मे कमाल कर दिखाया था..मैने अपनी चूचियों को अब्दुल ख़ान के हाथो मे फ्री छोड़ दिया.फिर तो नवाब जी ने मेरी चूचियों का मंथन ही करना सुरू कर दिया..अब्दुल ख़ान से अपनी चूचियाँ मसलवा कर मेरी जाँघो के बीच की सहेली गीली हो गयी थी.
 
अब्दुल जी ने मेरे मन की बात समझते हुए मेरी चूचियो को आज़ाद किया और मेरा आँचल पकड़ कर खिचते चले गये…नीचे ग्रीन कलर की पेटिकोट देखते ही अब्दुल ख़ान के हाथों ने मेरी पेटिकोट के नाडे को तोड़ दिया.मेरी पेटिकोट अब नीचे पड़ी थी और मैं अब सिर्फ़ पिंक कलर की नक्कासीदार पैंटी मे अब्दुल ख़ान के सामने खड़ी थी…अपनी जाँघो के बीच ही अब्दुल जी को देखते हुए मैं शरम से पानी-पानी हो गयी..हाला कि वो मुझे चोद चुके थे लेकिन कभी मेरा बदन नही देखा था,सो मेरी नज़रे झुक गयी.अब्दुल ख़ान पैंटी के उपर से ही मेरी चूत सहला दिए और गालो पे चुम्मि ले ली..

तबतक मुझे याद आया,पतिदेव मेरी पूजा करने के लिए बैठे हैं…मैने पतिदेव को बुलाया ,पतिदेव को जैसे सब पता था, क्या करना है.पूजा की थाल नीचे रख कर पतिदेव ने मेरी पैंटी उतारी और मुझे बेड पर बैठा के खुद नीचे बैठ गये…फिर थाल मे से फूल निकाल के मेरी चूत पर चढ़ा दिए और जल डाल कर ऐसे साफ करने लगे कि मेरी चूत साफ हो फूलों की बदौलत और उनकी उंगलियाँ भी टच ना हो…फिर आँख बंद कर के हाथ जोड़ लिए.मैं बेड से उठकर खड़ी हो गयी और पतिदेव मेरे सामने हाथ जोड़े नीचे बैठे थे.मेरी चूत पतिदेव के सामने थी और चूतड़ अब्दुल ख़ान की तरफ जो सोफे पर बैठे थे…मेरे नंगे चूतडो को देखते ही अब्दुल ख़ान बर्दस्त से बाहर हो गये..एक तो मेरे मलाई जैसे चिकने चूतड़,उस पर डनलॉप के गद्दे की तरह फूले हुए…..कमर पर दोनो हाथ रखे हुए मैं हौले हौले हिल रही थी तो मेरे मदमस्त चूतडो मे कंपन हो रहा था..अब्दुल ख़ान ने ना तो मेरे नंगे चूतडो को देखा था और ना ही दबाया था.अचानक ना जाने क्या हुआ कि अब्दुल ख़ान पीछे से आए और मुझे थोड़ा झुका दिए,अभी मैं कारण सोच ही रही थी कि अब्दुल ख़ान ने अपना हाथ हवा मे पीछे लहराया और मेरी नंगी चूतडो पर ज़ोर का थप्पड़ लगा दिया..मैं आह भर उठी,जहा अब्दुल ख़ान का हाथ पड़ा था,वहाँ उनके पंजो का निशान पड़ गया था और मेरी चूतड़ लाल हो गयी थी.थप्पड़ की आवाज़ से पतिदेव की आँखे भी खुल गयी थी,पतिदेव ने जल्दी से दिया उठाकर मेरी चूत की आरती उतारी,फिर पैरो पर माथा टेक कर मेरे तलवे चूम लिए…फिर थाल रखने बाहर निकल गये.
पतिदेव के जाते ही अब्दुल ख़ान ने मुझे गोद मे उठा लिया और बेड पर पेट के बल पटक दिया….फिर ड्रेसिंग टेबल से बॉडी लोशन उठा कर आए,क्रीम निकाल कर मेरी चूतडो पर लगा दिए और हौले हौले मसाज करने लगे…मेरी मदमस्त चूतड़ अब और भी चमकीली हो गयी थी..बीच बीच मे अब्दुल ख़ान मेरी चूतडो पर थपकी भी लगा देते.फिर अब्दुल जी मुझे सीधा लेटा कर मुझ पर चढ़ गये और गालों पर पप्प्पी लेने लगे….तब तक पतिदेव भी आ गये.मुझे इस हालत मे देखते ही वो रो पड़े और बेड के कोने मे बैठकर मेरे पैर दबाने लगे..अब्दुल अभी भी मेरी चुम्मि लिए जा रहे थे,सो मैं अपने होश मे नही थी…पतिदेव बड़े चालबाज़ थे,तलवो से धीरे धीरे वो मेरी जाँघो पर आ गये थे .पतिदेव मेरी चूत छू ही लेते अगर मैं तुरंत उनके सीने पर लात मार के ना गिरा देती.मैं बेड से उठी तो पतिदेव नीचे गिरे पड़े थे…मैने पैर मे सॅंडल पहन रखी थी,मैं गयी और उनके जाँघो के बीच एक ज़ोर की किक लगा दी,पतिदेव अपना नूनी हाथ मे पकड़े दर्द से बिलबिला रहे थे.मेरे गाल गुस्से से लाल हो गये थे,कह ही उठी मैं

मैं(सीता)-तुमने हिमाकत कैसे की मेरे सामान को हाथ लगाने की मेरी मर्ज़ी के बिना

पतिदेव(दर्द से कराहते हुए)-प्लीज़ मेडम जी ,एक बार ,सिर्फ़ एक बार अपनी चूत छू लेने दीजिए,मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ,पैर पकड़ता हू,मुझे माफ़ कर दीजिए लेकिन प्लीज़, प्लीज़,प्लीज़ मुझे अपनी चूत छू लेने दीजिए

मैं पतिदेव के गालो पर थप्पड़ जड़ने ही जा रही थी कि मन मे एक ख़याल आया और मेरे होठों पर कातिलाना मुस्कुराहट आ गयी…पतिदेव ने सोचा कि काम बन गया.मैने पतिदेव के सर पर हाथ फेरते हुए कहा

मैं(सीता)-ठीक है लेकिन एक शर्त पर….जब तुम मुझे खुश कर दोगे,मेरा हर हुक्म मुस्तैदी से पूरा करोगे

पतिदेव ने नीचे मूह झुका कर मेरे पैरों को चूमा और कही मैं इरादा ना बदल दू ,इसी डर से पूछ बैठे;
पतिदेव-जल्दी बोलिए मेडम जी,क्या करना है मुझे??

मैं(सीता)-मैं तुम्हे अपनी चूत तभी छूने दूँगी जब तुम मेरी गान्ड चाटोगे
 
मैने अपने मक्खन दार चूतड़ ,जो कीम की वजह से शाइन कर रहे थे;पतिदेव की लप्लपाति जीभ के सामने कर दिए,पतिदेव ने दोनो हाथों से मेरे चूतड़ पकड़ के जैसे ही जीभ आगे बधाई,मेरे चूतड़ गुस्से से पागल हो गये.मैने पतिदेव के गालो पर ज़ोर का तमाचा लगाया तो उनकी आँखो मे आँसू आ गये,शायद वो सोच रहे थे कि क्या ग़लती की है?मैने उनके बाल पकड़ के कहा
मैं(सीता)-नही पतिदेव जी,छूना नही है ,सिर्फ़ चाटना है

अब्दुल ख़ान शायद मेरे पतिदेव की परेशानी समझ गये…पास आकर अब्दुल ख़ान मेरे चूतडो को थाम लिए तो मैने मुस्कुरा के उनको आँख मार दी.अब्दुल ख़ान मेरे चूतडो को फैला के खड़े थे और पतिदेव अपनी जीभ मेरी गान्ड के सामने कुत्ते की तरह फैला के खड़े थे…पतिदेव मेरे अशोल पे जीव रख कर चाटने लगे लेकिन होल इतनी टाइट थी कि जीभ अंदर घुस नही रही थी….अब्दुल ख़ान ने मेरे पतिदेव के सर को मेरे चूतड़ से दूर करते हुए मुझे झुका दिया….फिर नीचे बैठ कर मेरे चूतड़ के दोनो पाट पर जोरदार तमाचे लगाते चले गये,कभी इस हाथ से तो कभी उस हाथ से…मेरे चूतड़ कराह रहे थे लेकिन खुश हुई कि मेरा आस होल अब थोड़ा ढीला हो गया,अब मैं आराम से पतिदेव से अपनी गान्ड चटवा सकती थी…..और सच मे,उसके बाद पतिदेव ने मेरे अशोल मे अंदर तक जीभ घुसा के सफाई की,तब तक सामने से अब्दुल ख़ान मेरी चूचियों की मिसाई करते रहे…..अशोल चटवा के मैं मस्त हो गयी थी लेकिन पेशाब लग गयी थी….मैने सोचा टाइम वेस्ट हो जाएगा सो पतिदेव को मूह खोलने के लिए कहा…और अपनी चूत सामने करते हुए उनके सर को पकड़ लिया…….मेरी चूत से पेशाब की एक मोटी धार निकली और पतिदेव उसे अमृत की तरह पीते चले गये….मेरा पिशाब पी लेने के बाद पतिदेव ने अपने होठों को ऐसे पोन्छा जैसे लस्सी पी हो.

इस वाकये मे मैं बहुत थक चुकी थी ,सो पति देव को अपने पैर दबाने के लिए कहा कि घुटने से उपर नही बढ़ना है…पतिदेव बहुत देर तक मेरे पैरो की मालिश करते रहे….तब तक अब्दुल ख़ान कमरे से निकल कर पता नही,कहाँ चले गये थे…..

पता नही, अब्दुल ख़ान कहाँ गये थे लेकिन जब आए तो शैतानी से बाज़ नही आए और आते ही मेरे चूतडो पर थप्पड़ लगा दिए…..फिर मुट्ठी खोल के दिखाए तो उसमे एक सोने की रिंग थी जिसके बीच मे जाड़ा हुआ डाइमंड दूर से ही चमक रहा था,उसमे एक छोटा सा घुँगरू भी था..मैने पूछ ही लिया;

मैं(सीता)-ये क्या है नवाब जी?

अब्दुल(मेरी नथुनि पर हाथ फेरते हुए)-सीता डार्लिंग,हम नवाब हैं,जब भी किसी की सील तोड़ते हैं तो कुछ तोहफा ज़रूर देते हैं…उस दिन मैने ट्रेन मे तुम्हारी नथ तो उतार दी थी लेकिन उस वक़्त मेरे पास कुछ तोहफा नही था,इसे तो अब मैं अपने हाथों से तुम्हारी चूत मे पहनाउन्गा
मैं चिहुनक उठी;
मैं(सीता)-उउईईईईई दैयाआअ ,चूत मे?????????

अब्दुल-हां सीता डार्लिंग,जब तक तुम्हारी चूत मे ये घूँघरू बजता रहेगा,तब तक तुम्हे याद रहेगा कि तुम्हारी चूत की सील अब्दुल ख़ान ने तोड़ी है.

फिर अब्दुल ख़ान ने चुटकी से मेरी चूत को फैलाते हुए चूत मे रिंग गाँठ दिया…कलाकार ऐसे की चूत मे रिंग पहनते हुए मुझे सिर्फ़ हल्का सा दर्द हुआ….मेरी चूत पर सोने की रिंग ऐसी फॅब रही थी जैसे माथे पे बिंदिया.

देखकर नवाब जी का लंड हाथी की तरह चिंघाड़ने लगा…अब्दुल ख़ान ने मेरे दोनो पैर कंधे पर रखते हुए चूत के मुहाने पर अपना मूसल रगड़ दिया……मेरी चूत हाई हाई करने लगी थी…अब्दुल ख़ान ने मेरी चूत मे धीरे से लंड घुसाया तो फिर से बहुत दर्द हुआ .हाला कि अब्दुल ख़ान मेरी चूत की झिल्ली ट्रेन मे ही फाड़ चुके थे,फिर भी मेरी चूत इतनी टाइट थी कि उंगली भी मुस्किल से घुसती,नवाब जी का लंड तो फिर भी बंपिलाट था,9इंच लंबा और बेलन जितना मोटा…..मुझे लगा आज मेरी उस खूबसूरत चूत की धज्जियाँ उड़ जाएगी,जिस पर मुझे बड़ा नाज़ था…..लेकिन नवाब जी तो दूसरे ही मूड मे थे…ऐसा धक्का मारा मेरी चूत मे कि मेरी चूत ककड़ी की तरह फट ती चली गयी और अब्दुल ख़ान तो ऐसे गुस्से मे थे
 
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