hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
दीदी मुझे प्यार करो न
कानपूर से करीब चार घंटे की दूरी पर मोहनगढ़ गाँव है। हम उस गाँव के मूल निवासी थे। हमारे घर में मैं, मेरे माता-पिता, मेरे भैया बस चार लोग ही थे। मेरे पिता पूरे गाँव में अपनी करतूतों के लिए बदनाम थे। वो दिन भर पीते रहते थे और हमेशा ही उनकी किसी न किसी से झड़प हो जाती थी और फिर पूरे घरवाले परेशान रहते। माँ हमेशा पिताजी को समझती पर वो शराब की लत में माँ की बात पे बिलकुल ध्यान नहीं देते। मेरी माँ पिताजी की आदतों से हमेशा दुखी रहती। पिताजी ने उम्र भर कोई अच्छी नौकरी नहीं की और हमारी माली-हालत हमेशा ही ख़राब बनी रही। थोड़ा बहुत हमारे खेत से अनाज का इंतजाम हो जाता था और जैसे-तैसे ही हम अपने जीवन का निर्वाह कर रहे थे। भैया ने गाँव के सरकारी स्कूल से ही दसवीं और बारहवीं की पढाई की थी। फिर उन्होंने कानपूर यूनिवर्सिटी से कॉरेस्पोंडेंस ग्रेजुएशन कम्पलीट की थी और सरकारी नौकरी की तैयारी करते थे। अपनी तैयारी के साथ साथ वो गाँव में बारहवीं तक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ते थे। इस तरह कुछ आय भी जो जाती थी और भैया की तैयारी में मदद भी मिल जाती थी।
पिताजी की आदतों ने एक दिन उनकी जान ही ले ली। हम सभी घर पे ही थे की खबर मिली की रोड पे उन्हें किसी गाड़ी ने ठोकर मार दी और वो सड़क पे ही दम तोड़ गए। हमारे पूरे घर में मातम छा गया। हालाँकि उनकी आदतों की वजह से हमें लोगों के सामने काफी जलील होना पड़ा था पर घर में हम दोनों भाई उन्हें पिता-समान ही इज्जत देते थे। हमारी माँ, जो पिताजी की मौत के समय 51 साल की थीं, ने हमेशा हमें पिताजी की इज्जात करनी सिखाई थी और वो खुद भी हमारे सामने पिताजी को कुछ भी बुरा-भला नहीं कहती थीं। जरूर अकेले में वो उन्हें समझाती थीं की वो शराब की आदत छोड़ दें। पर भगवान् को कुछ और ही मजूर था और पिताजी 55 की उम्र में ही हमें छोड़ कर चले गए।
भैया पढ़ने में काफी अच्छे थे और पूरे गाँव में लोग उनकी तारीफ़ करते थे। पिताजी के देहांत के ठीक एक साल बाद भैया को एक अच्छी सरकारी नौकरी मिल गयी और फिर भैया ने माँ और मुझे अपने साथ ही कानपूर शहर बुला लिया। हमने एक 2bhk फ्लैट रेंट पे लिया था जिसका किराया भैया ने कंपनी लीज रेंट करवा दिया था। भैया की उम्र उस समय 25 थी और मेरी 18 और माँ की 52 । मैंने अभी-अभी दसवीं की परीक्षा गाँव के ही विद्यालय से दी थी और फिर कानपूर में एक कॉलेज में बारहवीं के लिए नामांकन करवा लिया। भैया और मेरी उम्र में दस साल का अंतर था और वो मुझे बहुत मानते थे। जॉब के साथ भी जब कभी उन्हें समय मिलता वो मुझे पढ़ते थे। पिताजी के निधन के बाद से माँ थोड़ी उदास-उदास रहती थी।
नौकरी मिलने के बाद से भैया ने घर की सारी जिम्मेवारी ले ली थी और वो हमें किसी भी चीज की कमी नहीं महसूस होने देते थे। कॉलेज ख़त्म होने के बाद मैंने इंजीनियरिंग कॉलेज में नामांकन के लिए तैयारी शुरू कर दी। माँ की तबियत लगातार ख़राब ही हो रही थी। घर पे भैया ने नौकरानी रखी थी जो घर का सार काम कर देती थी। भैया को जॉब करते हुए 4 साल हो गए थे और माँ उनसे अब शादी करने को कहने लगी। पहले तो भैया ने मन किया कुछ दिन पर फिर माँ की बिगड़ती तबियत देख-कर उन्होंने शादी के लिए हाँ कर दी पर उन्होंने शर्त रखी की शादी वो अपनी पसंद की लड़की के साथ ही करेंगे। माँ को इस बात से कोई ऐतराज़ नहीं था।
दो महीनों के अंदर ही उन्होंने अपनी पसंद से शादी कर ली, मेरी भाभी भैया से उम्र में 5 साल बड़ी थी, दरअसल दोनों का प्रेम विवाह था। भाभी अपने घर की सबसे बड़ी थी, उन्होंने अपने भाई-बहनों की पढाई की वजह से देर से शादी करने का फैसला किया था। वो भैया की ही कंपनी में काम करती थीं जहाँ दोनों एक दूसरे से प्यार कर बैठे।
भाभी एक भरे बदन की बेहद गदराई औरत थीं भैया उनके सामने बच्चे जैसे लगते थे। वो बहुत खूबसूरत तो थी ही लेकिन उनके बदन का कसाव दूर से ही दीखता था। मेरी माँ पहले तो इस शादी के खिलाफ थीं पर फिर भैया के जिद के आगे वो मान गयी। भैया, भाभी ने मंदिर में शादी की और हमने हमारे गाँव से किसी को भी नहीं आमंत्रित किया था। शादी के बाद भाभी और भैया दोनों काम पे जाते थे और में अपने कोचिंग। सब कुछ सही चल रहा था। हमने एक नया 3 bhk मकान किराये पे ले लिया था। भैया भाभी एक कमरे में रहते थे, एक में माँ, और एक मुझे मिला था। नयी भाभी के साथ भी मैं बहुत जल्दी घुल-मिल गया था। हालाँकि तब मेरी उम्र बस 19 की थी लेकिन मुझे सेक्स का थोड़ा ज्ञान तो आ ही गया था और भाभी का बदन मुझे काफी आकर्षित करता था। मैं भी खुद के लिए भाभी जैसे ही गदराई बदन के औरत की कामना करता था|
मैं देख सकता था की भैया अब काफी खुश रहते था हो भी क्यों नहीं इतनी मोटी गदराई गाय मिली थी उन्हें बीवी के रूप में। दोनों ऑफिस से आने के बाद खाना खाते ही अपने कमरे में बंद हो जाते थे। और शनिवार और इतवार को तो पूरे-पूरे दिन वो कमरे में ही रहते थे। खैर ऐसा किसी भी नए जोड़े के साथ रहता है शादी के बाद लेकिन शादी के 6 महीने बाद तक यही चल रहा था । भाभी के बदन में और कसाव आ गया था इस बीच और वो और भी ज्यादा गदरा गयी थीं। मैं उन्हें भाभी माँ कहता था जैसा की हमारे गाँव में भाभियों को बुलाते थे। उनके व्यव्हार से ऐसा नहीं लगता था जैसे वो मुझे बिलकुल भी शर्माती हों, वो मुझे एक बेटे की जैसे ही मानती थी । हमेशा मेरी पढाई और मेरे स्वास्थय के लिए पूछती रहती थीं । माँ का भी पूरा देखभाल करती थीं वो और माँ को कोई भी काम नहीं करने देती थीं
घर में सभी खुश थें, इस बीच मेरा नामांकन इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ और मुझे भोपाल जाना पड़ा पढाई करने । मैं 3 महीने में बस एक बार आता था घर और जब भी घर आता था भाभी के बदन की कसावट बढ़ी हुई ही पाता| उन्होंने नौकरी वापस नहीं करने का निर्णय ले लिया था क्यूंकि अब तक भैया की तनख्वाह काफी अच्छी हो गयी थी, भाभी घर का अच्छा ध्यान रखती थी ।
लेकिन मेरी माँ की तबियत अब काफी ख़राब रहती थी, भैया ने उन्हें दिल्ली ले जा करके अच्छे डॉक्टर से भी दिखाया था लेकिन वो ठीक न हो सकीं। मेरे दूसरे साल इंजीनियरिंग में उनका निधन हो गया । भाभी ने बढ़ी हुई जिम्मेवारी तुरंत उठा ली वो मुझसे अब हर हफ्ते एक बार बात करती थी और मेरा ख्याल लेती थीं। भाभी माँ जैसे की मैं उन्हें बुलाता था वो बिलकुल माँ जैसे ही अब मेरा ध्यान रखने लगी।
मैं दिवाली की छुट्टी मैं घर आया था। भाभी ने पूरा घर सजाया हुआ था पर भैया किसी ऑफिस के जरुरी काम से बाहर गए हुए थे और घर पे मैं और भाभी ही बस थे। भाभी को देखते ही मैं थोड़ा असहज हो जाता हूँ क्यूंकि वो बड़ी मादक लगती थीं। लेकिन उन्हें इस बात का बिलकुल भी एहसास नहीं था। उनके शरीर की बनावट कुछ 48 - 40 - 48 हो गयी थी। कैसे भी कपड़े पहने वो, उनके यौवन की मादकता साफ़ झलकती थी। ये पहली बार था जब मैं और वो अकेले थे घर पे। मुझे वो बिलकुल ऐसे लगती जैसे हमेशा ही चुदने के लिए तैयार हो। भैया जरूर भाभी को जम के चोदते होंगे भाभी के लगातार बढ़ते शरीर को देख के ये आसानी से कहा जा सकता था।
कानपूर से करीब चार घंटे की दूरी पर मोहनगढ़ गाँव है। हम उस गाँव के मूल निवासी थे। हमारे घर में मैं, मेरे माता-पिता, मेरे भैया बस चार लोग ही थे। मेरे पिता पूरे गाँव में अपनी करतूतों के लिए बदनाम थे। वो दिन भर पीते रहते थे और हमेशा ही उनकी किसी न किसी से झड़प हो जाती थी और फिर पूरे घरवाले परेशान रहते। माँ हमेशा पिताजी को समझती पर वो शराब की लत में माँ की बात पे बिलकुल ध्यान नहीं देते। मेरी माँ पिताजी की आदतों से हमेशा दुखी रहती। पिताजी ने उम्र भर कोई अच्छी नौकरी नहीं की और हमारी माली-हालत हमेशा ही ख़राब बनी रही। थोड़ा बहुत हमारे खेत से अनाज का इंतजाम हो जाता था और जैसे-तैसे ही हम अपने जीवन का निर्वाह कर रहे थे। भैया ने गाँव के सरकारी स्कूल से ही दसवीं और बारहवीं की पढाई की थी। फिर उन्होंने कानपूर यूनिवर्सिटी से कॉरेस्पोंडेंस ग्रेजुएशन कम्पलीट की थी और सरकारी नौकरी की तैयारी करते थे। अपनी तैयारी के साथ साथ वो गाँव में बारहवीं तक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ते थे। इस तरह कुछ आय भी जो जाती थी और भैया की तैयारी में मदद भी मिल जाती थी।
पिताजी की आदतों ने एक दिन उनकी जान ही ले ली। हम सभी घर पे ही थे की खबर मिली की रोड पे उन्हें किसी गाड़ी ने ठोकर मार दी और वो सड़क पे ही दम तोड़ गए। हमारे पूरे घर में मातम छा गया। हालाँकि उनकी आदतों की वजह से हमें लोगों के सामने काफी जलील होना पड़ा था पर घर में हम दोनों भाई उन्हें पिता-समान ही इज्जत देते थे। हमारी माँ, जो पिताजी की मौत के समय 51 साल की थीं, ने हमेशा हमें पिताजी की इज्जात करनी सिखाई थी और वो खुद भी हमारे सामने पिताजी को कुछ भी बुरा-भला नहीं कहती थीं। जरूर अकेले में वो उन्हें समझाती थीं की वो शराब की आदत छोड़ दें। पर भगवान् को कुछ और ही मजूर था और पिताजी 55 की उम्र में ही हमें छोड़ कर चले गए।
भैया पढ़ने में काफी अच्छे थे और पूरे गाँव में लोग उनकी तारीफ़ करते थे। पिताजी के देहांत के ठीक एक साल बाद भैया को एक अच्छी सरकारी नौकरी मिल गयी और फिर भैया ने माँ और मुझे अपने साथ ही कानपूर शहर बुला लिया। हमने एक 2bhk फ्लैट रेंट पे लिया था जिसका किराया भैया ने कंपनी लीज रेंट करवा दिया था। भैया की उम्र उस समय 25 थी और मेरी 18 और माँ की 52 । मैंने अभी-अभी दसवीं की परीक्षा गाँव के ही विद्यालय से दी थी और फिर कानपूर में एक कॉलेज में बारहवीं के लिए नामांकन करवा लिया। भैया और मेरी उम्र में दस साल का अंतर था और वो मुझे बहुत मानते थे। जॉब के साथ भी जब कभी उन्हें समय मिलता वो मुझे पढ़ते थे। पिताजी के निधन के बाद से माँ थोड़ी उदास-उदास रहती थी।
नौकरी मिलने के बाद से भैया ने घर की सारी जिम्मेवारी ले ली थी और वो हमें किसी भी चीज की कमी नहीं महसूस होने देते थे। कॉलेज ख़त्म होने के बाद मैंने इंजीनियरिंग कॉलेज में नामांकन के लिए तैयारी शुरू कर दी। माँ की तबियत लगातार ख़राब ही हो रही थी। घर पे भैया ने नौकरानी रखी थी जो घर का सार काम कर देती थी। भैया को जॉब करते हुए 4 साल हो गए थे और माँ उनसे अब शादी करने को कहने लगी। पहले तो भैया ने मन किया कुछ दिन पर फिर माँ की बिगड़ती तबियत देख-कर उन्होंने शादी के लिए हाँ कर दी पर उन्होंने शर्त रखी की शादी वो अपनी पसंद की लड़की के साथ ही करेंगे। माँ को इस बात से कोई ऐतराज़ नहीं था।
दो महीनों के अंदर ही उन्होंने अपनी पसंद से शादी कर ली, मेरी भाभी भैया से उम्र में 5 साल बड़ी थी, दरअसल दोनों का प्रेम विवाह था। भाभी अपने घर की सबसे बड़ी थी, उन्होंने अपने भाई-बहनों की पढाई की वजह से देर से शादी करने का फैसला किया था। वो भैया की ही कंपनी में काम करती थीं जहाँ दोनों एक दूसरे से प्यार कर बैठे।
भाभी एक भरे बदन की बेहद गदराई औरत थीं भैया उनके सामने बच्चे जैसे लगते थे। वो बहुत खूबसूरत तो थी ही लेकिन उनके बदन का कसाव दूर से ही दीखता था। मेरी माँ पहले तो इस शादी के खिलाफ थीं पर फिर भैया के जिद के आगे वो मान गयी। भैया, भाभी ने मंदिर में शादी की और हमने हमारे गाँव से किसी को भी नहीं आमंत्रित किया था। शादी के बाद भाभी और भैया दोनों काम पे जाते थे और में अपने कोचिंग। सब कुछ सही चल रहा था। हमने एक नया 3 bhk मकान किराये पे ले लिया था। भैया भाभी एक कमरे में रहते थे, एक में माँ, और एक मुझे मिला था। नयी भाभी के साथ भी मैं बहुत जल्दी घुल-मिल गया था। हालाँकि तब मेरी उम्र बस 19 की थी लेकिन मुझे सेक्स का थोड़ा ज्ञान तो आ ही गया था और भाभी का बदन मुझे काफी आकर्षित करता था। मैं भी खुद के लिए भाभी जैसे ही गदराई बदन के औरत की कामना करता था|
मैं देख सकता था की भैया अब काफी खुश रहते था हो भी क्यों नहीं इतनी मोटी गदराई गाय मिली थी उन्हें बीवी के रूप में। दोनों ऑफिस से आने के बाद खाना खाते ही अपने कमरे में बंद हो जाते थे। और शनिवार और इतवार को तो पूरे-पूरे दिन वो कमरे में ही रहते थे। खैर ऐसा किसी भी नए जोड़े के साथ रहता है शादी के बाद लेकिन शादी के 6 महीने बाद तक यही चल रहा था । भाभी के बदन में और कसाव आ गया था इस बीच और वो और भी ज्यादा गदरा गयी थीं। मैं उन्हें भाभी माँ कहता था जैसा की हमारे गाँव में भाभियों को बुलाते थे। उनके व्यव्हार से ऐसा नहीं लगता था जैसे वो मुझे बिलकुल भी शर्माती हों, वो मुझे एक बेटे की जैसे ही मानती थी । हमेशा मेरी पढाई और मेरे स्वास्थय के लिए पूछती रहती थीं । माँ का भी पूरा देखभाल करती थीं वो और माँ को कोई भी काम नहीं करने देती थीं
घर में सभी खुश थें, इस बीच मेरा नामांकन इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ और मुझे भोपाल जाना पड़ा पढाई करने । मैं 3 महीने में बस एक बार आता था घर और जब भी घर आता था भाभी के बदन की कसावट बढ़ी हुई ही पाता| उन्होंने नौकरी वापस नहीं करने का निर्णय ले लिया था क्यूंकि अब तक भैया की तनख्वाह काफी अच्छी हो गयी थी, भाभी घर का अच्छा ध्यान रखती थी ।
लेकिन मेरी माँ की तबियत अब काफी ख़राब रहती थी, भैया ने उन्हें दिल्ली ले जा करके अच्छे डॉक्टर से भी दिखाया था लेकिन वो ठीक न हो सकीं। मेरे दूसरे साल इंजीनियरिंग में उनका निधन हो गया । भाभी ने बढ़ी हुई जिम्मेवारी तुरंत उठा ली वो मुझसे अब हर हफ्ते एक बार बात करती थी और मेरा ख्याल लेती थीं। भाभी माँ जैसे की मैं उन्हें बुलाता था वो बिलकुल माँ जैसे ही अब मेरा ध्यान रखने लगी।
मैं दिवाली की छुट्टी मैं घर आया था। भाभी ने पूरा घर सजाया हुआ था पर भैया किसी ऑफिस के जरुरी काम से बाहर गए हुए थे और घर पे मैं और भाभी ही बस थे। भाभी को देखते ही मैं थोड़ा असहज हो जाता हूँ क्यूंकि वो बड़ी मादक लगती थीं। लेकिन उन्हें इस बात का बिलकुल भी एहसास नहीं था। उनके शरीर की बनावट कुछ 48 - 40 - 48 हो गयी थी। कैसे भी कपड़े पहने वो, उनके यौवन की मादकता साफ़ झलकती थी। ये पहली बार था जब मैं और वो अकेले थे घर पे। मुझे वो बिलकुल ऐसे लगती जैसे हमेशा ही चुदने के लिए तैयार हो। भैया जरूर भाभी को जम के चोदते होंगे भाभी के लगातार बढ़ते शरीर को देख के ये आसानी से कहा जा सकता था।