Long Sex Kahani सोलहवां सावन - Page 18 - SexBaba
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Long Sex Kahani सोलहवां सावन

" अरे मेरी बाँकी छिनार ननदो , जरा आँख खोल के देख न "

मेरी आँखे फटी रह गईं। 



रॉकी था। 

रॉकी ने अब तक कितनी बार पिंडलियों को , कई बार घुटनो से ऊपर भी ,... लेकिन सीधे वहां ,... आज पहली बार। 

भाभी की माँ वहीँ बैठी थी और मेरी भाभी , चंपा भाभी , नीम के पेड़ से टंगे झूले पे , .... 

बसंती और गुलबिया मेरे सर के पास , 

लेकिन निगाहें सबकी वहीँ ,

लेकिन मेरी निगाह ,रॉकी के ,... 

वो इस तरह खड़ा था की उसका पिछला हिस्सा मेरे चेहरे के एकदम पास ,... 
और मेरी निगाहें वहीँ ,





एकदम जोर से खड़ा लाल खूब कड़ा ,

पहले भी कई बार मैंने देखा था , मुझे देख कर उसका खड़ा हो जाता था लेकिन आज तो एकदम मोटा सॉलिड खूंटा हो रहा था। लिपस्टिक की तरह नोंक निकली थी। 

मन तो कर रहा था पकड़ लूँ ,

और गुलबिया से ज्यादा मेरे मन की बात कौन समझता ,उसने मेरे कोमल कोमल हाथ पकड़ के मेरी मुट्ठी में थमा दिया ,और मैंने दबोच लिया। 

एकदम लोहे के राड ऐसा कड़ा सख्त ,लेकिन खूब मांसल भी। 

मुझे गुलबिया ने जबरन पकड़ा तो दिया था रॉकी 'का', लेकिन मैं सकपका रही थी , झिझक रही थी। 

" अरे तानी मुठियाओ ,सहलाओ ,दबाओ ,... तेरे यार का लण्ड है। " गुलबिया ने चढ़ाया और अपने आप मेरे बिन चाहे ,मेरी कोमल मुट्ठी उसके इर्द गिर्द दबाने लगी सहलाने लगी। 



असर रॉकी पर तेजी से हुआ ,उसके सपड सपड चाटने की तेजी बढ़ गयी और मेरी मस्ती भी। 

मेरे चूतड़ अपने आप ऊपर हो रहे थे , जोर जोर से मैं सिसकिया ले रही थीं , मन बस यही कर रहा था की अब ,... 

ओर माँ ( भाभी की माँ ) बोल ही पड़ी ,




" अरे जो तुम मुठिया रही हो न , वो मुट्ठी में नहीं कही और लेने की चीज है। मौसम भी है ,मौका भी है। हिम्मत कर के बस एक बार निहुर जाओ ओकरे आगे ,बाकी का काम तो उहे करेगा। "



मेरी अंगूठा 'उसके ' टिप तक जा पहुंचा और मैंने हलके से सहला दिया। दो बूंदे प्री कम की टपक गईं ,


उपर आसमान में एक बार फिर से घने बादल छा गए थे। हलकी हलकी हवा चल रही थी। धूप एकदम से गायब हो गयी थी। हम सब हलकी हलकी परछाईयों की तरह दिख रहे थे। मेरी भाभी और चंपा भाभी भी माँ के पास आकर बैठ गए थे , मेरी उठी फैली टांगो के दोनों और , ... 

तबतक माँ ने जैसी उनकी आदत थी , गुलबिया को हड़काया , 

" तुँहुँ लोग न , चार चार भौजाई बैठी हो , और बिचारी ननद ऐसी गरमाई ,पियासी ,... अरे कच्ची कली है , नए जोबन वाली , चलो ,... "

माँ का इशारा काफी थी , तुरंत गुलबिया और बसंती ने मिलकर मुझे पलट दिया और चंपा भाभी ने मेरे बड़े बड़े चूतड़ हवा में उठा दिए , गुलबिया भी उधर पहुँच गयी और एकदम मैं डॉगी पोज में , सर के पास बसंती मेरे दोनों हाथ दबोचे , मुझे झुकाए और पीछे से गुलबिया , मैं एक दम निहुरी ,


रॉकी पल भर के लिए अलग हुआ होगा , लेकिन अब फिर उसने जैसे किसी कुतिया की चूत चाट चाट कर के उसे तैयार करे , ... एक बार फिर से उसकी जीभ मेरी रस की प्याली पे ,


मैं तैयार तो कब से थी , गरम भी , मेरे पैर अपने आप फ़ैल गए थे , खूब चौड़े ,जैसे उसे दावत दे रहे हों ,

मुझे लग रहा था वो अब सटायेगा ,घुसाएगा , , अब ,.. अब ,... 

रॉकी का ' वो ' ... उसका टिप मैंने महसूस किया , ... लेकिन 


लेकिन 


कुछ नहीं हुआ। 




मेरी भाभी , वो बीच में आगयी , बोली ,

" अभी नहीं , बिचारी थकी है फिर कभी भी बारिश शुरू हो सकती है। "



लेकिन उनका असली कारण उन्होंने फुसफुसा के माँ और गुलबिया दोनों से बोला , लेकिन मैंने सुन लिया ,

" आज नहीं ,देख नहीं रही हो , आगे पीछे दोनों छेदो में कम से कम दो कटोरी मलाई , दो दो लौंडों से मरवा के आ रही है। मलाई देख न ऊपर तक बजबजा रही है , चू रही है। ऐसे में तो ,... ये सट्ट से घोंट लेगी ,न कउनो दर्द न चीख चिल्लाहट कया मजा आयेगा , हम लोगों को । अरे जब १०-१२ घंटे तक कुछ गया न हो अंदर ,एकदम सूखी हो , फाड़ते दरेरते अंदर जाए , इसकी परपराए ,छरछराए ,.. रो रो के बेहाल हो जाए , आधे गाँव में एकर चीख पुकार न सुनाय पड़े तो क्या मजा रॉकी को एकरे ऊपर चढाने का , ...

माँ से पहले गुलबिया ने ही बात समझ ली और उसने रॉकी को , ... हटा दिया। 


लेकिन वो भी उसने चाट चाट के ही मुझे झाड़ दिया ,

फिर तो मैं बस मजे से बेहोश ही हो गयी।
 
शाम हुई 




जब मेरी आँख खुली तो मैं अपने कमरे में थी अकेले और माँ मुझे बहुत प्यार से खिला रही थी अपने हाथ से , और बोलीं ,


" सो जाओ खा के , आज रात भर रतजगा होगा , एक मिनट सोने को नहीं मिलेगा। "

एक अच्छी बच्ची की तरह उनकी बात मान के मैं झट से सो गयी। 


उठी तो लग रहा था की देर शाम हो गयी है और मैं एकदम घबड़ा गयी। 

अंधेरा सा लग रहा था ,मैं तो भूल ही गयी थी ,सुनील से किया अपना वायदा ,उसने तो तीन तिरबाचा भी धरवाया था ,कसम भी खिलवाई थी। 

शाम को उसने बुलाया था अमराई में , हमारे घर से मुश्किल से १०-१५ मिनट का रास्ता था , मैं दो चार बार जा भी चुकी थी। 









वही अमराई जहाँ एक बार चन्दा मुझे ले गयी थी और पहली बार सुनील और रवि दोनों ने मेरी ली थी और चन्दा की भी ,हम दोनों ने पहली बार एक साथ , एक दूसरे के सामने करवाया था और मेरी सारी झिझक उसके बाद निकल गयी थी। 

बात सिर्फ सुनील की नहीं थी। 

कल सुनील के साथ एक लड़का और भी था जब मैं छत पे गयी थी। सुनील उसी के सामने खुल के इशारा कर रहा था , नीचे आने के लिए। एकदम नया माल लग रहा था। 

आज जब मैं गन्ने के खेत में गयी थी तो मुझे लगा की वही होगा सुनील के साथ , लेकिन सुनील ने बोला की वो पास के गाँव में रहता है , उसी गाँव में जहां भाभी गयी थीं। और वहीँ उसे मेरे बारे में पता चला। असल में वो पढ़ने के लिए हमारे ही शहर में रहता है और मेरे स्कूल के बगल वाले ब्वायज स्कूल में है।



उम्र में मेरे बराबर ही होगा या शायद थोड़ा छोटा ही , और अबतक ' कुंवारा' है। 


वो शाम को ही आ पाता है , बिचारा बहुत बेचैन है मिलने के लिए , और कल मुझे देखने के बाद तो उसकी हालत ख़राब है। आज शाम होने के पहले ही आ जायेगा। सुनील उसे ले के उसी अमराई में आयेगा जहां मैं कई बार सुनील से चन्दा के साथ मरवा चुकी थी। 

सुनील से मैंने बोला थी की मैं पक्का आउंगी , हाँ सुनील ने ये भी बोला था की अँधेरा होने के पहले पहुँच जाऊं। 

हाला की बाद में चन्दा ने मुझे बोल दिया था की शाम को वो नहीं आ पाएगी लेकिन मुझे तो जाना ही थी , मैंने सुनील से प्रॉमिस किया था पर उस कच्चे केले ( कच्ची कली का पुरुष संस्करण ) से भी मिलने का बड़ा मन था , मैेने अपने से प्रॉमिस किया था की आज तो उसकी नथ उतार के ही रहूंगी। 

पर इतना अँधेरा ,मुझे लगा मैं बहुत देर तक सो गयी , लेकिन 

जब उठकर मैंने टेबल पर रखी घड़ी देखी तो जान में जान आई। 

अभी तो पांच भी नहीं बजे थे , ये सिर्फ काले बादलों का चक्कर था जो लग रहा था की ,

क्या पहनू मैं सोच रही थी की फिर याद आया सुनील ने बोला था 

आज गाँव की गोरी बन के आने का। 

बस पन्दरह मिनट में मैं तैयार हो गयी। 

कसी खूब लो कट बैकलेस चोली , साडी भी मैंने कूल्हे के नीचे बाँधी थी , और कस के , मेरे उभारो की तरह मेरे हिप्स भी एकदम खुल के दिख रहे थे , फिर सिंगार 


कुहनी तक चूड़ियां हरी हरी , साडी से मैचिंग डार्क लिपस्टिक , काजल , झुमके और घुंघुरू वाली चांदी की पायल ,... 

निकलते ही माँ मिलीं , खुद बोलीं ,

" अरे दोपहर से कमरे में पड़ी हो। चन्दा तो आएगी नहीं ,अब तो तुम्हारा भी ये गाँव है , जरा जाके घूम टहल आओ , थोड़ा मन बहल जाएगा। मौसम भी बहुत अच्छा हो रहा है। "
" जी माँ , जल्द लौट आउंगी , मैंने बहाना बनाया तो उलटे वो बोलीं , 

" अरे आराम से आना अभी तो तुम्हारी भाभी और चम्पा भाभी भी कामिनी भाभी के यहां गयी हैं। वो लोग भी थोड़ा लेट ही लौटेंगी। "




बादल हलके से छट गए थे ,धूप फिर थोड़ी थोड़ी खिल गयी थी , एक इंद्र धनुष खिल उठा था और मैं घर से बाहर निकल पड़ी।
 
 
सुनील और वो 










धूप की किरणें और बादल आंख मिचौली खेल रहे थे , हवा ठंडी ठंडी चल रही थी , जैसे पास के गांव में अभी अभी बारिश हुई हो। सोंधी सोंधी मिट्टी की महक भी हवाओं में मिली हुई थी। 



धान के फैले खेत ,हरी हरी अमराई , संकरी गैल ,पगडंडी अब सब मेरी जानी पहचानी हो गई थीं। 

रास्ते में जो भौजाइयां मिलती थीं उनके मजाक का उन्ही की बोलीं में जवाब , जो लौंडे मिलते थे उनको अपने जोबना को उभार के ललचाती लुभाती , उनके कमेंट्स पर कभी मुस्काती तो कभी आंखों के इशारे से लाइन मारती में चली जा रही थी। 

मुझे मालूम था कहां जाना है , कहां वो मेरा चाहने वाला इंतजार कर रहा होगा। 

मुझे मालूम था की वो कितना बेताब होगा वो , लेकिन उससेज्यादा बेताब तो में थी। 


अभी चार पांच घंटे भी नहीं हुए होंगे की सुनील के मूसल ने जम के आगे पीछे कूटा था , अभी तक चिलख हो रही थी लेकिन , मन और चूत दोनों की प्यास बुझती कहां है। 

चलने के पहले एक बार फिर कामिनी भाभी की दी हुई क्रीम मैंने दो अंगुली में लगा के आगे पीछे दोनों ओर पूरे अंदर तक चुपड़ ली थी ( उस समय तक मुझे ये नहीं मालूम था की उस क्रीम के बाकी फायदों के साथ ये असर भी होता है की लगाने के पन्दरह बीस मिनट के बाद जम कर खुजली मचती है और फिर मना करने का सवाल ही नहीं उठता।



हाँ एक सावधान इंडिया टाइप सावधानी मैंने जरूर बरत ली थी ,चलने से पहले। ताखे पर जो मां ने चम्पा भाभी से कड़ुवे तेल की शीशी रखवाई थी , बस पिछवाड़े निहूर कर , सीधे बोतल से , दो चार ढक्क्न के कडुवा तेल ,... क्या पता। और सुनील वो बिना मेरा पीछे का बाजा बजाए छोड़ने वाला नहीं था। 



और बेताब में सुनील के साथ साथ नए माल के लिए भी हो रही थी , वही जिसके साथ सुनील मुझे कल इशारे कर रहा था। सुनील ने बताया था की है तो वो बगल के गांव का लेकिन पढ़ता मेरे शहर में ही है। मुझसे उमर में थोड़ा छोटा ही होगा। 


और दस पन्दरह मिनट में में अमराई के अंदर धंस गई थी , जहां सुनील को मिलना था। 




दो तीन खूब घने पेड़ों के पीछे , एक छोटा सा कमरा था चौकीदार का , एकदम बाग के अंदर। 

और जिस दिन सुनील वहां होता था , बस चौकीदार को फुटा देता था। अंदर ढेर सारा पुवाल पड़ा था। दरवाजे पर पहुंच कर मैंने एक दो बार चारों ओर देखा , कोई नहीं था ,पूरा सन्नाटा। लग रहा था बादल अब बरसा तब बरसा। अचानक अंधेरा छा गया था। 

दरवाजा बस उठंगाया सा था , मैंने हल्के से दरवाजे को धक्का दिया , और चूं चूं करते हुए वो खुल गया। 

अंदर अंधेरा और गहरा था बस दूसरी तरफ एक ढिबरी सी ताखे में जल रही थी। 

मैं उसी ओर बढ़ी , लेकिन तब तक दरवाजे से में घुसी थी , वो अचानक बाहर से बंद हो गया और बाहर से किसी ने जैसे ताला लगा दिया हो। 


डर के मारे मेरी हालत खराब हो गई। अब निकल भी नहीं सकती थी। बस एक छोटी सी खिड़की दिख रही थी ,एकदम ऊपर जिस से छन छन के थोड़ी सी रोशनी आ रही थी ,तेज हवा से लग रहा था ढिबरी अब बुझी ,तब बुझी। 

में पीछे मुड़ कर दरवाजे को खोलने की कोशिश करने लगी लेकिन वो जैसे जाम हो गया था , इंच भर भी नहीं हिल रहा था। 




तब तक पीछे से किसी ने मुझे दबोच लिया , एक हाथ सीधे मेरे कुर्ते को फाड़ते उभारों पर और दूसरा मेरे मुंह को जोर से भींच के , ... मैं चीख भी नहीं सकती थी।


मेरा दिल मेरे मुंह में आ गया था , चीख भी नहीं निकल रही थी।
 
सुनील 







तब तक पीछे से किसी ने मुझे दबोच लिया , एक हाथ सीधे मेरे चोली फाड़ते उभारों पर और दूसरा मेरे मुंह को जोर से भींच के , ... मैं चीख भी नहीं सकती थी।


मेरा दिल मेरे मुंह में आ गया था , चीख भी नहीं निकल रही थी। 

तभी जो हाथ मेरे उभारों पे था , उसने अंगूठे और तर्जनी से कस कस के मेरे गोल गोल निपल पकड़ कर घुमाने शुरू कर दिए ,

" साले , तेरे माँ का भोसड़ा मारुं , ... " 

अपने आप मेरे मुंह से निकला। मैं पहचान गयी , 


सुनील ही था।



और उसने मुझे अपनी ओर मोड़ लिया , और हम दोनों ने मुश्किल से अपनी खिलखिलाहट रोकी। 

फुसफुसाते हुए उसने राज खोला, ऐसे मौसम में कई बार लड़के लड़की पटा के इधर लाते हैं ,और अगर दरवाजा अंदर से बंद हो तो वो खुलवाने की कोशिश अगर चौकीदार अंदर हो तो उससे कुछ ले दे के , और कई बार चौकीदार उस लड़की की ही ले के मान जाता है। इसलिए सुनील ने बाहर से ताला लगा दिया था और फिर पीछे से एक छोटी सी खिड़की से अंदर आ गया था। 


एक बार फिर से उसने मुंझे बाहों में भर लिया और मैंने उसे। 

मेरे छलकते उभार उसके सीने में बरछी की तरह छेद कर रहे थे और मैं भी जान बूझ के अपने जोबन उसके चौड़े सीने पे रगड़ रही थी। 

नतीजा तुरंत सामने आया , उसका खूंटा भी खड़कने लगा , लेकिन किसी तरह अपने को रोकते हुए सुनील ने मुझसे बोला ,

"चल तुझे उससे मिलवाता हूँ। आज पहले उसका भोग लगाना ,लेकिन मैं भी तुझे छोडूंगा नहीं समझ ले और ख़ास तौर से ये जो चूतड़ मटका के पूरे गाँव में आग लगा रही हो न उसे। वैसे भी बाहर से ताला लगा है। 

अब मुझे समझ में आया , असली मकसद ताले का। लेकिन मुझे ही कौन सी जल्दी थी , आज घर पर न चंपा भाभी थी न मेरी भाभी। और सिर्फ माँ थी तो उन्हें कोई फरक नहीं पड़ने वाला था , वो तो खुद चाहती थी की मैं ,... खुल के ,... 

बाहर से वो कुठरिया छोटी लगती थी लेकिन थी नहीं। उसके अंदर एक और छोटा कमरा भी था , और सुनील मेरा हाथ पकड़ के अंदर ले गया ,जहां वैसे तो पूरा अँधेरा था पर एक लालटेन जल रही थी। सुनील ने उसकी लौ तेज की तो मैंने देखा , लालटेन की झिलमिलाती रोशनी में बस हल्का आभास हो रहा था.
 
सुनील ने उसकी लौ तेज की तो मैंने देखा , लालटेन की झिलमिलाती रोशनी में बस हल्का आभास हो रहा था,



वो एक हाफ शर्ट और नेकर में था , कमरे के एक कोने में पुआल के ढेर सारे ढेर रखे थे ,उसी पर बैठा। 
खूब गोरा चिकना , कमसिन , हम लड़कियां जैसे चिकने लड़कों को देखकर आपस में 'कच्चा केला ' कहती थीं , बस एकदम वैसा , लग रहा था अभी अभी दूध के दांत टूटे हैं। 

सोच तो में पहले से रही थी ,पर उसको देख के मेरा इरादा पक्का हो गया ,भले ही 'रेप' करना पड़े ,लेकिन इस की नथ आज उतार के रहूंगी। 

और मैं धप्प से उसके बगल में पुआल पे बैठ गई , एकदम उससे सट कर, और वो बिचारा सहम कर थोड़ा और सरक गया। 

मैं और सरक गई , फिर उसके सरकने की जगह ही नहीं बची। आगे दीवाल थी। हम लोगों की देह अब एकदम चिपकी थी , उसके हिलने की जगह भी नहीं थी। अब मैंने उसे ध्यान से देखा, 

और मैं चीख उठी। वो भी चौंक गया। 

" चुन्नू , तुम। " मैं चीखी। 

" आप , आप , आप दीदी की ननद हैं ". वो हकलाते बोला। 

सुनील जो अब मेरे बगल में सट के बैठ चुका था , वो भी चौंक के बोला, तुम दोनों जानते हो एक दूसरे को। 


" अच्छी तरह से , लेकिन आज पता चला ये साला , मेरे भइया का साला है , इसलिए अब तो मेरा भी साला हुआ ,क्यों साले। " और जोर से मैंने उसके गोरे गुलाबी गालों को पिंच कर दिया। 

किसी लौंडिया की तरह बिचारा गुलाल हो गया। 

वो मुझसे एक निचली क्लास में पढता था , मेरे स्कूल से सटे हुए ब्वायज स्कूल में। उसकी एक जुड़वां बहन थी , वो भी मुझसे एक निचली क्लास में पढ़ती थी , चुन्नी। इसी की तरह एकदम कोरी , कच्ची भोली। 



कच्ची और कोरी होने की तो चेकिंग मैंने खुद की थी उसकी बहन की रैगिंग में। जितना वो शर्माती उतनी ही हम उसकी और रगड़ाई करते , फिर मैंने ही रास्ता निकाला उसे बचाने का वरना कुछ लड़कियां तो पूरी कैंडलिंग कराने के चक्कर में थी। 

" तू गांव से आई है न तो चल गालियां सुना , नान स्टाप , और पूरे दस मिनट तक। हाँ अपने भाई से नाम जोड़ के , अब अगर ये बोलेगी की भाई नहीं है तो फिर ये कैंडिल देख रही है न चूत के अंदर सात इंच पेल के जलाऊँगी। "

बिचारी ,उसने कबूला की उसका एक जुड़वां भाई है , एकदम उससे मिलता जुलता ,चुन्नू नाम है और बगल के ही स्कूल में वो भी उसी क्लास में पढ़ने आया है। 

और क्या क्या गालियां नहीं दिलवाई हमने उससे , लेकिन तब भी रही वैसी ही शर्मीली। लेकिन मुझसे पक्की दोस्ती हो गई। वो मुझे दी कहती और उसने एक दिन अपने भाई से मिलवाया भी, हम सब एक पिकचर देखने गए थे वहीं मिला वो। 


फिर तो लड़कियों ने उसकी बहन को इतना चिढ़ाया , " यार ये चुन्नू कम चून्नी ज्यादा लगता है। "

मैंने उसकी बहन को छेड़ा , " है बोल तूने इस चुन्नू कम चुन्नी ज्यादा की नूनी पकड़ के देखी है , है भी की नहीं। "
मेरी दूसरी सहेली बोली , " नूनी है भी की नहीं " लेकिन अबकी चुन्नी ने पट जवाब दिया ,

" अबकी आयेगा न तो खोल के देख लेना ,झट पता चल जाएगा। " 

सारी लड़कियां उसकी बहन को छेडतीं उसका नाम ले ले के और आपस में भी , " हे ऐसे 'कच्चे केले ' की नाथ उतारने में कितना मजा आएगा। "

लेकिन आज उसकी नथ उतारने का जिम्मा मे्रे हवाले अाया। 

मै समझ रही थी वो गौने की दुल्हन की तरह शरमाएगा,झिझकेगा ना ना करेगा , पर गौने की रात किसी दुलहन की फटने से बचती है की उसकी बचेगी। थोड़ा समझाना, थोड़ा प्यार थोड़ा दुलार और ज्यादा जबरदस्ती , ... बस। 

मेरी निगाह पहले उसके छोटे से नेकर पर पड़ी , तना तो था। नूनी नही अच्छा खासा खूंटा लग रहा था। सोच तो रही थी की झट से खोल के गप्प से मुंह मे ले लूँ। 

लेकिन जब उसके चेहरे पर निगाह पड़ी तो वो एकदम शरम से लाल सुर्ख,... 

बस मैने दोनो हाथ से उसका चेहरा पकड़ के जोर से एक चुम्मा ले लिया ,पहले टमाटर ऐसे लाल शर्माते गालों पर उसके बाद सीधे होंठों पर.


और चुम्मा लेके भी मैंने नहीं छोड़ा ,देर तक अपने रसीले गुलाबी होंठ उसके होंठों पर रगड़ती रही। 

वास्तव में दूध के दांत लगता है उसके नहीं टूटे थे , पर स्वाद था मीठा। 

होंठ हटाते ही मैंने उसे चिढ़ाया , " कल तो बहुत हिम्मत दिखा रहे थे , अब आ गई हूं न करो न जो करना है। "

( कल शाम को सुनील के साथ , उसकी देखादेखी वो भी अंगूठे को गोल कर के उसमें उंगली अंदर बाहर करते , इंटरनेशनल चुदाई का सिंबल दिखा रहा था )

और ये कह के मैंने कस कस के अपने उभारों को उसके सीने के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया। 

सुनील से अब नहीं रहा गया , और पीछे से उसने भी मेरे एक उभार को पकड़ के दबाना मसलना शुरू कर दिया।
सुनील की हरकत का बदला मैंने चुन्नू से लिया ,एक झटके में उसकी शर्ट खींच कर के उसे टॉपलेस कर दिया। 

एकदम गोरा नमकीन , वैसे ही जिसको लड़के 'चिकना ' बोलते हैं न , एकदम वैसे ,मक्खन पूरा। 

आँख नचा के उसे चिढ़ाते बोली , " देख तूने बुलाया था तो मैं आ गयी। अब तू कुछ करे न करे , मैं तो नहीं छोड़ने वाली , एक तो इतना चिकना उपर से भैय्या का साला। साल्ले अब तो मैं तेरी ले के रहूंगी। "

वो बेचारा ,शर्म से उसकी हालात खराब हो रही थी शरमाते ,झिझकते। मुझे उस दिन की याद आ रही थी जब हम रैगिंग में हम लोगों ने उसके जुड़वा बहन के कपडे उतरवाए थे। 

लेकिन सुनील आ गया अब उसकी मदद को,कपडे का दुश्मन , और पीछे से अब उसने मेरे कुर्ते को एक झटके में खींच कर उतार दिया। 

ब्रा तो मैं जिस दिन भाभी के गाँव पहुंची थी उसी दिन से जब्त हो गयी थी , इसलिए झट से मेरी दोनों जवानी की गोल गोल गोलाइयाँ अनावृत हो गईं , मेरे गोरे गदराए मांसल जोबन , जिन्होंने पूरे गाँव में आग लगा रखी थी।
 
चुन्नू की नथ उतराई 







ब्रा तो मैं जिस दिन भाभी के गाँव पहुंची थी उसी दिन से जब्त हो गयी थी , इसलिए झट से मेरी दोनों जवानी की गोल गोल गोलाइयाँ अनावृत हो गईं , मेरे गोरे गदराए मांसल जोबन , जिन्होंने पूरे गाँव में आग लगा रखी थी। 

उस के जादू से वो कैसे बचता। 

बस चुन्नू की निगाहें भी वहीँ चिपक के रह गईं। 

और मेरी निगाह उसके छोटे से नेकर पे ,

वाह। तम्बू पूरा तना था , भले ही उसने तलवार चलायी न हो लेकिन हथियार था उसके पास जबरदस्त। बाकी का काम तो मैं आराम से सम्हाल सकती थी। 

जैसे उसको दिखाने समझाने को , सुनील ने झट से मेरी एक मस्त चूंची गपुच ली। 





पर वो शर्माता लजाता , अभी भी इशारा नहीं समझ पाया। आखिर मैंने ही, उसका हाथ पकड़ के , 

" अरे देखने की चीज तो है ये लेकिन सिर्फ देखने की नहीं , छूने पकड़ने की ,रगड़ने मसलने की भी है। 

सीधे अपने जोबन पे। 

बड़े बड़े हलके उसने छूना सहलाना शूरू किया , और मैंने उसके कुतुबमीनार को नेकर के ऊपर पकड़ के कस के दबाते रगड़ते चिढ़ाया ,

" क्यों इतना डर डर के छू रहे हो , अपनी बहन साल्ली चुन्नी का तो खूब दबाया मसला होगा। उसके तो मुझसे बस थोड़े ही छोटे हैं। "

कुछ मेरे तानों ने ,कुछ सुनील की हरकतों ने ,थोड़ी देर में ही वो अब खुल के मेरे कच्ची अमियों का रस लेने लगा। 





वह और सुनील दोनों उधर लगे हुए थे मौक़ा अच्छा था , मेरे लिए रुकना मुश्किल था , और मैंने दोनों हाथों से एक झटके में ही उसके नेकर को ,.. जबतक वो सम्हले ,नेकर कमरे के दूसरे ओर पड़ा था। 



मस्त था , खूब कड़ा और खड़ा। सुनील इतना मोटा तो नहीं , लेकिन उससे १८ भी नहीं रहा होगा। ६ इंच से ज्यादा ही लंबा , खूब गोरा चिकना , झांटे भी नहीं थी। एकदम जैसे साफ़ वाफ कर के तैयारी से आया हो,





जब तक उसने अपने हाथ से ढंकने की कोशिश की 'वो' मेरी मुट्ठी में था ,ऊपर से डांट उसे अलग पड़ गयी,


" क्या लौंडियों की तरह शरमा रहे हो , मुट्ठ तो खूब मारते होगे साल्ली चुन्नी का नाम ले के , हटाओ हाथ , .... " 





एक हाथ से मैं जोर जोर से उसका मोटा कड़ा लण्ड मुठिया रही थी और दूसरे से फिर उसका हाथ पकड़ के अपने उभार पे कर दिया। 


सुनील ने ऊपर की मंजिल पूरी खाली कर दी थी और अब मेरे दोनों उभार चुन्नू के हाथों में थे और वो अब खुल के मजे ले रहा था।


लेकिन सुनील भी खाली नहीं बैठा था , पहले तो वो हम दोनों की तरह 'टॉपलेस' हुआ ,फिर वो मेरी जाँघों के बीच की मेरी सहेली , मेरी सोनचिरैया के पीछे पड़ गया। 


उसका एक हाथ छल्ले की तरह मेरी पतली कमर के चारो ओर घिर गया और फिर मेरा नाडा , वो तो जैसे सुनील का हाथ लगते ही अपने आप खुल जाता था , और वही हुआ। कस के बांधे नाड़े ने पल भर में मेरा साथ छोड़ दिया। 

सुनील का हाथ सरक के शलवार के अंदर मेरी मखमली जाँघों के बीच सीधे मेरी सहेली पे , और उसकी हथेली ने बस हलके हलके दबाना मसलना शुरू कर दिया। लेकिन सुनील इतनी आसानी से थोड़ी छोड़ने वाला था , कुछ ही देर में गच्च से उसकी तर्जनी मेरी फ़ुद्दी में घुस गयी और तूफ़ान मचाने लगी। 


अंगूठा भी क्लिट रगड़ने मसलने लगा। मेरी बुर पनिया गयी। 

ऊपर से वो नौसिखिया चुन्नू भी , अब कस कस के मेरे दोनों जोबन पकड़ के कुचलने मसलने लगा था। 


ये लड़के भी न इन्हे कुछ सिखाने समझाने की जरूरत नहीं पड़ती , बस ज़रा सा चूंची पे हाथ पड़ जाय न तो बस , ... मेरी हालत एकदम ख़राब थी। ऊपर चुन्नू और नीचे सुनील ,... मेरी आँखे भी चुन्नू के 'कच्चे केले ' पे गड़ी थीं ,खूब मोटा कड़ा रसीला।
 
मुझसे नहीं रहा गया और अपने कोमल कोमल हाथों से मुठियाते हुए एक झटके में मैंने चमड़ा नीचे खींच लिया और सट्ट से खूब मोटा,कड़ा गुलाबी ,रसीला सुपाड़ा बाहर। 


एकदम मोटी मोटी लीची जैसे। और अपने आप मेरे होंठ उसके ऊपर , थोड़ा सा चाट के गप्प से मैंने मुंह में ले लिया और लगी चूसने। खूब मीठा था , बहुत ही स्वादिष्ट। 


चूसने ,रस लेने में मुझे पता ही नहीं चला की कब सुनील ने मेरी शलवार सरकाई , कब मेरे चूतड ऊपर उठे और कब शलवार सरक कर मेरे पैरों से दूर पुआल पर पड़ गयी। 

अब मेरा प्रेम द्वार एकदम खुला था। सुनील नीचे बैठ गया और मेरी खुली फैली जाँघों के बीच ,पुच्च पुच्च , मेरी गुलाबो पल भर में पिघल गयी। 

सुनील कस कस के मेरी चूत चूस रहा था , बीच बीच में उसकी जीभ मेरी चूत फैला के , अंदर भी घुस जाती थी। मैं चुन्नू का आधा लण्ड गपक कर चुकी थी और गन्ने का रस ले रही थी। 



चुन्नू मेरी चूंची चूस रहा था। 

हालत हम सबकी खराब थी लेकिन सबसे ज्यादा मेरी , और किसकी नहीं होगी अगर दो दो मर्द एक साथ उसे पिघलाने पे जुटे होंगे।


और ऊपर से चूत चूसने में सुनील का सानी नहीं था। 

लेकिन लण्ड चुसवाने में चुन्नू अभी नौसिखिया था , और कोई भी होगा। पहली बार उसके लण्ड का किसी लड़की से पाला पड़ा था , अबतक बहुत हुआ तो मुट्ठ मार लिया। 

चूसने में बहुत मजा आ रहा था , जैसे कोई कच्ची कली लड़कों को सिर्फ इसलिए एक अलग तरह का मजा देती है की वो नौसिखिया होती , एकदम उसी तरह का मजा , लेकिन धक्का मारके चोदने जैसा साथ वो नहीं दे पा रहा था था.

सुनील ने मेरी परेशानी समझ ली और उछल के चुन्नू के बगल में बैठ गया और अब वो चुन्नू की तरह की हालत में था ,लण्ड एकदम तना मोटा खड़ा। 

और मैं सुनील का इशारा समझ गयी। बस चुन्नू का लण्ड चूसते हुए मैं एक हाथ से जोर जोर से सुनील का लिंग मुठीयाने लगी। दोनों लड़के मिल के मेरी चूचियों की ऐसी की तैसी कर रहे थे। 

और मेरे होंठ चुन्नू से सुनील के लण्ड पर पहुंच गए। 

बस सिर्फ सुपाड़ा मुंह में लेकर चुभला रही थी की सुनील ने कमान अपने हाथ में ले ली। दोनों हाथों से उसने हल्के से मेरे सर को पकड़ा और धीरे धीरे पुश करते हुए आधे से ज्यादा लण्ड मेरे मुंह में पेल दिया। 









आगे 




मुझसे नहीं रहा गया और अपने कोमल कोमल हाथों से मुठियाते हुए एक झटके में मैंने चमड़ा नीचे खींच लिया और सट्ट से खूब मोटा,कड़ा गुलाबी ,रसीला सुपाड़ा बाहर। 


एकदम मोटी मोटी लीची जैसे। और अपने आप मेरे होंठ उसके ऊपर , थोड़ा सा चाट के गप्प से मैंने मुंह में ले लिया और लगी चूसने। खूब मीठा था , बहुत ही स्वादिष्ट। 




चूसने ,रस लेने में मुझे पता ही नहीं चला की कब सुनील ने मेरी शलवार सरकाई , कब मेरे चूतड ऊपर उठे और कब शलवार सरक कर मेरे पैरों से दूर पुआल पर पड़ गयी। 

अब मेरा प्रेम द्वार एकदम खुला था। सुनील नीचे बैठ गया और मेरी खुली फैली जाँघों के बीच ,पुच्च पुच्च , मेरी गुलाबो पल भर में पिघल गयी। 

सुनील कस कस के मेरी चूत चूस रहा था , बीच बीच में उसकी जीभ मेरी चूत फैला के , अंदर भी घुस जाती थी। मैं चुन्नू का आधा लण्ड गपक कर चुकी थी और गन्ने का रस ले रही थी। 




चुन्नू मेरी चूंची चूस रहा था। 

हालत हम सबकी खराब थी लेकिन सबसे ज्यादा मेरी , और किसकी नहीं होगी अगर दो दो मर्द एक साथ उसे पिघलाने पे जुटे होंगे।


और ऊपर से चूत चूसने में सुनील का सानी नहीं था। 

लेकिन लण्ड चुसवाने में चुन्नू अभी नौसिखिया था , और कोई भी होगा। पहली बार उसके लण्ड का किसी लड़की से पाला पड़ा था , अबतक बहुत हुआ तो मुट्ठ मार लिया। 

चूसने में बहुत मजा आ रहा था , जैसे कोई कच्ची कली लड़कों को सिर्फ इसलिए एक अलग तरह का मजा देती है की वो नौसिखिया होती , एकदम उसी तरह का मजा , लेकिन धक्का मारके चोदने जैसा साथ वो नहीं दे पा रहा था था.

सुनील ने मेरी परेशानी समझ ली और उछल के चुन्नू के बगल में बैठ गया और अब वो चुन्नू की तरह की हालत में था ,लण्ड एकदम तना मोटा खड़ा। 

और मैं सुनील का इशारा समझ गयी। बस चुन्नू का लण्ड चूसते हुए मैं एक हाथ से जोर जोर से सुनील का लिंग मुठीयाने लगी। दोनों लड़के मिल के मेरी चूचियों की ऐसी की तैसी कर रहे थे। 

और मेरे होंठ चुन्नू से सुनील के लण्ड पर पहुंच गए। 

बस सिर्फ सुपाड़ा मुंह में लेकर चुभला रही थी की सुनील ने कमान अपने हाथ में ले ली। दोनों हाथों से उसने हल्के से मेरे सर को पकड़ा और धीरे धीरे पुश करते हुए आधे से ज्यादा लण्ड मेरे मुंह में पेल दिया। 




अब मैंने एक बार फिर चाटना चूसना शुरू कर दिया। 



लेकिन कमान अभी भी उसके हाथ में थी। कुछ ही देर में पुल करके उसने आलमोस्ट सुपाड़े तक निकाल दिया और फिर एक करारे धक्के से तीन चौथाई लण्ड अंदर घुसेड़ दिया ,मेरे मुंह में। 

मेरा गाल फटा पड़ रहा था लेकिन में मजे ले ले के चूस रही थी , कुछ ही देर देर में सावन के झूले के पेंग की तरह सुनील हल्के हल्के धक्के मारता रहा , मेरा मुंह चोदता रहा। 

लेकिन मेरी आंखे बजाय सुनील के चुन्नू की ओर लगी थीं। वो बहुत ध्यान से सुनील की ओर देख रहा था की कैसे सुनील मेरा सर पकड़ के हचक हचक के धक्के मार रहा है , मुंह चोद रहा है।

यही तो में चाहती थी ,अब वो कुछ तो सीख लेगा। 

थोड़ी देर बाद जब मैंने एक बार फिर से चुन्नू के लण्ड को मुंह में लिया तो वो अनाड़ी पूरा नहीं तो आधा खिलाड़ी बन ही गया था। 

अब सर पकड़ के हल्के हल्के धक्के मेरे मुंह में मार रहा था और मैं भी पूरा साथ दे रही थी। 


ये भी कामिनी भाभी ने ही सिखाया था की किसी 'कच्चे केले ' की नथ उतारना हो तो पहले उसे मुंह में ले लो ,इससे उसके मोटापे और कड़ेपन का अहसास हो जाएगा और ये भी पता चल जाएगा की कहीं ' जल्दी पिघलने' वाला तो नहीं है। लेकिन सबसे बड़ा फायदा ये है की मुंह में धक्के मार मार के उसे धक्के मारने की प्रैक्टिस भी हो जाएगी। 


यही हो रहा था . जैसे मछली को तैरना नहीं सिखाना पड़ता उसी तरह गांव के लौंडे भी लगता है एकदम बचपन से ही
 
यही हो रहा था . जैसे मछली को तैरना नहीं सिखाना पड़ता उसी तरह गांव के लौंडे भी लगता है एकदम बचपन से ही ,... 


कुछ देर में जब वो जोर जोर से धक्के मारने लगा तो मैंने एक बार फिर से सुनील को चूसना शुरू कर दिया।
और अब सुनील अपने असली रंग में आ गया था, गालियां , जम कर चूंची रगड़ना मसलना और पहले ही धक्के में ,आधा से ज्यादा अपना मोटा मूसल मेरे मुंह में ठेल दिया। 

"घोंट छिनार घोंट , ले चूस कस कस के "

मुझे कहने की जरूरत थोड़ी थी , सुनील का मोटा मस्त लण्ड हो और मैंने चूसने में कंजूसी करीं। मेरे होंठ लण्ड पे रगड़ रहे थे ,नीचे से जीभ चाट रही थी और मेरा मुंह सक करने में वैक्यूम क्लीनर का मुकाबला कर रहा था। 


नतीजा वही हुआ जो होना था , सुपाड़ा तक खूंटा बाहर निकाल के जो सुनील ने ठोंका तो एक बार में ही उसका सात इंच मेरे मुंह के अंदर था। मेरे गाल फूले हुए थे ,आँखे उबली पड़ रही थीं और मोटा सुपाड़ा सीधे मेरे हलक से रगड़ खा रहा था। 

मैं गों गों कर रही थी , लेकिन सुनील पे कोई फरक नहीं पड़ने वाला था। चाहे मुंह चोदना हो चाहे गांड , उससे ज्यादा बेरहमी मैंने देखा नहीं था और इसलिए मैं उसे इतना चाहती थी। 

अगले दो तीन धक्कों में सुनील का बचा हुआ दो इंच भी मेरे मुंह के अंदर था। दर्द से मेरा मुंह फटा जा रहा था , लण्ड एकदम जड़ तक घुसा हुआ था। 

और चुन्नू मुंह बाए देख रहा था की कैसे मैंने पूरा ९ इंच घोंट लिया। 

मेरी नाचती खुश खुश आँखों ने उसकी ओर देखा और फिर , मैंने उसका हाथ पकड़ के अपनी गुदाज गदराई चूंची पर रख लिया ,फिर क्या दोनों लड़के एक साथ एक एक चूंची मसल रहे थे। 

एक जवान होती लड़की और क्या चाहेगी ,लेकिन मेरी निगाह बीच बीच में चुन्नू के औजार की ओर चली जाती थी। जान बूझ के मैं उसे छू भी नहीं रही थी। 

पांच मिनट तक सुनील मेरा मुंह हचक के चोदता रहा और चुन्नू का झंडा वैसे ही खड़ा रहा। 

मैं समझ गयी भले ही इसकी आज नथ उतर रही हो , लेकिन ये टू मिनट वंडर नहीं है। बस एक बार मैं इसकी शरम लिहाज उतार दूँ , फिर तो ये हचक हचक के , एकदम सुनील और अजय की तरह ही हो जाएगा। 


मैंने फिर दल बदल कर लिया और अब 'कच्चा केला ' मेरे मुंह में था। 


लेकिन सुनील की हरकत का असर अब उस पे भी पड़ गया था ,, धक्कों की ताकत ,गहराई और तेजी अब बढ़ गयी थी। मैं साथ साथ में हलके हलके चूस भी रही थी ,मजे ले ले के,लेकिन कमान अब मैंने आलमोस्ट पूरी चुन्नू के हाथ में दे दी थी। 


लेकिन मुसीबत मेरी थी। 


सुनील एक बार फिर मेरी जाँघों के बीच और पूरी ताकत से चूस रहा था ,यही नहीं दोनों लड़के जैसे बाजी लगा के मेरे उभार मसल रहे थे , मुझे लग रहा था अब झड़ी तब झड़ी। लेकिन मैं बिना चुन्नू के खूंटे को अंदर घोंटे झड़ना नहीं चाहती थी। और वो भी अब पूरे जोश में आ गया ,


मैंने अपने से कहा 


," गुड्डी बहुत हुआ अब चोर सिपहिया , चल हो जाय असली कबड्डी इसी नयी नवेली के साथ। "

और मैं हट के अलग हो गयी , पुआल के ढेर पे अपनी दोनों टाँगे फैला के मैंने उसे ऊपर आने का इशारा किया , लेकिन,


वो साल्ला ,एकदम चुप. फिर वही झिझक , लाज ,

" अरे आओ न ," मैंने बुलाया ,लेकिन एकदम से उसने बहाना बनाया , 

" पहले सुनील , ... "

मेरा मन हुआ एक मोटी सी गाली दूँ , 


" साले क्या वो तेरा बहनोई लगता है ,जो पहले सुनील ,पहले सुनील लगा रखा है। " लेकिन अपने उपर कंट्रोल किया। 

" अाओ न चलो अा जाओ न सीधे से , अभी मुंह मेे तो कित्ते जोर जोर से धक्के पर धक्का मार् रहे थे।"

बड़ी मुश्किल से वो तैयार हुअा लेकिन जैसे ही वो मेरी जांघों के बीच अाया , 

बस थोड़ी देर मे उसने हार मान ली। नही औजार का इशू नही था वो वैसे ही खड़ा,सख्त , लेकिन बस नौसिखियापन, झिझक और डर,

परेशानी मैने भी कम नही खड़ी की थी , वो कामिनी भाभी की क्रीम का असर फिर उनका मनतर , कितना भी चुदूँ ,चूत एकदम कच्ची कली से भी कसी रहेगी। 

उपर से चुन्नू ने अपने सुपाड़े मे कोई तेल क्रीम कुछ तो लगाया नही ,न मेरी बुर मे कुछ ,

तो बस एक दो बार तो वो छेद ही नही ढूंढ पाया उसके बाद घुसाने मे दिक्कत ,
बस वही पुरानी कहावत , अनाड़ी चुदवैया बुर की बर्बादी ,

लेकिन मुझे भी तो अनाड़ी से खिलाड़ी बनाया था , बसंती ,गुलबिया ,कामिनी भाभी ,


तो आज मेरी बारी थी ,


मैंने तय कर लिया क्या करना है।

बिन चोदे उसको छोड़ूंगी नहीं ,भले ही चुन्नू साले को रेप करना पड़े। 

वो लगा बहाने बनाने , आज नहीं कल। नहीं पहले सुनील , 

मन उसका पूरा कर रहा था , लण्ड जबरदस्त खड़ा था लेकिन बस वही डर ,झिझक और हिचक की कहीं न घुसेड़ पाया तो ,


मैंने सुनील को आँख मार के इशारा किया और अगले पल वो 'कच्चा केला' पीठ के बल पुआल पर लेटा था।

धक्का मार के मैंने उसे गिरा दिया और सुनील ने उसके दोनों हाथ कस के पकड़ लिए , 


बस जैसे गन्ने के खेत में दो गाँव के लौंडे ,किसी शिकार को , नयी नयी जवान हुयी कच्ची कली को दबोच लेते हैं ,बस उसी तरह से हम दोनों ने दबोच लिया था ,वो हिलडुल भी नहीं सकता था।




मुस्करा के मैंने आँख नचा के उसे देखा , मैं उस के ऊपर बैठ गयी थी. झुक के मैंने जीभ से हलके हलके लण्ड को बेस से ऊपर नीचे तक चाटना , चूसना शुरू कर दिया। 

वो तड़प रहा था, कुलबुला रहा था ,छटपटा रहा था , लेकिन सुनील ने जिस जोर से उसके हाथ को पकड़ रखा था ,वो इंच भर भी नहीं हिल सकता था। 


तड़पा तड़पा के शिकार करने का मजा ही अलग है।
 
बिचारा चुन्नू।










बिचारा चुन्नू। 



और थोड़ी देर में मैं ऊपर थी , कामिनी भाभी से 'विपरीत रति ' के जितने गुर मैंने सीखे थे सब आजमा लिए ,

और उसके साथ गुलबिया और बसंती ने जो गालियां सिखाईं थी ,वो भी खाली कर दीं। 

" साल्ले , जिस दिन से तेरी बहन को यहां से ले गयी हूँ न ,कोई दिन नागा नहीं गया है , जब मेरे भैय्या ने हचक के उन्हें चोदा न हो. तो तू क्या सोच रहा था बिना चुदे बच जाएगा। अरे तू क्या , तेरी माँ बहन सब चोद के रख दूंगी ,अगर कोई नखडा चोदा। चुदा चुपचाप। "



उसके ऊपर चढ़ के सुपाड़ा मैंने अपनी कसी गुलाबी चूत में सेट कर लिया था, और शुरू में हलके से फिर जोर जोर से धक्के मैं मार रही थी। 

जैसे कोई नए माल के कच्चे टिकोरों का मजा लेता है , बस उसी तरह मैं कभी चुन्नू के निपल अपने लम्बे नाखूनों से स्क्रैच कर देती थी तो कभी झुक के कचकचा के काट लेती थी। 

बिचारा वो चीख उठता था। 

उसका मुंह बंद करने के लिए अपनी कच्ची अमिया मैं उसके होंठों पर रगड़ देती थी। और साथ में गालियां ,

साले औजार तो इतना जबरदस्त है तेरी माँ बहन ने क्या चोदना नहीं सिखाया। चल चूतड़ उठा उठा के नीचे से धक्का मार जैसे तेरी बहन मारती हैं जब मेरे भैया उसे चोदते हैं। 


कुछ देर में उसने मेरा साथ देना शुरू कर दिया , सिर्फ धक्के ही नहीं , सुनील ने उसका छोड़ दिया था और अब वो मेरे जोबन का रस दोनों हाथों से लूट रहा था। 






कुछ देर में मैंने धक्के मारने बंद कर दिए पर चुदाई जारी थी। उसकी झिझक ,डर और लाज खत्म हो गयी थी ,वो पूरी ताकत से धक्के मार रहा था ,


और मैं सटासट गपागप लील रही थी। 


उसको कस के पकड़ के कुछ देर में मैंने पलटा खाया , और अब नाव नीचे गाडी ऊपर ,


वो चोद रहा था , मैं चुद रही ,हचक हचक के। 

साथ में मेरी गदराई नयी आई चूचियों की ऐसी की तैसी हो रही थी। 




जम के रगड़ मसल रहा था। 


जब उसका मोटा मूसल रगड़ते दरेरते मेरी कच्ची चूत में घुसता तो मेरी ऐसी की तैसी हो जाती। हर धक्का वो पूरी ताकत से मार रहा था। ८-१० मिनट हो गए थे मैं झड़ने के कगार पे थी और इस रफ़्तार से तो उसको भी पार होने में देर नहीं लगने वाली थी। 

और उस बिचारे कुंवारे की पहली चुदाई मैं इतनी जल्दी खत्म नहीं होने देना चाहती थी। 

बस एक रास्ता था , सुनील बगल में था। उसका खूंटा खड़ा था , बीच बीच मैं उसे मुठिया भी रही थी। 

बस मैंने पार्टनर बदल लिया। 

और अब सुनील मेरे ऊपर चढ़ा था , और वो पुराना खिलाड़ी था। 

धक्के तो वो चुन्नू से भी ज्यादा ताकत से मार रहा था। जब गाँव की चार बच्चों की माँ वाली अपनी भौजाइयों की वो मारता तो उनकी भी चीख निकल जाती। 

लेकिन साथ में वो ये भी जानता था की चुदाई पूरी देह से की जाती है सिर्फ लण्ड से नहीं। कब कैसे चूंची और निपल रगड़ा जाय कब क्लिट की ऐसी तैसी हो और फिर दस पांच धक्के पूरी ताकत से मार के , 

फिर कैसे हलके हलके धक्के , कभी सिर्फ लण्ड गोल गोल घुमा के , चूत की ऐसी की तैसी की जाती है। 

दस मिनट सुनील ने चोदा होगा तूफ़ान मेल स्टाइल में ,





चुन्नू ध्यान से एक एक चीज देख रहा था। मैंने उसके औजार को हाथ भी नहीं लगाया , बस मैं चाह रही थी की उसका जोश कुछ कम हो जाय। 

और जब सुनील हटा तो मुझे कुछ बोलना नहीं पड़ा , चुन्नू ने खुद मेरी टाँगे उठा के अपने कंधे पर रखीं ,सुपाड़ा सटाया और पेल दिया /


कुछ कुछ वो सीख गया था। कभी पूरी ताकत से तो कभी हलके ,

अब हम दोनों चुदाई का असली मजा ले रहे थे।
 
सीख गया अनाड़ी 



कुछ कुछ वो सीख गया था। कभी पूरी ताकत से तो कभी हलके ,

अब हम दोनों चुदाई का असली मजा ले रहे थे। 

………

सुनील बिचारा बैठा था , लण्ड उसका एकदम तन्नाया , मैंने उसकी ओर देख के मैंने अपने दोनों होंठ खोल दिए। 


बस इतना इशारा काफी थी। और वो मेरा मुंह चोद रहा था ,मैं उसका लण्ड चूस रही थी। 




अब मुझे लग रहा था , गुलबिया की बात कितनी सही थी ,इस उमर में , सोलहवां सावन में ,दो तीन लौंडो से एक साथ चुदवाने का मजा अलग है। 




लड़कों के पास तो सिर्फ एक लण्ड है , हम लड़कियों के पास तो चूत है , गांड है ,मुंह है दो दो चूंची है। 



और मैं दो दो से चुदने का मजा ले रही थी ,एक मोटा लण्ड मेरे मुंह में तो दूसरा कच्चा केला मेरी चूत में। इस 

चूचियाँ भी दोनों ने बाँट रखी थी , एक मसलता तो दूसरा चूसता। एक क्लिट रगड़ता तो दूसरा निपल नोचता। 




कुछ ही देर में मैं झड़ने लगी और झड़ने के साथ जब मेरी चूत ने चुन्नू का लण्ड भींचना शुरू किया तो वो भी 


कटोरी भर मलाई छोड़ा होगा उसने। 



सुनील ने अपना लण्ड मुंह से बाहर निकाल लिया था। 

मैं सिसक रही थी , चीख रही थी गालियां दे रही थी ,बार बार झड़ रही थी ,

साथ में चुन्नू भी , पहली बार। वो मेरी देह के ऊपर पड़ गया , बहुत देर तक पड़ा रहा। 


कुछ देर बाद जब मैंने आँखे खोलीं तो सुनील ने खिड़कियां खोल दी थी , बाहर हलकी हलकी बारिश शुरू हो गयी थी उसके छींटे अंदर आ रहे थे।




...... पड़ेला झीर झीर बुंदिया, हो पड़ेला झीर झीर बूंदियां
 
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