hotaks444
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कुछ दिनो बाद उनका प्रेम घरवालो पर ज़ाहिर हुआ और काफ़ी समझहिशो के बाद भी दोनो प्रेमी अलग ना हुए .... दीप कम्मो को घर से भगा कर मुंबई ले आया और अपने अभिन्न मित्र जीत की मदद से सामान्य रोज़गार भी प्राप्त कर लिया परंतु जल्द ही भीषण ग़रीबी उन पर पुनः हावी होने लगी और इस बार दीप की डूबती नैया पार हुई .... एक मश - हूर नगर - सेठ की जवान विधवा बहू का साथ पाकर.
भरी जवानी में बेचारी दुखिया हो गयी थी .... फॅक्टरी के बाद पार्ट टाइम की कमाई में दीप उसके ससुर की कार ड्राइव करता था .... कुछ दिनो बाद ससुर साहेब भी हवा हो गये और अब उनकी जवान बहू ने सारा राज - पाट सम्हाल लिया.
कुछ कुद्रती हादसे और कुछ दीप की मर्दानगी .... मालकिन और नौकर का मिलन ऐसा हुआ जिसने मुंबई जैसे बड़े शहेर में दीप को हर तरह से स्थापित कर दिया.
मालकिन आज विदेशी कारोबार समहाल्ती हैं .... वे अपने साथ दीप को भी ले जाना चाहती थी परंतु वह अपनी पत्नी व नन्हे बच्चो से विमुख ना हो सका और अपने परिवार की खातिर उसने मालकिन की गान्ड पर भी लात मार दी.
वर्तमान में वह बहुत पैसे वाला है, उसकी काफ़ी जान पहचान है लेकिन उसके जीवन में प्रेम नही .... आज तक सिर्फ़ वासना उसके गले से लिपटी रही, कभी उसने भी अपनी अर्धांगनी कम्मो के साथ ऐसे हज़ार मन - भावन सपने देखे थे .... अपनी जवानी में वह ग़रीबी के चलते मजबूर था और आज जब उसके पास अथाह पैसा है तब अपनी पत्नी का साथ नही .... बाहरी जिस्म तो केवल उत्तेजित तंन की तपन मिटा सकते हैं परंतु आंतरिक प्रसन्नता का अनुभव एक बीवी या पेमिका ही प्रदान करवा सकती है.
यह पहली मर्तबा हुआ जब किसी स्त्री ने दीप की अवहेलना की, उसका तिरस्कार किया था और वह स्त्री कोई बाज़ारू नही उसकी अपनी कम्मो है .... यक़ीनन दीप उसके साथ ज़बरदस्ती कर सकता था, एक हक़ से लेकिन जो कार्य वह बीती अपनी पूरी जवानी में नही कर पाया .... तो अब कैसे मुमकिन होता.
आज से पहले जब भी उसने कम्मो के साथ सहवास की इक्षा जताई, उसकी पत्नी ने उसे कभी मना नही किया था .... भले ही वह बिस्तर पर निष्प्राण पड़ी रहती लेकिन अपने पति की आग्या का पालन करती आई थी .... स्वतः ही दीप का ध्यान कम्मो से हट कर अपनी छोटी बेटी निम्मी पर पहुच गया, जिसने अल्प समय में ही अपने पिता पर अपना सर्वस्व न्योछावर करना स्वीकार किया और भविश्य में भी करती रहेगी .... बिना किसी हिचकिचाहट व शंका के दीप का दिल इस बात की गवाही देने लगा और उसके होंठो पर मुस्कान फैलती चली गयी.
इन 2 - 3 दिनो में बाप - बेटी के दरमियाँ जो कुछ पाप घटित हुआ .... अब दीप ने उसमें अपना स्वार्थ क़ुबूल कर लिया और वह तंन के साथ मन से भी अपनी सग़ी बेटी का भोग लगाने को लालायित हो चला .... शायद यही वह चोट थी या इंतज़ार जिसमें उसे कम्मो की भी मज़ूरी मिल गयी थी.
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वहीं कम्मो मरणासन्न बिस्तर पर लेटी अपने आँसू बहा रही थी .... वह जानती थी आज उसने अपने पति का घोर अपमान किया है परंतु ऐसा करने को वह विवश थी .... अपने तंन से भी और मन से भी.
जिस वक़्त दीप ने उससे सहवास का आग्रह किया, वह प्रसन्नता से भर उठी थी .... उसने पल में निश्चय कर लिया था कि आज वह अपने पति को काम - क्रीड़ा का ऐसा जोहर दिखाएगी .... जिसकी दीप ने हमेशा से कल्पना की थी.
वह खुद भी अपनी उत्तेजना का हरसंभव मर्दन चाहती थी, उसे ललक थी एक घनघोर चुदाई की .... आज वह मर्ज़ी से अपने पति का विशाल लिंग भी चूस्ति और उसे अपनी स्पंदानशील योनि का रस्पान भी करवाती, उसके जिस्म में इतना ज्वर समा चुका था कि वह उसकी आग में अपने पति को स्वाहा कर देना चाहती थी परंतु ज्यों ही उसका ऊपरी धड़ नंगा हुआ वह बुरी तरह से काँप उठी .... कारण, उसके निच्छले धड़ का उसके अनुमान से कहीं ज़्यादा पतित हो जाना था.
उस वक़्त कम्मो की धधकति योनि से गाढ़े रस की धारा - प्रवाह नदी बह रही थी जबकि दीप ने उसे हर संसर्ग पर बेहद ठंडा पाया था .... यक़ीनन वह इस अप्रत्याशित बदलाव को झेल नही पाता और कम्मो का संपूर्ण भविष्य बेवजह ख़तरे में पड़ जाता .... कहीं दीप उसके चरित्र पर उंगली ना उठा दे, सोचने मात्र से उसके मश्तिश्क में अंजाने भय की स्थापना हो गयी और खुद - ब - खुद उसकी कामग्नी,
भरी जवानी में बेचारी दुखिया हो गयी थी .... फॅक्टरी के बाद पार्ट टाइम की कमाई में दीप उसके ससुर की कार ड्राइव करता था .... कुछ दिनो बाद ससुर साहेब भी हवा हो गये और अब उनकी जवान बहू ने सारा राज - पाट सम्हाल लिया.
कुछ कुद्रती हादसे और कुछ दीप की मर्दानगी .... मालकिन और नौकर का मिलन ऐसा हुआ जिसने मुंबई जैसे बड़े शहेर में दीप को हर तरह से स्थापित कर दिया.
मालकिन आज विदेशी कारोबार समहाल्ती हैं .... वे अपने साथ दीप को भी ले जाना चाहती थी परंतु वह अपनी पत्नी व नन्हे बच्चो से विमुख ना हो सका और अपने परिवार की खातिर उसने मालकिन की गान्ड पर भी लात मार दी.
वर्तमान में वह बहुत पैसे वाला है, उसकी काफ़ी जान पहचान है लेकिन उसके जीवन में प्रेम नही .... आज तक सिर्फ़ वासना उसके गले से लिपटी रही, कभी उसने भी अपनी अर्धांगनी कम्मो के साथ ऐसे हज़ार मन - भावन सपने देखे थे .... अपनी जवानी में वह ग़रीबी के चलते मजबूर था और आज जब उसके पास अथाह पैसा है तब अपनी पत्नी का साथ नही .... बाहरी जिस्म तो केवल उत्तेजित तंन की तपन मिटा सकते हैं परंतु आंतरिक प्रसन्नता का अनुभव एक बीवी या पेमिका ही प्रदान करवा सकती है.
यह पहली मर्तबा हुआ जब किसी स्त्री ने दीप की अवहेलना की, उसका तिरस्कार किया था और वह स्त्री कोई बाज़ारू नही उसकी अपनी कम्मो है .... यक़ीनन दीप उसके साथ ज़बरदस्ती कर सकता था, एक हक़ से लेकिन जो कार्य वह बीती अपनी पूरी जवानी में नही कर पाया .... तो अब कैसे मुमकिन होता.
आज से पहले जब भी उसने कम्मो के साथ सहवास की इक्षा जताई, उसकी पत्नी ने उसे कभी मना नही किया था .... भले ही वह बिस्तर पर निष्प्राण पड़ी रहती लेकिन अपने पति की आग्या का पालन करती आई थी .... स्वतः ही दीप का ध्यान कम्मो से हट कर अपनी छोटी बेटी निम्मी पर पहुच गया, जिसने अल्प समय में ही अपने पिता पर अपना सर्वस्व न्योछावर करना स्वीकार किया और भविश्य में भी करती रहेगी .... बिना किसी हिचकिचाहट व शंका के दीप का दिल इस बात की गवाही देने लगा और उसके होंठो पर मुस्कान फैलती चली गयी.
इन 2 - 3 दिनो में बाप - बेटी के दरमियाँ जो कुछ पाप घटित हुआ .... अब दीप ने उसमें अपना स्वार्थ क़ुबूल कर लिया और वह तंन के साथ मन से भी अपनी सग़ी बेटी का भोग लगाने को लालायित हो चला .... शायद यही वह चोट थी या इंतज़ार जिसमें उसे कम्मो की भी मज़ूरी मिल गयी थी.
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वहीं कम्मो मरणासन्न बिस्तर पर लेटी अपने आँसू बहा रही थी .... वह जानती थी आज उसने अपने पति का घोर अपमान किया है परंतु ऐसा करने को वह विवश थी .... अपने तंन से भी और मन से भी.
जिस वक़्त दीप ने उससे सहवास का आग्रह किया, वह प्रसन्नता से भर उठी थी .... उसने पल में निश्चय कर लिया था कि आज वह अपने पति को काम - क्रीड़ा का ऐसा जोहर दिखाएगी .... जिसकी दीप ने हमेशा से कल्पना की थी.
वह खुद भी अपनी उत्तेजना का हरसंभव मर्दन चाहती थी, उसे ललक थी एक घनघोर चुदाई की .... आज वह मर्ज़ी से अपने पति का विशाल लिंग भी चूस्ति और उसे अपनी स्पंदानशील योनि का रस्पान भी करवाती, उसके जिस्म में इतना ज्वर समा चुका था कि वह उसकी आग में अपने पति को स्वाहा कर देना चाहती थी परंतु ज्यों ही उसका ऊपरी धड़ नंगा हुआ वह बुरी तरह से काँप उठी .... कारण, उसके निच्छले धड़ का उसके अनुमान से कहीं ज़्यादा पतित हो जाना था.
उस वक़्त कम्मो की धधकति योनि से गाढ़े रस की धारा - प्रवाह नदी बह रही थी जबकि दीप ने उसे हर संसर्ग पर बेहद ठंडा पाया था .... यक़ीनन वह इस अप्रत्याशित बदलाव को झेल नही पाता और कम्मो का संपूर्ण भविष्य बेवजह ख़तरे में पड़ जाता .... कहीं दीप उसके चरित्र पर उंगली ना उठा दे, सोचने मात्र से उसके मश्तिश्क में अंजाने भय की स्थापना हो गयी और खुद - ब - खुद उसकी कामग्नी,