Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत - Page 28 - SexBaba
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Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत

वक़्त के साथ साथ आदम सबकुछ भूल अपनी ज़िंदगी हँसी खुशी बीता रहा था...और इसी बीच उसकी मुलाक़ात एक बहुत ही राइज़ शख्सियत से हुई जिसने उसके लिए नये नये मुकामो को हासिल का ज़रिया उसे दे डाला

उस शाम ऑफीस में आदम को उसके हेड ने बुलाया और मिस्टर जमशेद से उसका परिचय कराया जो कि बांग्लादेश की कोल्ड ड्रिंक इंडस्ट्री के सीईओ थे...

मिस्टर जमशेद : हेलो मिस्टर.आदम नाइस टू मीट यू

आदम : ओह हेलो सर प्लेषर टू मीट यू टू सर (हाथ मिलाते हुए जमशेद से)

मिस्टर जमशेद : ह्म वैसे आपकी मेहनत और लगन का मुझे मिस्टर दत्ता ने सबकुछ क्लियर्ली बताया आपने कितनी ईमानदारी से अपनी पोस्ट को बखूबी और उसकी ज़िम्मेदारिया निभाई है मैं आपसे बस यही चाहता हूँ कि आप हमारी कंपनी को जाय्न करे

आदम : प..पर्र सर उम्म मा...मैं कैसे ? आइ मीन मैं कभी बंगलादेश गया नही

मिस्टर जमशेद : नो नो मैं तुम्हें बांग्लादेश में जॉब ऑफर नही कर रहा...असल में मेरा माल यहाँ डिसट्रिब्यूट होयगा और जैसा तुम जानते ही हो हमारी प्रॉडक्ट्स यहाँ ऑलरेडी काफ़ी लॉंच हो चुकी है तो अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें एक बिज़्नेस ऑपर्चुनिटी दे सकता हूँ तुम इंडिया में हमारे प्रॉडक्ट्स को सेल करोगे दट'स ऑल

आदम : पर सर मेरे पास तो कोई दुकान नही है और मैं ऐसा कैसे कर पाउन्गा

मिस्टर जमशेद :== डरो नही इसमें काफ़ी मेहनत है बाकी तुम जैसा होनहार लड़का इस काम के लिए पर्फेक्ट है उपर से तुम्हारी इंडियन गूव्ट ने अप्रूव्ड किया है हमारे प्रॉडक्ट्स को यहाँ पे

मिस्टर दत्ता : हां आदम दिस ईज़ आ गोलडेन ऑपर्चुनिटी ऐसे मौके बार बार हासिल नही होते...वैसे तो ये कोई अफीशियल प्रमोशन ऑफ युवर जॉब नही है पर इससे तुम्हें साइड बिज़्नेस का मालूमत चलेगा वैसे भी तुम इस शहर से काफ़ी वाक़िफ़ हो अगर यहाँ इस शहर में हमारे प्रॉडक्ट्स इतने सेल हो सकते है तुम उन्हें ऑनलाइन भी इंडिया के किसी भी स्टेट में भेज सकते हो इट'स गॉना बी लाइक ए-बिज़्नेस टू

आदम : ओ..क्क् सिर्र आइ विल कन्सिडर अबाउट

आदम ने काफ़ी सोच विचार किया फिर जमशेद ने उसे इतना हौसला दे दिया कि उसने ना नही किया.....उसने तुरंत ही मिस्टर जमशेद की प्रोवाइडिंग ऑफीस को संभाल लिया जो शहर में थी....फिर वो उस ऑफीस का मॅनेजर बन गया...उसके अंडर काफ़ी वर्कर्स थे....मार्केटिंग का ये बिज़्नेस उसे अच्छा लगा...और जल्द ही आदम के कदम धीरे धीरे शौहरत और कामयाबी की तरफ बढ़ने लगे

उसने अपने फर्स्ट कमामी से माँ के लिए कीमती महेंगी साड़ी खरीद के उसे तोहफे में दी थी.....उसकी माँ का पहनावा उसकी बदलती रंगत से और भी निखार गया अब ऐसा लगता था जैसे कोई हाइ-प्रोफाइल मॉडर्न लेडी हो....आदम उसे ऐसा बना दिया था....वो अपनी ये खुशी राजीव दा के साथ भी सेलेब्रेट कर चुका था...लेकिन बाद में उसे मालूम हुआ कि राजीव दा की पोस्टिंग वापिस बुर्ड़वन में हो गयी है क्यूंकी उनके माता-पिता अब उन्हें बहुत रिक्वेस्ट करके बुला रहे है....आदम को बुरा लगा कि उन दोनो ने उनका कितना साथ दिया? पर राजीव दा ने विश्वास दिलाया कि दूरिया चाहे जितनी भी हो साथ दिल से दिल का जुड़ा ही रहता है.......राजीव दा और ज्योति भाभी चले गये....
 
इधर अंजुम का भी मन ज्योति भाभी के बिना नही लगता था....इस बीच आदम इतना खुशमीज़ाज़ रहने लगा कि लगता नही था कि ये वहीं दुख में डूबा चिड़ा हुआ मगरूर किसम का वहीं ग़रीब आदम था जिसकी संघर्ष कभी ख़तम नही होने को थी....धीरे धीरे वक़्त बीतता गया और अंजुम और आदम का प्यार उतना ही गहरा होता चला गया...

पिता जी जब वापिस लौटे तो इतने कम वक़्त में इतनी बड़ी खुशी जानकर उन्हें काफ़ी गर्व महसूस हुआ.....लेकिन माँ-बेटे के प्यार के बीच वो कभी आड़े नही आए....क्यूंकी घर में उनकी मज़ूदगी में दोनो वैसी ही ज़िंदगी निभाते थे जैसा एक माँ और बेटे का साधारण रिश्ता होता है....इस बीच पिता जी भी आदम की नयी शौहरत और नये रुतबे से प्रभावित होके खुद भी वैसी ही अमीरी ज़िंदगी बसर करने लगे....

आदम ने अपनी बाइक बेच दी और एक सुंदर सी बड़ी गाड़ी खरीद ली....उसके पास आज सबकुछ था...अब उसने सॉफ इनकार भी कर दिया था अपने डॅड को कि उसे हक़ के पैसे की भी कोई दरकार नही...अल्लाह का दिया उसके पास सबकुछ है....माँ को इस बात पे गर्व हुआ कि जिसने उन्हें कल बेज़्ज़त किया आज उन ददिहाल वालो के मुँह पे उन्ही का तमाचा आदम ने सूद समेत अपनी इज़्ज़त और रुतबे से मारा था


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बरसात हल्की हल्की हो रही थी...आदम बारिश में भीगता हुआ अपने ऑफीस से सीधा कार में दाखिल हुआ वो फोन पे लगा हुआ था मिस्टर जमशेद से...कोई अर्जेंट करके बात थी....आदम ने किराए का एक ड्राइवर रख लिया था...जिसकी तनख़्वाह आदम उसे महीने महीने दे देता था....अभी आदम की गाड़ी पार्क से गुज़र ही रही थी कि इतने में उसने जो देखा उसे देखके वो एक पल को मोबाइल में "ई विल कॉल यू बॅक सर" कह ड्राइवर को गाड़ी थामने को कहने लगा


ड्राइवर ने आदेश अनुसार गाड़ी को साइड किया और रोक दिया....आदम ने फुरती से दरवाजा खोला और अपनी कोट और टाइ को ठीक करता हुआ घड़ी जिसपे पानी की बूँदें पड़ रही थी उस कलाई को घुमाता हुआ उन दो महिलाओ के करीब आया....

उसने देखा कि सामने एक औरत तो वहीं काकी है जिससे आदम की मुलाक़ात चंपा के घर पर हुई थी और दूसरी एक पल को जैसे आदम को झटका लगा हो वो एकदम हिल गया उसने टाइट जीन्स और टॉप पहन रखा था....उसके हाव भाव से लग ही नही रहा था कि वो चंपा हो सकती है हां चंपा वो ऐसे बातचीत कर रही थी जैसे मानो चेहरे में कितनी मांसुमियत हो आवाज़ वैसी कि वैसी जैसी चंपा बोलती और हँसती थी...वहीं सूरत वहीं चेहरा वहीं नैन नक्श सबकुछ जैसे आदम के दिमाग़ में मानो ऐसा घूम रहा था कि काकी के संग बैठी वो लड़की चंपा ही तो है

एक पल को तिठका सा आदम उनके सामने आ खड़ा हुआ और उसने लरखराई ज़ुबान से कहा "सी..चाम्म.पा"......ये सुन्न्ं वो लड़की जो हूबहू चंपा सी दिखती थी आदम की तरफ देखने लगी ऐसा लग रहा था जैसे वो कितना गौर से उसे देख रही हो लेकिन उसके चेहरे पे आदम को पहचानने की कोई हैरत ना दिख रही थी...

काकी उसे देख उठ खड़ी हुई उसने एक पल को आश्चर्य से उसकी तरफ देखा...आदम की निगाह जैसे उस लड़की की तरफ ही ठहरी हुई थी...."कि गो? तुमि के?" (क्या? आप कौन?)....जैसे वहीं मीठी सी आवाज़ दिए चंपा ने उससे प्रश्न किया हो...
 
एक पल को आदम जैसे हिल गया कि ये तो आवाज़ में चेहरे में हर अदा में चंपा है....लेकिन ये मुझे पहचान क्यूँ नही रही? काकी ने झूठ बोला था कि ये मर गयी अगर बोला तो क्यूँ? इतने दिनो से जिसके लिए तडपा? जिसकी मज़ूदगी में बस उसे बेज़्ज़त किया और सिर्फ़ उसके जिस्म को नोच नोच के खाया आज उसकी गैरमौजूदगी में उसे सॉरी तक ना कह सका....और वही चंपा मेरे सामने खड़ी मुझसे कह रही है कि आप कौन?


काकी ने एकदम से चुप्पी तोड़ी...."अ..र्रे तुम तो आदम होना? बेटा तुम यहाँ?"..........आदम ने उनके सवाल का जवाब ना देते हुए जैसे उनकी तरफ गौर किया

आदम : हाँ मैं आदम काकी लेकिन आपने मुझसे झूठ क्यूँ कहा था? क..ईई य..ईयी म..र्र गयी ये तो चंपा है

काकी : आदम बाबू ये चंपा नही है

आदम : क..क्या? (मैं एक पल को रोई निगाह लिए उसकी तरफ सवाली निगाहो से हैरत से देखा)

काकी : ये वो बदनसीब है जिसकी ना माँ है और ना बहन ना परिवार बेसहारा मज़बूर जिसके पीछे दुनिया लगी हुई है ताकि इसे भी वहीं नाम दे सके जिसका तुम नाम दोहरा रहे हो

आदम सकते में पड़ गया....."आप कहना क्या चाह रही है?".........इस बीच वार्तालाप में वो लड़की जैसे काकी के कहते ही ये सब....ज़ज़्बातो में अपने आँसुओ को पोंछने लगी...आदम एकटक उसकी तरफ देख रहा था....

काकी : तुम्हें मैने बताया था ना कि चंपा की माँ और बहन थी...

आदम : ह..हां

काकी : बस वहीं ये बदनसीब बहन है उसकी जुड़वा बहन इसका नाम तपोती है

आदम को जैसे ऐसा लगा कि बादलो की गरगरहाट में निकली बिजलिया उसी पे ही गिर रही है...इस बीच उसे अहसास हुआ कि वो बारिश में भीग रहा है और वो लड़की उसे गौर से देखते हुए शर्मा सी भी रही है जैसे गैर मर्दो से आँख लड़ाना उसकी तहज़ीब नही

आदम : मुझे बताइए तो फिर ये कैसे?

काकी : क्या एक चेहरे के दो इंसान नही हो सकते? इस लड़की का नाम तपोती है और यह तुम्हारी चंपा की ही इकलौती जुड़वा बहन है....कसूर तो इस बेचारी की किस्मत का है....पहले बहन मर गयी उसके बाद माँ उसके सदमे में और फिर ये बेसहारा हो गयी वो तो दुर्गा माँ का शूकर है कि इसने मुझे कॉल किया और मैं इसे लेने इसके गाओं चली आई वरना बेसहारा और अनाथ देखकर इसे तो लोग नोच मारते

आदम जैसे खामोश सा हो गया...
 
काकी : बाबू आप उस दिन चले गये तो मुझे अहसास हुआ कि सच में आपसे बढ़ के चंपा का कोई नही था...एक वेश्या को इतना चाहने वाला आदमी कोई नही हो सकता....हाथ तो सब थामना चाहते है लेकिन सिर्फ़ एक रात के लिए....लेकिन आप तो उसका हाथ ज़िंदगी भर के लिए थामना चाह रहे थे....

आदम बस चुपचाप उस लड़की तपोती की ओर देख रहा था....तपोती जिस नाम का ज़िक्र उसने बाबा से सुना....जिसका किया वादा था की वो दुबारा जनम लेगी...और उसने लिया भी पर वो तो तंज़िमा थी उर्फ चंपा...और तपोती ये उसकी बहन

इस बीच लड़की ने अपनी ज़ुबान जैसे खोली....

तपोती : दरअसल मेरी बहन का नाम तंज़िमा पाल है और मैं तपोती हूँ उसकी बहन तंज़िमा दी मुझसे बहुत प्यार करती थी वो जब यहाँ आई तो उसने अपना नाम बदल लिया मुझे और माँ को उसके पेशे के बारे में कुछ मालूम नही था...वो तो इन काकी ने मुझे जब यहाँ लाया तो सारी बातें बताई माँ को तो उनकी मौत का ऐसा सदमा लगा कि उसी पल उन्होने दम तोड़ दिया...मैं कॉलेज मे बी.ए कर रही थी बीच में पढ़ाई छोड़ देनी पड़ी पैसे नही थे हमारे पास उसके बाद मरते वक़्त माँ ने ही कहा काकी से कि इसे किसी तरह से यहाँ से ले जाओ...बस फिर काकी ही मेरी अब तक देख रेख कर रही है (तपोती की बात सुनके मुझे बहुत उसके लिए दुख हुआ)

लेकिन मेरी आँखे उसके बदन और उसके चेहरे से हट नही रही थी ऐसा लग रहा था जैसे अभी वो चंपा का रूप धारण कर लेगी और अपने मीठे उन्ही अंदाज़ में मुझे अपनी तरफ खीचेगी और मुस्कुराएगी....ऐसा लग रहा था जैसे उसका चेहरा कितना फीका सा है यक़ीनन चंपा मेक अप करती थी अगर तपोती को भी मैं हूबहू उसी निखरे हुए चेहरे में देखु तो ऐसा लगेगा कि वहीं खड़ी है...

काकी : इसी की वजहों से तुम तो जानते हो लाल्पाडा कितनी बदनाम जगह है किसी तरह एक कमरा दिलवाई हूँ लेकिन ना ही इसे नौकरी मिल रही है और ना ही मैं इसकी देख रेख कर पा रही हूँ तुम तो जानते हो आदम बाबू कि यहाँ के लोग कितने गंदे है ? अगर इसे चंपा समझ लिए तो ना जाने इसके साथ क्या बद से बद हरकत करेंगे बस उन्ही भेड़ियों से बचाने और ग़रीबी और लाचारी से दूर करने के लिए ही मैं कोशिशो पे कोशिश कर रही हूँ पर शायद लगता है अब मेरी कोशिश यही समाप्त होगी तुमने मुझसे कहा था उस दिन याद है तुम्हें कि किसी भी तरह की कोई भी मज़बूरी होती तो मैं साथ देता
 
आदम ने सहमति में अपना सिर हिलाया..लेकिन उस वक़्त चंपा मर चुकी थी...

काकी : तो बस अब तुम ही इसे बचा सकते हो वरना इसकी ज़िंदगी नहेस नाबूद हो जाएगी इसे भी अपनी बहन की तरह उस धंधे में धकेल दिया जाएगा जो मैं कत्तयि नही चाहती तुम नही जानते बेरहम दुनिया है यहाँ पैसा और जिस्म के लिए लोग किसी भी हद्तक गुज़र जाते है (तपोती के हाथो को पकड़े)

तपोती जैसे बहन की याद में रो रही थी.......मैं उसके करीब आया और उसके चेहरे पे बहते आँसुओं को पोछा और उसके चेहरे को अपनी तरफ किया....

आदम : मैं जानता हूँ कि तुम्हें डर लग रहा होगा कि मैं ऐसे तुम्हें छू रहा हूँ पर यकीन मानो मेरे दिल में चंपा के लिए जो इज़्ज़त और मुहब्बत थी उसे समझना शायद आसान नही हो सकता....मैं बस तुमसे यही चाहता हूँ कि तुम अपना कल भूल जाओ शायद गैर ही हूँ तुम्हारे लिए पर कम से कम चंपा सॉरी तुम्हारी बहन तंज़िमा के बेस्ट फ्रेंड के लहज़े से क्या तुम मेरे साथ चलोगी? मैं तुम्हें प्रॉमिस करता हूँ कि मैं तुम्हें हर उन मुसीबतो से दूर कर दूँगा तुम्हें कभी कोई तक़लीफ़ नही होगी

मन ही मन जैसे तपोती सम्मोहित सी मेरे चेहरे की ओर देख रही थी...ऐसा लग रहा था जैसे उसकी हिचकिचाहट डर सब गायब हो चुका हो....उसने एक टक मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुराया....मैं भी खुश हुआ कि उसने सहमति तो ज़ाहिर की

मैने उसका हाथ थामा और फिर काकी की तरफ देखा

आदम : आप नही जानती आपने मेरे लिए क्या किया है? ज़िंदगी भर का एक दुख होता कि मैं उसके लिए कुछ कर ना सका...लेकिन तपोती ने जैसे मेरी यादों को ताज़ा कर दिया है ऐसा लग रहा है कि मैं अपनी चंपा को वापिस पा चुका हूँ हाहाहा

काकी हंस पड़ी उन्होने अपने खुशी से निकले आँसुओं को पोंछते हुए मेरी तरफ देखा...."तुम दोनो को भगवान खुश रखे मैं तुम्हें दुआ देती हूँ आदम बेटा मेरी तो वैसे कोई औलाद नही है पर तुमने जो फ़र्ज़ अदा किया है उसके लिए मेरी ये शुक्रगुज़ारी भी छोटी सी है"...............

."नही काकी आपने ज़िंदगी की तमाम खुशी जैसे मुझे लौटाई है"........

..तपोती मुझे बड़े गौर से देख रही थी ऐसा लगा जैसे उसे सहारा देने वाला कोई मिल गया हो हालाकी मेरा छूना उसको को कुछ अज़ीब सा लगा पर कितनो भी हो वो एक कुँवारी कमसिन लड़की थी

तपोती जैसे काकी से गले लग्के रो पड़ी....काकी ने उसे कहा कि अब उसे फिकर करने की कोई ज़रूरत नही आदम बाबू बहुत अच्छे है वो तुम्हें इतना सपोर्ट करेंगे कि कोई नही कर सकेगा....हालाकी चंपा के पास वो अक्सर आते थे लेकिन उनके दिल में तुम्हारी बहन के लिए रत्तिभर भी वासना या हवस नही थी...वो उनके गहरे दोस्त थे....तपोती जैसे सुबक्ते हुए ये सब सुन रही थी....उसी रात मैने उसके कमरे से उसके इक्का दुक्का सामान काकी के साथ मिलके अपनी गाड़ी में डाले वो सिर्फ़ दो महेज़ बॅग थे जो तपोती का थे उसके पास सोने के लिए एक बिस्तर भी नही था मैं उसे गाड़ी में लिए अपने घर की तरफ चल पड़ा..

.उसने मुझसे पूछा कि मैं अकेला रहता हूँ? तो मैने कहा फिकर की कोई बात नही दरअसल मेरी माँ अंजुम और मेरे पिता मेरे साथ रहते है...वो बीच बीच मेरे आँखो को देख रही थी ऐसा लग रहा था जैसे मेरे निगाहो में उसे अपने प्रति कुछ अज़ीब सा लग रहा हो वो मेरे साथ खुद को गैर सा महसूस नही कर रही थी और यही बात मुझे अच्छा लगा
 
दरवाजे की दस्तक सुन जब अंजुम ने दरवाजा खोला तो आदम के हाथ में दो बॅग देख और तपोती को देख वो हैरानी से उसकी तरफ देखने लगी...जैसे उसके मन में कितने सवाल उठ रहे हो कि ये कौन है? मैं हिचकिचा रहा था कहने को तो कह दिया कि मेरे घर आ जाओ...पर अभी मुझे अपनी माँ और पत्नी अंजुम को भी समझाना था कि वो कौन है? मुझे डर था कहीं माँ मुझे मना ना कर दे या फिर कोई गुस्सा ना करे..पर मैं जानता था मुझे ऐसा ही करना है....माँ को अगर अहसास ना कराया तो ज़िंदगी भर जैसे चंपा के रूप में आई तपोती को मैं खो देता

अब प्यार और रिश्ता दोनो ही मेरे आमने सामने खड़े थे

क्या होगा इस अनकहे रिश्ते का हाल जब अपनी व्याबचारी माँ को आदम ज़ाहिर करेगा?

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बाहर मुसलाधार बारिश हो रही थी...और अंदर लिविंग रूम में ठीक सोफे के सामने खड़ी माँ अपने बाज़ुओ को एकदुसरे से मोडे हुए मेरी बातों को सुन रही थी....तो कभी बीच बीच में तपोती की तरफ बड़े गौर से देख रही थी....तपोती जैसे उनको देखके थोड़ी सी सहम सी गयी वो खुद की नज़रों को झुकाए हुए खड़ी थी....

आदम : माँ मैं चाहता हूँ कि आज मैं तुमसे कुछ बातें जो मैने अब तक नही कही या शायद मुझे लगा कि अब तक मेरा कहना ये सब मुनासिब नही आज वो बात तुम्हारे सामने खुल के कहना चाहता हूँ....

माँ ने कोई उत्तर ना दिया वो चुपचाप जैसे बस सुन रही थी....मेरी नज़रों को देखते हुए

आदम : माँ इसकी बहन चंपा जिसका असल नाम तंज़िमा था....उससे मेरी गहरी दोस्ती थी ये दोस्ती तबसे थी जब से मैं दिल्ली छोड़के यहाँ सेट्ल डाउन होने की कोशिश कर रहा था....उसी बीच मेरी चंपा से मुलाक़ात हुई....चंपा ने ग़लत धंधे को अपना पेशा बना रखा था....लेकिन उसका दिल बेहद सॉफ था...जब मैं वापिस दिल्ली से तुझे लेके यहाँ आया तो उसके कुछ दिन बाद जब उसके घर पहुचा तो उसकी मौत की खबर सुनी....वो घर की अकेली एक कमाने वाली थी जिसकी कमाई से घर चलता था उसकी बीमार माँ उसकी मौत और पेशे के सदमे को बर्दाश्त ना कर सकी और उसने दम तोड़ दिया ये जो लड़की मेरे पीछे खड़ी है उसकी अपनी सग़ी जुड़वा बहन है....माँ की मौत के बाद इसे ना सिर्फ़ मकान मालिक ने घर से निकाल दिया बल्कि इसे इधर उधर ठोकर खाने के लिए भी छोड़ दिया....जिस काकी ने इसे यहाँ लाया वो चंपा की जानने वाली है लेकिन इसका वहाँ रहना दुश्वार था जिस वजह से इसके साथ कोई भी गहरा हादसा हो सकता था...


हो सकता था कि शायद इसे लोग चंपा समझ लेते और इसकी इज़्ज़त लूट लेते या फिर इसे भी बढ़ती ग़रीबी और मोहोताजियत में वहीं कॉलगर्ल वाला पेशा ही चुनना पड़ जाता...मैं चाहता हूँ कि ये भी इस घर में एक सदस्य की तरह रहे मैने इसकी बहन से वादा किया था कि मैं उसकी हर मुमकिन मदद करूँगा उसे तो बचा ना सका लेकिन अगर इसे मैं घर ना लाता तो मेरा किया वादा कभी पूरा ना हो पाता...

लेकिन माँ तुम जानती हो कि इतना बड़ा इरादा करना मेरे बस में नही जब तक तुम राज़ी ना हो...अगर तुम्हारी रज़ामंदी ना मिली तो मैं इसे इस घर में नही रखूँगा लेकिन इसका साथ भी नही छोड़ूँगा जब तक इसे किसी काबिल मोक़ाम तक ना पहुचा दूँ ये मेरी ज़िम्मेदारी है...

अंजुम खामोशी से बेटे के चुप होते ही कुछ देर तक सोचती रही....आदम को डर सता रहा था कि कहीं माँ उस पर चिल्लाए कहे कि ये क्या नीच हरकत तू कर रहा है? दुनिया दारी निभाने के लिए तू ही इसे मिला था? ये तेरी लगती क्या है? और ऊपर से लालपाड़ा वाला बात तो बताया नही वो बखूबी जानती थी वो कितनी बदनाम इस शहर की जगह है जहाँ मैं कभी अपनी हवस मिटाने चंपा के पास जाया करता था....एक कॉलगर्ल को मेरा गहरा दोस्त और उसकी हेल्प करने का विचार सुन अंजुम जैसे मेरी तरफ घुर्रके देख रही थी...

कुछ देर बाद अंजुम ने अपने मोडे हुए बाजुओं को एकदुसरे से अलग किया....फिर मेरी तरफ देखा....और धीरे धीरे उसके गंभीर चेहरे पर मुस्कुराहट छाई....

अंजुम : उफ्फ बाप रे मुझे नही मालूम था कि मेरा आदम इतना समझदार और रहमदिल वाला है....मुझे लगा शायद अभी भी तेरे अंदर सिर्फ़ बचपना और ज़िद्द ही बढ़ा है तू बस कमाने लगा है यही सोचती थी...लेकिन आज सिर्फ़ तूने अपनी ग्रहस्ति की ज़िम्मेदारियो को ना ही बल्कि अपने ईमान को भी बखूबी दर्शाया है मुझे कोई इस बात का गम नही कि तूने किसी की मदद की और मैं तो कहती हूँ कि अच्छा किया जो तपोती को तू यहाँ ले आया...मैं जानती हूँ अकेली औरत का क्या हाल होता है यहाँ? सच कह रही हूँ तपोती (एक पल को माँ ने जैसे उसे नाम लेते हुए कहा तपोती भी हड़बड़ाई मुस्कुरा पड़ी)
 
अंजुम ने पास आके बेटे के चेहरे को सहलाया....."उफ्फ तूने तो मेरी आँखो को नम कर दिया....तूने मुझे अगर पहले चंपा के बारे में कहा होता तो मैं नाराज़ ना होती...मैं जानती हूँ तू नीच नही है ना ही तू अपने खानदान वालो में से किसी तरह है जिनके अंदर औरतज़ात के लिए सिर्फ़ काम भावनाए ही है तूने आज मुझे अहसास करा दिया कि तू मेरी औलाद है आइ आम प्राउड ऑफ यू बेटा"..........आदम माँ के जैसे गले लग गया.....ये दृश्या देख तपोती को ऐसा लग रहा था जैसे उसकी सोच ग़लत थी गैरो में भी प्यार होता है वो भी कोई ना कोई अपने होते है....

अंजुम और आदम एकदुसरे के गले से अलग हुए...फिर अंजुम ने प्यार से तपोती की तरफ देखा...उसके पास आई तो तपोती ने जैसे उसके पैर छूने चाहे...."काकी"......

."बस बस ये क्या कर रही हो? मैं इतनी भी तुमसे बड़ी नही हूँ वाहह तुम तो देखने में कितनी सुंदर हो इस्सह कैसी किस्मत लिखी है अल्लाह ने तुम्हारी जो तुम्हें इतनी ठोकर खानी पड़ी...पर देखो जो भी हुआ अल्लाह की मर्ज़ी से हुआ कि तुम हमारे पास आ गयी मुझे खुशी है इस बात की आज से तुम इसी घर में रहोगी हमारे पास"........अंजुम जैसे तपोती को अपने गले लगा ली..

आदम ये दृश्य देखके फूला नही समा रहा था...शरमाई अपनी नज़रों से आँसुओं को पोंछते हुए मुस्कुरा रहा था....माँ उससे उसके गाओं के बारे में जानने लगी उसके माँ-बाप के बारे में पूछने लगी.....माँ को दुख हुआ कि उसकी पढ़ाई बीच में पैसो के चलते छूट गयी....उसे अहसास हुआ जैसे कि अभी भी कितने दिक्कतो में उलझे है ग़रीब परिवारो की लड़किया....

खैर ज़ज़्बातो का वक़्त जैसे ढल गया....माँ की रज़ामंदी आदम को मिली....और तपोती को एक नये घर में प्यार भरा जगह ......फिर हम तीनो डाइनिंग टेबल पे आके बैठे....माँ उठके परोसने लगी तो तपोती मदद करने लगी...

."अरे नही नही बेटा तुम बैठो मैं देती हूँ ना"........

."नही नही काकी आपने कहा ना कि मैं इस घर में मेहमान नही आप लोगो की सदस्य जैसी हूँ तो मुझे प्लीज़ ना रोके ये रिक्वेस्ट है".......

."अच्छा बाबा ठीक है लो"......

..तपोती ने खाना परोसा माँ के साथ मिलके....ऐसा लग रहा था जैसे कितने दिनो बाद इस घर की खुशिया लौट आई थी...एक तरह से अच्छा लगता है जब घर में औरतो की चहेल पहेल होती है....तपोती ऐसे संकोच किए खा रही थी जैसे उसे ज़ोरो की भूक लगी थी शायद कुछ दिनो से उसने ढंग से कुछ खाया नही था...लेकिन उसमें अब भी जैसे एक स्वाभिमान हो कि उसे प्लेट्स से नीवाला मुँह में लेते वक़्त भी संकोच सा हो रहा था...मैं समझ सकता था उसको मैं भी उसे देखते ही देखते खा रहा था.....

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अंजुम अपने कमरे में लेती खामोशी से किसी विचार में खोई हुई सी थी...इतने में बेटे ने कमरे में कदम रखा.....अंजुम उसे देखते हुए उठ बैठी......उसने मुस्कुराया तो आदम ने भी मुस्कुरके उसके पास बैठते हुए उसके हाथो पे चूमा और उसे अपने माथे पे रखा....अंजुम उसके बालों पे हाथ फैरने लगी.....


अंजुम : आज से पहले मैने तुझे कभी इतना खुश नही देखा कभी तेरे निगाहो में आँसुयो को उबलते नही देखा


आदम : थॅंक यू माँ थॅंक यू सो मच कि आपने तपोती को अपने घर में पनाह दी....अगर आप ना भी चाहती तो मैं उसे कहीं !


अंजुम : बेटा तू ऐसा दुबारा मत कह ज़रूरत मंद और मज़बूर इंसान की अगर हम मदद ना किए तो अल्लाह को क्या मुँह दिखाएँगे?


आदम बस मुस्कुराया


अंजुम : वो सो गयी क्या?


आदम : हां निशा और मेरे वाले कमरे में उसका बिस्तर लगा दिया जब तक उसे सोता ना देखा तब तक मैं वहाँ से हटा नही


अंजुम ने बेटे को अपने सिरहाने पे सोने का इशारा किया...आदम वहीं लेट गया...अंजुम उसके माथे को चूम कर उसके बालों को फिर सहलाने लगी....

."मुझे लगा था माँ कि तुम ऐतराज़ करोगी? जब मैने उसकी बहन चंपा का ज़िक्र किया"...........

.अंजुम सिर्फ़ मुस्कुराइ

अंजुम : तूने मुझसे इतनी बड़ी बात छुपाई नाराज़गी तो तय थी मेरी....क्या तूने सच में उसकी बहन चंपा के साथ !


आदम से कहते ना बना.....उसे डर सताया कि कितना भी हो कोई माँ चाहेगी कि उसका बेटा धन्धेवालि से जाके संबंध बनाए हरगिज़ नही....लेकिन अंजुम चुपचाप खामोश रही


आदम : मेरा उसका संबंध बिस्तर पर नही एकदुसरे के दिलो में था

अंजुम : तू उसे चाह बैठा था?

आदम : कहीं ना कहीं लेकिन बाद में मुझे अहसास हुआ कि हालत हमे इसकी इज़ाज़त नही देता....तू ही देख ना माँ उस दिन बाबा वाली बात तुझे बताई और देख चंपा को खोने के बाद ही जैसे उसके रूप में मुझे तपोती मिली


अंजुम : हो सकता है खुदा की यही मर्ज़ी हो लेकिन बेटा मुझे सिर्फ़ इस बात का डर है कि कहीं वो वाली बात ना हो जाए


मैं उठके माँ की तरफ देखने लगा......


आदम : कैसी वाली बात माँ?


अंजुम : तू एक बार ज़िंदगी में ठोकर खा चुका है निशा के सितम से तेरे घाव अभी अभी जैसे भरे है और एकदम से तपोती का आना


आदम : नही माँ ऐसा कुछ नही होगा....तपोती और निशा में ज़मीन आसमान का फरक़ है तूने देखा नही


अंजुम : तहज़ीबदार और संस्कारी तो लगी मुझे फिर भी कही कोई खोट ना निकल जाए
 
आदम कुछ ना बोला अगर उस वक़्त ये बात समीर ने कही होती तो वो नाराज़ पक्का हो जाता....उसने माँ की तरफ देखा और फिर कहा की माँ अगर तुझे उसपर अगर यकीन ना लगे तो मैं उसे हमारे घर से !


अंजुम : नही नही तू ऐसे ही दर्द में है कितना दर्द तू लिए जी रहा है ऐसे में निशा ने जो तेरे साथ किया उसके बाद से तू कितना टूट गया था? कैसी हालत हो गयी थी तेरी? मैं नही चाहती कि घर आई खुशिया वापिस लौट जाए....और अब तो तेरे पे मेरा हक़ और भी गहरा हो चुका बस उसे मालूम ना चले हमारे रिश्ते के बारे में


आदम ने सहमति में माँ के हाथो पर अपना हाथ रखा...उसने माँ के चेहरे को हाथो में लिया और दोनो के होंठ एकदुसरे के होंठो से जैसे जुड़ गये....एक लंबा चुंबन लेने के बाद दोनो ने अपने होंठ एकदुसरे से अलग किए....


अंजुम ने बेटे को अपने सीने से लगाके जैसे अपने आगोश में भर लिया...दोनो अपने बीते कल की बातें कर रहे थे कितने दुख दर्द और तक़लीफ़ दोनो ने सहे थे?.....फिर आदम चंपा की बात माँ को कहने लगा कि वो दूध जैसा सादा उसका दिल था...ना ही उसके मन में उसके लिए कोई मैल था उसकी ही बदौलत आज अंजुम के वो करीब आ पाया और उससे मुहब्बत कर बैठा...

ना जानते थे दोनो कि बाहर खड़ा कोई सुन रहा था....अंधेरे की आड़ में जैसे....तपोती को प्यास लगी थी तो वो उठके कब पानी पीते हुए एक बार आदम और उसकी माँ को ढूँढने आई तो उसने दरवाजे को अधखुला पाया....साथ ही साथ दोनो जो कुछ उसकी और उसकी बहन की बातें कर रहे थे वो बड़े ध्यान से उन्हे ही सुन रही थी....आदम को अपनी माँ के सीने से लगा देख जैसे उसे दिल ही दिल में ये बात आई की कितना अटूट प्यार है दोनो माँ-बेटे में....

वो मुस्कुरा रही थी अपनी और अपनी बहन के प्रति इतनी मुहब्बत और तारीफ सुनके....ऐसा लग रहा था जैसे उसका अब भी कोई इस दुनिया में मौज़ूद था उसकी माँ और बहन के चल बसने के बात भी......तपोती ने देखा कि अंजुम सो गयी थी पर आदम बडबडाता जैसे उसे अपने चंपा के रिश्तो को ब्यान किए जा रहा था....उसके चेहरे पे जैसे गंभीरता सी आई....

"माँ आज जब मैने चंपा का बदला रूप देखा ना तो तपोती को देख ऐसा लगा कि कहीं चंपा ही तो नही जिस चंपा के लिए मैने कितने दिनो से अपने मन में कयि विचार दबाए रखे.....मैं सोचा था उससे शादी कर लूँगा नही करूँगा कोई परवाह कि लोग क्या कहेंगे? या कोई हँसी उड़ाएगा या कोई बेज़्ज़त करेगा? किसी की हिम्मत इतनी ना होती जो मुझे और चंपा के बारे में कुछ कह पाता...उसकी मुहब्बत ही मेरी हसरत बन गयी थी उसके पास यूँ हर पल जाना जैसे मेरी आदत सी हो गयी थी.....उसे हरपल कहने की कोशिश करना चाहता था पर साला ये दिल में दबी हसरत उस वक़्त इतना उबाल ना खाई थी काश उसे कह पाता मैं....पर चलो कोई बात नही लेकिन ना जाने क्यूँ तपोती को देख ऐसा लगता है कि साक्षात चंपा ही मेरे सामने खड़ी है वहीं रंग रूप वहीं नैन नक्श वहीं चेहरा लेकिन सोचता हूँ वो मेरे बारे में क्या सोचेगी कि मैं भी औरो की तरह उस पर नज़र रखे हुए हूँ फिर जो थोड़ा बहुत उसके दिल में मेरे प्रति इज़्ज़त उठी हुई होगी वो भी मिट जाएगी और वो फिर मुझसे दूर हो जाएगी जो मैं हरगिज़ नही चाहता".............अपने में बडबडाता जैसे आदम ये भूल गया कि ज़ज़्बातो में बहके उसने क्या कुछ नहीं कह दिया है?


जो शायद माँ तो नही सुन रही थी क्यूंकी उसकी आँख लग गयी....पर बाहर खड़ी तपोती ये सब सुनके जैसे चुपचाप उसी की ओर देख रही थी....तपोती को अहसास हुआ कि कितना दर्द है ? और कितना कुछ सहा था आदम ने... आदम के दिल में क्या कुछ नही था उसकी बहन के लिए...उसे अहसास हुआ कि शायद आदम उसे देखके ही अपना दिल दे बैठा था.....तपोती ने कभी किसी से दिल नही लगाया था लेकिन अपने प्रति किसी के दिल में इतनी चाहतो की हसरत देख वो शरम से लाल हो गयी ...


वो वापिस कशमकश में उलझी कमरे में लौटी और बिस्तर पर सर रखकर जैसे आदम की उन बातों को याद करने लगी....उसे अहसास हुआ कि इस घर में उसे वो जगह मिल सकती है जो जगह उसे ज़िंदगी में कहीं नही मिल सकती....लेकिन आदम पहेल नही करना चाह रहा था उसे डर था की कहीं उसकी चाहतो की हसरत एकतरफ़ा ना रह जाए और तपोती को ये लगे कि बस उसके मन में उसके लिए सिर्फ़ हवस भरे विचार है....कहीं इसी से डरकर तपोती यहाँ से भी ना चली जाए....

तपोती ने सोचा कि इसी लिए आदम कुछ नही कह पा रहा....और अगर वो यहाँ से जाएगी भी तो कहाँ किसके पास? अब तो कोई उम्मीद नही सिवाय मौत के
 
वो वापिस कशमकश में उलझी कमरे में लौटी और बिस्तर पर सर रखकर जैसे आदम की उन बातों को याद करने लगी....उसे अहसास हुआ कि इस घर में उसे वो जगह मिल सकती है जो जगह उसे ज़िंदगी में कहीं नही मिल सकती....लेकिन आदम पहेल नही करना चाह रहा था उसे डर था की कहीं उसकी चाहतो की हसरत एकतरफ़ा ना रह जाए और तपोती को ये लगे कि बस उसके मन में उसके लिए सिर्फ़ हवस भरे विचार है....कहीं इसी से डरकर तपोती यहाँ से भी ना चली जाए....

तपोती ने सोचा कि इसी लिए आदम कुछ नही कह पा रहा....और अगर वो यहाँ से जाएगी भी तो कहाँ किसके पास? अब तो कोई उम्मीद नही सिवाय मौत के

ये सब सोचते सोचते हुए उसकी आँख कब लग गयी पता नही चला....

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अगले दिन जब अंजुम उठी तो उसने बेटे को जगाना चाहा वो गहरी नींद में था...."अरे बेटा लेट हो जाएगा ऑफीस के लिए तू".......कहते हुए उसके लिए नाश्ता और चाइ बनाने के लिए कमरे से बाहर आके जैसे किचन में आई...तो देखती है कि तपोती चाइ बनाके ट्रे में सज़ा रही है


अंजुम ये देख हैरत में पड़ जाती है कि एक ही दिन में आके उसने घर को संभाल लिया था.....वो मुस्कुरा के उसके पास आई और उसे मना करने लगी..

अंजुम : अरे बेटा ये सब क्या कर रही हो तुम?


तपोती : अरे काकी बस सोचा कि आप लोगो के लिए चाइ बना दो


अंजुम : हाहाहा पर तुम्हें ये सब नही करना चाहिए था खामोखाः तुम्हारी नींद खराब हुई


तपोती : हम अपने वहाँ भी ऐसी ही वक़्त पे उठते थे फिर माँ के लिए नाश्ता बनाते थे आप ना मत कीजिए आदम जी को उठा दीजिए शायद उनका ऑफीस का टाइम होगा


अंजुम : हां हां तुम एक काम करो ये चाइ लो ट्रे में और तुम खुद जाके देके आओ मैं यहाँ उसके लिए नाश्ता बनाती हूँ


तपोती : नही हम कर लेंगे


अंजुम : अरे बाबा मैं संभाल लूँगी ना रोज़ तो मैं ही संभालती थी हाहाहा जाओ बाबू दे आओ


तपोती मुस्कुराए चाइ की ट्रे लिए आदम के कमरे की तरफ चली गयी....अंजुम मुस्कुराइ उसे अहसास नही था कि तपोती इतना कुछ करने लग जाएगी

जब ट्रे लिए तपोती कमरे में आई तो उसने देखा कि कमरे का दरवाजा खुला था...और आदम पेट के बल घोड़े बेचकर सो रहा था....तपोती उसकी तरफ बढ़ी और उसने धीमे से ट्रे को पास के दराज़ के उपर रखा और फिर झुककर आदम की तरफ तवज्जो दिया....वो एकदम गहरी नींद में था....

"आदम जी आदम जी"........दो बार आवाज़ देते हुए लेकिन आदम ने कोई रिक्ट नही किया..


"उफ्फ लगता है गहरी नींद में है"........उसने फिर एक बार सोचते हुए थोड़ा ज़ोर से बोलने का प्रयत्न किया....."आदम जी आदम जी".........लेकिन नही आदम तो घोड़े बेचके सो रहा था
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