Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत - Page 30 - SexBaba
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Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत

रूपाली : ओह नाइस टू मीट यू तपोती (रूपाली ने हाथ आगे बढ़ाए दोनो ने हाथ मिलाया)


इतने में राहिल तपोती के गले आने लगा.

."अरे तपोती लो ना इसे"........तपोती ने उसे अपने बाहों में लिया...उसे चुप करती हुई उसके साथ खेलने लगी वो जैसे तपोती को बड़े गौर से देख रहा था....तपोती ने देखा की वो कुछ कुछ आदम जैसा दिख रहा था


आदम : मीट माइ भाभी रूपाली ये मेरी मौसेरी बताया था ना तुम्हें ताहिरा मौसी उनकी यह बहू है



तपोती : अच्छा अच्छा


रूपाली : अरे ये तो तुम्हारी गोद में आते ही चुप हो गया लगता है आदम से ज़्यादा तुम्हारी गोदी इसे भाई



तीनो हंस पड़े....आदम खामोसी से राहिल की तरफ तो कभी दोनो लड़कियो की तरफ देख रहा था...."और सब ठीक?".....आदम ने सवाल किया....

."हां बस चल रहा है तुम्हारा भाई तो पड़ा रहता है"...........

"अभी भी सेम किस्सा"..........

."बदल सकता है कभी".......जैसे रूपाली ने मांयुसी से कहा


रूपाली ने फिर राहिल को अपनी गोद में लिया और कहा कि वो बाज़ार आई तो एकदम से दोनो की तरफ निगाह हुई....आदम ने कहा कि वो बस तपोती को घुमाने लाया है....रूपाली को लगा शायद आदम उसके साथ शादी करने के प्रस्ताव से उसके साथ घूम रहा है क्यूंकी वो वाक़िफ़ थी जो कुछ निशा और आदम के साथ हुआ था उसके बाद से ही....रूपाली ने कुछ देर बात की फिर तीनो थ्री वीलर में सवार हुए..


उसके बाद स्टॉपेज आते ही रूपाली उतर गयी...फिर उसने दोनो से विदा लिया...उसके जाते ही गोदी में देख रहे राहिल की तरफ मुस्कुराए नज़रों से तपोती ने फिर आदम को देखा.

..."तुमने उस बच्चे को देखा वो मेरा बेटा है राहिल".......जैसे एक पल को सकते में तपोती उसकी तरफ देख रही थी


आदम : शायद मेरी ही भूल कि आज रूपाली भाभी के पास वो है और अगर ना होता तो भाई मेरा उसे सुख नही लेने देता...


तपोती : तभी सोचु कि तुम्हारी तरह वो क्यूँ दिख रहा था मुझे? लेकिन बड़ा प्यारा है



आदम : हाहाहा (अपने आँसू पोंछते हुए) जाने दो अब क्या कह सकता हूँ? तुम ही सोचो रूपाली भाभी एक टाइम था मुझसे बड़ी नफ़रत
करती थी आज मुझसे उसका रिश्ता महेज़ वहीं देवर भाभी का है ये सब मेरी भूल है तपोती की मैने ऐसे व्याबचार रिश्तो को जनम दिया
 
आदम : हाहाहा (अपने आँसू पोंछते हुए) जाने दो अब क्या कह सकता हूँ? तुम ही सोचो रूपाली भाभी एक टाइम था मुझसे बड़ी नफ़रत
करती थी आज मुझसे उसका रिश्ता महेज़ वहीं देवर भाभी का है ये सब मेरी भूल है तपोती की मैने ऐसे व्याबचार रिश्तो को जनम दिया



तपोती : कब तक खुद को कोसते रहोगे तुम आदम? (इस बार तपोती ने जैसे आदम के नाम से उसे पुकारा हो)


आदम : जब तक खुद की नज़रों में मेरी इज़्ज़त नही आएगी



तपोती : तुम इज़्ज़तदार हो और सबकुछ है तुम्हारे पास माँ परिवार पैसा फिर क्यूँ बीते कल को सोचना जो लौटके नही आने वाला



आदम : पर अपनी याद तो छोड़ गया ना


तपोती : प्ल्ज़ आदम तुम एक समझदार पढ़े लिखे हो और जिसे अपनी ग़लती का अहसास हो जाए उसे तो खुदा भी मांफ कर देता है एक दिन अपने उपर काबू रखो वरना जब घर पहुचेंगे तो माँ मुझपे नाराज़ होगी की मैने तुम्हें कुछ कह दिया


आदम हंस पड़ा उसने तपोती को बड़ी गौर से देखा....थ्री वीलर दोनो के फ्लॅट के सामने आ रुकी....दोनो को उतरे घर में लौटता देख जैसे अंजुम ब्रांडे से ही मुस्कुरा रही थी....चलो बेटे के चेहरे पे खुशिया तो आई

ये कोई जैसे उस दिन की बात नही थी....अक्सर आदम माँ की इजाज़त से ही तपोती को घुमाने फिराने ले जाता था...उसका कहना था कि वो उसे खुश रखना चाहता है ताकि वो अपने बीते कल को भूलके उनके परिवार को ही अपना सबकुछ मान ले....माँ अंजुम को भी इससे कोई
आपत्ति नही थी...लेकिन ना जाने क्यूँ उसके दिल में एक अज़ीब सी सोच उमड़ रही थी कुछ दिनो से अपने बेटे और तपोती के बढ़ते इस रिश्ते को लेके....

ना जाने क्यूँ उसे ऐसा लग रहा था जैसे ना चाहते हुए भी आदम तपोती की तरफ खीचता जा रहा है....पहले तो उसने ऐसा ही सोचा लेकिन जब आदम ने अपनी माँ को भी वक़्त देना शुरू कर दिया....तो उसे ये सिर्फ़ उसकी ग़लतफहमी लगी फिर भी वो समझदार थी और कितनो भी हो आदम की माँ थी...उससे ज़्यादा आदम को कौन समझ सकता था?

उस रात आदम ऑफीस से थका हारा घर लौटा था....रोज़ की तरह डाइनिंग टेबल पे उसके माँ बाबा और तपोती मज़ूद थे..तपोती अंजुम का हाथ बटाते हुए खाना परोस रही थी....पिता जी ना नुकुर कर रहे थे कि उन्हें और तरकारी नही चाहिए आदम मुस्कुराए तपोती को बैठने कहता है....तपोती उसके बगल में बैठके खाने लगती है...

इतने में अंजुम आदम से कहती है कि कल सनडे है तो मैं और तपोती कल शॉपिंग पे जाएँगे आदम ने रज़ामंदी से हँसी खुशी सहमति में सर हिलाया....अंजुम ने कहा की कल तो सनडे है तू भी चल ना...तपोती ने भी जैसे मुस्कुरा के अंजुम की बातों से सहमति में सर हिलाया
 
आदम : नही माँ असल में कल एक मीटिंग है और मिस्टर.जमशेद भी आ रहे है शायद वीकेंड में छुट्टी कर लूँ पर कल तो पासिबल नही है

अंजुम : अच्छा जाने दे

अंजुम फिर खाने लगी...आदम मांयुसी भरे अंदाज़ में तपोती की तरफ देखके सॉरी चाह रहा था..पर उसने इशारो में कहा कि कोई बात नही....हर कोई खामोशी से अपना डिन्नर करने लगा....

जब मुँह हाथ धोके खाने से फारिग होके आदम तपोती के रूम में पहुचा तो देखा कि तपोती अपनी और अपनी बहन की तस्वीर देख रही थी.....आदम ने गौर से देखा कि उसमें दोनो की उमर तकरीबन एक जैसी लग रही है मुस्किल से यही कोई 19 साल...आदम ने उस तस्वीर को अपने हाथो में लिया तो तपोती चौंकते हुए उठ खड़ी हुई....एक पल को आदम जैसे चंपा और तपोती दोनो को साथ बैठा देख हैरान सा हो गया....लग ही नही रहा था की चंपा कौन है और तपोती कौन?

तपोती : ये हम दोनो की आखरी तस्वीर है उसके बाद तंज़िमा दी फिर दुबारा हमसे मिलने नही आई (अपने आँसू पोंछते हुए)

आदम ने तस्वीर उसके हाथो में दी और फिर उसके कंधे पे हाथ रखकर उसे ज़ज़्बातो पर अपने काबू पाने को कहा...."हम तब उसके पास लौटे जब वो लाश बन चुकी थी सरकारी . के बेड पे उसकी लाश . की तरह रखी थी मैं ये सदमा बर्दाश्त नही कर पाई थी और मुझसे ज़्यादा तो माँ!"........तपोती के जैसे और अपने उपर काबू ना रह पाया...और वो मुझे कस कर पकड़े रोने लगी....

आदम ने अपने . को पौच्छा और तपोती को हौसला दिया कि जो कुछ भी हो तंज़िमा उसके दिल में हमेशा रहेगी....इंसान मरता दुनिया के लिए है लेकिन उसकी आत्मा हमेशा उनके साथ रहती है क्या पता? उसके ऐसे रोने से तंज़िमा की आत्मा को ठेस पहुचे कि वो टूट रही
है.....कुछ देर बाद तपोती चुप हुई फिर उसने सुबक्ते हुए तस्वीर को अपने बॅग में डाल दिया....

अचानक उसने आल्मिराह खोला तो उसमें निशा के मज़ूदा कुछ कपड़े थे जो आदम से उसने हर्वक़्त ज़िद्द कर के लिए थे...तपोती ने देखा टू पीस की एक बहुत ही कीमती ब्रा उसके हाथो में आ गयी थी....अंदर वॉर्डरोब्स में शृंगार का भी कुछ सामान था....महेंगी से महेंगी साड़ी हॅंगर में वैसी की वैसी रखी हुई थी....

आदम ने जब गौर किया की तपोती उन कपड़ों को छू रही है...तो उसने जैसे मुँह को बनाए निशा की उस ब्रा को तपोती के हाथो से छीना...."छोड़ो ये सब कपड़े मैं तुम्हें इससे भी अच्छे दिलाउन्गा"........

.."क्यूँ? अरे आदम ये क्या कर रहे हो?".......तपोती ने आदम को रोका जो उस ब्रा को फैक्ने जा रहा था...



आदम : इस कमरे में मैं और वो पति पत्नी की तरह रहा करते थे ये उसी कुतिया के कपड़े है जो मैने उसे दिलाए थे सोचा था कि शायद अपनी ज़िद्द पूरी हो जाने के बाद वो भी मुझसे उतना ही प्यार करने लगे जितना मैं उसे लेकिन उसकी ज़रूरतें तो ख़तम कभी होने वाली ही ना थी (आदम ने जैसे गुस्से में दहेकते हुए कहा)
 
आदम : इस कमरे में मैं और वो पति पत्नी की तरह रहा करते थे ये उसी कुतिया के कपड़े है जो मैने उसे दिलाए थे सोचा था कि शायद अपनी ज़िद्द पूरी हो जाने के बाद वो भी मुझसे उतना ही प्यार करने लगे जितना मैं उसे लेकिन उसकी ज़रूरतें तो ख़तम कभी होने वाली ही ना थी (आदम ने जैसे गुस्से में दहेकते हुए कहा)

तपोती : ऐसे यूँ बेजान चीज़ो पे कोई गुस्सा निकालता है अगर इसे फाड़ दोगे तो क्या फायेदा क्या फैक्कर उसकी यादों को मिटा दोगे बेजान
चीज़ो पे गुस्सा निकालके क्यूँ खुद को तक़लीफ़ दे रहे हो? जो जा चुकी सो जा चुकी लेकिन क्या वो ये सब लेके गयी नही

आदम : हुहह मुँह कहाँ था ले जाने का? गान्ड पे लात मारके उसे निकाला था मैने उसने जो दगा मेरे साथ किया वैसा सिलाह मुझे अपनी ज़िंदगी में किसी से ना मिला...मैं तो यही दुआ करता हूँ जहाँ रहे खून के आँसू रोए रंडी साली

तपोती : सस्शह आदम शांत हो जाओ क्यूँ गाली दे रहे हो? प्ल्ज़ तुम इन सब महेंगी चीज़ो को यूँ फैको मत तुम्हारी मेहनत के पैसो से तुमने ये खरीदा है सिर्फ़ एक ग़लत औरत के लिए तुम ये सब इस घर से फैक कर क्या साबित करना चाहते हो? जाने दो जो चली गयी सो चली गयी और तुम्ही तो कहते होना बीते कल को याद करके पछताने के अलावा कुछ नही मिलता

आदम खामोश हो गया.....तपोती ने उन जेवरो और साड़ी को देखा....तो एक पल को आदम उसे उन चीज़ों को अपने हाथो में देखा....आदम ने मुस्कुराया और फिर कहा "आजसे ये सब तुम्हारा"......

."न.नहिी नहिी मैं कैसे? मैं ये सब नही ले सकती".........

"देखो माँ तो हरगिज़ उसकी चीज़ों को छूना नही चाहती और ये सब काफ़ी कॉस्ट्ली है सिर्फ़ एक चीज़ नही मेक अप का सामान साड़ी
शृंगार जेवर सबकुछ है तुम चाहो तो ये सब रख लो"........

...तपोती इनकारी में झिझकते हुए सर ना में हिलाया

आदम : आख़िर क्यूँ?

तपोती : क्यूंकी मेरा क्या हक़ बनता है इन सब चीज़ो पर? मैं ठहरी एक ग़रीब घर से आई और मैं इन सब चीज़ो का क्या करूँगी?

आदम : कोई ना नुकुर नही अब जब तुमने कहा है कि इन्हें ना फैको तो फिर इसे तुम्हें ही रखना होगा ये ना सोचना कि उत्तरन है ये सोचो की इस कमरे के साथ साथ आजसे ये चीज़ें भी तुम्हारी है
 
तपोती : प..पर अगर अंजुम काकी को मालूम चला तो वो गुस्सा करेंगी शायद उन्हें बुरा लगे

आदम : तुम फिकर मत करो माँ नाराज़ नही होंगी ठीक है चलो मैं जा रहा हूँ सोने कल जल्दी उठना भी है ओके तुम भी सो जाओ

आदम मुस्कुराता हुआ कमरे से बाहर जा ही रहा था कि इतने में तपोती ने उसे आवाज़ दी...."जी सुनिए"......

.आदम रूक्के उसकी तरफ मुड़ा..."क्या हुआ तपोती?"..........

."शुक्रिया".......मन ही मन जैसे तपोती ने मुस्कुराते हुए आदम की ओर शरमाते हुए कहा....

.आदम मुस्कुरा के उसे आँख मारते हुए बोला "हे परिवार में नो थॅंक्स नो सॉरी आंड डॉन'ट क्राइ अगेन बिकॉज़ आइ हेट टेआर्स ....

..तपोती खिलखिलाए हंस पड़ी.....आदम खुश हुआ चलो आज ही सही उसने अपनी खुशी तो अपने चेहरे पे ज़ाहिर की....सोचते हुए आदम निकल गया...

तपोती उन गहनो और सामानो को देखके मन ही मन सोच रही थी कि कितनी भाग्यशाली थी? जिसे आदम का साथ मिला? पर कैसी औरत जिसने नाजायेज़ रिश्ते के लिए देवता जैसे ऐसे इंसान को छोड़ दिया....उसे यकीन नही हो रहा था कि पूरा वॉर्डरोब का भरा हुआ सामान उसका था.....फिर भी दिल में उसके एक झिझक सी थी...

ये दृश्य किसी और ने भी देखा था...अंजुम ये सब देख चुकी थी...वो अपने कमरे में बैठी जैसे चुपचाप आदम के बदलते बर्ताव को तस्सवर
कर रही थी...इतने में आदम मुस्कुराए बिस्तर पे चढ़ते हुए माँ के गले लगे से लिपट गया...

आदम : ओह्ह अंजुम सोई नही तुम अभीतक? (अंजुम के गालो पे एक चुम्मा लेते हुए)

अंजुम : सो जाती लेकिन तू कमरे में आया नही था तो इसलिए

आदम : अच्छा तो मतलब अपने मर्द का इन्तिजार हो राह है (आदम खिलखिलाए हँस पड़ा तो अंजुम ने उसके गाल पे एक चपात लगाई)
 
अंजुम : हट बदमाश देख रही हूँ जबसे तपोती को तू इस घर में लाया है आजकल बड़ा खुश रहता है चहेकता रहता है क्या वजह है?

आदम : क.कुछ भी तो नही

अंजुम : अच्छा जी कभी घूमना फिराना तो कभी इनकारीयत के बाद भी मांयूस होना देख तेरी माँ हूँ तेरे दिल को मैं पढ़ सकती हूँ आज तूने निशा की चीज़ें उसे सौंपी

आदम जैसे सकपका सा गया वो हड़बड़ाते घबराते हुए सहमते हुए माँ की तरफ खामोशी से देखने लगा...

अंजुम : क्या हुआ जवाब नही दे रहा तू?

आदम : म..माँ वो दर..असल म..मैने सो..चा था कि निशा के सामान को फ़ैक् दूं पर तपोती ने उन सामानो को देख लिया और मुझे मना करने लगी की इतने पैसे लगाए है इतने अमानत भरे दिल से तुमने ये सब चीज़ें खरीदी किसी के लिए तुम यूँ इन्हें क्यूँ फैक रहे हो? तो बस उसे दे दिया

अंजुम : तुझे डरने की ज़रूरत नही मैने क्या इससे इनकार किया था कभी?

आदम : बस मुझे लगा आप कही नाराज़ ना हो जाओ तो

अंजुम : ऐसा नही है जबसे वो इस घर में आई है एक रौनक सी लौट आई है....वरना तो जैसे इस घर में इतनी ज़्यादा खुशहाली पहले कभी थी
ही नही देख रही हूँ तेरा काम में मन भी लगता है और तू जिन्दादिल और खुश रहता है..

आदम : जाने दो माँ खुश तो मैं तबसे हूँ जबसे तू मेरी ज़िंदगी में मेरी पत्नी के दर्ज़े से आई

अंजुम : अच्छा जी अब तपोती के बाद मुझसे फ्लर्ट कर रहा है (बेटे के कान को खीचते हुए)

आदम : अरे माँ कान छोड़ो सस्स आहह (अंजुम के कान छोड़ते ही आदम ने दर्द से सिसकी ली)
 
फिर दोनो हंस पड़े आदम ने अपना सर माँ की गोद में रख दिया....और माँ से कहा कि उसे नये कपड़े दिला दे...उसने गौर किया कि उसके पास कुछ कपड़ों की जोड़ी छोड़के ज़्यादा कुछ नही है...वो नही चाहता कि वो ऐसे बनके रहे....

.अंजुम ने कहा कि मानेगी वो?.......

आदम ने कहा क्यूँ नही मानेगी? तुम कल उसके साथ जा रही हो ना तो उसे ढंग के कपड़े दिला देना वैसे भी ना नुकुर नही करेगी जो दिलाओगे वहीं पहन लेगी खुशी खुशी....

अंजुम : एक बात कहूँ बेटा ?(आदम के बालों को सहलाते हुए)

आदम : हां माँ कहो

अंजुम : पैसो की बड़ी क़दर है उसे अगर दिल में मेल होता तो तुझे खुद ब खुद अपनी इच्छा जताती कि वो सब मुझे दे दो....लेकिन वो बहुत ईमानदार के साथ तहज़ीबदार भी है

आदम : हां माँ सो तो है

अंजुम : कही तू उससे प्यार तो!

आदम उठके माँ की ओर देखने लगा हैरत से....माँ भी उसे देख रही थी....दोनो कुछ देर खामोश रहे तो आदम हंस पड़ा जैसे अपने झूठ को छुपाने की कोशिश हो...

आदम : माँ क्या तुझे ऐसा लगता है? भला मैं उससे क्यूँ?

अंजुम : क्यूंकी वो चंपा जैसी !

आदम : नही माँ मैं एक कुँवारी लड़की के साथ कैसे दिल लगा सकता हूँ जब कि मेरी ऑलरेडी तुझसे शादी हो चुकी और तू ही तो अब मेरी बीवी है मेरी सबकुछ है

अंजुम : फिर भी
 
आदम : देख माँ उसे नही मालूम कि हम दोनो का क्या रिश्ता है? और ना मालूम कभी तू चलने देना और मुझे नही लगता कि उसे मुझसे कोई प्यार है शायद वो एक मुझे एक गहरा दोस्त मानती हो....

अंजुम : लेकिन भाई भी तो नही मानती....तुम एक घर के नीचे रह रहे हो....उसने कभी भी तुझे भाई तक कहा हाहाहा नही देख औरत कभी पहेल नही करती की उसके दिल में क्या है? क्या मालूम की जो मैं सोच रही हो वो उसके दिल में हो और तुझसे कह ना पा रही हो

आदम : माँ तू ये बात कह रही है तेरा और मेरा रिश्ता तू जानती नही? कि एक पति पत्नी का रिश्ता है...मैने तुझसे निक़ाह किया है और अब ऐसा क्यूँ कह रही है? अगर दिल में फीलिंग है तो मैं एक शादी शुदा मर्द हूँ कोई औरत दो ब्याहे से शादी नही करती और माँ मैं तेरे इज़ाज़त के बिना किसी से दिल भी नही लगा सकता

अंजुम ने मुस्कुराया और आदम के चेहरे को सहलाया और उससे कहा कि उनका संबंध तो अटूट है लेकिन तपोती के दिल में अगर कुछ ऐसा है तो उसे नज़रअंदाज़ भी तो नही किया जा सकता..

..आदम एकटक माँ की ओर गौर से देखने लगा.

.."हो सकता है मैं ग़लत भी हूँ या उसके दिल में ऐसे कोई फीलिंग्स ना हो..क्यूंकी मैं नही चाहती कि उसे ऐसा लगे कि मैं ऐसा कुछ सोच रही हूँ".........

.."हां माँ उसकी तरफ से पहेल ज़रूरी है कि वो मुझसे प्यार करती है कि नही पर मैं उसका हाथ नही थाम सकता कितनी भी हो मैं उसकी ज़िंदगी अपने चलते खराब नही करूँगा उसे किसी काबिल बना दूँगा ताकि वो अपनी ज़िंदगी को हँसी खुशी जिए".........

..माँ ने मुस्कुरा कर बेटे को अपने गले लगाया

लेकिन अंजुम का दिल जानता था कि आदम मन ही मन तपोती को चाह बैठा था.....उधर गले मिलते ही जैसे आदम अपने ज़ज़्बातो पे काबू पा रहा था...कैसे कह देता माँ को? कि हालात तो कुछ ऐसे ही थे जहाँ वो हां तक नही कह सकता था? तपोती को सबकुछ तो मालूम था ही....क्या मालूम वो कभी पहेल ही ना करे ये जानते हुए की आदम और उसकी माँ का क्या संबंध था

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रात साडे बारह बज चुके थे....तपोती को अहसास हुआ जैसे उसके बिस्तर पे कोई चढ़ता हुआ उसके करीब उसके गालों पे अपनी उंगलिया सहला रहा है....तपोती कसमसाई और उसने आँखे खोली तो पाया कि आदम मुस्कुराए उसे देख रहा है....तपोती उसे देखके जैसे सहम उठी उसकी साँसें तेज़ चलने लगी....वो कुछ कह पाती इससे पहले आदम ने उसके होंठो पे उंगली रख दी...

और धीरे धीरे मुस्कुराते हुए उसके स्तनों के उपरी भाग को चूमते हुए उसके कपड़ों को हटाता उसकी नाभि पे अपनी ज़ुबान डालने लगा....ना चाहते हुए भी तपोती उसे रोक ना पा रही थी....फिर अचानक आदम ने उसके प्यज़ामे को कस कर उसके बदन से अलग किया और ठीक
उसी पल जैसे ही वो अपना चेहरा तपोती के टाँगों के बीच तलपेट को चूमते हुए लाने लगा....तो तपोती ने उसका सर पकड़ा और उसे खुद से दूर धकेल दिया...


"अद्दंम प्लज़्ज़्ज़"......एकदम से तपोती को होश आया और वो उठ बैठी...उसका पूरा बदन पसीने पसीने हो रहा था....उसे अहसास हुआ कि खिड़की के खुलने से पर्दे हवा से उड़ रहे थे..."अफ तो ये एक सपना था".......अपने उपर काबू पाए तपोती ने जब चादर हटाई तो उसे हैरत
लगा उसका पाजामा उसकी घुटनो तक था....वो फिर मुस्कुराइ कि शायद ये उसका ख्वाब था....जिसमें उसने ऐसी हरकत खुद पे खुद की.....अचानक उसे अहसास हुआ की वो आदम के बारे में कुछ ज़्यादा सोचने लगी है...

उसने उठके आयने के पास अपने आप को निहारा...."क्या कमी थी उसमें? जब उसने पहली बार आदम को देखा...और आदम ने उसे".......जब उसने धोके में ही सही उसका नाम चंपा पुकारा....अगर उसकी बहन की तरह वो भी साज़ सिंगार कर ले तो उसी की तरह दिखती उसे अहसास हुआ की आदम दिल ही दिल में कितना उसकी बहन को चाहता था...तपोती भी तो उसी की तरह दिखती थी...एक बार मुस्कुराए उसने खामोशी से अपने दिल को झिंजोड़ा

"ये क्या हरकत है तपोती? तुझे जिसने पनाह दी तू उसे अपने बिस्तर पे भी तस्सवुर कर रही है ये जानते हुए कि उसे तेरी बहन से मुहब्बत था तुझसे नही और आख़िर वो एक शादी शुदा है क्या सोचेगा जब उसे मालूम चलेगा? नही ये हसरत तेरी ठीक नही है तपोती ग़लत कर रही
है ग़लत....पर कैसे करू कैसे मिटाऊ अपने दिलो दिमाग़ पे हावी आदम को क्यूँ वो बार बार जैसे मेरे ज़हन में उतर रहा है? क्या ये सब मुहब्बत की निशानी है?"........धीरे धीरे जैसे बड़बड़ाते हुए तपोती खुद से बात कर रही थी...

उसने सोच तोड़ते हुए पास रखा जग उठाया तो उसे भरने के इरादे से बाहर आई....वो अपने कशमकश की उलझानो में ही थी कि इतने में उसने पाया कि आदम के पिता अपने कमरे में खर्राटे भरके सो रहे है....और आदम और उसकी माँ दूसरे कमरे में क्यूंकी दरवाजे के बाहर
दोनो के चप्पल मज़ूद थे.....अंदर ही अंदर जैसे तपोती शरमा गयी उसने कदम वापिस उल्टे कमरे की तरफ किए ही थे अपने.....कि इतने में ना जाने क्यूँ वो दबे पाओ फिर एक बार खिड़की से अंदर झाकने की कोशिश कर रही थी..
 
अंदर लॅंप की रोशनी जल रही थी....और जो नज़ारा चल रहा था उसे देख एक पल को आँखे बड़ी किए तपोती बड़े गौर से देखने लगी....

तपोती बाहर खड़ी हुई कमरे के अंदर हो रही सभी हरकतों को बड़े गौर से देख रही थी.....क्यूंकी कमरे के भीतर लॅंप की रोशनी में माँ-बेटे के बीच एक अलग ही बर्ताव हो रहा था....जिसमें कही से भी उस महसूस नही हो रहा था कि अंजुम आदम की माँ थी...या आदम उसका बेटा...वो दोनो तो किसी मिया बीवी की तरह एकदुसरे से शरारत और छेड़ छाड़ कर रहे थे...इतने में आदम ने माँ की नाइटी को उसकी टाँगों से लपेटते हुए उपर उठाए उसकी गर्दनो में फँसा दिया...

अंजुम ने अंदर कुछ नही पहना था....उसकी कुतिया की मुद्रा में आते ही उसके कठोर निपल्स छातियो के साथ लटक गये.....और उसकी दोनो घुटने मॉड्कर टाँगो को थोड़ा फैलाने से गुदा क्षेत्र दिखने लगा...इतने आदम ने हाथ ले जाके माँ की चुचियो को नीचे से थाम लिया....

और उन्हें कस कस कर दबाने लगा.....उसने माँ के दोनो खरबूजो को काफ़ी ज़ोर ज़ोर से दबाया जिससे माँ कामुकता में सिसकिया भरने लगी.....आदम ने मुस्कुराते हुए उसकी चुचियो को निपल सहित खूब मसल और खीचा ताकि अंजुम गरम हो सके....

उसने . को अपने पंजो से जैसे कस कर पकड़ लिया...आदम ने पास रखा कॉंडम उठाया और उसे फाड़ते हुए अपने खड़े नाग से फुन्कार्ते लौडे पे चढ़ाया.....तपोती का तो जैसे पसीना छूटने लगा आधा भरा पानी का ग्लास हाथो से फिसल ही जाता जब उसने आदम को अपने मोटा लंड सहलाते हुए माँ की गुदाज़ गान्ड के फांको में रगड़ते देखा...

इस बीच तपोती ने ग्लास एक साइड रख दिया....और बड़े गौर से उस दृश्य को देखने लगी...इस बीच आदम ने अपने खड़े लंड को हाथो में जैसे उपर नीचे झुलाया और माँ के गान्ड पे मारने लगा...इससे माँ के कुल्हो से लगते ही माँ आहह भर उठी...

"माँ लगता है आज तुझे अपने गान्ड की गहराईयो में इसे लेने की तलब उठ रही है".........आदम ने अपनी माँ से कहा जो पीछे सर घूमाकर उसकी तरफ मुस्कुरा रही थी....जैसे इन्तिजार में हो की कब वो उसके गुदा द्वार में अपना लंड प्रवेश करे...

"हां बेटा आज तू मुझे पीछे से कर...तूने तो उस छेद को भी खोल दिया है अब डाल दे".....इतना कहते हुए माँ ने अपनी कुल्हो को ढीला छोड़ा और सर सीधा किया....

आदम : जैसी तेरी इच्छा माँ

आदम ने इतना कहा और अपना कॉंडम चढ़ा लंड उसकी गान्ड की फांको में घिस्सते हुए एक ही बार में अंदर तक सरका दिया...ये दृश्य देख तपोती थूक घोटने लगी उसने सॉफ देखा कि अंजुम का छेद कितना चौड़ा हो गया था और कैसे उसने अपने बेटे के इतने मोटे सॉलिड लंड को अपने अंदर इतनी गहराई तक ले लिया था....इस बीच अंजुम के चेहरे पे उसे एक बार भी दर्द के भाव ना दिखे...

जब बाहर सिर्फ़ अंडकोष लटके रह गये और जड़ तक आदम ने अपना लंड अंदर घुसाया तो अंजुम ने उसे धक्के लगाने कहा....आदम ने मज़बूती से दोनो नितंबो को दबोचा और कस कर एक करारा धक्का गहराई तक दे मारा....जिससे अंजुम के नितंब अंडकोषो से टकराते ही बाउन्स हो गये....

अंजुमम : उईईईईईईई सस्स उ आहह आहह आहह स आहह (माँ का मीठा मीठा दर्द देख तपोती शरमाई)

आदम ने अब ताबड़तोड़ धक्के पेलने शुरू किए...उसका लंड सतसट छेद से अंदर बाहर हो रहा था...वो इतने करार और कस कर धक्के कुल्हो को भीच भीच के मार रहा था कि ऐसा लग रहा था जैसे कोई मशीन हो...जिसका ड्रिलर गहराइयो तक गड्ढा करे वापिस निकल रहा है और धँस रहा है...
 
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