hotaks444
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माँ कपड़ों को खंगालने के लिए उठ खड़ी हुई उसने अपनी नाइटी को नीचे घुटनो तक लपेट लिया इससे अगर थोड़ा सा भी कोई आदमी झुकके देखे तो उसके झान्टेदार चूत आराम से उसे दिख जाए....लेकिन उस वक़्त मैं धीरे धीरे पानी में उतरने लगा था....जब घुटनो तक पानी आया तो ऐसा लगा जैसे एक एक कदम और आगे रखना कितना मुस्किल हो रहा था? मुझे डर हो गया तो मैं ठहर गया...वहीं पानी में आहिस्ते आहिस्ते डुबकी लगाने लगा...मैने सिर्फ़ कच्च्छा पहना था जो कि पानी में डूबते ही गीला हो गया जब बाहर निकला तो माँ को इस बार अपनी तरफ झुका हुआ पाया उफ्फ वो पानी में आधी दूर तक उतर चुकी थी इसलिए जब वो कपड़े को झाड़ते हुए बाहर टब में रखने को सीडिया उठी तो उसकी पीछे से चूतड़ की शेप गीले कपड़े में दिखने लगी उसकी नाइटी चुतड़ों के बीच धँस गयी थी उसने अंदर कुछ पहना भी नाही था इसलिए उसकी गोल गदराई गान्ड मुझे आराम से नाइटी के बाहर से भी दिख रही थी उसे इस बात का ख्याल नही था....ये देख देखके मैं एग्ज़ाइटेड हो रहा था कि उसने और सोने पे सुहागा किया...
और मेरे सामने झुक गयी शायद टब में कपड़े रखने के चक्कर में उसके ऐसा करने से उसकी नाइटी का कपड़ा जो घुटनो तक था वो उसके नितंबो के उपर तक आ गया और उसकी गोल गोल गदराई साँवली गान्ड मेरे सामने उभरके प्रस्तुत हो गयी..अफ उसके नितंबो के बीच का छेद जिसमें कल मैने अपना लॉडा ठुसा था..उफ्फ वो भी कितना खुला खुला सा लग रहा था उसकी गान्ड के आस पास हल्के रोयेदार बाल थे जो कि नीचे झान्टो में तब्दील होते हुए चूत के हिस्सो को नाकाम छुपा रहे थे...मेरी ये दृश्य देखके हालत बुरी हो गयी...
और मेरा लंड मेरे कच्छे में ही अकड़ कर एकदम सख़्त खड़ा हो गया....माँ जब पीछे मूड के अपने बेटे को देखती है तो वो भी बड़ी बड़ी निगाहो से बेटे की टाँगों के बीच उसके गीले कच्छे मे लंड को अकड़ा और खड़ा पाती है..जो कि ऐसा लग रहा था जैसे अभी कच्छे को फाड़ कर निकलके उसे सलामी देगा..माँ एकदम से खिलखिलाके हंस पड़ी...तो मुझे उसका कारण समझ आया....मैने अपने कच्छे में अपने लौडे को खड़ा और एकदम दिखता पाया तो माँ को देखते ही अपनी टाँगों के बीच हाथ रख लिया...माँ ने टब एक साइड रख दिया और मेरे करीब पानी में उतरी...
उसने पाओ आगे रखा ही था कि वो फिसलते फिसलते बची मैने उसे कस कर थाम लिया तो उसने मेरे कंधे और कमर पे अपने हाथ को मज़बूती से रखा..."उफ्फ तेरा सहारा ना मिलता तो अभी पानी में डूब जाती"......
."और तू इस घाट पर रोज आना चाह रही थी अभी कुछ हो जाता तो".......
"तूने लालच दिया नहाने का तो मैं भी आ गयी"......
"तूने अंदर कुछ पहना नही उपर से तेरी नाइटी गीली हुई तो नाइटी एकदम झिल्लिदार ट्रॅन्स्परेंट हो जाएगी और अंदर का सारा दृश्य हर कोई देख लेगा...माँ एकदम से शरमाई उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ उसने ज़ुबान पे दाँत रखके हल्का सा काटा...
मैं और माँ दोनो घाट के पानी में घुटनो तक उतरे हुए थे...इतने में माँ और मुझे कड़कती बिजलियो का शोर सुनाई दिया..हमने आसमान की तरफ देखा जिसमें काले बादल सिमटते हुए चारो तरफ के वातावरण को अंधकार में तब्दील कर रहे थे....मैं और माँ फ़ौरन हड़बड़ाते हुए पानी से किसी तरह से बाहर आए...सीडिया चढ़े माँ ने टब उठाया तो उसे मैने एक हाथ में कर लिया और एक हाथ में माँ का हाथ पकड़ लिया....माँ ने मुझे जल्दी जल्दी घर पहुचने की इच्छा जताई....और हम दोनो धीरे धीरे सीडिया चढ़ते हुए उपर आए...तब तक बारिश एकदम टॅप टॅप करते हुए होने लगी....
अंजुम : उफ्फ बेटा ये अचानक से तूफान भरी बारिश कैसे स्टार्ट हो गयी?
आदम : कोई बात नही माँ हम जल्दी घर पहुच जाएँगे इस्सह काश बाइक ले आता अब तो पैदल चलते गये तो पूरे कपड़े गीले हो जाएँगे
अंजुम : हां रे ग़लती की उफ्फ संभाल के ये धुंल इतनी उड़ रही है कि अँधा कर देगी
मैने माँ का हाथ कस कर पकड़ा हुआ था...सच में मौसम का मिज़ाज़ एकदम से बिगड़ गया था इतनी तेज़ मुसलाधार बारिश शुरू हो गयी कि मालूम ही नही चला..माँ की पूरी नाइटी गीली होने लगी...मैं और माँ हाथ थामे एकदुसरे का जल्दी जल्दी सड़को पे लगभग भीगते भागते घर की तरफ बढ़ रहे थे.....घर पहुचते पहुचते हम पूरे भीग चुके थे....गनीमत थी कि बरसात की वजह से कोई बाहर मौजूद नही था वरना माँ की नाइटी जो एकदम गीली होके ट्रॅन्स्परेंट सी बन चुकी थी उन्हें उभार के साथ माँ की चुचियाँ और पीछे के नितंब भी आराम से दिख जाते...नाइटी एकदम गीली होके माँ के बदन से चिपकी हुई थी...जो कपड़े धोने लेके गये थे वो भी गीली हो चुकी थी..
घर के सामने वाला रास्ता एकदम कीचड़ से सारॉबार था....मैने अपने जैसे तैसे पहने प्यज़ामे को घुटनो तक मोड़ा और माँ का हाथ पकड़े आहिस्ते आहिस्ते किचॅड भरे रास्ते मे चलने लगा....लेकिन माँ का बॅलेन्स बिगड़ते जा रहा था वो मुझे कस कर पकड़े हुई थी....मैने ना आँव देखा ना तांव सीधे उसे अपनी बाहों में उठा लिया...ऐसा करने से माँ एकदम से हड़बड़ा गयी...थोड़ा सा झुका और माँ ने पास रखा टब उठा लिया...अब मैं माँ को अपने गोदी में लिए पूरी ताक़त भरता हुआ घर के द्वार तक पहुचा...उसे अपनी गोद से उतारा फिर जल्दी जल्दी ताला खोला...हम अंदर आए और झट से दरवाजा लगाए...माँ तुरंत टब लिए गुसलखाने की तरफ दौड़ पड़ी तो मैने वहीं दरवाजे के पास ही अपने सारे गीले कपड़े उतार दिए...
आदम : माँ माँ तू अंदर है क्या?
अंजुम : बेटा लाइट चली गयी है तू झट से मोमबत्ती रसोईघर से जला के ले आना
आदम : ठीक है माँ
मैं जब रसोईघर से मोमबत्ती गुसलखाने के पास लाया तो माँ ने पर्दे के बाहर हाथ लाते हुए उस मोमबत्ती को पकड़े अंदर किया....मैने अपने गीले कपड़े भी गुसलखाने के अंदर एक ओर फ़ैक् दिए...जिसे माँ ने समेटते हुए टब में रख दिया..जब मोमबत्ती की रोशनी अंदर से बाहर की ओर आई...तो पाया कि पर्दे में माँ की परछाई दिख रही थी उसके सख़्त निपल्स और उसकी छातियो का उभार दिख रहा था वो अंदर नंगी खड़ी हुई थी....मैने जब थोड़ा झुकके झाँका तो पाया गीली नाइटी को वो कबका उतार चुकी थी जो उसकी टाँगों में फसि हुई थी जिसे उसने एक एक पाँव से निकालते हुए टब में डाल दिया...फिर उन कपड़ों को धोने लगी
और मेरे सामने झुक गयी शायद टब में कपड़े रखने के चक्कर में उसके ऐसा करने से उसकी नाइटी का कपड़ा जो घुटनो तक था वो उसके नितंबो के उपर तक आ गया और उसकी गोल गोल गदराई साँवली गान्ड मेरे सामने उभरके प्रस्तुत हो गयी..अफ उसके नितंबो के बीच का छेद जिसमें कल मैने अपना लॉडा ठुसा था..उफ्फ वो भी कितना खुला खुला सा लग रहा था उसकी गान्ड के आस पास हल्के रोयेदार बाल थे जो कि नीचे झान्टो में तब्दील होते हुए चूत के हिस्सो को नाकाम छुपा रहे थे...मेरी ये दृश्य देखके हालत बुरी हो गयी...
और मेरा लंड मेरे कच्छे में ही अकड़ कर एकदम सख़्त खड़ा हो गया....माँ जब पीछे मूड के अपने बेटे को देखती है तो वो भी बड़ी बड़ी निगाहो से बेटे की टाँगों के बीच उसके गीले कच्छे मे लंड को अकड़ा और खड़ा पाती है..जो कि ऐसा लग रहा था जैसे अभी कच्छे को फाड़ कर निकलके उसे सलामी देगा..माँ एकदम से खिलखिलाके हंस पड़ी...तो मुझे उसका कारण समझ आया....मैने अपने कच्छे में अपने लौडे को खड़ा और एकदम दिखता पाया तो माँ को देखते ही अपनी टाँगों के बीच हाथ रख लिया...माँ ने टब एक साइड रख दिया और मेरे करीब पानी में उतरी...
उसने पाओ आगे रखा ही था कि वो फिसलते फिसलते बची मैने उसे कस कर थाम लिया तो उसने मेरे कंधे और कमर पे अपने हाथ को मज़बूती से रखा..."उफ्फ तेरा सहारा ना मिलता तो अभी पानी में डूब जाती"......
."और तू इस घाट पर रोज आना चाह रही थी अभी कुछ हो जाता तो".......
"तूने लालच दिया नहाने का तो मैं भी आ गयी"......
"तूने अंदर कुछ पहना नही उपर से तेरी नाइटी गीली हुई तो नाइटी एकदम झिल्लिदार ट्रॅन्स्परेंट हो जाएगी और अंदर का सारा दृश्य हर कोई देख लेगा...माँ एकदम से शरमाई उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ उसने ज़ुबान पे दाँत रखके हल्का सा काटा...
मैं और माँ दोनो घाट के पानी में घुटनो तक उतरे हुए थे...इतने में माँ और मुझे कड़कती बिजलियो का शोर सुनाई दिया..हमने आसमान की तरफ देखा जिसमें काले बादल सिमटते हुए चारो तरफ के वातावरण को अंधकार में तब्दील कर रहे थे....मैं और माँ फ़ौरन हड़बड़ाते हुए पानी से किसी तरह से बाहर आए...सीडिया चढ़े माँ ने टब उठाया तो उसे मैने एक हाथ में कर लिया और एक हाथ में माँ का हाथ पकड़ लिया....माँ ने मुझे जल्दी जल्दी घर पहुचने की इच्छा जताई....और हम दोनो धीरे धीरे सीडिया चढ़ते हुए उपर आए...तब तक बारिश एकदम टॅप टॅप करते हुए होने लगी....
अंजुम : उफ्फ बेटा ये अचानक से तूफान भरी बारिश कैसे स्टार्ट हो गयी?
आदम : कोई बात नही माँ हम जल्दी घर पहुच जाएँगे इस्सह काश बाइक ले आता अब तो पैदल चलते गये तो पूरे कपड़े गीले हो जाएँगे
अंजुम : हां रे ग़लती की उफ्फ संभाल के ये धुंल इतनी उड़ रही है कि अँधा कर देगी
मैने माँ का हाथ कस कर पकड़ा हुआ था...सच में मौसम का मिज़ाज़ एकदम से बिगड़ गया था इतनी तेज़ मुसलाधार बारिश शुरू हो गयी कि मालूम ही नही चला..माँ की पूरी नाइटी गीली होने लगी...मैं और माँ हाथ थामे एकदुसरे का जल्दी जल्दी सड़को पे लगभग भीगते भागते घर की तरफ बढ़ रहे थे.....घर पहुचते पहुचते हम पूरे भीग चुके थे....गनीमत थी कि बरसात की वजह से कोई बाहर मौजूद नही था वरना माँ की नाइटी जो एकदम गीली होके ट्रॅन्स्परेंट सी बन चुकी थी उन्हें उभार के साथ माँ की चुचियाँ और पीछे के नितंब भी आराम से दिख जाते...नाइटी एकदम गीली होके माँ के बदन से चिपकी हुई थी...जो कपड़े धोने लेके गये थे वो भी गीली हो चुकी थी..
घर के सामने वाला रास्ता एकदम कीचड़ से सारॉबार था....मैने अपने जैसे तैसे पहने प्यज़ामे को घुटनो तक मोड़ा और माँ का हाथ पकड़े आहिस्ते आहिस्ते किचॅड भरे रास्ते मे चलने लगा....लेकिन माँ का बॅलेन्स बिगड़ते जा रहा था वो मुझे कस कर पकड़े हुई थी....मैने ना आँव देखा ना तांव सीधे उसे अपनी बाहों में उठा लिया...ऐसा करने से माँ एकदम से हड़बड़ा गयी...थोड़ा सा झुका और माँ ने पास रखा टब उठा लिया...अब मैं माँ को अपने गोदी में लिए पूरी ताक़त भरता हुआ घर के द्वार तक पहुचा...उसे अपनी गोद से उतारा फिर जल्दी जल्दी ताला खोला...हम अंदर आए और झट से दरवाजा लगाए...माँ तुरंत टब लिए गुसलखाने की तरफ दौड़ पड़ी तो मैने वहीं दरवाजे के पास ही अपने सारे गीले कपड़े उतार दिए...
आदम : माँ माँ तू अंदर है क्या?
अंजुम : बेटा लाइट चली गयी है तू झट से मोमबत्ती रसोईघर से जला के ले आना
आदम : ठीक है माँ
मैं जब रसोईघर से मोमबत्ती गुसलखाने के पास लाया तो माँ ने पर्दे के बाहर हाथ लाते हुए उस मोमबत्ती को पकड़े अंदर किया....मैने अपने गीले कपड़े भी गुसलखाने के अंदर एक ओर फ़ैक् दिए...जिसे माँ ने समेटते हुए टब में रख दिया..जब मोमबत्ती की रोशनी अंदर से बाहर की ओर आई...तो पाया कि पर्दे में माँ की परछाई दिख रही थी उसके सख़्त निपल्स और उसकी छातियो का उभार दिख रहा था वो अंदर नंगी खड़ी हुई थी....मैने जब थोड़ा झुकके झाँका तो पाया गीली नाइटी को वो कबका उतार चुकी थी जो उसकी टाँगों में फसि हुई थी जिसे उसने एक एक पाँव से निकालते हुए टब में डाल दिया...फिर उन कपड़ों को धोने लगी