hotaks444
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रिश्तों की गर्मी
लेखक-अभय
गर्मी की उस दोपहर मे सर पर तप्ता सूरज मेरी परीक्षा ले रहा था मंज़िल अभी भी दूर थी प्यास से गला सूख रहा था पर पानी भी नही था मेरे पास पिछले चार दिनो से सफ़र जारी था मेरा अंजाना सफ़र और अंजानी मंज़िल थी रास्ता पूरी तरह से सुनसान पड़ा था बस गरम लू ही थी जो साय साय करते हुवे कहर ढा रही थी मैं आस लगा रहा था कि कुछ साधन मिल जाए तो सफ़र आसान हो जाए पर आज इस राह का मैं एक्लोता मुसाफिर ही था
अपने धीमे कदमो से मैं उस कच्चे रास्ते पर चलता ही जा रहा था पर अब मेरे पैर जवाब देने लगे थे मैने सोचा कि कही मैने ग़लत रास्ता तो नही पकड़ लिया कोई नक्शा भी नही था मेरे पास उपर से थकान से बुरा हाल था तो सोचा कि कुछ देर आराम ही करलू तो एक खेत के पास नीम की छाँव मे बैठ गया छाँव मिली तो शरीर भी कुछ सुस्त हुआ और ना जाने कब मेरी आँख लग गयी पता नही कितनी देर मैं पेड़ के नीचे सोता रहा
आँख तब खुली जब किसी ने मुझे आवाज़ दी ओ शहरी बाबू कॉन हो तुम और मेरे खेत मे क्या कर रहे हो अपनी आखे मलते हुए मैने देखा कि कोई गाँव की औरत है सांवला सा रंग तीखे नैन-नक्श उमर कोई 33-34 होगी पर बेहद ही कसा हुवा जिस्म था उसका मैं उसको देखते ही रह गया पलके झपकाना भूल गया तो वो बोली बाबू जी कहाँ खो गये मैने सकपकाते हुवे अपना थूक गटका और काँपते हुवे लहजे मे कहा कि जी मुसाफिर हूँ थोड़ा सा थक गया था तो सोचा कि पेड़ के नीचे बैठ जाउ पता नही चला कि कब आँख लग गयी माफी चाहता हूँ
वो बोली कोई बात नही बाबू
मैने कहा कि जी मुझे अर्जुनगढ़ जाना है आप बता सकती है कि वो गाँव कितना दूर है तो वो बोली बाबू तुम गाँव के किनारे पर ही हो बस कोई 1 कोस और रह गया है मैं भी अर्जुनगढ़ की ही हू और ये मेरे खेत है यहाँ पर मैने अपना सामान उठाया और उसको कहा कि जी बड़ी प्यास लगी है
यहाँ पानी मिलेगा क्या तो वो बोली कि थोड़ी दूर कुआँ है आओ पानी पिलाती हू तो मैं उसके पीछे पीछे चल पड़ा उसने बाल्टी कुवे मे डाली और मुझे पानी पिलाने लगी ऐसा ठंडा पानी था उस कुवे का मैं तो फ्रिड्ज के पानी को भूल गया कुछ पलो के लिए मैं जैसे अपने आप को भूल ही गया तो उस औरत ने फिर से मुझे वर्तमान मे लाते हुवे कहा कि बाबू पानी पियो ध्यान कहाँ है तुम्हारा तो मैं पानी पीने लगा जी भर कर पिया मैने
मैने उसको धन्यवाद किया और अपने सामान को संभालते हुवे चलने लगा तो उसने कहा बाबू मैं भी गाँव मे ही जा रही हू आओ तुमको छोड़ देती हू तो मैं उसके पीछे पीछे चल पड़ा कुछ दूर आगे आने पर उसने पूछा कि बाबू गाँव मे किसके घर जाओगे तो मैने कहा कि जी मुझे ठाकुर यूधवीर सिंग की हवेली पे जाना है तो ये सुनते ही उस औरत ने अपने सर पर जो घास का गट्ठर उठाया हुवा था वो उसके सर से नीचे गिर गया
लेखक-अभय
गर्मी की उस दोपहर मे सर पर तप्ता सूरज मेरी परीक्षा ले रहा था मंज़िल अभी भी दूर थी प्यास से गला सूख रहा था पर पानी भी नही था मेरे पास पिछले चार दिनो से सफ़र जारी था मेरा अंजाना सफ़र और अंजानी मंज़िल थी रास्ता पूरी तरह से सुनसान पड़ा था बस गरम लू ही थी जो साय साय करते हुवे कहर ढा रही थी मैं आस लगा रहा था कि कुछ साधन मिल जाए तो सफ़र आसान हो जाए पर आज इस राह का मैं एक्लोता मुसाफिर ही था
अपने धीमे कदमो से मैं उस कच्चे रास्ते पर चलता ही जा रहा था पर अब मेरे पैर जवाब देने लगे थे मैने सोचा कि कही मैने ग़लत रास्ता तो नही पकड़ लिया कोई नक्शा भी नही था मेरे पास उपर से थकान से बुरा हाल था तो सोचा कि कुछ देर आराम ही करलू तो एक खेत के पास नीम की छाँव मे बैठ गया छाँव मिली तो शरीर भी कुछ सुस्त हुआ और ना जाने कब मेरी आँख लग गयी पता नही कितनी देर मैं पेड़ के नीचे सोता रहा
आँख तब खुली जब किसी ने मुझे आवाज़ दी ओ शहरी बाबू कॉन हो तुम और मेरे खेत मे क्या कर रहे हो अपनी आखे मलते हुए मैने देखा कि कोई गाँव की औरत है सांवला सा रंग तीखे नैन-नक्श उमर कोई 33-34 होगी पर बेहद ही कसा हुवा जिस्म था उसका मैं उसको देखते ही रह गया पलके झपकाना भूल गया तो वो बोली बाबू जी कहाँ खो गये मैने सकपकाते हुवे अपना थूक गटका और काँपते हुवे लहजे मे कहा कि जी मुसाफिर हूँ थोड़ा सा थक गया था तो सोचा कि पेड़ के नीचे बैठ जाउ पता नही चला कि कब आँख लग गयी माफी चाहता हूँ
वो बोली कोई बात नही बाबू
मैने कहा कि जी मुझे अर्जुनगढ़ जाना है आप बता सकती है कि वो गाँव कितना दूर है तो वो बोली बाबू तुम गाँव के किनारे पर ही हो बस कोई 1 कोस और रह गया है मैं भी अर्जुनगढ़ की ही हू और ये मेरे खेत है यहाँ पर मैने अपना सामान उठाया और उसको कहा कि जी बड़ी प्यास लगी है
यहाँ पानी मिलेगा क्या तो वो बोली कि थोड़ी दूर कुआँ है आओ पानी पिलाती हू तो मैं उसके पीछे पीछे चल पड़ा उसने बाल्टी कुवे मे डाली और मुझे पानी पिलाने लगी ऐसा ठंडा पानी था उस कुवे का मैं तो फ्रिड्ज के पानी को भूल गया कुछ पलो के लिए मैं जैसे अपने आप को भूल ही गया तो उस औरत ने फिर से मुझे वर्तमान मे लाते हुवे कहा कि बाबू पानी पियो ध्यान कहाँ है तुम्हारा तो मैं पानी पीने लगा जी भर कर पिया मैने
मैने उसको धन्यवाद किया और अपने सामान को संभालते हुवे चलने लगा तो उसने कहा बाबू मैं भी गाँव मे ही जा रही हू आओ तुमको छोड़ देती हू तो मैं उसके पीछे पीछे चल पड़ा कुछ दूर आगे आने पर उसने पूछा कि बाबू गाँव मे किसके घर जाओगे तो मैने कहा कि जी मुझे ठाकुर यूधवीर सिंग की हवेली पे जाना है तो ये सुनते ही उस औरत ने अपने सर पर जो घास का गट्ठर उठाया हुवा था वो उसके सर से नीचे गिर गया