Mastram Sex kahani मर्द का बच्चा - Page 2 - SexBaba
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Mastram Sex kahani मर्द का बच्चा

अपडेट 5.

लल्लू- ये बुरचोदी सब को बताती है और मुझे डाँटती है. अभी बताता हू.

लल्लू इधर उधर देखा फिर कुछ सोच कर.

लल्लू- यहाँ क्या कर रहे हो काका. कोई काम था तो मुझे बताओ.( थोड़ा ज़ोर से ताकि ये दोनो सुन ले.)

लल्लू- ( आवाज़ बदल कर) अरे बचुवा इस कमरे में कुछ समान है वो निकालना है. चाभी खो गया है कही तो इस टूटी खिड़की से ही जा कर निकाल लेंगे.

लल्लू- ( अपने आवाज़ में) क्या निकालना है काका मुझे बताओ. में निकाल दूँगा. कहा आप इस कमरे में जाओगे.

और फिर लल्लू उस कमरे में घुस्स गया.

लल्लू- ओो, आप लोग भी यही है. क्यू रे बहनचोद वहाँ तेरे बहन की शादी है और यहाँ इस रंडी की बुर में घुसा जा रहा है तू. ( एक थप्पड़ लगाता हुआ) भाग मादरचोद नही तो अभी गान्ड लाल कर दूँगा.

वो लड़का जो लल्लू से बड़ा था लेकिन अभी मार खा कर जल्दी जल्दी कपड़ा पहन कर खिड़की से निकल कर भाग गया.

लल्लू- हा तो रंडी. अब ये बता की सब को तो तू बात रही है अपनी चूत जैसे बाबा जी का लड्डू हो और मुझे डाट रही है. ये क्या बात हुई.
मेरे लुल्ली में क्या बदबू है क्या.

औरत- बेटा प्लीज़ माफ़ कर दे. आगे से कभी कुछ नही करूँगी.
लल्लू- बहनचोद दोनो मा बेटी एक नंबर की रंडी है. आज तो बिना बर फाडे नही जाने दूँगा.

औरत- प्लीज़ बेटा. आगे से में कुछ नही करूँगी. यही मुझे बहला कर लाया था की इस कमरे से समान लाना है. और ये सब हो गया.

लल्लू- हा रे रंडी. उसे समान तो लेना ही था और ले भी लिया. अब थोड़ा मुझे भी जल्दी से समान दे दो अपना.

औरत- नही नही बेटा मुझे जाने दो.

लल्लू- बिना चुदवाए नही जाने दूँगा आज तो.
औरत- ( रोती हुई) प्लीज़ में तुम्हारे पैर पार्टी हू मुझे माफ़ कर दे. में आगे से ऐसा कुछ नही करूँगी. किसी के भी साथ.

लल्लू- चुप कर ये टेशुवा ना बहा कर दिखा. मेरे तो समझ ही नही आता. बहनचोद सब से तू लोग चुदवा लेती हो लेकिन मेरे समय में क्यू बिदक जाती हो. चल भाग जा यहाँ से लेकिन याद रखना गंगू ताई तू और तेरी वो फटी बर वाली बेटी कभी भी घर के बाहर दिखी उसी दिन अपना लुल्ली निकाल कर दोनो को पेट से कर दूँगा ये गाँठ बाँध ले अब.

लल्लू एक थप्पड़ उसके नंगी गान्ड पर लगाता गंगू ताई को बोला.

लल्लू वहाँ से निकल कर अपने घर की ओर चल दिया.
उसका मूड खराब हो गया था.
सब उसकी लुल्ली को खड़ा कर देते है लेकिन जब असली काम की बारी आती है तो सब ठेंगा दिखा देते है.

घर आ कर अपना कपड़ा खोल कर केमर में वही अपना धोती लपेट लिया और खटिया पर लेट गया.

आज खेत में बहुत काम किया था फिर पूरे दिन भागा दौड़ी में लल्लू तक भी गया था तो खटिया पर लेटते ही उसे नींद आ गई.

इधर घर के कमरे में ऋतु काकी भी शादी वाले घर जाने वाली थी.
तो वो भी तैयारी में लगी थी.
नयी हरी रंग की सारी, उस से मॅचिंग ब्लाउस, पेटिकोट. हाथो में हरी चूड़ियाँ. हरी बिंदी. होंठो पर लाल लिपस्टिक. लिपस्टिक तो ऐसा लगाई थी ऋतु काकी की लग रहा था जैसे अभी होंठो से टपक पड़ेगा.

इस परिवार में जैसे एक वरदान मिला हो सब लॅडीस को उनकी बाल कमर तक लंबे है सब के.

ऋतु काकी तैयार हो कर अपनी नयी संडल निकाली लेकिन वो जमा नही फिर ढूँढ कर एक हरी जूती निकाल कर वो पहन ली.

बिल्कुल माल लग रही थी.
अभी ऋतु काकी ऐसी लग रही थी जैसे आज इनका ही शादी होने वाली है और इनका ही सुहागरात हो.

वो तैयार हो कर बाहर निकली और नालका पर बातरूम करने चली गई.
फिर वहाँ से आ कर सभी कमरो को बंद कर के अच्छे से ताला लगा कर लॉक कर दी.
चाभी एक जगह छुपा कर जिस के बारे में घर के सभी को पता रहता है.
फिर ऋतु काकी शादी वाले घर जाने लगी.
तभी उसने देखा की खटिया पर कोई सोया है.

वो चौक गई. ये कौन आ कर सोया है यहाँ.
पास आ कर देखी तो लल्लू सोया था.
 
ऋतु काकी आ कर उसके खटिया पर बैठ गई. लल्लू के सर को च्छू कर देखी की कही कोई तबीयत तो नही खराब हो गया है.

काकी- बेटा, क्या हुआ. यहाँ क्यू सोया है. तू तो शादी में गया था ना. क्या हुआ तो ठीक है ना.

लल्लू- काकी सोने दे ना. बहुत नींद आ रही है.

काकी- पहले बता तो सही. तू ठीक है ना. कोई लड़ाई झगरा तो नही हो गया किसी से. या तबीयत तो नही खराब हो गया तेरी.

लल्लू- काकी सब ठीक है. तुम इतना चिंता मत करो मेरा.
काकी- कैसे ना करू चिंता. तू तो मेरा प्यारा बेटा है.

लल्लू- क्या काकी नींद तोड़ दी पूरा तुम ने. शादी में नही गई तुम.( लल्लू आँख खोल कर काकी को देखता बोला)
लल्लू का मूह खुल गया इस अप्सरा रूप को देख कर.

लल्लू- हाय्यी मार दिया रे.( अपने छाती पर हाथ मारते हुए.)
काकी- ( घबरा कर) क्या हुआ बेटा. यहाँ दर्द कर रहा है क्या. क्या हुआ तुम्हे. किसी ने मारा है क्या यहाँ. चोट लगी है क्या. ला जल्दी दिखा.

लल्लू- काकी.. मेरी प्यारी काकी. मुझे कुछ नही हुआ. में तो तेरे हुश्न का मारा हुआ हू. किस का कत्ल करने जा रही है.

काकी- चुप मुआअ डरा दिया. कितना नाटक करता है. फिर कभी ऐसा किया ना तो चप्पल से मारूँगी.

लल्लू- हाय्यी मेरी जान. तू एक बार प्यार से देख तो ले. तेरा आशिक तो उसी से मर जायगा.

काकी- हे राम, मरे तेरे दुश्मन. ऐसा फिर बोला तो में कभी बात नही करूँगी तेरे से. ( काकी वहाँ से उठ कर जाती हुई बोली)

लल्लू खटिया से उतर कर नीचे घुटने पर बैठ गया एक हाथ आगे फैला कर.

लल्लू-

कहाँ चल दिए, इधर तो आओ
मेरे दिल को ना ठुकराओ, भोली सितम कर
मान भी जाओ
मान भी जाओ
मान भी जाओ.

ऋतु काकी वही रुक कर आश्चर्य से लल्लू को देखने लगी.

लल्लू-
झुकी झुकी सी नज़र, बेकरार है के नही..
दबा दबा सा सही, दिल में प्यार है के नही..
झुकी झुकी सी नज़र..
तू अपनी दिल की जवान धड़कनो को, गिन के बता..
तू अपनी दिल की जवान धड़कनो को, गिन के बता..
मेरी तरह तेरा दिल, बेकरार है के नही...
दबा दबा सा सही, दिल में प्यार है के नही..
झुकी झुकी सी नज़र...

काकी शरमा कर नज़रे झुका ली.

काकी-
हाए बाली उमारिया में
अरी ब्याह के आई
अरी मे भोली बलमा नादान
अर्रे हाए कैसी बिपत पड़ी मोरी गुइयाँ
अरी कछु ना समझे नादान
सैयाँ मिले लरकइयाँ मैं का करूँ
हाए मैं क्या करू..
सैयाँ मिले लरकइयाँ मैं का
करूँ.

लल्लू उठ कर गया और काकी को बाहों में भर लिया.

लल्लू- काकी तुम आज कयामत लग रही हो. में क्या करू. मुझ से कोई ग़लती हो जाये तो पागल बेटा समझ कर माफ़ कर देना.

काकी कस कर लल्लू को अपने आगोश में ले ली.
काकी- फिर कभी ऐसा बोला तो बहुत पिटाई करूँगी.

लल्लू काकी की ठोडी पकड़ कर अपनी ओर घुमा कर उसके आँखो में देखने लगा.

दोनो की आँखो में एक नशा था.
दोनो आगे बढ़ना चाहते थे लेकिन पहल कौन करे.
काकी दर रही थी. शरमा रही थी. तो लल्लू डर रहा था कही काकी नाराज़ हो गई तो में कैसे जियूंगा.
लेकिन लल्लू काकी का ये हुश्न देख कर काकी में खोता जा रहा था.
दोनो एक दूसरे की आँखो में देखते देखते मदहोश हो गये और दोनो की आँखे बंद हो गई.
जैसे जैसे आँखे मूंद रही थी वैसे वैसे दोनो के होंठ खुलते जा रहे थे.
एक दूसरे के पास आते जा रहे थे.
दोनो एक दूसरे की रोमांच में बढ़ी हुई
धड़कनों को सुन पा रहे थे.
 
दोनो की आँखे बिल्कुल बंद हो गई और मन की आँखे खुल गई.
दोनो के होंठ एक बार स्पर्श कर के अलग हो गये.
दोनो के शरीर में एक चिंगारी निकली जो दोनो के पूरे शरीर में फैल गई
दोनो से बर्दास्त नही हुआ और जल्दी से फिर दुबारा दोनो के होंठ एक दूसरे में समा गये.

लल्लू का हाथ काकी के पीठ और नितंब पर था तो काकी का हाथ लल्लू के दोनो गालो को और बालो को सहला रही थी.

लल्लू मूह खोल कर काकी के एक होंठ ले कर चूसने लगा काटने लगा.
लल्लू काकी का सब से प्यारा था तो काकी भी लल्लू की ड्रीम थी. उसके लिए लल्लू किसी से भी लड़ जाता था. यहाँ तक की काका से अपनी मा से भी.

आज वही ड्रीम उसका पूरा होता. लग रहा था.

लल्लू अपना दोनो हाथ से काकी के नितंब से पकड़ कर उठा लिया और अपने से चिपका लिया.
दोनो के होंठो का युध अभी भी चल रहा था.
जैसे ही काकी को लल्लू के हाथो का स्पर्श अपने गान्ड पर हुआ.
काकी केचकचा कर लल्लू के होंठो को कट कर ली.

लल्लू सीिईसीईया कर अपना मूह अलग करलिया.

काकी मुस्कुराती हुई लल्लू की आँखो में देखने लगी.
लल्लू के होंठो से खून रिस रहा था हल्का हल्का.

काकी- क्यू उतरी मस्ती या अभी बंकी है.

लल्लू- काकी जान तुम इस छोटी स अपने प्यार से मेरे प्यार को आंक रही हो.
मैने कहा तो था. तुम्हारे लिए में मर सकता हू और किसी को मार भी सकता हू.

काकी अपने होंठ से उसके मूह को बंद कर दी.

एक बार फिर दोनो चूसने लगे एक दूसरे के होंठो को.

लल्लू अपने होंठो के बीच से अपना जीभ निकाला और काकी के दाँतों में ठोकर मारने लगा.
काकी समझ नही पाई लेकिन जब बार बार लल्लू ऐसा करने लगा तो काकी अपने दाँतों को खोल दी.
लल्लू अपना जीभ काकी के मूह में घुशा कर उन के मूह के अंदर घुमाने लगा.

काकी तो हवा में उड रही थी.
काकी कस कर लल्लू को अपने से चिपका ली.
काकी के पैर काँपने लगा उन्हे लगा जैसे वो सारी में ही पेशाब कर देगी.
 
अपडेट 6.

लल्लू काकी को अपने से चिपका कर लेटा काकी के मुख पर जो असीम आनंद की आभा थी उसे गौर से देख रहा था.

लल्लू काकी के एक गाल को सहलाता अपना प्यार लूटा रहा था.

जब काकी थोड़ी संभली तो आँख खोल कर देखी.
लल्लू को यू प्यार से निहारते देख कर काकी शरमा कर लल्लू के छाती में सर छिपा ली.

लल्लू- कितनी प्यारी है तू काकी.

काकी- तू खुद प्यारा है इसी लिए सब तुम्हे प्यारे लगते है.
अब उठ और मुझे जाने दे ब्याह में. सब इंतजार कर रहे होंगे मेरा.

लल्लू- मुझे छोड़ कर चली जाएँगी. कहा किसी और के ब्याह में जाएँगी. आ हम दोनो भी ब्याह कर लेते है.

काकी-( लल्लू के गाल को दाँतों से काटती हुई.) मेरा पग्लु बेटा. में तुम्हारी काकी हू. काकी से ब्याह नही करते. मेरा ब्याह तेरे काका से हो गया है.

लल्लू- तू क्या हुआ. तू आज दुल्हन की तरह सजी हुई है. ब्याह हो गया तो क्या हुआ एक बार और मेरे से भी कर ले.

काकी- तेरे लिए में सब से सुंदर दुल्हन ढूँढ कर लाउन्गी. जिस से तुम्हारा ब्याह कराउन्गी. अब मुझे जाने दे.

लल्लू- मुझे सिर्फ़ तुम से ब्याह करना है. किसी और से नही.
काकी- मेरे में ऐसा क्या है जो मेरे ही पीछे पड़ा है तू.

लल्लू- क्या तुम्हे में पसंद नही हू.

काकी- बेटा में बूढ़ी हो गई हू. तुम्हारी शादी तो तुम्हारे उम्र की लड़की से करवा दूँगी ना.

लल्लू- में जो पूछ रहा हू वो बोलो ना काकी. क्या में तुम्हे पसंद नही हू.

काकी- में तुम्हारी काकी हू पगले.

लल्लू- बात को घूमाओ मत ना. में तुम्हे पसंद हू या नही.

काकी- तू बहुत अच्च्छा लड़का है बेटा लेकिन में तेरी काकी हू. हम एक दूसरे से शादी नही कर सकते.

लल्लू- में जिंदगी भर तुम्हे प्यार करता रहूँगा. तू मेरी काकी हो या लुगाई उसे मुझे अब कोई मतलब नही है.

काकी- लल्लू मुझे ब्याह में जाने दे. तेरी मा और काकी सब ढूँढ रहे होंगे मुझे. कोई घर भी आ जायगा मुझे देखने.
 
काकी- लल्लू मुझे ब्याह में जाने दे. तेरी मा और काकी सब ढूँढ रहे होंगे मुझे. कोई घर भी आ जायगा मुझे देखने.

लल्लू- मेरे से ब्याह कर ले ना काकी.

काकी- (खीझ कर) मुझ से ब्याह कर के क्या करेगा.

लल्लू- वो तो ब्याह के बाद तू बताएगी ना काकी. इसी लिए तो तुझ से ब्याह करूँगा ना.

काकी- चल मुआ मुझे जाने दे. अब सारी भी बदलनी पड़ेगी.
( लल्लू को खटिया से धकेल कर हटती काकी उठ खड़ी हुई)

काकी सारी बदलने के लिए अपने कमरे में चली गई.
खटिया पर बैठा लल्लू कुछ सोच रहा था.

वो खटिया से उठा और घर में गया वहाँ कुछ देख कर काकी के रूम में गया.
काकी सारी के नीचे जो चड्डी पहनी थी उसे निकाल रही थी सारी ऊपर कर के.
लल्लू को काकी की गान्ड में फैशी कच्छी देख मन में उथल पुथल मचने लगा.

काकी कच्छी निकाल कर एक और फेक दी.

लल्लू काकी के पास आ कर एक हाथ पकड़ लिया और पूजा घर में ले आया.

लल्लू- काकी मुझ से ब्याह करोगी.

काकी- पागल हो गया है क्या तू. कुछ भी बोले जा रहा है. में बोल रही हू ना की तेरी शादी में बहुत सुंदर लड़की से कर दूँगी.
 
लल्लू- वो सुंदर लड़की तुम हो और मुझे सिर्फ़ तुम से शादी करनी है. बोलो मुझ से ब्याह करोगी. सिर्फ़ हा या ना बोलना.

काकी को कुछ समझ ही नही आ रहा था की वो अब क्या करे.

काकी- में तेरी ऐसे ही काकी हूँ. तू मुझे वैसे ही प्यार करता है और में भी बहुत प्यार करती हूँ तुझसे. शादी की क्या ज़रूरत है.

लल्लू- काकी भाषण नही. सिर्फ़ हा या ना.

काकी- अपनी काकी से ब्याह करेगा. फिर तेरे काका का क्या होगा ये बता.
लल्लू- तो क्या हो गया. काका तो वैसे भी अब बाहर ही रहते है. तो बाहर काका तेरा सैया और घर में मैं तेरा सैया.

लल्लू काकी का हाथ पकड़ कर पूजा घर में जहा मा गौरी का पीडी था वहाँ बैठ जाता है और वहाँ रखे सिंदूर उठा कर काकी के माँग में भर देता है.
काकी के कुछ भी समझ नही आया.
काकी आँखे बंद किए वहाँ बैठी रही.

लल्लू- काकी आज से तू मेरी काकी भी है और लुगाई भी.

काकी आँख खोली थी लल्लू के हाथो की उंगलियो में अब भी सिंदूर लगा था.
काकी के आँखो में आंशु आ गये. समझ ही नही आ रहा था की अब वो क्या रिक्ट करे.

थोड़ी देर वहाँ बैठी रहने के बाद उठ कर अपने कमरे में चली गई.

लल्लू- कही कोई गड़बड़ तो नही कर दिया. काकी कुछ बोल नही रही है.
लल्लू काकी के रूम में देखने चल दिया.

काकी आईने के सामने खड़ी हो कर माँग में चमकते सिंदूर को एक टक देखे जा रही थी.

लल्लू केमरे में आ कर देखा तो काकी आईने के सामने खड़ी है.

लल्लू जा कर काकी के पास सर झुका कर खड़ा हो गया.
लल्लू- काकी अगर तुम्हे लगता है की मैने कुछ ग़लत कर दिया है तो मुझे माफ़ कर देना.

काकी लल्लू को एक टक देख रही थी. उसे पता था लल्लू उसे बहुत प्यार करता है लेकिन अब जो ये रिश्ता बन गया है काकी उस रिस्ते को ले कर आसमंजश में थी की अब आगे वो क्या करे.
कौन सा रिश्ता किस से निभाए.

एक मन तो इस ब्याह से बहुत खुश था. अंदर ही अंदर छोटी छोटी फुलझड़िया फुट रही थी लेकिन एक संस्कारी मन कह रहा था की ये जो हुआ वो ग़लत हुआ है.

काफ़ी सोच बिचार के बाद आख़िर काकी ने कुछ फ़ैसला कर लिया.

काकी बाहर आ कर देखी तो लल्लू दरवाजे से बाहर सर झुकाए खड़ा था.
काकी लल्लू को गुस्से से देख रही थी.

लल्लू सर उठा कर देखा तो देखता है की काकी बहुत गुस्से में उसे देख रही है.

लल्लू की आँखो से झार झार कर के आंशु निकल कर गिरने लगा.

काकी आगे बढ़ कर लल्लू का हाथ पकड़ कर उसे कमरे में खिच ली और खुद बाहर निकल कर केमरे का डरबाजा बंद कर दी.

काकी लल्लू को कमरे में बंद कर खुद रसोई घर में चली गई.
वहाँ कुछ देर खतर पटर करने के बाद एक हाथ में ग्लास लेकर आती हुई दिखी.

कमरे में आ कर देखा तो लल्लू अभी भी सर झुकाए खड़ा वैसे ही रो रहा था.

काकी लल्लू को एक धक्का दिया. लल्लू बेड पर जा कर गिर गया.
काकी चलती हुई ग्लास ले कर बेड पर आ गई.

काकी- क्यू ब्याह करते समय तो बड़ा मर्द बनता था. अब मर्द का बच्चा है तो सामना कर अपनी लुगाई का.

लल्लू- काकी पता नही मर्द का बच्चा हूँ ला गधे का क्यू की पापा तो हुमेशा गधा गधा ही करते रहते है. लेकिन में आप का बच्चा तो ज़रूर हूँ.

काकी- मुआअ अब तू मेरा बच्चा नही मेरा ख़सम.. है.
आ और अपनी लुगाई का सामना कर.

लल्लू- काकी क्यू डरा रही हो बच्चे को.

काकी- मुआ तू अब बच्चा नही है. आ बड़ा कह रहा था ना की तेरे पास डंडा है तो आ अब मार आ कर मुझे.
लल्लू- काकी वो तो में मज़ाक कर रहा था.

काकी- अब में तेरी काकी नही लुगाई हूँ. तो अब अकेले में मुझे ऋतु ही कहा करना. जब सब साथ हो तब काकी केहना.

काकी- ये ले दूध पी. ब्याह तो कर लिया मेरे से अब आगे क्या करेगा. अब तो वहाँ ब्याह में भी नही जा सकती. अपने नये नये पति देव को छोड़ कर केहा जाऊ.

काकी दूध का ग्लास लल्लू को पकड़ती बोली.

लल्लू दूध का ग्लास ले कर मूह से लगा लिया.
काकी- सारा मत पी जाना अपने लुगाई के लिए भी थोड़ा छोड़ देना.
 
लल्लू आधा पी कर बाकी काकी को पकड़ा दिया.

काकी- मुआ ब्याह करना तो बड़ा आया. झट से सिंदूर ले कर मेरे माँग में भर दिया. अब दूध भी अपने हाथ से पिला दे.

लल्लू- रात में कौन सा मैने पिलाया था अंधेरे में. खुद ही पाइप निकाल कर पी ली थी ना तो अभी भी पी ले.

काकी सुन कर शरमा गई. ( मुआ अंधेरे में भी पहचान गया.

लल्लू ग्लास ले कर ऋतु के मूह से लगा दिया.
ऋतु काकी दूध पी कर ग्लास खाली कर दी.

लल्लू काकी का हाथ पकड़ कर बेड पर खिच लिया.
काकी खिचती हुई बेड पर जा कर लल्लू पर लुढ़क गई.

काकी की साँसे लल्लू के चेहरे पर पड़ रहा था.
दोनो की धडकने दोगुनी रफ़्तार से चल रहा था की इस से आगे क्या होगा.

लल्लू काकी के चेहरे को देखते हुए उस में खोता जा रहा था. लल्लू दोनो हाथ से काकी के चेहरे को थम रखा था और हल्के हल्के सहला रहा था.

ऋतु लल्लू के सीने पर हाथ रखे उसके छाती के घुंघराले छोटे छोटे बालो को सहला रही थी.

काकी बड़े प्यार से लल्लू को देख रही थी.
लल्लू काकी का चेहरा पकड़े उसे अपने चेहरे पर झुकने लगा और अपना मूह भी हल्के से उठा लिया.
दोनो अपनी अपनी जीभ निकाल कर उन्माद में सूखे होंठो को हल्के से भीगा कर एक दूसरे के होंठो पर टूट पड़े.
 
अपडेट 7

ऋतु लल्लू के सीने पर लेटी हुई उसके होंठो को चूसे जा रही थी.
काकी का मज़े से आँखे बंद थी.
उसे तो जैसे लग रहा था की हवा में परवाज़ कर रही है.
ऐसा आनंद इतना मज़ा ऋतु को कभी भी पूरे लाइफ में नही आया जितना भी लल्लू के साथ आ रहा था.

लल्लू एक हाथ से ऋतु की पीठ सहला रहा था तो दूसरे हाथ से बाल.

तभी बाहर कुछ आवाज़ आई.
ऋतु काकी झट से लल्लू पर से उठ कर बैठ गई और अपने कपड़े को सही करने लगी.

आवाज़ फिर से आया तो ऋतु काकी दरवाजा खोल कर बाहर आ गई.
बाहर ऋतु को देखने शालिनी और सोनम आई थी.
सोनम- मा क्या हुआ. अभी तक तुम आई नही. बरती बस आने ही वाला है. चल जल्दी.

रति- बेटा में आ ही रही थी की लल्लू आ गया. उसके सिर में दर्द था तो उसके सिर की मालिश कर रही थी.

शालिनी- क्या ज़्यादा दर्द हो रहा है लल्लू को.
रति- नही अब ठीक है.

सोनम- मा जल्दी चल नही तो में चली जाउन्गी.
रति- को समझ नही आ रहा था की वो क्या करे.

कभी मान करता ना जाये वहाँ फिर एक मन करता चली जाती हूँ नही तो कही किसी को पता चल गया तो.

उधरा बुन में फुससी ऋतु खड़ी थी.

सोनम- चाची हम चलते है. इसे लल्लू की सेवा करने दो.

शालिनी- दीदी क्या हुआ. क्या ज़्यादा तबीयत खराब है. कहिए तो किसी मर्द को बुला कर लाउ.

ऋतु- नही नही. अब ठीक है वो लेकिन उसे अब अकेले छोड़ कर जाना भी तो सही नही होगा.

शालिनी- हा दीदी. आप ऐसा कीजिए. में तो सुबह से ही वही हूँ. तो में रुक जाती हूँ यहाँ लल्लू के पास. आप लोग चली जाइए. काजल को मत बताईएगा लल्लू के लिए. नही तो परेशान हो जाएँगी.

ऋतु- नही नही तू चली जा. तुम्हे ब्याह देखना अच्छा लगता है. में यही हूँ.

सोनम- अब ये क्या लगा रखे हो. तुम जाओ तो तुम जाओ. जिसको चलना है चलो जल्दी. मेरा सब इंतजार कर रहे होंगे.

ऋतु- जा तू चला जा शालिनी. में यहाँ हूँ लल्लू के पास.

फिर शालिनी और सोनम दोनो ब्याह देखने चले गये.
ऋतु एक बार फिर चारो और घूम क देख आई की कही कोई है तो नही और फिर अपने कमरे में आ गई.

लल्लू आँखे बंद किया हुआ लेता था.
ऋतु एक टक लल्लू को देखे जा रही थी.

देखते देखते अचानक ऋतु की नज़र लल्लू के कमर से नीचे चला गया.
ऋतु चौक गई.
ऋतु- मुआ का कितना बड़ा है. देखो कैसे खड़ा कितना भयानक दिख रहा है. अभी छुपा है तो ऐसा दिख रहा है निकल कर कैसा लगेगा.

ऋतु खड़ी खड़ी दाँतों से होंठ काटती सोच रही थी.
अनायश ऋतु का हाथ अपने बर पर चला गया और उसे सहलाने लगी.

ऋतु- हे रामम्म मुआअ बिल्कुल पागल बना दिया है मुझे अपने जैसा.
लल्लू सो गया क्या. ( आवाज़ देती ऋतु बोली.)
लल्लू सो गया था.
ऋतु मन मसोड कर रह गई.
फिर तैयार हो कर उस कमरे का दरवाजा बाहर से लगा दी और दालान पर चली गई.

दालान में ऋतु के ससुर बैठे थे.

ऋतु- बाबू जी में ब्याह वाले घर जा रही हूँ. अभी थोड़ी देर में आ जाउन्गी. कमरे में लल्लू सो रहा है. ज़रा ध्यान रखिएगा.

जब ऋतु लल्लू के पास से बाहर देखने गई की कौन है तभी अचानक लल्लू के सिर में बहुत भयानक दर्द उठा था.

बाहर सब बतो में लगी हुई थी और कमरे में लल्लू दर्द से बहाल.
जैसे लग रहा था की सिर फट जायगा.
इस दर्द से लल्लू बेहोश हो गया था जिसे ऋतु लल्लू का सो जाना समझ कर ब्याह वाले घर चली गई.

रात क किसी पहर लल्लू उठा.
खुद को बेड पर सोया पाया.
कमरे में अंधेरा था.

पता नही क्या समय हुआ है. अंधेरे में जैसे तैसे उठ कर टटोलता हुआ दरवाजे तक आया फिर दरवाजा खोल कर बाहर निकल आया. नालका पर जा कर सब से पहले हल्का हुआ और फिर पानी पीया खाना भी नही खाया था तो भूख भी लगा था.
अभी आधी रत हो चुकी थी तो पानी पी कर ही काम चला लिया.

वहाँ से फिर उसी कमरे में आ गया. दरवाजा बंद कर के जब बेड पर आया तो लगा जैसे बेड पर कोई और भी है सोया हुआ.
लल्लू टटोल कर देखा मान में सोचा लगता है ऋतु काकी है.

लेकिन डर भी लग रहा था की कही कोई और हुआ तो मार पड़ेगी.
 
फिर लल्लू वहाँ जो कोई भी सोया हुआ था उसको पीछे से झप्पी डाल कर खुद भी आँखे बंद कर के सोने की कोसिस करने लगा.

सुबह 4 बजे लल्लू की नींद खुली.
वो उठ कर बाहर आ गया ओर चल दिया नदी की और वहाँ जा कर फ्रेश हुआ और वही नदी किनारे बैठ गया.
काफ़ी देर बैठे रहने के बाद लल्लू देखा की उधर लोग आने लगे है तो फिर लल्लू उठ कर घर की ओर चल दिया.

दालान पर आ कर नालका पर पहले हाथ पैर धोया और दालान पर आ जाइ.

दालान पर दादू और सुनील काका बैठे थे.

काका- कहा से आ रहा है लल्लू बेटा.

लल्लू- ऐसे ही सुबह बाहर घूमने गया था काका. कोई काम था क्या.

दादू- हा, आ यहाँ बैठ.

लल्लू जा कर अपने दादू के साथ उन क बेड पर बैठ गया.

दादू- हम कुंभ मेला में स्नान करने जा रहे है.
लल्लू- कब जा रहे है. और कौन कौन जा रहा है.
सुनील- तुम्हारे दादू, बड़े काका और काकी, और में. हम कल जा रहे है.

लल्लू- में भी चलूँगा.

काका- फिर यहाँ घर पर कौन रहेगा.

लल्लू- ये मुझे क्या पता. पापा रहेंगे और छोटे काका रहेगे.

सुनील अपने पिता की और देखने लगे.

दादू- तुम यही रहो बेटा. वहाँ से तुम जो बोलॉगे में ला दूँगा.
लल्लू- नही..नही..नही. में भी जाउन्गा तो जाउन्गा.
लल्लू कूद कर उठ खड़ा हुआ और तमतमाता हुआ वहाँ से आँगन में चला गया.

दादू- अब क्या करे. इसे नही ले जांगे तो ये जब तक याद रहेगा हंगामा खड़ा किए रहेगा.
सुनील- हा ये तो है. ऐसा करते है फिर. आप भैया भाभी और लल्लू चले जाइए.

दादू- ठीक है फिर उसे बोल दे अपना तैयारी कर ले आज ही क्यू की कल सुबह ही निकलना है हमें.

सुनील उठ कर आँगन में चला गया जहा लल्लू खटिया पर लेता था गुस्से में.

सुनील- लल्लू बेटा. ऐसे गुस्सा नही होते. अपना तैयारी कर ले. कल सुबह निकलना है. और अपने दादू और काका काकी का ख़याल रखना. वहाँ भीर बहुत होता है तो थोड़ा संभाल कर जहा.

ऋतु- कहा जाने की बात हो रही है. पता नही कहा से आया है. मूह फुलाए लेता है कब से.

सुनील- अरे भाभी, अभी हम बात कर रहे थे. कल पिता जी कुंभ स्नान करने जा रहे है आप और भैया के साथ तो वही पिताजी लल्लू बेटा से बोले की यहाँ सब का ख़याल रखना. बस फिर वहाँ से गुस्से में भाग आया है. ये भी जाना चाहता है.

ऋतु- ओो बेटा. तुम हमारे साथ चले जाओगे तो फिर यहाँ सब का ख़याल कौन रखेगा.

लल्लू- नही में तो दादू के साथ जाउन्गा. वहाँ उनका ख़याल रखूँगा.

सुनील- ठीक है ठीक है. तुम भी जाना. भाभी आप अपना तैयारी कर लीजिए साथ में भैया और लल्लू का भी कर दीजिएगा. सुबह सुबह ही निकलना पड़ेगा आप लोगो को.

ऋतु- ठीक है.

लल्लू खुशी से खटिया से उठ कर सुनील को गले से लगा लिया.

लल्लू- आप सब से बेस्ट काका हो.

सुनील- हा हा. पता है मुझे. वहाँ सब का ख़याल रखना. किसी को तंग मत करना और इधर उधर कही जाना नही. सब के साथ ही रहना.

लल्लू- बिल्कुल काका. में सब के साथ ही रहूँगा.

यू ही तैयारी में वो दिन बीत गई.

रात में लल्लू खाना खा कर खटिया आँगन में लगा कर सो गया.

सुबह उसे दादू और काका काकी के साथ कुंभ में जाना है तो वहाँ क्या क्या करेगा यही सब सोचते सोचते सो गया.

सुबह हर रोज की तरह 4 बजे उसे नींद खुल गया.

उठ कर नालका पर जा कर पानी पिया और नदी किनारे चला गया.
वहाँ फ्रेश हो कर बैठ गया.
नदी की और से ठंढी ठंढी हवा आ रहा था जो बहुत अच्छा लग रहा था.

आज नदी पर ज़्यादा देर नही रुका और जल्दी ही घर आ गया वहाँ आ कर नाल्ले पर हाथ पैर धोया. फिर दालान पर आ गया.
वहाँ सब बैठे थे. दादू और काका स्नान कर चुके थे और जाने की तैयारी कर रहे थे.

अनिल- जा भाई जल्दी तैयार हो जा. हम सब को निकलना भी है.

लल्लू जल्दी से आँगन गया और जा कर स्नान कर के नया कपड़ा पहन लिया.

मा- देख बेटा. वहाँ जा रहा है तो सब का ख़याल रखना और किसी को तंग मत करना. सब के साथ ही रहना. इधर उधर घूमना नही.

लल्लू- मुझे सब पता है. तुम चिंता मत करो.

कोमल- ओये गधा तू मत जा वहाँ. कही कोई उल्टी हरकत कर दिया तो सब परेशान हो जाएँगे. वो अपना गाँव नही है.

लल्लू- तू वापस क्यू आ गई. कविता के साथ ही चली जाती.( कविता जिस की अभी शादी हुई है.)

कोमल- आहा में चली जाती तो तुम्हारा कान कौन उखाड़ता. (मूह चिढ़ाती कोमल बोली)

मा- अब अभी तुम दोनो लड़ना मत सुरू कर दो.

सुनील- सब तैयर हो गये तो चलो. गाड़ी आ गई है.

फिर लल्लू और ऋतु आँगन से दालान पर आ गये जहा बाहर एक कार खड़ी थी.
लल्लू जा कर कार में आगे बैठ गया.

फिर दादू काका और काकी भी आ गये और कार में बैठ गये. सारा समान पहले ही ला कर सुनील गाड़ी में रख दिया था.

सुनील- ये ले कुछ पैसे रख ले. वहाँ काम आएँगे. सब का ख़याल रखना. अपने काकी का हुमसे हाथ पकड़े रहना.

फिर गाड़ी चल पड़ी.

स्टेशन आ कर सब उतर गये. लल्लू सारे बॅग्स ले कर चल दिया.
ट्रेन लगी हुई थी तो सब जल्दी से अपने डब्बे में बैठ गये जा कर.

थोड़ी देर में ट्रेन चल पड़ी.
 
अपडेट 8.

शाम क समय ये सभी ट्रेन से प्रयाग पहुच गये.
वहाँ से ऑटो कर के ये लोग कुंभ के स्थान पर पहुचे.

वहाँ पहुच कर अनिल सब को एक जगह खड़ा कर के खुद एक धरमसाला में रूम के लिए चले गये.
ये चार लोग थे और ऋतु काकी साथ थी तो दो रूम लिए अनिल ने.

वहाँ से आ कर सब को ले कर अपने कमरे में पहुच गये.
सब पहले फ्रेश हुए फिर कमरे में जा कर आराम करने लगे.

दादू और अनिल काका एक कमरे में रह रहे थे और लल्लू ऋतु के साथ.

ऋतु घर से नाश्ता बना कर लाई थी तो सब ने वही खाना खा कर सोने का फ़ैसला किया कि कल सुबह जल्दी उठ कर उन्हे कुंभ स्नान्न् करना था.
तो दादू और अनिल काका सो गये.

दूसरे कमरे में लल्लू और ऋतु रुके थे.
ये दोनो साथ में खाना खा रहे थे.

खाना हो जाने के बाद हाथ मूह धो कर दोनो अपने कपड़े बदल लिए.
लल्लू सोने के लिए बेड पर आ गया. उस ने सिर्फ़ एक धोती पहना था. ऊपर से नंगा ही था.
ऋतु- तू ऊपर क्यू नही पहना कुछ.

लल्लू- काकी यहाँ बहुत गर्मी है. में तो कहता हूँ आप भी मत पहनो ये इतना सारा.
ऋतु- हा गर्मी तो है लेकिन क्या में तेरे साथ नंगी सो जाऊ.
लल्लू- नही नही. आप सब कुछ खोल कर सिर्फ़ सारी लपेट कर सो जाओ.
ऋतु- ना बाबा ना. मेरे से ऐसे नींद नही आएगी.
लल्लू- में लॉरी गा कर सुला दूँगा ना.

ऋतु- पता नही तू लॉरी गा कर सुलाएगा या लॉरा डाल कर सुलाएगा ( धीरे से बड़बड़ाती बोली) लेकिन लल्लू सुन लिया था.
लल्लू का लुल्ली तो ऋतु की बात सुन कर ही खड़ा हो गया.

लल्लू- काकी यहाँ कौन दूसरा है. खोल कर लपेट लो सारी. मुझ से क्या शर्माना .

ऋतु का भी मन कर रहा था लेकिन वो घबरा रही थी. दो दिन पहले बच गई नही तो उसी दिन चुद जाती लेकिन आज पता नही क्या हो सुबह तक.

लल्लू उठ कर ऋतु के पास आ गया.
लल्लू और ऋतु दोनो की धड़कन बढ़ गई.
लल्लू ऋतु को पकड़ कर खड़ा कर दिया.
ऋतु के बदन के सारे रोए खड़े हो गये.

लल्लू ऋतु को प्यार से देखते हुए उसके सारी को पकड़ कर खोलने लगा.
ऋतु कसमसा कर लल्लू का हाथ पकड़ ली.

ऋतु चाहती थी की ये जो हो रहा है वो अपने अंजाम तक पहुच जाये लेकिन एक शर्म थी एक घबराहट थी.
बगल वाले कमरे में उसके ससुर और पति दोनो सो रहे थे.

लल्लू हाथ छुड़ा कर ऋतु की सारी उसके बदन से निकल कर अलग रख दिया.

ऋतु- पहले लाइट बंद कर. फिर में खोल कर सारी पहन लूँगी.
लल्लू- में पहना देता हूँ ना. लाइट बंद कर दूँगा तो आप अंधेरे में कैसे पहनेगी.

ऋतु- नही पहले लाइट बंद कर और तू बेड पर जा. में आ रही हूँ.

लल्लू- में करता हूँ ना. आप क्यू मेहनत करोगी.

ऋतु- फिर छोड़ दे में ऐसे ही सो जाउन्गी. मुझे गर्मी नही लग रहा है.

लल्लू- अच्छा अच्छा. में लाइट बंद कर देता हूँ.
लल्लू लाइट बंद कर दिया और बेड पर जा कर बैठ गया.

ऋतु- मुआ कितना बेचैन है मेरे लिए. पता नही क्या दिखता है इसे मुझ बूढ़ी में. अब तो शादी भी कर ली है इस हरामी ने. पति बन गया है मेरा अब तो.

ऋतु सारे कपड़े खोल कर सारी उठाती मन में बोल रही थी.

तभी लल्लू आगे हो कर ऋतु को बाहों में ले लिया और बेड पर लेट गया.

ऋतु पूरी नंगी थी. वो घबरा गई. ये अचानक क्या हुआ.
लल्लू ऋतु के चेहरे को पकड़ कर अपना होंठ ऋतु के होंठो पर लगा दिया.
 
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