Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत - Page 12 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत

"आहह सस्स्सस्स आहह आदंम और ज़ोरर्र से धक्के पेल इसस्सह उफ्फ ऐसा लग रहा है जैइस कितनी लज़्ज़त मिल रही हो?"......माँ चुदते हुए आहें भरते हुए मेरे सीने को सहलाए बेहोशी हालात में जैसे कह रही थी...

"हां माँ तेरी चूत के अंदर की गर्मी मुझे अपने लंड पे महसूस हो रही है उफ्फ हाईए रानी ऐसे ही चुद मुझसे आअहह ओह्ह्ह माँ तुम तो बहुत मस्त हो इस्सह आहह माँ ज़ोरर से नही आअहह छिल जाएगा मेरा सुपाड़ा आहह मामा"......मैं मदहोशी हालात में आँख भुजाए माँ के छातियो के साथ उनकी कमर को सहलाए उनके चूड़ते शरीर पे अपना पूरा हाथ फायर्ता हुआ बोला

माँ खिलखिलाके हंस पड़ी जैसे उसे मेरी मदहोश हालत और दर्द का अहसास हो उसने शरारत भारी हरकत करनी शुरू की और वो मेरे सुपाडे को अपनी चूत मे अंदर की गहराइयो में दबोच ली जिससे मेरे लंड में जलन होने लगी और हल्का सा दर्द भी मैं दाँतों में दाँत रखकर माँ को हवस भरी निगाहो को देखने लगा...मैने भी उसके नितंबो को मसल्ते हुए पीछे हाथ ले जाके उसके छेद में उंगली करने लगा...माँ का पूरा बदन पसीने पसीने होने लगा वो मुझपे जैसे रहम नही करने वाली थी वो तो बस मेरे मोटे लंड का मज़ा अपनी चूत में अंदर बाहर लेते हुए ले रही थी...

थप्प थप्प करते हुए अंडकोष से उनके मोटे मोटे नितंबो का टकराव हो रहा था...हमारी चुदाई बस चरम सीमा पे थी मैने उसे इस बीच अपने आगोश में भर लिया और उसकी ज़ुल्फो को समेटते हुए उसकी पीठ को सहलाने लगा...फिर उसके गले और गाल को चूमते हुए हाँफने लगा...इस बीच मुझे अहसास हुआ कि मेरा प्री-कम जैसे निकल रहा है...मैने झट से माँ को अपने उपर से हटाना चाहा पर माँ ने मुझे कस कर पकड़ लिया उसकी चूत भी कस कर मेरे लंड को जैसे जकड़े हुई थी...

वो झड रही थी...जब वो हाँफती हाँफती हुई मुझसे अलग हुई तो मैने झट से पलंग के पास की साइड टेबल पे रखके कॉन्डोम जो अक्सर टेबल पे ही रखे रहा करते थे उसमे से एक पॅकेट निकाला उसे फाडा और मैने अपने लंड पे चढ़ाया...माँ बस हन्फते हुए अध्बुझि निगाहो से मेरे लंड की तरफ देख रही थी...मैं उठा और उसे सीधा लेटा दिया वो सीधे लेट गयी...मैने पास रखी बॉडी आयिल की डिब्बी का बहुत सा तेल माँ और खुद के जिस्म पे डाला इससे हमारा बदन एकदम तेल से चिकना हो गया इससे माँ का पूरा शरीर लाइट में चमक रहा था...उफ़फ्फ़ वो आयिली होके कितनी सेक्सी लग रही थी मैने उसके नितंबो को दबोचते हुए उसमें एक अंगुल घुसाइ और अंदर बाहर करते हुए उंगली की...

"ओह्ह्ह आहह सस्स".....माँ सिसकते हुए मुझे अपने नितंबो के बीच उंगली घुसाते देख रही थी...उसकी आँखो में लाल लाल डोरे खिंच रहे थे...मैने अब उसकी दोनो टांगे अपनी पीठ पे रखी उसके एक चुचि को मुँह में लेके चूसना शुरू किया और उसी हालत में उसकी चूत पे निरोधक चढ़ा लंड रखा और हल्के हल्के दबाव देने लगा पहले तो गीली चूत उपर से तेल मलने से चूत और भी चिकनी हो गयी और साथ ही मेरा लंड भी....जब मुझे अहसास हुआ कि माँ की चूत में और कुछ लगाना पड़ेगा...तो पास रखी ल्यूब की डिब्बी से थोड़ा जेल फॉर्म में ल्यूब निकाला और उसे चूत के भीतर तक उसके मुंहाने में लगा दिया....इससे मेरी तीन उंगली भी अंदर घुस रही थी...मैने थोड़ी सी जगह और बनाई तो मेरे पाँचो की पाँच उंगलियाँ अंदर घुस रही थी..

मुझे एक आइडिया सूझा और मैं माँ की चूत में फीस्टिंग करने लगा...जैसे ही मैने पाँचो उंगली और थोड़ा हाथ अंदर दाखिल चूत के भीतर दबाव देके किया ही था कि माँ का पूरा जिस्म हिल गया और वो दर्द से करहाने लगी "नही नही निकाल निकाल".....

."अर्रे माँ इसी में तो मज़ा है"......

."नही तू निकाल ले ना दर्द लग रहा है".....

."अच्छा ठीक है ठहर".....मैं उंगली करता रहा और हाथ बाहर निकाल लिया...फिर अपने मोटे लंड को छेद में घुसाने लगा....अफ कुछ 20 सेकेंड के अंदर ही दबाव ज़्यादा देने से लंड एकदम अंदर तक घुसता चला गया...इस बीच मैने अपना मास्क उतार फैका था और माँ ने उसी पल मेरे चेहरे को अपने करीब लाके मुझे किस करना शुरू कर दिया...

माँ ने फिर मेरी कमर पे टांगे लपेट ली...."अब धक्के पेल उईइ"...माँ ने हल्की सिसकती भरते हुए मुझे जैसे उकसाया उसने मेरे होंठो से होंठ अलग करते हुए कहा ....

उन्हें अब अपने बच्चेदानी तक मेरा लंड छूता महसूस हो रहा था..."हाए सस्सस्स माँ बहुत टाइट है तेरी चूत".......

."ले अब कर"......माँ ने गान्ड ढीली छोड़ दी तो मुझे अंदर बाहर करने में आसानी होने लगी...मैं ज़ोरो से धक्के पेलते हुए माँ को पूरा मज़ा देने लगा...माँ हान्फ्ते हुए मेरे लंड को अपनी चूत के अंदर बाहर होता महसूस करने लगी...वो लज़्ज़त में होंठो पे दाँत दबाए अध्बुझि आँखो से मेरे चेहरे को सहला रही थी....

मैं ताबड़तोड़ धक्के पेलता हुआ जैसा स्खलन की कगार पे आ गया...तो हम दोनो ने एकदुसरे के होंठो से होंठ जोड़ लिए...एकदुसरे को किस करते हुए अपने प्रेम पे विराम लगाने लगे...माँ के होंठो को चुसते हुए मैं दहाड़ने लगा....गरर गरर की आवाज़ निकालता हुआ मेरा लंड निरोधक जो कि चूत के भीतर तक था उसमें अपनी पिचकारिया छोड़ते हुए धार बहाने लगा....मैं कांपता हुआ माँ को अपने आगोश में जकड चुका था वो भी मेरे साथ जैसे रुक गयी...उसे अपनी गान्ड में गरम गरम जैसा कुछ अहसास होने लगा था..कुछ देर बाद जब हम एकदुसरे से अलग हुए तो फॅट से उनकी चूत से निकला मेरा निरोधक चढ़ा लंड वीर्य से सना हुआ लिपटा था..मैने फ़ौरन चुटकी से उपरी सिरे को उठाते हुए वीर्य भरे कॉंडम को खींचा और पास पड़े डिब्बे में फैक दिया...

माँ और मैं अपनी उखड़ती साँसों पे काबू पाते हुए एकदुसरे से लिपट गये उस वक़्त जब मैं झड जाता हूँ तो मुझे बेहद अज़ीब सा लगता है...संतुष्टि भी और गिल्टी सी भी..पर दिल तो यही कहता है कि ये तो सुख है जो तुझ जैसे खुशकिस्मत को प्राप्त होता है इसमें गिल्ट कैसा?

माँ मेरे सीने से लिपटते हुए मेरे तेल और पसीने से तरबतर बदन को सहलाते हुए छाती पे उगे बालों से खेलने लगी....और मैं उसके नंगे जिस्म को अपने बदन से लिपटा देख उसे देखते हुए सोने लगा....मेरा पूरा बदन टूट रहा था....माँ की चुदाई करने से पुरज़ोर थकावट लग रही थी...धीरे धीरे हम दोनो ही नींद की आगोश में चलते गये...जब एक बार उठा था पेशाब करने तो माँ खर्राटे भर रही थी...उसकी दोनो चुचियाँ मेरे बदन से दबी हुई थी उसे अलग करके मैने उसके नंगे जिस्म पे चादर ढक दी...फ्रिड्ज से एक बोतल पानी निकाला उसका कुछ घूँट लिया उसे रख पेशाब करने गया फिर लंड से मोटी पेशाब की धार निकाल जब वपयस कमरे में आया तो माँ जैसे मुझे ही खोज रही थी नींद में...मैने चादर अपने उपर करते हुए उसके बदन से लिपट गया...हम माँ-बेटे पूरी रात एकदुसरे से यूँ ही नंगे लिपटे सो गये...
 
अगले दिन ऑफीस के लिए रवाना हुआ पूरे रास्ते हुए जम्हाई छोड़ता हुआ जा रहा था..करम्चारी लोग बोले कि बाबू कल रात नींद नही पूरी हुई सब जानते थे कि मैं कुँवारा था मैने कहा नही बस थोड़ी थकान रह गयी उन्हें क्या पता कि कल माँ ने मुझे कितना खूब थकाया था


शाम को ऑफीस से जल्दी काम निपटाके मैने सोचा कि अपने खरीदने वाले फ्लॅट को भी एक बार देख लून क्यूंकी उसके लिए आधे पैसे इकहट्टे कर चुका था बाकी लोन पास करने की देरी थी...जब वहाँ गया तो पाया कि मेरे उपर वाले माले पे ऑलरेडी कोई खरीदार रहने आ गया था....वो मेरे डीलर से वहाँ बात कर रहा था मेरी निगाह उसकी ओर हुई और उसकी मेरी ओर....ऐसा लगा जैसे कोई जाना पहचाना चेहरा था क्यूंकी वो भी मुझे बड़े गौर से देख रहे थे...

डीलर वहाँ खड़ा जिस शक्स से बात कर रहा था वो दिखने में काफ़ी हॅंडसम था...5 फुट 10 इंच की हाइट थी उसकी रौबदार चेहरा आँखे गुलाबी घनी काली मुछ और बदन भी काफ़ी गठीला लग रहा था उमर लगभग 28 वर्ष ....डीलर उससे काफ़ी हंस हंस के बात कर रहा था मेरी उपस्थति पाते ही वो आगे बढ़ा और मुझसे हाथ मिलाया साथ ही साथ हमारे उपर वाले फ्लोर के खरीदार उस आदमी से भी मिलवाने लगा...वो मुझे बड़े गौर से देख रहा था और मैं उसको

डीलर : आओ आदम आओ इनसे मिलो ये है हमारे इस फ्लोर के खरीदार जिन्होने हाल ही में यहाँ शिफ्टिंग की है मिस्टर राजीव

राजीव : हेलो (उन्होने आगे हाथ बढ़ाते हुए नर्मी से कहा उनकी इस पोलाइट आटिट्यूड का मुझपे काफ़ी असर पड़ा और मेरे हाथ भी एका एक उनके हाथो से जा मिले)

डीलर : राजीव जी यह है मिस्टर.आदम इन्होने भी अभी नीचे वाले फ्लॅट को खरीदने की इच्छा जताई है

राजीव : ह्म्म काफ़ी अच्छा फ्लॅट है यह मिस्टर.आदम आपको यहाँ किसी भी चीज़ की कमी नही होगी

डीलर : हा हा हा हा ज़रूर ज़रूर

आदम : ह्म तभी तो मिस्टर शर्मा का यह फ्लॅट चुना है खरीदने को (एका एक हम सब हंस परे)

राजीव : ह्म वैसे आप अभी रह कहाँ रहे है?

आदम : यही आपके टाउन से थोड़ा बाहर जो जो डिस्ट्रिक्ट के अंडर एरिया मे पड़ता है पाइप लाइन रोड

राजीव : पाइप लाइन रोड ओह व्हाट आ को-इन्सिडेन्स वहाँ तो मैं भी रहता हूँ वहीं से तो हम यहाँ शिफ्ट हुए है

आदम : ओह दट'स ग्रेट मैं वहीं हाउस नंबर.26 में रेंट में रह रहा हूँ

डीलर : आप लोग ऑफीस चलिए वहीं बैठके बातें कीजिएगा

राजीव और मैं डीलर के साथ उनके नीचे वाले ऑफीस पहुचे...वहाँ आते ही हमने अपनी अपनी सीट ग्रहण कर ली..सीट पे पसरते हुए डीलर ने राजीव को अपनी जेब से मार्लबरो का सिगरेट निकालते हुए देखा....राजीव ने फॉरमॅलिटी के तौर पे हमे सिगरेट ऑफर किया तो मेरा जवाब ना पाके उन्होने प्रॉपर्टी डीलर के आगे सिगरेट का खुला डिब्बा पेश किया...एक सिगरेट निकालके डीलर ने घप्प से अपने होंठो पे लगाया और पास रखी मांचीस जला कर उसे सुलगाया इधर राजीव ने भी अपनी जेब से एक लाइटर निकाला और अपनी सिगरेट सुलगाते हुए कश लेना शुरू किया...कॅबिन में सिगरेट की हल्की हल्की महेक धुए के साथ गूँज़ रही थी...

धुआ छोड़ते हुए राजीव ने मुझे फिर मुस्कुराते हुए देखा और बात शुरू की..डीलर इस बीच सिगरेट का कश लिए हम दोनो की जैसे बातें सुन रहा था...

राजीव : ह्म वाक़ई ये तो अच्छा हुआ कि मुझे यहाँ अब अकेलापन महसूस नही होगा बस आप जल्द से जल्द इस फ्लॅट में शिफ्ट हो जाए तो मेरी और कोई चिंता नही रहेगी हाहहा

आदम : हाहाहा कोशिश तो यही है सर कि जल्द से जल्द शिफ्ट हो जाउ बस वही लोन की दिक्कत है

डीलर : वो भी हो जाएगा आदम तुम फिकर मत करो बस एक बार बॅंक से धनराशि मिल जाएगी तो फिर कोई दिक्कत नही होगी आजकल नकद घर लेता ही कौन है?

राजीव : ह्म नकद धनराशि एक साथ देना भी जुर्म माना जाता है

डीलर : हाहाहा आप भी ना राजीव सर यहाँ पे भी आप क़ानून की बातें करने लगे

राजीव : ऑफ ड्यूटी है तो क्या हुआ फ़र्ज़ से थोड़ी ना छुट्टी ली है

मैं चौंकते हुए राजीव की तरफ देखने लगा....मैं समझा नही कि उनका पेशा क्या था इसलिए तपाक से बोल पड़ा..."वैसे आप करते क्या है?".........राजीव ने मेरे सवालात को सुन मुस्कुराया

राजीव : जी दरअसल इस टाउन के मालदा पोलीस डिपार्टमेंट में मैं ऐज आ इनस्पेक्टर हूँ...अभी अभी तो पोस्टिंग हुई है इसलिए क़ानून के दाँव पैच भी सीख रहा हूँ कह लीजिए

आदम : ओह दट'स ग्रेट यानी आप एक पोलिसेवाले वैसे मैं पर्चेस ऑफीसर हूँ और टाउन से बाहर भी आना जाना लगा रहता है

राजीव : ह्म तब तो हममें थोड़ी सी समानता है

आदम : वो कैसे?

राजीव : हम जुर्म की इनस्पेक्षन करते है और आप चीज़ो की

आदम : हा हा हा हा हा (राजीव और मैने हाथ मिलाते हुए ठहाका लगाया डीलर की भी हँसी छूट गयी?)

राजीव ने घड़ी देखी और बोले कि उन्हें वाइफ को रिसीव करने जाना है...तो मैं कुछ समझ नही पाया....डीलर भी उठने को हुए उन्होने मुझसे पूछा कि फ्लॅट देख आएँ...तो मैने कहा हां बस इसी लिए आया था कि बॅंक होके आपके पास कोई खबर लाउ पर अभी लोन पास नही हुआ काम काज की बात करते हुए हम तीनो बाहर निकले तो डीलर वहाँ से अपने घर की ओर निकल गया....मैने जैसे ही थ्री वीलर पकड़ा ही था राजीव दा बोले कि चलो मैं भी तुम्हारे संग चल लेता हूँ रास्ते में डॅन्स क्लास स्कूल पड़ेगा वहाँ से मुझे अपनी वाइफ को भी रिसीव करना है...मैं वैसे भी उनसे पर्सनली बात करना चाह रहा था इसलिए हम साथ बैठ गये थ्री वीलर चल पड़ा....

बातों ही बातों में राजीव सर के साथ पूरे रास्ते में मैं थ्री वीलर में बहुत कुछ जानता गया...ऐसा लग रहा था कि इस छोटी सी पहले मुलाक़ात में हम एकदुसरे के कितना क्लोज़ हो गये ....राजीव दा को मेरी बातों में काफ़ी रूचि हुई उन्होने मेरी हालातों से झुझती ज़िंदगी की दास्तान को सुना तो वो काफ़ी इंप्रेस हुए फिर वो अपने घर की बात करने लगे....मुझे ये मालूम चला कि राजीव दा की ज़िंदगी कुछ हमारी जैसी ही थी वो भी इन व्याबचारी रिश्तो में जैसे घिरे से हुए थे......उन्होने अपनी बीवी की तस्वीर दिखाई और बताया कि ये खूबसूरत महिला उनकी वाइफ है...साथ ही साथ उन्होने बताया कि मेरे वहाँ शिफ्ट होने से उनकी क्यूँ चिंता कम हुई ?

राजीव : दरअसल मैं सोच रहा था कि एकात जगह है फ्लॅट के आज़ु बाज़ू क्यूंकी रिहायशी इलाक़ा है किसी को किसी से मतलब नही और मैं तो सिर्फ़ अपनी वाइफ के साथ ही रहता हूँ हमारी कोई फॅमिली तो है नही तो सोचा अगर कोई फॅमिली पर्सन नीचे का घर लेगा तो हमे बड़ी खुशी होगी और देखो भगवान ने मेरी सुन ली कि इस पहली मुलाक़ात में आप जैसा दोस्त ही मिल गया

आदम : इट'स माइ प्लेषर टू मीट यू राजीव दा वरना मैं भी खुद को अकेला ही महसूस कर रहा था घर में तो सिर्फ़ माँ है और है ही कौन मेरा? दरअसल हम यही के है पर ददिहाल से हमारा कोई नाता नही पिताजी से तो माँ सेपरेट हो गयी है

राजीव : ओह आइ आम सॉरी ना जाने क्यूँ तुम्हारे दुख में अपना दुख सा लगता है.....दरअसल तुम्हें कैसे कहूँ ? कि तुम मेरे बारे में क्या सोचो पर तुम्हें देखके लगता नही कि तुम मज़ाक उड़ाने वाले बन्दो में से हो अभी चार दिन भी नही हुए मुझे यहाँ आए और मैं किसी से ढंग से बात भी नही करता था और देखो आज हमारी बातों में बातों का सिलसिला शुरू हो गया

आदम : मैं भी राजीव दा ऐसा लगता है जैसे एक ही कश्ती के सवार हों हम हाहाहा बताइए क्या ऐसी बात है जो आपको इतना दुख देती है

राजीव : क्या कहे? दरअसल मेरी वाइफ ज्योति बर्धमान से बिलॉंग करती है वो असल में मेरी बहन लगती है तुम तो जानते हो कि एक ही घर में रिश्ता करना या ब्याह करना ग़लत माना जाता है क्यूंकी रिश्ता खून का हो जाता है पर मैं खुद पे काबू नही कर सका...ज्योति थी ही इतनी खूबसूरत पहल मैने ही कर दी वैसे ही मैं बहुत मेहनती था और भगवान की दया से थोड़ा नैन नक्श का ठीक बस ज्योति भी जैसे मेरी तरफ खिंचती चली आई....हम दोनो के संबंध शादी से पहले ही बन गये घूमना फिरना होने लगा और एक दिन घरवालो को बात पता चल गयी....बस फिर क्या था ताना कसी शुरू होने लगी झगड़ा हो गया उनके और मेरे माँ बाबूजी से उसके बाद हमे लगा कि इससे पहले हमे कोई अलग करे हमने भाग के मंदिर में शादी कर ली...उसके बाद तो जैसे आफ़त ही आ गयी और मुझे घर से ज्योति के साथ निकाल दिया गया

कहते कहते राजीव दा अपने आँसू पोंछने लगे मैने उन्हें सहानुभूति दी...फिर उन्होने अपने ज़ज़्बात पे काबू पाते हुए कहना शुरू किया
 
राजीव : यक़ीनन परिवार ने हमारे रिश्ते पे थू थू कर दी लेकिन सच कहूँ तो हमारी नयी ज़िंदगी की शुरूवात सी हो गयी...आज हम एकदुसरे के साथ अकेले रह रहे है खुश है ज्योति के ही प्यार ने मुझे इस काबिल बनाया कि मैने पोलीस डिपार्टमेंट के लिए इतनी मेहनत करी और भगवान का करिश्मा देखो कि आज इस पोस्ट पे हूँ

आदम : वाक़ई सच में व्याबचारी रिश्तो को ऐसा माना जाता है जैसे गुनाह हो पर मुहब्बत तो दिल से होती है ये तो एक अँधा विचार है जिसे कोई राह नही दिखा सकता

राजीव : ह्म तो फिर तुमने क्यूँ नही शादी की अभीतक?

आदम : आप तो जानते है आजकल के माहौल को पराई बहू मोस्ट्ली सेपरेशन करने में ज़्यादा विश्वास रखती है ताकि उनका अपना परिवार सुखी से रहे वो खुशी से रहे मुझे ये सब करने का कोई मन नही मैं माँ के साथ ही खुश हूँ

कैसे कह पाता कि व्याबचारी रिश्तो में तो मैं खुद उलझा हुआ हूँ पर राजीव दा जितना कामयाब तो नही हो पाया भला माँ से रिश्ता शादी तक का इसके लिए तो अभी तक इंतजार में था मैं ...हम कुछ देर और बात किए फिर वो उतर गये बोले कि यही पे उनकी पत्नी ज्योति ट्रडीशनल डॅन्स सीखती है..वो उन्हें पिक अप करने चले गये मैने देखा कि एक बड़ी सुंदर सी महिला करीब 25 वर्ष की खड़ी कन्जिवरम साड़ी में बोतल जैसा उनका फिगर था वाक़ई बड़ी खूबसूरत नैन नक्श की थी वाक़ई राजीव दा बड़े भाग्य शाली थे...राजीव दा को देखतेः हुए वो मुस्कुराइ और उनसे गले मिली इतने में थ्री वीलर आगे बढ़ गया क्यूंकी एक आध कस्टमर मेरे बगल में आज़ु बाज़ू बैठ गये थे...

जब घर पहुचा तो मुझे खुशी हुई चलो समीर के बाद कोई और तो मिला ज्सिके साथ मैं अपना वक़्त काट तो सकता हूँ वरना अपनी इस जगह में आके भी इतने साल बाद जैसे अजनबी सा महसूस हो रहा था...घर में माँ बालों में तैल लगाए जैसे मेरा ही इंतेज़ार कर रही थी...आज उसका मूड ठीक था...मैने भी कोई कल उनके साथ हुए वाक्यात की बात नही छेड़ी..

और उनके पास बैठ गया और उन्हें राजीव दा से हुई नयी दोस्ती और मुलाक़ात दोनो बताने लगा....माँ बेहद खुश हुई कि चलो कोई तो मिला जिससे मैने दोस्ती तो की वरना समीर के बाद तो जैसे मैं अकेला सा हो गया था....माँ कंघी कर खाना बनाने चली गयी....मैने पाया कि माँ टीवी पे हिन्दी गाने लगाए सुन रही थी.....गाना काफ़ी रोमॅंटिक था इसलिए मैं बड़े गौर से सीन को देखने लगा जिसमें माधुरी को जॅकी कैसे सिड्यूस कर रहा था?

"देर से आना जल्दी जाना आए साहिब ये ठीक नही...
आए साहिब ये ठीक नही रोज़ बहाना करके जाना
प्यार किया है तो निभाना आए साहिब ये ठीक नही"

.....माँ भी जैसे किचन में गाने को सुन गुनगुना रही थी....मैने उसे पीछे से पकड़ लिया तो वो खुद को मुझसे छुड़ाने लगी....मैने उसे बताया कि अब हम जल्दी यहाँ से शिफ्ट हो जाएँगे तू बस चिंता ना कर तो माँ ने कहा कि तू अगर मुझे कहीं भी लेके जाए तो भी मैं खुश रहूंगी"....हम दोनो एकदुसरे के गले लग गये...

दो-तीन दिन तक सबकुछ नॉर्मल रहा माँ और मेरी ज़िंदगी में ऐसी कोई वाक़या नही घटा जिससे ये लगे कि कुछ हुआ है या फिर कुछ होगा? सबकुछ जैसे चल रहा था ठीक वैसे ही चल रहा था...इधर राजीव दा से एक आध बार और मुलाक़ात हुई इस बार वो सिविल ड्रेस में नही थे : वो अपनी वर्दी में थे मैं उनकी बाइक पे बैठा उनके घर भी गया था...वहाँ उन्होने अपनी वाइफ ज्योति से मिलवाया जैसे खूबसूरत थी वैसे ही दिल की भी उतनी नायाब और पाक वाक़ई मियाँ बीवी दोनो से ही मिलके जैसे मुझे अपनापन सा लगा था....राजीव दा आजकल मेरे साथ ड्यूटी के बाद काफ़ी देर रात गये तक फोन पे बात करते थे इस बीच माँ को भी राजीव दा के यहाँ ले गया था...तो वो माँ से मिलके काफ़ी खुश हुए साथ में उनकी बीवी ज्योति भाभी भी...हम मे कपल्स जैसा संबंध सा बन गया था....हम काफ़ी खुश रह रहे थे और राजीव दा वो तो मुझे अपनी बीवी के साथ हर रंगीन सिलसिलो की कहानी भी बताते थे उसे सुनके मैं गरम हो जाता था और वो गर्मी मैं अपनी प्यारी अंजुम से शहवत के तौर पे पूरी करता था

उस दिन मैं डेपारमेंटल स्टोर में एंक्वाइरी करने बैठा काम कर रहा था....पर थकावट बहुत ज़्यादा लग रही थी तबीयत भी कुछ ठीक सी नही लग रही थी सोचा हाफ-डे कर लूँ उपर से काम भी कम मिला हुआ था...मॅनेजर से बात करके मैं घर की ओर निकल गया...पता नही आज दिल क्यूँ घबराया बेचैन सा लग रहा था....कुछ समझ नही रहा था पूरे रास्ते बस फिकर हो रही थी जब माँ को कॉल लगाया तो माँ ने तुरंत फोन उठाया

माँ : हेलो?

आदम : हां माँ अफ तुम फोन नही उठा रही थी तो मुझे अज़ीब सी बेचैनी हो रही थी

माँ : हाहाहा तू भी ना काम में भी अपनी माँ के बारे में सोचता रहता है क्या होगा मुझे? काम में मैं व्यस्त थी वो क्या है ना कि लॉन में कपड़े डाल रही थी अब फिर फारिग होके खाना बनाउन्गी अब जा रही हूँ नहाने

आदम : अच्छा सुन मेरे लिए भी दोपहर का खाना बना लेना मैं घर आ रहा हूँ

माँ : अच्छा ठीक है तू आ जल्दी घर आ फिर

आदम : ठीक है माँ लव यू

माँ : लव यू टू बेटा

माँ ने इतना कह कर फोन कट कर दिया....वो अपने पास रखके तौलिए को लिए गुसलखने में घुस गयी वहाँ आके उसने अपनी गंदी नाइटी को उतारा साथ ही साथ अपने ब्रा और पैंटी को भी उसने आयने की तरफ देखते हुए अपने आर्म्पाइट्स में उग रहे बालों को सॉफ करना शुरू किया उसके बाद साबुन का झाग बना कर अपने गुपतांग के उपर उग रही झान्टो को सॉफ करने लगी क्यूंकी बेटा अगर देख लेगा तो फिर वो खुद उन्हें सॉफ कर देगा जिससे उसे शरम आती है...वो अपने गुपतांग के बाल सॉफ करते हुए नहाने लगी....
 
कुछ ही देर में वो टवल पहने बाहर आई फिर उसने पास पड़ी आज लाल कलर की मॅचिंग ब्लाउस पेटिकोट वाली साड़ी को पहना...उसने अभी साड़ी के बॅकलेस ब्लाउस की डोरियो को अभी बाँधा ही था कि इतने में दरवाजे पे दस्तक हुई....

"अफ लगता है यह लड़का आ गया".......माँ मुस्कुराते हुए साड़ी लपेटते हुए पल्लू कर ली..

फिर वो मुस्कुरा कर दरवाजे के पास आती है इस बीच दरवाजे पे दो बार और दस्तक होती है..

"उफ्फ इस लड़के से सवर भी नही होता"......इतना कहते हुए अंजुम दरवाजा खोलती है...दरवाजा खुलते ही उसकी नज़र सामने की ओर जाती है और फिर ..............

उधर ट्रॅफिक में उलझा आदम चिलचिलाती धुंप की गर्मी से तप्ता हुआ अपना हेल्मेट ठीक किए आँखे तीखी सी किए एक बार चारो तरफ का जायेज़ा लेता है....काफ़ी ज़्यादा ट्रॅफिक आज मेन रोड और ब्रिड्ज के साइड लगा हुआ था....जब तक ट्रॅफिक नही हटेगा तब तक ब्रिड्ज क्रॉस करना और घर पहुचना बहुत ही मुस्किल भरा काम था....वो बार बार घड़ी की सुइयो की तरफ देखता हुआ बस यही मन में कह रहा था कि यार ये कहाँ लफडा है? आज ही ये ट्रॅफिक लगना था..गाड़ी के हॉर्न के शोर्र में कुछ समझ भी नही आ रहा था...थोड़ा सा ट्रॅफिक हटा तो आदम धीरे धीरे बाइक को थोड़ा आगे खिसका रहा था..पर जाम वैसे ही लगा हुआ था...

उधर अंजुम की नज़रों में परिवर्तन आने लगता है...और उसके चेहरे पे हँसी और मुस्कान गायब होते हुए घबराहट और माथे पे शिकन दोनो आ जाते है...वो बड़ी बड़ी आँखे किए एकदम हैरत भरी निगाहो से सामने खड़े आदमी की तरफ देखते हुए थोड़ा भारी आवाज़ में कहती है

अंजुम : तुम यहाँ?

(राज़ौल मुस्कुराता हुआ अपने पसीने को रुमाल से पोंछते हुए उस रुमाल को कोट में डाल देता है उसका चेहरा खुशी से अंजुम को देखके दमक जाता है)

राज़ौल : हां मैं (राज़ौल ने एक सड़ी सी शैतानी भरी मुस्कुराहट देते हुए कहा अंजुम नज़र फेर देती है उसकी आवाज़ में कठोरपन आने लगता है)

अंजुम : यहाँ क्या करने आए हो? उस दिन तुम ही थे जो मेरा पीछा सबज़िमंडी में कर रहे थे तुम्हें मालूम भी है कि तुम क्या कर रहे हो?

राज़ौल : चलो अच्छा हुआ कि तुमने मुझे पहचाना तो सही पर ऐसे मुँह फैरने से क्या फायेदा अंजुम

अंजुम : देखो राज़ौल उस दिन ट्रेन में मैं तुम्हें पहचान नही सकी थी लेकिन जब बाद में ज़्यादा गौर किया तो समझ आया कि तुम कौन थे? (अंजुम के स्वर में कठोरता अब भी थी)

राज़ौल : तुम शायद मुझे पहचान ना पाओ पर मैं तुम्हें पहचान ज़रूर गया था...भला तुम भूलने की चीज़ हो डार्लिंग

अंजुम : क्या कहा तुमने? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ? (अंजुम चिड सी गयी)

राज़ौल : माना कि तुमने उस दिन मुझे नही पहचाना पर मैने तुम्हें एक झटके में ही पहचान लिया था पर बदक़िस्मती कि तुम अपने बेटे के साथ ट्रेन से उतर गयी और मैं कुछ कर भी नही सका भूल गयी वो दिन थे जब तुमसे नही मिलता था तब भी तुम मैदान में मेरा इंतेज़ार करती थी...

अंजुम : मुझे कुछ याद दिलाने की ज़रूरत नही मुझे सब याद है कि मैने तुम जैसे घटिया आदमी से अपना दिल लगाया जो कि एक तो उमर में मुझसे बड़ा था और सिर्फ़ अपने फाय्दे के लिए मेरे पास आ रहा था

राजौल अंजुम के एकदम नज़दीक आने लगा तो अंजुम ने उसे हाथ दिखाके वहीं ठहरने का इशारा किया उसकी आँखे बड़ी बड़ी हो गयी गुस्से में....लेकिन राज़ौल को कोई फरक नही पड़ा वो ढीठ सा होके और अंदर आने लगा

राज़ौल : तुम्हारी सोच ग़लत है मेरे दिल में अब भी तुम्हारे लिए वहीं फीलिंग्स है जो थे और तुमने सोचा नही था कि इस मोड़ पे ? सुनने में आया है कि तुम्हारा पति तुम्हें छोड़ चुका है (अंजुम एकदम से हड़बड़ाई उसे ये कैसे मालूम चल गया? वो कशमकश के घेरे में नज़र इधर उधर करने लगी)

अंजुम : किसने कहा तुमसे?

राज़ौल : तुम्हारे तक पहुचने के लिए सब जान आया हूँ मेरी अंजुम

अंजुम ने फॅट से राज़ौल का हाथ झटका..और उसे घुरते हुए उंगली दिखाई

अंजुम : बदतमीज़ी पे मत उतर आओ राज़ौल देखो मुझे तुमसे बात करने का ना शौक है और ना ही कुछ भी जानने का ना मैं तुम्हें देखके खुश हुई हूँ और ना ही मुझे तुमसे कोई मतलब है

इस बीच अंजुम ने महसूस किया कि राज़ौल उसकी साड़ी के पल्लू के थोड़े खिसक जाने से उसके ब्लाउस के उभार को बखूबी घूर्र रहा था....अंजुम को अहसास हुआ कि उसमें से उसके मोटे निपल्स तने हुए सॉफ दिख रहे है क्यूंकी वो बेटे की मज़ूद्गी में सिर्फ़ साया कर लेती थी कोई ब्रा पैंटी नही पहनती थी...लेकिन राज़ौल की निगाह वहीं पे गढ़ी देख...वो पल्लू से अपने उभारो को छुपाने लगती है...और इस बार उसके चेहरे पे शरम के भाव थे राज़ौल मुस्कुराते हुए उसे हवस भरी नज़रों से देखता है

राज़ौल : भूल गयी वो दिन जब मैने तुमसे नज़दीकिया बढ़ाने के लिए कितनी कोशिशें की थी तुम्हें याद है वो गार्डन जहाँ हम अक्सर जाया करते थे उस दिन मैने तुम्हें अकेला पाके छुआ था और तुम्हें कुछ हुआ था तुम इज़हार नही कर सकी पर तुम्हारा काँपता जिस्म इस बात की गवाही दे रहा था कि तुम्हारे शरीर में मेरे छूने से कुछ हुआ था...उस वक़्त तो तुम शर्मीली मासूम कमसिन कली थी और आज उमर के साथ तुम्हारी जवानी भी कितनी खिल सी गयी है

अंजुम : पीछे हटो राज़ौल कैसे बेहया हो तुम? एक घरेलू औरत के साथ इस तरीके से बात करते हुए शरम नही आती हमारा तुम्हारा कोई रिश्ता कभी नही था भूल थी कि सिर्फ़ मैने तुमसे दिल लगाया पर रोज़ी उसे तो जानते हो ना उसने मुझे तुम्हारी सारी काली करतूतो के बारे में बताया था उसके साथ दो बार तुम हमबिस्तर हुए थे ना उसे उल्टिया होने लगी तो कॉलेज के बाद मैं ही उसे गुप्त तरीके से हॉस्पिटल लेके गयी वहीं पता चला कि तुमने उसे कितना बड़ा धोका दिया और उसे प्रेग्नेंट कर दिया बेचारी उसे तो अबॉर्षन करना पड़ा था बदनामी के डर से पर उसे देखके मुझे सबक मिला कि मैं तुम जैसे घिनोने इंसान के हाथो की वो ही शिकार बनने वाली हूँ जब तुमसे अलग हुई तो तुमने मेरे पीछे लड़के लगाने शुरू कर दिए जो मुझे कयि जगहो पे छेड़ते थे तुमसे और तुम्हारे दोस्तो से ही तंग आके मैने फ़ैसला कर लिया कि मैं बिहार छोड़ दूं तुम्हें मालूम चल गया था ना कि मेरा रिश्ता तय हो गया था अर्रे तुमने तो मेरे घरवालो को भी मनिपुलेट करना चाहा था है ना मेरी इन्फर्मेशन मेरे घर की कामवाली बाई से निकलवाने के लिए पैसे देते थे उसे और उस पर हाथ सॉफ भी किया क्या ये सब सच है ना?

राज़ौल : बिल्कुल झूठ है सरासर झूठ है मैं सिर्फ़ तुम्हारे पास आना चाहता था...और बस कुछ नही माना कि आज मैं शादी शुदा हूँ पर क्या फरक़ पड़ता है? जिस औरत से मुझे कभी कोई सुख नही मिल सका उसे भला क्यूँ प्यार करना? प्यार और मुहब्बत दोनो तो तुम थी मेरी अंजुम और तुम भी तो मुझे चाहती हो!
 
इस बार राज़ौल कुछ बोल नही सका क्यूंकी अंजुम ने कस कर उसे थप्पड़ जड़ दिया और हो भी क्यूँ ना? जिस बीते कल को वो भुलाए आज अपने बेटे के साथ खुश रह रही थी उसमें फिर ग्रहण लगाने और बीते ज़ख़्मो को याद दिलाने राज़ौल आया था....अंजुम ने सोचा नही था कि राज़ौल इस हद तक उसके पीछे पड़ जाएगा...उसने कस कर थप्पड़ राज़ौल को जड़ने के बाद अपने गुस्से भरी निगाहो से उसे घूरा ये मन ही मन अपना नाम किसी गैर मर्द से जुड़ने पे भी उसका खून कितना खौल उठता है...जैसा भी रहे अपने पति के बाद वो सिर्फ़ अपने बेटे की अमानत थी...और आज राज़ौल गैर मर्द जैसा था..

अंजुम : एक लव्ज़ और कहा तो इस बार ऐसी जगह पे लात मारूँगी कि सारी ठरक निकल जाएगी तुम्हारी मिस्टर.राज़ौल भलाई इसी में है यहाँ से दफ़ा हो जाओ वरना मेरा बेटा किसी भी वक़्त यहाँ आता होगा और फिर देख लेना

राज़ौल : देख लेना क्या देख लेना? अर्रे आने दो उसे आज फ़ैसला हो ही जाए आज उसे मैं बताउन्गा कि उसकी माँ उसके पिता से पहले मेरे साथ थी

अंजुम : रज़्ज़ौल्ल्ल (अंजुम चीखी राज़ौल ने उसके होंठ पे उंगली रखी तो उसे अंजुम ने कस कर झटक दिया और उसे गुस्से से देखा साथ में दिल घबरा भी रहा था एक तो बेटा आया नही था अभीतक और उपर से वो घर में एक अकेली औरत कौन आता दूर दूर तो घर थे वो भी चिल्लाने से किसी को सुनाई भी नही देता क्यूंकी इस वक़्त सब दोपहर की नींद के आगोश में होंगे)

राज़ौल : देखो अंजुम आइ कॅन एक्सप्लेन दिस ऑल प्ल्स अंजुम देखो शांत हो जाओ प्लस्स प्लस्स

राज़ौल कहते कहते अंजुम को छूने लगा अंजुम विरोध करने लगी...वो बार उसके कंधे और चेहरे पे हाथ रखने की कोशिश कर रहा था उसके नज़दीक आ रहा था....अंजुम जानती थी कि राज़ौल की उमर ज़रूर हो चुकी थी पर ठरक अब भी बरक़रार थी वो किस हद तक जानवर बन जाता था ये वो जानती थी बस दिल ही दिल में दुआ कर रही थी कि आए खुदा जल्दी से उसके बेटे को भेज दे...पर राज़ौल के धीरे धीरे उसके करीब आने से उसका डर ज़्यादा और हिम्मत कम हो रही थी...वो घबराते हुए अब दोनो हाथो से उसे बाहर की ओर धकेलने लगी तो राज़ौल ने उसके दोनो हाथ कस कर पकड़ लिए...

राज़ौल : प्लस्स मेरी बात तो सुनो अंजुम अंजूमम्म देखो हम आराम से भी इस बारे में बात कर सकते है मैं तुम्हें समझाता हूँ अंजुमम

अंजुम : छोड़ो मुझहही रज़औल्ल्ल तुम अपने आपे से बाहर हो रहे हो छोड़ो प्लस्सस देखो ये त्तुम्म अच्छा नही कर रहे छोड़ो (आख़िर कार अंजुम ने अपने दोनो हाथ छुड़ा लिए और जैसे ही उल्टे पाँव बाहर की ओर भाग ही रही थी ये सोचके कि शायद बाहर भाग जाने से राज़ौल से दूर हो सके पर उसी बीच वो अपने बेटे से टकरा गयी जो दरवाजे पे खड़ा राज़ौल को माँ को छेड़ते देख रहा था उसका बेटा आदम घर पहुच चुका था )

अंजुम जैसे ही बेटे के सीने से टकराई उसकी तरफ बौखलाई निगाहो से देखते हुए पल भर में रोते उसके सीने से लिपट गयी....माँ को रोता घबराया हुआ देख आदम की तो जैसे आँखे एकदम लाल लाल हो गयी...उसने एक बार राज़ौल की तरफ देखा...राज़ौल का गला आदम को देखके ही सूख गया था...उसकी फॅट गयी थी आदम ने एक हाथ से माँ को अपने से दूर किया...राज़ौल धीरे धीरे आदम को कहने लगा ऐसा कुछ नही है प्लस्स आदम बेटा तुम मेरी बात तो सुनो

कहने को और शब्द भी नही मिला उसे क्यूंकी उसके बाद आदम जैसे किसी बाघ की तरह उस पर झपटा..."साले बेहेन्चोद"......आदम ज़ोर से दहाड़ता हुआ उसका गिरहबान पकड़े उसे दीवार से सटा देता है...राज़ौल अपने गिरहबान से उसके हाथ को मज़बूती से छुड़ाने लगता है....पर आदम का तो पारा चढ़ गया था...उसने एक ही पल में अपना घूँसा उसके चेहरे पे दे मारा....ऐसे ही वो गुस्सैल मिज़ाज़ बंदा था और उपर से मिक्स्ड मार्षल आर्ट का दीवाना जिस वजह से उसे कयि पैच देने आते थे....राज़ौल काँप गया क्यूंकी जवान आदम के आगे उसकी एक भी नही चली....आदम ने उसे एक ही घुसे में फर्श पे गिरा देता है और ठीक उस पर हमला करते हुए लात घुसा की बौछार कर देता है...उसका गुस्सा अब थमने वाला नही था इसलिए माँ उसे रोकने की कोशिस करती है....पर वो एक पल को माँ को भी धक्का दे देता है..लेकिन अंजुम अपने बेटे को छुड़ाने की नाकाम कोशिशें कर रही थी....

जब आदम ने उसका गला दबोच लिया और उसे लगभग मारना चाहा तो विरोध के तौर पे राज़ौल उसे हर मुमकिन अपने से अलग करने के लिए काफ़ी प्रयत्न करने लगा...इस बीच आदम ने ठीक एक लात उसकी पीठ पे मारते हुए गिरा दिया

आदम : हरामजादे तेरी माँ की चूत भोसड़ी के तेरी ये मज़ाल की तू मेरी माँ को छुए कमीने (जैसे ही राज़ौल उससे अलग होके अपना गला पकड़े साँस भर ही रहा था कि इतने में आदम ने पास रखा बल्ला उठाया और दो-तीन उसके पीठ और गान्ड पे जड़ दिए)
 
राज़ौल दर्द से बिलबिला उठा....अब भागना ही एक आखरी उपाय था उसके लिए...वो किसी कुत्ते की तरह हान्फते चोट लगी हालत में घर से बाहर निकल गया तो आदम भी उसके पीछे भागा बेसबॉल बॅट लिए...माँ उसे चीख चीख के रोकने की कोशिश करने लगी...इतने में आस पड़ोस के लोग चिल्लम चिल्ली से बाहर को आए उन्होने देखा कि एक आदमी के पीछे आदम किसी भेड़िए की तरह उसके पीछे तेज़ी से भाग रहा था हाथ में उसके बल्ला था...आधे रास्ते से वापिस आते हुए हान्फते हान्फते आदम पसीना पसीना अपनी शर्ट की आस्तीन को फोल्ड करते हुए वापिस घर में आया लोगो को जमा देख वो सबकी ओर हैरानी भरी नज़रों से देखने लगा...

माँ उसके गले लग्के उसके चेहरे को थपथपाने लगी कि वो ठीक तो है...आदम ने सिर्फ़ हान्फते हुए मुस्कुराया....फिर सबको उसने जाने को कहा झूठ बोला कि चोर आ गया था माँ गुसलखाने में थी तो जैसे ही मैने उसे देखा तो उसके पीछे भागा...लोग भी रज़ामंद होते हुए अहेतियात करते हुए उल्टे पाओ चले गये...दोनो माँ-बेटे वापिस घर में दाखिल हुए

अंजुम : तू ठीक तो है ना?

आदम : हां माँ वो कमीना बहुत दूर निकल गया था इसलिए हाथ नही लग सका पर माँ ये सब क्या था? ये तो वहीं कमीना है वहन्चोद राज़ौल

अंजुम : हां यही वो था जिसने सब्ज़ी मंडी में मेरा पीछा किया था...

आदम : उफ्फ तूने मुझे पहले क्यूँ नही बताया? इसकी खाट खड़ी कर देता ये भला हमारा पीछा करते यहाँ तक क्यूँ आया था? (अंजुम जैसे नज़रें झुकाए अपने आपको मुजरिम समझ रही थी)

आदम ने उसके चेहरे को हाथो से उपर उठया और उसके एक हाथ पे चेहरा रखते हुए कहा बाहर खड़ा था तो तेरी और उसकी ज़ोर ज़ोर बहसा बहसी की आवाज़ सुनी मुझे नही पता था कि वो तेरे साथ ऐसी नीच हरकत करने लगेगा मैं बाहर ही खड़ा चुपके सुन रहा था कि आख़िर वजह क्या है? तू डर मत मुझे कोई बुरा नही लगा कि वो तेरा कभी बाय्फ्रेंड हुआ करता था पर प्ल्ज़्ज़ मैं अपने पिता जैसा नही जो तेरा फॉल्ट ढूंढता मुझे तफ़सील से बता आख़िर ये इतने सालो बाद तेरे पास वापिस कैसे आया?

अंजुम ने सोचा कि अब वक़्त आ ही गया है कि उसे समझाए...उसने तफ़सील से ब्यान देना शुरू किया...वो तो खुद नही जानती थी कि इन 24 सालो बाद वो वापिस उसकी ज़िंदगी में कैसे आ गया? शायद उस दिन इत्तेफ़ाक़ से उसने उसे ट्रेन में पहचान लिया था अंजुम ने बताया कि किस तरह वो उसका पीछा करते हुए इस शहर तक पहुचा और फिर उसके घर का पता लगाते हुए...फिर वो बताने लगी कि अपने बीते उन ज़ख़्मो के बारे में...आदम जानता था कि उसकी माँ की शादी से पहले किसी से मुहब्बत थी पर माँ फ्रॅंक्ली थी उसने ये अपने बेटे से छुपाए नही रखा था जिसका ज़िक्र हमेशा उसने किया आज वो उसके और उसके बेटे के सामने आ गया था वहीं राज़ौल...

अंजुम : तू तो जानता है 24 साल पहले मैने जब बिहार छोड़ा था तो अपने कितने ज़ख़्मो को भरने के लिए यहाँ आई थी पिता के पास फिर पिता ने ग़रीबी से तंग आके मेरी शादी तय कर दी थी और मैने भी फ़ैसला कर लिया था कि दुबारा बिहार ना लौटू वहाँ मेरी हैसियत मेरे ताउ ताई के घर किसी नौकरानी जैसी थी जिनके पास संतान नही थी तो मुझे गोद लिया था....

आदम चुपचाप सुन रहा था....गंभीरता से अपनी माँ को देखते हुए...

अंजुम : जैसे जैसे जवान होने लगी रिश्ते आने लगे और तू तो जानता है छोटे ज़िले के लोगो की कैसी सोच होती है? उसी बीच सहेलियों के साथ स्कूल जाया करती थी अपनी दसवी की बोर्ड की क्लासस अटेंड करने और उसी बीच राज़ौल आया उस वक़्त उसकी उमर 30 वर्ष थी तो सोच अब कितना होगा? वो काफ़ी अमीर था पैसे वाला था...और साथ ही साथ अय्याश भी उसके घर को कोई भी पसंद नही करता था पर बेवकूफ़ मैं थी....मैं उसके प्यार में पड़ गयी...उसके बाद उसके बिना नही रह सकती थी...इतनी पागल और जुनूनी हो गयी कि भाग जाने तक का फ़ैसला कर लिया..

वो तो भला हो उस रोज़ी का जिसे राज़ौल ने फँसा रखा था शायद उसके बाद मेरा ही नंबर था...उसे प्यार का नाटक किया और उसे प्रेग्नेंट कर दिया उसे उल्टिया होने लगी और फिर उसने ये बात मुझे कही तो मेरा दिल जैसे टूट गया रोज़ी ने एक चौका देने वाली बात भी मुझे बताई कि उस कमीने को कोठे जाने की भी लत है वहीं से वो किसी रंडी से मिला और उसे सूजाक की बीमारी पकड़ ली...(आदम के नेत्र फैल गये माँ ने उसे बताया कि सूजाक की एक ऐसी घिनोनी बीमारी होती है जिससे मर्दो के लिंग में मवाद होने लगती है उसके लिंग में हरपल दर्द रहता है और उसका लिंग किसी हबशी से भी ज़्यादा मोटा और लंबा हो जाता है नॉर्मल साइज़ से कहीं ज़्यादा जो मर्दो का असल में होता है वो उस घिनोनी बीमारी को माँ को देके खुद फारिग होके बच जाना चाह रहा था मेरे गुस्से की जैसे इंतेहा नही रही आख़िर कितना नीच इंसान था वो?)

मुझे राज़ौल से घृणा होने लगी अब समझी थी क्यूँ मेरी सहेलिया मुझे बार बार राज़ौल से दूर रहने को कहती थी..पर थी तो मैं भी बेअकल ही उसके बाद रोज़ी को तो राज़ौल ने डंप कर ही दिया फिर मेरे पीछे पड़ा रहा मैं उससे दूरिया बनाने लगी तो मेरी सहेलियो ने भी उसके बार बार मेरे बारे में पूछने पे उससे झगड़ा कर लिया और एक दिन तो उनके हाथो से बेशरम ने मार भी खा ली…लेकिन वो टस से मस नही हुआ उसने मेरे पीछे अपने दोस्तो को लगाना शुरू कर दिया…मैने उसे दो-तीन बार कह भी दिया कि तुम्हारा सच जान चुकी हूँ अब भलाई इसी में है कि मुझसे दूर रहना…वो मुझे फसाने के लिए और बदनाम करने के लिए नये नये तरीके ढूँढने लगा…मैने बहुत कोशिशें भी की पर इधर मेरे ताऊ ताई मुझे भगाने लगे कहा जाके अपने पिता के यहाँ मर तेरी यहाँ किसी को ज़रूरत नही उनसे लड़ झगड़ के पिता के घर लौटने के सिवाय मेरे पास कोई चारा नही था ..

और ठीक इसी बीच पिताजी ने मेरी शादी तय कर दी सिर्फ़ इसलिए कि यहाँ भी मेरा जीना तेरी ही ताहिरा मौसी के जीजा ने दुश्वार कर दिया था....यहाँ तो वो आ नही पाया...लेकिन उसकी खबरी जिसे मैने खूब सुनाया था उसने ये तेरे पिता तक खबर पहुचा दी कि मेरे पहले किसी से संबंध थे बस तेरे पिता भी मुझे हीनभावना से शादी के बाद देखने लगे छोड़ तो नही पाए क्यूंकी उन्हें मुझसे दान दहेज जो चाहिए था पर हर लड़ाई झगड़े में ताना इस बात का ज़रूर देते थे कि उन्होने मुझपे अहेसान किया वरना मैं तो ऑलरेडी चुदि हुई थी
!
 
ये सुनके मेरा खून खौल उठा मैने माँ के मुँह पे हाथ रखा कि दुबारा ऐसा कुछ ना कहे पर माँ ने रोई निगाहो से मुस्कुराते हुए मेरे हाथ को नीचे किया

अंजुम : मैं जानती हूँ तू एक लव्ज़ भी मेरे अगेन्स्ट सुन नही सकता और सुन तेरे पिता की क़र्ज़ मारी की वजह से आएदीन क्लब के गुंडे भी मुझसे क़र्ज़ लेने आने लगे...जबकि उन्हें मालूम था कि मैं गर्भवती थी कोई गंदी से गंदी बात बोलता तो कोई कुछ और ये सब सुनके ही मुझे तेरे पिता और इस जगह से इतनी नफ़रत हुई कि इन लोगो की वजह से मेरा ये हाल हुआ पर मैं कसम खाती हूँ तेरी और अपनी खुद की जान की भी मैने राज़ौल से कोई संबंध नही बनाए थे...पर मुझे मालूम नही था कि साए की तरह वो मेरे पीछे आ लगेगा

माँ ने इस बीच जज़्बातो में बहते हुए ये तक बता दिया कि राज़ौल उनकी ज़िंदगी का वो पहला मर्द था जिसने उन्हे छुआ था उस दिन वो अकेलेपन का फ़ायदा उठा रहा था पर उसके हाथ शरीर को टच करते ही माँ को स्खलन हो गया था....मतलब वो झड गयी थी ये उनकी ज़िंदगी का पहला अनुभव था उसके बाद आज इतने सालो बाद उसके बेटे के छूने से उस दिन वो झड़ी थी...ये सुनके आदम दाँत पीसता हुआ माँ को चुप कराने लगा....

माँ ने ये तक बताया कि उसके पिता ने उसे रात गये एक सरव नाम के आदमी के पास पैसे तक ले जाने भेजा था उस वक़्त तो दुनिया में आ चुका था....माँ अकेले उसके पास पैसे लाने गयी पिता का दोस्त सरव माँ पे फिदा था...माँ ने महेज़ नाइटी पहन रखी थी बहुत ग़रीब हो चुकी थी और पति तो वैसे ही क़र्ज़ में डूबा था....सरव ने माँ को अपने पास बिस्तर पे बिठाया उसने ये तक कहा कि वो उसके बेटे को अपना नाम देगा उसका बाप बनेगा और माँ को अपनी बीवी बनाएगा वो था भी बहुत अमीर माँ पे तो जैसे साँप लॉट रहे थे इतना शरम्शार उसे अपनी ज़िंदगी में कभी नही होना पड़ा था...और उसने पाया कि माँ की नाइटी एकदम गीली थी हो भी क्यूँ ना? उनकी छातिया दूध छोड़ रही थी....उस अवस्था में भी वो एकदम पागल सा गया...माँ को हवस भरी निगाहो से छूने की कोशिश करने लगा तो माँ उससे दूर हो गयी इतने में मेरी पालनहार यानी मेरी दाई माँ उस वक़्त जो वहाँ काम करती थी कपड़े धोने का वो कमरे में आहट सुनते ही पहुच गयी माँ बच गयी...और सरव का मुँह लटक गया

दाई माँ ने उसे खूब सुनाया कि एक शादी शुदा और एक बच्चेदार औरत को छूते उसे शरम नही आई...सच में कहा था उस वक़्त साथ निभाने वाला वो पति...कहाँ थी उस वक़्त वो दादी की पैदावार जो मेरे पैदा होने के बाद ज़रा सा भी मुझे और मेरी माँ को ना अपनाए...सच में माँ की दर्दभरी कहानी सुनके मेरी आँखो में आँसू उबल गये कसम खा लिया कि ना उस मदर्चोद बाप की शकल देखूँगा और ना ही किसी और को अब अपनी माँ को हर्ट होते देखूँगा माँ अपनी दास्तान बताते हुए मेरे सीने से लग्के कुछ देर तक सुबक्ती रही फिर मैने उसे फ्रिड्ज से पानी ग्लास में डालके दिया....फिर हम दोनो रिलॅक्स हुए

आदम : माँ तू फिकर मत करना वो कमीना किस हद तक गुज़रता है मैं देखता हूँ उस वक़्त तो मैं तेरे साथ नही था पर अब हूँ और उस कमीने को अपनी औरत को छूने तक नही दूँगा पिता तो ना मर्द था पर मैं नही (मैने गुस्से में दाँत पीस लिए माँ को खुशी हुई कि मैं उसका सहारा जैसे बन गया था)

उस रात मैं राजीव दा से मिला मैने राजीव दा पे भरोसा किया था उन्हें जैसे बताया वो मुझपे गुस्सा हुए उन्होने मुझे कहा कि आख़िर उन्हें बताया क्यूँ नही फोन तक क्यूँ नही किया? वो आके उस कमीने की खबर लेते ...पर मैं मुस्कुराया कहा कि आज का डोस तो मैने उसे बड़े अच्छे से दिया है...माँ भी उस वक़्त वहीं मौज़ूद थी...वो लज्जा पा रही थी की भला किसी गैर आदमी को इतना कुछ कहना पर मैने माँ को इशारो इशारे में कहा कि राजीव दा मेरे अपने है और ये ज़रूर मेरी हेल्प करेंगे उस कमीने से निपटने में

राजीव : आप लोग फिकर मत कीजिएगा ज्योति कल आपके साथ दिन भर रुकेगी और उसका मन भी बहेल जाएगा मुझे आप लोग उसके आते होते ही फोन कीजिएगा दरवाजे खिड़किया लगाए रहिएगा वैसे तो वो किस हद तक जाता है ये देखना पड़ेगा और आदम तुम भी सावधान रहना वो साँप बन चुका है फिरसे जोश में ज़रूर लौटेगा

आदम : पक्का तय्यार रहूँगा

उस रात माँ और मेरे बीच कोई संबंध नही बने ना हमने एकदुसरे से मुहब्बत करने की कोशिश की वो दिन हम दोनो के लिए जैसे बुरा सा दिन था हम दोनो का मूड खराब था उस दिन..मैं बियर की चुस्की लेते हुए माँ की तरफ देख रहा था मुझे अपनी माँ पे अटूट विश्वास था....काश माँ से ये नही मालूम चलता कि उस कमीने ने माँ पे हाथ भी सॉफ किया ऐसे गंदे थॉट्स को मैने अपने दिमाग़ से झटकते हुए बियर की चुस्की लेते हुए माँ की तरफ करवट बदले सो गया..

दूसरे दिन ज्योति भाभी दिन में ही आ गयी मैं आज लेट ऑफीस के लिए निकला ही था...मैं उनसे मिला और माँ और दोनो से विदा लेते हुए ऑफीस चला आया...राजीव दा ने माँ से वैसे ही केस दर्ज़ कर लिया थी...कि अगर दुबारा कोई नुकसान पहुचाने की राज़ौल ने कोशिश भी की तो टीटी नौकरी से तो हाथ धोएगा ही अब वो शिकंजे में आ जाएगा राजीव दा ने शाम को मुझे कॉल किया और बताया कि उन्होने उस कमीने राज़ौल के बारे में मालूमत की वो बिहार और बेंगल के सतले शहर में पोस्टिंग लिए रह रहा था क्वॉर्टर में घरवालो ने उसे निकाल दिया था उसे उसके रिश्तेदार की ही पोस्ट मिली थी चूँकि उसके बड़े भाई ने उसे घर से निकाल दिया था और सारी जाएज़ाद भी छीन ली थी उससे...मैं तो मन ही मन खुश हुआ कि शायद माँ की बद्दुआ का असर था जब उसने बिहार छोड़ा होगा उसके सितम से

कुछ दिन तो सब ठीक रहा पर ज्योति भाभी के घर अक्सर मैं माँ को बाइक से छोड़ते हुए ऑफीस चला जाता था क्यूंकी वहाँ वो अकेली रहती थी....क्या मालूम वो कमीना फिर कोई नयी मुसीबत के साथ मेरी माँ को नुकसान पहुचाए....लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ....और एक दिन ऑफीस में बैठा काम कर ही रहा था इतने में पीयान ने आके कहा की आपसे कोई मिलने आया

जब बाहर निकला तो सामने राज़ौल खड़ा था..

राज़ौल को बाहर खड़ा देख मेरी तो जैसे तन बदन में आग लग गयी....उसके एक हाथ पे पट्टी थी और शर्ट के बटन खुले होने से उपर के...सॉफ देख सकता था कि पट्टी अंदर से उसके कंधे तक जा रही थी....कल के दिए मेरे ज़ख़्म अब भी वो लिए घूम रहा था मुझे इस बात की खुशी हुई....वो मुझे देखके रोई निगाहो से मुस्कुराते हुए मेरे पास आया जैसे कल कुछ हुआ ही नही था....मैं बस दाँत पीसते हुए अपने गुस्से पे काबू पाकर उसकी तरफ देख रहा था....मैने राज़ौल के पास आने से पहले ऑफीस के कॅबिन से ही राजीव दा को कॉल कर दिया था...उन्होने बताया था कि मैं उससे शांति से बात करूँ वो वहाँ किसी भी पल आके उसे अरेस्ट कर लेंगे...इसलिए मुझे वहाँ कोई तमाशा खड़ा करने की ज़रूरत नही थी...जैसे ही उसके करीब आया तो जैसे उसके चेहरे पे मांसूमियत और बातों में ज़ज़्बात फुट रहे थे....वो इस अंदाज़्ज़ पेश आ रहा था जैसे मैं उसका बिछड़ा कोई बेटा हूँ...माँ ने सॉफ कह दिया था कि वो तुझे भड़काएगा कुछ ऐसी झूठी बात कहेगा कि सुनके तुझे यकीन होने लगेगा..यक़ीनन वो बहुत ही शातिर और मनिप्युलेटिव इंसान था
 
आदम : अब यहाँ क्या करने आया है तू? कल का डोज कम पड़ गया था क्या?

राज़ौल : देखो मुझे परवाह नही कि तुम मुझसे कितना गुस्सा हो? जो भी कल तुमने देखा वो महेज़ सिर्फ़ तुम्हारी मिसांडरस्टॅंडिंग्स थी मैं तुम्हारी माँ के साथ कोई ऐसी हरकत नही कर रहा था...

मैने अपनी मुट्ठी कस ली और उसे बड़े घूर्र के देखा...

आदम : फिलहाल तो माँ का लव्ज़ भी मुँह से मत निकालना तुम्हारी बातों में मुझे कोई विश्वास नही

राज़ौल : तुम्हें विश्वास करना होगा आदम मुझपे ना सही पर अपने पिता पे..

मैं जैसे एकदम ठिठक गया पिता पे क्या इस कमीने ने मेरे सो-कॉल्ड बाप को भी मोहरा बनाया था....शायद ये उसकी कोई धमकी हो पर उसके चेहरे पे ऐसे भाव थे जैसे वो मुझे ज़ज़्बातो के समुन्द्र में डूबो देना चाहता था..

आदम : पिता कौन सा पिता? मेरे पिता हमारे साथ नही रहते और भला उससे तुम्हारा क्या मतलब?

राज़ौल : मैं जानता हूँ शायद ये सुनके तुम्हें झटका लगे पर मैं यहाँ तुम्हारी ज़िंदगी को सवारने आया हूँ दरअसल अंजुम सॉरी तुम्हारी माँ और मेरा!

आदम : आगे कहो मुझे हिस्टरी नही जाननी

राज़ौल सकपकाता हुआ मेरी तरफ ऐसे देख रहा था जैसे माँ ने सबकुछ उसके बारे में मुझे बता दिया हो..

राज़ौल : कल जो तुमने किया शायद तुम्हें ये अहसास नही कि तुमने किसके गेरेबान पे हाथ डाला? किसे मारा? तुम्हारी माँ की नफ़रत जायेज़ थी भला तुम्हें और तुम्हारी माँ को राह पे छोड़के मैने गुनाह ही तो किया

आदम : तू कहना क्या चाहता है ?

राज़ौल : यही कि जिससे तुम्हारी मोम की शादी हुई है वो तुम्हारा पिता नही तुम्हारा पिता मैं हूँ

राज़ौल की इस बात से मेरी जैसे ज़मीन खिसक गयी...मुझे माँ पे अटूट यकीन था पर उस कमीने ने आज तो कल से भी ज़्यादा हद पार कर दी थी...मेरी माँ अंजुम जिसने अपनी कसम मुझे दी मेरी कसम मुझे दी जो कभी मेरी झूठी कसम नही खा सकती उस पवित्र औरत को अपनी बीवी और मुझे अपना बेटा कहना चाह रहा था यही कहना चाह रहा था कि मेरी माँ ने मुझे उस कमीने से लिया था...उसके साथ संबंध बनाए थे...अगर ये बात किसी बेटे के आगे कोई आदमी रखे तो उस पर क्या बीतती है ? वो उस गैर को कम और अपनी माँ को कोस्ता लेकिन यहाँ मुझे माँ पे पूरा विश्वास था मैं जानता था ये कमीना अपनी आखरी चला चलेगा और इसने इतनी घिनोनी बात कही वो बोलता गया और मैं उसे मारने का बस सवर करने लगा था मुट्ठी कस्स चुकी थी मेरी..

राज़ौल : हां हां मैं सच कह रहा हूँ तू मेरी औलाद है ना कि उस आदमी की जिसने तुम दोनो को इस राह पे छोड़ दिया तुम्हारी माँ और मेरे बीच अटूट रिश्ता था यही सच्चाई तुम्हारी माँ तुमसे छुपाना चाहती है एक बार यकीन करके देखो मैं बस इसी लिए इतने सालो बाद यहाँ आया जब खबर मिली थी तुम्हारी पैदाइश की तो मैं बेहद खुश हुआ मुझे इसलिए यकीन है क्यूंकी तुम्हारी माँ बिहार छोड़ने से पहले उस दिन मुझसे होटेल मे मिली थी !

राज़ौल आगे कुछ और कह पाता या अपने घिनोने झूठ और आगे कहता ही..कि अंजुम की बेज़्ज़ती ना बर्दाश्त किए रह नही पाया आदम..और उसने एक कस कर थप्पड़ जड़ दिया राज़ौल को वो तो गाल पकड़े वहीं गिर पड़ा..

आदम : मदर्चोद बेहेन्चोद माँ के लौडे क्या समझ रखा है रांड़ की पैदाइश कि मैं तेरी बातों पे विश्वास कर लूँगा अर्रे कल तो तुझे मौका दिया था कि तू यहाँ से दफ़ा हो जा पर तू तो ठहरा सूअर की चॅम्डी का तू कहाँ इतनी जल्दी हार मानता हराम के पिल्ले तेरी माँ सोई होगी किसी के साथ उससे चुद के तुझे पैदा किया होगा तूने कैसे कही ये बात कि मेरी माँ मेरी माँ तेरे से संबंध बनाई है..साले हराम के जने एक पवित्र औरत के उपर ऐसा गंदा इल्ज़ाम लगाने से तेरी आत्मा नही कांपी कुत्ते उसे तिल तिल के तक़लीफ़ पहुचाई अब मुझे ज़रिया बनाके उसके पास आना चाहता है हरामजादे आज तो मैं तुझे नही छोड़ने वाला

राज़ौल मेन गेट पे ना खड़ा होके पीछे के कॉंपाउंड में आया था.जहाँ एक पतली सी गली शुरू होती थी वहाँ से आस पास के लोग बहुत कम गुज़रते थे वो ऑफीस का पिछवाड़ा था...मैं तो बस उस पर टूट पड़ा था...कल की कसर आज एक बार फिर पूरी कर दी थी मैने उसे मैने एक लात देके साइकल के ठेलो पे गिरा दिया और ठीक उसके उपर झपटते हुए उसके चेहरे पे अनगिनत मुक्के बरसाने शुरू कर दिए उसे गेरेबान से उठाया और पीछे की दीवार पे उसके सर को दे मारा...वो चक्कर खाए सर पकड़े वहीं ढेर हो गया...मैने उसके हाथ को मरोड़ते हुए तोड़ने का प्रयत्न किया वो दर्द से बिलबिला उठा सर नाक और होंठ से उसके खून बह रहा था...उसे शायद पछतावा हुआ होगा कि उसकी ये चाल भी कामयाब नही हो सकी...उसने सोचा था कि वो यहाँ आएगा मुझे भड़काएगा और फिर मैं धीरे धीरे उसे अपनी माँ के करीब ले आउन्गा और फिर वो मुझे ज़रिया बनाके माँ से अपनी हसरत पूरी कर लेता यही उसकी चाल थी...पर कमीना ये भूल गया कि माँ की हसरातों पे भी अब मेरा क़ब्ज़ा था और उसकी रूह पे भी वो ये नही जानता था उसका बेटा उससे भी कितना उसकी माँ के लिए जुनूनी और दीवाना था..

अभी उसकी बाँह को मरोड़े मैं वहीं फर्श पे उसके साथ गिरा उसकी हड्डी तोड़ने ही वाला था कि इतने में राजीव दा अपनी वर्दी में अपने कॉन्स्टेबल और बाकी पोलीस कर्मी के साथ वहाँ पहुच गये थे वो सब मुझे छुड़ाने लगे पीछे स्टाफ मेंबर भी दफ़्तर के आ गये कि आख़िर क्या हो रहा था? मेरे शर्ट के बटन टूट गये थे लगभग हाथा पाई में मुझे भी बहुत जगह चोट आई थी शर्ट पूरा गंदा हो गया था...राजीव दा ने फुरती से मुझे कस कर उसकी गर्दन और बाँह से छुड़ाया...वो दर्द से कराहता हुआ वहीं ज़मीन पे ढेर हो गया....राजीव दा ने कॉन्स्टेबल को कहा तो वो लोगो भी लगभग घँसीटते हुए उसे पकड़े ले जाने लगे..

राजीव : पागल हो गये हो क्या? आदम शांत हो जाओ शांत हो जाओ लो पानी पियो (राजीव दा ने वॉचमन से बॉटल लेते हुए मुझे दिया)

मैं हान्फ्ते हुए खुद के साँसों पे काबू पाया...फिर उन्हें बताया कि राज़ौल यहाँ क्या कहने आया था सुनके राजीव दा का भी खून खौल उठा..और फिर उन्होने कहा कि अब डरने की ज़रूरत नही...उन्होने पीछे ले जाते राज़ौल को पोलीस वालो की गिरफ़्त में देख गुस्से से ज़ोर से दहाड़ते हुए कहा "गिरफ्तार करो साले को बिठाओ जीप में हरामी के जने को आओ आदम चलो"........राजीव मेरे कंधे पे हाथ रखके मुझे वहाँ से ले आए

हम जल्द ही थाने पहुचे सलाखो के पीछे राज़ौल को वॉटर ट्रीटमेंट और लाठी की मार दी जा रही थी वहाँ सब क़ैदियो में से सबसे ज़्यादा उसी की दहाड़ सुनाई दे रही थी..पोलीस उसकी 2 घंटे तक धुलाई करती है तो इस बीच राजीव दा खुद अंदर जाके सबको रोकके वापिस अपने सीट पे आके बैठ जाते है...

राजीव : बस कुछ ही देर में तुम्हारी मोम भी यहाँ आ जाएगी आदम

आदम : उन्हें बुलाने की क्या ज़रूरत थी?

राजीव : केस उन्होने फाइल किया था इसके खिलाफ अब ये पकड़ा जा चुका है तुम्हें फिर ये धमकी देने आया और अगर तुम शांति से भी पेश आते जो तुम करने नही वाले थे फिर भी यह बाज़ नही आता ये फिर कोई और ख़तरनाक चाल इस बार चलता क्यूंकी मैने जैसा कहा था ये ज़हरीला साँप बन चुका है अब पोलीस वाले इससे इसका स्टेट्मेंट उगलवा लेंगे कि आख़िर क्या वजह थी जो यह तुम्हारी माँ के पीछे आया? तुम फिकर मत करो मैं उसे खुद इंटेरगेट करने जा रहा हूँ तुम यही बैठो
 
राजीव दा अंदर चले गये...अंदर उनके कर्कश स्वर की दहाड़ सुनाई बाहर तक दे रही थी...मैं वैसे ही बैठा रहा इनटेरगेशन कुछ देर तक चली इस बीच राजीव दा ने भी उसकी जमके धुलाई कर दी ...इस बीच माँ आ गयी उसके चेहरे पे ख़ौफ्फ और चिंता दोनो आए हुए थे...वो मेरे हाल को देख मेरे सीने से लगते हुए मेरी हालत के बारे में पूछने लगी

अंजुम : क्या हुआ तुझे? तू ठीक तो है ना उस कमीने ने फिर कोई!

आदम : माँ सबकुछ ठीक हो चुका है मुझे कुछ नही हुआ ये तो भला हो राजीव दा कि उन्होने आके उस कमीने को बचा लिया वरना आज तो मैं उसे जान से मार देता और तेरी कसम भला तुझे अकेला इस ज़ालिम दुनिया में कैसे छोड़ देता अगर मेरे हाथ से कुछ हो जाता तो

माँ शरमाते हुए मुस्कुराइ फिर हम दोनो वहीं सीट पे बैठे राजीव दा का इंतेज़ार करने लगे....इतने में राजीव दा अपने पसीने पसीने होती वर्दी को झाड़ते हुए मेरे सामने आके सीट ग्रहण करते हुए उस पर बैठे...

राजीव : माँ अब चिंता की बात नही है उसने क़बूला है कि उसने जो कुछ भी किया बस आपको फिर से पाने के लिए (माँ शर्मा गई और वो नज़रें झुकाए रही) दरअसल ये कमीना आपका पीछा करते हुए आया ये तो इत्तेफ़ाक़ है कि इसे आप ट्रेन में मिल गयी थी और इसने आपको पहचान लिया वरना इसका आपके पास आना नामुमकिन था...

राजीव दा के आने से पहले मैने माँ को सबकुछ खुलके बता दिया था कि उस कमीने ने आख़िर क्या नयी चाल चली थी? माँ सुनके उस पर बहुत नाराज़ हुई उसकी घृणा राज़ौल के प्रति और भी बढ़ गयी छी उस पर इतना वाहियात इल्ज़ाम भला अंजुम अपने पति के सिवा किसी को अपना कुँवारापन नही दी थी वो एक संस्कारी स्वाभिमानी औरत थी..और राज़ौल जैसा गंदा इंसान यही तो चाहता था

राजीव दा ने फिर माँ से चार्जेशेट पे साइन करवाया फिर कुछ और दस्तावेज़ पूरे कराए और उसके बाद सुनिश्चिंत किया कि अब डरने की हमे कोई बात नही अब वो सीधा जैल ही जाएगा अगर इस बीच कोई ज़मानत के लिए आता भी है तो भी जैल की सज़ा काटनी पड़ेगी 1 साल या उससे भी ज़्यादा की जैल तो उसे पक्का होगी क्यूंकी उसने मेरी माँ के साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की थी मौका पाके..हम खुश हुए की चलो हमारी ज़िंदगी से राज़ौल नाम की आफ़त दूर तो हुई

माँ को बहुत देर समझाने के बाद मैं माँ को लेके बाहर आया तो राजीव दा ने मुझे रोक लिया वो मुझसे पर्सनली कुछ बातें करना चाह रहे थे...मैं उनके साथ एक आड़ मे हो गया...तो उन्होने जो बताया वो मेरी माँ के सामने उनें बताने में आपत्ति होती..उन्होने बताया

राजीव : उस कमीने का इंटेन्षन तुम्हारी माँ के साथ ग़लत काम करने का था तुम बुरा मत मानना आदम अगर मैं ऐसा कुछ कह रहा हूँ तो उस कमीने ने बताया कि उसे सूजाक की प्राब्लम है मैने खीचके उसकी पॅंट उतार दी और जो देखा उसे डॅंग हो गया ये बीमारी उसे करीब बहुत सालो से थी जो कि अब बढ़ चुकी है और अब इलाज ना होने से उसे इस गंदी बीमारी से जान से भी हाथ भी धोना पड़ सकता है

आदम : मतलब?

राजीव : ही कॅन डाइ

आदम : ओह माइ गॉड अच्छा हुआ कि वक़्त चलते माँ उससे दूर हो गयी

राजीव : जो भी हो आदम तुम्हारी मोम से उसकी दोस्ती थी उस कमीने ने बताया पर अब वो और कुछ नही बता पाएगा क्यूंकी अब उसे मैने उस हाल छोड़ा नही अब डरो भी मत वो कुछ नही कर पाएगा अब निश्चिंत हो जाओ और हां आंटी को ये सब बताना मत

आदम : जी बिल्कुल

राजीव : और सुनो अब जल्दी से फ्लॅट चेंज करो यार कब तक अकेले अकेले वहाँ माँ के साथ रहोगे

आदम : हाहाहा थॅंक यू सो मच राजीव दा अब भाई के पास जल्दी शिफ्ट जाउन्गा

राजीव : चल प्रार्थना रहेगी मेरी ..तुम्हारी ज्योति भाभी भी यही चाहती है

आदम : चलिए राजीव दा आज आपने बहुत हेल्प किया मेरा

राजीव : भाई ड्यूटी है (हम दोनो हंस पड़े)

माँ मुझे खुश देख मुस्कुराइ कि क्या बातें हो रही थी? मैने कहा कुछ नही...उनका दिल आज सच में काफ़ी सेहेम उठा था कि किस हद्तक राज़ौल उसके करीब आना चाह रहा था....राजीव दा की उन्होने काफ़ी प्रशंसा की....हम घर लौटे...आज हम बेहद खुश थे माँ ने मेरे लिए खाना बनाया था...मुझे एक एक नीवाला खिलाते हुए प्यार से मेरे सर पे हाथ फेरा और अपने आँचल से खाने से फारिग होते ही मेरे मुँह को पोन्छा जो कि मेरे लिए बहुत ही सुहाने पलों में से एक था उन्हें फकर था कि उनका बेटा उनकी कितनी हिफ़ाज़त और केर करता आया है ऐसा तो उसका पति भी नही कर सकता था...

माँ ने बियर की बोतल को देखा तो मैं झेंप गया कहा बस राजीव दा के साथ एक दो बार पी थी तो घर ले आया था ऐसे ही टेन्षन दूर करने ...तो वो पहले तो नाराज़ हुई उसके बाद उन्होने एक घूँट मेरे सामने ही ले ली...अपने होंठो को पोंछते हुए मेरी तरफ नज़ाकत से देखा मैं मुस्कुराया....

अगले दिन ऑफीस में मैं लौटा तो सब हैरत में गुपचुप बातें कर रहे थे मालिक मुझसे पर्सनली मिलने आए थे कि आख़िर क्या मॅटर था? यक़ीनन पोलीस का लफडा था तो इसलिए उन्हें मुझपे शक़ हुआ..
 
मैने उन लोगो को समझाया कि ऐसा कुछ नही था दरअसल राजीव दा इनस्पेक्टर राजीव मेरे फ्रेंड थे और ये आदमी मेरे पीछे बहुत दिनो से मुझे परेशान कर रहा था जिसमें हाथा पाई हुई और राजीव दा ने उसे अरेस्ट कर लिया मौके पे आके...मालिक को निश्चिंत करने के बाद मैं फारिग हुआ...आज पूरे दिन फीलडिंग का काम था इसलिए बाइक पे बड़े चक्कर मार्केट और शॉप्स पे लगाने पड़े थे....जब घर लौट रहा था तो बॅंक से फोन आया..एक खुशख़बरी खुदा की तरफ से थी मेरा लोन पास हो चुका था

अंजुम ने जैसे ही दरवाजा खोला मैने उसे जांघों से ही अपनी बाहों में उठा लिया वो एकदम से सहम उठी..."अर्रे बेटा क्या कर रहा है छोड़ अर्रे? गिरा देगा हाहाहा?".......

."हाहहाहा माँ आज मैं बहुत खुश हूँ आज मेरा लोन पास हो गया अब हम जल्द ही अपने नये फ्लॅट में शिफ्ट हो सकते है".........माँ को मैने उतारते हुए कहा तो माँ का चेहरा खिलखिला सा गया खुशी से

माँ : क्या सच में? ओह्ह बेटा

आदम : मैने कहा था ना कि हमारे दिन अब बुरे नही भले होंगे

माँ : सच में आदम बेटा तूने मेरे दिल को आज लुभा दिया है मुझे गर्व है कि मैने एक हीरे को जनम दिया मेरी बरसो से ये तम्माना थी कि हमारा भी घर हो

आदम : माँ रो मत ये आँसू दुख तक ठीक थे पर अब तेरे चेहरे पे अच्छे नही लगते हम बहुत जल्द ही शिफ्ट होंगे (माँ के आँसू पोंछते हुए)

माँ : ओह आदम (माँ और मेरे होंठ एकदुसरे से जुड़ गये लंबा सा किस लेने के बाद उसने मुझे धकेला और ना में नज़ाकत से इशारा किया)

मैं समझ गया कि माँ मुझे मुँह हाथ धोने और पहले अपने घरेलू कामो से फारिग होने कह रही है तो मैं नहाने चला गया....वापिस जब आया तो माँ अपनी साड़ी उतारे पेटिकोट और ब्लाउस में टी.वी देख रही थी हम दोनो ने मिलके मुरमुरा और घुघनी खाया फिर मेरे शाम के नाश्ते से फारिग होते ही माँ बर्तन धोने चली गयी तो मैं उसके साथ जाके बर्तन धोने में उसकी मदद करने लगा इस बीच उसके पेटिकोट के पीछे से ही उसके नितंबो की उभारो में अपना लॉडा पाजामा उतारे बिना ही मैं हौले हौले से घिस्सने लगा पेटिकोट का कपड़ा नितंबो के बीच मेरे अकडे लौडे की घिसाई से और नितांबो की दरार में फस गया...जिससे मुझे पेटिकोट के बाहर ही माँ के नितंबो का अहसास हुआ इससे माँ काँप उठी...धीरे धीरे मेरे हाथ उसकी कमर से होते हुए उसके नंगे गुदाज़ पेट की नाभि को छेड़ने लगे...मेरे हाथ धीरे माँ के गुदाज़ गोल पेट से होते हुए नाभि तक आके कस गये तो माँ के हाथो से बर्तन फिसल गया उसने हल्की साँस लेते हुए मेरी तरफ पलटके देखा और मुस्कुराइ

मैं माँ को वैसे ही पकड़े उसके नितंबो के बीच पेटिकोट के उपर से ही लॉडा घिस रहा था जो कि अकड़न से काफ़ी बड़ा और मोटा हो गया था साथ ही साथ मेरे हाथ उसके ब्लाउस के नीचे उसके पेट को सहला रहे थे माँ को अच्छा लग रहा था इस बीच हमारी प्रेम प्रक्रिया में एक फोन आ गया मुझे मज़बूरन माँ की गोल गहरी नाभि में उंगली करने से रुकना पड़ा..

मैने हाथ हटाया और हड़बड़ाते हुए माँ के पीछे पलटने से पहले ही अपने पाजामे को उपर किया और लंड को ठीक करते हुए कमरे में आया....फोन चेक किया तो पाया राजीव दा का था....मैं इतमीनान से सोफे पे ही बैठ कर राजीव दा से बात करने लगा....राजीव दा ने बताया कि अब हमे फिकर की कोई बात नही करनी है मैने उन्हें लोन पास होने की खुशख़बरी दी तो वो भी काफ़ी खुश हुए....हमने कुछ देर बात की इस बीच राजीव दा ने कहा कि मैं उनसे कल घर आके मिल लून आज तो मुलाक़ात हो ही नही पाई पूरी तरीके से मैने उनसे वादा करते हुए फोन कट किया....

माँ और मैं दोनो खाना ख़ाके फारिग हुए और फिर कुछ ही देर में बिस्तर पे आके लेट गये...माँ मेरे खुले बदन से सटे मेरे सीने के बालों से खेलते हुए उस कमीने राज़ौल का ही किस्सा बता रही थी उसने सोचा नही था कि इतने सालो बाद वो इस तराहा दस्तक देगा...माँ वहीं पेटिकोट और ब्लाउस पहनी मुझसे लिपटी हुई थी....मैने उसे हल्का सा डाँटते हुए कहा तू बस अब उस कुत्ते की बात ना कर तुझे पता भी है कि ऑफीस में उसके चक्कर में कितना बवाल मचा माँ को खुद को कोसने लगी इन सब के लिए आज जो कुछ भी हुआ उन्ही की वजह से हुआ था मैने माँ को समझाया ऐसा कुछ नही है ये तो महेज़ इत्तेफ़ाक़ था कि बीता कल उस ट्रेन में उनसे दुबारा रूबरू हुआ और वो कमीना यहाँ आ पहुचा अब उससे घबराने की कोई ज़रूरत नही अब वो पोलीस की गिरफ़्त में है बाकी इन्फर्मेशन कल राजीव दा से मुलाक़ात में मालूम चलेगी फिलहाल वो उसके बारे में और कुछ नही कहे माँ ने इसी बीच बताया कि राज़ौल की पत्नी का नाम शमा था और वो उसकी अपनी सग़ी मौसेरी बहन लगती थी लेकिन उसे ये जानकारी दी है कि नही या उसे मालूम चल गया था ये माँ को भी नही पता था...मैने बस इतना सोचा कि व्यभाचार रिश्ते एक के बाद एक मेरे कितने सामने खुल रहे है

अगले दिन राजीव दा के फ्लॅट पहुचा शाम को...घर में ज्योति भाभी थी जो हमारे लिए चाइ बनाने चली गयी...राजीव दा और मैं लिविंग रूम में ही बैठके बातें करने लगे...

राजीव : वाक़ई आदम तुमसे और आंटी से मिलने के बाद ऐसा लगता है कि अपनो से मिल रहा हूँ ज्योति भी यही दिल ही दिल में समझती है

आदम : अर्रे राजीव दा अब गैरो जैसा हमारे बीच क्या है? ये तो मेरी ख़ुशनसीबी है कि मेरी दोस्ती आपसे हुई

राजीव : मुझे भी ये लो चाइ (ज्योति भाभी ने चाइ की दो कप रखते हुए वापिस किचन में बर्तन मान्झ्ने चली गयी इस बीच हम मर्द आपस में बात चीत करने लगे)

आदम : ह्म वैसे राजीव दा राज़ौल की तरफ से कोई खबर (मैने गंभीरता से चाइ की चुस्की लेते हुए कहा)
 
Back
Top