hotaks444
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दीप ने प्रथम झटके के उपरांत ही निम्मी की चूचियों पर अपने हाथो का क़ब्ज़ा जमाया और जिससे उनके बीच चल रहा चुंबन टूट गया "बेटी तकलीफ़ ज़्यादा हो, तो थोड़ी देर रुकु ?" उसने अगला धक्का मारने से पूर्व निम्मी की राय जान-नी चाही.
"डॅड !! मेरी पुसी की झिल्ली तो फॅट चुकी है फिर भी इतना दर्द क्यों हो रहा है ?" शरम-वश यह सवाल पुच्छने के पश्चात निम्मी का चेहरा वर्तमान से कहीं ज़्यादा लाल हो उठा. चूत की जगह पुसी शब्द का उच्चारण भी वह मुश्क़िल से कर पाई थी.
"तेरी पुसी को रेस्ट नही मिला तभी दर्द हो रहा होगा मगर तू फिकर ना कर, तेरे डॅडी के पास इस दर्द की बेहद सटीक दवा है" दीप की शैतानी मुस्कान जाग्रत हुई और अगले ही पल उसकी कमर ने दूसरा झटका खाया, जो पहले से कहीं ज़्यादा दर्दनाक और घातक था.
"आईईई मम्मी !! मर गयी" बेटी की चूत के साथ ही एक पिता ने उसके अनुमान की भी धज्जियाँ उड़ा दी और ताबड-तोड़ धक्को का सिलसिला चल निकला.
जल्द ही पिता का विशाल लंड बेटी की चूत के अंदर गहरा और गहरा जाने लगा. मोटे सुपाडे के कुच्छ जघन्य प्रहार तो सीधे निम्मी के गर्भाशय को छु रहे थे.
"अह्ह्ह्ह डॅडी !! अपनी बेटी पर कुच्छ तो रहम खाओ" निम्मी की सहेन-शक्ति जवाब देने लगी, रह-रह कर उसे लगता कहीं वह बेहोश ना हो जाए परंतु दीप तो जैसे वासना रूपी राक्षस बन चुका था.
वह पल भर को नही रुका, जवान चूत का सन्कीर्न मुख उसके लंड की चोटों से खुल चुका था. यौवन से भरपूर अपनी बेटी के गोल-मटोल मम्मे अपने कठोर हाथो में वह किसी गुब्बारे की तरह महसूस कर रहा था.
अत्यधिक पीड़ा व उत्तेजना में निम्मी अपना निचला होंठ दांतो में दबाए रीरियाती रही. उसकी चूत की कोमल फाँकें पिता के आक्रमणकारी लंड की मोटाई के कारण बुरी तारह फैल कर लंड को जकड़े हुए थी और जिस रफ़्तार से लॉडा उसकी चूत के अंदर-बाहर होता, उसे लग रहा था जैसे उसकी चूत का माँस भी लंड के साथ ही ताल से ताल मिला का खिंचता जा रहा हो.
लगातार होते घर्षण से जल्द ही चूत के अंदर रस की बहार उमड़ने लगी थी और जो अब कभी भी फूटने को तैयार थी, जैसे ही दीप ने अपना एक हाथ मम्मे से हटाकर उसका अंगूठा निम्मी के गुदा-द्वार के अंदर ठेलने का प्रयास किया, उसकी बेटी किसी भी अग्रिम-चेतावनिके झाड़ पड़ी.
"फाड़ दो !! और अंदर डॅडी और अंदर" रंडी में परिवर्तित दीप की बेटी के अंतिम लफ्ज़ यही थे.
निम्मी की चूत मन्त्रमुग्ध कर देने वाले स्खलन के सुखद एहसास मात्र से फॅट पड़ी और सुंकुचित हो कर इतना रस उगलती है, जिसे उसके पिता का विशाल लॉडा चूत के भीतर फसे होने के बावजूद भी बाहर निकलने से नही रोक पाता.
दीप के धक्को की रफ़्तार निरंतर जारी रही और वह कोशिश करता है कि इस बार अपनी बेटी को दो स्खलनो का सुख प्रदान कर सके. मन में ऐसा विचार आते ही उसके लंड की नसों में प्रचंड रक्त-स्ट्राव होने लगा और बेटी के चुचक की घुंडी मसलते हुए वह उसकी सोई कामवासना को दोबारा जगाने में जुट गया.
"ओह्ह्ह डॅड !! पूरे जानवर हो आप" निम्मी अपने पिता की चोदन क्षमता की कायल हो चुकी थी. कभी पिता का उसे लाड करना और फिर अचानक से दर्द देना. आज पहली बार उसने जाना था कि सेक्स में रिश्ते, मर्यादा, शरम इत्यादि का कोई महत्व नही. सर्वोपरि सिर्फ़ काम-वासना है.
"बड़ी जल्दी समझ गयी तू अपने डॅड को, खेर अभी हम दोनो ही जानवर हैं" दीप बोला. चूत के एक बार झाड़ जाने के उपरांत अन्द्रूनि मार्ग पर चिकनाई बढ़ गयी थी जिससे उसका लॉडा बिना किसी रोक-टोक के सीधे गहराई में चोट करने लगा था.
"हे हे !! मैं थोड़ी हू जानवर" निम्मी मुस्कुराइ, दीप को प्रसन्नता हुई बेटी की जघन्य पीड़ा ख़तम होने से.
"डॅड !! मेरी पुसी की झिल्ली तो फॅट चुकी है फिर भी इतना दर्द क्यों हो रहा है ?" शरम-वश यह सवाल पुच्छने के पश्चात निम्मी का चेहरा वर्तमान से कहीं ज़्यादा लाल हो उठा. चूत की जगह पुसी शब्द का उच्चारण भी वह मुश्क़िल से कर पाई थी.
"तेरी पुसी को रेस्ट नही मिला तभी दर्द हो रहा होगा मगर तू फिकर ना कर, तेरे डॅडी के पास इस दर्द की बेहद सटीक दवा है" दीप की शैतानी मुस्कान जाग्रत हुई और अगले ही पल उसकी कमर ने दूसरा झटका खाया, जो पहले से कहीं ज़्यादा दर्दनाक और घातक था.
"आईईई मम्मी !! मर गयी" बेटी की चूत के साथ ही एक पिता ने उसके अनुमान की भी धज्जियाँ उड़ा दी और ताबड-तोड़ धक्को का सिलसिला चल निकला.
जल्द ही पिता का विशाल लंड बेटी की चूत के अंदर गहरा और गहरा जाने लगा. मोटे सुपाडे के कुच्छ जघन्य प्रहार तो सीधे निम्मी के गर्भाशय को छु रहे थे.
"अह्ह्ह्ह डॅडी !! अपनी बेटी पर कुच्छ तो रहम खाओ" निम्मी की सहेन-शक्ति जवाब देने लगी, रह-रह कर उसे लगता कहीं वह बेहोश ना हो जाए परंतु दीप तो जैसे वासना रूपी राक्षस बन चुका था.
वह पल भर को नही रुका, जवान चूत का सन्कीर्न मुख उसके लंड की चोटों से खुल चुका था. यौवन से भरपूर अपनी बेटी के गोल-मटोल मम्मे अपने कठोर हाथो में वह किसी गुब्बारे की तरह महसूस कर रहा था.
अत्यधिक पीड़ा व उत्तेजना में निम्मी अपना निचला होंठ दांतो में दबाए रीरियाती रही. उसकी चूत की कोमल फाँकें पिता के आक्रमणकारी लंड की मोटाई के कारण बुरी तारह फैल कर लंड को जकड़े हुए थी और जिस रफ़्तार से लॉडा उसकी चूत के अंदर-बाहर होता, उसे लग रहा था जैसे उसकी चूत का माँस भी लंड के साथ ही ताल से ताल मिला का खिंचता जा रहा हो.
लगातार होते घर्षण से जल्द ही चूत के अंदर रस की बहार उमड़ने लगी थी और जो अब कभी भी फूटने को तैयार थी, जैसे ही दीप ने अपना एक हाथ मम्मे से हटाकर उसका अंगूठा निम्मी के गुदा-द्वार के अंदर ठेलने का प्रयास किया, उसकी बेटी किसी भी अग्रिम-चेतावनिके झाड़ पड़ी.
"फाड़ दो !! और अंदर डॅडी और अंदर" रंडी में परिवर्तित दीप की बेटी के अंतिम लफ्ज़ यही थे.
निम्मी की चूत मन्त्रमुग्ध कर देने वाले स्खलन के सुखद एहसास मात्र से फॅट पड़ी और सुंकुचित हो कर इतना रस उगलती है, जिसे उसके पिता का विशाल लॉडा चूत के भीतर फसे होने के बावजूद भी बाहर निकलने से नही रोक पाता.
दीप के धक्को की रफ़्तार निरंतर जारी रही और वह कोशिश करता है कि इस बार अपनी बेटी को दो स्खलनो का सुख प्रदान कर सके. मन में ऐसा विचार आते ही उसके लंड की नसों में प्रचंड रक्त-स्ट्राव होने लगा और बेटी के चुचक की घुंडी मसलते हुए वह उसकी सोई कामवासना को दोबारा जगाने में जुट गया.
"ओह्ह्ह डॅड !! पूरे जानवर हो आप" निम्मी अपने पिता की चोदन क्षमता की कायल हो चुकी थी. कभी पिता का उसे लाड करना और फिर अचानक से दर्द देना. आज पहली बार उसने जाना था कि सेक्स में रिश्ते, मर्यादा, शरम इत्यादि का कोई महत्व नही. सर्वोपरि सिर्फ़ काम-वासना है.
"बड़ी जल्दी समझ गयी तू अपने डॅड को, खेर अभी हम दोनो ही जानवर हैं" दीप बोला. चूत के एक बार झाड़ जाने के उपरांत अन्द्रूनि मार्ग पर चिकनाई बढ़ गयी थी जिससे उसका लॉडा बिना किसी रोक-टोक के सीधे गहराई में चोट करने लगा था.
"हे हे !! मैं थोड़ी हू जानवर" निम्मी मुस्कुराइ, दीप को प्रसन्नता हुई बेटी की जघन्य पीड़ा ख़तम होने से.