Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन - SexBaba
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Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन

hotaks444

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एक अनोखा बंधन

ये कहानी कहीं से भी चुराई नहीं गई है| ये मेरी स्वयं की रचना है!


नमस्ते मित्रों,

मैंने इस फोरम पर बहुत सी कहानिया पढ़ीं हैं, कुछ कहानियों को पढ़ के साफ़ लग रहा था की ये बनावटी हैं हालां की लेखक ने अपनी तरफ से बहुत कोशिश की, की यह कहानी पाठकों को सच्ची लगे पर एक असल इंसान जिसने ये सब भोगा हो वह जर्रूर बता सकता है की ये सब बनावटी है| मैं अपनी इस सच्ची गाथा के बारे में अपने मुख से खुद कुछ नहीं कहूँगा परन्तु ये आशा रखता हूँ की आप अपने व्यंग ओरों के समक्ष रखेंगे|

आज मैं अपने इस धागे की जरिये आपको अपने जीवन की एक सच्ची घटना से रूबरू कराने जा रहा हूँ| एक ऐसी घटना जिसने मेरे जीवन में एक तूफ़ान खड़ा कर दिया| मैं अभी तक इस घटना को भुला नहीं पाया हूँ और अब भी उस शख्स को एक और बार पाने की कामना करता रहता हूँ| मैं अभी तक नहीं समझ पाया की जो कुछ भी हुआ उसमें कसूर किसका था? शायद आप मेरी इस सच्ची गाथा को सुन बता सकें की असली दोषी कौन था| 

मैं आपको यह बताना चाहूंगा की मुझे अपनी इस कहानी का शीर्षक चुनने में वाकई कई दिनों का समय लगा है|
 
[size=small][size=large]इससे पहले की मैं कहानी शुरू करूँ मैं पहले आपको इसके पत्रों से रूबरू करना चाहता हूँ| आपको बताने की जर्रूरत तो नहीं की मैंने इस कहानी के सभी पात्रों के नाम, जगह सब बदल दिए हैं| तो चलिए शुरू करते हैं, मेरे पिता के दो भाई हैं और एक बहन जिनके नाम इस प्रकार हैं :
१. बड़े भाई - राकेश
२. मझिल* - मुकेश (*बीच वाले भाई) 
३. सुरेश (मेरे पिता)
४. बड़ी बहन - रेणुका 
बड़े भाई जिन्हें मैं प्यार से बड़के दादा कहता हूँ उनके पाँच पुत्र हैं| उनके नाम इस प्रकार हैं :

१. चन्दर 
२. अशोक 
३. अजय 
४. अनिल 
५. गटु

मझिल भाई जिन्हें मैं प्यार से मझिले दादा कहता हूँ उनके तीन पुत्र और तीन पुत्रियाँ हैं| उनके नाम इस प्रकार हैं : 

१. रामु (बड़ा लड़का)
२. शिवु 
३. पंकज 
४. सोनिया (बड़ी बेटी)
५. सलोनी
६. सरोज 

हमारा गावों उत्तर प्रदेश के एक छोटे से प्रांत में है| एक हरा भरा गावों जिसकी खासियत है उसके बाग़ बगीचे और हरी भरी फसलों से लैह-लहाते खेत परन्तु मौलिक सुविधाओं की यदि बात करें तो वह न के बराबर है| न सड़क, न बिजली और न ही सोचालय! सोचालय की बात आई है तो आप को सौच के स्थान के बारे में बता दूँ की हमारे गावों में मुंज नमक पोधे के बड़े-बड़े पोधे होते हैं जो झाड़ की तरह फैले होते हैं| सुबह-सुबह लोग अपने खेतों में इन्ही मुंज के पौधों की ओट में सौच के लिए जाते हैं| 

अब मैं अपनी आप बीती शुरू करता हूँ| मेरे जीवन में आये बदलाव के बीज तो मेरे बचपन में ही बोये जा चुके थे| मेरे स्कूल की छुटियों में मेरे पिताजी मुझे गावों ले जाया करते थे और वहाँ एक छोटे बच्चे को जितना प्यार मिलना चाहिए मुझे उससे कुछ ज्यादा ही मिला था| इसका कारन था की मैं बचपन से ही अपने माँ-बाप से डरता था पर उन्हें प्यार भी बहुत करता था| मेरे पिताजी ने बचपन से मुझे शिष्टाचार के गुण कूट-कूट के भरे थे| कुत०कुत के भरने से मेरा तात्पर्य ऐ की डरा-धमका के, इसी डर के कारन मेरा व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक बन गया था|गावों में बच्चों में शिष्टाचार का नामो निशान नहीं होता, और जब लोग मेरा उनके प्रति आदर भाव देखते थे तो मेरे पिताजी की प्रशंसा करते थकते नहीं थे|
यही कारण था की परिवार में मुझ सब प्यार करते थे| परन्तु मेरी बड़ी भाभी (चन्दर भैया की पत्नी) जिन्हें मैं प्यार से कभी-कभी "भौजी" भी कहता था वो मुझे कुछ ज्यादा ही प्यार और दुलार करती थी| मैं उसे बचपन से ही बहुत पसंद करता था परन्तु तब मैं नहीं जानता था की ये आकर्षण ही मेरे लिए दुःख का सबब बनेगे| 

मेरी माँ बतायाकरती थी की मैंने 6 साल तक दूध पीना नहीं छोड़ा था, और यही कारन है की जब मैं छोटा था तो मैं भागता हुआ रसोई के अंदर घुस जाता था, जहाँ की चप्पल पहने जाना मना है और खाना बना रही भाभी की गोद में बैठ जाता और वो मुझे बड़े प्यार से दूध पिलाती| दूध पिलाते हुए अपनी गोद में मुझे सुला देती| मैं नहीं जानता की ये उसका प्यार था या उसके अंदर की वासना? क्योंकि उस समय भाभी की उम्र तकरीबन 18 या 20 की रही होगी| (हमारे गावों में शादी जल्दी कर देते हैं|) मैं यह नहीं जानता तब उन्हें दूध आता भी था या नहीं, हालाँकि मेरे मन में उनके प्रति कोई भी दुर्विचार नहीं थे पर एक अजीब से चुम्बकीये शक्ति थी जो मुझे उनके तरफ खींचती थी| जब वो अपने पति अर्थात मेरे बड़े भाई चन्दर के पास होती तो मेरे शरीर में जैसे आग लग जाती| मुझे ऐसा लगता था की मेरे उन पर एक जन्मों-जन्मान्तर का हक़ है| ऐसा हक़ जिसे कोई मुझसे नहीं छीन सकता| दोपहर को जब वो खाना बना लेती और सब को खिलने के बाद खाती तो मैं बस उसे चुप-चाप देखता रहता| खाना खाने के बाद मैं भाभी से कहता की "भाभी मुझे नींद आ रही है आप सुला दो|" तो भाभी मुझे गोद में मुझे उठा कर चारपाई पर लिटाती और मेरी और प्यार भरी नजरों से देखती| मेरे मुख पर एक प्यारी सी मुस्कान आती और वो नीचे झुक कर मेरे गाल पर प्यार से काट लेती| उनके प्यार भरे होंट जब मेरे गाल से मिलते और जैसे ही वो अपने फूलों से नाजुक होंटों से मेरे गाल को अपनी मुंह में भरती तो मेरे सारे शरीर में एक झुरझुरी सी छूट जाती और मैं हंस पड़ता| इनका ये प्यार करने का तरीका मेरे लिए बड़ा ही कातिलाना था! 
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[size=small][size=large][size=small][size=large]समय का चक्का घुमा और मैं कुछ बड़ा होगया| मैं अपने बालपन को छोड़ किशोर अवस्था में पहुँच चूका था| मेरे कुछ ऐसा दोस्त बन चुके थे जिन्होंने मुझे वयस्क होने का ज्ञान दिया, परन्तु मैं स्त्री के यौन अंगों के बारे में कुछ नहीं जानता था और न ही वे जानते थे| तभी एक दिन मेरे पिताजी ने एक प्रोग्राम बनाया, उन्होंने मेरे बड़े भाई चन्दर को परिवार सहित हमारे घर शहर आने का निमंत्रण दिया| प्रोग्राम था की वे सब रात को हमारे घर पर ही रुकेंगे और चूँकि चन्दर के घर में टी.वी. नहीं था तो हमने घर पर ही पिक्चर देखने का प्लान बनाया| दिन में पिता जी और चन्दर दोनों बहार गए हुए थे, घर में केवल मैं, माँ, भाभी और उनकी बेटी” नेहा” ही थे| उस समय तक भाभी माँ बन चूँकि थी पर उनका प्यार मेरे लिए अब भी अटूट था| उनकी एक बेटी थी और वो तकरीबन 2 या 3 साल की रही होगी, वो मुझे चाचा-चाचा कह के मेरे साथ खेलती थी| परन्तु मेरा दिमाग तो बस भाभी के साथ अकेले में समय बिताने का था, पर मेरी भतीजी नेहा थी की मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी| 
मैं आग बबूला होता जा रहा था, शायद भाभी ने मेरे दिमाग को पढ़ लिया और जब माँ रसोई में कुछ बना रही थी तो उन्होंने मुझे बड़े प्यार से पुकारा और मैं भी उड़ता हुआ उनके पास पहुँच| उन्होंने मुझे अपने पास बिठाया और आगे बढ़ कर मेरे गाल पर उसी प्यार भरे तरीके से काट लिया| मेरे दिमाग में मेरे बचपन की सभी यादें ताजा हो गई| मन तो किया की भाभी बस ऐसे ही मुझे प्यार करती रहे| पहली बार मैंने पाया की उनकी इस हरकत से मेरे शांत पड़े लंड में अकड़न आ गई| मुझे ये एहसास बहुत अच्छा लगता था, इससे पहले भी जब भी मैं सोते समय अपने बचपन की बातें याद करता तो मेरा लंड अकड़ जाता था| परन्तु तब मुझे ये नहीं पता था की इसको शांत कैसे करते हैं| इस बार भाभी के चुंबन का निशान मेरे गाल पर काफी गहरा था और ये देख वो भी थोड़ा घबरा गई| मुझे दर्द तो नहीं हो रहा था और न ही मैं जानता था की उनके काटने से मेरे गाल पर निशान पड़ गया है| पहली बार मेरे मन में आय की मैं भी उनके गाल का एक चुंबन लूँ| मैंने भाभी से कहा :
"भाभी मैं भी आपकी पप्पी लूँ?" 
और उन्होंने मुस्कुराते हुए अपने गाल को मेरी और घुमा दिया| मैंने भी धीरे-धीरे उनके गाल पर अपने होंट रख दिए| पहले मैंने उनके गाल को अपने मुंह में भरा और अपनी जीभ से उनके गाल को चाटा, जैसे मनो मैं कोई आइसक्रीम चाट रहा हूँ और फिर धीरे धीरे मैंने अपने दातों से उनके गाल को काट लिया| मुझे ये ध्यान था की कहीं मेरे काटने से उन गाल पर निशान न बन जाये| इस डर से की कहीं माँ न आ जाये मैं उनसे अलग हो गया| दिमाग में जितना भी गुस्सा था सब काफूर हो चूका था| तभी मेरे दोस्तों ने बहार से मुझ आवाज लगाई, मैं बहार भगा वो मुझे क्रिकेट खेलने के लिए बुला रहे थे परन्तु मैंने मना कर दिया| मेरे दोस्तों ने मुझसे पूछा की तेरा गाल लाल क्यों है, तब मुझे पता चला की भाभी की प्यार भरी पप्पी के निशान गाल पर छप गए हैं| मैंने बात घुमाते हुए कहा की मेरी भतीजी ने खेलते-खेलते काट लिया| 
दोपहर हो चुकी थी पिताजी और चन्दर दोनों वापस आ चुके थे, हमने खाना खाया और पिताजी ने कहा की अगर रात में पिक्चर देखनी है तो अभी सो जाओ, नहीं तो आधी पिक्चर देख के ही सो जाओगे| अभी हम सोने के बारे में सोच ही रहे थे की बत्ती गुल हो गई| गर्मियों के दिन थे ऊपर से दोपहर! पिताजी, माँ और चन्दर तो बहार गली में सब के साथ अपनी-अपनी चारपाई डाल लेट गए और पड़ोसियों से बात करने लगे| बच गए मैं, भाभी और नेहा| नेहा का पेट भरा होने के कारन वो लेट गई और भाभी ने उसे पंखा हिलाते-हिलाते सुला दिया| मैंने भाभी से कहा की 
"भाभी मुझे भी नींद आ रही है|" 
भाभी मेरा इशारा समझ गई, वो चोकड़ी मारे बैठी थी तो मैं सीधा हो कर उनकी योनि के पास सर रखते हुए लेट गया| वो एक हाथ से पंखा कर रही थी और फिर धीरे-धीरे मेरे ऊपर झुकी और मेरे सीधे गाल पर एक प्यार भरा चुंबन किया और फिर धीरे से गाल काट लिया| मेरा लंड खड़ा हो चूका था परन्तु कमरे में अँधेरा होने के कारन वो उसे देख नहीं पाई| फिर उन्होंने अपने दूसरे हाथ से मेरे मुंह को दूसरी तरफ किया और मेरे बाएं गाल पर एक प्यार भरा चुम्बन जड़ दिया और फिर उसे भी काट लिए| मेरी शरीर में उठ रही झुरझुरी से मेरा हाल बेहाल था| मेरे दोनों कान लाल थे और मैं गरम हो चूका था|
मैंने थोड़ा हिमायत करते हुए उनकी गर्दन पर हाथ रखते हुए अपने ऊपर झुका लिया और उनके गाल की पप्पियाँ लेने लगा| मैंने उन्हें भी गरम कर दिया था, और इससे पहले की हम अपनी मर्यादा को पार करते की तभी मेरा एक दोस्त भागता हुआ कमरे में आ गया| सच बताऊँ मित्रों मुझे इतना गुस्सा आया जितना कभी नहीं आया था| मैं बड़ी जोर से उस पर गरजा "क्या है???"
मेरी गर्जन उसने आज से पहले कभी नहीं सुनी थी और इससे पहले की वो कुछ कहता मैंने कहा, 'भाग यहाँ से!' मेरी बात सुनते ही वो बहार की तरफ भाग गया| भाभी का तो जैसे मुंह ही लटक गया| मैंने उनका मुंह अपने हाथों में थम और इससे पहले की मैं हम दोनों अपने जीवन का पहला चुमबन करते उन्होंने मुझे रोक दिया| उन्हें डर था की मेरी गर्जन सुन कहीं मेरी माँ अर्थात उनकी काकी अंदर न आ जाएं| उन्होंने कहा, "आज रात मैं नेहा को जल्दी सुला दूंगी तब करना|"
पर मैं कहाँ मानने वाला था मैंने उन्हें जबरदस्ती अपने ऊपर झुका लिया और उनके गुलाब के पंखुड़ियों जैसे होठों पर अपने दहकते हुए होंट रख दिए| मैं उनके कोमल होंटों का रस पीना चाहता था, और ये सब भूल चूका था की पास में ही उनकी बटी लेटी है| भाभी को भी जैसे एक अध्भुत सुख मिल रहा हो और वो बिना किसी बात की परवाह किये मेरे होंटों को बारी-बारी से अपने मुंह में लिए चूस रही थी| भाभी मेरे ऊपर झुकी हुई थी और मेरा सर ठीक उनके योनि की सिधाई पर था| ऐसा लग रहा था की मनो ये जहाँ जैसे थम सा गया हो और हम किसी जन्नत में हैं| मेरी बद किस्मती की मुझे यौन क्रिया के बारे में कुछ भी नहीं पता था की चूत/ योनि किसे कहते है और उसे भोगते कैसे हैं| इसी कारन मैं उस दिन कुछ और नहीं कर पाया| 
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[size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large]जैसे ही भाभी को लगा की कहीं कुछ गलत है वो मुझसे अलग हो गईं, और उनके अलग होने के कुछ क्षण तक मैं बस उन्हें ही देखे जा रहा था की तभी माँ ने कमरे में प्रवेश किया| मैं घबरा गया और अपनी आँखें बंद कर लीन और ऐसे जताया जैसे मैं सो रहा हूँ| भाभी एक हाथ से पंखा कर रही थी, तभी माँ ने पूछा "बेटा यहाँ गर्मी है बहार चौतरे पर आ जाओ|भाभी ने कहा की,
"मानु सो रहा है अगर मैं उठूंगी तो ये जाग जायेगा|"
तभी बत्ती आ गई, और माँ ने कहा "शुक्र है बत्ती आ गई"| रात को खाना खाने से पहले मैंने भाभी से कहा, "आप नेहा को सुला देना फिर हम दुबारा पप्पी करेंगे"| मेरे उस भोलेपन पर भाभी को हंसी आ गई और उन्होंने हाँ में अपना सर हिल दिया| खाना खाने से पहले सभी आपस में बात कर रहे थे परन्तु मेरे मन में दोपहर में हुई घटना ने तूफ़ान मचा रखा था| मैं चाहता था की काश घर में सब बेसुध सो जाएं और मैं और भाभी बस एक दूसरी की बाँहों में चुंबन करते हुए लीन हो जाएं| रात्रि भोज के बाद पिताजी ने टी.वी पर पिक्चर लगा दी और हम सभी बिस्तर पर लेट गए और सभी टी.वी देखने लगे| सोने की व्यवस्था कुछ इस प्रकार थी :

मेरे पिताजी और चन्दर का बिस्तरा जमीन पर लगा था और पलंग पर माँ, मैं, भाभी और नेहा थे| हम सभी इसी कतार में लेते थे और सभी का ध्यान टी.वी की तरफ था| मैं टी.वी देखने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था, मेरा ध्यान तो केवल भाभी पर था| परन्तु कमरे में जल रही तुबलाइट के कारन मैं कुछ नहीं कर सकता था| मैं बाथरूम जाने के बहाने से उठा और बहार चला गया| जब मैं वापस आया तो मैंने तुबलाइट बंद कर दी| पिताजी ने मुझे टोका, "लाइट क्यों बंद कर दी?"| मैं सकपका गया और लड़खड़ाते हुए जवाब दिए,"पिताजी …लाइट बंद करके थिएटर वाला मजा आएगा"| वे कुछ नहीं बोले और मैं वापस आकर पानी जगह लेट गया| कुछ क्षण तो मैं कुछ नहीं बोला जब मैंने देखा की सबका ध्यान टी.वी. पर है तो मैंने भाभी की तरफ मुंह किया और खुसफुसते हुए कहा: 
"भाभी नेहा को सुला दो"| 
भाभी :"नहीं मानु काकी देख लेंगी!!!"
मैं: "नहीं कोई नहीं देख पायेगा, लाइट बंद है|" 
भाभी: "अगर काकी इधर घूम गईं तो बहुत बुरा होगा, तुम्हारी बहुत पिटाई होगी और मेरी बहुत बदनामी होगी| आज नहीं, फिर कभी कर लेना|"

मैं गुस्से में आग बबूला हुआ जा रहा था| मैंने फिर भी एक कोशिश की और कहा :

"अच्छा एक पप्पी तो दे दो?"
भाभी: "नहीं मानु बात को समझो, कोई देख लेगा|"

अब मेरे सब्र का बाँध टूट चूका था और गुस्से मेरे सर पर चढ़ चूका था| परन्तु मैं कर कुछ नहीं सकता था| मैंने गुस्से में मुंह घुमाया और दूसरी तरफ करवट ले कर सो गया| उन्होंने अपना हाथ मेरी कमर रख के मुझे मानाने की कोशिश की पर मैं कहाँ मानने वाला था| मैंने उनका हाथ झटक दिया और जोर से सब से बोला: 
"शुभ रात्रि, मैं सो रहा हूँ|"
पिताजी ने डांटते हुए कहा: "क्यों क्या हुआ? इतने दिन से तूफ़ान मचाया हुआ था की पिक्चर देखनी है और अब जब पिक्चर आ गई तो सोना है?" मैंने कोई जवाब न देना सही समझा और ऐसा दिखाया की मुझे बहुत जोर से नींद आ रही हो| मन ही मन मैं भाभी को कोस रहा था की उन्होंने क्यों मुझे रोका, सारा मूड ख़राब कर दिया| 

अगले दिन सुबह हुई, पर मैं अब भी भाभी से बात नहीं कर रहा था| उन्होंने एक-दो बार मुझे इशारे से बुलाया भी, पर मैंने गुस्से से उनके तरफ देखा पर बोला कुछ नहीं| ये मेरा तरीका था उन्हें ये याद दिलाने का की कल रात को आपने मेरे साथ धोका किया! सुबह नाश्ता करने के पश्चात समय था भाभी और भैया को स्टेशन छोड़ने जाने का| जैसे ही पिताजी ने कहा की जल्दी तैयार हो जाओ, मेरा तो जैसे गाला ही सुख गया| मेरी शकल पे बारह बज गए और मैं अपने ही भावों को छुपा न पाया, पिताजी को मेरे भावों को पढ़ने में ज्यादा देर नहीं लगी पर उन्होंने मेरे इन भावों का अंदाजा ठीक वैसे ही लगाया जैसे की कोई आम इंसान किसी अपने के जाने पर लगाता है| उन्हें लगा की मुझे भाभी और भैया के जाने का बहुत दुःख हो रहा है, क्योंकि उनकी नजर में मैं दोनों को ही प्यार करता था| पर वे नहीं जानते थे की मेरा प्यार केवल भाभी के लिए था, भैया के साथ तो मैं केवल इसलिए खेलता था की कहीं उन्हें मेरी भाभी के प्रति भावनाओं पर शक न हो जाये| चन्दर भैया ने मुझे आगे बढ़ कर गले लगा लिया जैसे उन्हें भी यकीन था की पिताजी जो कह रहे हैं| भैया कहने लगे, " अरे मानु भैया दुखी न हो, हम फिर आएंगे| नहीं तो आप गावों आ जाना हमसे मिलने"| मेरी आँखों में आंसूं छलक आये थे और मेरी नजरें भाभी पर टिकी थीं| उनके चेहरे से साफ़ नजर आ रहा था की वे अंदर से कितनी उदास हैं| पर उन्हें अपने भावों को छुपाने की कला में महारत थी, इसलिए की इससे पहले की कोई उनके उदास चेहरे को देख पाता उन्होंने अपने आपको संभालते हुए एक झूठी मुस्कान दी| उनकी ट्रैन 2 बजे की थी और अब स्टेशन के लिए निकलने का समय था, मैंने जिद्द की, कि मैं भी जाऊँगा| पिताजी ने हार मानते हुए कहा ठीक है, हम पांचों घर से निकल चले| पिताजी और भैया आगे चल रहे थे और आपस में कुछ बात कर रहे थे, पीछे मैं, भाभी और उनकी गोद में नेहा थी| मैंने भाभी का हाथ पकड़ा हुआ था और जैसे-जैसे हम ऑटो रिक्शा स्टैंड तक पहुंचे मेरा दबाव उनके हाथ पर गहर्रा होता जा रहा था| ऐसा लगता था जैसे मैं उन्हें रोक लूँ और अपने साथ घर वापस ले जाऊँ| पिताजी ने रिक्शा किया और ऑटो रिक्क्षे में हम कुछ इस प्रकार बैठे:
सबसे पहले भाभी बैठीं फिर मैं अंदर घुसा फिर चन्दर भैया और मैं उनकी गोद में बैठ गया और अंत में पिता जी बैठ गए| मैंने फिर से भाभी का हाथ पकड़ लिया और आंसूं से भरी नजरों से उनकी और देखने लगा| अब उनसे भी बर्दाश्त करना मुश्किल था, उन्होंने अपने सीधे हाथ से मेरी आँख से आंसूं पोछे| अब उनकी आँखों में भी आंसूं छलक आये थे, अब मेरी बारी थी उन्हें पोछने की| मैंने उनके आंसूं पोछे और गर्दन न में हिलाते हुए नहीं रोने का संकेत दिया| पूरे रास्ते में उनका हाथ पोछते हुए भाई की गोद में बैठा था और अंदर ही अंदर अपने आप को कोस रहा था की क्यों मैंने रात में बेवकूफी की| पर अब पछताने से क्या होने वाला था, हम स्टेशन पर पहुंचे और उन्हें ट्रैन में बैठाया| कुछ ही क्षण में ट्रैन चल पड़ी और मैं स्टेशन पर खड़ा उन्हें अलविदा कहता रहा| यूँ तो बहुत से लोग स्टेशन आते हैं परन्तु मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मेरी आत्मा का एक टुकड़ा मुझसे दूर जा रहे है और मैं उसे चाह के भी नहीं रोक सकता| मेरी बाद किस्मती की उस दिन के पश्चात न तो उनका दुबारा शहर आना हुआ और न ही हमारा गावों जाना हुआ|
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[size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large]धीरे-धीरे मैं उन मीठी-मीठी सभी यादों को भूलता गया और अपनी पढ़ाई में मशगूल हो गया| कई साल बीत गए और अब मैं नौंवी कक्षा में आ चूका था| मेरे स्कूल के दोस्तों से मुझे सेक्स का ज्ञान प्राप्त हुआ| मेरी कक्षा में मेरे दोस्त इतने हरामी थे की कक्षा में शिक्षिका के होते हुए भी अपना लंड पेंट से निकाल के एक दूसरे को दिखाया करते थे| परन्तु मुझे ये सब बड़ा ही अभद्र व्यवहार लगता था इसलिए मैंने इस अश्लील काम को कभी भी कक्षा में नहीं किया और यही कारन था की मैं कक्षा का सबसे भोला- भाला विद्यार्थी था| इस साल गर्मियों की छुटियों में पिताजी ने गावों जाने का प्रोग्राम बनाया था, पिताजी की बात सुनके मेरे मन में वही भूली बिसरी यादें वापस आ गईं और में सोचने लगा की क्या भाभी को वो सब याद होगा? मैं मन ही मन बहुत प्रसन्न था, इतना सालों बाद वो हसीन पल आने वाला था| गावों जाने की बात से तो मैं फूला नहीं समां रहा था| अभी तक मैं अपनी इन भावनाओं को समझ नहीं सका था और न ही भाभी और मेरे इस रिश्ते को कोई नाम नहीं दे पाया था| मेरे लिए तो जैसे एक सुन्हेरा सपना था, जो मेरे अनुसार कभी खत्म नहीं होना चाहिए| 

खेर पिताजी ने गावों जाने की टिकट निकलवाई| मैं सारी रात नहीं सो पाया, दिमाग में बस भाभी का ख़याल ही आ रहा था| उनकी वो कातिलाना मुस्कान जिसके लिए मैं कुछ भी कर सकता था| इस बार मैंने मन बना लिया था की इस बार मैं कोई मूर्खता नहीं दिखाऊंगा, उनसे नाराज हो के इस स्वर्णिम मौके को बेकार नहीं करूँगा| सारी रात दिमाग में रणनीतियां बनाता रहा और 4 बजे करीब मेरी आँख लगी| 
गावों जाने में केवल एक दिन रह गया था और अब बारी थी पैकिंग करने की| मैंने ख़ुशी-ख़ुशी सारा सामान पैक किया और मेरा इतना उत्साह देख कर तो पिताजी भी चकित थे| उन्होंने माँ से मेरी तारीफ करते हुए कहा भी, 

"क्या बात है लाड़ साहब, आज तो पैकिंग करने में बहुत उत्सुकता दिखा रहे हो? आज से पहले तो कभी इतनी उत्सुकता नहीं दिखाई, हमेशा माँ कहते-कहते थक जाती थी की अपने कपडे निकाल दे मैं पैक कर दूँ पर आपके कान पे जूं तक नहीं रेंगती थी|" 

मैंने कोई जवाब नहीं दिया बस हल्का सा मुस्कुरा दिया, अब उन्हें की पता की मेरे मन में क्या चल रहा है| माँ ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा : 

"अरे अब बड़ा हो गया है, जिम्मेदार हो गया है| अब से हमेशा ही ये हम सबका समान पैक करेगा| क्यों करेगा ना?"

अब मैं क्या कहता, बस इतना ही बोला :

"जी"!!!
खेर वो दिन आ गए जब हम गावों पहुंचे, हमारी बड़ी आओ-भगत हुई| गावों में जिन-जिन को पता चला की शहर से सुरेश और उनका परिवार आया है, वे सब हमसे मिलने आये सब लोग हमें घेर के बैठे थे जैसे कोई फ़िल्मी हस्ती आई हो| सभी का ध्यान पिता जी की बातों पर था और मैं तो बस भाभी की एक झलक देखने को तड़प रहा था| मेरी बड़की अम्मा (बड़ी चाची) गुड और पानी लाईं, पर मेरी नजर तो भाभी को ढूंढ रही थी| मैंने गुड उठाया और मुंह में डाला, और जैसे ही पानी का गिलास उठा के पानी का पहला घूट पिया मुझे भाभी की साडी दिखाई दी| मेरे दिल में जैसे गिटार बजने लगा, जैसे-जैसे वो नजदीक आने लॉगिन मेरे चेहरे पर मुस्कान बढ़ने लगी| उन्होंने सबसे पहले मेरी तररफ देखा और एक प्यार भरी मुस्कराहट दी| हाय!!!.. इसी मुस्कराहट के लिए तो मैं कितने दिनों से तड़प रहा था| उनके हाथ में एक बड़ी सी परत थी और उसमें पानी था, मैं सवालों भरी नज़रों से उन्हें देख रहा था क्योंकि मैं नहीं जानता था की इसका क्या करना है? 
भाभी मई पास आई और नीचे झुक कर उन्होंने वो बर्तन ज़मीन पर रखा और और मेरे जुटे उतरने लगीं| मैंने उनसे खुद ही सवाल पूछा: 

"भाभी इस बर्तन में पानी है, क्या मुझे नहलाने का इरादा है" ये कहते हुए मैंने हलकी से मुस्कान दी!

पिताजी ठीक मेरे पीछे ही बैठे थे, उन्होंने मेरी बात सुन ली और पीछे घूम के देखा और बोले : 
"अरे नहलाने नहीं इसमें तेरे पैर धोएंगे, जिससे तेरी सारी थकान उतर जाएगी|" 

मैं बड़ी हैरत वाली नज़रों से भाभी की और देखने लगा और अपने पैर भाभी के हाथ से ऐसे छुड़ाय जैसे वो मेरे पैर काटने वालीं हों| भाभी हैरान मेरी और देख रही थी, इससे पहले की वो कुछ कहती मैं स्वयं बोल पड़ा :
"नहीं भाभी मैं आपसे पैर नहीं धुल्वायंगे| आप मुझसे बड़े हो मैं आपको अपने पैर हाथ नहीं लगाने दूंगा|"

मेरी बात सुन भाभी और सब के सब सुन रह गए| दरअसल हमारे गावों में औरत को बहुत निचला दर्जा दिया जाता है, सामान्य भाषा में कहूँ तो उसे पैर की जूती समझा जाता है| परन्तु मेरा व्यवहार ऐसा नहीं है, शायद मेरे पिताजी के शिष्टाचार ने मेरी सोच इस प्रकार बदल दी| हालाँकि मेरे पिताजी की सोच मेरे विचारों के एक दम विपरीत है, उन्होंने मेरी माँ को शुरू से ही दबा के रखा है| मेरी इस सोच का श्रेय में अपनी माँ को देना चाहूंगा, जिन्होंने मुझे सब के प्रति आदर भाव की शिक्षा दी| 

खेर वहां सभी मर्द मेरे पिताजी की तारीफ करने लगे की उन्होंने क्या शिक्षा दी है| उनके शब्द और चहरे के भाव एक साथ मेल नहीं खा रहे थे और ये पिताजी भी समझ चुके थे| वहां जितनी औरतें थीं वे सब मेरी माँ के पास बैठीं थी और मेरी तारीफ कर रहीं थी| ये बात मुझे माँ ने रात्रि भोज के समय बताईं| भाभी मेरे इस बर्ताव से बहुत प्रभावित लग रहीं थी और उन्हें मुझ पे गर्व होने लगा था|

दोपहर को सब खाना खाने बैठे, आज मैं पहली बार भाभी के हाथ का खाना खाने जा रहा था| जब सब खाना खा चुके थे तब घर की औरतों के खाना खाने की बारी थी| भाभी ने सबसे पहले मेरी बड़की अम्मा और सबसे आखिर में अपने लिए खाना परोस कर बैठ गईं| मैं वहीँ पड़ी चारपाई पर चुप-चाप बैठा था और उन्हें प्यार भरी नज़रों से देखते हुए उनके ख्यालों में गुम था| भाभी ने आँख बचा के मुझे अपनी और तकते हुए पकड़ लिया था और एक हलकी सी मुस्कान उनके चेहरे पर छलक आई थी| जब उनका खाना खत्म हुआ तब वो बर्तन उठा कर बहार गईं, और हाथ मुंह धो कर मेरे पास चारपाई पर बैठ गईं| उन्होंने बड़े प्यार से मेरे गाल पर हाथ फेरा और आगे बड़के मेरे गाल को चूमा| फिर मेरी आँखों में देखते हुए पूछा:
"खाना कैसा बना था?" 
मैंने सबसे पहले उनके हाथों को पकड़ा और उन्हें चूमते हुए कहा: 
"भौजी आज खाने में मज़ा आ गया|"
वो शर्मा गईं और बोली :
"और सुनाओ, क्या हाल है मेरे सबसे छोटे देवर का? पढ़ाई कैसी चल रही है? मुझे भूल तो नहीं गए?"
उन इस अंतिम प्रश्न से मेरे कान लाल होगये और मैंने केवल उनके अंतिम प्रश्न का ही उत्तर दिया:
"भौजी आपको कैसे भूल सकता हूँ! आप तो मेरी सबसे प्यारी भौजी हो!" 
ये सुन के वो थोड़ा मुस्कुरा दीं| इससे पहले की मैं और कुछ कहता उनकी बेटी अर्थात मेरी भतीजी नेहा दौड़ती हुई अंदर आई| वो अभी-अभी स्कूल से लौटी थी, अब काफी बड़ी हो चुकी थी| भाभी ने मेरा उससे एक बार और परिचय कराया:
"मुन्नी ये तुम्हारे दिल्ली वाले चाचा हैं, पाओं छुओ|"
नेहा के चेहरे पर किसी भोले बच्चे जैसी मुस्कराहट थी और जैसे ही वो मेरे पाओं छूने के लिए झुकी मैं उसे रोक लिया| (मुझे किसी भी व्यक्ति से अपने पाओं छुआने का कोई शोक नहीं है|) खेर अब वो आके भाभी की गोद में बैठ गई इसलिए मैं अब न तो कुछ कह सकता था और न ही कुछ कर सकता था| फिर भी मैंने एक आखरी बार कोशिश करने की सोची और अपना वाही पुराना डायलाग मारा:
"भौजी मुझे नींद आ रही है|"
पर हाय रे मेरी किस्मत भाभी ने मेरे उस संकेत को जैसे नज़र अंदाज़ करते हुए, चारपाई से उठीं और दूसरी चारपाई पर मेरे बिस्तर लगा दिया| मैं मन मसोस के दूसरी चारपाई आर लेट गया, तब भाभी ने नेहा से कहा की चल तुझे खाना खिला दूँ और उसके बाद स्कूल की पढ़ाई भी तो करनी है|मेरे मन में उथल-पुथल मचने लगी|भाभी मुझसे भूलने की बात कर रहीं थी पर लग रहा थी की जैसे वो मुझे भूल गईं हो! क्या उन्हें कुछ भी याद नहीं? अपनी इसी उधेड़ बन में मुझे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला| जब आँख खुली तो शाम के करीब पांच बजे होंगे, पर मेरे मन में अभी भी उन सवालों का बवंडर उठा हुआ था| मैंने अपनी शंका दूर करने के लिए उनसे बात करना ठीक समझा और उन्हें इशारे से अपनी चारपाई पर बुलाया| उन्होंने हाथ के इशारे से कहा की अभी आती हूँ| तभी मैं उठ के अंदर गैलरी वाले कमरे में चला गया, दस मिनट बाद भाभी आईं और मेरे पास चारपाई पर बैठ गईं| मेरे अंदर इतना सहस नहीं हुआ की मैं उनसे ये पूछ सकूँ की उनके दोपहर वाले व्यवहार की वजह क्या थी? 
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[size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large]पर मैंने हिम्मत जुटाते हुए उनसे पूछ ही लिया:
"भाभी आप मुझसे नाराज़ हो?"
भाभी : "नहीं तो"
मैं : तो जबसे मैं आया हूँ आपने मेरे पास बैठ के कोई बात ही नहीं की? 
भाभी : मानु तुम थके हुए थे इसीलिए|
मैं : तो अब तो बात कर सकते हैं, अब तो मैं नींद लेकर बिलकुल फ्रेश हो चूका हूँ|
भाभी : मानु मुझे खाना बनाना है!
मैं : वो कोई और बना लेगा, आप मेरे पास बैठो नहीं तो मैं आपसे बात नहीं करूँगा| (मैंने गुस्से अ दिखावा किया)
भाभी : अच्छा ठीक है मैं तुम्हारी मझली भाभी को कह देती हूँ| (मैं तो आपको बताना ही भूल गया की मेरे दो भाई अशोक तथा अजय की शादी भी हो चुकी थी जिसमें मैं सम्मिलित नहीं हो पाया था|)

भाभी दो मिनट के लिए कह के गईं और मेरी मझली भाभी को खाना बनाने के लिए कह के मेरे पास लौट आईं|

भाभी : अच्छा तो बोलो क्या बात करनी है ?
मैं : भौजी आप कुछ भूल नहीं रहे हो?
भाभी : (चौंकते हुए) क्या?
मैं : (अपना बांया गाल आगे लाता हुआ बोला) भूल गए बचपन में आप मेरे कितने प्यार से गाल काट लिया आते थे|
भाभी : ने अपने दोनों हाथों से मेरा मुंह पकड़ा और फिर धीरे-धीरे मेरी और बढ़ीं, और अपने गुलाबी होटों को मेरे गाल पर रख सबसे पहले एक प्यार भरा और उनके रस से सभीगा हुआ एक चुम्बन लिया| मेरे शरीर में जैसे करंट दौड़ गया, और मेरे रोंगटे खड़े हो गए| 
फिर उन्होंने धीरे से मेरे गाल को अपने मुंह में भरा और अपने दांतों से प्यार से काटने लगीं| मेरे लंड में कसावट आ चुकी थी और अब वो टाइट हो चूका था| इतना टाइट की उसका उभार अब दिखने वाली हालत में था| मेरे दिमाग ने अब आगे की रणनीतियां बना ली थी| फिर जैसे ही उन्होंने मेरे गाल को अपने मुंह की गिरफ्त से छोड़ा मैंने अपना मुंह घुमाके उनके और अपना दांया गाल आगे कर दिया| वो मेरा इशारा समझ गईं और मेरे इस गाल पर भी अपने रसीले होठों के साथ-साथ अपने रस की छाप छोड़ दी| मैं चाहता था की मैं अपने गाल पर पड़े उस छाप का स्वाद लूँ, पर इससे पहले की मैं अपने गालों पर पड़ी उन ओस की बूंदों को छू पाटा, भाभी ने अपने हाथ से उन्हें पोंछ के साफ़ कर दिया|मैंने इस बात को ज्यादा ध्यान न देते हुए कहा:
"भाभी मैं भी आपकी पप्पी लूँ?"
भाभी ने अपना दायां गाल मेरे आगे परोस दिया और मैंने भी अपनी दहकते होठों को उनके ठन्डे गालों से मिला के उनको एक जबरदस्त चुम्बन दिया| मैंने उनके कोमल गाल को काटा नहीं बल्कि उन्हें टॉफ़ी की तरह चूसने लगा| "स्स्स्स ...." उनके मुंह से एक मादक सी सीत्कारी निकली| एक पल के लिए तो मैं डर गया| पर जब उन्होंने कोई विरोध नहीं किया तो मेरी हिम्मत बढ़ गई| फिर मैंने उनका मुंह घूमते हुए दूसरे गाल को अपने दहकते होटों की गिरफ्त में ले लिया और उनके ऊपर भी वाही मादक अत्याचार करने लगा| पता नहीं भाभी को क्या सूझी उन्होंने अचानक मुझे अपने से अलग करने की कोशिश की| मैंने उनका गाल छोड़ दिया और उनकी तरफ सवालियां नज़रों से देखने लगा| उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे गुद-गुदी करना शुरू कर दिया, और मैं खिल-खिलाके हँस पड़ा| मैं अपने ऊपर हुए इस अचानक हमले से हैरान था परन्तु अब बारी मेरी थी| अब मैंने भी उनकी गुद-गुदी का जवाब देते हु उनकी बगल में अपनी ऊँगली छुआ दी और वो हँसती हुई लेट गईं| मैंने उन्हें गुद-गुदी करना बंद नहीं किया और बो जोर-जोर से हँसती हुई मेरे हाथ पकड़ने की कोशिश करने लगीं पर मैं कहाँ मानने वाला था| तभी उस कमरे में मझिली भाभी ने प्रवेश किया और वो हमें इस तरह एक दूसरे को गुद-जुड़ते हुए देख हंसने लगीं और रसोई की और चली गईं| मैं भाभी को गुद-गुदी करते हुए अपनी दायीं टांग उठ के उनके झांघों पे रख दीं| 
मेरा ऐसा करने से मेरा लंड उनकी जगहों से स्पर्श हुआ और उन्हें मेरे लंड के तनाव का आभास हो चूका था| खेल-खेल में ही दोनों जिस्मों में आग लग चुकी थी, और हम किसी भी समय अपनी सीमाएं लांघने को तैयार थे| मैंने भाभी को गुद-गुदी करना बंद कर दिया था और अब उनके होंठों को सहला रहा था, हमें अब कोई भी परेशान करने वाला आस-पास नहीं था और मैं इस स्थिति का फायदा उठाना चाहता था| मैंने धीरे धीरे आगे बढ़के भाभी के गुलाबी थर-ठरते होठों पर पाने होंठ रख दिए और उन्हें अपने आगोश में ले लिए| ऐसा लगा मानो भाभी बहुत प्यासी हो और वो मेरा साथ जमके देने लगीं| उन्होंने सर्वप्रथम मेरे होठों को अपने मुख के अंदर भर लिया और उन्हें चूसने लगीं, मैंने थोड़ी कोशिश की और ठीक उनके ऊपर आ गया और अपने ऊपर वाले होंठ को उनसे छुड़ा लिया और उनके नीचे वाले होंठ को अपने मुंह में दबोच उनका रसपान करने लगा| मेरा शरीर बिलकुल टप रहा था और अब मेरा लंड ठीक उनके योनि के ऊपर अपनी उपस्थिति का आभास करा रहा था| भाभी को भी अपने योनि पर होने वाले इस हमले का इन्तेजार था| पर मैंने उनके होंठों को अभी तक नहीं छोड़ा था, इस चुम्बन में बस कमीं थी तो बस फ्रेंच किस की| क्योंकि मैं फ्रेंच किस के बारे में अनविज्ञ था इसलिए मैंने उनके मुंह में अपनी जुबान नहीं डाली थी| भाभी धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहती थी, और मैं था की इतना उतावला की सब कुछ अभी करना चाहता था| कोई भी अनुभव न होने के कारन मैंने अभी तक न तो उनकी योनि को स्पर्श किया था और न ही उनके उरोजों को| भाभी इन्तेजार कर रहीं थी की कब मैं उनके बदन के बाकी अंगों को छूँगा| पर मेरा ध्यान तो उनके होठों से हट ही नहीं रहा था .... 
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[size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large]पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, अचानक भाभी को किसी के आने की आहात सुनाई दी और उन्होंने जोर लगा के मुझे अपने से अलग कर दिया| भाभी मुझसे अलग हो अपने कपडे ठीक करने लगीं और मैं तो जैसे हैरानी से अपने साथ हो रहे इस अत्याचार के लिए उन्हें दोषी मान रहा था| इससे पहले की मैं उनसे इस अत्याचार का कारण पूछता मेरे कानों मेरीन मेरे मझिले दादा के लड़के पंकज की आवाज आई| भाभी सामने पड़ी चारपाई पर बैठ गई, और मेरे भाई मेरे पास आके बैठ गया और मेरा हाल-चाल पूछने लगा| मेरा मन किया की उसे जी भर के गालियां दूँ पर अपने पिताजी के शिष्टाचार ने मेरे मुंह पर टला लगा दिया| मैंने ताने मारते हुए उसे बस इतना ही कहा : 
"आपको भी अभी आना था!!!" 
पंकज : क्यों भाई क्या हुआ?
मैं : कुछ नहीं...
पंकज : और बताओ क्या हाल-चाल हैं दिल्ली के?
इस तरह उसने सवालों का टोकरा नीचे पटका और मैं उसके सवालों का जवाब बेमन से देने लगा|
दिल्ली के हाल-चाल तो ऐसे पूछ रहा था जैसे इसे बड़ी चिंता है दिल्ली की| मैंने आँखें चुराके भाभी की तरफ देखा तो उनके चेहरे पर उदासी साफ़ दिख रही थी| वो उठीं और बहार चलीं गई| 
मुझे इतना गुस्सा आया की पूछो मत दोस्तों| पर मन में एक आशा की किरण थी की आज नहीं तो कल सही| कल तो मैं भाभी के बहुत प्यार करूँगा और आज की रही-सही सारी कसार पूरी कर दूँगा|

पर हाय रे मेरी किस्मत!!! एक बार फिर मुझे धोका दे गई!
अगले ही दिन भाभी का भाई उन्हें मायके लेजाने आया था क्योंकि उनके मायके में हवन था| सच मानो मेरे दिल पे जैसे लाखों छुरियाँ चल गईं| आँखों में जैसे खून उत्तर आया| मन किया की भाभी को ले कर कहीं भाग जाऊं| पर समाजिक नियमों से जकड़ा होने के कारण में कुछ नहीं कर पाया| जो एक रौशनी की किरण मेरे दिल मैं बची थी उसे किसी तूफ़ान ने बुझा दिया था| में बबस खड़ा उन्हें जाते हुए देखता रहा पर दिल में कहीं न कहीं आस थी की भाभी जल्दी आ जाएगी| ऐसा लगा की जैसे मैं इसी आस के सहारे जिंदा हूँ| मुझे इतना समय भी नहीं मिला की मैं उन्हें एक गुडबाय किस दे सकूँ या काम से काम इतना ही पूछ सकूँ की आप कब लौटोगी| दिन बीतते गए पर वो नहीं आईं, मेरी जिंदगी बिलकुल नीरस हो गई| मैं किसी से बात नहीं करता था बस घर में चारपाई पर लेटा रहता| मेरा मन ये नहीं समझ पा रहा था की इसमें गलती किसकी है? पर दिमाग तो भाभी को दोषी करार दे चूका था| खेर मेरे भाव ज्यादा दिन मेरी माँ से नहीं छुप पाये, उन्होंने मेरी उदासी का कारण जैसे भाँप ही लिया|
माँ ने पिताजी से कहा की लड़के का मन अब यहाँ नहीं लग रहा| अपनी बड़ी भौजी के साथ सारा दिन बात करता था अब तो वो मायके गई है और जो नई बहु आईं हैं उनसे तो शर्म के मारे बात तक नहीं करता तो ऐसा करते हैं की शहर वापस चलते हैं| पिताजी ने कहा की मैं बात करता हूँ उससे :

पिताजी: हाँ भाई लाड-साहब क्या बात है? 
मैं : जी? कुछ भी तो नहीं...
पिताजी: कुछ नहीं है तो सारा दिन यहाँ पलंग क्यों तोड़ता रहता है| जाके अपनी भाभियों से बात कर, बच्चों के साथ खेल|
मैं : नहीं पिताजी अब मन नहीं लगता यहाँ, बोर हो रहा हूँ| दिल्ली चलते हैं!
पिताजी: मैं जानता हूँ तो अपनी बड़ी भौजी को याद कर रहा है| बीटा उनके घर में हवन है इसलिए वो अपने मायके गई है, जल्द ही आ जाएगी|
मैं: नहीं पिताजी मुझे शहर जाना है, और रही बात भौजी की तो मैं उनसे कभी बात नहीं करूँगा|
पिताजी: (गरजते हुए) क्यों? क्या वो अपने मायके नहीं जा सकती, क्योंकि लाड-साहब के पास टाइम पास करने के लिए और कोई नहीं है|

मैंने कोई जवाब नहीं दिया| वे गुस्से में बहार निकल गए और अपने बड़े भाई को सारी बात बता दी| मेरे बड़के दादा और बड़की अम्मा मुझे समझाने आये:
बड़के दादा: अरे मुन्ना कोई बात नहीं, अगर तुम्हारी बड़की बहूजी नहीं है तो क्या हुआ हम सब तो हैं| 
बड़की अम्मा: मुन्ना मेरी बात सुनो, तुम्हारी केवल एक भौजी थोड़े ही हैं, दो नई-नई जो आईं हैं उनसे भी बात करो...हंसी-ठिठोली करो.... 
मैं: (बात घुमाते हुए)… अम्मा बात ये है की गर्मियों की छुटियों का काम मिला है स्कूल से वो भी पूरा करना है|
माँ ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा की: 
"हाँ, अब केवल एक महीने ही रह गया है इसकी छुटियाँ खत्म होने में|"
स्कूल की बात सुनके अब पिताजी के पास बहस करने के लिए कुछ नहीं था| उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा:

"ठीक है हम कल ही निकलेंगे, ट्रैन की टिकट तो इतनी जल्दी मिलेगी नहीं इसलिए बस से जायंगे|" उनके इस फैसले से मेरे बेकरार मन को चैन नहीं मिला क्योंकि दिल को अब भी लग रहा था की कल भौजी अपने मायके से जर्रूर लौट आएगी और तब मैं पिताजी को फिर से मना लूँगा| रात्रि भोज के बाद सोते समय मैं फिर से भौजी की यादों में डूब गया और मन ही मन ये प्रार्थना कर रहा था की भौजी कल लौट आएं| 

सुबह हुई और चन्दर भैया को ना जाने क्या सूझी उन्होंने भाभी के मायके ये खबर पहुँचा दी की मानु आज शहर वापस जा रहा है और भाभी ने ये कहला भेजा की वो हमें रास्ते में मिलेंगी| जब मुझे इस बात का पता चला तो मेरे तन बदन में न जाने क्यों आग लग गई| मैंने पिताजी से कहा :

"पिताजी हम रास्ते में कहीं नहीं रुकेंगे, सीधा बस अड्डे जायेंगे|" 

पिताजी मेरी नाराजगी समझ गए और उन्होंने मुझे समझते हुए कहा :

“बेटा, इतनी नाराजगी ठीक नहीं और भाभी का मायका बिलकुल रास्ते में पड़ता है अब हम घूमके तो नहीं जा सकते| और अगर हम रास्ते में उनके घर पर नहीं रुकेंगे तो अच्छे थोड़े ही लगेगा|" 

अब मरते क्या न करते हम चल दिए और पिताजी ने रिक्शा किया मैंने सारा सामान रिक्शा पे लाद दिया| पर मैंने अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया की चाहे कुछ भी हो जाए मैं रिक्शा से नहीं उतरूंगा| भाभी का मायका नज़दीक आ रहा था और में तिरछी नज़र से भाभी को दरवाजे पे खड़ा देख रहा था| उनके हाथ में एक लोटा था जिसमें गुड की लस्सी थी जो वो मेरे लिए लाइ थीं, क्योंकि उन्हें पता था की मुझे लस्सी बहुत पसंद है| माँ ने मुझे कोहनी मारते हुए रिक्शा से उतरने का इशारा किया पर मैं अपनी अकड़ी हुई गर्दन ले कर रिक्शा से नीचे नहीं उतरा| मेरा गुस्सा अभी भी भौजी और मेरे बीच में आग की दिवार के रूप में दाहक रहा था| भौजी ने पहले पिताजी और माँ के पाँव छुए और माँ ने उन्हें मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा:

"मानु बहुत नाराज है तुमसे इसीलिए रिक्क्षे से नहीं उतर रहा, जाओ उसे लस्सी दो तो शांत हो जायेगा!"
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[size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large]ये सब मैं तिरछी नज़रों से देख रहा था और उधर माँ और पिताजी भौजी के मायके वालों से मिलने लगे| मैं अनजान लोगों से ज्यादा घुलने मिलने की कोशिश नहीं करता, यही मेरा सौभाव था और चूँकि मैं अब किशोरावस्था में था इसलिए पिताजी मुझपे इतना दबाव नहीं डालते थे| भाभी अपनी कटीली मुस्कान लेते हुए मेरी और बढ़ने लगीं| वो मेरे पास आइ और मेरी कलाई को पकड़ा और बोलीं: 

“मानु ….मुझसे नाराज हो?” 

मैंने उनका हाथ झिड़कते हुए अपना हाथ उनसे छुड़ा लिया| 

भाभी : "मुझसे बात नहीं करोगे?" 

वो परेशान हो मेरी तरफ देखने लगीं|भौजी ने एक बार फिर मेरा हाथ पकड़ लिया और लस्सी वाला लोटा नीचे रख दिया| इस बार उनके स्पर्श में वही कठोरता थी जो मेरे हाथ में कुछ साल पहले थी, जब मैं उन्हें जाने नहीं देना चाहता था| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मुझे रोक कर मुझसे माफ़ी माँगना चाहती हो, परन्तु गुस्से की अग्नि ने मेरे दिल को जला रखा था| मैंने दूसरी तरफ मुंह मोड़ लिया और मेरी आँख में आंसूं छलक आये| मैं भौजी को केवल अपनी कठोरता दिखाना चाहता था न की अपने अश्रु! मैं चाहता था की उन्हें एहसास हो की जो उन्होंने मेरे साथ किया वो कितना गलत था और उन्हें ये भी महसूस कराना चाहता था की मुझे पे क्या बीती थी| 
पर मेरे आंसूं छलक के सीधा भौजी के हाथ पे गिरे और उन्हें ये समझते देर न लगी की मेरी मनो दशा क्या थी| उन्होंने मेरी ठुड्डी पकड़ी और अपनी ओर घुमाई, मैंने अपनी आँख बंद कर ली और भौजी ने मेरे मुख पे आँसूं की बानी लकीर देख ली थी| उन्होंने अपने हाथ से मेरे आंसूं पोछे…. मेरा गाला बिलकुल सुख चूका था और मेरे मुख से बोल नहीं फूट रहे थे| जब मैंने आँख खोली तो देखा की भाभी मेरी और बड़े प्यार से देखते हुए उन्होंने कहा:

"अच्छा बात नहीं करनी है तो काम से काम मेरे हाथ की लस्सी तो पी लो!" 
पर पता नहीं क्यों मेरे अंदर गुस्सा अभी भी शांत नहीं हुआ था और मैंने ना में सर हिलाते हुए उनके लस्सी के गिलास को अपने से दूर कर दिया| 
वो बोलीं:
“मानु मेरी बात तो.......” 
और ये कहती हुई रुक गयीं| मैंने पलट के देखा तो माँ और पिताजी रिक्क्षे के करीब आ चुके थे| पिताजी ने भौजी के हाथ में लस्सी वाला लोटा देखा और कहा:
“क्या हुआ बहु, अभी तक गुस्सा है?”
भौजी: हाँ काका, देखो ना लस्सी भी नहीं पी रहा|
पिताजी: अब छोड़ भी दे गुस्सा, और चल जल्दी से लस्सी पी ले देर हो रही है| 
मैं जानता था की अगर मैंने कुछ बोलने की कोशिश की तो मेरी आँख से गंगा-जमुना बहने लगे गई इसलिए केवल ना में सर हिला दिया| पिताजी को ना सुनने की आदत नहीं थी और वो भी इस नाजायज गुस्से की वजह से आग बबूला हो गए|
पिताजी: रहने दो बहु, लाड़-साहब के नखरे बहुत हैं| बड़ी अकड़ आ गई है तेरी गर्दन में घर चल साड़ी अकड़ निकालता हूँ| 
माँ ने बात को खत्म करने के लिए भौजी के हाथ से लोटा लेते हुए कहा:

लाओ मैं ही पी लूँ|.हम्म्म.... बहुत मीठा है| (माँ ने मुझे ललचाते हुए कहा|)
पर मेरे कान पी जू तक ना रेंगी और पिताजी ने पेड़ के नीचे खड़े तम्बाकू कहते हुए रिक्क्षे वाले को चलने के लिए आवाज लगाई| रिक्शा चल पड़ा और भौजी की नजरें रिक्क्षे का पीछा कर रहीं थी इस उम्मीद में की शायद मैं पलट कर देखूं| पर मैं नहीं मुड़ा और उन्हें तिरछी नज़र से पीछे देखता रहा|
[/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size][/size]
 
[size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large][size=small][size=large]खेर हम घर लौट आये और मैं अपने ऊपर हुए इस अन्याय से बहुत विचलित था और इस वाक्या को भूल जाना चाहता था| इसलिए मैंने पढ़ाई में अपना ध्यान लगाना चालु कर दिया| धीरे-धीरे मैं सब भूल गया और अपने मित्रों की सांगत की वजह से हस्थमैथुन की कला सिख चूका था| जब घर में डी.वी.डी प्लेयर आया तो दोस्तों से ब्लू फिल्म के जुगाड़ में लग गया और जब भी मौका मिलता उन फिल्मों को देखता| अब मैं सेक्स के बारे में सब जान चूका था और कैसे ना कैसे करके किसी भी नौजवान लड़की को भोगना चाहता था| 

समय का पहिया फिर घुमा और अब मैं ग्यारहवीं कक्षा में पहुँच चूका था| फरवरी का महीना था और परीक्षा में केवल एक महीना ही शेष था और स्कूल के छुटियाँ चालु थी| अचानक वो हुआ जिसकी मैं कभी कामना ही नहीं की थी| दरवाजे पर दस्तक हुई और माँ ने मुझे दरवाजा खोलने को बोला| मैं हाथ में किताब लिए दरवाजे के पास पहुंचा और बिना देखे की कौन आय है मैंने दरवाजा खोल दिया और वापस अपने कमरे जानेके लिए मुद गया| मुझे लगा की पिताजी होंगे, पर तभी मेरे कान में एक मधुर आवाज पड़ी:

"मानु...."

मैं पीछे घुमा तो देखा लाल साडी में भौजी खड़ी हैं और उनके साथ नेहा जो की अब बड़ी हो चुकी थी वो भी खड़ी मुस्कुरा रही है| मेरा मुँह खुला का खुला रह गया! अपने आपको सँभालते हुए मैंने भौजी को अंदर आने को कहा| इतने में माँ भी भौजी की आवाज सुन किचन से निकल आईं| भौजी ने उनके पैर छुए और माँ ने उन्हें आशीर्वाद दिया| मैंने कभी भी सोचा ही नहीं था की भाभी ढाई साल बाद अकेली आएँगी वो भी सिर्फ मुझसे मिलने| लगता है आज मेरी किस्मत मुझपे कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी| माँ ने उन्हें कमरे में बैठने को बोला और मुझे जबरदस्ती अंदर भेज दिया| मैं कमरे में दाखिल हुआ तो देखा भाभी पलंग पर बैठी थी और उनकी बेटी नेहा टी.वी की और इशारा कर रही थी| 

मैंने टी.वी चालु कर दिया और कार्टून लगा दिया| नेहा बड़े चाव से टी.वी के नजदीक कुर्सी पे बैठ देखने लगी| मैंने डरते हुए भाभी की तरफ देखा तो उनकी नज़र मुझपे टिकी हुई थी और इधर मेरे मन में उथल-पुथल चालु थी| दिमाग उस हादसे को फिर से याद दिल रहा था और रह-रह के वो दबा हुआ गुस्सा फिर से चहरे पर आने को बेताब था| मैं चाहता था की भाभी को पकड़ कर उनसे पूछूं की आपने मेरे साथ उस दिन धोका क्यों किया था? कमरे में सन्नाटा था केवल टी.वी की आवाज आ रही थी की तभी माँ हाथ में कोका कोला लिए अंदर आई|

भाभी झट से उठ कड़ी हुई और माँ के हाथ से ट्रे ले ली और कहने लगी:

"चाची आपने तकलीफ क्यों की मुझे बुला लिया होता|"

माँ: अरे बेटा तकलीफ कैसी आज तुम इतने दिनों बाद हमारे घर आई हो| और बताओ घर में सब ठीक ठाक तो है???.....

और इस तरह दोनों महिलाओं की गप्पें शुरू हो गई| मैं अपने दिमाग को किताब में लगाना चाहता था पर दिल फिर पुरानी बातों को याद कर खुश हो रहा था! दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं और मन बेकाबू होने लगा पर हिम्मत नहीं हुई भाभी से बात करने की| एक अजीब सी शक्ति मुझे भाभी के पास जाने से रोक रही थी| एक हिच्चक .... जैसे की वो मेरे लिए कोई अनजान शख्स हो| 

परन्तु मेरा कौमार्य मेरे दिमाग पर हावी होना चाहता था पर दिमाग कह रहा था की बेटा तेरी किस्मत हमेशा ऐन वक्त पे धोका देती है| क्यों अपना दिल को तकलीफ दे रहा है? जब गावों में जहाँ की इतनी खुली जगह है वहां पर कुछ नहीं हो पाया तो ये तो तेरा अपना घर है जिसमें केवल तीन कमरे और एक छत हैं| पर दिल कह रहा था की एक कोशिश तो बनती है पर करें क्या??? 
जब मैं अपने दिन के सपनों से बहार आया तो माँ भाभी से पूछ रही थी:

"बेटा तुम अकेली क्यों आई हो? चन्दर नहीं आय तुम्हारे साथ?"

भाभी: काकी नेहा के पापा साथ तो आये थे पर बाहर गावों के मनोहर काका का लड़का मिला था वो उन्हें अपने साथ ले गया और वो मुझे बहार छोड़के उसके साथ चले गए|

माँ: बेटा अच्छा तुम बैठो मैं खाना बनाती हूँ|

भाभी : अरे चाची मेरे होते हुए आप क्यों खाना बनाओगी? 

माँ: नहीं बेटा, तुम इतने सालों बाद आई हो ... मानु से बातें करो|

इतना कह माँ रसोई में चली गई| अब भाभी मेरी ओर देखने लगी ओर मुझे इशारे से अपने पास बैठने को बुलाया| मैं उनके पास जाने से डर रहा था क्योंकि शायद अब मैं एक बार अपना दिल टूटते हुए नहीं देखना चाहता था| पर मेरे पैर मेरे दिमाग के एकदम विपरीत सोच रहे थे, और अपने आप भाभी की ओर बढ़ने लगे| मैं उनके पास पलंग पर बैठ गया और नीचे देख हिम्मत बटोरने लगा| भाभी ने बड़े प्यार से अपने हाथों से मेरा चेहरा ऊपर उठाया, जैसे की कोई दूल्हा अपनी दुल्हन का सुन्दर मुखड़ा सुहागरात पे अपने हाथ से उठता है| 
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[size=large]ok friends i will try to cont.... this stori
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मेरे चेहरे पर सवाल थे, और भाभी मेरा चेहरा पढ़ चुकी थी और भाभी बोली:

"मानु अब भी मुझसे नाराज हो?"

उनके मुंह से ये सवाल सुन मैं भावुक हो उठा और टूट पड़ा| मेरी आँखों में आँसूं छलक आये और भाभी ने मुझे अपने सीने से चिपका लिया| उनके शरीर की उस गर्मी ने मुझे पिघला दिया और मेरे आँसूं भाभी का ब्लाउज कन्धों पर से भिगोने लगे| मैं फुट-फुट के रोने लगा और मेरी आवाज सुन भाभी भी अपने आपको रोक नहीं पाईं और वो भी सुबक उठीं और उनके आँसूं मुझे मेरी टी-शर्ट पे महसूस होने लगे|

ऐसा लगा जैसे आज बरसो बाद मेरा एक हिस्सा जो कहीं घूम हो गया था उसने आज मुझे पूरा कर दिया| भाभी ने मुझे अपने से अलग किआ और अपने हाथ से मेरे आँसूं पोछे और मैं अपने हाथ से उनके आँसूं पोछने लगा|नेहा जो अब बड़ी हो चुकी थी अपनी सवालियां नज़रों से हमें देख रही थी|भाभी ने उसे अपने पास बुलाया और अपनी सफाई दी:

"बेटा चाचा मुझे और तेरे पापा को बड़ा प्यार करते हैं, इसलिए इतने साल बाद मिलें हैं ना तो चाचा को रोना आगया|"

ये सुन नेहा ने मेरे गाल पर एक पापी दी और मेरे गाल पकड़ कर छोटे बच्चे की तरह हिलाने लगी| उसकी इस बचकानी हरकत पे मुझे हंसी आ गई| नेहा वापस टी.वी देखने में मशगूल हो गई| मुझे हँसता देख भाभी बोल पड़ी:

"सच मानु तुम्हारी इस मुस्कान के लिए मैं तो तरस गई थी|"

मैं: भाभी मुझे आपसे कुछ बात करनी है|

भाभी: पहले ये बताओ की क्या तुम अब मुझसे प्यार नहीं करते?

मैं: क्यों?

भाभी: तुम तो मुझे भौजी कहते थे ना?

मैं: हाँ...पर मैं भूल गया था|

भाभी: समझी, कोई गर्लफ्रेंड है क्या?

मैं: नहीं!

भाभी: तो मुझे भूल गए?

मैं: नहीं ... भाभी पहले आप मेरे साथ छत पे चलो मुझे आपसे कुछ बात करनी है|

भाभी: फिर भाभी? जाओ मैं नहीं आती|
(उन्होंने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा|)

मैं: (अपनी आवाज में कड़ा पन लेट हुए) भाभी मुझे आपसे बहुत जर्रुरी बात करनी है|
ये कहते हुए मैंने उनका हाथ दबोच लिया और उन्हें पलंग पर से खींच दरवाजे की ओर जाने लगा| भाभी मेरे इस बर्ताव से हैरान थी और मेरे पीछे-पीछे चल दी|

मैंने माँ से कहा:

"माँ मैं भाभी को छत दिखा के लाता हूँ|"

उस समय हमारे पड़ोस वाली भाभी से बात कर रहीं थी और माँ ने सहमति देते हुए इशारा किया| मैंने अब भी भाभी का हाथ पकड़ा हुआ था और ये हमारी पड़ोस वाली भाभी बड़ी गोर से देख रही थी| भाभी और मैं सीढ़ी चढ़ते हुए छत पर पहुँचे|

मैंने छत पर आके भाभी का हाथ छोड़ा, और एक लम्बी साँस ली| भाभी की ओर गुस्से भरी नज़रों से देखते हुए अपना सवाल दागा:

"भाभी आपने पूछा था की मैंने आपको भौजी क्यों नहीं कहा?... पता नहीं आपको याद भी है की नहीं पर आपने उस दिन मेरे साथ ऐसा क्यों किया??? क्यों आप मुझे छोड़के इतने दिनों तक अपने मायके रुकीं रही??? आपको मेरा जरा भी ख्याल नहीं आया?

मेरी आँखें फिर से भर आईं थी और मैं उनका जवाब सुनने को तड़प रहा था|भाभी की आँखों में आंसूं छलक आय और उन्होंने रट हुए मेरे सवालों का जवाब दिया:

"मानु तुम मुझे गलत समझ रहे हो, मैंने कभी भी तुम्हें अपने दिल की बात नहीं बताई| ...... मैं तुम से प्यार करती हूँ|"

ये सुन के मैं सन्न रह गया! मुझे अपने कानों पे विश्वास नहीं हुआ| मैं चौंकते हुए भाभी की ओर देख रहा था| भाभी अपनी बात पूरी करने लगी.....

"उस दिन जब तुम ओर मैं खेलते-खेलते इतना नजदीक आ गए थे ...मैं तुम्हें अपनी दिल की बात उसी दिन कह देती पर....तुम्हारा भाई आगया| हमें उतना नजदीक शायद नहीं आना चाहिए था| तुम्हें अंदाजा भी नहीं है की मुझपे क्या बीती उस रात! मैं सारी रात नहीं सोई ओर बस हमारे रिश्ते के बारे में सोचती रही| मुझे मजबूरन अगले दिन अपने मायके जाना पड़ा ओर यकीन मनो मैंने तुमसे मिलने की जी तोड़ कोशिश की पर तुम्हें तो पता ही है की गावों में पूजा-पाठ, रस्मों में कितना समय निकल जाता है| मैं वहां से क्या कह के आती ??? की मुझे अपने देवर के पास जाना है! लोग क्या कहते??? ओर मुझे अपनी कोई फ़िक्र नहीं, फ़िक्र है तो बस तुम्हारी|

तुम मेरे देवर हो पर नजाने क्यों मैंने तुम्हें कभी अपना देवर नहीं माना... अब तुम्हीं बताओ इस रिश्ते को मैं क्या नाम दूँ ???

भाभी का जवाब सुनके मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ, और मैं भाभी के सामने घुटनों पे बैठ गया:

"भौजी मुझे माफ़ कर दो मैंने आपको गलत समझा| मुझे उस समय ये ये नहीं जानता था की दुनियादारी भी एक चीज है, ओर सच मानो तो मैं खुद आपके और मेरे रिश्ते को केवल एक दोस्ती का रिश्ता ही मानता था| ... मुझे नहीं पता था की आप मुझसे सच्चा प्यार करते हो|" मेरी बात सुन भाभी को एक अजीब सा डर लगा जो उनके चेहरे से साफ़ झलक रहा था|

भाभी: मानु क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करते?.. मेरा मतलब सच्चा प्यार.....

मैं: भौजी मैंने कभी ऐसा.... नहीं सोचा.... मैं तो केवल आपको अपना दोस्त समझता था|

भाभी: मुझे माफ़ कर दो मानु .... मैं हमारे इस रूठना-मानाने वाले खेल को गलत समझ बैठी...

इतना कहते हुए छत के दूसरी ओर चली गईं| मुझे न जाने क्यों अपने ऊपर गुस्सा आने लगा| मैं सोच रह था की काम से काम झूठ ही बोल देता तो भाभी का दिल तो नहीं टूटता| मैं भाभी की ओर भागा ओर उन्हें समझने लगा:

"भौजी मुझे माफ़ कर दो, मेरी उम्र उस समय बहुत काम थी मैं प्यार क्या होता है ये तक नहीं जानता था| मैं आपसे प्यार करता था.. वाही प्यार जो दो दोस्तों में होता है| अब मैं बड़ा हो गया हूँ ओर जानता हूँ की प्यार क्या होता है| प्लीज भौजी आप रोना बंद कर दो ... मैं आपको रोते हुए नहीं देख सकता|"

ये कहते हुए मैंने उन्हें अपनी ओर घुमा लिया ओर उनके दोनों कन्धों पे हाथ रख उनकी आँखों में देखने लगा| उनकी आँखें आँसुंओं से भरी हुई थी और लाल हो गई थीं| दोस्तों मैं आपको नहीं बता सकता मुझपे क्या बीती|

भौजी ने अपने आंसूं पोछते हुए फिर मुझसे वही सवाल पूछा:

"मानु क्या तुम अब मुझसे प्यार करते हो?"

मैं: हाँ!!!

मुझे कुछ सुझा ही नहीं नज़रों के सामने उनका प्यार चेहरा था ओर पता नहीं कैसे मैंने उन्हें हाँ में जवाब दे दिया| मेरा जवाब सुनते ही भाभी ने मुझे कास के गले लगा ले लिया, उनके इस आलिंगन में अजीब सी कशिश थी| ऐसा लगा जैसे उन्होंने अपने आप को मुझे सौंप दिया हो ....

भाभी अब भी मेरी छाती में सर छुपाये सुबक रहीं थी ओर अब मुझे ये डर सताने लगा की कहीं कोई अपनी छत से हमें इस तरह देख लेगा तो क्या होगा, या फिर हमें ढूंढती हुई माँ ऊपर आ गई तो???
अचानक से मुझ में इतनी समझ कैसे आ गई? आखिर क्यों मुझे अचानक से दुनियादारी में दिलचस्पी हो गई? भाभी ने अपना मुख मेरी छाती से अलग किया और मेरी ओर देख रही थी, उनके होंठ काँप रहे थे| मैंने मौके की नजाकत को समझते हुए उनके कोमल होठों को अपने होंठों की गिरफ्त में ले लिए| आज पहली बार हम दोनों भावुक हो ले एक दूसरे को किस्स कर रहे थे|भाभी को तो जैसे किसी की फ़िक्र ही नहीं थी और कुछ क्षण के लिए मैं भी सब कुछ भूल चूका था| हम दोनों की आँखें बंद थी और समय जैसे थम सा गया ... मैं बस भाभी के पुष्पों से कोमल होठों को अपने होठों में दबा के चूस रहा था| भाभी मेरा पूरा साथ दे रही थी.... वो बीच-बीच में मेरे होठों को अपने होठों में भींच लेती| उनके दोनों हाथ मेरी पीठ पर चल रहे थे!

मैं बहुत उत्तेजित हो चूका था ... और दूसरी ओर भाभी का भी यही हाल था|तभी माँ की आवाज आई:

"मानु जल्दी से नीचे आ, तेरे पिताजी आ गए हैं|"

भाभी ओर मैं जल्दी से अलग हो गए.... भाभी अपनी प्यासी नज़रों से मुझे देख रही थी| मैंने उन्हें नीचे चलने को कहा:

"भौजी चिंता मत करो कुछ जुगाड़ करता हूँ|"

हम दोनों नीचे आ गए| भाभी ने पिताजी की पैर छुए ओर बातों का सील सिला चालु हो गया| मैं किताब लेकर भाभी के पास पलंग पे बैठ गया| कमरा ठंडा होने की वजह से मैंने कम्बल ले लिया और भाभी के पाँव भी ढक दिए| अब बारी थी पिताजी को व्यस्त करने की वार्ना आज मेरी प्यारी भौजी प्यासी रह जाती... मैं उठा और बहार भाग गया| जब मैं वापस आया तो पिताजी से बोला:

"पिताजी रोशनलाल अंकल आपको बहार बुला रहे हैं..."

पिताजी मेरी बात सुन बहार चले गए... माँ रसोई में व्यस्त थी ... मौका अच्छा था पर मुझे डर था की पिताजी मेरे झूठ अवश्य पकड़ लेंगे| तभी पिताजी अंदर आये और बोले:

"बहार तो कोई नहीं है?"

मैं: शायद चले गए होंगे|

पिताजी: अच्छा बहु मैं चलता हूँ शायद रोशनलाल पैसे देने आया होगा|

अब बचे सिर्फ मैं ओर बहभी... नेहा तो टी.वी. देखने में व्यस्त थी| दोनों एक ही कम्बल में....मैंने भाभी से कहा:

"भौजी आज भी बचपन जैसे ही सुला दो|"

... और ये कहते हुए मैंने उनके बाएं स्तन को पकड़ा| ये पहली बार था की मैंने भाभी के उरोजों को स्पर्श किया हो| भाभी की सिसकारी निकल गई.....

स्स्स्स ..मम्म

भाभी: मानु रुको मैंने अंदर ब्रा पहनी है ओर ब्लाउज का हुक तुमसे नहीं खुलेगा| उन्होंने अपने ब्लाउज के नीचे के दो हुक खोले ओर अपना बायां स्तन मेरे सामने झलका दिया... उनके 38 साइज के उरोजों में से एक मेरे सामने था| मैंने अपने कांपते हुए हाथों से उनके बांय उरोज को अपने हाथ में लिया ओर एक बार हलके से मसल दिया.... भाभी की सिसकारी एक और बार फुट पड़ी:

“सिस्स्स् .. अह्ह्हह्ह !!!”

अब मेरे मन मचल उठा और मैंने भाभी के स्तन को अपने मुख में भर लिया और उनके निप्पल को अपनी जीभ से छेड़ने लगा| भाभी के मुख पे हाव-भाव बदलने लगे और वो मस्त होने लगीं| मेरे दिमाग अभी भी सचेत था इसलिए मैंने सोचा की "सम्भोग के पूर्व आपसी लैंगिक उत्तेजना एवं आनंददायक कार्य" अर्थात "Foreplay" में समय गवाना उचित नहीं होगा| मैं तो बस अब भाभी को भोगना चाहता था इसीलिए मैंने उनके स्तन को चूसना बंद कर दिया|

भाभी: बस मानु...??? मन भर गया???

मैं: नहीं भाभी!...

ये कहते हुए मैंने कम्बल के नीचे उन्हें अपने पैंट के ऊपर बने उभार को छुआ दिया| भाभी ने मेरे लंड को पैंट के ऊपर से ही अपनी मुट्ठी में दबोच लिया मेरे मुंह से विस्मयी सिसकारी निकली:

"स्स्स..."

मेरी नज़र नेहा पर पड़ी मुझे डर था की कहीं वो हमें ये सब करते देख न लें| नेहा अब भी टी.वी देख रही थी मैंने उसे व्यस्त करने की सोची, मैं पलंग से उठा और अलमारी खोल के अपने पुराने खिलोने जो मुझे अति प्रिय थे उन्हें मैं किसी से भी नहीं बांटता था वो निकाल के मैंने नेहा को दे दिया अब वो जमीन पे बिछी चटाई पर बैठ ख़ुशी-ख़ुशी खेलने लगी और साथ-साथ टी.वी में कार्टून भी देख रही थी| जमीन पे बैठे होने के कारन वो ऊपर पालन पर होने वाली हरकतें नहीं देख सकती थी और इसी बात का मैं फायदा उठाना चाहता था| मैंने पालन पर वापस अपना स्थान ग्रहण किया और कम्बल दुबारा ओढ़ लिया| फिर मैंने अपनी पैंट की चैन खोल दी और अपना लंड बहार निकाल कर भाभी का हाथ उसे छुआ दिया| भाभी ने झट से मेरे लंड को अपने हाथों से दबोच लिया और उसे धीरे-धीरे ऊपर-नीचे करने लगी| भाभी की कोशिश थी की वो मेरे लंड की चमड़ी को पूरा नीचे हींचना चाहती थी पर मुझे इसमें दर्द होने लगा था| दरअसल मेरे लंड की चमड़ी कभी पूरा नीचे नहीं होती थी| अर्थात मेरे लंड का सुपर कभी भी खुल के बहार नहीं आया था| जब मैंने अपने मित्रों से ये बात बताई थी तो उन्होंने कहा था की यार समय के साथ ये अपने आप खुलता जाएगा| इसलिए मैंने भाभी को कहा:

[size=large]"भौजी प्लीज आराम से हिलाओ मेरे लंड पूरा नहीं खुलता|"[/size]
 
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