Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत - Page 32 - SexBaba
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Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत

उस पल उसके दिमाग़ में खून एकदम खौल रहा था...पाया नही कुछ अगर कोई हत्यार मिल जाता तो उसका खून ही कर देता....मवाली ने कोशिश भी की उससे फाइट करने की पर उसके पास इतना समय नही था कि वो खुद को भी संभाल पाता....आदम ने उसे पीट पीटके लातों घुस्सो और पटकियो से एकदम बेबस और लहुलुहान कर दिया...इससे आदम का शर्ट फॅट गया और कयि जगह उसे भी चोटें आई....

आदम ने घँसीटते हुए टपोरी को टाँगों पे उसकी खड़ा किया और उसे तपोती के पास ले जाके तपोती की ओर देखने लगा...

आदम : मारो इसे तपोती स्लॅप हिम आइ सेड स्लप्प हिम्म (तपोती वैसी ही सहमी हुई थी फिर भी आदम के ज़ोर से कहने पे उसने एक थप्पड़ उस मवाली के चेहरे पे दे मारा)

आदम ने उसे फिर गिरा डाला और अपनी डिकी खोली उसने बेसबॉल बॅट निकाल लिया था जो उसके हाथो में था....तपोती आँखे बड़ी बड़ी किए आदम को मना करने लगी कि कहीं उसके हाथो से कोई अनहोनी ना हो जाए उस वक़्त वो अपने आपे से बाहर हो चुका था...

आदम ने उसे परे धकेला और लरखड़ाते हाथ जोड़ते मवाली को देखने लगा.."एम्म..मुझे मांफ कर दददू मांफफ्फ़ कर दो म्म..मुझहहसे ग़लतीी हो गाइइ".......

."यू बस्टर्ड तूने मेरी तपोती को क्या कहा था रंडी? उसे तूने चंपा समझा वो चंपा नही तपोती है और वो मेरे घर की इज़्ज़त है समझा ब्लडडी सन ऑफ बिच"........कस कर एक बल्ले का हमला उसने उसके अंडकोषो पे किया...जिससे बिलबिलाए दर्द से छटपटाते हुए रोई आवाज़ में वहीं ज़मीन पर गिरकर वो मवाली छटपटाने लगा...

आदम ने दूसरा हमला करना ही चाहा था कि इतने में पोलीस वहाँ पहुच गयी...और उन्होने आदम को उसे और मारने से रोका...मवाली को फ़ौरन गिरफ्तार लिया गया...लेकिन साथ साथ थाने के चक्कर आदम को भी लगाने पड़े उनके साथ जाकर...

आदम तपोती के साथ थाने में था...पोलीस तपोती का ब्यान ले रही थी उन्होने पाया तपोती की साड़ी खीच देने से वो हल्की फटी हुई थी और कलाईयों की एक चूड़ी टूटी हुई थी जिससे कालई से तपोती के खून निकल रहा था....आदम ने ये देखा तो उसे उस वक़्त मालूम नही चला था उसने अपने रुमाल से तपोती की कलाई से निकलते खून को पोंच्छा....पोलीस ने तपोती से स्टेट्मेंट लिया फिर आदम की ओर देखा

पोलीस : आप इनस्पेक्टर राजीव के पड़ोसी है

आदम : एस सर उनका तबादला बुर्ड़वन हो गया और वो ज्योति भाभी उनकी बीवी के साथ वहीं शिफ्ट हो गये है

पोलीस : ओह माइ गॉड आपने पहले क्यूँ नही बताया? वहीं सोचु आप मुझे जाने पहचाने क्यूँ लगे कयि बार आपको उनके साथ मैने देखा था
 
आदम : एस सर उनका तबादला बुर्ड़वन हो गया और वो ज्योति भाभी उनकी बीवी के साथ वहीं शिफ्ट हो गये है

पोलीस : ओह माइ गॉड आपने पहले क्यूँ नही बताया? वहीं सोचु आप मुझे जाने पहचाने क्यूँ लगे कयि बार आपको उनके साथ मैने देखा था

आदम सिर्फ़ मुस्कुराया...."वैसे आप इनके क्या लगते है? और ये छेड़ छाड़ का मामला बनता है अगर गहरे होते तो आप पर केस बन सकता था मिस्टर.आदम".........आदम ने कोई जवाब नही दिया तपोती ने इस बार उसे संभाला

तपोती : देखिए सर ये सब मिसटेकन्ली हुआ है उस आदमी ने मुझे मेरी बहन समझ लिया था

पोलीस : ओके आपकी बहन क्या वो आपके बहन के पीछे था?

तपोती : जी दरअसल वो अब इस दुनिया में नही है ये पहले से ही उसके पीछे पड़ा हुआ था दरअसल मेरी बहन मेरी शकल की हूबहू मिलती जुलती है

पोलीस : ओके बट उस गुंडे ने हमे बताया है कि आपकी बहन प्रॉस्टिट्यूट थी...

एक पल को हम दोनो चुपचाप हो गये मैं इस बार चुप ना रह सका..

आदम : जी सर शी वाज़...बट इट वाज़ नोट हेर चाय्स वो ये सब मज़बूरी में कर रही थी....वो मेरी अच्छी दोस्त थी और इस बेचारी को तो उसके प्रोफेशन के बारे में मालूम ही नही पड़ा कयि महीने पहले उसे एड्स हो गया जिसमें उसकी जान चली गयी उसके बाद से ही तपोती अब मेरी ज़िम्मेदारी है आप चाहे तो मेरे परिवार वालो से भी पूछ सकते है

पोलिसेवाले ने कुछ नही कहा...फिर उसने ब्यान लिया और हमे घर जाने की इज़ाज़त दी...मैं और तपोती उठके जाने लगे तो पीछे से पोलिसेवाले ने मुझे रोका...मैने तपोती को गाड़ी में बैठकर मेरा इन्तिजार करने उसे बाहर भेजा...और फिर पोलिसेवाले के पास आया

आदम : जी सर कहिए ?

पोलीस्मॅन : देखो आदम तुम मेरे काबिल इनस्पेक्टर के फ्रेंड हो तो मेरे भी जानने वाले ही हुए तुम एक अच्छे डीसेंट फॅमिली से बिलॉंग करते हो ऐसे यूँ तपोती को शरण देके तुम ये भूल गये कि उसकी बहन का पेशा

आदम : सिर्र ये मेरा ज़्यादती मामला है मुझे समाज या दुनियावाले की परवाह नही की कौन क्या सोचता है? उसका दर्ज़ा मेरे घर में मेरे अपने सदस्य जैसा है प्ल्ज़्ज़ सर आज ये ग़लती हुई कि किसी ने उसे उसकी जुड़वा बहन चंपा समझा मैं जानता हूँ सर बट मैं उसका सच्चा फ्रेंड था मुझे उसके पेशे से कोई मतलब नही था और ना इस बेचारी को मालूम बस सर यही विनती करता हूँ कि आप उसे और इन सब चीज़ों के बारे में ना कहे वैसे ही टूटी हुई है और उसे जोड़ने की ही हमारा परिवार कोशिश कर रहा है
 
पोलीस्मॅन : वाक़ई तुमने बहुत नेक काम किया है वरना आजकल के ज़माने में कोई ऐसी हैसियत वाला ऐसा सोच भी नही सकता...लेकिन आदम पोलिसेवाले के नाते से ना सही पर एक दोस्त के दोस्त के लहज़े से तुमसे जो कह रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो जब तक तुम तपोती को यूँ ऐसे अपने घर में रखोगे तो लोग ज़ाहिर है उंगलिया उठाएँगे या कल को अगर ये बात किसी और को मालूम चली तो फिर बेज़्ज़ती तुम्हारे घर की होगी मैं चाहता हूँ कि तपोती को तुम कोई नाम दो क्या तुम्हारी शादी हो गयी?

आदम : हुई थी लेकिन अब तलाक़शुदा हूँ (आदम ने थोड़ा बहुत पोलिसेवाले को अपने पर्सनल माम्मले की खबर दी)

पोलीस्मेन : तो इसका मतलब तुमपे शक़ लोगो का और उठेगा लोग ग़लत ही मतलब निकालेंगे तुम्हारा गुस्सा ऐसे यूँ बार बार किसी पे निकालना ठीक नही लेकिन ये तो एक मवाली था आम लोगो को तो ऐसे तुम मार नही सकते वरना तुमपर केस हो सकता है

आदम : आइ नो सर

पोलीस्मॅन : अगर हो सके तो उसके लिए कुछ बंदोबस्त करो उसे कोई मुक़म्मल राह दो या फिर उसे अपनी पत्नी का दर्जा दे डालो

एक पल को जैसे आदम ठिठक गया और उसकी बातें सुनने लगा....आदम ने कोई जवाब नही दिया...वो जानता था उसका कहना फ़िज़ूल ही होता...वो तो जानने वाले थे वरना कोई और होते तो दस तरह के सवाल और शक़ करते उसके और तपोती को लेके....आदम थाने से जब बाहर लौटा

तो उसने पाया कि बाहर ही तपोती गुम्सुम खड़ी थी....आदम ने मुस्कुरा के उसके दोनो कंधे पे हाथ रखा और उसे अपनी तरफ खीचा..तपोती की आँखो में आँसू देख आदम को बुरा लगा

आदम : क्या हुआ तपोती?

तपोती : मेरी वजह से इतना कुछ हो गया और!

आदम : उफ्फ हो अरे बाबा मुझे ज़्यादा चोट नही आई और तुमने बताया क्यूँ नही दिखाओ कलाई को (कलाई पे लगी खरॉच और लगे खून को देख) इस्सह चलो बॅंड-एड कर देता हूँ

तपोती और आदम दोनो गाड़ी में सवार हुए....दोनो कुछ देर तक खामोश रहे...

तपोती : अगर आज तुम वक़्त पे ना आते तो वो आदमी मुझे उठा ले जाता

आदम : अब वो कुछ नही कर पाएगा उसे इतना तोड़ा है मैने अब पोलीस तोड़ेगी मानता हूँ कि ग़लती मेरी है मुझे तुम्हें अकेला छोड़के नही चले जाना चाहिए था
 
तपोती : इसमें आपकी क्या ग़लती? ग़लती तो मेरी किस्मत की है आज समझ आता है कि मेरी बहन ने कैसे दिन देखे होंगे? कभी कभी तो ऐसा लगता है ये सब मेरी बहन की वजह!

आदम ने एक झटके में गाड़ी रोकी तो तपोती एकदम से उसकी तरफ देखने लगी....आदम ने जैसे उसे नाराज़गी भरी निगाहो से देखा

आदम : क्यूँ कह रही हो ऐसा तुम? तुम्हारी बहन देवी की तरह पवित्र थी...उसने जो कुछ भी झेला उसके लिए तुम उसे कोस रही हो...ग़लती उसकी नही इस किस्मत की है लोगो की है देखो कैसे लोग अब भी उसके नाम पर जैसे बैठे हुए है अपनी शहवत अपनी हसरत पूरी करने और तुम कहती हो? कि उसकी वजह! भूलके भी आइन्दा मेरे सामने ऐसा ना कहना समझी तुम वो भी अगर इस जगह होती तो भी मैं उसके लिए इतना कुछ करता...और अगर तुम भी होती तो भी करता....जैसे माँ मेरी घर की औरत है वैसे तुम भी हो

एका एक आदम को जैसे अहसास हुआ कि उसने इतना कुछ कह दिया....तपोती उसे अपनी औरत कहने से जैसे एकपल को नज़रें इधर उधर करने लगी...एक पल को आदम जैसे होश में आया उसने धीरे से कहा "आइ आम सॉरी".......फिर गाड़ी स्टार्ट की और आगे बढ़ा....

तपोती मन ही मन जैसे आदम की ओर देखने लगी जिसे अपनी परवाह नही थी कैसे वो एक मर्द की तरह उसके सामने खड़ा हुआ और उसका बीच बचाव किया अगर परवाह ना होती ना प्यार होता और ना ही कुछ मानता तो क्यूँ उसकी इतनी केर करता क्यूँ कहता की वो उसकी औरत है? पोलिसेवाले से भी उसने उसके लिए बहस किया जिसकी वो कोई लगती भी नही

वो एकटक आदम की ओर देखती रही...कितनी भाग्यशाली थी उसकी बहन जिसे उसका प्यार नसीब हुआ ना ही उसका साथ...दोनो घर पहुचे...घर आते ही अंजुम और उसके पति की नज़र बेटे के हालत पर पड़ी कपड़ों पे मिट्टी लगी हुई थी हाथापाई करने के वजह से शर्ट के दो बटन टूटे हुए थे गले पे हल्की खरॉच थी और हाथो में कयि चोटों के निशान...

"अरे क्या हुआ तुम दोनो को? अरे तपोती ये कलाई में तुम्हारे? अरे आदम बेटा क्या हुआ?"..........."अरे क्या हुआ बेटा? अफ ये सब क्या हुआ?".......माँ के साथ साथ पिता भी जैसे मेरे चेहरे पे हाथ रखकर मेरे चोटों को और हालत का जायेज़ा लेते हुए बौखलाए बोल उठे...
 
आदम : अरे माँ कुछ नही हुआ पिता जी प्लज़्ज़्ज़ आप लोग शांत हो जाइए

अंजुम : नही पहले बता हुआ क्या?

आदम के पिता : मैं फर्स्ट-एड बॉक्स लाता हूँ (वो अंदर तेज़ी से गये लाने)

अंजुम ने दोनो को बिठाया फिर तपोती ने आदम के पिता से बॉक्स लेके उससे कॉटन निकाला और आदम के हाथो पे बने ज़ख़्म को सॉफ करने लगी....एक पल को आदम तपोती की ओर देखने लगा...दोनो की निगाहें एकदुसरे से मिली तपोती चुपचाप उसे देखते हुए उसके हाथो की चोटों पर मलम लगा रही थी..

अंजुम को आदम ने सारी बात ब्यान की...तपोती को बहुत बुरा लग रहा था कि कितनो भी हो ये सब उसी की वजह से हुआ है....अंजुम ने तपोती पे गुस्सा नही किया बल्कि उसके कलाई पे देखा फिर बॅंड-एड खुद निकालके उसके कलाई पे लगाया...

अंजुम : जो भी हुआ उसके लिए तुम खुद को ज़िम्मेदार ना ठहराओ तपोती मैं तुमसे नाराज़ नही आदम लेकिन तुझे इतना गुस्सा होने को मैने मना किया था ना

आदम ने कोई जवाब नही दिया....अंजुम कह भी क्या पाती? आदम उठ खड़ा हुआ उसने पिता को कहा कि आप जाओ मुझे माँ से कुछ बात करनी है..पिता जी बिना कुछ कहे अपने कमरे मे चले गये उनके जाते ही तपोती भी उठने लगी तो आदम ने उसे कहा कि जाके कमरे में आराम करे कुछ करने की ज़रूरत नही....तपोती बिना कुछ कहे आदेश का पालन करते हुए कमरे में चली गयी..

"क्या बात है आदम?".......माँ ने बेटे के बाज़ू को सहलाते हुए कहा...

आदम ने बताया कि थाने में पोलिसेवाले ने उसे क्या कहा था? अंजुम सब सुनकर दुख कर रही थी...उसने ये नही जताया कि खामोखाः तू एक रंडी की बहन के चक्कर में पड़ा है उसकी वजह से आज तूने मुसीबत मोला....पर उसने बेटे को कोसा नही उसे गर्व था कि उसके बेटे ने ना ही सिर्फ़ एक औरत की इज़्ज़त बचाई बल्कि उसे अपनी औरत कहा....

आदम : माँ तू ही कह मैं कैसे उससे शादी कर सकता हूँ? तू तो जानती है ना सब की हम दोनो ऑलरेडी एकदुसरे के साथ

अंजुम : लेकिन बेटा तपोती का तो सोच क्या उसे यूँ अकेलेपन के सहारा छोड़ देगा कौन थामेगा उसका हाथ? तूने तो अपना लिया कोई गैर को उसका हाथ देगा तो क्या उसे खुश रखेगा? सच्चाई जानते ही उसे छोड़ देगा क्यूंकी उसकी किस्मत में कुछ ऐसा लिखा है...बहेन का वजूद इस दुनिया में जिस रूप में था उसे भी उस साँचे में ढाला जाएगा वहीं कहा जाएगा

आदम : ऐसा कहने वाले की ज़ुबान खीच लूँगा मैं
 
अंजुम : तस्सली से ठंडे दिमाग़ से एक बार सोच तूने उसका ज़िम्मा उठाया है उसे एक बार तू बात कर....वो क्या चाहती है? मैं तुझे फिरसे ये नही कहूँगी कि तू फिर से शादी कर एक बार तेरी ज़िंदगी बर्बाद कर चुकी हूँ और मुझे यकीन है कि निशा तपोती के पैर की धुंल भी नही उस जैसी लड़की मिलना सौभाग्य की बात है फिर भी तू एक बात कर उसके दिल को जानने की कोशिश कर

आदम ने कुछ ना कहा माँ उसे समझाए वहाँ से चली गयी....पीछे कमरे के दरवाजे पे खड़ी चुपचाप सबकुछ तपोती सुन चुकी थी...उसके आँखो से आँसू बह रहे थे...आदम को बडबडाता देख उसने पलटके आदम को सोफे पे एकात मे बैठा देखा

आदम : कैसे कहूँ माँ तुझे? कि मैने क्या कुछ नही किया तपोती तो सबकुछ जानती है जब भी उसे देखता हूँ तो लगता है अल्लाह ने मेरी ज़िंदगी में चंपा को वापिस भेज दिया...लेकिन मेरी तो किस्मत है कि मैं चाह के भी उसका हाथ थाम नही सकता क्या पता? उसे ये सुनके ठेस पहुचे बुरा लगे कि जिसे वो देवता समझती है वो उससे क्या चाहता है? मैने कइयों के घर अपने व्यभाचरी रिश्तो की हसरतो में उजाड़ दिए है आपके बेटे को वो कत्तयि नही स्वीकार करेगी (आदम अपने आँसुओं को पोंछता हुआ उठके अपने कमरे की तरफ बढ़ चला)

तपोती वहीं ठहरी सी आदम की बात को सुन जैसे कशमकश में खोई हुई थी....उस रात उसे नींद नही आई आँगन में खड़ी तस्सवुर कर रही थी सबकुछ जो आज कुछ घटा...उस चेहरे को आदम के देखा जब उसने उसका बचाव किया...."मेरी औरत है मेरी इज़्ज़त".....तपोती मन ही मन जैसे मुस्कुराइ सोचते हुए....फिर उसे सोफे पे उसके हाल-ए-दिल का यूँ ब्यानत सुनना उसे बेहद दुख हुआ की क्यूँ आदम उससे दूरिया बनाना चाह रहा था?


तपोती का था क्या? अगर आज उसने इनकार कर् भी तो कल कौन उसका हाथ थामेगा? अंजुम काकी भी तो यही कह रही थी तपोती ने सोचते हुए मन ही मन कहा....तपोती को इस घर से जैसे लगाव हो गया था इस परिवार के प्यार सम्मान और सहारा उसे कोई नही दे सकता था....तपोती मुस्कुराती जैसे करवटें बदलती रही बिस्तर पर पर उस रात वो सोई नही....

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हालत बदलते गये घर फिर रोज़ मराहा की तरह चलने लगा जहाँ खुशी की चहेल पहेल भी थी और कोई दुख नही....उस रात के बाद आदम ने कभी इस बात को उठाया जो बात उसकी माँ ने उससे करने को कहा था....शादी का प्रस्ताव आदम ने ना छेड़ा वो जानता था उसके ऐसा कहने के बाद भी शायद तपोती राज़ी ना हो....

उसने वो बात वहीं की वहीं रहने दी....और उसके साथ फिर नॉर्मल होने लगा...अंजुम इसी आस में थी कि वो कभी तो पहेल करे उसने खुद चाहा लेकिन आदम ने उसे सख़्त मना किया था कि अगर प्रस्ताव रखेगा तो वो खुद रखेगा...अंजुम बस उसी दिन के इन्तिजार में थी कि वो कभी तो पहेल करे
 
"माँ मैं ऑफीस के काम के लिए दार्जीलिंग जा रहा हूँ तू चलेगी"..........

"जब ऑफीस का काम है तो मुझे लेके क्यूँ जा रहा है तू? ..........

."हाहाहा बस माँ ऐसे ही सोचा थोड़ा घूम फिर भी लेंगे अगर वक़्त मिला तो".........

."नही बेटा मेरा दिल नही जाने को".........

."माँ दरअसल अकेला पड़ जाउन्गा ना दो दिन का ही तो काम है बस इसलिए सोचा .........

."तू मुझे मत लेके जा तू तपोती को ले जा"...........

."पर माँ तपोती"..........उस वक़्त तपोती भी वहाँ आ खड़ी हुई दोनो को वार्तालाप करते देखते हुए देख रही थी

तो आदम से बोल ना फूटा...उसने एक बार तपोती को देखा ना जाने क्यूँ उसके दिल में उसे इनकार न हो पाया.

.."क्या हुआ काकी?"......

.."देखो तुम और आदम डार्जीलिंग जा रहे हो इसलिए तुम जाने की तय्यारी कर लो".......

..एकदम से तपोती सुनकर झिझकते हुए आदम की ओर देखने लगी...

तपोती : प..पर्र मैंन कैसे?

आदम : अरे तपोती तुम कभी आउट ऑफ स्टेशन नही गयी इसलिए ऐसे झिझक रही हो मैं हूँ ना बहुत अच्छा लगेगा

तपोती : ठ.ठीक है

तपोती ने सहमति में सर हिलाया...आदम मुस्कुरा के ऑफीस के लिए जाने लगा...तो माँ ने उसे जाते वक़्त कहा कि उसे घुमा ले आ वैसे भी बेचारी कही जाती तो है नही....उस वक़्त उसकी माँ के दिल में उसके पहेल वाली बात नही उठी थी वो तो बस तपोती के ख्याल से बोल पड़ी थी....आदम और माँ दोनो वैसे ही उस बात को भूल चुके थे....
 
तारीख भी फिक्स हो गयी और उस दिन दोनो के डार्जीलिंग जाने के लिए पहली बार एकदुसरे के साथ आदम और तपोती घर से सीधा स्टेशन पहुचे साथ में आदम के पिता और माँ अंजुम भी उन्हें सी-ऑफ करने आई हुई थी....

"अच्छा बेटा अच्छे से जाना तुम लोग और ध्यान रखना चलो बेटा ट्रेन छूटने वाली है चलो अंजुम".......इतना कहते हुए पिता जी मुझे और तपोती को समझाए और ट्रेन से बाहर निकल गये...

अंजुम ने जाते जाते एक बार आदम की ओर देखा और उसका बाज़ू पकड़े उसे बौगी से बाहर दरवाजे के पास लाई...."देख बेटा आराम से जाना और उसका ख्याल रखना ध्यान रखना पूरा अंजान शहर है भोली है कोई भी उठा ले जा सकता है आजकल का ज़माना ठीक नही".......

..मैं हंस पड़ा

आदम : अरे माँ कुछ नही होगा मैं हूँ ना उसके साथ और ये कोई पहली बार तो नही जो मैं एक औरत के साथ यूँ अकेले ट्रॅवेल कर रहा हूँ (माँ को समझ आया मेरा इशारा उनके और हमारे अकेले सफ़र के उपर था वो मुस्कुरा दी)

अंजुम : अच्छा ठीक बाबा तू जा अब मैं उतरती हूँ ट्रेन ने हॉर्न दे दी है....

कहते हुए अंजुम ट्रेन से उतर गयी...तपोती इतने देर में आदम के संग खड़ी दरवाजे पे आदम के माता पिता को बाइ करने लगी..."अच्छा काका काकी भलो थाकबेन आपनारा (अच्छे से रहिएगा)".......

.."अच्छा तपोती ओके आदम बेटा जाओ आराम से जाओ और आराम से आओ"......कहते हुए अंजुम और उसके पति ने हाथ से उन्हें बाइ का इशारा किया....आदम भी दोनो से विदाई ले रहा था...ट्रेन पूरी गति से जैसे स्पीड पकड़ी...धीरे धीरे पीछे माता-पिता भी छूटते चले गये...और कुछ ही देर में रेल स्टेशन से काफ़ी दूर निकलके चल रही थी....

"चलो तपोती".....आदम ने तपोती के कंधे पे हाथ रखा और दोनो वापिस अपने बौगी में आके बैठ गये....आदम को अच्छा तो नही लग रहा था कि वो माँ अंजुम को छोड़के जाए लेकिन उसके इनकार करने के बाद तपोती को संग ले जाना भी कोई ग़लत नही था....

आदम बार बार तपोती की ओर देख रहा था जो शीशे से बाहर देख रही थी...जल्द ही दोपहर हो गयी तो दोनो ने इकट्ठे खाना खाया....शाम होते होते टी.टी. ने आके दोनो के टिकेट्स देखे उन्हें लगा कि दोनो शादी शुदा जोड़ा है तो उसने ज़्यादा गौर नही किया और आगे बढ़ गया....

पूरे रास्ते आदम तपोती से बातचीत करते रहा...जिससे उसे ये ना लगे कि वो उसे वक़्त नही दे रहा...तपोती जैसे उस वक़्त आदम से एकदम सटके बैठी हुई थी...आदम को अच्छा लग रहा था.....कुछ ही देर में आदम को आँख लगने लगी तो उसने तपोती से कहा कि अगर वो सोना चाहती है तो सो सकती है....तपोती ने कहा की बिस्तर लगा लो...आदम ने तुरंत उठके सीट बिछा दिए और फिर तपोती का बिस्तर लगाके अपना बिस्तर लगाया...
 
वैसे भी उसे बहुत नींद लग रही थी इसलिए वो पेट के बल उपर वाले सीट पे लेटते ही सो गया...तपोती को नींद ना आई वो उबासी लेते हुए काफ़ी देर तक यूँ ही बैठी रही...अचानक उसने बॅग से वॉटर बॉटल जो निकाली उसमें एक उपन्यास पाया तपोती को याद आया कि अंजुम काकी ने उसे कहा था कि ट्रेन के सफ़र में उसे उपन्यास पढ़ने की आदत है....लेकिन आज सुबह से शायद तपोती को वक़्त देने के लिए उसने उसे हाथो में भी नही लिया था....

तपोती मुस्कुराइ उसे उठाई तभी वो सोची कि आदम बुक स्टॉल में किताबें देखने में इतना मशरूफ क्यूँ था? रेलवे स्टेशन पर....उसने पाया कि किताब का नाम कुछ बहुत ही वाहियात था और उसके ठीक उपर लेखक के नाम लिखा हुआ था बोल्ड अक्षरो में "राजशर्मा"......तपोती को लगा कोई दिलचस्प स्टोरी होगी उसने उसे हाथो में लिया और फिर पन्ने पलटते हुए बौगी के ठीक उपर जल रही एक छोटी सी बल्ब की रोशनी में बैठी बैठी पढ़ने लगी...

जैसे जैसे उसने कहानी पड़ी तो उसके तंन बदन में जैसे अज़ीब सी आग लग गयी...क्यूंकी वो कहानी कोई अडल्ट स्टोरी थी....जिसमें एक कुँवारी औरत का विस्तार से वर्णन था कि कैसे उसे अपने ही भाई से प्यार हो जाता है? और कैसे उसका भाई उसके साथ सेक्स करता है?........तपोती ने थूक घोंटते हुए विस्तार से उस पूरी कहानी को बहुत पन्नो तक पलटते पलटते हुए पड़ा...जब उसे अहसास हुआ कि उसके गुप्तांगो में सरसराहट उठ रही है...तो उसने किताब वापिस मोडके बॅग में डाल दिया और लेट गयी....

लेकिन आँखो में नींद कहाँ थी? बार बार उसके ज़हन में वहीं कामुक अडल्ट स्टोरी घूम रही थी....वो फिर आदम को लेके सोचने लगी जो लाजो ने कहा था...जब उस दिन चाइ देने उसके कमरे में गयी थी तो कैसे उसके कच्छे में उसने उभार देखा था उफ्फ कितने बाल इर्द गिर्द मौज़ूद थे...लाजो ने कैसे उसे कहा था कि कितना मोटा और लंबा है? और तपोती ने भी तो देखा था उसे अपनी सग़ी माँ अंजुम को चोदते हुए...अफ ये सब सोचते सोचते उसके हाथ अपने पेट को सहलाते हुए आगे बढ़ ही रहे थे कि उसने खुद पे काबू किया....

वो उठी और पेशाब करने के इरादे से उठ खड़ी हुई....तपोती ने देखा आदम गहरी नींद सो रहा है करवट बदले...उसने उसकी चादर को ठीक से उसके उपर ढक दिया....फिर वो एक बार दोनो तरफ झाकी बौगी से बाहर....कोई नही था आस पास अंधेरा और वैसे ही बौगी के उपर लगी लाइट्स जल रही थी....वो आगे बढ़ी और फिर आयने के पास जाके उसने अपने चेहरे को पानी मारा....फिर एक बार अपनी गुलाबी निगाहो को देखा वो रुमाल से अपने चेहरे को पोंछते हुए....

टाय्लेट के भीतर दाखिल हुई...फिर दरवाजा लगाया....उधर अचानक ट्रेन के ज़ोर से हिलने की वजह से आदम की नींद टूटी...तो उसने अपनी आँखो को मसल्ते हुए वक़्त की ओर देखा वक़्त कोई सुबह 3 बजे का था....दार्जीलिंग शायद अगले दिन ही ट्रेन पहुचने वाली थी ऐसे ही 2 घंटा लेट थी....
 
आदम ने उठते के साथ नीचे झांन्का तो पाया कि तपोती का बिस्तर वैसे लगा हुआ था पर वहाँ तपोती मज़ूद नही थी..वो एकदम से हड़बड़ा के अपनी सीट से उछलकर कुदा...और तपोती को खोजने लगा....ऐसे ही उसकी माँ की सख़्त हिदायत थी...एक तो कुँवारी जवान लड़की और उपर से ट्रेन का सफ़र...आदम ने अपने जूते पहने फिर बौगी से निकलके वॉशरूम के पास आया....

उसने देखा कि इंग्लीश टाय्लेट का दरवाजा खुला पड़ा था उसने दरवाजा हल्के से धकेला तो वो खुल गया अंदर कोई नही था.....आदम जैसे दूसरी ओर पलटा ही था...कि इतने में दरवाजा खुला और तब उसके जान में जान आई सामने तपोती अपनी जीन्स को ठीक किए आदम को अपने सामने खड़ा देख चौंक उठी...

तपोती : अरे आप उठ गये?

आदम : उफ्फ तपोती तुमने तो मुझे डरा ही दिया था कहाँ थी तुम? (बौखलाए और नाराज़गी से कहते हुए)

तपोती : म्म..मैंन तो यहाँ टाय्लेट करने आई थी मैने देखा कि तुम सो रहे थे ? तो

आदम : उफ्फ तो जगा देती ना खामोखाः मैं डर गया ना (तपोती आदम को इतनी परवाह किए देख मुस्कुरा पड़ी)

आदम ने उसे समझाया कि जो भी रहे बोलके तो जाना था....माँ ने उस पर ज़िम्मेदारी सौंपी है और उपर से वो उसका एक परिवार का हिस्सा है अगर खुदा ना ख़ासता कही कुछ हो जाता तो फिर वहीं खुद को ज़िम्मेदार ठहराता ना..तपोती ने आदम को शांत किया फिर दोनो वापिस बौगी में आए...

आदम ने तपोती को सुला दिया और उस पर चादर ढक दी...तपोती उसे एकटक देखती रही लेकिन कुछ कहा नही...आदम वापिस अपने बिस्तर पे आके लेट गया...लेकिन वो पूरी रात नही सोया वो पल पल अपनी सीट से झाँकते हुए निश्चिंत करता कि तपोती सोई की नही? मौज़ूद है कि नही? तपोती सो रही थी....तब जाके वो निश्चिंत होता...पूरे रास्ते वो सोया नही उसकी आँख सुबह 5 बजे लगी थी...जब मुस्किल से 2 घंटे के बाद दार्जीलिंग में ट्रेन पहुचि तो आदम की नींद खुली...

उसने झट से थोड़ा फ्रेश होके जल्दी जल्दी तपोती को जगाया फिर अपने सामान को लिया और ट्रेन के थमते ही स्टेशन पे उतरा......

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