hotaks444
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" अरे मेरी बाँकी छिनार ननदो , जरा आँख खोल के देख न "
मेरी आँखे फटी रह गईं।
रॉकी था।
रॉकी ने अब तक कितनी बार पिंडलियों को , कई बार घुटनो से ऊपर भी ,... लेकिन सीधे वहां ,... आज पहली बार।
भाभी की माँ वहीँ बैठी थी और मेरी भाभी , चंपा भाभी , नीम के पेड़ से टंगे झूले पे , ....
बसंती और गुलबिया मेरे सर के पास ,
लेकिन निगाहें सबकी वहीँ ,
लेकिन मेरी निगाह ,रॉकी के ,...
वो इस तरह खड़ा था की उसका पिछला हिस्सा मेरे चेहरे के एकदम पास ,...
और मेरी निगाहें वहीँ ,
एकदम जोर से खड़ा लाल खूब कड़ा ,
पहले भी कई बार मैंने देखा था , मुझे देख कर उसका खड़ा हो जाता था लेकिन आज तो एकदम मोटा सॉलिड खूंटा हो रहा था। लिपस्टिक की तरह नोंक निकली थी।
मन तो कर रहा था पकड़ लूँ ,
और गुलबिया से ज्यादा मेरे मन की बात कौन समझता ,उसने मेरे कोमल कोमल हाथ पकड़ के मेरी मुट्ठी में थमा दिया ,और मैंने दबोच लिया।
एकदम लोहे के राड ऐसा कड़ा सख्त ,लेकिन खूब मांसल भी।
मुझे गुलबिया ने जबरन पकड़ा तो दिया था रॉकी 'का', लेकिन मैं सकपका रही थी , झिझक रही थी।
" अरे तानी मुठियाओ ,सहलाओ ,दबाओ ,... तेरे यार का लण्ड है। " गुलबिया ने चढ़ाया और अपने आप मेरे बिन चाहे ,मेरी कोमल मुट्ठी उसके इर्द गिर्द दबाने लगी सहलाने लगी।
असर रॉकी पर तेजी से हुआ ,उसके सपड सपड चाटने की तेजी बढ़ गयी और मेरी मस्ती भी।
मेरे चूतड़ अपने आप ऊपर हो रहे थे , जोर जोर से मैं सिसकिया ले रही थीं , मन बस यही कर रहा था की अब ,...
ओर माँ ( भाभी की माँ ) बोल ही पड़ी ,
" अरे जो तुम मुठिया रही हो न , वो मुट्ठी में नहीं कही और लेने की चीज है। मौसम भी है ,मौका भी है। हिम्मत कर के बस एक बार निहुर जाओ ओकरे आगे ,बाकी का काम तो उहे करेगा। "
मेरी अंगूठा 'उसके ' टिप तक जा पहुंचा और मैंने हलके से सहला दिया। दो बूंदे प्री कम की टपक गईं ,
उपर आसमान में एक बार फिर से घने बादल छा गए थे। हलकी हलकी हवा चल रही थी। धूप एकदम से गायब हो गयी थी। हम सब हलकी हलकी परछाईयों की तरह दिख रहे थे। मेरी भाभी और चंपा भाभी भी माँ के पास आकर बैठ गए थे , मेरी उठी फैली टांगो के दोनों और , ...
तबतक माँ ने जैसी उनकी आदत थी , गुलबिया को हड़काया ,
" तुँहुँ लोग न , चार चार भौजाई बैठी हो , और बिचारी ननद ऐसी गरमाई ,पियासी ,... अरे कच्ची कली है , नए जोबन वाली , चलो ,... "
माँ का इशारा काफी थी , तुरंत गुलबिया और बसंती ने मिलकर मुझे पलट दिया और चंपा भाभी ने मेरे बड़े बड़े चूतड़ हवा में उठा दिए , गुलबिया भी उधर पहुँच गयी और एकदम मैं डॉगी पोज में , सर के पास बसंती मेरे दोनों हाथ दबोचे , मुझे झुकाए और पीछे से गुलबिया , मैं एक दम निहुरी ,
रॉकी पल भर के लिए अलग हुआ होगा , लेकिन अब फिर उसने जैसे किसी कुतिया की चूत चाट चाट कर के उसे तैयार करे , ... एक बार फिर से उसकी जीभ मेरी रस की प्याली पे ,
मैं तैयार तो कब से थी , गरम भी , मेरे पैर अपने आप फ़ैल गए थे , खूब चौड़े ,जैसे उसे दावत दे रहे हों ,
मुझे लग रहा था वो अब सटायेगा ,घुसाएगा , , अब ,.. अब ,...
रॉकी का ' वो ' ... उसका टिप मैंने महसूस किया , ... लेकिन
लेकिन
कुछ नहीं हुआ।
मेरी भाभी , वो बीच में आगयी , बोली ,
" अभी नहीं , बिचारी थकी है फिर कभी भी बारिश शुरू हो सकती है। "
लेकिन उनका असली कारण उन्होंने फुसफुसा के माँ और गुलबिया दोनों से बोला , लेकिन मैंने सुन लिया ,
" आज नहीं ,देख नहीं रही हो , आगे पीछे दोनों छेदो में कम से कम दो कटोरी मलाई , दो दो लौंडों से मरवा के आ रही है। मलाई देख न ऊपर तक बजबजा रही है , चू रही है। ऐसे में तो ,... ये सट्ट से घोंट लेगी ,न कउनो दर्द न चीख चिल्लाहट कया मजा आयेगा , हम लोगों को । अरे जब १०-१२ घंटे तक कुछ गया न हो अंदर ,एकदम सूखी हो , फाड़ते दरेरते अंदर जाए , इसकी परपराए ,छरछराए ,.. रो रो के बेहाल हो जाए , आधे गाँव में एकर चीख पुकार न सुनाय पड़े तो क्या मजा रॉकी को एकरे ऊपर चढाने का , ...
माँ से पहले गुलबिया ने ही बात समझ ली और उसने रॉकी को , ... हटा दिया।
लेकिन वो भी उसने चाट चाट के ही मुझे झाड़ दिया ,
फिर तो मैं बस मजे से बेहोश ही हो गयी।
मेरी आँखे फटी रह गईं।
रॉकी था।
रॉकी ने अब तक कितनी बार पिंडलियों को , कई बार घुटनो से ऊपर भी ,... लेकिन सीधे वहां ,... आज पहली बार।
भाभी की माँ वहीँ बैठी थी और मेरी भाभी , चंपा भाभी , नीम के पेड़ से टंगे झूले पे , ....
बसंती और गुलबिया मेरे सर के पास ,
लेकिन निगाहें सबकी वहीँ ,
लेकिन मेरी निगाह ,रॉकी के ,...
वो इस तरह खड़ा था की उसका पिछला हिस्सा मेरे चेहरे के एकदम पास ,...
और मेरी निगाहें वहीँ ,
एकदम जोर से खड़ा लाल खूब कड़ा ,
पहले भी कई बार मैंने देखा था , मुझे देख कर उसका खड़ा हो जाता था लेकिन आज तो एकदम मोटा सॉलिड खूंटा हो रहा था। लिपस्टिक की तरह नोंक निकली थी।
मन तो कर रहा था पकड़ लूँ ,
और गुलबिया से ज्यादा मेरे मन की बात कौन समझता ,उसने मेरे कोमल कोमल हाथ पकड़ के मेरी मुट्ठी में थमा दिया ,और मैंने दबोच लिया।
एकदम लोहे के राड ऐसा कड़ा सख्त ,लेकिन खूब मांसल भी।
मुझे गुलबिया ने जबरन पकड़ा तो दिया था रॉकी 'का', लेकिन मैं सकपका रही थी , झिझक रही थी।
" अरे तानी मुठियाओ ,सहलाओ ,दबाओ ,... तेरे यार का लण्ड है। " गुलबिया ने चढ़ाया और अपने आप मेरे बिन चाहे ,मेरी कोमल मुट्ठी उसके इर्द गिर्द दबाने लगी सहलाने लगी।
असर रॉकी पर तेजी से हुआ ,उसके सपड सपड चाटने की तेजी बढ़ गयी और मेरी मस्ती भी।
मेरे चूतड़ अपने आप ऊपर हो रहे थे , जोर जोर से मैं सिसकिया ले रही थीं , मन बस यही कर रहा था की अब ,...
ओर माँ ( भाभी की माँ ) बोल ही पड़ी ,
" अरे जो तुम मुठिया रही हो न , वो मुट्ठी में नहीं कही और लेने की चीज है। मौसम भी है ,मौका भी है। हिम्मत कर के बस एक बार निहुर जाओ ओकरे आगे ,बाकी का काम तो उहे करेगा। "
मेरी अंगूठा 'उसके ' टिप तक जा पहुंचा और मैंने हलके से सहला दिया। दो बूंदे प्री कम की टपक गईं ,
उपर आसमान में एक बार फिर से घने बादल छा गए थे। हलकी हलकी हवा चल रही थी। धूप एकदम से गायब हो गयी थी। हम सब हलकी हलकी परछाईयों की तरह दिख रहे थे। मेरी भाभी और चंपा भाभी भी माँ के पास आकर बैठ गए थे , मेरी उठी फैली टांगो के दोनों और , ...
तबतक माँ ने जैसी उनकी आदत थी , गुलबिया को हड़काया ,
" तुँहुँ लोग न , चार चार भौजाई बैठी हो , और बिचारी ननद ऐसी गरमाई ,पियासी ,... अरे कच्ची कली है , नए जोबन वाली , चलो ,... "
माँ का इशारा काफी थी , तुरंत गुलबिया और बसंती ने मिलकर मुझे पलट दिया और चंपा भाभी ने मेरे बड़े बड़े चूतड़ हवा में उठा दिए , गुलबिया भी उधर पहुँच गयी और एकदम मैं डॉगी पोज में , सर के पास बसंती मेरे दोनों हाथ दबोचे , मुझे झुकाए और पीछे से गुलबिया , मैं एक दम निहुरी ,
रॉकी पल भर के लिए अलग हुआ होगा , लेकिन अब फिर उसने जैसे किसी कुतिया की चूत चाट चाट कर के उसे तैयार करे , ... एक बार फिर से उसकी जीभ मेरी रस की प्याली पे ,
मैं तैयार तो कब से थी , गरम भी , मेरे पैर अपने आप फ़ैल गए थे , खूब चौड़े ,जैसे उसे दावत दे रहे हों ,
मुझे लग रहा था वो अब सटायेगा ,घुसाएगा , , अब ,.. अब ,...
रॉकी का ' वो ' ... उसका टिप मैंने महसूस किया , ... लेकिन
लेकिन
कुछ नहीं हुआ।
मेरी भाभी , वो बीच में आगयी , बोली ,
" अभी नहीं , बिचारी थकी है फिर कभी भी बारिश शुरू हो सकती है। "
लेकिन उनका असली कारण उन्होंने फुसफुसा के माँ और गुलबिया दोनों से बोला , लेकिन मैंने सुन लिया ,
" आज नहीं ,देख नहीं रही हो , आगे पीछे दोनों छेदो में कम से कम दो कटोरी मलाई , दो दो लौंडों से मरवा के आ रही है। मलाई देख न ऊपर तक बजबजा रही है , चू रही है। ऐसे में तो ,... ये सट्ट से घोंट लेगी ,न कउनो दर्द न चीख चिल्लाहट कया मजा आयेगा , हम लोगों को । अरे जब १०-१२ घंटे तक कुछ गया न हो अंदर ,एकदम सूखी हो , फाड़ते दरेरते अंदर जाए , इसकी परपराए ,छरछराए ,.. रो रो के बेहाल हो जाए , आधे गाँव में एकर चीख पुकार न सुनाय पड़े तो क्या मजा रॉकी को एकरे ऊपर चढाने का , ...
माँ से पहले गुलबिया ने ही बात समझ ली और उसने रॉकी को , ... हटा दिया।
लेकिन वो भी उसने चाट चाट के ही मुझे झाड़ दिया ,
फिर तो मैं बस मजे से बेहोश ही हो गयी।