Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत - Page 31 - SexBaba
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Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत

इस बीच अंजुम की आहों की आवाज़ें तेज़ हो गयी....वो अब एकदम कामवासना में डूबी हुई थी उसकी आँखो में चुदाई का सुख प्राप्त करने की जैसे लालसा दिख रही थी.....आदम ने इतनी गहराई तक लंड को गान्ड में डालते हुए उसके उपर जैसे पेट के बल लेट गया....अंजुम अपने उपर बेटे के भार को महसूस करते ही मुस्कुराने लगी उसके दोनो हाथ जो सीधे थे वो अब काँपने लगे.....गहराई तक बेटे का लॉडा उसे गढ़ रहा था...

उसने फिर आदम को उठने का इशारा किया और आदम ने उसके बालों को समेटते हुए....10-15 धक्के और मारे....इस बीच वो एक बार भी ना रुका और माँ अपनी चौड़ी हुई छेद की गहराईयो में बेटे के लंड को अंदर बाहर होते महसूस कर रही थी....वो बस दबी दबी आवाज़ में सिसक रही थी....और जब उससे लंड की घिसाई सही ना गयी तो उसने बेटे को कस कर पीछे से पकड़ लिया...बेटे ने उसे सीधा लेटा दिया और उस पर जैसे सवार हो गया..

वो माँ के कुल्हो पे अपने अंडकोषो को सटाये दाब दाब के उसकी गान्ड चुदाई कर रहा था....ठप्प ठप्प की आवाज़ उसके अंडकोष कुल्हो से टकराते हुए निकल रही थी....कमरे का माहौल एकदम गरम था....इस बीच तपोती को अहसास हुआ कि उसके टाँगों के बीच कुछ खुजली सा उसे महसूस हो रहा है...

एका एक उसके हाथो ने अपने पाजामा की डोरी खोली और सीधा एक हाथ अंदर घुसाके अपने गुप्तांगो को सहलाया....उसे अपनी चूत में अज़ीब सा चिपचिपापन लगा...जो शायद आदम और उसकी माँ के बीच चुदाई देखके हुआ था....

वो गुलाबी आँखो गहरी साँस भरे चुपचाप अंदर देखें जा रही थी....आदम ने बालों को समेटे माँ के नितंबो को कस कस कर थप्पड़ मारते भीचते हुए ज़ोरो से गान्ड में धक्के मारे....."आअहह आहह आहह आहह आहह सस्स आहह".....अपनी आँखो को कस कर दबाए हुए जैसे अब अंजुम को दर्द सा लग रहा था....इतनी कस कर रफ़्तार में आदम उसकी चुदाई कर रहा था कि अगर कोई लड़की होती तो ना जाने अब तक तो उसने हथ्यार डाल दिए होते....लेकिन ये अधेड़ उमर की थी और इसने पहले भी अपने भीतर अपने बेटे का लंड लिया था.....किसी पेशेवर चुड़दकड़ की तरह दर्द को बर्दाश्त किए अंजुम चुदे जा रही थी....

जब आदम से अब और सवर् ना हुआ तो उसने गान्ड की गहराइयो से अपना लंड बाहर खीचा...और जब छेद से लंड बाहर निकाला तो वो एकदम ओ शेप में काफ़ी खुल चुका था जो नाकामयाबी से सिकुड़ने की बस चारो ओर से कोशिश कर रहा था...इस नज़ारे को देख तपोती के हाथ अपने गुप्तांगो को काफ़ी ज़ोर ज़ोर से मसल्ने लगे....इस बीच जैसे उसे अपने टाँगों में कपकपाहट सी उठी...और फिर उसने अपने चीख को जैसे तैसे रोका....

जब वो शांत हुई तब उसे अहसास हुआ कि उसने ये क्या किया...उसने जब पाजामे से हाथ बाहर निकाला तो उस पर कुछ गीला और पहले से ज़्यादा चिपचिपा रस सा लगा हुआ था जिससे अज़ीब सी गंध आ रही थी...तपोती शिथिल सी पड़ गयी और उसकी टांगे भी अब दुखने लगी थी....वो वापिस अपने कमरे में लौटी...और अपने पाजामे को उतार पैंटी सहित बाथरूम में जाके उसने पेशाब की एक मोटी धार छोड़ी..
 
उसके बाद उसने भर पानी मग से अपने गुप्तांगो को धोया फिर उठ कर एक नया पाजामा डाला...उसने इस बार पैंटी नही डाली....उसने फर्श पे पड़े पाजामे को उठाया और देखा कि उसमें काफ़ी हदतक रस लगा हुआ था..उसने पैंटी और पाजामे दोनो को बाथरूम में फैका उसमें एक मग पानी डाला और वापिस कमरे में आके बिस्तर पे बेसूध लेट गयी...ऐसा लग रहा था जैसे उसने कभी ये अहसास नही किया था....उसके आँखो में शीतिल होने से नींद आने लगी थी....वो आँखे मुन्दे ही सो गयी....

उधर अंजुम ने अपनी टांगे खोल दी तो बारी बारी से पाओ की हर उंगलियो को चुसते और चाटते हुए आदम ने मुस्कुराते अपना मुँह माँ के गुप्तांगो के बीच रखा और वहाँ मुँह घिसा...उसने बीच बीच में ज़ुबान से चूत को चाटना भी शुरू कर दिया....जिससे अंजुम अपनी टाँगों को उसके पीठ पर रगड़ने लगी....जैसे चूत की खुजली अब उसे परेशान कर रही थी...आदम ने चूत को बहुत प्यार से और सख्ती से गहराई तक चूसा और चाटा....इससे कुछ ही देर में माँ ने अपना पानी छोड़ दिया...

उसकी चूत पे हाथ मलते हुए आदम ने उसे झड़ने दिया..उसके बाद अपनी तीसरी लंबी उंगली उसके चूत के छेद के हिस्सो में डाली..उंगली अंदर बाहर आराम से होने लगी...तो आदम ने तब तक छेद को भी मूह में लेके चूसा और खूब चाटा....अंजुम ने दोनो पाओ एक दम फैला लिए....

आदम ने चूत को बारीक़ी से चाटते चाटते हुए उस पर ढेर सारा थूक मला और उसे मुट्ठी में लेके दबोचा...माँ गुदगुदी से खिलखिलाके हंस पड़ी...आदम उठा और उसने बिना परवाह किए माँ की चूत में अपना लंड एक ही बार में अंदर तक डाल दिया...जिससे चूत ने अपने आप लंड को अपने गहराई में ले लिया...और फिर फटी चूत ने आराम से पूरे लंड को घप्प से अपने अंदर जैसे समा लिया....

आदम : तेरी चूत की दीवारें जैसे मेरे लंड को भीच रही है माँ

अंजुम : स्शह मार धक्के

माँ की आदत थी चुदाई के वक़्त उसे बात करना पसंद नही था...उस वक़्त वो अपने आपे में नही होती थी उस वक़्त सिर्फ़ उसे चुदाई ही करने में ध्यान होता था...आदम ने माँ का आदेश का पालन किया और करारा एक धक्का बच्चेदानी तक घुसा डाला....चूत जैसे बुरी तरीके से लंड को जकड़े हुई थी...

आदम ने माँ की छातियो पे अपना मुँह लगाया और उन्हें मुँह में लेके बारी बारी से चुसते हुए अपने कुल्हो को उपर नीचे हिलाना शुरू किया....माँ को बेटे का लंड अपने बच्चेदानी तक छूता महसूस हो रहा था....उसने चूत वैसी ढीली छोड़ी तो आदम ने धक्के चिकनाई से और कस्स कस कर मारने शुरू कर दिए....अंजुम हर घुसा का आनंद ले रही थी वो बेटे के मुँह में अपनी छातिया देके जैसे उसे चुदाई और तेज़ी से करने के लिए उकसा रही थी....

आदम चुचियो को चुसते हुए माँ की चूत फाडे जा रहा था...उसने बुरी तरीके से धक्के लगाने शुरू किए...तो माँ ने उसे कस कर जकड लिया और फिर कुछ पॅलो बाद ढीली पड़ गयी.....आदम ने फिर उसके ढीले पड़ते ही धक्के तेज़ लगाने शुरू किए...और उसके उपर नीचे होने लगा...इस बीच आदम को अहसास हुआ कि अब उसका आने वाला है तो....वो माँ की चूत में लगातार धक्के पेलते हुए दहाड़ ने लगा....

माँ ने उसी बीच उसे अपने से दूर किया तो उसका लंड पच की आवाज़ किए उसकी चूत के बीच से निकला फिर आदम ने कॉंडम को चुटकी से लंड से निकाल फैका और उसके चेहरे के पास अपना लंड ला मसल्ने लगा.....अंजुम जानती थी कि बेटे ने उसे दो बार ऐसे मुँह पे अपना माल गिरा दिया था....

उसने अपना मुँह खोला तो उसे अपने बेटे के झरने का अहसास हुआ उसका शरीर अकडा और वीर्य की पिचकिया निकलते हुए उसके गाल गले और बालों पे लग गयी जो बूँदें उसके मुँह में पड़ी उसके नमकीन स्वाद को उसने चाट लिया और फिर अपने उंगली से गाल और बालों पे लगे वीर्य को पोंच्छा....आदम उसकी बगल में ही ढेर होके गिर पड़ा दोनो ने एकदुसरे के होंठो को कस कर थोड़े देर चूमा और उसके बाद दोनो एकदुसरे से अलग हुए अपनी उखड़ती साँसों पे काबू पाने लगे..

"अफ माँ अफ जान निकाल दी तूने आज हहहा".....आदम हांफता संतुष्टि भरे भाव से कहता है

"और तूने? मेरा सारा चेहरा गंदा कर दिया इस्स्श".......बेटे के चिपचिपे वीर्य को अपने चेहरे से सॉफ करते हुए...

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कुछ देर बाद दोनो एकदुसरे की बाहों में सिमटे हुए थे.....लाइट चली गयी थी इसलिए अंजुम अपने बेटे को अपने नंगे बदन से लिप्टाये पंखा कर रही थी उसे....दोनो की आँखे जैसे बुझी बुझी सी थी...आदम माँ की नाभि से खेल रहा था उसके इर्द गिर्द उंगली चला रहा था....

अंजुम : आदम आगे चलके तपोती को तू इस घर में क्या दर्ज़ा देगा?

आदम : मतलब माँ आप कहना चाहती हो कि वो इस घर में किस हैसियत से रहेगी?

अंजुम : हां सोसाइटी वाले घरवाले अगर कभी पूछे तो उसे क्या बताएगा ना मैं चाहूँगी कि कोई उसे हमारे घर की मैड समझे या फिर तेरी बहन क्यूंकी तू अच्छे से जानता है कि तेरा उसके साथ भाई-बहन वाला रिश्ता नही

आदम : हां माँ सोच तो कुछ ऐसा ही रहा हूँ ये उसी पे डिपेंड करता है कि उसके दिल में क्या है कि वो इस घर में अपनी सारी ज़िंदगी गुज़ारना चाहती है या फिर? कुछ काबिल बनके किसी को पसंद करके किसी के साथ शादी!

अंजुम ने कोई जवाब नही दिया...जो बात मुमकिन नही थी उस पर आदम कह रहा था....आदम जानता था उस जैसे दो ब्याहे लड़के के साथ कैसे वो शादी कर सकती थी? ऊपर से उसे आदम के सारे नाजायेज़ संबंधो के बारे मे मालूम था यहाँ तक उसने रूपाली भाभी की गोद में देखे खुद उसके बेटे राहिल को देखा था जिसका वो बाइयोलॉजिकल फादर था....उसने खुद बताया था रेस्टोरेंट में कि वो तबस्सुम दीदी नाम की अपनी बुआ की बहन की ग्रहस्थी को उजाड़ने से भी बचाया था उसे माँ बनाके...

यहाँ तक उसे मालूम था कि माँ और उसका बीच व्याबचारी रिश्ता है दोनो ने शादी तक गोपनीय कर रखी है...जो सिवाय लाजो और उसको छोड़ किसी को मालूम नही....सब जानते सुनते हुए जैसे आदम को लगा कि शायद वो उसका हाथ कभी ना थामें....
 
अगले दिन जब आदम की नींद खुली तो रोज़ मरहा की तरह वो उठके टेबल पे रखी चाई जो अभी अभी कोई छोड़ गया था उसे आवाज़ लगाए वो पीने लगा फिर ब्रश नहा धोके अपने कमरे से बाहर आया.....उसने पाया कि तपोती घर के कामो में उलझी हुई है....अंजुम ने मुस्कुरा कर उसके सामने नाश्ता रखा आदम मुस्कुराते हुए बैठके नाश्ता करने लगा....

"लाजो वो सारे कपड़े इकहट्टे करके कमरो से वॉशिंग मशीन में डाल आ".........लाजो जो झाड़ू लगाए सामने उपस्थित हुई उसे माँ ने आदेश दिया

लाजो सबके कमरे से कपड़े इकहट्टे किए वॉशिंग मशीन में डालने लगी इतने में लाजो तपोती के कमरे में गयी और वहाँ से उसके कपड़े उठाए उसने पाया कि उसकी पैंटी और पाजामा वो दूसरे हाथो में लिए आई.....तो मैने लाजो को बाथरूम में थामा....

"अरे लाजो ये पैंटी और पाजामा गीला कैसे?"..........

."ओह तभी सोचु आप हमरे पीछे पीछे बाथरूम में क्या करने आए?"..........

."दे तो सही".........

."लीजिए आपकी रिश्तेदारन की पैंटी गीली क्यूँ है जान लीजिए".......उसने मुस्कुराए उंगली दोनो दांतो के बीच रखके मुझे देखा


मैने सॉफ पाया पैंटी से गंध आ रही थी और ये गंध औरत की चूत से निकले वीर्य का था उफ्फ उसकी गंध को सूंघ मैने उसे वापिस लाजो के हाथो में वो पैंटी तमाम दी

लाजो : सूंघ लिए छी छी (लाजो मुँह पे हाथ रखके हँसने लगी)

आदम : हाहाहा सस्स ह्म

लाजो : लगता है बहुत पहुचि हुई है स्वपन दोष का मामला है या फिर उंगली करने का

आदम : सस्सह माँ सुन लेगी तू एक काम इसे इकट्ठा ना धो

लाजो : ठीक है आदम बाबू

लाजो पाजामा और पैंटी एक ओर किए वॉशिंग मशीन में सारे कल के कपड़े डालने लगी तो इतने में मैं बाथरूम से निकला तो माँ ने मुझे नोटीस नही किया मैं वापिस डाइनिंग टेबल पे बैठ गया.....तपोती जब बाहर लौटी तो उसने लाजो को आवाज़ दी माँ ने बताया कि तुमने उसे कपड़े नही दिए क्या? वो सारे कपड़े धोने गयी है

तो जैसे वो पीछे पीछे लाजो के भागके पास आई....फिर उसके बाद बाहर आई उसके हाथ में वहीं पैंटी और पाजामा था....माँ ने उससे पूछा कि ये क्या? तुम ये कपड़े बाहर क्यूँ ले आई अपने? धोने दो लाजो को

तो उसने ये कह कर टाल दिया कि ये कपड़े गंदे है वो धो लेगी और (उसने मेरे सामने माँ को लज्जा से जैसे मेरी उपस्थिति में आधी अधूरी बात जैसे कही) और अपने कपड़ों को लिए कमरे में चली गयी

आदम : क्या हुआ माँ?
 
अंजुम : शरमा रही है तुझसे कहने में इसलिए हिचकिचाई शायद मांसिक आया होगा इसलिए अपने कपड़े नही धूलवाना चाह रही हो

आदम : ओह अच्छा

मैं फारिग हुआ घर से निकलके अपनी गाड़ी में बैठ ही रहा था कि देखा की उपर रस्सियो पे तपोती कपड़े डालते हुए मुझे देखके बाइ कर रही थी...मैं मुस्कुराया उसे बाइ कहा और अपनी गाड़ी में सवार हुए निकल गया....जब तक गाड़ी घर से दूर ना निकल गयी तब तक पीछे मूड कर देखता रहा वो आँगन में खड़ी मेरी ही दूर जाती गाड़ी को देखें जा रही थी....ऐसा लगा जैसे दिल में यक़ीनन उसके कुछ ना कुछ हो

तपोती ने उस रात की तरह केयी दफ़ा आदम और अंजुम को संबंध बनाते चुदाई करते कमरे में देखा था....जिस वजह से वो खुद पे काबू ना कर पाती थी....देखने के बाद भी बार बार वो तस्सवुर करने लग जाती और उसके हाथ अपने टाँगों के बीच पाजामे की डोरी को खोलते हुए हाथ चले जाते...और अपने गुप्तांगो को जब तक पूरी तरीके से कुछ देर तक रगड़ ना देती तो उसे जैसे चैन नही मिलता था...

यही वजह था कि धीरे धीरे तपोती के मन में कामवासना फूटने लगी और वो उसी में आनंद प्राप्त करने लगी...लेकिन अपनी योनि से निकलता चिपचिपा पानी का अहसास उसे अपने हाथ में होता तो जैसे उसे काफ़ी अज़ीब लगता था....कयि दफ़ा तो आदम के लिंग को ही सोचते सोचते वो स्वपन दोष की शिकार भी हो जाया करती थी जब सुबह उठती तो उसकी पैंटी बेहद गीली होती थी

धीरे धीरे तपोती खुद के मन में उमड़ रही कामवासना को समझना शुरू कर चुकी थी....ऐसा लग रहा था कि अब वो इतने सालो तक भोलेपन में थी पर अब उसे अपने भीतर हवस भरी आग सिमटती हुई दिख रही थी जो निकलना चाह रही थी....कयि बार तो तपोती दरवाजा लगाए ही अपने पाजामे को पैरो तक उतारे बिस्तर पे टांगे फैलाए वैसे ही क्लाइटॉरिस को अपने खूब सहलाती थी और कयि दफ़ा तो उंगली भी किया करती थी जब तक उसकी योनि फिरसे गाढ़ा चिपचिपा रस ना छोड़ दे...उसके बाद ही वो शिथिल पड़ जाती थी...


इस बीच आदम के घर में उसे रहते रहते कयि दिन हो गये थे....माँ ने उसे कयि बार अपने साथ सबज़िमंडी और मार्केट में खरीदारी के लिए लेके जाने लगी....अंजुम के साथ रहते रहते उसे भी सब्ज़ियो और सामानो का मोल भाव करना आ गया था....अंजुम को खुशी हो रही थी कि औरत की हर ज़िम्मेदारी में तपोती काफ़ी निपुण हो गयी थी....

कयि बार तो तपोती ने अकेले जाने का भी फ़ैसला कर लिया और वो कभी कभी तो जब अंजुम को कमर दर्द सताता तो उसे डॉक्टर के यहाँ भी ले जाती...अंजुम को उसके घर आने से खूब आराम मिल रहा था वो उसकी पीठ से लेके नितंबो के सिरे तक मांलीश किया कर देती थी....जिससे अंजुम को काफ़ी आराम मिलता था...वो मन ही मन सोचती कि काश ऐसी हमारी घर की बहू होती लेकिन क्या फ़ायदा? आदम तो अपनी माँ का दीवाना है और भला वो पहेल करे उसका तो सॉफ कहना था कि वो अपने किए के चलते तपोती से शादी नही कर सकता था..बस यही सोचके अंजुम मांयूस हो जाती

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उस दिन अंजुम बाहर गयी हुई थी अपने रिश्तेदारो से मिलने पति के साथ...तो घर की देख रेख में तपोती घर में थी.....साथ में लाजो भी थी....लाजो बर्तन धो रही थी तो तपोती खाना बना रही थी....लाजो उसे देख देखके मुस्कुरा रही थी....क्यूंकी लाजो वाहियात औरत थी वो हर लड़की के फिगर को बहुत ज़्यादा घूर्रती थी किसकी कितनी भारी छातिया है? किसकी कितना पीछे से कूल्हे उठे हुए है? क्या वो चुदवाति है या फिर अब तक कोरी है? इन सब की उसे अच्छी ख़ासी जानकारी थी...उस वक़्त भी तपोती के उपर उसकी कुछ ऐसी निगाह थी....उसे लगा था क्या पता उसके आदम बाबू ने उसकी चूत भी ठोक दी हो...यही जानने के उत्सुकतावश उसने बात छेड़ी...

लाजो : हाए रे तपोती तुम्हारे कूल्हे कितने मोटे मोटे और उठे हुए है?

तपोती शरमा गई....फिर उसने लज्जा पाते हुए कहा छी लाजो ये तू क्या कह रही है?

लाजो : जो दिख रहा है वहीं तो कह रही हूँ ना तपोती

तपोती : हाहाहा मेरे से ज़्यादा तो तेरे उठे हुए है (लाजो ने मुस्कुराया)

लाजो : का करे? बस दबा दबा के मोटा कर दिया है

तपोती : किसने ? तेरे दूल्हे ने ? वो तो अभी तक तुझे लेने आया नही

लाजो : वो साला ठरकी 2 महीने बाद ही तो आ रहा है मुझे ले जाने की कह रहा है कोलकाता में एक साथ रहेंगे मेरे जाने का दिल नही है ये टाउन छोड़के जाने का....

तपोती : ओह्ह

तपोती फिर खामोशी से खाना बनाने लगी इतने में उसे अहसास हुआ कि लाजो फिर मुस्कुरा रही है और चोर नज़रों से उसके सूट के उपर से ही उसके छातियो को देख रही है

तपोती : अब क्या हुआ?

लाजो : लगता है तेरे भी कोई ये दबाता है बोल ना? किसी से कभी संबंध था क्या?

तपोती : छी छी लाजो कुछ भी हुहह...मैं ठहरी एक कुँवारी लड़की जिसने कभी किसी मर्द को आँख उठाके भी नही देखा और तू कह रही है की मेरे किसी के साथ संबंध तो नही मैं एकदम कुँवारी हूँ लाजो

लाजो : हाए कम्बख़्त ये जवानी तू इतनी कमसिन है खिलती कली है बचके रहना तेरे जैसे ही शरीर वालियों को लार टपकाए ढूँढते है मर्द ज़ात

तपोती इससे शरमाते हुए हंस पड़ी

तपोती : तू मेरी छोड़ तू बताना कि तूने कभी करवाया है क्या?

लाजो : अब का करे? पति को छोड़के भी हम किसी और के साथ भी किए है

तपोती ने पूछा किसके साथ? लेकिन तपोती के कयि मर्तबा पूछने के बावजूद उसने ये बात हँसी में टालते हुए झूठ कह दिया आख़िर में...कि था कोई शहरी बाबू अब यहाँ नही रहता...क्या कहती उससे? की आदम उसे कितनी दफ़ा चोद रखा है ...वो सिर्फ़ यही जानती थी कि आदम की वो रिश्तेदार है और इससे कहीं तपोती नाराज़ ना हो जाए इसलिए वो इतना कहे पहलू बदलने लगी बातों का...

लाजो : लेकिन कसम से तेरी छातिया और कूल्हें काफ़ी मस्त है...जिससे भी शादी करेगी तेरा रस जीवन भर भोगता रहेगा

तपोती : हट पागल ऐसा क्या देख लिया तूने मुझमें?

लाजो : बहुत कुछ देखा उस दिन तूने तौलिया माँगा था ना मुझसे नहाते वक़्त याद है उस दिन तुझे पूरा नंगा देखा था नहाते हुए

तपोती : आए माँ कितनी बेशरम है तू

लाजो : हा हा हा हा हा (लाजो खिलखिलाए हंस पड़ी)

दोनो जानते थे कि घर में कोई नही है...तपोती भी लाजो से काफ़ी खुली हुई थी उपर से हस्त मैथुन अपनी योनि को करने की नयी नयी लज़्ज़त उसे धीरे धीरे आदम और अंजुम के रिश्तो को जानने में और हुई

तपोती : वैसे आदम के बारे में क्या कुछ ऐसा ही ख्याल करती है तू?

लाजो ने खामोशी से बस शरमाये मुस्कुराया फिर उसने कहना शुरू किया...

लाजो : हाए वो गोरे हॅंडसम कितने लंबे है? उपर से जब जेंटलमेन लोगो की तरह कोट टाइ में जाते है तो पूरे सलमान ख़ान लगते है सलमान ख़ान

तपोती मन ही मन जैसे ये सुनके शरमाई लेकिन उसे थोड़ी जलन हुई कि किस कदर लाजो उसके मालिक की यूँ तारीफ़ उसके सामने कर रही थी...

तपोती : अच्छा ये बता कि अंजुम काकी भी तो जवान है उन्हें देखके कैसा लगता है?

लाजो : सच बोलू कहेगी तो नही

तपोती : हां बोल तो

लाजो : ढलती शराब है पूरी एकदम मस्त हो रही है जबसे बेटा अमीर हुआ है तबसे तो पूरी निखर गयी है ?(लाजो ने उतना ही बताया जितना उसे ठीक लगा क्यूंकी वो भी आदम और अंजुम के रिश्ते से वाक़िफ़ थी आदम ने खुद बताया था उसे)

तपोती : ह्म तुझे लगता है कि अब भी वो काकु से

लाजो : नही रे कहाँ काकु उमर्दराज बुड्ढे से वो थोड़े ही अब उस लायक होंगे कि बीवी को संतुष्ट कर पाए मेरा मतलब दोनो के बीच मुझे नही लगता कोई संबंध होगा ?

तपोती : ह्म

लाजो : वैसे एक बात बता जब से उनकी बीवी जो निशा नाम की औरत थी उनके ज़िंदगी से गयी है तबसे बहुत दुखी रहने लगे थे...वो तो उनकी माँ की बदौलत ही वो वापिस खुद को संभाल पाए

तपोती : वाक़ई कैसी कैसी औरतें है दुनिया में अपने चलते दूसरो की ज़िंदगिया बर्बाद कर देती है
 
लाजो : वैसे एक बात बता जब से उनकी बीवी जो निशा नाम की औरत थी उनके ज़िंदगी से गयी है तबसे बहुत दुखी रहने लगे थे...वो तो उनकी माँ की बदौलत ही वो वापिस खुद को संभाल पाए

तपोती : वाक़ई कैसी कैसी औरतें है दुनिया में अपने चलते दूसरो की ज़िंदगिया बर्बाद कर देती है

लाजो : वैसे एक बात कहे तुम कहोगी तो नही ना किसी को क्यूंकी ये बात अंजुम काकी को तो मालूम चलना ही नही चाहिए

तपोती : क्या चीज़?

लाजो : हमने आदम बाबू को नंगा देखा है काफ़ी बड़ा और मोटा है उनका

लाजो तो साली अपने दोनो छेद आदम से चौड़े करवा चुकी थी...लेकिन आदम के लिंग की तारीफ किए बिना वो रह ना पाई इसलिए वो तपोती से अश्लील भारी बातें करने लगी तपोती भी मुस्कुराए चुपचाप मंद मंद मुस्कुरा रही थी सुनकर...जानने को जैसे कितनी उत्सुक? उसने तो खुद ही कितनी दफ़ा आदम को अपनी माँ अंजुम को चोदते हुए देखा था...

लाजो : पता है अफ कितना बड़ा है और मोटा? ये देख रही है (बेलन को उठाते हुए) करीब इसकी मोटाई का और यहाँ से इतना लंबा

तपोती : छी लाजो मुझे अज़ीब लगता है सुनके

लाजो : तू ही सोच मर्दो का इतना बड़ा और मोटा हो सकता है

तपोती : पर लाजो इतने बड़े बड़े लिंग को औरत अपने भीतर लेने में ज़रा सा भी दर्द नही पाती तू भी तो औरत है मैं भी हूँ

लाजो : अरे तपोती एक बार शादी हो जाएगी ना तब तू समझेगी वैसे एक बात कहूँ औरत की चूत में हर साइज़ का लंड लेने की क्षमता होती है जितना बड़ा लंड उतना ही उसकी चूत खुल जाती है हालाकी इसमें हर औरत कामयाब तो नही हो पाती किसी को दर्द तो किसी को कोई प्राब्लम हो जाती है लेकिन कुदरत ने औरत को ऐसे ही बनाया है

तपोती : ओह्ह (एक बार वो अंजुम काकी की चूत को जैसे चुदते हुए उसके बेटे का विशाल लंड अपने भीतर लिए तस्सवुर करने लगी)

लाजो : बहुत भाग्यशाली होगी जो भी आदम बाबू से चुदेगि हहहे

तपोती : हॅट छी कुछ भी कह देती है तू

लाजो : और नही तो क्या? हम का तो लागत है तेरे भी मन में ऐसे ही लडडू फुट रहे है

तपोती ने कस कर एक चपात उसकी पीठ पे मारी....लाजो दर्द से हाए कहते हुए शरारत भारी मुस्कान देके हँसने लगी....

दोनो फिर काम में जुट गये हंसते मुस्कुराते....जैसे दोनो सहेलिया बन सी गयी थी....

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"तपोती तपोती अरे तपोती".........आदम की नज़र तपोती को लाल साड़ी में देख जैसे वहीं ठहर गयी उसने कभी तपोती को उस रूप में नही देखा था ऐसा लग रहा था जैसे साक्षात चंपा उसके सामने खड़ी हो...

"क्या हुआ आदम? आप हमारा नाम पुकार रहे थे?"......

..आदम हंस पड़ा

आदम : य..ये ये साड़ी

तपोती : ओह्ह ये अंजुम काकी ने हमे दिया है उस दिन जो मार्केट गये थे साड़ी खरीदने

आदम : ओह्ह अच्छा बहुत सुंदर लग रही हो

तपोती के गाल जैसे लाल हो गये उसने मुस्कुरा कर शुक्रिया कहा

आदम : अच्छा मैं कह रहा था कि अगर आज कही घूमने जाना हो तो इसलिए छुट्टी करके घर आया था माँ भी नही दिख रही

तपोती : दरअसल काकी काकु को लिए ददिहाल गयी हुई है

आदम : ठीक है चलो तुम कहाँ जा रही थी?

तपोती : हां बताना भूल गये वो हम काली के मंदिर जाते है

आदम : अच्छा अच्छा तुम माँ काली की भक्त हो

तपोती : जी सोचा वहाँ उनके दर्शन कर ले वैसे तो इतना यहाँ के बारे में नही जानते कि मंदिर कहाँ है?

आदम : है ना मुझे मालूम है तो तुम अकेले कहाँ जा रही थी फिर?

तपोती : ओह्ह काकी ने बताया था कोई काली गाछी के पास

आदम : हा हा हा ऐसे गुम हो जाओगी तुम चलो मैं तुम्हें लेके चलता हूँ वहीं से हम थोड़ा पार्क भी घूम लेंगे क्यूँ?

तपोती : पर काकी अगर?

आदम : रात से पहले नही आने वाले चलो अरे चलो ना

आदम तपोती के साथ घर से निकल दोनो गाड़ी में सवार हुए आज आदम ने गाड़ी खुद ड्राइव की तो तपोती को गाड़ी में बैठके अच्छा लग रहा था....उसने कभी ऐसे सफ़र नही किया था....बार बार आदम तपोती की ओर देखते हुए जैसे आहें भर रहा था....ऐसा लग रहा था जैसे चंपा हो कही से कोई भी भूल नही होती...दोनो मुस्कुराए

मंदिर पहुचे...."अच्छा तपोती तुम जाओ मंदिर में..मैं थोड़ा टूर आंड ट्रॅवेल एजेन्सी पास पड़ता है उनसे मिलके आता हूँ और सुनो मंदिर से आने के बाद कही जाना मत यही गाड़ी के साथ खड़ी रहना या अंदर बैठ जाना..."ओके ..........तपोती ने सहमति में सर हिलाया
 
आदम चस्मा लगाए रोड क्रॉस किए आगे बढ़ गया....तपोती मंदिर में दाखिल हो गयी...वो घंटी बजाए सामने प्राचीन काली की मूर्ति के सामने हाथ जोड़ प्रार्थना करने लगी....कुछ देर बाद वो बाहर जब लौटी तो उसने थाली गाड़ी के उपर रखकर आदम का इन्तिजार किया.....आदम अब तक नही लौटा था....उसे लगा शायद उन्हें देरी हो रही हो...वो वैसी ही खड़ी रही....

वो नही जानती थी कि कोई दूर से मवाली टाइप का अढेढ़ उमर का आदमी उसे काफ़ी देर से घूर्र रहा था उसके पहनावे और फिगर को जैसे ललचाई नज़रों से घूर्र रहा था....वो धीरे धीरे कदमो से तपोती के करीब आया....तपोती गाड़ी की ओर देखते हुए आदम का इन्तिजार कर रही थी....

इतने में उसने अपना हाथ बड़े ही बेढंगे तौर से तपोती के कंधे पे रखा..तो तपोती एकदम से पीछे मूड के से उसे देखके उसके कंधे को झटकते हुए सहम्ते हुए पीछे खड़ी हो गई

"कौन्न है आप?".........

.."हाहहा तुम सूनाओ चंपा तुम कैसी हो? अरे हमको तुमने झूठ बोला कि तुम मर गयी".........

..तपोती सहेमने लगी उसे समझ आने लगा कि वो जो कोई भी था उसे उसकी बहन चंपा समझ रहा था...उसे समझ आया कि उसकी बहन का कैसो से मेलजोल था?

तपोती : द..देखिए मैं आपको नही पहचाती आप ये क्या कर रहे है (अपनी साड़ी को उसके हाथो से खीचते हुए जो उसने थाम लिया था)

"हाहाहा अरे ओ चंपा इतना ऐंठ काहे रही है पैसे ऐंठने में तो शरम नही खाती ? कयि दोनो से साली बड़े नखरे झेले तेरे बिस्तर पे तो बड़ा कहती थी कि तुममें बात नही दम नही कोई काबिल नही है रास्ता नाप आज जब पहेल कर रहा हूँ तो पीछा छुड़ा रही है कह रही है मैं कौन? ये गाड़ी किसकी है रे? क्या रे कोई नया कस्टमर फँसा लिया क्या हाहहाहा".......अपनी सड़ी हुई मुस्कुराहट देता हुआ एक एक कदम जैसे वो तपोती आगे बढ़ते हुए तपोती के करीब और आने लगा...
 
वहाँ ज़्यादा लोग थे नही आस पास से सिर्फ़ गाड़िया गुज़र रही थी....और अगर कोई देखता भी तो कुछ करता भी नही...."द..एखिए मैं चिल्लाउंगी मैं चंपा नही हूँ मेरा नाम तपोती है आप दूर्र रहिए मुझसे सुना नही आपने".......इस बार तपोती ने सहमते हुए उसे ज़ोर से पीछे धकेला और चिल्ल्लाने लगी....

टपोरी : साली तू ऐसे नही मानेगी बड़े पर निकल आए है तेरे...चल तुझे कोपचे में ले जाके ही जब चोदुन्गा ना तो समझ आएगा कि अपुन कौन है और तू कौन? साली दो टके की रंडी इतना भाव खा रही है साली

तपोती इस बेज़्ज़ती को बर्दाश्त नही जैसे कर पाई....उसे मालूम हुआ कि उसकी बहन के साथ भी शायद ऐसे ही पेश आते होंगे ऐसे लोग तपोती ने हिम्मत जुटाते हुए कस कर एक करारा थप्पड़ उस के चेहरे पे मारा तो तपोती जैसे सहम गयी क्यूंकी अब उसकी छेड़खानी जानवरता पे उतर आई थी आँखो में गुस्सा सॉफ दहेक उठा था...वो मन ही मन प्राथना करने लगी कि आदम जल्द से जल्द आए और उसे बचा ले...

इस बीच उसने तपोती को कस कर पकड़ लिया तपोती भागने को हुई तो उसने उसकी साड़ी को कस कर खीच लिया तपोती अब डर से रोने लगी थी....उसे बचाने वाला आस पास कोई नही था.....वो एक बार ज़ोर से फिर जैसे चिल्लाई और जैसे आदम का नाम उसने पुकारा.....

तपोती पूरी कोशिश से मवाली के बाज़ुओं से छूट के निकल जाने की पूरी कोशिश कर रही थी...पर उस टपोरी आदमी पे जैसे हवस सवार थी...उसने कस कर तपोती के हाथ को थामा और लगभग उसे अपने साथ ले जाने लगा...."छोड़ो मुझे".......तपोती रोते हुए उसके हाथ पे नाखुन मारने लगी..जिसके दर्द से उसने हाथ तो नही छोड़ा पर और कस कर तपोती को घँसीटने के लहज़े से जाने लगा...

"साली मुझसे दूर भगेगीइ इतने दिनो से आँखो में धूल झोंका मरर्ने का नाटक किया तेरी वो काकी कैसे आक्टिंग करती है तेरी मौत के गम का हुहह ज़्यादा ओवेर आक्टिंग मत कर चल साथ में"........टपोरी ने कस कर एकदम तपोती की कलाई को जकड़ा हुआ था और उसे अपने साथ ले जाने लगा...

इतने में उस हाथ ने पीछे से आके तपोती की कलाई पे जकड़े टपोरी के हाथ को कस कर थाम लिया...इससे टपोरी ने पीछे घूम कर देखा तो उस आदमी को पहचान ना पाया...

तपोती बुरी तरीके से डरी हुई थी...उसके रोए से हुए चेहरे पे राहत की मुस्कुराहट आई...आदम सामने खड़ा गुस्से की आग में एकदम देखा हुआ था...उसकी आँखो में अंगार उठ रहे थे उसने जब देखा कि टपोरी ने तपोती के हाथ को मज़बूती से पकड़ रखा है तो उसने दाँत पीसते हुए टपोरी के हाथ को कस कर दबोचा...जिससे टपोरी दर्द के भाव से अपने आप अपनी पकड़ तपोती के कलाई से धीरे धीरे छोड़ने लगा...आदम ने तपोती को अपने दूसरे हाथ से एक ओर किया...और टपोरी के हाथो को जकड़े हुए उसकी ओर दाँत पीसते हुए घुर्राया

टपोरी : आई हाथ छोडर्र अपून्ं ने कहा हाथ छोडर!!! (वो कह ही पाता कि आदम ने कस कर अपने उल्टे हाथ का एक थप्पड़ उसके चेहरे पे रसीद दिया)

थप्पड़ इतना ज़ोर से पड़ा और इस कदर पड़ा कि वो मवाली वहीं अपना जबड़ा पकड़े दर्द से बिलबिला उठा...उसने खौलती नज़रों से आदम की ओर देखा

आदम : मादर्चोद तेरी औकात कैसी हुई मेरी तपोती को छेड़ने की ब्लडी सन ऑफ आ व्होर्रे (उसने कस कर मवाली के गेरेबान से उसे अपनी ओर खीचा)

और ठीक उसी पल अपने घुटने मोड़ ते हुए एक करारा हमला उसकी टाँगों के बीच में किया....वो दर्द से बिलबिला उठा....और अपनी टाँगों के बीच पे कस कर हाथ रखकर बैठ गया....आस पास के लोग तमाशा देखने लगे थे...तपोती सुबक्ते हुए गाड़ी से सटके खड़ी हुई थी...उसे मालूम नही था कि उस टपोरी ने जाने अंजाने में ऐसी ग़लती कर डाली थी कि अब उसे खुदा भी आदम के कहेर से नही बचा सकता था....

"मादरचोद उठ साले".......आदम ने फिर उसे उठाया और ठीक उसके सर को पकड़े अपनी गाड़ी के एंजिन डोर पे मारा...सर लोहे के एंजिन के फाटक से टकराते ही जैसे चक्कर खा गया टपोरी...आदम ने उसे छोड़ा नही बल्कि उसे रगड़ रगड़ के खूब पीटना शुरू कर दिया....
 
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