Nangi Sex Kahani नौकरी हो तो ऐसी - Page 4 - SexBaba
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Nangi Sex Kahani नौकरी हो तो ऐसी

मैं जिस महिला शिष्य के पीछे बैठा था, उसकी पीठ बहुत ही गोरी और मस्त थी…. वो सभी शिष्या कोई कंपनी की एरहोस्टेज से कम नही लग रही थी…सुंदर पोशाक…..बँधे हुए लंबे बाल, सर पे एक छोटी सी बिंदी, चेहरा एक दम मुलायम और कोमल, टोकड़ दार नाक, आँखो मे हल्का सा काजल, ब्लाउस एक दम पतला, जिससे लगभग आर पार देख सके, सफेद कलर की ब्रा, वो मस्त हवा से हल्के हल्के उड़ती ही हुई साडी…. मन बहुत ही मोहित हो चला था… ऐसे लग रहा था इनकी बाहो मे इन कोमल कोमल मांसल टाँगो पे सो जाऊ और फिर कभी ना उठु….


तभी सामने वाली लाइन से दो नौकर उठे, और मंदिर से निकलने लगे, मैने उनकी तरफ देखा तो मुझे थोड़ा शक सा हो गया कि इतनी रात ये पूजा छोड़ के ये दोनो कहाँ जा रहे है… परंतु मैने ध्यान नही दिया और उधर ही बैठा रहा…. इधर कॉंट्रॅक्टर बाबू की हालत पतली होती जा रही थी…उनका कब्से खड़ा हुआ काला घोड़ा उन्हे परेशान किए जा रहा था और उन्हे उसे मुक्ति देने का समय नही मिल रहा था….


कॉंट्रॅक्टर बाबू ने दिमाग़ लगाया, जिस महिला शिष्या के पीछे वो बैठे थे, उसके वो नज़दीक मतलब थोड़े आगे सरक गये, जैसे कि उस महिला शिष्या के आगे सेठ जी बैठे थे, वो महिला शिष्या आगे सरक नही पाई और वही पर ही थोड़ी हिल कर बैठ गयी, इस चीज़ का पूरा फ़ायदा उठाते हुए कॉंट्रॅक्टर बाबू ने अपना लंड का कुछ ख़याल ना करते हुए पॅंट से निकाल लिया और उस शिष्या का हाथ पीछे खिचते हुए उसे हाथ मे थमा दिया, मैं ये देख के दंग रह गया और आजूबाजू की माहिला शिष्या को भी इस बात का पता चल गया… कॉंट्रॅक्टर बाबू का लंड उस शिष्या के हाथ मे आ नही रहा था इतना बड़ा और फूला हुआ था…वो बेचारी उसे हाथ मे लेके बैठ गयी वैसे ही कॉंट्रॅक्टर बाबू ने उसका कान खिचते हुए उसके कान मे कुछ कहा और वो कॉंट्रॅक्टर बाबू का लंड हिलाने लगी…वो लंड की चमड़ी उपर नीचे करने लगी वैसे ही कॉंट्रॅक्टर बाबू आनंदित होने लगे…उनके मन मे कोमल हाथ के स्पर्श से पंछी उड़ने लगे….. उन्होने फिर कान खीच कान मे कुछ बोला…उसके बाद वो शिष्या कॉंट्रॅक्टर बाबू का लंड ज़रा और ज़ोर्से हिलाने लगी….


कॉंट्रॅक्टर बाबू ने पीछे से उसकी पीठ पे हाथ दिए और उसकी पीठ को होले होले सहलाने लगे…. उससे वो शिष्या भी उत्तेजित होने लगी थी और अपने शरीर को कसमसा रही थी…. उसकी वो कसमकस देख के आजूबाजू की शिष्या भी गरम होने लग गयी और सबसे ज़्यादा गरम होने लगे रावसाब और वकील बाबू…. अगर ये पूजा नही चालू होती तो मैं तो कहता हू ये इन सब महिला शिष्यो को इसी मंदिर के प्रांगण मे चोद देते…..
क्रमशः……………………..
 
नौकरी हो तो ऐसी--12

गतान्क से आगे......
अभी कॉंट्रॅक्टर बाबू कुछ ज़्यादा ही गरम हुए लग रहे थे, उनकी साँस तेज़ चल रही थी…इधर जिस शिष्या के हाथ मे उनका लिंग था वो भी गरम हो गयी थी और ज़ोर ज़ोर्से उनका लिंग हिलाने लगी…. कॉंट्रॅक्टर बाबू चरम सीमा पर पहुच गये और उनके लंड ने उस शिष्या की पीठ पे और उसके हाथ पे अपना कामरस उगलना शुरू कर दिया…..उस शिष्या का हाथ कामरस से पूरा भर गया…और ये देख के बाजुवलि शिष्याए हल्के हल्के मुस्कुराने लगी और उसके तरफ देखने लगी…उसने अपना मुँह नीचे कर दिया और हल्के से अपना रुमाल निकाल के अपनी पीठ और हाथ सॉफ करने लगी…. इधर असीम आनंद की प्राप्ति कर कॉंट्रॅक्टर बाबू बहुत खुश हो गये… और उनका काला लंड मुरझा गया…. फिर उन्होने अपने पॅंट का नाडा खोला और उसे अंदर लेके शांति से सुला दिया…….



मंदिर मे पूजा चल रही थी. कॉंट्रॅक्टर बाबू का वीर्य दान अभी अभी हुआ था तो वो ज़रा शांति से बैठे थे.सेठानी अपने बगल मे बैठे सेठ जी से चुप चुप के कुछ बात किए जा रही थी और हस रही थी. वकील बाबू की बेटी भी बैठी दिख रही थी, पर गाड़ी मे रावसाब और वकील बाबू के काले लंड ने उसकी बुर की मा चोद दी थी, इसलिए वो थोडिसी टेढ़ी मेधी, पाव उपर नीचे किए जा रही थी... बल्कि उसे नींद भी बहुत आ रही थी... ये देख कर सेठानी ने मुझे उसे मंदिर के बाजू मे बने बड़े बंग्लॉ के एक रूम मे ले जाने का इशारा किया, मैं उठा और उसे ले जाने लगा तभी एक और पुरुष शिष्य भी उठ गया और हम उसे लेके तलवाले मंज़िल पे एक बड़े से कमरे मे लेके गये और उसे वहाँ पे सुला दिया हम वापस आके अपनी जगह पे बैठ गये और पूजा चल रही थी, आधे लोग सोने को आए थे आधे जाग रहे थे, कोई मन्त्र बोल रहा था कोई सुन रहा था कोई नही सुन रहा था. रावसाब वकील बाबू और कॉंट्रॅक्टर बाबू सामने बैठी महिला शिष्या की पीठ को घुरे जा रहे थे और मौका मिलते ही आगे खिसक के उनकी गांद से अपने घुटनो को मिला रहे थे, शिष्या आगे सरकने लगती तो सेठ जी सामने से पीछे देखते तो वो फिर पीछे हो जाती, ये देख के तीनो हसते और, जोरोसे उनकी गांद पर अपना घुटना घिसते....रावसाब अभी भी एक हाथ से अपने घोड़े को सहला रहे थे, वो बड़े लंबे रेस के घोड़े लग रहे थे. एक बात तो थी सेठ जी के परिवार की सभी महिलाओ की चुचिया बहुत बड़ी बड़ी थी..सबकी सारिया थोडिसी खिसकी हुई थी तो बाजू से बड़ी बड़ी चुचिया देखने को मिल रही थी मैं सोच रह था कि इस नौकरी मे मुझे महीने का पगार भी मिलनेवाला है और इन सब और बातो का मज़ा ये तो दुगना लॉटरी है. किसीकि लटकती हुई चुचिया तो किसीकि मजबूत और छाती से तंगी चिपकी हुई ताजे आम के तरह नोकदार आकार बनाती चुचिया देख के मेरे लंड की हालत और बेकार हुई जा रही थी. अभी पूजा लगभग ख़तम होने को थी बस आधा पौना घंटा और बाकी थी. तभी एक पंडित उधर से उठे और बंगले की तरफ चल दिए, उनकी जगह दूसरे पंडित ने ले ली, उनके पीछे सेठानी भी चल दी, मुझे ये बात थोडिसी रहास्यमय लगी पर मैं बैठा रहा जैसे कि मैं पहले बंगले मे जा चुका था इसलिए मैं चाहू तो अभी भी जाके ये लोग कहाँ गये ये आसानी से पता लगा सकता था थोड़ी देर मे मैं मूत के आता हू कहके उधर से उठा और बंगले की तरफ चल दिया...बाहर सब अंधेरा था बंगले के बाजू मे बस रोशनी थी वो भी बहुत धीमी थी... बंगले के चारो और बड़ा सा कंपॅन लगा हुआ था और चारो और से बहुत सारी जगह छूटी हुई थी जो आगे जाके बड़े बड़े खेतो को मिलती थी. मैं बंगले के पीछे गया और आगे थोड़ा सा खेतो मे चलता गया, उधर मैने अपने लंड को धार मारने के लिए बाहर निकाला और राहत की साँस लेते हुए मूत क्रिया पूर्ण की वापसे आते समय मैं बंगले के पीछे से दिख रही बड़ी बड़ी खिड़कियो को देखते जा रहा था, मैं पहचान पा रहा था कि अनुमान से देखा जाए तो जिस खिड़की मे लाइट जल रही है वो वोही है जिसमे हमने वकील बाबू के बेटी को सुलाया था...मेरा दिमाग़ तेज़ चलने लगा और मैने समझ लिया कि दाल मे कुछ तो काला है क्यू कि जब हम उसे सुला के निकले थे तो हम ने लाइट बंद कर दी थी………
 
. मैं आगे चलते गया और बंगले के पास पहुचा, काँच की खिड़की जिसपे अंदर से परदा लगा हुआ था, खिड़की की उँचाई ज़्यादा नही थी पर आजूबाजू बहुत सारी झाड़ियाँ थी इसलिए खिड़की तक पहुच पाना थोड़ा मुश्किल लग रहा था तब भी मैं वहाँ पहुचने की कोशिश करने लगा जैसे ही मैं नज़दीक जाने लगा मुझे कुछ आवाज़े सुनाई देने लगी और जैसे कि मैने पहले वकील बाबू के बेटी की आवाज़ सुनी थी ये आवाज़ उससे जानी पहचानी लग रही थी... थोड़ी ही देर मे झाड़ियो के बीच मेसे मैं उस खिड़की के पास पहुचने मे कामयाब हो गया जैसे ही मैं उधर पहुचा मुझे सेठानी की जानी पहचानी आवाज़ सुनाई दी और ऐसा लग रहा था कि जो पंडित पूजा से निकला था वो भी यहाँ मौजूद है...मैने अभी धीरे से जिस बाजू से परदा थोड़ा उपर उठा रखा था उस बाजू से अंदर देखा. अंदर तो आश्चर्या चकित करने वाला द्रिश्य दिखाई दिया, मैं तो देख के दंग रह गया, सेठानी पूरी नंगी बैठी थी, वकील बाबू की लड़की के कपड़े पंडितजी एक हाथ से निकल रहे थे वकील बाबू की बेटी की चुचिया एक दम गोलाकार, अपने यौवन मे आने के लिए और चूसने के लिए तरस रही थी, उन चुचियो को देख के ऐसा लग रहा था जैसे मैं इस पंडित का खून करके उनको अभी पीने के लिए चला जाउ…. जबसे मैं गाव मे आया था ये मैं तीसरी चुदाई देख रहा था और मेरे लंड को अभी किसिका हाथ भी नही लगा था… पंडितजी शरीर से बहुत ही मजबूत और मोटे और निंगोरे थे, उन्होने नीचे धोती पहनी थी और उपर कुछ भी नही… पेट पे सफेद गन्ध की रेखाए….सर पे थोडेसे बाल, दूध दही खाने से बने मदमस्त ताकतवर बाजू और छाती… कोई भी उनकी इस देह पे फिदा हो जाता…. पंडित धीरे धीरे वकील बाबू की लड़की के कपड़े उतार रहा था, अभी उसे पूरा नंगा किया और उसे खड़ा होने को बोला, वो नीचे मुँह करके खड़ी हो गयी, फिर पंडित ने अपनी धोती उपर खीची और अपना क़ाला-पुष्तिला लंड बाहर निकाल के लड़की का एक हाथ पकड़ के, उसमे दे दिया…. लंड इतना मोटा था कि जैसे कोई कुल्हड़ हो, उसका सूपड़ा और भी मोटा था… पंडितजी का लंड रावसाब के लंड को ज़रूर टक्कर दे रहा था.. वकील बाबू के लड़कीनेजैसे ही लंड हाथ मे लिया वैसे ही उसे कुछ चिपचिपा सा द्रव हाथ मे लगा उसके कारण उसने लंड छोड़ दिया…. ये देख के सेठानी बोली “अरे डरो नही कुछ नही होता वो तो तीर्थाप्रसाद है …पंडितजी ये तीर्थाप्रसाद बस कुछ भक्तो ही देते है ..तुम भी लेलो…… ऐसा करो यहा मेरी गोद मे बैठ जाओ… और मुँह मे तीर्थ प्रसाद लो….” सेठानी नीचे बैठ गयी और वकील बाबू की लड़की उनकी गोद मे बैठ गयी, पंडितजी ने धोती उपर एक हाथ से पकड़ के, एक हाथ मे लंड पकड़ के वकील बाबू की लड़की के मुँह मे घुसाया, वैसेही उसने मुँह पीछे किया और लंड बाहर निकाल दिया. सेठानी बोली “भगवान का प्रसाद है ..ऐसे नही करते अभी फिरसे ऐसा मत करना…पहले थोड़ा नमकीन लगेगा पर बाद मे मस्त लगेगा….. ” और फिर पंडितजी ने लड़की के मुँह मे अपना लंड घुसा दिया और इस बार पंडितजी ने चालाकी से उसका सर पकड़ कर लंड की तरफ दबा दिया, और उधर सेठानी ने गोद मे बैठे बैठे लड़की की नौजवान बुर मे उंगली डालना शुरू की……



मुँह मे गधे लंड के वजह से वकील बाबू की लड़की की साँसे रुक सी गयी थी. पंडितजी मुँह मे लंड घुसाए जा रहे थे. उधर नीचे सेठानी उंगलियो का न्रत्य करके उसकी बुर को नचा रही थी. पंडितजी ने लंड अभी थोड़ा बाहर निकाला और सेठानी के मुँह मे भर दिया, सेठानी ने लड़की को गोद से उठा के पलंग पे बिठाया, पंडितजी की धोती के कारण मुझे सेठानी के मुँह के अंदर जा रहा लंड नही दिख रहा था , सेठानी के मुँह मे पंडित लंड घुसा रहे थे और मुँह अपनी ओर खिच रहे थे. सेठानी के मुँह से चिपचिपा पानी निकल रहा था, पंडितजी ने अभी लंड फिरसे बाहर निकाला और मेरे तरफ मुँह करके पलंग पे बैठी लड़की के मुँह मे घुसाया और बाहर निकाला, सेठानी को बुला के लंड पे थूकने को बोला… सेठानी लंड पे थूकने लगी, और थूक से लंड को पूरा गीला कर दिया, पलंग पे सब थूक गिरने लगी… अब पंडितजी ने फिरसे लंड लड़की के मुँह मे घुसाया… वो नही नही बोलने लगी पर सेठानी ने “कुछ नही होता बेटा ये अच्छा है …तुम्हे अच्छा लगेगा” कहके उसका मुँह खुलवाके घुसवा ही दिया लंड मुँह मे…. फिर पंडितजी ने लड़की के मुँह के अंदर ज़ोर्से धक्के मारना शुरू किया… उससे लड़की की साँसे फिरसे फूलने लगी और वो थोड़ा थोड़ा प्रतिकार करने लगी पर पंडित लंड अंदर घुसाए ही जा रहे थे…. अब सेठानीने पंडितजी की टाँगो बीच से आके पंडितजी की काली मोटी तंगी हुई गोतिया मुँह मे ले ली और उनको लॉलिपोप की तरह चूसने लगी, चुसते चुसते मुँह से थूक बाहर निकल के फिरसे गटकने लगी… पंडितजी इस क्रिया से बहुत ही ज़्यादा गरम हो गये होते भी क्यू नही उनके सामने एक ऐसी मदहोश लड़की थी जिसका बदन कूट कूट के यौवन से भरा था और एक ऐसी देवी थी जिसने काम क्रीड़ा के सभी प्रकारो की बक्शी प्राप्त की थी… सेठानी के मुँह से टपकती लार सीधे जाके वकील बाबू की लड़की के पेट और घुटनो पे गिर रही थी…. सेठानी ने अभी तक एक ही काली गोटी मुँह मे ली थी पर ये क्या अब मैने देखा तो सेठानी ने पाड़ितजी की दोनो गोतिया मुँह मे भर ली और ज़ोर ज़ोर्से उनका रस चूसने लगी…
 
सेठानी के लाल लाल गुलाब के जैसे होठ और वो गोरा चेहरा…. और मुँह मे काली गोतिया वाह क्या नज़ारा था मैं देख के मदहोश हो रहा था… तभी पंडितजी ने लड़की की बुर मे उंगली डाली, वो पलंग पे सोई अवस्था मे थी… उंगली जैसे ही अंदर गयी तो पंडितजी बोले “अरे ये क्या इसकी बुर मे तो किसीने अभी वीर्यादान किया है…” इस बात को सुनके सेठानी दंग रह गयी क्यू कि वो समझती थी कि वकील की लड़की अभी कली है पर ये तो फूल निकली, सेठानी ने पंडित जी से कहा “ये बाद मे देखते है … पहले आप अपनी क्रिया शुरू करो वक़्त बहुत कम हैं…” ये सुनके पंडितजी ने फिरसे उसकी बुर मे उंगली डाली और निकलते ही उनकी उंगलिमे सफेद गाढ़ा बहुत सारा रस चिपक के आया ये देखकर पंडितजी और मदमस्त हो गये और लड़की की बुर मे फिरसे उंगली डाल के रस बाहर निकालने लगे… उसकी बुर का मंज़ला पूरा हिस्सा सफेद सफेद द्रव उगल रहा था…. पंडितजिने उंगली सेठानी को चाटने को दी, सेठानीने भी मस्त मज़े से उसे चूसने लगी और आँखे बंद कर करके रस का मज़ा लेने लगी… उसे कहाँ पता था कि जिस रस को चाट रही थी निगल रही थी वो उसके बेटो का ही था…. पंडितजी से अभी रहा नही जा रहा था.. पंडितजी का काला लंड अभी बहुत ज़्यादा फूल गया था पर लड़की अर्ध निद्रा मे थी इसलिए उसे इस चीज़ का ठीक से पता नही चल रहा था… पंडितजी ने सेठानी के मुँह मे अपने होठ डाले और सेठानी के मुख रस को लड़की की चूत मे गिराया… उस वक्त से लड़की की चूत और चमकने लगी…. अब पंडितजी ने लड़की को अपनी तरफ खिचा और अपना लाल काला सूपड़ा उसकी बुर के पास लेके गये… उसकी बुर के गहरे हल्के मखमल्ली बालो को देख के उस लड़की को अभी के अभी चोदने का मन कर रहा था… उन बालो के बीच मे वो कोमल लाल लाल सूजी हुई बुर को देख के मॅन रोमांचित हो रहा था … पंडितजी ने थोड़ा झुक के लड़की की बुर पे निशाना लगाया सेठानी ने घुटनो के बीच से आके लड़की की चूत के दो होठ थोडेसे अलग करके उसपे थोडिसी थूक थोप दी अब पंडितजी ने सूपदे को छेद पे रखा और थोड़ा पीछे होके आगे की ओर एक छोटसा धक्का मारा उनका सूपड़ा ज़्यादा चिकनाई की वजह से उपर सटाक गया लगता था उन्होने फिरसे निशाना लगाया और इस बार हल्केसे अपने बल्ब के आकर के सूपदे के मुँह को लड़की योनि मे प्रवेश करवाया.. लड़की थोडिसी कराह उठी… वैसे ही सेठानी घुटने के बीच से निकल के लड़की मुँह के पास आई और उसे पलंग पे सोई अवस्था मे ही रखने की कोशिस करने लगी… पंडितजी ने अब थोड़ी साँस लेके फिरसे सूपड़ा थोड़ा अंदर डाला लड़की उठने की कोशिश करने लगी पर सेठानी के उपर से थोड़ा दबाव बनाते ही वो नीचे सो गयी.. पंडितजी ने अब थोड़ा पीछे होके अपना सूपड़ा बाहर निकाल के दोनो हाथोसे बुर के होंठो को पकड़े रखते हुए निशाना लगाके सूपड़ा बुर के अंदर घुसा दिया … लगभग पूरा सूपड़ा अंदर जा चुका था बस गाँठ बंधनी बाकी थी… सेठानी ने लकड़ी के मुँह पे हाथ डाला हुआ था नहितो उस चीख से लगभग सबको पता चल जाता कि अंदर क्या होरहा है …. अब पांडिजीने लंड को अंदर दबाव देते हुए थोड़ा दबाया, और सूपड़ा पूरा अंदर चला गया…लड़की हाथ पाव उपर नीचे करने लगी पर पंडितजी ने अपने काम साध लिया था लड़की अभी उनके गिरफ़्त से बाहर नही निकल सकती थी.. पंडितजी ने अभी अपने आप को गति दी और लंड को और अंदर डाला… लड़की पीठ उपर करके विरोध करने लगी पर पंडितजी और सेठानी सुननेवालो मे से नही थे ..पंडितजी ने अब धक्के मारना शुरू किया आधे से ज़्यादा लार टपकाते हुए उस कोमल लालसुजी हुई बुर मे घुस गया था…. और आधा बाद के धक्के ने घुसा दिया लड़की ज़ोर्से उठने की कोशिश कर रही थी सेठानी ने बाजू मे पड़ी तकिया उठा कर उसके मुँह पे दबा दी और पंडितजी जोरोसे धक्का मारने लगे…. सेठानी ने थोड़ेही पल मे तकिया निकला लड़की थोडिसी ठीक हो गयी थी पंडित के धक्के चला रहे थे… सेठानी इस पल का कूट कूट के मज़ा ले रही थी और अपनी पोती को चुदवा रही थी…. थोदीही देर मे मैने देखा पांडिजी हफ़फ़ रहे है उन्होने गति को और बढ़ाया लड़की सिकुड़ने लगी… और धाप्प.. धाप्प्प…. पांडिजीने लड़की की चूत के अंदर अपना वीर्य दान कर दिया… वो उस कोमल लड़की की काया पे ढेर हो गये और उसके कोमल होंठो को चूमने लगे…. थोड़ी देर के बाद सेठानी ने पांडिजी का लंड बुर से बाहर निकाला वैसेही काम रस भी बाहर निकल आया उसे सेठानी ने कमाल से चूसा और पूरा पी लिया और काम रस से भरे पंडितजीके लंड को मुँह मे लेके चुस्के सॉफ करने लगी……….

क्रमशः……………………..
 
नौकरी हो तो ऐसी--13

गतान्क से आगे......
सेठानी ने अभी लंड अपने मुँह मे से निकाला और लड़की की बुर से निकल रहे वीर्य को चाटने लगी.. अपनी जीब को वो लड़की की बुर के कोमल होंठो को बड़े आराम से अलग कर के अंदर डाल रही थी और उस वीर्य का स्वादिस्त मज़ा ले रही थी…


तभी पंडितजी बोले “अरे चलो यहाँ से नही तो कोई आ जाएगा तो अपनी पूरी योजना निष्प्रभाव हो जाएगी और सबको कानो कान खबर लग जाएगी”
पंडितजी ने अपने लंड को एक कपड़े से पोछते हुए कहा , सेठानी बोली “मेरी शांति तो आपने की ही नही” तब पंडित जी बोले “अरे तुम्हारी शांति अभी अगली बार ज़रूर करेंगे… बस इस लड़की को किसी बहाने इधर ही छोड़ जाना.. बहुत ही मजेदार चीज़ है…”

तो सेठानी बोली “अरे नही बाबा इसे मैं यहा रखूँगी तो इसे तुम चोद चोद के रंडी बना दोगे… और मैं सेठ जी को क्या जवाब दूँगी…”
पंडितजी बोले “ठीक है तो मैं ही कुछ इंतज़ाम करता हू हवेली पे फिर”
ये कह के पंडितजी उस कमरे से निकल गये सेठानी अपनी सारी ठीक ठाक करने लगी और वो भी निकलने की तैयारी करने लगी उसने लड़की के कपड़े ठीक करके उसके उपर चादर डाल के बड़े आराम से उसे सुला दिया जैसे कुछ हुआ ही नही पर सिर्फ़ मुझे ही पता था कि पिछले 15 मिनट मे यहा क्या हुआ था और कैसे हुआ था ये सारी जानकारी मुझे भविश्य मे बहुत ही उपयोगी आनेवाली थी ये मैं भी नही जानता था.

मैं जल्दिसे निकल आया और अपनी जगह पे जाके बैठने के लिए जल्दी जल्दी चल दिया मैं मंदिर पहुचा तो सब लोग खड़े थे और आरती चल रही थी मैं भी चुपके से उनमे समा गया और आरती चल रही थी.

राव साब ने एक महिला शिष्या की सफेद सारी मे अंदर पीछे से हाथ डाला हुआ था और पता नही पर उनकी हर्कतो से मालूम पड़ रहा था कि वो उसकी गांद को अच्छे से मसल रहे थे. सारी एक दम ढीली हो गयी थी और ऐसा लग रहा था कि किसी भी क्षण गिर सकती है… कॉंट्रॅक्टर बाबू और वकील बाबू दोनो हस रहे थे… वो महिला शिष्या गरम हो रही थी पर कोई ज़्यादा ध्यान नही दे रहा था मानो जैसे कुछ हो ही नही रहा है इससे पता चल रहा था कि इन लोगो की इधर कितनी चलती है.

महा पूजा ख़तम हो गयी थी… सब लोग निकलने लगे और अपनी अपनी गाडियो मे जाके बैठने लगे मैं इस बार पहलिवाली गाड़ी मे बैठ नही पाया जिसमे मैं आया था, मुझे सोभाग्यवश इस बार घर की महिलाओ की गाड़ी मे बैठने को बोला गया… गाड़ी मे ड्राइवर के साथ एक महिला बीच वाली सीट मे तीन महिला और पीछे मैं और 2 घर की महिला ऐसे सब मिलके आठ लोग बैठे थे..इनमे सेठानी नही थी..

मैं समझ नही पा रहा था कि सेठानी छोड़ के ये लोग तो चार भाइयो की चार बीविया होनी चाहिए तो ये लोग 6 कैसे है?

पर मेरे इस सवाल का जवाब मैं किसीसे नही पूछ सकता था. मैं शांति से पीछे बैठ गया और मेरे सामने वाली सीट मे 2 घर की महिला बैठ गयी जैसे कि लाइट चालू नही थी और रास्ता बहुत ही खराब था कुछ समझ नही आ रहा था कि सामने कौन बैठी है पर हां एक बात थी कि मास्टर जी की बीवी जिसको चोदते चोदते मैं ट्रेन से यहाँ आया थॉ वो पिछली वाली सीट मे नही थी वो शायद ड्राइवर के बाजुवाली सीट मे थी…

मेरा लंड पूरा तन चुका था और हर तरीके से उड़ने की कोशिश कर रहा था पर कोई भी दर्रार उसे नही मिलने के कारण वो हवा मे ही आग उबल रहा था….

तभी मैने जाना कि मेरे पैर पे किसी का पैर है मैने चप्पल पहनी थी, उस पैर मे चप्पल नही थी मैने सामने देखा तो कुछ समझ नही रहा था कि किसका पैर है…

उस पैर ने घिस घिस के मेरे पैर से चप्पल उतरवा दी और वो पैर अभी उपर उपर चढ़ने लगा तभी मैने पाया कि दूसरी और से एक और पैर आया और जाँघो पे ठहर गया. मैं अचंभे मे था कि रात के एक बजे इन लोगो को इतना मज़ा लेनेकी पड़ी है… मेरी जाँघॉपे जो पैर थॉवो भी मेरे लंड तक पहुच गया और मेरे लंड को सहलाने लगा मैं पीछे खिड़की से पूरी तरह चिपक गया और अपनी कमर को नीचे छोड़ दिया जिससे सामने वालो को शक नाहो कि पीछे कुछ हो रहा है 



तभी मैने सामने होनेवाली हलचल से भाँपा कि कोई अपनी चोली के हुक खोल रहा है. जैसे ही हुक खोले मैने दो बड़ी चुचिया बाहर निकली पाई…. वाह मज़ा आ गया मुझे चुचिया दिख नही रही थी पर उनका आकर देख के मुझे बड़ा ही गरम लग रहा था… तभी मैने पाया एक हाथ मेरी गर्दन की तरफ आया और एक झटके मे मुझे उन चुचियो पे खिसका के ले गया अगले ही पल मेरा मुँह दोनो चुचियो के बीच और दो सीट के बीच की जगह मे घुटने के बल बैठा मैं… मेरा मुँह पूरी अच्छी तरह से चुचियो मे दबाया जा रहा था मेरी साँस तेज़्ज़ हो गयी थी..



मैने अपना मुँह पीछे करते हुए एक चुचि पे ध्यान देना चाहा और एक चुचि को अपने मुँह मे लेके चूसने की कोशिश करने लगा मुझे बड़े दबाव से चुचियो पे घिसे जा रहा था लग रहा था कि इस ओरत ने पिछले 5-6 महीने मे सम्भोग नही किया हो…. कुतिया की तरह मेरी जान के पीछे पड़ी थी…
 
मैने थोडिसी साँस को काबू मे किया और फिरसे चुचि को चूसने की कोशिश करने लगा मैने जैसे ही एक चुचि की गुलाबी निपल को अपने मुँह मे लिया…वाह मज़ा आ गया… क्या अचंभा था …उसमे से स्वादिष्ट नमकीन मलाईदार दूध निकल के आया इसका मतलब ये था कि सेठ जी के घर मे अभी 2-2 गाये बच्चे जनि थी और दूध दे रही थी… मैने ट्रेन मे जो दूध पिया था उससे भी ये दूध मुझे बहुत अच्छा और स्वादिष्ट लग रहा था मैने कस कस के चुचि को दबाना चालू रखा और दूध को अपने मुँह से खिचता चला गया





5-10 मिनट के दूध ग्रहण करने के बाद मुझे दूसरी और खिचा गया और जब मुझे पता चला तो मैने पाया कि मेरी नाक मे नोकिले बाल जा रहे है और मेरा मुँह दूसरी महिला की बुर पे टिका हुआ है… उस बुर की वो नमकीन सुगंध से मैं और भी पागल सा हो गया मैने भी अपनी जीब निकाली और उस बालो की जंगली बुर मे डाल दी और उस बुर के मोती को चूसने लगा और अपनी अदाकारी से जीब को बुर के अंदर ही अंदर डालने लगा…




मुझे बड़ा ही मज़ा आ रहा था क्यू कि इतनी रसीली बुर मैने कभी नही चूसी थी… बुर के होठ तो इतने कोमल थे कि मैं उनको अपने दांतो के बीच रखता तो भी वो मेरे दांतो के बीच से निकल जा रहे थे उस कोमल और रसीली बुर ने मुझे पागल बनाया था मैं उसमे और अंदर और अंदर अपनी जीब को घुसा रहा था और उससे निकल रहे योनिरस को पिए जा रहा था…


थोड़ी देर मे उस कोमल योनि से अचानक एक कोमल मादक रस की धार निकल आई उससे मुझे पता चल गया कि ये तो झाड़ गयी है… उस औरत ने मुझे उपर उठाया और मेरे होंठो को चूमने लगी उधर दूसरी ने मेरे पॅंट मे हाथ डाल के मेरे काले साँवले महाराज को बाहर निकाल दिया और जोरो से हिलाना शुरू किया मैं इस धक्के से अपने सीट पे बैठ गया और वो महिला बीच की जगह मे घुटनो के बल बैठी मेरा लंड अपना मुँह घुसाए जा रही थी और अपने पूरे बल से मेरे लंड की चमड़ी उपर नीचे उपर नीचे कर रही थी....


सबेरे से देखी जा रही इन सब घटनाओ से मैं पहले ही चरम सीमा पे था, इसलिए मुझे पता था कि ये गरम हाथ जब अपने लंड पे पड़ा है तो अभी मैं इसे ज़्यादा वक़्त नियंत्रण मे नही रख सकता उस औरत ने फिरसे मुँह मे मेरा लंड लिया और जोरोसे उसे चूसने लगी… मेरा बेलन इतना बड़ा मूसल शायद ही आधा उसके मुँह मे जा रहा था पर होनेवाली गर्मिसे मुझे अभी काबू जाता हुआ नज़र आया अगले ही पल मैने उस महिला के मुँह मे अपनी गंगा जमुना बहानी चालू की और उसके सर को अपने लंड पे जोरोसे दबाया…वो भी कच्ची खिलाड़ी नही लग रही थी उसने भी अपने मुँह से लंड को हरगिज़ बाहर नही निकाला और पूरा वीर्य निगल लिया….


इसके बाद हम तीनो लगभग शांत हो गये… और अभी गाव भी लगभग आही गया था तो हम पीछे अपने कपड़े सवारने लगे अगले 10 मिनट मे हम लोग हवेली के सामने थे……….






हवेली के सामने उतरते ही सब लोग अंदर चले गये. नौकर और ड्राइवर जो कुछ सामान था वो लेके अंदर जाने लगे. मैने अपने शरीर से थोड़ा आलस्य दूर किया और मैं भी अंदर आ गया. सब के चेहरे पे भारी नींद दिख रही थी. सब अपने अपने कमरो मे सोने के लिए चल पड़े. मुझे सेठ जी ने एक कमरा दिखाया मैं उधर जाके गद्दे पे लेट गया, कब आँख लगी पता ही नही चला…..
सबेरे खिड़की से सूर्य की शांत और लुभावनी किरणें मेरे चेहरे पे पड़ी तब मैं थोड़ा सा जाग गया और घड़ी मे वक़्त देखा, सुबह के 7 बजे थे.. मुझे पहलेसे ही कसरत का शौक था. मैने उठ कर अपने शरीर को उपर नीचे दाए बाए मोडके, फिर सूर्यनामस्कार किए और थोडा उठक बैठक करके अपनी कसरत को पूर्णविराम दिया.


मैं नीचे आके सोफे पे बैठ गया उतने मे उधरसे सेठ जी आए और बोले “तुम अभी नहा धोके जल्दी तैय्यार हो जाना… आज मुझे तुम्हे सब काम कैसे चलता है और सब हिस्साब किताब बताना है….”

और उन्होने आवाज़ लगाई “चंपा ….इन्हे जल्दी से तैय्यार करदो…” सेठ जी की आवाज़ सुनते ही चंपा अपने चूतादो को हिलाते हुए और अपनी मस्त चुचियो को हिलाते हुए आई और “हाँ सेठ जी” कह के मुझे अपने साथ चलने का इशारा करके चली गयी. मैं उसके पीछे पीछे चला गया उसने मुझे नाहने की जगह दिखाई वो एक बड़ा सा कमरा लग रहा था उसमे सब सुविधाए थी… मैं अंदर जाके नहा लिया और तैय्यार होके चंपा के हाथ का बना नाश्ता कर के सेठ जी के साथ निकल गया…

क्रमशः……………………..
 
नौकरी हो तो ऐसी--14

गतान्क से आगे…………………………………….

सेठ जी के साथ जीप मे बैठ के हम लोग खेतो की ओर चल दिए गाव से बाहर निकलते ही सेठ जी के सारे खेत दिखने शुरू हो गये सेठ जी बताने लगे “ये सब मेरे पिताजी दादा और परदादा की ज़मीन है …इन लोगोने खूब मेहनत करके ये ज़मीन अपने नाम से जाने से रोकी है …अभी लगभग हम लोग 300-400 एकर के मालिक है…. इसमे 100-200 कूल्हे है… लगभत 90 प्रतिशत ज़मीन बागायती है और बाकी की ज़मीन जानवर चराने के लिए रखी है… मैं चाहता हू कि तुम अब कारोबार पे अच्छे से ध्यान दो… हमारे पहले मुनीम जी अच्छे से इस कारोबार को संभालते थे पर अब तुम्हे ये सब देखना होगा ” मैं हाँ करके मुँह हिला रहा था सेठ जी बोले“पहले मुनीम्जी अच्छे थे पर मेरे बेटे उन्हे ठीक से हर एक काम पे कितने रुपये खर्च हुए इसका हिसाब किताब बराबर से नही देते थे तो उन्हे ज़रा परेशानी रहती थी ….तुम्हे अगर कोई भी परेशानी आए तो तुम मुझे बेझीजक बताना पर हां हिसाब के बारे एक दम बराबर रहना…” हम अभी खेतो से निकल के सेठ जी के कार्यालय कीतरफ निकल पड़े…

जैसे कि मैं यूनिवर्सिटी का ग्रॅजुयेट था और मैं एक चार्टर्ड अकाउंट के नीचे काम किया था… मुझे हिसाब किताब मे किए जानेवाली हर एक चीज़ का बारीकी से ग्यान था और हिसाब मे की गयी कोई भी लापरवाही या मिलीभगत मैं यू पकड़ सकता था…..



हम कार्यालय पे पहुचे… कार्यालय मतलब एक गोदाम था जहाँ मुनीमाजी और सेठ जी बैठते थे वहाँ पे बहुत सारे अनाज की बोरिया लगी हुई थी करीब 1000-2000 अलग अलग किस्म के अनाज की बोरिया थी…पर उन्हे बहुत ही अच्छे से रखा गया था…बहुत सारे मजदूर लोग वहाँ मौजूद थे जो साफ सफाई और देखभाल के लिए रखे थे…. गोदाम पुरखो का और मजबूत लग रहा था… उसकी हाल ही मे पुताई भी की गयी हो ऐसे लग रहा था …यही मेरी काम की जगह बनने वाली थी आजसे….


उधर ही गोदाम के अंदर एक बाजू मे सेमेंट का बड़ा उँचा एक बरामदा तैय्यार किया था जहापे सब हिस्साब किताब की पुस्तक और कापिया रखी थी… नीचे बैठने के लिए तीन चार गद्दे और लोड लगाए थे …..3-4 छोटे छोटे मेज भी थे जहापे मूंदी डाल के अच्छे से हिसाब किताब कर सकते थे …. हम लोग उधर आए और उस बरामदे मे सीडी से चढ़ गये…. लगभग 20 सीडी चढ़ के हम बरामदे मे पहुच गये.

सेठ जी अपनी मेज के पास बैठ गये और मुझे बाजू बिठा के सब हिसाब किताब समझाने लगे “ये ऐसा है… वो वैसा है ..इस साल इतना गेहू हुआ था ..उस साल उतना चावल हुआ था…. इसकी इतनी उधारी है… उसके उतने देने है… ये सब इसके बिल है… ये पिछले साल के कूल्हे बनाने का खर्चा है …ये सब कामगारो की पगार के हिसाब की पुस्तक है… ”
 
सेठ जी 2 घंटे मुझे सब बता और समझ रहे थे…दोपेहर मे हम लोगोने खाना खा लिया…उसके बाद आके सेठ जी मुझे समझाने लगे कि किधर क्या लिखना है और किधर कौनसी पुस्तक रखनी है…. हिसाब किताब पुराने ढंग से किया हुआ था.. जिसके अंदर का अक्षर भी एक दम चिडमिद और गंदा था… एक बार मे कोई चीज़ की कीमत जल्दी समझ नही आ रही थी… बस एक चीज़ थी सेठ जी एक बड़े ज़मींदार के एक बड़े व्यापारी भी थे… वो अपना सारा अनाज व्यापारियो को ना बेचते थे बल्कि बड़े जिले मे बाजार मे जाके बाजार समिति मे लेके सीधे बेचते थे इससे उन्हे बहुत ही ज़्यादा मुनाफ़ा मिलता था… अभी शाम होनेको थी. सेठ जी भी थोडेसे थके हुए दिख रहे थे… लगभग 6 बजे हम हवेली की तरफ चल निकले जो कि 25-30 मिनट की दूरी पे थी…



एक बात तो थी… सेठ जी को मेरे बारे मे मामाने बहुत काबिल लड़का है ये वो जो तारीफ की थी उससे मेरेपे बहुत ज़्यादा भरोसा हो गया था.. और वो मुझे एक नौकर की तरह ना रखते हुए अपने बेटे की तरह ख़याल रख रहे थे.. उनका मेरे प्रति व्यवहार देखके कोई ये नही कह सकता था कि मैं उनकानौकर हू…..
जब हम हवेली पहुचे तो शाम का वक़्त हो चला था… मैने देखा सेठ जी क़ी छोटी बहू मेरे सामने खड़ी है मैने उसे देखा तो वो बोली “ज़रा हमारे साथ आओ हमे कुछ सामान लाना है उसकी लिस्ट बनाना है…” सेठ जी ने कहा “अरे वो अभी आया है थोड़ा आराम करने दो उसके लिए चाय लेके आओ..” छोटी बहू ने कहा “ठीक है तुम मेरे कमरे मे जाके बैठो..पहले माले पे तीसरा कमरा… मैं तुम्हारे लिए चाय लेके आती हू…..”



मैं सूचना अनुसार उस कामरे मे जाके बैठा. कमरे मे पालने मे बच्चे को सुलाया था… मैं यहाँ वहाँ देख रहा था उतने मे वो चाय लेके आई और मेज पे रख दी और दरवाजा ठप से बंद कर दिया… और सीधे आके अपने चूतादो को मेरे से सटा कर बैठ गयी बोली “कहाँ थे तुम.. मैं कब्से तुम्हे ढूँढ रही थी” मैने बोला “सेठ जी के साथ काम पर….” मैं बोल ही रहा था कि छोटी बहू ने मेरे हॉटोपे अपने होठ टिका दिए और मेरे निचले होटो को अपने मुँह के अंदर लेके चूसने लगी अभी उसकी जीब मेरे मुँह मे गयी और हम एक दूसरे की जीब चूसने लगे.. वाह क्या मज़ा आ रहा था उसके वो कोमल और गरम होठ मेरे शरीर मे रोमांच पैदा कर रहे थे.. मैने उसकी चुचियो को हाथ मे ले लिया और हल्केसे सारी बाजू करके सहलाने लगा…. वो मेरे और करीब आ गयी और मेरे शरीर से पूरा चिपक गयी….



मैने हाथ उसके चूतादो पे घुमाने शुरू किए …इन चूतादो को मैने ट्रेन मे अच्छे से मला था… भारी भारी चूतादो पे हाथ घुमाने से मेरे अन्ग अन्ग मे रोमांच भरने लगा मैं छोटी बहू को और अपनी छाती मे दबाने लगा और अपनी लार उसके मुँह मे और उसकी लार मेरे मुँह मे जीब से अंदर बाहर करने लगे….. मैने पीछेसे सारी को थोड़ा खिसका के उसके नंगे चूतादो को पकड़ा और सहलाने लगा वाह मैं तो सातवे आसमान पे था… मैने पीछेसे एक उंगली छोटी बहु की गांद के छेद पे रखी और उसे अच्छे से मसल्ने लगा… वो बोली “उधर मत जाना….” मैं बोला “कुछ भी तो नही किया बस रखी है…” और मैं फिरसे धीरे से गांद के छेद पे अपनी उंगली मलने लगा…. मैं उंगली अंदर डालनेकी कोशिश कर रहा था.. पर गांद ज़्यादा ही चिपकी थी इसलिए जल्दी अंदर नही जा रही थी.. छोटी बहू की गांद मारना ये मेरी ट्रेन के सफ़र से ख्वाहिश रही थी पर उसने मुझे मौका ही नही दिया था पर यहाँ मैं तो उसे चोदने ही वाला था… मैने अभी छेद के बराबर बीचो बीच उंगली रख के अंदर घुसाई… वो कराह उठी… बोली “मत डालो उधर…. दर्द होता है बहुत”
 
इतने मे पालने मे सोया बच्चा रोने लगा…. वैसे ही वो मुझसे अलग हो गयी और बच्चे को उठा कर अपनी गोद मे लेके गद्दे पे बैठ गयी… उसने अपनी चोली खोली और एक चुचि बच्चे के मुँह मे दी और बच्चा शांत हो गया

मैने कपड़े ठीक करते हुए पूछा “तुम मुझे घरके बाकी लोगोसे कब मिलवाने वाली हो”

वो बोली “क्यू उनकी गांद मे भी उंगली डालनी है क्या”



मैं बोला “ठीक है जैसे तुम्हारी मर्ज़ी” मैं उसके बाजू मे जाके बैठ गया और उसकी दूसरी चुचि को सहलाने लगा वैसे ही....

छोटी बहू बोली “नही ठीक है बताती हू….” वो बच्चे को दूध पिला रही थी उसकी चुचिया बड़े बड़े टमाटर की तरह लाल लाल दिख रही थी…

वो बोली “घर मे बहुत लोग है तुम्हे एक बार मे याद रखना मुश्किल होगा…इसलिए जैसे जैसे तुम यहाँ रहोगे तुम जैसे उनसे मिलोगे वैसे मैं तुम्हे उनके बारे मे बताती जाउन्गि”

मैने बोला “पर हर समय तुम थोड़िना हर मेरे साथ रहोगी ये बताने के लिए कि ये कौन है वो कौन है….”

वो बोली “ठीक है तो सुनो…. जैसे कि तुम जानते हो…सेठ जी घर के मुखिया है..सब उनका बहुत आदर सन्मान करते है उनसे डरते ही है …और सेठानी जी जो हमारी सास है पर हमसे ज़्यादा प्यार करती है…. उनके चार बेटे और एक बेटी है … चार बेटे जैसे कि रावसाब, वकील बाबू, कॉंट्रॅक्टर बाबू और मेरे पति मास्टर जी…. एक बेटी है जिसका पति इतना अमीर ना होने के कारण वो पति के साथ यही रहती है”


मैं बोला “अच्छा….”

वो बोली “रावसाब ज़्यादातर खेती काम देखते है… और गुलच्छर्रे उड़ाने मे लगे रहते है…वैसे सभी गुल्छर्रो मे ही लगे रहते है….तो रावसाब के दो बीविया है उनको पहली बीवीसे संतान नही हुई इसलिए उनकी दूसरी शादी करदी गयी पर हां उनकी पहली बीवी दूसरी से बहुत सुंदर है…. उन्हे दूसरी बीवी से एक लड़का और एक लड़की जो अभी तक पढ़ रही है… उनके लड़के की शादी 1.5 साल पहले हुई और अंदर की बात ये है कि उसकी बीवी अभी पेट से है लगभग तीसरा महीना चल रहा है…”


वो बोलते जा रही थी “इसके बाद है वकील बाबू जिनकी एक ही बीवी है… उनको तीन लड़किया है ..जिसमे से बड़ी की पिछले साल शादी हो गयी है.. और दो छोटी लड़किया अभी कुँवारी है और अभी पढ़ती है…उनकी बीवी बोलती है कि हमे दो ही चाहिए थी..ये तीसरी निरोध फटने से हो गयी… और पता ही नही चला कब दिन चले गये….” मैं हसने लगा


छोटी बहू मुस्कुरा के बोली“उसके बाद कॉंट्रॅक्टर बाबू जिनकी भी एक ही बीवी है…. उन्हे एक बड़ा लड़का और एक लड़की है दोनो भी कुंवारे है…और पढ़ाई करते है”


“उसके बाद तो मेरी और मास्टर जी की जोड़ी.. जैसे के तुम जानते हो…. और हमारा ये एक लाड़ला“ उन्होने बच्चे के गाल की एक पप्पी लेते हुए कहा


मैने पूछा “और सेठ जी की बेटी का क्या जो यही रहती है…”

वो बोली “हाँ वो भी है ना… वो अपने पति के साथ यही रहती है…उन्हे एक बड़ी लड़की और लड़का है जो अभी पढ़ रहे है”
 
मैं इतना बड़ा परिवार अभी तक कही नही देखा था… अभी लगभग 7.30 बज रहे थे और खाना खाने का टाइम हो गया था… सब लोग सिवाय सेठ जी और सेठानी के, खाना खाने के लिए रसोईघर मे आ गये… रसोई घर बहुत ही बड़ा था और उधर 3-4 नौकरानी खड़ी थी…. नौकरानिया भी एक से एक खूबसूरत और भरी हुई थी…मुझे पूरा यकीन था कि रावसाब और बाकियोने इन सुंदरियोका मज़ा ज़रूर चखा होगा….राव साब हाथ धोने का बहाना करके रसोईघर के पीछे जाने लगे और जाते जाते एक नौकरानी की चुचि को ज़ोर्से चुटकी निकाल ली, हाथ धोके वापस आ गये…. सब लोग बैठ गये राव साब, वकील बाबू, कॉंट्रॅक्टर बाबू और मास्टर जी और मैं एक साथ एक साइड बैठ गये और हमारे सामने बाकी लोग बैठ गये तभी घर की सारी औरतो ने रसोईघर मे प्रवेश किया.



एक से एक बहुए थी सेठ जी की …. मा कसम क्या रूप था उनका….सफेद देसी घी की तरह उनका वो रंग… वो बड़ी बड़ी चुचिया…मैं तो सोच रहा था कि इनकी बुर कैसी होगी, उनके चुतताड़ो पे मैं अपना लंड घीसूँगा तो क्या स्वर्ग आनंद आएगा.... मेरा मन खाने से उड़के इनको चोदा कैसे जाए इस सोच मे लग गया. मैं सिर्फ़ छोटी बहू को जानता था और सेठानी को… बाकी सबके लिए मैं अंजान था… पर सेठानी ने सभी महिलाओ को मेरे बारे मे बताया था इसलिए मुझे सब जानते थे शायद….



हमारे सामने ताइजी के पति भी बैठे थे वो शांति से खा रहे थे… लग ही नही रहा था कि ताइजी के पति है वो रूपवती और ये छिछोरा…. मतलब रंग रूप मे वो गोरा था पर शरीर एकदम मध्यम था इसलिए ताइजी को जच नही रहा था….



खाना खाते खाते बहुत मज़ा आ रहा था जब भी कोई रोटी परोसने आता था तो मैं अपनी मुंदी उपर करके उनकी चोली के अंदर झाँक कर रसीली चुचीयोको हल्केसे देखता था…और जब जाती थी तब उनके चूतादो को निहार रहा था… मेरा लंड इस वजह से संभोग क्रिया पूर्व ही पानी छोड़ रहा था

तभी कॉंट्रॅक्टर बाबू बोले- “खाने मे आज क्या है…”


ताइजी बोली- “आम का रस…और लस्सी है और भी बहुत कुछ है.”

कॉंट्रॅक्टर बाबू ताइजी जो उनकी बहेन थी उनसे बोले “आम का रस है फिर मीठा तो होगा ज़रूर”

ताइजी बोली- “एक बार चख के देख लो….. पता चल जाएगा मीठा है या कड़वा…”

कॉंट्रॅक्टर बाबू- “2 दिन पहले ही चखा था इन्ही आमो का रस… बहुत ही मीठा लगा था तुम्हारे आमो का रस…”

रसोई घर मे बैठे और खड़े सभी इस संभाषण को भली भाँति समझ रहे थे और मन ही मन मुस्कुरा रहे थे….

उतने मे राव साब की पहली बीवी रूपवती बोली- “हमने आज अपने हाथो से लस्सी बनाई इसे भी चख के देख लो… मीठी है या नही ”

उसपे कॉंट्रॅक्टर बाबू आम रस पीते हुए बोले- “अरे पहले आम को तो चखने दो.. इतनी भी क्या जल्दी है…ताइजी के हाथो के आम रस का मज़ा ही कुछ और है…... लस्सी भी पी लेंगे…. ”
 
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