Mastram Sex kahani मर्द का बच्चा - Page 4 - SexBaba
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Mastram Sex kahani मर्द का बच्चा

ऋतु- लल्लू तुम्हे मेरी कसम है अभी मुझे छोड़ दे. बहुत जलन हो रहा है और पैर भी दर्द कर रहा है. मुझे थोड़ा साँस लेने दे फिर करना.

लल्लू ऋतु की बात सुना ही नही.
उसके कान में तो बस काजल नाम घूम रहा था जो ऋतु झरते हुए बोली थी.

लल्लू सटक से ऋतु की चूत से लंड निकल कर उस पर ढेर सारा थूक लगाया और ऋतु जो खुश हो कर बैठने जा रही थी साँस दुरुस्त करने को, उसे उठा कर अपने गोद में ले लिया और नीचे से ठोक दिया बुर में पूरा लॉडा.

ऋतु- आहह आज ये मेरि जान ले कर मानेगा.. हे भगवान्नन् बचाअ ले.. आगीए कभि नहिी चुदुन्गी इस पागल्ल्ल वाहसीईई गधे के लौडईए से..

लल्लू हुमच हच कर ऋतु को उछलता हुआ चोदे जा रहा था.

थोड़ी देर में उसे ले कर वही एक फटे कॅमपिंग क्लॉत पर लेटा कर ऋतु के दोनो पैर को कंधे पर डाल छोड़ दिया अपना मिशल

ऋतु इस धक्के से गंगना गई.
ऋतु- कोइ बचा लो रीए. मार देगा मुझीए.

लल्लू अब अपने मंज़िल के करीब था. अब उसे कुछ नही दिख रहा था. वो ऋतु के दोनो पैर को ऋतु के छाती से चिपका कर ऋतु के ऊपर सवार हो हचक हचक कर चोदे जा रहा था फुल स्पीड में.

लल्लू एक आखरी शॉट लगा कर ऋतु के अंदर ही भलभला कर झरने लगा.

लल्लू के हाथ से ऋतु का पैर छूट गये.

ऋतु अपने पैर को फ्री होते ही हाथ पैर फैलाए लल्लू के पानी को फील करती काँपति वो भी झड़ रही थी..
ऋतु और लल्लू पूरे पसीने से भींगे हुए थे.

काफ़ी देर तक वहाँ सोए रहे वो दोनो.
ऋतु के आँखो से टपटप आँसू बह रहे थे.

लल्लू कभी दोनो चुचे दबाता तो कभी उसके मटके जैसी गान्ड क फांको को मसलने लगता.

कुछ देर ऐसे ही मसलने के बाद ऋतु का रोना कम हुआ तब लल्लू हल्के हल्के अपना लॉडा निकाल कर धीरे डालने लगा.
अभी थोड़ा ही बाहर निकालता और फिर पूरा घुसा देता था अपना लॉडा.

ऋतु को बार बार अपने पेट में बच्चेदानी पर ठोकर लगता महसूस होता.

ऋतु- कितना बड़ा है एक मुई का लॉडा. बिल्कुल गधे का है.
पता नही किस घड़ी पैदा किया था इस गधे के लौड़े को काजल.

लल्लू अब आधे से ज़्यादा लॉडा निकाल कर पेलने लगा ऋतु को.

चुचे दबाता हुआ लल्लू अब हुमच हुमच कर धक्का मारने लगा.
ऋतु हर धक्के पर कराह उठती.
ऋतु के हाथ से रेलिंग छूट जाता तो फिर उसे मजबूती से पकड़ लेती और अगले धक्के में फिर छूट जाता.

ऋतु की गान्ड लाल हो गई थी लल्लू के कमर से लग कर.
खुले आसमान के नीचे चाँदनी रात में ये दोनो दिन दुनिया से बेख़बर ठप ठप ठप की मधुर संगीत बजाए जा रहे थे.

ऋतु- आअहह मुआअ कैसी चोद रहा है.. जैसे इसीई किी माआ काजरिी की भोसरा हूँ. हाय्यी माआ रीि मेनी गैइइ..
ऋतु चिल्लाते हुए झरने लगी.

लल्लू अपने मा का नाम ऋतु के मूह से सुन कर सुन्न्ं हो गया.
उसका लॉडा जैसे और सख़्त हो गया मोटाई जैसे और बढ़ गई.
लल्लू अब तूफ़ानी गति से ऋतु के गान्ड को मसलते हुए चोदे जा रहा था.

लल्लू- ली रनडिीई बादीई गर्मी त्ीी च्छुप्प्प कार रात को लॉडा चुस्टिीई है. ले अब मेरा लोडाअ आज भोसड़ाअ बनंाअ दूँगा. आहह मेरि रनडिीई रितुऊउ.

लल्लू पता नही क्या बके जा रहा था और ऋतु के चुचे और गान्ड को तो मसल मसल कर फूला दिया था.
ऋतु लल्लू के हैवानियत को सहन नही कर पा रही थी.
जैसे उसे लग रहा था की इस से अच्छा तो वो कुवारि रह लेती. कभी नही चुदती.
अभी वो दो बार झड़ चुकी थी और अब उसको जलन हो रहा था अंदर.
लल्लू अभी वाहसी पागल था और ऋतु भी आधेर उम्र की गदराई गाय.
 
ऋतु में गर्मी बहुत थी लेकिन एक तो उम्र और दूसरा लल्लू ठहरा अर्ध पागल.
ऋतु लल्लू को अब झेल नही पा रही थी.

ऋतु- लल्लू तुम्हे मेरी कसम है अभी मुझे छोड़ दे. बहुत जलन हो रहा है और पैर भी दर्द कर रहा है. मुझे थोड़ा साँस लेने दे फिर करना.

लल्लू ऋतु की बात सुना ही नही.
उसके कान में तो बस काजल नाम घूम रहा था जो ऋतु झड़ते हुए बोली थी.

लल्लू सटाक से ऋतु की चूत से लंड निकाल कर उस पर ढेर सारा थूक लगाया और ऋतु जो खुश हो कर बैठने जा रही थी साँस दुरुस्त करने को, उसे उठा कर अपने गोद में ले लिया और नीचे से ठोक दिया बुर में पूरा लॉडा.

ऋतु- आहह आज ये मेरि जान ले कर मानेगा.. हे भगवान्नन् बचाअ ले.. आगे कभी नहीं चुदुन्गी इस पागल्ल्ल वहशीईई गधे के लोंडे से..

लल्लू हुमच हच कर ऋतु को उछलता हुआ चोदे जा रहा था.

थोड़ी देर में उसे ले कर वही एक फटे कॅमपिंग क्लॉत पर लिटा कर ऋतु के दोनो पैर को कंधे पर डाल छोड़ दिया अपना मिसाइल

ऋतु इस धक्के से गंगना गई.
ऋतु- कोइ बचा लो रीए. मार देगा मुझे.

लल्लू अब अपने मंज़िल के करीब था. अब उसे कुछ नही दिख रहा था. वो ऋतु के दोनो पैर को ऋतु के छाती से चिपका कर ऋतु के ऊपर सवार हो हचक हचक कर चोदे जा रहा था फुल स्पीड में.

लल्लू एक आखरी शॉट लगा कर ऋतु के अंदर ही भलभला कर झड़ने लगा.

लल्लू के हाथ से ऋतु का पैर छूट गये.

ऋतु अपने पैर को फ्री होते ही हाथ पैर फैलाए लल्लू के पानी को फील करती काँपति वो भी झड़ रही थी..
ऋतु और लल्लू पूरे पसीने से भींगे हुए थे.

काफ़ी देर तक वहाँ सोए रहे वो दोनो.
ऋतु की आँखो से टपटप आँसू बह रहे थे.

लल्लू कभी दोनो चुचे दबाता तो कभी उसके मटके जैसी गान्ड की फांको को मसलने लगता.

कुछ देर ऐसे ही मसलने के बाद ऋतु का रोना कम हुआ तब लल्लू हल्के हल्के अपना लॉडा निकाल कर धीरे डालने लगा.
अभी थोड़ा ही बाहर निकालता और फिर पूरा घुसा देता था अपना लॉडा.

ऋतु को बार बार अपने पेट में बच्चेदानी पर ठोकर लगता महसूस होता.

ऋतु- कितना बड़ा है मुई का लॉडा. बिल्कुल गधे का है.
पता नही किस घड़ी पैदा किया था इस गधे के लौड़े को काजल.

लल्लू अब आधे से ज़्यादा लॉडा निकाल कर पेलने लगा ऋतु को.

चुचे दबाता हुआ लल्लू अब हुमच हुमच कर धक्का मारने लगा.
ऋतु हर धक्के पर कराह उठती.
ऋतु के हाथ से रेलिंग छूट जाता तो फिर उसे मजबूती से पकड़ लेती और अगले धक्के में फिर छूट जाता.

ऋतु की गान्ड लाल हो गई थी लल्लू के कमर से लग कर.
खुले आसमान के नीचे चाँदनी रात में ये दोनो दिन दुनिया से बेख़बर ठप ठप ठप की मधुर संगीत बजाए जा रहे थे.

ऋतु- आअहह मुआअ कैसी चोद रहा है.. जैसे इसीई किी माआ काजरिी की भोसरा हूँ. हाय्यी माआ रीि मेनी गैइइ..
ऋतु चिल्लाते हुए झड़ने लगी.

लल्लू अपने मा का नाम ऋतु के मूह से सुन कर सुन्न्ं हो गया.
उसका लॉडा जैसे और सख़्त हो गया मोटाई जैसे और बढ़ गई.
लल्लू अब तूफ़ानी गति से ऋतु के गान्ड को मसलते हुए चोदे जा रहा था.

लल्लू- ली रनडिीई बादीई गर्मी त्ीी च्छुप्प्प कार रात को लॉडा चुस्टिीई है. ले अब मेरा लोडाअ आज भोसड़ाअ बनंाअ दूँगा. आहह मेरि रनडिीई रितुऊउ.

लल्लू पता नही क्या बके जा रहा था और ऋतु के चुचे और गान्ड को तो मसल मसल कर फूला दिया था.
ऋतु लल्लू के हैवानियत को सहन नही कर पा रही थी.
जैसे उसे लग रहा था की इस से अच्छा तो वो कुवारि रह लेती. कभी नही चुदती.
अभी वो दो बार झड़ चुकी थी और अब उसको जलन हो रहा था अंदर.
लल्लू अभी वहशी पागल था और ऋतु भी अधेड उम्र की गदराई गाय.

ऋतु में गर्मी बहुत थी लेकिन एक तो उम्र और दूसरा लल्लू ठहरा अर्ध पागल.
ऋतु लल्लू को अब झेल नही पा रही थी.

ऋतु- लल्लू तुम्हे मेरी कसम है अभी मुझे छोड़ दे. बहुत जलन हो रहा है और पैर भी दर्द कर रहा है. मुझे थोड़ा साँस लेने दे फिर करना.

लल्लू ऋतु की बात सुना ही नही.
उसके कान में तो बस काजल नाम घूम रहा था जो ऋतु झड़ते हुए बोली थी.
 
ऋतु- लल्लू तुम्हे मेरी कसम है अभी मुझे छोड़ दे. बहुत जलन हो रहा है और पैर भी दर्द कर रहा है. मुझे थोड़ा साँस लेने दे फिर करना.

लल्लू ऋतु की बात सुना ही नही.
उसके कान में तो बस काजल नाम घूम रहा था जो ऋतु झड़ते हुए बोली थी.

लल्लू सटाक से ऋतु की चूत से लंड निकाल कर उस पर ढेर सारा थूक लगाया और ऋतु जो खुश हो कर बैठने जा रही थी साँस दुरुस्त करने को, उसे उठा कर अपने गोद में ले लिया और नीचे से ठोक दिया बुर में पूरा लॉडा.

ऋतु- आहह आज ये मेरि जान ले कर मानेगा.. हे भगवान्नन् बचाअ ले.. आगे कभी नहीं चुदुन्गी इस पागल्ल्ल वहशीईई गधे के लोंडे से..

लल्लू हुमच हच कर ऋतु को उछालता हुआ चोदे जा रहा था.

थोड़ी देर में उसे ले कर वही एक फटे कॅमपिंग क्लॉत पर लिटा कर ऋतु के दोनो पैर को कंधे पर डाल छोड़ दिया अपना मिसाइल

ऋतु इस धक्के से गंगना गई.
ऋतु- कोइ बचा लो रीए. मार देगा मुझे.

लल्लू अब अपने मंज़िल के करीब था. अब उसे कुछ नही दिख रहा था. वो ऋतु के दोनो पैर को ऋतु के छाती से चिपका कर ऋतु के ऊपर सवार हो हचक हचक कर चोदे जा रहा था फुल स्पीड में.

लल्लू एक आखरी शॉट लगा कर ऋतु के अंदर ही भलभला कर झड़ने लगा.

लल्लू के हाथ से ऋतु का पैर छूट गये.
ऋतु अपने पैर को फ्री होते ही हाथ पैर फैलाए लल्लू के पानी को फील करती काँपति वो भी झड़ रही थी..
ऋतु और लल्लू पूरे पसीने से भींगे हुए थे.

काफ़ी देर तक वहाँ सोए रहे वो दोनो.
 
सुबह दरवाजा खटकने से लल्लू का ध्यान टूटा.

एक नज़र ऋतु को देखा तो वो सोई हुई थी.
लल्लू आगे बढ़ कर दरवाजा खोल दिया.

दरवाजे पर काका खड़े थे.
अनिल- क्या बात है. आज नींद नही खुली क्या.
लल्लू- क्या करू. दिन में कोई काम नही था तो सो गया था. रात में नींद नही आई. अभी जा कर सोया था की आप आ कर उठा दिए.

अनिल- चलो कोई नही. फ्रेश हो जाओ. अपनी काकी को भी उठा देना. फिर चलते है संगम स्नान पर.

काका चले गये.
लल्लू दरवाजा लगा कर ( काकी को उठाऊ या अपनी लुगाई को) अपने आप से बड़बड़ाता ऋतु के पास आया और उसके चुचे को पकड़ कर सहलाने लगा.

ऋतु कुन्मूनाने लगी.
लल्लू ऋतु के होंठो को मूह में भर कर उसका रस चूसने लगा तो ऋतु की नींद खुल गई.
थोड़ी देर बाद ऋतु भी लल्लू का भरपूर साथ दे रही थी.

लल्लू अलग हो कर बैठ गया. मन तो नही था हटने का लेकिन अभी समय नही था ये सब करने का.

लल्लू- काका आए थे. जल्दी से जा कर फ्रेश हो जाओ फिर स्नान को चलना है.

ऋतु अंगड़ाई लेती हुई उठती है और एक चमत लगा देती है लल्लू को.
ऋतु- आअहह हरामी साले. पूरा बदन दर्द कर रहा है. मुझे पैर नही उठाया जा रहा जैसे लगता है की अभी भी लॉडा घुसा है मेरी बुर में.

लल्लू हँसता हुआ ऋतु की बुर को सहला दिया.
ऋतु सस्सिईई सस्सीई करती हुई पीछे हो गई हल्के से.
फिर ऋतु अपने कपड़े को सही कर के बाहर फ्रेश होने को चली गई.

ऋतु फ्रेश हो कर आ कर लल्लू को एक चमत फिर लगा दी.

ऋतु- कुत्ते, क्या हालत बना दिया है तू ने मेरे सोन परी का.

लल्लू- मैने क्या किया. तू ही तो बोल रही थी की ऐसे चोदना की बाहर निकलु तो लोग मेरा चाल देख कर बोले देख अपने ख़सम से सारी रात हुमच हुम्मच कर चुदवा कर आई है.

ऋतु लल्लू की बाते सुन् कर शरमा गई. शरम से उसके गाल बिल्कुल टमाटर की तरह लाल हो गये.

लल्लू बाहर निकल कर फ्रेश होने चला गया.
वहाँ से आ कर सारे कपड़े जो नहा कर पहनने थे वो एक बाग में डाल कर सभी चल दिए स्नान करने.
 
लल्लू बाहर निकल कर फ्रेश होने चला गया.
वहाँ से आ कर सारे कपड़े जो नहा कर पहनने थे वो एक बाग में डाल कर सभी चल दिए स्नान करने.

आज, कल इतनी भीड़ नही थी. कल कुंभ स्नान था. तो काफ़ी सारे लोग कल ही स्नान कर के चले गये थे. दूसरा कल भगदड़ भी मच गई थी तो कुछ दर से भी चले गये थे.

अनिल- क्या बात है ऐसे क्यू चल रही है. ( अनिल ऋतु की चाल देख कर बोला)

ऋतु शरमा गई. घबरा भी गई. अब क्या बोले अपने इस ख़सम को की वो उसको छोड़ कर अपने देवर के बेटे से, अपने बेटे से भी उम्र में छोटे लड़के से ब्याह कर के उसकी लुगाई बन गई है. उसकी रंडी बन गई है और रात भर उस से जम के चुदवाई है. इतनी चुदी है जितना तो इसने एक शाल में नही चोदा होगा. इतना इस नये ख़सम ने उसके फतार ने उसे एक रात में चोद दिया है.

ऋतु- वो रात अंधेरे में ठोकर लग गई थी. तो पैर में मोच आ गया था.

लल्लू ऋतु के की चाल को देख कर मूह दबा कर हिस्से जा रहा था. लल्लू से तो के बेटे ही नही रुक रही थी. और ऋतु बड़ी बड़ी आँख कर के लल्लू को धमकाया जा रही थी.

यू ही मज़े करते हुए चारो संगम पर पहुच गये.

चारो लोग नहा कर रोड पर आ गये.
अनिल काका ने एक ए-रिक्शा किराए पर किए कुंभ क सारे स्थल के दर्शन के लिए.

ये लोग उस में बैठ कर चल दिए भगवान के दर्शन को.
संगम में स्नान किए ही थे ये लोग तो वहाँ परतम नायक का पूजा कर ही लिए थे त्रिवेणी के

उस के बाद ये लोग चल दिए दूसरे नायक के दर्शन को. माधव मंदिर. जिन में सब से प्रमुख हैं बेनी माधव.

वैसे तो पूरे प्रयाग में कुल बारह माधव मंदिर है लेकिन सब में नही घूम सकते थे क्यू की आज ही जाना भी था घर तो ये लोग बेनी माधव मंदिर जा कर वहाँ पूजा अर्चना किए.

लल्लू ऋतु के साथ पति पत्नी के रूप में ही पूजा किया क्योंकि काका तो दादू के साथ थे.

लल्लू इन से थोड़ा आगे या पीछे हो जाता था इन समय में और दोनो पति पत्नी बन कर पूजा कर लेते है.

फिर वॉया से ये लोग तीसरे नायक को चल दिए.
तीसरे नायक है सोमेश्वर मंदिर.

यहाँ भगवान शिव की मंदिर है.
यहाँ आने पर बहुत भीड़ थी यहाँ.

दादू और काका एक लाइन में घुस गये लेकिन लल्लू और ऋतु जा ही नही पा रहे थे. तभी वहाँ एक साधु बाबा आए जो लल्लू का हाथ पकड़ कर एक और ले गये. लल्लू ऋतु का हाथ पकड़े हुए था तो दोनो साधु बाबा के पीछे खीछे चले गये.
थोड़ी दूर जाने पर साधी बाबा एक कुंड के पास आ कर रुक गये.

साधु बाबा- ये सीता कुंड है. यहाँ इस सोमेश्वर स्थान में श्व्यं चंद्रमा अमृत वर्षा किए है.

तुम दोनो एक कुंड में स्नान कर लो फिर प्रभु भोले सोमेश्वर की पूजा करना.

लल्लू और ऋतु एक दूसरे का मूह देख रहे थे.
साधु बाबा वहाँ से चले गये थे.

लल्लू ऋतु का हाथ पकड़ कर कुंड में उतर गये.
दोनो उस कुंड में नहा कर बाहर आ गये.
वही पास में एक बच्चा इनके लिए कपड़ा ले कर खड़ा था.
 
दोनो उस कुंड में नहा कर बाहर आ गये.
वही पास में एक बच्चा इनके लिए कपड़ा ले कर खड़ा था.
बच्चा- ये आप दोनो के लिए.

लल्लू और ऋतु फिर एक दूसरे को देखने लगे. उन्हे समझ ही नही आ रहा था की ये हो क्या रहा है.
खैर अभी उनके कपड़े तो भींग गये थे तो दोनो उस बच्चे से कपड़ा ले कर जल्दी से बदल लिए.
वहाँ से वो लोग मंदिर में पहुच गये.

मंदिर में जा कर फिर दोनो एक जोड़े की तरह पूजा अर्चना की प्रभु सोमेश्वर महादेव की.

वहाँ प्रभु सोमेश्वर को गंगा जल और फूल अर्पण कर जैसे ही प्रणाम करने को छुआ लल्लू ने उसे लगा जैसे उसके पूरे शरीर में चीटियाँ फेंग गई हो.

बदन के सारे रोए खड़े हो गये.
लल्लू पूरा पसीने से भीग गया.
उसकी धडकन बहुत तेज चलने लगा. आँखे मूंद गई.

चलो जल्दी पूजा कर निकलो यहाँ से. दूसरे भक्तो को पूजा करने दो. वहाँ खड़ा एक पंडा लल्लू के कंधे से पकड़ कर हिलाता बोला.

तब कही जा कर लल्लू को होश आया. फिर ऋतु को साथ ले कर लल्लू मंदिर से बाहर आ गया.

वहाँ से निकल कर फिर चारो पहुचे चौथे नायक भारद्वाज आश्रम.

यहाँ भारद्वाज आश्रम में महर्षि भारद्वाज ने एक शिव लिंग की स्थापना की है जिन्हे भारद्वाजेश्वेर शिव के नाम से जानते है.
ये सभी लोग वहाँ जा कर उनकी पूजा अर्चना करते है.

वहाँ से आगे पाँचवा नायक नाग वाशुकी का मंदिर.
यहाँ नाग वाशुकी के साथ उनके भाई सेशनाग की भी मूर्ति है इनकी भी पूजा की जाती है यहाँ.

लल्लू को यहाँ लग रहा था जैसे कोई उसे मंदिर में खिच रहा है. अपने आप को बहुत रोकने की कोसिस कर रहा था लेकिन उसके कदम रुक ही नही रहे थे.

मंदिर में वो सब से पहले जा पहुचा. कई बार तो दूसरे को धक्का भी लग गया.
सब से बचता बचाता वो मंदिर में पहुच गया और वहाँ सीधा प्रभु वाशुकी के पास चला गया.
ऐसा लग रहा था जैसे वो खुद लल्लू को अपने पास खिच लाए हो.

लल्लू उनको च्छू कर प्रणाम करने को जैसे ही हाथ बढ़ाया वैसे ही उस के पूरे शरीर में बड़ी तेज झटका लगा. जैसे लगा किसी ने उसके हाथ में काट लिया हो.

उसने गौर से देखा तो वहाँ दो निशान भी थे जिस से हल्का खून बह रहा था.

लल्लू के होश फाख्ता हो गये. उसे लगा की अब वो जिंदा नही बचेगा. उसके आँखो के आगे अंधेरा च्छा गया.
लल्लू भगवान वाशुकी की मूरत के आगे ही चकरा कर गिरने लगा की किसी ने उसे पीछे से पकड़ लिया.

उस के सिर पर पानी डाला. तब जा कर लल्लू को थोड़ा होश आया.

तब तक ऋतु भी पास आ गई थी.

फिर ऋतु लल्लू को ले कर नाग सेशनाग जी के मूरत के पास आ गई पूजा के लिए.
लल्लू वाशुकी की पूजा में जो हुआ उस से डर गया था.
फिर भी अभी यहाँ ऋतु भी साथ थी तो लल्लू डरता हुआ हाथ बढ़ा कर भगवान शेस्नाग पर गंगाजल और पुष्प अर्पण किया.
डरते डरते हाथ बढ़ाया ऋतु के हाथ को पकड़े हुए. लल्लू डर गये उसका पूरा शरीर कांप रहा था.
लल्लू जल्दी से हाथ बढ़ा कर उन्हे च्छू लिया. छूते ही एक बार फिर लल्लू को लगा जैसे उसके पूरे शरीर में शीतलता समा गई हो.

इस बार कुछ अलग हुआ था.
पहली बार उसे लगा जैसे बिजली का झटका लगा है और किसी ने हाथ में काट लिया है लेकिन इस बार उसके पूरे शरीर में शीतलता से भर गया. अब लल्लू को बहुत अच्छा लग रहा था.

फिर वहाँ से निकल कर चारो चल दिए नायक की पूजा में.
नायक है अक्षय वट.
संगम के निकट ये अक्षय वट.
कहा गया है की ऐसे तीन वट और है भारत में जिन में से एक मथुरा के वृंदावन में है बंशिवट.

गया में है गया वट या बोधिवृक्ष.

तीसरा है उज्जैन में सिद्ध वट.

तो ये चारो लोग अक्षय वट की पूजा अर्चना की.

सातवा नायक नाग सेशनाग.
इनका और नाग वाशुकी का मंदिर दोनो एक ही है.
दोनो की पूजा साथ हो जाती है.
आठवा नायक तीर्थ राज प्रयाग . जिन्हे माधव राज भी कहा जाता है.

यहाँ इनकी पूजा की और फिर पराशद और घर वालो के लिए थोड़ा बहुत समान खरीद कर ये लोग धर्मशाला चले गये.
धर्मशाला पहुच कर फ्रेश हुए और जल्दी से खाना खा कर अपना सारा समान समेट रेलवे स्टेशन पहुच गये.
वहाँ ट्रेन खुलने वाली ही थी.
जल्दी जल्दी करते हुए जैसे तैसे ये लोग ट्रेन पकड़ लिए.

ट्रेन में अपने बर्थ पर बैठने के बाद इन्हे सुकून का साँस लेने को मिला.

घूमने पूजा करने में बहुत समय लग गया और आज ही निकलना भी था इन्हे. कल का दिन तो इनका वैसे ही खराब हो गया था.
फिर भी आज भी घूमे तो लेकिन कई महत्वपूर्ण मंदिर पूजा करने को रह गया जिसका मलाल इन लोगो को अभी भी हो रहा था.
 
अपडेट 14.

सुबह के 3 बजे ये लोग अपने स्टेशन पर पहुच गये थे.

स्टेशन से बाहर सुनील काका गाड़ी ले कर खड़े थे.
लल्लू सारा समान अपने कंधे पर लटकाए दादू काका काकी के साथ स्टेशन से बाहर आ गया.

सारा समान गाड़ी में रखने के बाद एक एक कर सब गाड़ी में बैठ गये.

थोड़ी देर में ही ये लोग घर पहुच गये.

घर पहुच कर सब समान निकाल लल्लू दालान पर रखा. काकी आँगन में चली गई. दादू और अनिल हाथ पैर धो अपने पाने बिस्तर पर लेट गये.
लल्लू दादू का समान वही दालान क कमरे में रख बाकी समान ले कर आँगन आ गया.

काजल- आ गया मेरा लाल. कितना सुना हो गया था ये घर तेरे बिना. ( काजल लल्लू के गाल को सहलाता बोला)

लल्लू- मा अभी बहुत जोरो की नींद आई है. मुझे कही सोने दो. बहुत थक भी गया हूँ.
काजल- आ मेरे लाल. पहले हाथ पैर धो आ. आज मेरे प्यारा बेटा अपनी मा के साथ सोएगा.

लल्लू नलका पर जा कर हाथ पैर धो आया.
वापस आ कर अपने मा क कमरे में चला गया.

काजल के कमरे में डबल बेड था.
लल्लू की मा लल्लू का लाया बॅग सही से रख रही थी.

लल्लू आ कर अपने कपड़े बदल एक धोती लपेट कर बेड पर आ गया.
लल्लू- मा मुझे आज कोई उठना मत जबतक में खुद ना उठ जाऊ.

मा- ठीक है बेटा सो जा अब तू.

लल्लू आँख बंद कर सोने की कोशिश करने लगा.

काजल भी समान रख कर बेड पर आ गई और लल्लू के ललाट पर एक चुम्मि दे कर सोने को लेट गई.

सुबह बाहर सब के शोर गुल से काजल की नींद खुल गई.

काजल उठने लगी तो देखती है की लल्लू पीछे से उसे अपने बाहों में ले कर सोया हुआ है.
काजल मुस्काती हुई आहिस्ते से लल्लू के हाथ को अपने ऊपर से हटा कर बेड से नीचे उतर गई.

काजल पलट कर जाने लगी की उसे कुछ दिखा जिसे देख कर काजल की आँखे बाहर को आने को हो गई.

काजल घूर घूर कर देख रही थी.

लल्लू जो धोती पहन कर सोया था वो खुल गया था और लल्लू का बाबूराव सुबह सुबह उठ खड़ा हुआ था.
बाबूराव का भायनक रूप देख कर काजल हैरान हो गई.

आज तक उसने एक ही लॉडा देखी थी वो भी अपने पति का मूँगफली जितना.
लल्लू का ये विकराल रूप काजल को पसीना छुड़ाने के लिए काफ़ी था.

काजल वापस लल्लू के बदन पर धोती डाल कर उसके ऊपर एक चादर डाल दी.

काजल अपने सीने पर हाथ रख कर खुद की बढ़ी सासो को संभालती दरवाजा खोल कर बाहर आ गई.

काजल- क्यू हल्ला कर रहे हो इतना. काकी और लल्लू सुबह आए है कुंभ से. अभी सो रहे है. हल्ला मत करो.

कोमल- मा, काकी क्या लाई है हमारे लिए दो ना.
कोमल के साथ बाकी बहने भी आ कर खड़ी हो गई.

काजल- अभी काकी सो रही है. जब सो कर उठेगी तब खुद देगी.

सोनम- काकी आप ही दे दो ना प्लीज़. आप तो मेरी प्यारी काकी हो ना.

काजल- ज़्यादा मस्का मत लगा तुम लोग चल घर की सफाई कर सब मिल कर. ( काजल सोनम क कान को पकड़ती बोली.)

सब लड़किया मूह टेढ़ा करती घर के कामों में लग गई.

रागिनी- कब तक सोए रहेंगे ये लोग. काजल जा कर दोनो को उठा दे अब. नहाए धोए फ्रेश हो कर खाना खाए. अब फिर रात में भी सोना है इन्हे नही तो फिर रात नींद नही आएगी.

काजल जा कर पहले ऋतु को उठा दी. फिर अपने कमरे में जा कर लल्लू को उठाने लगी.
लल्लू अंगड़ाई लेता उठ कर बैठ गया. सामने मा को देख कर उसे गले लगा लिया.

काजल- अब प्यार करना हो गया हो तो जा नहा कर कुछ खा पी ले.

लल्लू काजल के गाल को चूमता बाहर चला गया.
काजल अपने पागल बेटे क हरकत पर मुस्काती बेड साफ कर दूसरा चादर बिछा दी फिर गौरी को रूम में झारी लगाने को बोल कर बाहर आ गई.

लल्लू उठ कर दालान पर आ गया. यहाँ अब दादू और अनिल सो कर उठ गये थे और स्नान कर लिए थे.

दादू- लल्लू बेटा. तुम नहाए या नही.
लल्लू- दादू अभी अभी सो कर उठा हूँ.

अनिल- बेटा जा कर नहा ले फिर सब खाना खाते है.

लल्लू वही दालान पर बाथरूम में फ्रेश हुआ फिर नलका पर नहा कर आँगन में आ गया.
लल्लू- मा.. माआ..

रागिनी- क्यू चिल्ला रहा है. काजल रसोई में खाना बना रही है.

लल्लू- काकी कपड़ा चाहिए पहनने को.
इस समय लल्लू सिर्फ़ एक टवल कमर पर लपेटे आँगन में खड़ा था.

रागिनी- हाय्यी रामम्म ये टट्टू कहाँ से बनवा ली तू ने.

लल्लू- टट्टू.:

रागिनी- हा देख कितना करा रखा है. क्या पूरे बदन पर करवा लिया है.

लल्लू- अपने बदन को देखते हुए कहाँ है कुछ काकी.क्या टट्टू बोल रही हो.

रागिनी- बुद्धू पीठ पर देख. पूरे जगह टट्टू बना हुआ है अजीब सा.

लल्लू- काकी अपने पीठ को कैसे देख सकता हूँ में.

रीगिनी काकी एक दर्पण ला कर लल्लू की पीठ को दिखाती है.
लल्लू दर्पण में अपने पीठ देख कर चौक जाता है.
पूरी पीठ पर अजीब सा टॅटू बना हुआ था.
लल्लू- बहनचोद ये क्या है. ये कब हो गया.

रागिनी काकी- क्या मतलब. तुम्हारी पीठ पर इतना बड़ा पूरे पीठ में टट्टू बना है और तुम्हे ही पता नही.

लल्लू- नही मेरा मतलब. में बोला था छोटा बनाने को उस ने तो पूरे पीठ पर बना दिया है.
 
अपडेट 15.

लल्लू- काकी मेरा कपड़ा दो ना.आई कब तक टवल में खड़ा रहूँ.

रागिनी काकी- देती हूँ बाबा. वैसे लल्लू बेटा. बॉडी सॉफ्ट तो बड़ा जबरदस्त बना ली है तुम ने. मैने तो आज गौर किया है.

लल्लू- क्या हो गया है आज आप को काकी. ऐसा कुछ नही है. में जैसा पहले था वैसा ही अब भी हूँ.
लल्लू अपने आप को निहारता हुआ बोल रहा था तभी उसे भी अपने शरीर में कुछ बदलाव महसूस हुआ.

गाँव का गँवार जैसे बोलते है एक तरह से लल्लू वही था. ज़्यादा पढ़ नही पाया था.
बहने जब घर में पढ़ती है तो कभी कभी वही बैठ जाया करता था. बाकी गाँव में घूमना. काका लोगो के साथ खेत में मेहनत करना और समय बच गया तो सुबह शाम नदी किनारे बैठा रहना. यही तो उसकी दिनचर्या था.

आज उसे अपना शरीर पहले क मुक़ाबले थोड़ा मजबूत लग रहा था. छाती फूल गई थी. बाह की मछलिया निकल आई थी. पेट भी अंदर धश गया था. कही कोई चर्बी नही था.

लल्लू को तो कुछ समझ ही नही आ रहा था की आख़िर ये हुए क्या है और कैसे.

रागिनी कपड़ा निकाल कर दे दी.
लल्लू फटाफट धोरी लपेट लिया. ऊपर जब टीशर्ट पहनने लगा तो वो बिल्कुल टाइट हो गया.
लल्लू मा के पास चला गया जो रसोई में सब के लिए शालिनी और ऋतु के साथ खाना निकाल रही थी.

लल्लू-मा, ये देखो ना. कितना छोटा हो गया ये कपड़ा. जैसे लगता है मेरा सब शरीर इस में दब गया है.

सारे लॅडीस लल्लू की बात सुन कर उसकी और सर उठा कर देखने लगे की अब लल्लू कोई उल्टी सीधी बाते बोल कर सब को हसाएगा. लेकिन जब सब ने लल्लू की और देखा तो सही में ये टीशर्ट लल्लू के लिए छोटा हो गया था.

काजल- कोमल के पास चला जा और उसे बोलना दूसरा देगा.

लल्लू जैसे तैसे उस टीशर्ट को निकल कर लड़कियो क कमरे में चला गया.
सारी लड़किया दो कमरे ले रखी थी जो एक दूसरे से जॉइंट था. उसी में ये सभी एके साथ रहती थी.

लल्लू- दीदी दीदी कहाँ हो.
लल्लू बाहर से ही आवाज़ देता हुआ अंदर घुश गया.
अंदर सोनम कमरे में कपड़ा बदल रही थी.
अभी वो सिर्फ़ एक चड्डी में थी.

लल्लू के कमरे में घुसते ही चटाक़ से थप्पड़ लगा.

रोमा- हरामी, गधे, पागल. दरवाजा खटका कर नही आ सकता था.
लल्लू गाल पे हाथ रखे स्तब्ध खड़ा रह गया.
उसे समझ ही नही आया की उसे मारा क्यू गया है.
लल्लू- दीदी, मुझे क्यू मारा आप ने. ( अब लल्लू के आँखो से आँसू निकल रहे थे)

कोमल- कुत्ते दरवाजा बजा कर नही आ सकता था अंदर. घुसता हुआ आ गया. सोनम दी कपड़े बदल रही थी.

लल्लू- तो क्या हो गया. में भी तो कुछ नही पहना है. मैने तो किसी को नही मारा. ( अब लल्लू हिचकिया ले कर रोता हुआ बोला)
लल्लू- मा...में मा.आ.आ को बा..ता डू.न.गा की सब म.उजह.ए मा.रा है. और पा..गा.एल बोला है..

लल्लू वहाँ से निकल कर रोता हुआ रसोई में आ गया.

लल्लू- ( रोता हुआ) दी..दी गा..न्ड है..मु.झे मा.. रती है. में..नही जा.उँगा. उन लो.गो के पास . वो सब म.उजह.ए प.आ.ग.आ.ल कहते है.

ऋतु- किस ने मारा तुम्हे.

काजल ऋतु रागिनी शालिनी सब लल्लू की और देख रहे थे.

लल्लू- सब ने मुझे मारा है. रोमा दीदी कोमल दीदी.
सब गंदे है.

लल्लू टीशर्ट फेक कर दालान की और चला गया रोता हुआ.
दालान से सब आँगन में खाना खाने आ रहे थे.
दादू के साथ लल्लू के तीनो काका और उसके पापा सब साथ ही थे.
लल्लू को रोता देख कर सुनील आगे आ कर उसे पकड़ लिया.

सुनील- क्या हुआ मेरे बेटे को.
 
सुनील- क्या हुआ मेरे बेटे को.

लल्लू- ( सुनील लल्लू को बाट मानता था. लल्लू भी काका में सब से ज़्यादा सुनील के ही करीब था और काकी में ऋतु के)

सुनील- किस ने मारा है मेरे बेटे को. ( सुनील लल्लू को गले लगा लिया और ले कर आँगन में खत पर बैठ गया.)

दादू- मेरा बहादुर बेटा है तु तो. तुम बच्चो की तरह क्यू रो रहे हो. ऐसे नही रोते बहादुर बच्चे. तू तो मर्द का बच्चा है.

लल्लू- ...( रुलाई और तेज हो गई उस से कुछ बोला ही नही गया.)

सुनील- रागिनी.( सुनील गुस्से में ज़ोर से चिल्लाता हुआ.)

रागिनी काकी दौड़ कर रसोई से बाहर आई.
सुनील- बहरी हो गई हो क्या घर में सब के सब. इतने देर से ये रो रहा है तुम सब को सुनाई नही देता क्या कुछ. इतनी औरते हो कर क्या कर रही हो तुम लोग.

ऋतु- क्यू गुस्सा कर रहे हो आप. अभी अभी तो यहाँ से दालान की तरफ जा रहा था. किसी लड़की ने डाँट दिया है थोड़ा सा.

लल्लू- रो..मा दी..दी और को...कोमल.. दी दी.ई. ने मारा है मु..झे. दो दो था..प्पर.

सुनील- मतलब सब को पता था की लल्लू रो रहा है और किसी ने इसे चुप नही कराया. रोने दिया इसे. कल अगर ये नही होता ना तो आप का पापा और भैया के साथ वही कुंभ में चटनी बन जाता. यही था जो बच गये सब. और इसे ही सब ने रोते हुए देख कर भी छोड़ दिया.
बांधो सब अपना बोरिया बिस्तर. कोई औरत मुझे नही चाहिए इस घर में. बहनचोद जब तुम से एक बच्चा नही संभलता तो क्या तुम सब को सिर्फ़ महारानी बन कर शृंगार करने और खाने को रखा है यहाँ. भागो सब अपने बाप के घर.

लल्लू सुनील का ये रूप देख कर डर कर चुप हो गया.

सब औरते रसोई से बाहर आ कर सिर झुकाए खड़ी हो गई.

सब को पता था की सुनील को जब गुस्सा आता है तो कोई नही बोलते थे उसके सामने यहाँ तक कि उसके खुद के पापा भी नही.

दादू- बहूँ आज हम सब जिंदा है तो लल्लू बेटे के कारण नही तो कुंभ में ही हमारा क्रिया कर्म हो गया रहता. तुम सब को लगता की हम कुंभ में है और वहाँ हमारा कही मुर्दा घर में लाश सर रहा होता.
लल्लू ही तो था जिस ने हम लोगो को बचा लिया.

रवि काका- ऐसा क्या हुआ था वहाँ पापा.
कुंभ में क्या हुआ था ये अभी किसी को पता नही था सिवाए सुनील के.
रघुवीर जी अपने बेटे को गाड़ी में सुबह स्टेशन से आते समय ही बता दिए थे.

अनिल- में बताता हूँ क्या हुआ था हमारे साथ.
हुआ ये की कुंभ स्नान करने के बाद कल हम लोग आ रहे थे की अचानक बड़ी तेज किसी कारण से भगदड़ मच गई.
मुझे तो पता भी नही चला. लोगो को जिधर जगह मिलता उधर को भाग रहे थे.
उस भगदड़ को देख कर में ठगा सा खड़ा रह गया था लेकिन लल्लू ने बहादुरी दिखा कर पापा और ऋतु के साथ मुझे हम तीनो को बचा कर उस भगदड़ से एक गली में ले आया और वहाँ दीवार से चिपका कर हमें खड़ा हो गया.
काफ़ी देर बाद जब भगदड़ कम हुआ तब हम लोगो को ले कर ये सुरक्षित धर्मशाला तक आया.

हम तीनो को कल इसी ने अपने सुख बुझ से बचाया था.

लड़किया जो सुनील काका के गुस्से क डर गये कमरे में छुप गई थी वो एक एक कर निकल कर बाहर आ गई और लल्लू के सामने कान पकड़ कर खड़ी हो गई.

रोमा- मुझे माफ़ कर दो भाई. मुझे नही पता था की तुम इतने अच्छे भाई हो मेरे. पता नही अभी मुझे क्या हो गया था की में तुम्हे मार बैठी.

कोमल- मुझे भी माफ़ कर दो भाई. मैने भी तुम्हे मारा.

लल्लू- नही में तुम लोगो से बात नही करूँगा. तुम सब से कट्टी हूँ में.( लल्लू बच्चो की तरह रुठता हुआ बोला)

सुनील- आगे से कभी मैने लल्लू को इस तरह कभी रोता देखा या किसी ने मेरे बेटे को रुलाने की कोशिश की तो वो दिल उसका इस घर में आखरी दिन होगा.

चल बेटा बहुत ज़ोर की भूख लगी है. आ जा खाना खाते है.

लल्लू अपने प्यारे काका की बात कभी नही काटता था.

लल्लू- काका मेरे कपड़े छोटे हो गये है.

सुनील- हाय्ी. एक दिन में कैसे छोटे हो गये. और ये तेरे पीठ पर क्या है.

लल्लू- वो...वो टॅटू है.

रवि काका- वाहह, तो तुम्हे ये सब भी पता है. टॅटू कहा बनवा लिया तुमने.

लल्लू- वो...वो कुंभ में.

सुनील- अच्छा अच्छा चल पहले खा ले फिर में तुम्हे ले कर बाजार चलूँगा. वहाँ नये कपड़े ले लेना.

फिर सब खाना खाने बैठ गये. खाना खा कर लल्लू वही टीशर्ट पहन लिया.

फिर लल्लू काजल के कमरे में जा कर लेट गया.

मर्द लोग खाना खा कर चले गये तब औरतो ने अपने लिए खाना निकाल कर लड़कियो के साथ बैठ गई.

काजल- क्यू मारा था अपने भाई को तुम लोगो ने.

सोनम- वो...वो..काकी रोमा और कोमल पढ़ रहे थे की भाई आ कर किताब पलट दिया इसी लिए इन दोनो को गुस्सा आ गया तो दोनो ने डाट दिया था.

लल्लू जो वही लेटा था

लल्लू- झूठ बोलती है दीदी. झूठ बोलना बुरी बात है. रोमा और कोमल दीदी पढ़ नही रही थी. में दीदी को पुकारता हुआ जा रहा था कमरे में तो सोनम दीदी कपड़े बदल रही थी.
सोनम दीदी सिर्फ़ छोटी पेंट पहने थी इसी लिए दीदी ने मारा की दरवाजा बजा कर क्यू नही आया.

मा- हूँ. बेटा तुम्हे दीदी क कमरे में ऐसे नही जाना था ना.

लल्लू- लेकिन मा में आवाज़ देता जा तो रहा था और में भी तो नंगा ही था ना ऊपर से. आप ने ही तो मुझे दीदी के पास भेजा था. तो में क्या करू.

ऋतु- कोई बात नही. सब ने सुन लिया है ना. आगे से अगर इसे किसी ने रुलाया तो तुम सब के हिटलर काका सब को घर से बाहर निकाल देंगे.
तो ध्यान रखना इस बात का.
 
अपडेट 16.

लल्लू खटिया पर जा कर लेट गया.
सब लॅडीस पार्टी खाना खा कर उठ गई. लड़किया सारे बर्तन समेट कर धोने को ले कर चली गई.

मा- तो मेरा बेटा बड़ा हो गया है. कुंभ में अपने दादू और काका काकी को भी बचाया है. और तो और अब कपड़े भी छोटे हो गये है.

सारी काकी हँसने लगी ये सुन् कर.
लल्लू- मा आप मेरा तारीफ कर रही हो या मज़ाक उड़ा रही हो. पता ही नही चल रहा.

एक बार फिर सब हस दिए.

सारी काकी वही मेरे पास आ कर बैठ गई.

रागिनी- तो लल्लू बेटा मेरे लिए क्या लाए हो मेले से.
शालिनी- लल्लू बेटा मेरे लिए भी क्या लाए हो.

मा- आप सब के लिए तो लाया होगा या नही लेकिन मेरे लिए तो ज़रूर लाया होगा. क्यू बेटा, क्या लाया है मेरे लिए.

लल्लू- जो भी लाया हूँ सब काकी ही लाई है. मुझे जाते वक्त कोई पैसे के लिए पुछा था की बेटा घर से दूर जा रहा है पैसे है कुछ तेरे पास या नही.

सब चुप..

लल्लू केमरे में जा कर बैग ले आया और अपने प्यारी काकी या लुगाई कहु उसे ला कर पकड़ा दिया.

ऋतु बैग से समान निकाल निकाल कर सब के लिए जो लाई थी वो देने लगी.

अपने देवरानी के लिए वहाँ से चूड़ी सिंदूर और बिंदी लाई थी.

अपने बेटियो के लिए कंगन लिपस्टिक और काफ़ी सारे फैशों के संसाधन जो एक पूरे बाग में था वो सारा उन लड़कियो को पकड़ा दी.

सब लड़किया अपने गिफ्ट्स पा कर ख़ुसी से उछलते हुई कमरे में चली गई.

रागिनी काकी- दीदी कुंभ में आख़िर हुआ क्या था.

ऋतु- अरे मत पूछ क्या हुआ. जैसे अभी वो बताए थे ना लल्लू के काका वैसे ही हम लोगो को तो कुछ पता भी नही चला था की आख़िर हुआ क्या था वहाँ. वो तो लल्लू था की समय पर खिच कर हम लोगो को गली में ले कर चला गया नही तो पीछे से भागे आते लोगो से धक्का खा कर हम नीचे गिर जाते फिर उन्ही लोगो क पैरो से रौंदे जाते.

काजल- हहाय्यी रामम्म्म कितना बड़ा अनर्थ होते होते रह गया. ( काजल अपने मूह खोल कर उसे अपने हाथ से धक कर बोली)

रागिनी- सही कहा. अगर हमारा हीरो बेटा नही होता तो पता नही क्या होता सब का.

शालिनी- हमारा बेटा है ही सब से बहादुर.

ऋतु तो चुप चाप बस अपने ख़सम लल्लू को प्यार से देखे जा रही थी.

मा- वैसे मैने एक बात और गौर किया है.

सब काजल की और सरप्राइज हो कर देख रहे थे.

मा- में देख रही हूँ की कुंभ मेले से ज्ब से आए है दीदी (ऋतु) का चेहरा कुछ ज़्यादा ही खिला खिला दिख रहा है.

ऋतु का तो सुनते ही गला सुख गया.
ऋतु- क्या बक रही है कमिनी. में तीर्थ यात्रा पर गई थी किसी उस में नही वो क्या कहते है.

शालिनी- हनिमून.

ऋतु- (शरमाती हुई) हा वही. ( ग्लो तो करेगाही ना तुम्हारे बेटे ने अपना गधे जैसा लौड़े से जो हुमच हुमच कर मार खाई हूँ.) मन में बोलती है.

मा- तो फिर ये आप का चेहरा क्यू इतना चमक रहा है. हमें भी बता दो दीदी उस राज को. हम भी अपना चेहरा चमका ले.
 
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