Porn Sex Kahani पापी परिवार - Page 26 - SexBaba
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Porn Sex Kahani पापी परिवार

दीप ने प्रथम झटके के उपरांत ही निम्मी की चूचियों पर अपने हाथो का क़ब्ज़ा जमाया और जिससे उनके बीच चल रहा चुंबन टूट गया "बेटी तकलीफ़ ज़्यादा हो, तो थोड़ी देर रुकु ?" उसने अगला धक्का मारने से पूर्व निम्मी की राय जान-नी चाही.


"डॅड !! मेरी पुसी की झिल्ली तो फॅट चुकी है फिर भी इतना दर्द क्यों हो रहा है ?" शरम-वश यह सवाल पुच्छने के पश्चात निम्मी का चेहरा वर्तमान से कहीं ज़्यादा लाल हो उठा. चूत की जगह पुसी शब्द का उच्चारण भी वह मुश्क़िल से कर पाई थी.


"तेरी पुसी को रेस्ट नही मिला तभी दर्द हो रहा होगा मगर तू फिकर ना कर, तेरे डॅडी के पास इस दर्द की बेहद सटीक दवा है" दीप की शैतानी मुस्कान जाग्रत हुई और अगले ही पल उसकी कमर ने दूसरा झटका खाया, जो पहले से कहीं ज़्यादा दर्दनाक और घातक था.


"आईईई मम्मी !! मर गयी" बेटी की चूत के साथ ही एक पिता ने उसके अनुमान की भी धज्जियाँ उड़ा दी और ताबड-तोड़ धक्को का सिलसिला चल निकला.


जल्द ही पिता का विशाल लंड बेटी की चूत के अंदर गहरा और गहरा जाने लगा. मोटे सुपाडे के कुच्छ जघन्य प्रहार तो सीधे निम्मी के गर्भाशय को छु रहे थे.


"अह्ह्ह्ह डॅडी !! अपनी बेटी पर कुच्छ तो रहम खाओ" निम्मी की सहेन-शक्ति जवाब देने लगी, रह-रह कर उसे लगता कहीं वह बेहोश ना हो जाए परंतु दीप तो जैसे वासना रूपी राक्षस बन चुका था.


वह पल भर को नही रुका, जवान चूत का सन्कीर्न मुख उसके लंड की चोटों से खुल चुका था. यौवन से भरपूर अपनी बेटी के गोल-मटोल मम्मे अपने कठोर हाथो में वह किसी गुब्बारे की तरह महसूस कर रहा था.


अत्यधिक पीड़ा व उत्तेजना में निम्मी अपना निचला होंठ दांतो में दबाए रीरियाती रही. उसकी चूत की कोमल फाँकें पिता के आक्रमणकारी लंड की मोटाई के कारण बुरी तारह फैल कर लंड को जकड़े हुए थी और जिस रफ़्तार से लॉडा उसकी चूत के अंदर-बाहर होता, उसे लग रहा था जैसे उसकी चूत का माँस भी लंड के साथ ही ताल से ताल मिला का खिंचता जा रहा हो.


लगातार होते घर्षण से जल्द ही चूत के अंदर रस की बहार उमड़ने लगी थी और जो अब कभी भी फूटने को तैयार थी, जैसे ही दीप ने अपना एक हाथ मम्मे से हटाकर उसका अंगूठा निम्मी के गुदा-द्वार के अंदर ठेलने का प्रयास किया, उसकी बेटी किसी भी अग्रिम-चेतावनिके झाड़ पड़ी.


"फाड़ दो !! और अंदर डॅडी और अंदर" रंडी में परिवर्तित दीप की बेटी के अंतिम लफ्ज़ यही थे.



निम्मी की चूत मन्त्रमुग्ध कर देने वाले स्खलन के सुखद एहसास मात्र से फॅट पड़ी और सुंकुचित हो कर इतना रस उगलती है, जिसे उसके पिता का विशाल लॉडा चूत के भीतर फसे होने के बावजूद भी बाहर निकलने से नही रोक पाता.


दीप के धक्को की रफ़्तार निरंतर जारी रही और वह कोशिश करता है कि इस बार अपनी बेटी को दो स्खलनो का सुख प्रदान कर सके. मन में ऐसा विचार आते ही उसके लंड की नसों में प्रचंड रक्त-स्ट्राव होने लगा और बेटी के चुचक की घुंडी मसलते हुए वह उसकी सोई कामवासना को दोबारा जगाने में जुट गया.


"ओह्ह्ह डॅड !! पूरे जानवर हो आप" निम्मी अपने पिता की चोदन क्षमता की कायल हो चुकी थी. कभी पिता का उसे लाड करना और फिर अचानक से दर्द देना. आज पहली बार उसने जाना था कि सेक्स में रिश्ते, मर्यादा, शरम इत्यादि का कोई महत्व नही. सर्वोपरि सिर्फ़ काम-वासना है.


"बड़ी जल्दी समझ गयी तू अपने डॅड को, खेर अभी हम दोनो ही जानवर हैं" दीप बोला. चूत के एक बार झाड़ जाने के उपरांत अन्द्रूनि मार्ग पर चिकनाई बढ़ गयी थी जिससे उसका लॉडा बिना किसी रोक-टोक के सीधे गहराई में चोट करने लगा था.


"हे हे !! मैं थोड़ी हू जानवर" निम्मी मुस्कुराइ, दीप को प्रसन्नता हुई बेटी की जघन्य पीड़ा ख़तम होने से.
 
"देख !! अभी तू आगे को झुकी हुई है और तेरे पिछे मैं तुझ पर झुका हुआ हूँ. हम दोनो ही चुदाई में मगन हैं, तो बता जानवर हुए या नही ?" दीप की बेशरम समीक्षा से हैरान निम्मी की आँखें बड़ी हो गयी "इसे डॉगी पोज़िशन कहते हैं !! भाओ-भाओ" वह हँसने लगा. यदि उसने खुद को कुत्ता कहा था तो निम्मी को भी कुतिया की उपाधि से नवाज़ा.


"जानवर के साथ पूरे पागल भी हो" उत्साह से परिपूर्ण निम्मी का मन और तंन खुशी से झूम रहा था, इतने आनंद की कल्पना उसने बीते जीवन में कभी नही की थी.


"हम ने अपना रिश्ता कलंकित किया है निम्मी मगर क्या तू इससे खुश है ?" दीप ने इस सवाल से अपनी बेटी के अंतर-मन की सोच जान-नी चाही और फॉरन निम्मी ने अपना सर हिला कर, हां में इसकी स्वीकृिती दे दी.


"डॅड !! मैं इस रिश्ते से बहुत खुश हूँ और आप फिकर ना करो, हम हमेशा दुनिया की नज़र में एक बाप-बेटी ही रहेंगे भले चाहे बंद कमरे में पति-पत्नी की तरह रहें" निम्मी ने ज़ाहिर किया कि वह अपने और अपने पिता के बीच चल रहे अनाचार को दुनिया की नज़र में कभी नही आने देगी और जब भी मौका मिलेगा दोनो खुल कर चुदाई किया करेंगे.


"बस मुझे तुझसे यही उम्मीद थी. हमे पूरा ख़याल रखना होगा, लोगो की नज़र में हमारा रिश्ता पाक-सॉफ ही बना रहे बाकी मैं तुझे एक पत्नी होने के सारे हक़ देता हूँ" दीप ने ऐलान किया.


चुदाई के बीच चल रहे इस कामुक वार्तालाप का यह नतीजा निकला कि दोनो बाप-बेटी अब सिर्फ़ काम-क्रीड़ा पर ही अपना ध्यान केंद्रित करने लगे.


पिच्छले आधे घंटे से दीप का मूसल लगातार बेटी की चूत के अंदर-बाहर हो रहा था और ज्यों ही पिता ने अपने धक्को की रफ़्तार में तेज़ी लाई, निम्मी की चूत का संवेदनशील भंगूर सूजने लगा.


"डॅड इस बार अंदर ही डिसचार्ज होना, मैं महसूस करना चाहती हू" अचानक से निम्मी के दिल में तमन्ना जागी.


"मगर क्या यह सेफ रहेगा ?" दीप खुद भी यही चाहता था मगर बेटी की पर्मिशन के बिना उसे ऐसा करने में दिक्कत थी और अगर वह निम्मी की चूत के अंदर अपना वीर्य-पात करता भी, तो भी थोड़ी देर पहले खिलाई गयी ई-पिल की गोली उसे अनचाहे गर्भ से मुक्त रखती.


"डॅड !! आप मुझे कभी हर्ट नही होने दोगे, मैं जानती हूँ. तो अंदर ही फिनिश कर दो" निम्मी की माँग के उपलक्ष में दीप ने इस खेल के अंतिम पड़ाव की तरफ प्रस्थान किया और गहरे धक्को के साथ जल्द ही बेटी को दोबारा चरम के शिखर पर पहुचाने का प्रयत्न करने लगा.


निम्मी की साँसें उसके कंट्रोल से बाहर होती हैं और गुदा-द्वार में उठती सिरहन के एहसास-मात्र से ही वह रस छोड़ना शुरू कर देती है "आह डॅड !! मैं गयी" वह चीखी और इस बार का ऑर्गॅज़म पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा आनंददाई था.


बेटी की चूत के गरम लावे ने दीप की टांगे कंप्वा दी और वह अपने सुपाडे को उसके गर्भाशय से सटाकर हौले-हौले वीर्य की दर्जनो धाराएँ अंदर उगलने लगा.


कुच्छ देर पश्चात बाथरूम में आया उत्तेजना का तूफान लगभग थम चुका था, दोनो बाप-बेटी के पापी मिलन का सबूत, निम्मी की जाँघो से बह कर नीचे फर्श से होते हुए, नाली के अंदर प्रवेश करने लगा.


दीप ने अपना लंड चूत से बाहर खींचा, अंदर तो जैसे रस का सैलाब भरा हुआ था. यक़ीनन दोनो ही पूर्ण-रूप से संतुष्ट हो चुके थे.


शवर का टॅप पकड़े झुकी निम्मी अब कहीं जा कर अपनी कमर सीधी कर पाई थी और जैसे ही वह खड़ी हुई, दीप ने फॉरन उसे पलटा कर अपने सीने से चिपका लिया.


"डॅड !! चाहो तो शवर बढ़ा दो" निम्मी ने अनुरोध किया. शवर के बढ़ते ही भर-भर करता पानी दोनो के तंन का मैल धोने में जुट गया मगर मन का क्या, अनाचार में लिप्त जो आज के बाद शायद कभी सॉफ नही हो पाना था.


निम्मी ने अपने पिता को नहलाया और दीप ने बेटी के अंग धोए और जल्द ही वे स्नान समाप्ति के पश्चात रेस्टरूम में दाखिल हो गये लेकिन अब भी कपड़ो के बंधन से आज़ाद थे.


दीप ने बिस्तर पर रखा अपना सेल उठाया, तो जाना उसके दोस्त जीत के 7 मिस कॉल्स थे और जिसे देखते ही उसकी सारी खुशी, मानो गम में तब्दील हो चुकी थी.



बेटी के साथ संपन्न हुई घमासान चुदाई की खुमारी छटने से पूर्व ही डीप का खुशनुमा चेहरा, गहेन चिंता में परिवर्तित होने लगा और वह सोच में पड़ा गया कि जीत को रिटर्न कॉल किया जाए या नही.


रह-रह के उसकी आँखों में दोस्त की बेटी तनवी की छिनाल मूरत उभरने लगती है और तत-पश्चात उसका ध्यान अपनी बेटी निम्मी के नग्न बदन में उलझ कर रह जाता है, जो वॉर्डरोब से अटॅच मिरर के सामने खड़ी, अपने गीले बाल सुलझा रही थी.


यह रमणीय दृश्य देख फॉरन दीप के मष्टिशक में तनवी जैसी औरत को लेकर कुच्छ विचार घर करने लगते हैं.


आख़िर क्यों उसे, उसके घर बहू बन कर नही आना चाहिए :-
 
यह रमणीय दृश्य देख फॉरन दीप के मष्टिशक में तनवी जैसी औरत को लेकर कुच्छ विचार घर करने लगते हैं.


आख़िर क्यों उसे, उसके घर बहू बन कर नही आना चाहिए :-


(1) उसकी पत्नी कम्मो बेहद सीधी एवं घरेलू महिला है व दिल की कमज़ोर भी और वह कभी नही चाहेगी, उसकी बहू उसका विश्वास तोड़े या परिवार की इज़्ज़त को सरे बाज़ार नीलाम करे.


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(2) बीमार रघु की देखभाल का जिम्मा भी तनवी को नही सौंपा जा सकता क्यों कि उसमें समर्पण की भावना नही है.


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(3) निकुंज के लिए लड़की उसके पिता ने ढूंढी है और यदि कल को कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो ज़िम्मेदार भी उसका पिता ही माना जाएगा.


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(4) बड़ी बेटी निक्की के भोलेपन और सभ्य विचार-धारा से तनवी का मेल खाना असंभव है.


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(5) शिवानी को दीप ने रघु के लिए पसंद किया क्यों कि वह उसे ठोक-बजा कर परख चुका था, उसके मन से भी और तंन से भी. भले शादी संपन्न होने के बाद वह तनवी की जेठानी कहलाती मगर इज़्ज़त उसे दो-कौड़ी की भी नसीब नही हो पानी थी.


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(6) 18 बरस की यौवन से भरपूर नारी उसकी छोटी बेटी निम्मी, किसी भी मर्द के होश उड़ा देने में सक्षम थी और सबसे बड़ी बात, स्वयं दीप का दिल भी उस पर पूर्ण-रूप से फिदा हो चुका था.


यक़ीनन निम्मी का चंचल स्वाभाव, शातिर तनवी से उसका मेल बढ़ने में मददगार साबित होता और इसके पश्चात तनवी, बाप-बेटी के बीच पनपे पापी प्यार को चुटकियों में समझ जाती या निम्मी को अपने सानिध्य में भी ले सकती है.


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(7) खुद दीप के उतावले-पन ने तनवी को उसके खुश-हाल घर का रास्ता दिखाया था और शायद वह उसे भविश्य में ब्लॅकमेल या सेक्स के लिए विवश भी कर सकती है.


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कुल मिला कर तनवी में उसे एक भी ऐसा पॉज़िटिव लक्षण नही दिखाई पड़ा जिससे वह उसे अपने घर की बहू बना सकता था और इन्ही विचारो के निष्कर्ष से दीप ने जीत को रिटर्न कॉल नही किया. मगर कभी ना कभी, कोई ना कोई एक्सक्यूस तो उसे देना ही पड़ेगा, जो बाद की बात थी.


"डॅड !! हम घर कब जाएँगे ?" बाल संवारने के पश्चात निम्मी ने अपने पिता को आवाज़ दी.


"क्यों !! घर पर कोई काम है क्या ?" दीप ने उल्टा उससे सवाल पुछा. नहाने के उपरांत उसकी बेटी की खूबसूरती में काफ़ी इज़ाफा हुआ था, घने काले बालो से अपनी दोनो चूचियाँ छुपाये वह बेहद कामुक नज़र आ रही थी.


"नही !! ऐसा तो कोई ख़ास काम नही" निम्मी ने लो वाय्स में जवाब दिया. इस वक़्त उसका पिता बिस्तर पर नंगा लेटा हुआ था नतिजन, वह खुद भी कपड़े पहनने में झिझक महसूस कर रही थी.


"तो फिर क्या बात है, बता मुझे ?" दीप ने दोबारा सवाल किया और बेटी की आँखों के सामने ही उसके नंगे बदन का चक्षु-चोदन करने लगा.


कामवासना से बिल्कुल मुक्त हो चुकी निम्मी को दीप द्वारा खुद को यूँ बेशर्मी से घूर्ना अत्यधिक लज्जा से भरने लगा. वह अपनी पलकें झुकाए इंतज़ार कर रही थी, कब उसे पिता की आग्या मिले और वह अपनी नंगी काया पर शील धारण कर पाए.


"तू कुच्छ परेशान दिख रही है, कोई दिक्कत है क्या ?" दीप मन ही मन मुस्कुरकर बोला. बेटी की लाज भरी अवस्था देख, उसे अद्भुत आनंद की प्राप्ति हो रही थी.


"ना .. नही तो डॅड" निम्मी के लफ़ज़ो में कंपन हुआ. दीप अब भी उसे देख रहा है या नही, चेक करने हेतु उसने अपनी पलकें ऊपर उठाई तो बुरी तरह शरमा गयी. उसका पिता एक-टक उसकी चूत की सुंदरता को निहार रहा था.


"डॅड !! प्लीज़ ऐसे मत देखो" आख़िर-कार निम्मी की ज़ुबान से निकल ही गया "मुझे शरम आ रही है" वह अपने होंठ चबाते हुए बोली.


माना सेक्स के दौरान वह पिता की नज़रो के सामने घंटो नग्न रही थी मगर इस वक़्त ना तो उनके बीच चुदाई चल रही थी और ना ही वह उत्तेजित थी. ऐसे में निम्मी का शर्मसार होना लाज़मी था.


"कैसी शरम बेटी ? मैं कुच्छ समझा नही" दीप ने बड़े भोलेपन से उत्तर दिया और अपनी आँखें बेटी के चेहरे से हटा कर, वापस उसके योनि प्रदेश पर गढ़ा दी.


निम्मी को काटो तो खून नही, वह प्रदर्शनी में रखे किसी पुल्टे के माफिक निष्प्राण होने की कगार पर थी जिसका मुआयना उसका दर्शक-रूपी पिता कर रहा था.


"बस करो डॅड !! मैं अब सह नही पाउन्गि" चूत में उठती सिरहन के वशीभूत निम्मी सिसक कर बोली "मैं कपड़े पहेन रही हूँ" इतना कह कर फॉरन उसने अपने वस्त्र समेटे और दौड़ती हुई बाथरूम में एंटर हो गयी.


"पागल" दीप के ठहाको से मानो पूरा रेस्टरूम गूँज उठा और साथ ही बाथरूम के दरवाज़े से सटी निम्मी भी खुद को मुस्कुराने से रोक ना पाई.


शाम के 5 बज चुके थे और दोनो बाप-बेटी समय के अंतराल से, अलग-अलग साधनो पर सवार हो कर घर के लिए प्रस्थान कर गये.
 
पापी परिवार--58



निम्मी को टॅक्सी हाइयर करवा कर दीप ने उसे खुद से पहले घर के लिए रवाना कर दिया और अपनी कार शिवानी के गर्ल'स हॉस्टिल की तरफ मोड़ ली, काफ़ी दिन बीत चुके थे होने वाली बड़ी बहू का दीदार किए. हॉस्टिल से कुच्छ 50 मीटर दूर उसने अपनी कार पार्क की और कॉल के ज़रिए शिवानी को बाहर आने का निमंत्रण दिया.


लगभग 10 मिनिट उपरांत शिवानी हॉस्टिल से बाहर निकली और सीधे अपने ससुर की कार में तशरीफ़ रख ली, वह खुद बेचैन थी दीप से मिलने को.


"अब याद आई आप को मेरी" पिता तुल्य ससुर के चेहरे को देखे बिना ही शिवानी ने शिक़ायत की. इस वक़्त उसने नारंगी सलवार-कुरती पहेन रखी थी और दीप के सम्मान हेतु सफेद दुपट्टे से अपना शीश ढँक रखा था.


"शिवानी !! मैं ज़रूरी काम में व्यस्त था, तभी तुमसे मिलने नही नही आ सका" दीप ने नॉर्मल टोन में उत्तर दिया "अभी यहाँ से गुज़र रहा था, सोचा मिलता चलु" कह कर उसने शिवानी के मायूस चेहरे पर अपनी नज़र डाली.


"पिता जी !! बहुत सताते हो आप हमे" फॉरन वा भावुक हो उठी और दीप के गले में बाहें डाल कर उसकी चौड़ी छाती से लिपट गयी.


"मेरी बहू की आँखों में आँसू अच्छे नही लगते" दीप ने उसकी पीठ पर सांत्वना की थपकी देते हुए कहा. शिवानी की पलकों से झड़े मोती निरंतर उसके ससुर का कंधा भिगो रहे थे और हिचकियाँ धड़कन की रफ़्तार को गति प्रदान कर रही थी.


"चुप हो जाओ शिवानी, कैसे बच्चो जैसे रोती हो" दीप ने उसे अपनी बाहों से प्रथक किया और उसके सुर्ख लाल गालो को अपने हाथो के दरमियाँ रख कर उसे प्यार से पुच्कारा.


"मुझे लगा !! आप मुझे भूल गये" शिवानी सिसकी "शरम-वश आप को कॉल भी नही पाई" अपनी कर्ज़रारी आँखों के जाम पिलाते हुए उसने दीप को मंत्रमुग्ध कर दिया था.


वह तनवी से ज़्यादा सुंदर व गौर-वरण नही थी मगर उसकी सादगी, उसका निर्मल स्वाभाव, हृदयस्पर्शी भोलापन इत्यादि ऐसे अन्य दर्ज़नो गुण थे जो उसे तनवी से बिल्कुल जुदा करते और तभी दीप ने उसे अपने बेटे रघु के लिए चुना था.


"ह्म्‍म्म !! शायद मैं तुम्हे भूल गया था" दीप ने अचानक वज्रपात किया और शिवानी का मूँह हैरत से खुला रह गया. उसे आशा ना थी, दीप इस तरह के वाक्य का प्रयोग भी कभी करेगा.


"मुझे याद थी तो सिर्फ़ मेरी प्रेमिका और होने वाली बहू, बाकी मैं किसी और शिवानी को नही जानता" वह मुस्कुराया. यह तो सिर्फ़ एक ज़रिया मात्र था अपनी प्रेयसी के चेहरे को और भी ज़्यादा खूबसूरत बनाने का.


शिवानी के होंठ फड़फड़ा उठे और अत्यधिक प्रसन्नता से अभिभूत उसने दीप के होंठो का हल्का सा, एहसास से भरपूर चुंबन ले लिया और फिर फॉरन अपने उतावलेपन पर लजा गयी.


"मन नही भरा हो तो मेरे ऑफीस चले, वहाँ जी भर कर प्यार कर लेना" दीप ने उसे छेड़ा और डराने के उद्देश्य से कार का सेल्फ़ स्टार्ट कर दिया.
 
"आप के लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकती हूँ पिता जी, फिर मेरा यह शरीर तो पहले से ही आप का गुलाम है. चलिए !! आप जहाँ ले जाना चाहें, मैं वहाँ चलने को तैयार हूँ" शिवानी के समर्पण को देख दीप गद-गद हो उठा, मन की आंतरिक खुशी ने उसे रघु के भविश्य की चिंता से मुक्त कर दिया था.


"गुलाम तुम मेरी नही बहू बल्कि मैं तुम्हारा हो गया हूँ. हमारा सौभाग्य है जो तुम जैसी मर्मस्पर्शी लड़की अपने सारे सुख छोड़, मेरे बीमार बेटे के दुख में शरीक होने उसकी पत्नी बन कर हमारे घर आ रही है" दीप के हर शब्द ने उसका दर्द बयान किया, हलाकि अब भी वह संतुष्ट नही था कि शिवानी रघु से शादी कर अपना भावी जीवन नष्ट कर ले, मगर कोई चारा भी तो नही था.


कुच्छ देर तक कार में सन्नाटे का आलम रहा और फिर शिवानी ने चुप्पी तोड़ी.


"नामिता से आप ने मेरे विषय में चर्चा की ?" शिवानी ने प्रश्न किया "और क्या मा जी लौट आई पुणे से ?" उसने पुछा.


"तुम्हारी सासू मा रघु को साथ ले कर कल ही लौटी हैं मगर नामिता से मैने तुम्हारे विषय में कोई बात नही की, पता नही उसे कैसे समझा पाउन्गा ?" मुद्दा अति-गंभीर था और दीप सोचने पर विवश, हलाकी वह कयि बार विचार-मग्न हुआ था किंतु अब तक किसी भी समाधान से पूर्ण वंचित.


"फिर कैसे होगा पिता जी ? मुझे भी कोई राह नज़र नही आ रही" शिवानी चिंतित लहजे में बोली "वह मेरी दोस्त है तो मुझे ऑर ज़्यादा घबराहट होती है" उसका धैर्य जवाब दे रहा था.


"नामिता के साथ मुझे तुम्हारे माता-पिता की फिकर भी सताती है बहू, बिना उनकी मर्ज़ी के शादी जैसा बड़ा फ़ैसला तुम अकेले कैसे ले सकती हो ?" दीप का मश्तिश्क उलझता जा रहा था.


"मेरे माता-पिता मुझसे नाराज़ हैं क्यों कि मैं उनसे लड़-झगड़ कर मुंबई आई थी और घर की दहलीज़ लाँघने से पूर्व उन्होने मुझे सूचित भी किया कि मेरा वापस वहाँ लौटना वर्जित होगा. अब तो उनसे बात हुए भी लंबा असरा बीत गया, शायद वे मुझे भूल चुके हैं" अतीत की यादें ताज़ा करते हुए शिवानी ने दीप की एक मुश्क़िल तो हल कर दी लेकिन उससे भी कहीं बड़ी समस्या निम्मी के रूप में उनके सामने डट कर खड़ी थी और जिसके पार निकलना वाकाई आसान नही था.
 
"परेशान ना हो बहू !! मैं जल्द ही कोई ना कोई रास्ता निकाल लूँगा, बस तुम अपना ख़याल रखना" आश्वासन दे कर दीप ने उसके माथे का गहरा चुंबन लिया और विदाई स्वरूप 10 हज़ार उसके हाथ में रख कर वहाँ से चला गया.


सड़क पर मूक खड़ी शिवानी कभी उसकी कार को देखती तो कभी हाथ में पकड़ी रकम को.



अपने कमरे के बिस्तर पर लेटी निक्की आज बहुत खुश है, एक हाथ से भाई द्वारा तोहफे में मिली कर्ध्नी पकड़े और दूसरे से अपनी कुँवारी चूत सहलाती वह किसी सपने को सच होने जैसा महसूस करती है.


अत्यधिक प्रसन्नता में उसने दोपहर का खाना तक नही खाया था और सही मायने में उसकी भूक पेट से नीचे खिसक कर, उसकी चूत के अंदर समा चुकी थी.


"भाई का पेनिस कितना बड़ा है ?" पिच्छले 3 घंटे से वह इसके अलावा कुच्छ और सोच सकने में असमर्थ थी और जब-जब उसकी आँखों के सामने मास्टरबेट करते निकुंज की छवि उभरती, उसकी कुँवारी चूत से रति-रस का अखंड सैलाब उमड़ कर बाहर छलकने लगता.


अपने भाई के गाढ़े वीर्य का स्वाद और उसके लंड की मर्दानी मादक सुगंध को भुला पाना अब उसके बस में नही था और शायद वह भूलना भी नही चाहती थी.


"बेटी निक्की !! आजा चाइ पी ले" अचानक से उसके उत्साह में खलल करती उसकी मा की आवाज़, उसके कानो में गूँजी और घबरा कर, जैसे उसकी चोरी पड़की गयी हो. वह फॉरन बिस्तर पर उठ कर बैठ गयी.


"आ .. आई मॉम" उसने लड़खड़ाते स्वर में जवाब दिया और इसे निक्की के दिल ओ दिमाग़ में उसके माता-पिता का ख़ौफ़ ही माना जाएगा, जो बंद कमरे में भी उसने झटके से अपने लोवर को, शीघ्रता से अपनी कमर पर चढ़ा लिया था.


"मोम कब आई ?" अपनी साँसों की बढ़ी रफ़्तार को संहालते हुए उसने खुद से सवाल पुछा और दीवार घड़ी पर नज़र पड़ते ही वह दोबारा चौंक गयी "ओ तेरी !! 6 बज गये. यानी मैं 1 बजे से अब तक ..." इसके आगे का कथन उसे अधूरा ही छोड़ना पड़ा और लाज से उसका चेहरा लाल हो उठा.


"निक्की !! चाइ ठंडी हो रही है बेटी ?" कम्मो ने इस बार पुकारने के साथ ही, उसके कमरे के दरवाज़े पर दस्तक भी दी "बस मोम 2 मिनिट" संक्षेप में उत्तर देने के पश्चात निक्की बिजली की गति से बेड से नीचे उतरी और कर्ध्नी छुपाने के लिए उसने वॉर्डरोब खोला.


"कपड़े बदलू या नही ?" सुबह की ड्रेस उसने अब तक चेंज नही की थी और अब वक़्त भी नही था, जो वो चेंज कर पाती मगर गीली कच्छि का कपड़ा बिल्कुल उसकी चूत के मुख से चिपका हुआ था और इससे उसे अजीब सी फीलिंग महसूस हो रही थी "चाइ पी कर चेंज कर लूँगी" वह दौड़ती हुई कमरे से बाहर निकल गयी.


हॉल में उसकी मा और भाई निकुंज पहले से मौजूद थे, निक्की ने बिना कोई बात-चीत किए टेबल से अपनी चाइ का कप उठाया और वहीं खड़ी हो कर पीने लगी.


सुबह की वेशभूषा, बिखरे बाल, कपड़ो की सिलवटें, चेहरे पर बेचैनी अन्य ऐसे काई बदलाव थे जो रोज़ की अपेक्षा उसकी मा को उसमें नज़र आ रहे थे और तभी निक्की की आँखें अपनी मा की आँखों से जा टकराई.
 
"ये क्या है निक्की ?" कम्मो ने पुछा. हलाकी उसकी टोन एक दम नॉर्मल थी मगर अंजाने डर से जैसे निक्की को साँप सूंघ गया था.


"जब इंसान के दिल में चोर हो तो घूर्ने वाला हर शक्स उसे पोलीस वाला नज़र आता है" डरपोक निक्की की हालत पहले से पतली थी, तो फॉरन दिमाग़ ने भी उट-पटांग कयास लगाने शुरू कर दिए.


"कहीं गीली पैंटी का असर मेरे लोवर पर तो नही हुआ, जो मोम ने देख लिया हो ?" इतना सोचते ही निम्मी की गान्ड फॅट गयी. उस वक़्त चेक करने के लिए वह नीचे तो नही झुक सकती थी मगर धड़कते दिल के साथ उसने अपनी मा को ज़रूर देखा.


"बोल ना" कम्मो ने दोबारा वही सवाल दोहराया तो निम्मी श्योर हो गयी, उसकी मा ने उसे रंगे हाथो पकड़ लिया है.


निकुंज जो खुद भी वहीं मौजूद था. निक्की के सबसे क्लोज़ होने के नाते वह समझ गया, उसकी बहेन बे-फालतू में हड़बड़ा रही है और कहीं बेवकूफी में कम्मो के सामने कुच्छ उल्टा-सीधा ना बक दे "बेटा !! अभी तू सो कर उठी है ना ?" वह बीच में बोल पड़ा.


"ह .. हां भाई !! जस्ट अभी" निम्मी बुदबुदाई "तो पागल !! मोम भी तो वही पुच्छ रही हैं, जवाब क्यों नही देती ?" भाई ने मुस्कुरा कर कहा तो बेहन को भी आत्मबल मिला.


"थकान के कारण नींद आ गयी थी मोम" यह जवाब निक्की ने अपनी मा की ओर देखते हुए दिया और फिर जहाँ पुष्टि खुद निकुंज ने कर दी हो, तो कम्मो के लिए उसे मान जाना ही सर्वोपरि था.


"जा !! चाइ पी कर नहा लेना. देख कैसी गंदी हालत बना रखी है" कम्मो ने अपनी फिकर जाहिर की, माना पहले उसे भाई-बहेन पर अनुमानित शक़ था मगर निकुंज के प्रेम में पड़ कर वह बीते सभी हादसे भूक चुकी थी.


तीनो शाम की चाइ का लुफ्ट उठा रहे थे और तभी निम्मी का आगमन हुआ. आते ही वह सोफे पर, अपनी मा के बगल में ढेर हो गयी.


लगातार दो बार पिता से चुदने के पश्चात उसकी चूत पूरी तरह खुल चुकी थी और चलने में भी उसे हल्की-हल्की पीड़ा का अनुभव हो रहा था मगर चेहरे पर वह ऐसे भाव ला रही थी जैसे आज कॉलेज में उसने बहुत पढ़ाई की हो, बेहद थक़ गयी हो.


"मोम" बाहें कम्मो के गले में डाल, उसने मा के गाल का रसीला चुंबन लिया "मेरी चाइ कहाँ है ?" कह कर उसके आँचल में ही सुस्ताने लगी.


"तू इतना कब से पढ़ने लगी, जो इस कदर थक़ गयी ?" मा का हृदय था, तो कैसे उसे अपनी पुत्री पर प्यार ना आता. बेटी के बालो को सहलाते हुए उसने पुछा.


"नही मोम !! अब से मन लगा कर पढ़ूंगी और जो सब्जेक्ट मैने आज से स्टार्ट किया है, श्योर हूँ उसमे तो मुझे 100 आउट ऑफ 100 ही मिलेंगे" निम्मी मन ही मन मुस्कुराने लगी.


शाम बीती, रात आई और दीप को छोड़ कर घर के सारे सदस्य अपने-अपने कामो में व्यस्त हो चुके थे.
 
"चावला निवास" के समानांतर "रॉय विला" वह दूसरा घर है, जहाँ बाप-बेटी मनमर्ज़ी से अपने पवित्र रिश्ते को दाग-दार करने से नही चूकते और अभी दोपहर के 1 बजे वहाँ ऐसा ही आलम था.


महज एक छोटी सी पैंटी पहने तनवी, किचन में आटा गूँथ रही थी और उसके ठीक पिछे खड़ा उसका नग्न पिता जीत, अपनी पुत्री के स्तनो का बुरी तरह मर्दन कर रहा था.


"आहह डॅडी" तनवी अपने मम्मे निचोड़े जाने की तकलीफ़ से त्रस्त हो कर सिसकी "क्या इस तरह सीखोगे आटा गूंदना ?" पिता के विशाल लंड को अपने चूतडो की दरार में रगड़ता महसूस कर उसने भी अपनी गान्ड पिछे धकेलते हुए पुछा.


"और नही तो क्या !! कल को तू ससुराल चली जाएगी, फिर तो मुझे खुद ही आता गूंदना पड़ेगा ना. इस लिए अभी से प्रेक्टिस कर रहा हूँ" जीत ने बेटी की गोल मटोल चूचियों पर अपने हाथ की ग्रिप कसते हुए कहा और साथ ही तनवी की सुराही-दार गर्दन पर स्माल-स्माल एरॉटिक किस्सेस करने लगा.


"मेरे बूब्स को आटे का नाम देते हुए आप को शरम नही आ रही डॅडी ?" अपना चेहरा पिछे घुमा कर पिता के होंठो को चूमते हुए तनवी ने सवाल किया. काफ़ी देर से चल रही इस छेड़-छाड़ के नतीजन वह अति-कामुत्तेजित चुकी थी.


"अपनी बीवी से कैसी शरम ? मैं तो अभी उसकी गान्ड मारने वाला हूँ" जीत ज़ोरो से हंसते हुए बोला. उसका सख़्त लंड पैंटी के ऊपर से निरंतर ठोकर देते हुए बेटी के चूतडो की गहरी दरार में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा था. जैसे कच्छि उतारने से पूर्व ही उसे फाड़ कर, गान्ड के छेद में घुस जाएगा.


"अच्छा जी !! तो जाओ अपनी बीवी की गान्ड मारो, हम आप की बीवी थोड़े ही हैं ?" तनवी ने भी शरारत से कहा, गान्ड के अंदर लंड का स्वाद चखे उसे काफ़ी दिन बीत चुके थे और अपने पिता के मूँह से यह खुश-खबरी सुनते ही उसके गुदा-द्वार में सनसनी मचना शुरू हो चुकी थी.


"बीवी नही तो क्या हुआ, बीवी की सौतन तो है और यह सौतन मुझे मेरी बीवी से कहीं ज़्यादा मज़े देती है. सौतन मेडम !! बोलो मरवाओगी अपनी गान्ड ?" बेटी के मम्मो की तने निपल उखाड़ देने वाले अंदाज़ में खीचते हुए जीत ने पुछा.


"आई डॅडी" तनवी चीख उठी. पिता के इसी निर्दयी स्वाभाव की वह कायल थी और बेटी की पीड़ा को उसकी अनुमति मान लेना जीत की पुरानी आदत.


"मगर आपकी सौतन की एक शर्त है और वादे के पश्चात ही वह आप को अपनी गान्ड मारने देगी, वरना लंड हिला कर काम चला लो" तनवी ने माँग रखी और जीत ने फॉरन हां में अपनी स्वीकृति दे दी "बोल क्या शर्त है ?" अक्सर बेटी की शर्तें पिता को सेक्स का अनोखा मज़ा प्रदान किया करती थी और तभी वह इनकार नही कर पाया.


"मेरी गान्ड मारने के दौरान आप मेरे होने वाले ससुर को कॉल करोगे और यह शादी जल्दी हो सके ऐसा प्रयास भी" तनवी ने आँख मारी तो जीत भी मुस्कुराने लगा.


"मतलब तू अपनी आहें ससुर साहेब को सुनवाना चाहती है ?" जीत को ज़्यादा हैरत नही हुई, बेटी तनवी और दोस्त दीप के बीच चले ब्लोवजोब का व्रतांत वह सुन चुका था "और अपनी दर्द भरी चीखें भी डॅडी" वह जवाब में बोली.


जीत बेडरूम से सेल लेकर वापस लौटा तो देखा तनवी अपनी कच्छि उतार चुकी है और पिता की खातिर अपने चूतड़ कुच्छ ज़्यादा ही उभार रखें हैं.


पिता ने एक पल का समय नष्ट नही होने दिया और बेटी के ठीक पीछे फर्श पर बैठ कर उसके गुदाज़ चूतड़ चाटने लगा "डॅडी !! छेद को चाटो, ज़ोर-ज़ोर से" तनवी की बेशर्म माँगे बढ़ती जा रही थी.


हाथो के ज़ोर से चूतड़ के पाट विपरीत दिशा में फैलाते ही जीत गुदा-द्वार के घेरे पर अपनी लंबी जीभ, गोल-गोल आकृति में घुमाने लगा और इस अदभुत आनंद के प्रभाव से मचल कर, कामलूलोप तनवी के आटे से सने हाथ भी स्वतः उसकी चूत के होंठ मरोड़ने नीचे पहुच गये.


"उम्म्म" बेटी ने कामुक अंगड़ाई ली "डॅडी !! होंठो से चूसो वहाँ, दांतो से हौले-हौले काटो ना" अपनी चूत का सूजा भंगूर मसलती तनवी बिन पानी की मछली की तरह तड़प रही थी.


जीत ने कोई 10 मिनिट तक बेटी के गुदा-द्वार को अपने मूँह की मदद से मुलायम बनाया और इसी दौरान तनवी एक बार झाड़ चुकी थी.


"काफ़ी चिकना है. रहने दे मत चूस " तनवी की चूत का झड़ना ठीक जीत के लंड पर हुआ था तो बेटी द्वारा लंड चूसने की अश्लील गुज़ारिश जीत ने ठुकरा दी.
 
तत-पश्चात उसे फर्श पर घोड़ी बना कर जीत ने अपने दोस्त दीप को कॉल मिलाया और जैसे ही कॉल कनेक्ट हुआ "अहह" तनवी की चीख किचन में गूँज उठी. वजह, पिता ने पुरजोर ताक़त से एक ही झटके में अपना संपूर्ण लंड बेटी के गुदा-द्वार के अंदर पेल दिया था.


"उफ़फ्फ़ !! रुकना मत डॅडी, बस चोदो और सिर्फ़ चोदो" अत्यधिक पीड़ा महसूस करने के बावजूद तनवी ने ऐसा निवेदन किया और जीत ने ताबड़तोड़ झटको की झड़ी लगा दी.


यह चौथा कॉल था जो उसके दोस्त ने पिक नही किया और ऐसे ही सातवे ट्राइ के बाद जीत ने सेल छोड़ कर बेटी की गान्ड पर अपना ध्यान केंद्रित करने का फ़ैसला किया.


"ज़रूर तेरा ससुर भी कहीं चुदाई में व्यस्त होगा, फिकर ना कर मैं उससे बात कर लूँगा" हँसते हुए जीत ने बेटी के झूलते मम्मे पकड़ लिए और धक्को की रफ़्तार के साथ उन्हे दबाने लगा.


लंड की मोटाई सामान्य से अधिक होने के कारण तनवी की गान्ड का अन्द्रूनि माँस, बुरी तरह रगड़ खा रहा था और जिसके प्रभाव से कुच्छ ही क्षानो में जीत गुदा-द्वार के अंतिम छोर पर ही ढेर हो गया.




देर रात दीप घर पहुचने की जगह, वापस अपने ऑफीस लौट आया. प्रतिदिन की भाँति नशे में धुत्त परंतु आज तो उसके पाव कुच्छ ज़्यादा ही लड़खड़ा रहे हैं.


शायद तनवी रूपी टेन्षन से निजात पाने के लिए उसने जी भर कर शराब पी थी.


पूरे "चावला निवास" में अंधकार फैला हुआ है मगर कमरो में मौजूद हर शक्स नींद से कोसो दूर.


जहाँ कम्मो और निक्की, अपने बेटे व भाई के समक्ष जाने को मचल रहे थे वहीं बाथरूम में स्टूल पर बैठी निम्मी, अपनी फटी चूत के उपचार हेतु उसे गरम पानी से सेंक रही थी.


निकुंज ने शाम की चाइ के दौरान हुए तमाशे के मद्देनज़र, निक्की को फाइनल वॉर्निंग दी थी "अब से वह भूल कर भी उसके आस-पास नही मंडराएगी. घर में उन्हे खुद पर सैयम रखना होगा भले बाहर वे कुच्छ भी करें, कोई रोक-टोक नही रहेगी"


कम्मो अपने छोटे बेटे से मिलने को बहुत बेचैन थी लेकिन दीप अब तक घर लौट कर नही आया था. रिस्क लेना बेवकूफी होगी, यह सोच कर उसने अपनी इक्षा का त्याग किया और सोने की व्यर्थ कोशिशो में जुट गयी.


हलाकी वह रघु के बिल्कुल समीप लेटी थी मगर आत्म-ग्लानि के चलते उसने अपनी काम-अग्नि पर काबू कर रखा था.


निम्मी आज मस्त है, उसे ना तो अपने कमरे से बाहर जाना था ना ही किसी बात कर गम. वा अच्छे से जानती है, उसका चोदु पिता उस पर पूर्ण-रूप से लट्टू हो चुका है. देर-सवेर कैसे ना कैसे वा उसके विशाल लौडे का स्वाद चख़्ती ही रहेगी और फिर वर्तमान का कोटा तो पूरा हो ही चुका था.


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अगले दिन सुबह 5:30 बजे निकुंज के कमरे का गेट खुला और हाथ में एक पोलिबॅग थामे वह चुपके से घर के बाहर निकल गया.


उस वक़्त ना तो निक्की की आँख खुल पाई थी और ना ही कम्मो की.
 
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