Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत - Page 29 - SexBaba
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Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत

वो मुस्कुराइ उसने एक बार गौर से आदम की ओर देखा उसका चेहरा कितना भोला भाला सा था..लग ही नही रहा था कि इतना अमीर आदमी ऐसा मासूम सा भोला भाला भी हो सकता है...जिसके दिल में इतने ज़ज़्बात भी हो सकते है....कितने अहेसान थे उसके उसपर? की उसने उसे एक तरह सड़क से मोहताजीयत भरी अधूरी राह से उठाकर अपने घर में जगह दी शायद ये सब कुछ उसकी बहन की बदौलत ही था जिससे उसे बेहद प्यार था...कल रात हुआ सारा वाक़या उसके जैसे दिमाग़ में घूमने लगा...


उसने इस बार आदम के बदन को छूने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया...वो एक कुँवारी लड़की थी किसी ऐसे गैर मर्द को छूने में उसे झिझक तो हो ही रही थी..कल रात जब आदम ने उसके चेहरे को छुआ था तो उसके पुरे शरीर में अज़ीब सी झुनझुनाहट सी हुई थी...


जैसे ही उसने आदम की चादर को उठाए थोड़ा सा उसकी पीठ पे हाथ दिया तो जैसे उसके पूरे बदन में सिरहन सी उठी...इससे उसका हाथ काँपा उसने तुरंत हाथ को खींच लिया और दो कदम पीछे होके खड़ी हो गयी पर आदम ने कोई हरकत नही की...


इस बार उसने थोड़ा ज़ोर से आदम का नाम पुकारा...और इसी के साथ उसने इस बार उसके कंधे पे हाथ रखके उससे झींझोड़ा जिससे आदम का शरीर एकदम से हरकत में हुआ और उसने उठने के प्रयास से करवट बदली तो वो जैसे सीधा हुआ तो उसकी चादर जैसे खिसकते हुए उसकी टाँगों के बीच आ गयी....


इससे तपोती ने सॉफ देखा कि उसने महेज़ एक वी-शेप की फ्रेंची पहन रखी थी जिससे उसकी टाँगों के गुच्छेदार बाल सॉफ दिख रहे थे और बाल झान्ट में तब्दील होते हुए अंदर तक जा रहे थे...चड्डी में बड़ा सा उभार बना हुआ था ऐसा लग रहा था जैसे थैली में अंडकोष के साथ साथ सोता आदम का लिंग भी मज़बूती से दबा हुआ था....इसे देख तपोती के जैसे पूरे बदन में सिरहन दौड़ गयी.....


उसने आज से पहले कभी भी किसी मर्द के लिंग को घूरा नही था....उसने जब इतमीनान से कच्छे के बने उभार को बड़ी गौर से देखा तो उसे उसके साइज़ का अहसास हुआ....वो इसी से सेहेम उठी और फिर आदम को अंगड़ाई लेते हुए उठता पाई...उसने हड़बड़ाते हुए पास की चाइ की प्याली उठाई और बाहर जाने की बजाय आदम के सामने थोड़ा झुकके उसे चाइ पेश करने लगी...
 
आदम ने आँख मसल्ते हुए बैठते हुए जैसे ही चाइ की प्याली हाथो में थामी तो उसे तपोती का अहसास अपने सामने हुआ....आदम सकपकाया और इससे उसने चाइ का कप लेते हुए उसकी तरफ गौर से देखा..


आदम : अरे तपोती तुम यहाँ?


तपोती : जी आप उठ नही रहे थे इसलिए हमने आपको आवाज़ दी पर आप सो रहे थे गहरी नींद में तो वक़्त बहुत हो गया ना तो सोचा कि आपको उठा दे


आदम : ओ..हाँ अच्छा चाइ कौन बनाया?


तपोती : जी हमने?


आदम : क्या? त..तुमने क्यूँ? माँ उठी नही थी?


तपोती : नही उठ तो गयी थी पर हम उनसे पहले उठ गये थे? तो सोचा कि आप ऑफीस जाते होंगे तो काकी की थोड़ी मदद कर दूं पर वो सो रही थी तो सोचा उनके जागने से पहले चाइ बना दूं



आदम : माइ गॉड तपोती तुमने तो पहले ही दिन से घर को संभालना शुरू कर दिया आइ आम इंप्रेस्ड वैसे तुम्हे खाना वाना बनाना आता है?


तपोती : हां (मासूम सा जवाब देते हुए)


आदम : हाहाहा दट'स ग्रेट एनीवे उम्म तुमने चाई लिया?


तपोती : ज..जीई ले लूँगी बाद में बना लूँगी


आदम : अरे तुमने अपने लिए चाइ नही बनाई



तपोती : अरे नही नही हम बना लेंगे वो सोचा कि कम ना पड़ जाए तो या शायद बिना किसी की इज़ाज़त से हम कैसे खुद बनाके पी लेते?


आदम : अरे यार तपोती तुम इस घर की मेहमान नही हो अब देखा नही माँ ने तुम्हें स्वीकार कर लिया आजसे तुम्हारा घर की हर चीज़ो पे उतनी ही हक़ है जितना घर के बाकी सदस्य का ठीक है चलो मैं थोड़ा फ्रेश हो लेता हूँ फिर



तपोती : ठीक है हम चलते है शायद काकी को किचन में हमारी ज़रूरत होगी
 
आदम : अच्छा अच्छा ठीक है



तपोती मन ही मन मुस्कुराए शरमाये नज़रें झुकाए कमरे से चली गयी...तो इतने में आदम का ध्यान अपने शरीर पे गया उसकी तो जैसे आँखे बाहर एक तो उसने इतने छोटे साइज़ का कच्छा पहना था जो उसके उभार को भी नही छुपा पा रहा था उपर से उसकी झान्टे सॉफ दिख रही थी...अब उसे महसूस हुआ कि तपोती मुस्कुराए शरमाते क्यूँ भागी?.......उसे खुद पे जैसे हँसी आई....लेकिन सच में आज सुबह उठके उसे देखते ही जैसे आदम का दिन बन गया था उफ्फ इतनी मेहनती थी वो....काश चंपा ने मुझे इतना कुछ बताया होता....


आदम ने चाइ ख़तम की और फ्रेश होके बाहर आया....वो अपने ऑफीस के कपड़े पहन चुका था...वो जैसे टेबल पे बैठा...तो पाया की टेबल पे बहुत सा खाना सज़ा हुआ था और एक तरफ उसका गरमा गरम टिफिन भी तय्यार था जिसे माँ लगा रही थी....


आदम : अरे माँ तपोती ने आज चाइ बनाई ? तुमने कहा तो नही था ना?


अंजुम : हट पगले मैं उसे क्यूँ कहूँगी? वो तो खुद आई मुझे भी कुछ करने ना दिया जैसे लौटके तुझे चाइ देके आई सारा काम खुद ही संभाल लिया मुझे तो लगता है कि अब लाजो के दिन पूरे होने वाले है हाहहहा


मैं भी टहाका लगाए हंस पड़ा...."माँ सच में तपोती ने ये नाश्ता भी और टिफिन भी तय्यार किया?"........

."हां बेटा बहुत मेहनती है काश ऐसी निशा होती"......

."माँ तुम भूल रही हो कि खुशहाल लम्हो में दुखी भरे पलो को याद नही किया करते"........

."बस ऐसा ही महसूस हुआ देख अब किचन में बर्तन धो रही है मैं उसे आवाज़ लगाती हूँ बेटा तपोती तपोती"..............अंदर से आवाज़ आई


तपोती : जी काकी



अंजुम : बेटा नाश्ता तो कर लो सुबह से किचन में हो अब छोड़ो भी आओ बाहर



तपोती : जी हम बाद में कर लेंगे


अंजुम : अरे पगली तुम इस घर की सदस्या हो इसलिए इतना संकोच मत करो आओ बाहर वरना आदम गुस्सा हो जाएगा वो यही बैठा है


तुरंत तपोती बाहर आई और वो मुझे देखके शर्मा गई.....

"अरे तपोती बैठो ना नाश्ता तो कर लो भूके पेट हो चाइ भी नही पिया ना तुमने"......

.."अरे नही नही"........

."आदम बेटा ठीक कह रहा है तुम नाश्ता करो मैं चाइ बनती हूँ तुम्हारे लिए ओके".........

."अरे नही नही काकी प्ल्ज़्ज़"...........
 
"स्ष बैठ जाओ बैठ जाओ".....आदम ने तपोती के हाथ पे हाथ रखके उसे बैठने का इशारा किया...


तपोती बैठके खाने लगी....उसे झिझक सी भी महसूस हो रही थी...क्यूंकी साला आदम नाश्ते से ज़्यादा उसे ही ताड़ रहा था ऐसा लग रहा था जैसे एक दीवाने के आगे उसकी महबूबा को खुदा ने पेश कर दिया हो जिससे अब उसकी आँख भर नही रही थी दीदार करते करते


अंजुम ने जब तक चाइ लाया तब तक आदम उठके जाने लगा वो नाश्ते से फारिग हुए दोनो से विदा लेके चला गया.....अंजुम ने तपोती को कहा कि वो थोड़ा आराम करे काम बाद में भी हो जाएगा क्यूंकी लाजो नाम की उनकी काम्वाली आती होगी....तपोती ने सिर्फ़ मुस्कुराया


_______________


"यही वजह है कि आदम अकेला सा उखड़ा सा रहता है....जबसे निशा वाला किस्सा उसके साथ हुआ है तबसे जैसे उसे शादी से और मुहब्बत से चिड सी हो गयी है अब तक तो तुम्हें मैने जो कुछ बताया उसके बिनाह पर तुम समझ ही सकती हो की आदम किस दौर से गुज़रा है?"..........अंजुम ने जैसे आदम की ज़िंदगी के सारे पन्नो को तपोती के सामने खोल डाला था.....तपोती एक टक ये कहानी जैसे सुन रही थी...उसे अफ़सोस हुआ कि आदम किस दौर से गुज़रा है?


अंजुम : अब तुम ही कहो कि ऐसे लड़के की ज़िंदगी में अगर उसे प्यार करने वाला कोई ना हुआ तो फिर उसके ज़िंदगी में कितनी अंधेरी राह आ सकती है



तपोती : जी काकी आदम जी से जबसे मैं मिली हूँ तबसे ऐसा लगता है जैसे कि कितने दुख को समेटे हुए है...आपका परिवार जब मैने देखा तब जाके मुझे ऐसा लगा कि मैं किसी अपने के यहाँ पनाह में हूँ वरना तो जैसे हर कोई गैर ही महसूस होते थे....वैसे आप अपने बेटे से बहुत प्यार करती है ना (कल रात को तपोती ने कमरे में दोनो के बीच जो बातें उठी थी उसमें दोनो के नज़दीकिया को और संबंध को जैसे जान लिया था लेकिन ना जाने क्यूँ उसे ये बात अज़ीब सी तो लगी पर उसे अहसास नही हुआ कि ऐसी मुहब्बत भी एक माँ और बेटे के बीच हो सकती है)


अंजुम ने शरमाते हुए मुस्कुराया फिर बोली "आज जो कुछ भी तुम मुझे देख रही हो सब आदम के ही बदौलत सोचा नही था कि जवान होके इतना सहारा बनेगा...ज़िंदगी का जो लुत्फ़ उठा ना सकी कभी उसे आदम ने पूरा किया ऐसे बेटे और मर्द नसीबवालो को ही मिलते है"..............अंजुम के साथ साथ जैसे तपोती भी शरमाई....
 
तपोती ने भींडी की सब्ज़ी काटते हुए कटोरी अंजुम से ली और कहा कि वो उन्हें तड़का लगाने जाएगी....तपोती जैसे उठके जा ही रही थी कि इतने में उसने पलटके एक बार अंजुम की तरफ देखा और कहने को कुछ इज़ाज़त सी माँगी


अंजुम : हां बोलो तपोती क्या कहना चाह रही हो?


तपोती : आप बहुत किस्मतवाली है शायद मेरी बहन भी किस्मतवाली होती लेकिन उसके पेशे और उसके हैसियत ने उसे इस लायक ना छोड़ा कि वो आदम जी से दिल लगा सके मैं जब आई थी ना तो काकी ने आदम जी का ज़िक्र किया था मुझे लगा शायद कोई हमदर्दी में बोलके चला गया होगा पर जब कल रात को आदम जी ने मेरे लिए जो कुछ किया उसके बाद से वो मेरे सामने किसी देवता से कम नही की उन्होने एक बाज़ारू औरत की बहन को पनाह दी!

(अंजुम ने जैसे उसे डांटा)


अंजुम : तपोती खबरदार जो खुद को तुमने और अपनी बहन को इस तरह से बोला तो पेशा उसका था उसे मज़बूरी में धकेला गया था अगर तुम्हारी जगह तुम्हारी बहन भी होती तो भी मुझे स्वीकार था.....मैं चाहती तो तुम्हें एक ही बार में इस घर में आने ना देती लेकिन मेरे ज़मीर ने मुझे कहा कि नही तुम बुरी नही हो...तपोती तुम एक सुलझी पड़ी लिखी लड़की हो सिर्फ़ ग़रीबी और बहन की मज़बूरी के कारणवश तुम्हारा ये अंजाम हुआ मैं अल्लाह से दुआ करती हूँ कि तुम्हें ज़िंदगी की खोई वो सारी खुशिया मिले जो तुमसे छीनी जा चुकी है


तपोती ने कुछ कहा अपने आँसू पोंछते हुए एक बार मुस्कुराइ और किचन में चली गयी.....अंजुम भी मुस्कुरा के जैसे कुछ सोचने लगी थी...कुछ देर में लाजो आई और उसने आते ही तपोती को खाना बनाते हुए देखा...उसे पहले लगा कि शायद आदम ने कोई दूसरी कामवाली रख ली लेकिन उसके हाव भाव और चरित्र से वो उसे कोई अच्छे घर की लड़की ही लगी उसे लगा कोई रिश्तेदार होगा...उसने तपोती को नही टोककर सीधे अंजुम से इस बारे में पूछा..


तो अंजुम ने उसे तपोती से परिचय कराया.....तपोती के जिस्म और चेहरे को देख लाजो को जैसे उससे जलन हुई क्यूंकी वो किसी को भी मोह (अट्रॅक्टेड) कर सकती थी...उसने तपोती के बारे में काफ़ी कुछ पूछना चाहा....पर अंजुम ने सिर्फ़ इतना कहा कि वो उनकी रिश्तेदार है और अब से वो यही रहेगी....लाजो को अहसास हुआ कि आदम ने भी क्यूँ कबाब में हड्डी को रख लिया? क्या वो काफ़ी नही थी उसे संतुष्ट करने के लिए? पर हालात की बेचारी किसी की बीवी की हैसियत से मज़बूर कर भी क्या सकती थी?



ऐसे दिन पार होने लगे....और धीरे धीरे तपोती घर के हर सदस्या अंजुम उसके हज़्बेंड यानी आदम के पिता और लाजो से भी खुल के बातचीत करने लगी पर अंजुम ने उसे मना किया हुआ था कि लाजो को ज़्यादा कुछ ना बताए....तपोती ऐसे ही रहने लगी थी...और धीरे धीरे वो आदम के प्रति भी खुलती जा रही थी....


उधर अंजुम को बेटे की झिझक और तपोती के सामने शरमाते उसे ताड़ते देख हैरत भी लग रहा था....वो जानती थी कि वो ऐसा क्यूँ कर रहा था? जिस चंपा का उसने ज़िक्र किया वो हूबहू उसी की तरह दिखती थी क्या मालूम वो उसमें अपनी चंपा को देखता था? लेकिन वो जानती थी बेटा उससे शादी कर चुका है और वो अपनी बीवी के बजाय किसी और की तरफ यूँ पहेल नही कर सकता था...और अगर करता भी तो तपोती की रज़ामंद ज़रूरी थी....
 
उस दिन शाम को आदम ने तपोती से इज़हार किया कि क्या वो उसके साथ घूमने चलेगी...ये पहली बार था जब आदम ने उससे दिलचस्पी बढ़ाई थी....आदम के यूँ प्रस्ताव को सुन पहले तो तपोती ने झिझका फिर उसके बाद शरमाते हुए मंज़ूरी दे डाली.....आदम फुलो ना समाया उसके चेहरे पे आई रौनक सॉफ इस बात की पुष्टि कर रही थी कि जैसे उसका खोया हुआ कोई उसे मिल गया हो....लेकिन उसकी गाड़ी में कुछ डिफिकल्टीस आ गयी जिस वजह से दोनो को रिक्कशे लेना पड़ा और फिर दोनो मार्केट पहुचे....


वो सारे रास्ते बातचीत करते हुए आगे बढ़ रहे थे....उसने ना कहते हुए भी इनकार में भी तपोती को कारकान्दोला (जाइयेंटवील) में बिठाया उसकी सैर करवाई कयि जगह दोनो ने खूब मज़े किए जहाँ बंदूक का खेल था घोड़े की सवारी थी....कहीं उन्होने हवा मिठाई खाई तो कही वो दोनो दो घंटे की हॉरर फिल्म देखने सिनिमा हॉल में घुस गये


मतलब ऐसा पागला रहा था आदम उसके संग कि जैसे चाँद तारे सब तोड़ लाके उसके कदमो में डाल देगा....फिल्म थोड़ी गंदी थी...हर एक सीन में आहों की आवाज़ और सबसे कामुकता भरे सीन में जब हीरो होंठो से होंठ सटाये हेरोयिन के साथ प्रेम क्रीड़ा करता है और उसके पेट की नाभि पे अपनी ज़ुबान फेरता है.....ये सब देखकर जैसे तपोती के बदन की सिरहन और बढ़ रही थी....उसने होंठो पर ज़ुबान फेरी और फिर एक बार आदम की ओर देखा जो फिल्म देख रहा था....


इस बीच उसे अहसास हुआ कि वो अपने लिंग को सहला रहा है तो यहाँ पे तपोती को कुछ अज़ीब अज़ीब सा दिल में धड़कन सा उठा...क्यूंकी वो कुँवारी थी उसके लिए ये सब नया अनुभव था वहीं आदम उसे चंपा की तरह बहाया और बेशरम मुँह फॅट जैसी सोच भी नही सकता था....उसने धीरे से तपोती के कान में कहा अगर अच्छा नही लग रहा तो चले....तपोती को अहसास हुआ जैसे उसके सेक्यूर होने या होने के पीछे वो सवाल कर रहा है सामने पर्दे पर गरमा गरम सीन चल रही जो कि बहुत अश्लील और वो यूँ एक लड़के के साथ वो फिल्म देख रही है तो उसने अपनी गहरी साँसों को भरते हुए कहा...."आप की मर्ज़ी"....उसके बाद उसने कुछ नही कहा


तो आदम ने मुस्कुरा कर उसका हाथ थामा और दोनो बाहर निकल आए...."आपको फिल्म नही देखनी थी?".....बहुत देर बाद जब तपोती ने खुद पे काबू पाया तो खामोशी को तोड़ते हुए ये सवाल आदम से किया...


आदम : नही मैं भूल गया था कि आप भी वहीं मज़ूद हो तो सोचा कि आपको बुरा लगे


तपोती : नही नही ऐसी बात नही वो दरअसल खून ख़राबा मैं देख नही सकती (पहलू को बदलते हुए)


आदम : हा हा हा एनीवे इतना दिन हो गया आपको मेरे घर पर अब तक आपको मेरे घर में कौन भाया सबसे ज़्यादा? दिल पे हाथ रखके कहना



तपोती : अगर सच कहूँ तो सभी (तपोती ने मुस्कुराते हुए कहा)


आदम : सच में


तपोती : ह्म्‍म्म्म मुझे यकीन नही होता कि आपका परिवार इतना खुले विचारो वाला और इतना अच्छी सोच रखने वाला है वरना आजतक तो छोटे सोच वाले लोगो को ही देखते आई हूँ और वो भी आपके घर इतने दिनो तक रुक जाना भी मेरे लिए नामुमकिन सी बात है

 
आदम : क्यूँ क्या आपको हमारा घर गैरो सा लगता है ?


तपोती : न..नही आप ग़लत समझे दरअसल हम कहाँ से आए? और एकदम से आप लोगो पर बोझ!


आदम नाराज़ हुआ उसने तपोती की बात बीच में काटते हुए कहा जी नही ऐसा कुछ नही है अगर बोझ होता तो मैं काहे आपको किया वादा करता...मेरे दिल में तुम्हारे साथ तुम्हारे परिवार की उतनी सिंपती है जितना तुम्हारी बहन के साथ था


तपोती ने आदम से माँफी माँगी...फिर उसे शांत किए पूछा....."क्या आप मेरी बहन से बहुत प्यार करते थे ना?"........

."अगर हां कह दूँ तो क्या कहोगी?".....

.."मैं सच कहूँ तो मुझे ऐसा ही लगता है".........

."जब जानती हो तो फिर पूछा क्यूँ?"...........

"तो क्या सिर्फ़ उसी बात के लिए"...........

."दोस्ती प्यार अलग अलग चीज़ें है मेरे लिए उसके प्रति प्यार था और दोस्ती की खातिर एक संबंध उसी हैसियत से मैं मदद करना चाहता था उसकी अब तुम बताओ क्या इतने दिनो तक मेरे साथ रही क्या तुम्हें कभी ऐसा लगा की मैं तुमपे नियत खराब किए हूँ"........

.चलते चलते जैसे तपोती ठहर गयी भारी बाज़ार की भीड़ थी


आदम : जवाब नही मिला अब तक मुझे?


तपोती :नही जहाँ तक मैने आपको जाना और आपके बारे में जाना मुझे आप उस रात से ही खूब लगे जिस रात को आपने मेरा हाथ सिर्फ़ इस वास्ते थामा की मैं चंपा की बहन हूँ आप जो भी कहे पर आप मेरे नज़र में किसी देवता से कम नही.....आपने और आपके परिवार ने जो कुछ मेरे लिए किया उसका पाई पाई भी मैं चुका नही सकती हूँ



आदम : अहेसान नही कहो प्यार कहो? हां चंपा सॉरी (अपने लव्ज़ को वापिस लेते हुए) आइ मीन तपोती तुम मेरे परिवार का एक हिस्सा बन चुकी हो अब अगर तुम ना भी चाहो तो भी तुम्हें मेरे साथ रहना होगा सिर्फ़ इसलिए नही कि तुम चंपा की बहन थी इसलिए कि तुम अब मेरी ज़िम्मेदारी हो सिर्फ़ मेरी (आदम के चेहरे को देख जैसे एक पल को एकदम गौर से तपोती उसे देखने लगी)
 
आदम : खैर छोड़ो ज़्यादा एमोशनल हो गया (मुस्कुराए अपने आँसुओ को पोंछ ही रहा था आदम)


तो तपोती ने आगे बढ़ के उसके गाल के दोनो आँसुओ को अपने रुमाल से पोन्छा तो एक पल को जैसे आदम उसकी तरफ एकटक देख रहा था....दोनो फिर धीरे धीरे आगे बढ़े तो तपोती ने ये बात क्लियर किया उसने उस रात दोनो की बातें सुन ली थी उसके माँ और उसके बीच बेडरूम की बातें....एक पल को जैसे आदम ठिठका उसने पाया तपोती की लव्ज़ जैसे लरखड़ा रही थी वो शरम से नज़रें झुकाए खड़ी थी....


आदम : तो इसका मतलब तुम जान गई थी उस रात कि मेरा और मेरी माँ का क्या रिश्ता है?


तपोती : सच कहूँ तो दिल नही मान रहा था....एक माँ और बेटे का रिश्ता ऐसा नही होता लेकिन मैने जब बड़े गौर से जाना तो पाया माँ का आपके प्रति कितना मुहब्बत झलक रहा था हर दिन वो आपके जाने के बाद आपकी ही कहानी मुझे सुनाती है सोचिए अगर मैं गैर होती तो मुझे इतना कुछ बताती


आदम का ना में सर हिला इनकारीयत से.....


तपोती : तो बस लेकिन क्या सच में आपने अपनी मोम के साथ!


आदम : चलो उस रेस्टोरेंट में चलके बात करते है तुमने कभी यहाँ की मशहूर डिश खाई है चिकन मेस्ट पकोड़ा



तपोती ने एकदम से ना में सर हिलाया....

."तो आओ चलो वहीं सारी बातें तुम्हें खुलके बताता हूँ ये बात आजतक सिर्फ़ तुम्हारी बहन तक थी अब जब तुम हिस्सा हो हमारे घर का और जब जान ही चुकी हो तो कुछ छुपाए रखना ग़लत होगा"..........आदम ने तपोती का हाथ थामा और उसे बढ़ते भीड़ को धकेलते हुए रेस्टोरेंट में लाया....


जल्द ही आदम ने ऑर्डर्स दिए...तपोती उसके सामने बैठी थी...आस पास ज़्यादा भीढ़ नही थी रेस्टोरेंट में ज़्यादातर लड़का लड़की ही बैठे हुए थे अपने बातों में मगन...


आदम ने उसे साँस भरते हुए सारी कहानी जैसे फिर दोहराते हुए सुनाई....तपोती बिना पलक झपकाए अपने हाथो को टेबल पे रखे सबकुछ विस्तार से सुन रही थी.....आदम बताता चला गया कि किस तरह चंपा के संबंध के बाद उसने कयि औरतो से रिश्ते जोड़े....लेकिन अपने धोका और अपने वासना भरी हसरतो से पीछा छुड़ाने के लिए उसने दिल्ली का रुख़ किया और इस बार जिस माँ को उसने ज़िंदगी भर कोसा और धिक्कारा उसके प्रति उसकी एक अलग ही भावना उत्तपन्न हो गई थी...
 
जिससे उसने दिल लगाया जो कि चंपा ने उसके मन में डाला था जो विचार एक माँ और बेटे के बीच की कड़ी को कयि हसरतों से जोड़ देता है.....धीरे धीरे बेटे की हसरत माँ की हवस से उसकी सच्ची मुहब्बत में तब्दील हुई फिर माँ को मनाना उसके इनकार के बाद भी जैसे उसे अपना बनाने की चाहत...और फिर मुहब्बत फिर संबंध फिर दोनो की शादी....सब कुछ सुनने जानने के बाद तपोती खामोशी से एक पल आदम की ओर देख रही थी...


आदम : मैं तुम्हारे आगे सबकुछ इसलिए खुलके रखा कि मैं जानता हूँ कि तुम और लड़कियो की तरह नही हो तुम्हारी बहन भी सेम टू सेम तुम्हारी जैसी थी...सोचो मेरे दिल में ऐसी हसरतों को किसने जनम दिया? ये ना कहो कि तुम्हारी बहन गंदी थी गुनाहगार थी जो उसने एक माँ-बेटे के रिश्ते को अपनामनित किया...अगर वो ऐसा ना करती तो आज माँ मेरी नही होती और ना मैं उसका होता....जो कहानी पहले चल रही थी वहीं रहती....इसलिए मैं डरता हूँ उसे खो देने से .


उसी की मज़बूरियो की वजह से मैने शादी की निशा जैसी गुड फॉर नतिंग जालसाज़ मतलबपरस्त औरत से बदले में क्या मिला धोका? मैं तो माँ की सेवा के लिए उससे शादी किया और जानती हो कब मेरा दिल असल में टूटा जब मैने चंपा की मौत की खबर सुनी मैं अंदर से हिल गया था....ना जाने नशे तक का सहारा लेने लगा....अब मैं चाह के भी अकेला नही रह सकता वरना मैं ख़तम हो जाता तपोती (एका एक उसने तपोती के हाथो पर हाथ रखा)


मैने पहले भी दगा किए और उसी के बदले मुझे निशा से धोका मिला....मैने किसी का घर उजाड़ा उसकी सज़ा मुझे बेज़्ज़ती और उस जैसी बीवी मिलके ठोकर खानी पड़ी....अब कहो क्या मुझे बदलने का कोई चान्स नही मिल सकता? आज मैं माँ अंजुम जो कि मेरी पत्नी है उसके साथ एक गुप्त रिश्ता रखे हुए हूँ किसी तक को ईवन मेरे पिता तक को मालूम नही ये बात मालूम चलेगा तो ना जाने क्या कर बैठेंगे? यही कहेंगे हवस की मारी मेरा बेटा ही तुझे मिला था...


तपोती : खुद को काबू करो आदम (इस बार तपोती ने मेरे हाथो को सहलाया)


आदम : सॉरी मैं थोड़ा ज़्यादा तैश में आ गया था (आदम ने ग्लास का भरा पानी पूरा पीते हुए छोड़ा)


आदम : अब सोचो कोई करेगा मुझसे ब्याह कोई नही अगर ना भी करा तो कोई बात नही पर मेरी माँ उसे यही लगता है कि उसके जाने के बाद मेरा कौन ख्याल करेगा शायद कोई नही शायद अकेला यूँ ही इस दुनिया से चला जाउन्गा लेकिन सच पूछो तो अब भी माँ को आस है कि वो मेरी निक़ाह किसी और से होते हुए देखेगी कोई उससे जो मेरे साथ सारी ज़िंदगी गुजारेगी लेकिन माँ डरती है कि कही हमारे व्यभाचरी रिश्ते मेरे दो ब्याह हो जाने वाली बात या बीता कल का हुआ भूल उनके सामने खुल ना जाए फिर कोई नही थामेगा मेरा हाथ और मुझे भी गम नही....कोई गम नही

आदम चुपचाप हो गया तपोती कुछ देर सोच की गहराईयो में जैसे चुप रही फिर उसने आदम से कहा कि हालात तो कुछ उसके भी वैसे थे
ना माँ थी ना कोई परिवार अगर आज भी आदम उसे त्याग दे तो कल उसका कोई कल नही सिवाय मौत के....
 
आदम चुपचाप हो गया तपोती कुछ देर सोच की गहराईयो में जैसे चुप रही फिर उसने आदम से कहा कि हालात तो कुछ उसके भी वैसे थे
ना माँ थी ना कोई परिवार अगर आज भी आदम उसे त्याग दे तो कल उसका कोई कल नही सिवाय मौत के....


आदम ने समझा उसको और फिर गरमा गरम परोसी गयी थाली में डिश उसकी तरफ सर्कायि......"अब छोड़ो ये सब बात आज एकदुसरे के
साथ सुख दुख बाँटे है हमने इसलिए नो मोर सॅडनेस जस्ट हॅव आ बाइट हाहाहा"...........

.तपोती भी हंस पड़ी


एक बार उसने आदम की तरफ देखा जो कितना भोला था कितना दिल का हल्का था जो उस जैसी गैर के आगे सबकुछ रख दिया जस्ट लाइक हिज़ मदर अंजुम जो उसकी वाइफ भी थी सच था कि कोई उसका राज़ जानने के बाद सच्चाई से रूबरू होने के बाद हाथ नही थामता उल्टे उन दोनो को बदनाम कर देता इस सोसाइटी में....पर तपोती को मालूम था दिल ही दिल में की आदम नायक है और जैसा मर्द वो तलाशती थी वो उसे आदम में दिखने लगा पर उसे एक संकोच था की वो अब भी शादी शुदा है क्या वो उसका हाथ थाम सकेगा?


यही कशमकश लिए दोनो सीडियाँ सा उतरे..."उफ्फ खाना टेस्टी था"..

."ह्म थॅंक यू सो मच"....

."थॅंक्स किसलिए तपोती मुझे भी भूक लगी थी".......

."बस ऐसे ही"....

."ये देखो सोचा माँ के लिए भी पॅक करवा लूँ ...अपनी पोल्य्थिन में पॅक डिश को दिखाते हुए जो उसने बिल पे करते टाइम ऑर्डर देके खरीद ली थी....ना जाने क्यूँ तपोती ने कह दिया की तुम कितना अपने घर के लिए ख्याल रखते हो...


आदम : हम यहाँ अकेले अकेले खाए माँ को भी तो लगेगा ना कि उनके बिना हमने खाया



तपोती ने कुछ नही कहा इतने में उसकी निगाह सामने से एक युवती से टकराई आदम उसे देखके चहेक उठा...."अरे रूपाली तुम? ओह माइ गॉड राहिल"......उसने उसे अपनी गोद में उठाते हुए रूपाली की ओर मुस्कुराए कहा....तपोती भी उसे एक बार उपर से नीचे तक देख
रही थी सच में बला की खूबसूरत थी रूपाली....रूपाली भी उसे घूर्र रही थी


रूपाली : एऐ के? (ये कौन?)


आदम : उम्म ये मेरे घर में रहती है मेरे साथ इसका नाम तपोती है रिश्तेदार है हमारी क्लोज़ (ये सुनके तपोती ने नज़रें जैसे झुका ली)
 
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