hotaks444
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"प्यारे नंदोई जी,
सदा सुहागिन रहो, दूधो नहाओ, पूतो फलो।
अगर तुम चाहते हो कि मैं इस होली में तुम्हारे साथ आके तुम्हारे मायके में होली खेलूं तो तुम मुझे मेरे मायके से आके ले जाओ। हाँ और साथ में अपनी मेरी बहनों, भाभियों के साथ… हाँ ये बात जरूर है कि वो होली के मौके पे ऐसा डालेंगी, ऐसा डालेंगी जैसा आज तक तुमने कभी डलवाया नहीं होगा।
माना कि तुम्हें बचपन से डलवाने का शौक है, तेरे ऐसे चिकने लौंडे के सारे लौंडेबाज दीवाने हैं और तुम ‘वो वो’ हलब्बी हथियार हँस के ले लेते हो जिसे लेने में चार-चार बच्चों की माँ को भी पसीना छूटता है… लेकिन मैं गारंटी के साथ कह सकती हूँ कि तुम्हारी भी ऐसी की तैसी हो जायेगी। हे कहीं सोच के ही तो नहीं फट गई… अरे डरो नहीं, गुलाबी गालों वाली सालियां, मस्त मदमाती, गदराई गुदाज मेरी भाभियां सब बेताब हैं और… उर्मी भी…”
भाभी की चिट्ठी में दावतनामा भी था और चैलेंज भी, मैं कौन होता था रुकने वाला, चल दिया उनके गाँव। अबकी होली की छुट्टियां भी लंबी थी।
पिछले साल मैंने कितना प्लान बनाया था, भाभी की पहली होली पे… पर मेरे सेमेस्टर के इम्तिहान और फिर उनके यहाँ की रश्म भी कि भाभी की पहली होली, उनके मायके में ही होगी। भैया गए थे पर मैं… अबकी मैं किसी हाल में उन्हें छोड़ने वाला नहीं था।
भाभी मेरी न सिर्फ एकलौती भाभी थीं बल्कि सबसे क्लोज दोस्त भी थीं, कान्फिडेंट भी। भैया तो मुझसे काफी बड़े थे, लेकिन भाभी एक दो साल ही बड़ी रही होंगी। और मेरे अलावा उनका कोई सगा रिश्तेदार था भी नहीं। बस में बैठे-बैठे मुझे फिर भाभी की चिट्ठी की याद आ गई।
उन्होंने ये भी लिखा था कि- “कपड़ों की तुम चिंता मत करना, चड्डी बनियान की हमारी तुम्हारी नाप तो एक ही है और उससे ज्यादा ससुराल में, वो भी होली में तुम्हें कोई पहनने नहीं देगा…”
बात उनकी एकदम सही थी, ब्रा और पैंटी से लेके केयर-फ्री तक खरीदने हम साथ जाते थे या मैं ही ले आता था और एक से एक सेक्सी। एकाध बार तो वो चिढ़ा के कहतीं-
“लाला ले आये हो तो पहना भी दो अपने हाथ से…”
और मैं झेंप जाता। सिर्फ वो ही खुलीं हों ये बात नहीं, एक बार उन्होंने मेरे तकिये के नीचे से मस्तराम की किताबें पकड़ ली, और मैं डर गया।
लेकिन उन्होंने तो और कस के मुझे छेड़ा-
“लाला अब तुम लगता है जवान हो गए हो। लेकिन कब तक थ्योरी से काम चलाओगे, है कोई तुम्हारी नजर में। वैसे वो मेरी ननद भी एलवल वाली, मस्त माल है, (मेरी कजिन छोटी सिस्टर की ओर इशारा करके) कहो तो दिलवा दूं, वैसे भी वो बेचारी कैंडल से काम चलाती है, बाजार में कैंडल और बैंगन के दाम बढ़ रहे हैं… बोलो…”
और उसके बाद तो हम लोग न सिर्फ साथ-साथ मस्तराम पढ़ते बल्कि उसकी फंडिंग भी वही करतीं।
ढेर सारी बातें याद आ रही थीं, अबकी होली के लिए मैंने उन्हें एक कार्ड भेजा था, जिसमें उनकी फोटो के ऊपर गुलाल तो लगा ही था, एक मोटी पिचकारी शिश्न के शेप की। (यहाँ तक की उसके बेस पे मैंने बाल भी चिपका दिए) सीधे जाँघ के बीच में सेंटर कार्ड तो मैंने चिट्ठी के साथ भेज दिया लेकिन मुझे बाद में लगा कि शायद अबकी मैं सीमा लांघ गया पर उनका जवाब आया तो वो उससे भी दो हाथ आगे।
उन्होंने लिखा था कि- “माना कि तुम्हारे जादू के डंडे में बहुत रंग है, लेकिन तुम्हें मालूम है कि बिना रंग के ससुराल में साली सलहज को कैसे रंगा जाता है। अगर तुमने जवाब दे दिया तो मैं मान लूंगी कि तुम मेरे सच्चे देवर हो वरना समझूंगी कि अंधेरे में सासू जी से कुछ गड़बड़ हो गई थी…”
अब मेरी बारी थी। मैंने भी लिख भेजा- “हाँ भाभी, गाल को चूम के, चूची को मीज के और चूत को रगड़-रगड़ के चोद के…”
सदा सुहागिन रहो, दूधो नहाओ, पूतो फलो।
अगर तुम चाहते हो कि मैं इस होली में तुम्हारे साथ आके तुम्हारे मायके में होली खेलूं तो तुम मुझे मेरे मायके से आके ले जाओ। हाँ और साथ में अपनी मेरी बहनों, भाभियों के साथ… हाँ ये बात जरूर है कि वो होली के मौके पे ऐसा डालेंगी, ऐसा डालेंगी जैसा आज तक तुमने कभी डलवाया नहीं होगा।
माना कि तुम्हें बचपन से डलवाने का शौक है, तेरे ऐसे चिकने लौंडे के सारे लौंडेबाज दीवाने हैं और तुम ‘वो वो’ हलब्बी हथियार हँस के ले लेते हो जिसे लेने में चार-चार बच्चों की माँ को भी पसीना छूटता है… लेकिन मैं गारंटी के साथ कह सकती हूँ कि तुम्हारी भी ऐसी की तैसी हो जायेगी। हे कहीं सोच के ही तो नहीं फट गई… अरे डरो नहीं, गुलाबी गालों वाली सालियां, मस्त मदमाती, गदराई गुदाज मेरी भाभियां सब बेताब हैं और… उर्मी भी…”
भाभी की चिट्ठी में दावतनामा भी था और चैलेंज भी, मैं कौन होता था रुकने वाला, चल दिया उनके गाँव। अबकी होली की छुट्टियां भी लंबी थी।
पिछले साल मैंने कितना प्लान बनाया था, भाभी की पहली होली पे… पर मेरे सेमेस्टर के इम्तिहान और फिर उनके यहाँ की रश्म भी कि भाभी की पहली होली, उनके मायके में ही होगी। भैया गए थे पर मैं… अबकी मैं किसी हाल में उन्हें छोड़ने वाला नहीं था।
भाभी मेरी न सिर्फ एकलौती भाभी थीं बल्कि सबसे क्लोज दोस्त भी थीं, कान्फिडेंट भी। भैया तो मुझसे काफी बड़े थे, लेकिन भाभी एक दो साल ही बड़ी रही होंगी। और मेरे अलावा उनका कोई सगा रिश्तेदार था भी नहीं। बस में बैठे-बैठे मुझे फिर भाभी की चिट्ठी की याद आ गई।
उन्होंने ये भी लिखा था कि- “कपड़ों की तुम चिंता मत करना, चड्डी बनियान की हमारी तुम्हारी नाप तो एक ही है और उससे ज्यादा ससुराल में, वो भी होली में तुम्हें कोई पहनने नहीं देगा…”
बात उनकी एकदम सही थी, ब्रा और पैंटी से लेके केयर-फ्री तक खरीदने हम साथ जाते थे या मैं ही ले आता था और एक से एक सेक्सी। एकाध बार तो वो चिढ़ा के कहतीं-
“लाला ले आये हो तो पहना भी दो अपने हाथ से…”
और मैं झेंप जाता। सिर्फ वो ही खुलीं हों ये बात नहीं, एक बार उन्होंने मेरे तकिये के नीचे से मस्तराम की किताबें पकड़ ली, और मैं डर गया।
लेकिन उन्होंने तो और कस के मुझे छेड़ा-
“लाला अब तुम लगता है जवान हो गए हो। लेकिन कब तक थ्योरी से काम चलाओगे, है कोई तुम्हारी नजर में। वैसे वो मेरी ननद भी एलवल वाली, मस्त माल है, (मेरी कजिन छोटी सिस्टर की ओर इशारा करके) कहो तो दिलवा दूं, वैसे भी वो बेचारी कैंडल से काम चलाती है, बाजार में कैंडल और बैंगन के दाम बढ़ रहे हैं… बोलो…”
और उसके बाद तो हम लोग न सिर्फ साथ-साथ मस्तराम पढ़ते बल्कि उसकी फंडिंग भी वही करतीं।
ढेर सारी बातें याद आ रही थीं, अबकी होली के लिए मैंने उन्हें एक कार्ड भेजा था, जिसमें उनकी फोटो के ऊपर गुलाल तो लगा ही था, एक मोटी पिचकारी शिश्न के शेप की। (यहाँ तक की उसके बेस पे मैंने बाल भी चिपका दिए) सीधे जाँघ के बीच में सेंटर कार्ड तो मैंने चिट्ठी के साथ भेज दिया लेकिन मुझे बाद में लगा कि शायद अबकी मैं सीमा लांघ गया पर उनका जवाब आया तो वो उससे भी दो हाथ आगे।
उन्होंने लिखा था कि- “माना कि तुम्हारे जादू के डंडे में बहुत रंग है, लेकिन तुम्हें मालूम है कि बिना रंग के ससुराल में साली सलहज को कैसे रंगा जाता है। अगर तुमने जवाब दे दिया तो मैं मान लूंगी कि तुम मेरे सच्चे देवर हो वरना समझूंगी कि अंधेरे में सासू जी से कुछ गड़बड़ हो गई थी…”
अब मेरी बारी थी। मैंने भी लिख भेजा- “हाँ भाभी, गाल को चूम के, चूची को मीज के और चूत को रगड़-रगड़ के चोद के…”