hotaks444
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दिल दोस्ती और दारू
दोस्तो आप भी सोच रहे होंगे कि ये कैसा नाम है इस कहानी का तो दोस्तो किसी शायर ने क्या खूब कहा है कि "आशिक़ बन कर अपनी ज़िंदगी बर्बाद मत करना......" लेकिन समय के साथ साथ बर्बादी तो तय है, जो मैने खुद चुनी....मैने वो सब कुछ किया ,जिसके ज़रिए मैं खुद को बर्बाद कर सकता था, और रही सही कसर मेरे अहंकार ने पूरी कर दी थी...अपनी ज़िंदगी के सबसे अहम 4 साल बर्बाद करने के बाद मैं आज इस मुकाम पर था कि अब कोई भी मुकाम हासिल नही किया जा सकता, पापा चाहते थे कि मैं भी अपने बड़े भाई की तरह पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जाऊं...लेकिन मैने अपनी ज़िंदगी के उन अहम समय मे जब मैं कुछ कर सकता था, मैने यूँ ही बर्बाद कर दिया, घरवाले नाराज़ हुए, तो मैने सोचा कि थोड़े दिन नाराज़ रहेंगे बाद मे सब ठीक हो जाएगा....लेकिन कुछ भी ठीक नही हुआ, सबके ताने दिन ब दिन बढ़ने लगे...बर्बाद ,नकारा कहकर बुलाते थे सभी मुझे घर मे...और एक दिन तंग आकर मैं घर से निकल गया और नागपुर आ गया अपने एक दोस्त के पास, नागपुर आने से पहले सुनने मे आया था कि मेरा बड़ा भाई विपेन्द्र विदेश जाने वाला है, और उसके साथ शायद मोम डॅड भी जाएँगे....लेकिन मुझे किसी ने नही पुछा...शायद वो मुझे यही छोड़ जाने के प्लान मे थे...खैर मुझे खुद फरक नही पड़ता इस बात से,और आज मुझे नागपुर आए हुए लगभग 2 महीने से उपर हो चुके है, मेरा भाई विदेश गया कि नही, मेरे माँ-बाप विदेश गये कि नही , ये सब मुझे कुछ नही पता और ना ही मैने इन दो महीनो मे कभी जानने की कोशिश की और जहाँ तक मेरा अंदाज़ा था वो लोग मुझे मरा मानकर शायद हमेशा के लिए मेरे बड़े भाई के साथ विदेश चले गये होंगे
दोस्तो आप भी सोच रहे होंगे कि ये कैसा नाम है इस कहानी का तो दोस्तो किसी शायर ने क्या खूब कहा है कि "आशिक़ बन कर अपनी ज़िंदगी बर्बाद मत करना......" लेकिन समय के साथ साथ बर्बादी तो तय है, जो मैने खुद चुनी....मैने वो सब कुछ किया ,जिसके ज़रिए मैं खुद को बर्बाद कर सकता था, और रही सही कसर मेरे अहंकार ने पूरी कर दी थी...अपनी ज़िंदगी के सबसे अहम 4 साल बर्बाद करने के बाद मैं आज इस मुकाम पर था कि अब कोई भी मुकाम हासिल नही किया जा सकता, पापा चाहते थे कि मैं भी अपने बड़े भाई की तरह पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जाऊं...लेकिन मैने अपनी ज़िंदगी के उन अहम समय मे जब मैं कुछ कर सकता था, मैने यूँ ही बर्बाद कर दिया, घरवाले नाराज़ हुए, तो मैने सोचा कि थोड़े दिन नाराज़ रहेंगे बाद मे सब ठीक हो जाएगा....लेकिन कुछ भी ठीक नही हुआ, सबके ताने दिन ब दिन बढ़ने लगे...बर्बाद ,नकारा कहकर बुलाते थे सभी मुझे घर मे...और एक दिन तंग आकर मैं घर से निकल गया और नागपुर आ गया अपने एक दोस्त के पास, नागपुर आने से पहले सुनने मे आया था कि मेरा बड़ा भाई विपेन्द्र विदेश जाने वाला है, और उसके साथ शायद मोम डॅड भी जाएँगे....लेकिन मुझे किसी ने नही पुछा...शायद वो मुझे यही छोड़ जाने के प्लान मे थे...खैर मुझे खुद फरक नही पड़ता इस बात से,और आज मुझे नागपुर आए हुए लगभग 2 महीने से उपर हो चुके है, मेरा भाई विदेश गया कि नही, मेरे माँ-बाप विदेश गये कि नही , ये सब मुझे कुछ नही पता और ना ही मैने इन दो महीनो मे कभी जानने की कोशिश की और जहाँ तक मेरा अंदाज़ा था वो लोग मुझे मरा मानकर शायद हमेशा के लिए मेरे बड़े भाई के साथ विदेश चले गये होंगे