hotaks444
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मैं बोली - क्या हुआ. बंद क्यों कर दिया.
रमेश - मैं पहुँचने वाला हूँ और मैं अपना पानी टेबल के नीचे नही निकालना चाहता. पानी फैलेगा तो पता चल जाएगा कि हम ने क्या किया है. मैं बाथरूम जाता हूँ और हल्का हो कर आता हूँ.
मैं हंस कर बोली - क्या मैं भी आऊ तुम्हारे साथ तुम को हल्का होने मे मदद करने के लिए.
वो भी हंस कर बोला - पागल ! जेंट्स बाथरूम मे जा रहा हूँ. तुम चिंता मत करो. मेरा हाथ बराबर काम करेगा.
मैने उस के लंड पर से हाथ हटा लिया और मैने देखा कि उस को अपना खड़ा हुआ लंड अपनी पॅंट मे वापस डालने मे काफ़ी परेशानी हुई थी. क्यों कि एक तो उस का लंड खड़ा था और दूसरे वो काफ़ी लंबा था. जैसे तैसे उस ने अपने लंड को अपनी पॅंट मे घुसाया और बाथरूम की तरफ चला गया. मैने भी टेबल से टिश्यू पेपर उठाया और उस से अपनी गीली चूत सॉफ करने के बाद अपनी स्कर्ट फिर से अड्जस्ट कर ली थी और उस के आने का वेट करने लगी. जब तक वो वापस आया, खाना टेबल पर लग चुका था. मैने उस के चेहरे पर संतुष्टि के भाव देखे. मतलब ये कि उसने भी अपने लंड का पानी मूठ मार कर बाथरूम मे निकाल दिया था.
अपने हाथो का कमाल दिखाने के बाद हम खाना खा रहे थे. मैं घर पर जल्दी ही पहुँचना चाहती थी क्यों कि मेरे चाचा देर रात की बस से मुंबई जाने वाले थे और मैं चाहती थी की वो मुझे चोद कर जाए.
अचानक मेरे मन मे सामूहिक संभोग का ख़याल आया और मैं बोली - रमेश ! क्या हम दोनो अंजू को अपने खेल मे शामिल नही कर सकते ?
रमेश - तुम्हारा मतलब है ग्रूप सेक्स ? सामूहिक संभोग ? हम तीनो ?
मैं - हां. बहुत मज़ा आएगा. एक लड़का और दो लड़कियाँ.
रमेश - पता नही अंजू इस के लिए राज़ी होगी या नही.
मैं - तुम उस से बात तो कर के तो देखो. मेरे ख़याल से वो मान जाएगी. तुम क्या कहते हो ? तुम तो राज़ी हो?
रमेश - मैं तो जो तुम कहती हो वो करने को तय्यार हूँ लेकिन सच मे, मैने इस के बारे मे कभी भी नही सोचा था.
मैं - मैने भी कहाँ सोचा था. ये तो अभी अभी अचानक ही ख़याल आ गया. हम तीनो के लिए ये पहली बार होगा और मुझे पूरा विश्वास है कि बहुत मज़ा आएगा.
रमेश - ठीक है. मैं अंजू से बात करता हूँ और तुम को बताता हूँ.
हम ने अपना खाना ख़तम किया और रमेश ने रास्ते मे मुझे मेरे घर पर ड्रॉप करते हुए अपने घर चला गया.
मेरे पापा और मा नीचे रूम मे बैठे हुए टी.वी. देख रहे थे और मेरे चाचा के नीचे आने का इंतेज़ार कर रहे थे जो कि मुंबई जा रहे थे. मैने पापा और मा को गुड नाइट किया और उपर अपने बेडरूम की तरफ बढ़ी. जब मैं अपने बेडरूम के दरवाजे पर थी तो मैने चाचा को उन के अपने बेडरूम से बाहर निकलते हुए देखा. वो पूरी तरह तय्यार थे और उन के हाथ मे एक सूट केस था. उस समय रात के 10 बजे थे और उन की बस का टाइम 11.30 था. हम दोनो एक दूसरे को देख कर मुश्कराए और फिर वो मेरे पीछे पीछे मेरे बेडरूम मे आ गये. अंदर आ कर चाचा ने दरवाजा अंदर से बंद किया तो मैं समझ गई कि एक फटाफट चुदाई का वक़्त आ गया है. वो मुंबई जाने के पहले मुझको चोद्ना चाहते थे. सच लिखूं तो मैं भी चाचा से चुद्वाना चाहती थी. रमेश के साथ हाथों का खेल खेलने के बाद मुझे भी एक चुदाई की ज़रूरत थी. हम ने पहले भी कई बार फटाफट चुदाई की है जब समय कम हो या आस पास कोई हो तो हम फटाफट चुदाई कर डालते है. इस तरह की तेज चुदाई मे ज़्यादातर हम कपड़े पहने हुए ही सब काम कर लेते है, कभी किचन मे, कभी सीढ़ियों मे, कभी छत पर, और कभी कभी तो ऑफीस मे भी. हम ये सब इतना तेज़ी से, इतनी जल्दी से करतें है कि किसी को अंदाज़ा भी नही होता कि हम क्या कर चुके है.
चाचा ने मुझे कस कर पकड़ा और किस किया. जब वो मुझको किस कर रहे थे, उन का खड़ा हुआ लंड मेरी चूत को ख़त ख़टाता हुआ सलाम कर रहा था. मेरी चूत तो पहले से ही गीली थी और उन के चुंबन से, लंड से और भी गीली हो गयी थी. हम ने जल्दी से चुंबन पूरा किया और उन्होने मेरी गीली चड्डी उतार दी और अपना तना हुआ, मोटा और लंबा लंड ज़िप खोल कर अपनी पॅंट से बाहर निकाल लिया था. अपनी जेब से चाचा ने एक कॉंडम निकाला और उस को अपने लॅंड पर चढ़ा लिया. चाचा ने मुझे पलंग के सहारे घोड़ी बनाया और और मेरी स्कर्ट उठा कर मेरी गंद को नंगी कर दिया. मैं जानती थी कि चाचा को मेरी रसीली चूत का नज़ारा पीछे से हो रहा था. मैने अपने पैर थोड़े चौड़े किए और पीछे से चुदाई की पर्फेक्ट पोज़िशन बनाई. चाचा ने भी समय नही गवाया. उन्होने अपने लंड को मेरी चूत पर पीछे से टीकाया और तुरंत ही धक्के मारते हुए मुझे चोद्ने लगे. चाचा जल्दी से चुदाई ख़तम करना चाहते थे क्यों कि समय कम था, इस लिए वो तेज़ी से अपना लंड मेरी चूत मे अंदर बाहर करते हुए मुझे चोद रहे थे. चाचा ने अपने पुर कपड़े पहने हुए थे और मैं भी अपनी चड्डी के अलावा अपने पूरे कपड़ों मे थी. मेरी गंद को पकड़ कर चाचा पीछे से जोरदार धक्कों के साथ जल्दी जल्दी अपना लंड मेरी चूत मे घुसा रहे थे, बाहर निकाल रहे थे और मुझे चोद रहे थे, चोद रहे थे और मैं चुद्वा रही थी. जल्दी ही मैं अपनी मंज़िल के पास पहुँच गयी, लेकिन चाचा जो थे मुझे पागलों की तरह चोद्ते जा रहे थे. मेरे मूह से आवाज़ें निकालने लगी " आअहह ..... हाँ....... हाँ... चाचा.......... चोदो......... हां............. ऊऊहह आहह"
रमेश - मैं पहुँचने वाला हूँ और मैं अपना पानी टेबल के नीचे नही निकालना चाहता. पानी फैलेगा तो पता चल जाएगा कि हम ने क्या किया है. मैं बाथरूम जाता हूँ और हल्का हो कर आता हूँ.
मैं हंस कर बोली - क्या मैं भी आऊ तुम्हारे साथ तुम को हल्का होने मे मदद करने के लिए.
वो भी हंस कर बोला - पागल ! जेंट्स बाथरूम मे जा रहा हूँ. तुम चिंता मत करो. मेरा हाथ बराबर काम करेगा.
मैने उस के लंड पर से हाथ हटा लिया और मैने देखा कि उस को अपना खड़ा हुआ लंड अपनी पॅंट मे वापस डालने मे काफ़ी परेशानी हुई थी. क्यों कि एक तो उस का लंड खड़ा था और दूसरे वो काफ़ी लंबा था. जैसे तैसे उस ने अपने लंड को अपनी पॅंट मे घुसाया और बाथरूम की तरफ चला गया. मैने भी टेबल से टिश्यू पेपर उठाया और उस से अपनी गीली चूत सॉफ करने के बाद अपनी स्कर्ट फिर से अड्जस्ट कर ली थी और उस के आने का वेट करने लगी. जब तक वो वापस आया, खाना टेबल पर लग चुका था. मैने उस के चेहरे पर संतुष्टि के भाव देखे. मतलब ये कि उसने भी अपने लंड का पानी मूठ मार कर बाथरूम मे निकाल दिया था.
अपने हाथो का कमाल दिखाने के बाद हम खाना खा रहे थे. मैं घर पर जल्दी ही पहुँचना चाहती थी क्यों कि मेरे चाचा देर रात की बस से मुंबई जाने वाले थे और मैं चाहती थी की वो मुझे चोद कर जाए.
अचानक मेरे मन मे सामूहिक संभोग का ख़याल आया और मैं बोली - रमेश ! क्या हम दोनो अंजू को अपने खेल मे शामिल नही कर सकते ?
रमेश - तुम्हारा मतलब है ग्रूप सेक्स ? सामूहिक संभोग ? हम तीनो ?
मैं - हां. बहुत मज़ा आएगा. एक लड़का और दो लड़कियाँ.
रमेश - पता नही अंजू इस के लिए राज़ी होगी या नही.
मैं - तुम उस से बात तो कर के तो देखो. मेरे ख़याल से वो मान जाएगी. तुम क्या कहते हो ? तुम तो राज़ी हो?
रमेश - मैं तो जो तुम कहती हो वो करने को तय्यार हूँ लेकिन सच मे, मैने इस के बारे मे कभी भी नही सोचा था.
मैं - मैने भी कहाँ सोचा था. ये तो अभी अभी अचानक ही ख़याल आ गया. हम तीनो के लिए ये पहली बार होगा और मुझे पूरा विश्वास है कि बहुत मज़ा आएगा.
रमेश - ठीक है. मैं अंजू से बात करता हूँ और तुम को बताता हूँ.
हम ने अपना खाना ख़तम किया और रमेश ने रास्ते मे मुझे मेरे घर पर ड्रॉप करते हुए अपने घर चला गया.
मेरे पापा और मा नीचे रूम मे बैठे हुए टी.वी. देख रहे थे और मेरे चाचा के नीचे आने का इंतेज़ार कर रहे थे जो कि मुंबई जा रहे थे. मैने पापा और मा को गुड नाइट किया और उपर अपने बेडरूम की तरफ बढ़ी. जब मैं अपने बेडरूम के दरवाजे पर थी तो मैने चाचा को उन के अपने बेडरूम से बाहर निकलते हुए देखा. वो पूरी तरह तय्यार थे और उन के हाथ मे एक सूट केस था. उस समय रात के 10 बजे थे और उन की बस का टाइम 11.30 था. हम दोनो एक दूसरे को देख कर मुश्कराए और फिर वो मेरे पीछे पीछे मेरे बेडरूम मे आ गये. अंदर आ कर चाचा ने दरवाजा अंदर से बंद किया तो मैं समझ गई कि एक फटाफट चुदाई का वक़्त आ गया है. वो मुंबई जाने के पहले मुझको चोद्ना चाहते थे. सच लिखूं तो मैं भी चाचा से चुद्वाना चाहती थी. रमेश के साथ हाथों का खेल खेलने के बाद मुझे भी एक चुदाई की ज़रूरत थी. हम ने पहले भी कई बार फटाफट चुदाई की है जब समय कम हो या आस पास कोई हो तो हम फटाफट चुदाई कर डालते है. इस तरह की तेज चुदाई मे ज़्यादातर हम कपड़े पहने हुए ही सब काम कर लेते है, कभी किचन मे, कभी सीढ़ियों मे, कभी छत पर, और कभी कभी तो ऑफीस मे भी. हम ये सब इतना तेज़ी से, इतनी जल्दी से करतें है कि किसी को अंदाज़ा भी नही होता कि हम क्या कर चुके है.
चाचा ने मुझे कस कर पकड़ा और किस किया. जब वो मुझको किस कर रहे थे, उन का खड़ा हुआ लंड मेरी चूत को ख़त ख़टाता हुआ सलाम कर रहा था. मेरी चूत तो पहले से ही गीली थी और उन के चुंबन से, लंड से और भी गीली हो गयी थी. हम ने जल्दी से चुंबन पूरा किया और उन्होने मेरी गीली चड्डी उतार दी और अपना तना हुआ, मोटा और लंबा लंड ज़िप खोल कर अपनी पॅंट से बाहर निकाल लिया था. अपनी जेब से चाचा ने एक कॉंडम निकाला और उस को अपने लॅंड पर चढ़ा लिया. चाचा ने मुझे पलंग के सहारे घोड़ी बनाया और और मेरी स्कर्ट उठा कर मेरी गंद को नंगी कर दिया. मैं जानती थी कि चाचा को मेरी रसीली चूत का नज़ारा पीछे से हो रहा था. मैने अपने पैर थोड़े चौड़े किए और पीछे से चुदाई की पर्फेक्ट पोज़िशन बनाई. चाचा ने भी समय नही गवाया. उन्होने अपने लंड को मेरी चूत पर पीछे से टीकाया और तुरंत ही धक्के मारते हुए मुझे चोद्ने लगे. चाचा जल्दी से चुदाई ख़तम करना चाहते थे क्यों कि समय कम था, इस लिए वो तेज़ी से अपना लंड मेरी चूत मे अंदर बाहर करते हुए मुझे चोद रहे थे. चाचा ने अपने पुर कपड़े पहने हुए थे और मैं भी अपनी चड्डी के अलावा अपने पूरे कपड़ों मे थी. मेरी गंद को पकड़ कर चाचा पीछे से जोरदार धक्कों के साथ जल्दी जल्दी अपना लंड मेरी चूत मे घुसा रहे थे, बाहर निकाल रहे थे और मुझे चोद रहे थे, चोद रहे थे और मैं चुद्वा रही थी. जल्दी ही मैं अपनी मंज़िल के पास पहुँच गयी, लेकिन चाचा जो थे मुझे पागलों की तरह चोद्ते जा रहे थे. मेरे मूह से आवाज़ें निकालने लगी " आअहह ..... हाँ....... हाँ... चाचा.......... चोदो......... हां............. ऊऊहह आहह"