Porn Sex Kahani पापी परिवार - Page 29 - SexBaba
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Porn Sex Kahani पापी परिवार

"आईईईईई !! चूस बेटा. पूरा चूस डाल अपनी आंटी को" हाहाकार करती नीमा ज़ोर से चीखती है. निकुंज की इस प्राणघातक क्रिया ने उसके रोंगटे खड़े कर दिए थे और वह मदहोशी में अपने नुकीले दांतो से अपने कोमल होंठ काटने लगी थी, उन्हें चबाने लगी थी.

अपनी यौवन से भरपूर आंटी की चूत को अपने होंठो के दरमियाँ ताक़त से भींचने के साथ ही निकुंज अपनी दोनो उंगलियों से उसकी सन्कीर्न परतें अत्यंत बेरहमी से चोदना शुरू कर देता है. वह अपनी लंबी लपलपाटी जीभ को नीमा के गीले ओर सुंगंधित छेद में पूरी गहराई तक ठेल रहा था और जो छेद के भीतर उमड़ते गाढ़े रस को खीचते हुए बाहर ला कर, उसके होंठो के सुपुर्द कर रही थी.

"उन्न्ह उन्न्ह" नीमा की आँखें नातियाने लगती हैं. वह पूर्व से ही बहुत ज़्यादा कामोउत्तेजित थी और अभी उसकी दोस्त का बेटा निकुंज मात्र अपनी जीभ और होंठो के इस्तेमाल से ही उसकी संकुचित चूत को और भी ज़्यादा कुलबुला रहा था. तो जब उसका विशाल लंड उसकी चूत में घुसेगा तब नीमा की क्या हालत होगी. वह यह सोच-सोच कर सिहर्ती जा रही थी.

निकुंज ने कहीं सुना था. एक निश्चित उम्र के पार निकलने के उपरांत भारतीय नारी अपनी चूत पर उगने वाले बालो की सफाई करना छोड़ देती है. या तो अपनी अधेड़ उम्र का ख़याल कर वह इसे उचित नही समझती या फिर अपनी काम-इक्षाओं के घटने की वहज से उसका ध्यान इस ओर नही जा पाता.

"मगर नीमा आंटी की चूत इस वक़्त बिल्कुल चिकनी है. ऐसा क्यों ?" चूत चाटने में व्यस्त निकुंज का मन इस बात पर भी विचार कर रहा था "उनके पति तो बरसो से विदेश में रह रहे हैं. लौट कर आते होंगे तो भी दोनो मिया-बीवियों के बीच संतुष्टि-पूर्वक चुदाई का होना संभव नही हो पाता होगा. फिर क्यों आंटी अपनी झान्टे बना कर रखती हैं. इन का कहीं और लफडा तो नही चल रहा. मों कह भी रही थी कि नीमा नॉर्मल नही है और मैं उसके जैसी नही बन सकती" निकुंज की सोच के घोड़े किसी भी नतीजे पर नही पहुच पाते हैं "मोम से ही पुछुन्गा और इसी बहाने उनके साथ वक़्त बिताने का मौका भी मिल जाएगा" ऐसा ख़याल मन में आते ही वह वापस चूत चूसने पर अपना ध्यान केंद्रित कर देता है.

"आंटी !! इतनी कोमल चूत तो मैने आज तक नही चूसी" तारीफ़ करने के बाद निकुंज उस गुलाबी चूत के ऊपर-नीचे, अंदर-बाहर, दाएँ-बाएँ लगभग हर जगह अपनी खुरदूरी जीभ को तेज़ी से रगड़ता है "चाट-ते हुए ऐसा लग रहा है जैसे मक्खन की टिकिया पर मैं अपनी जीभ घुमा रहा हूँ" वह चूत की फांको के ऊपर उभर आए भंगूर को हसरत भरी निगाहों से देख कर कहता है.

"ओह्ह्ह बेटा !! चूत तो हर औरत की एक-समान ही होती है बस रंग का अंतर उन्हे एक दूसरे से अलग करता है" निकुंज द्वारा मिली अपनी चूत की प्रशन्शा से नीमा गदगद हो उठी.

"निकुंज !! मैने तुम्हे बचपन से ले कर तुम्हारी जवानी तक बढ़ता देखा है. तुम्हे कभी पराया नही समझा, बेनाम रिश्ते की एक डोर हमारे बीच बँधी थी लेकिन आज हम दोनो वे सारी मर्यादें लाँघ कर बिल्कुल नंगे हैं, अभी तुम मेरी चूत चाट रहे हो, मैने भी कुच्छ देर पहले तुम्हारा लंड चूसा था. यह बात हमेशा याद रखना कि जिन रिश्तो के तुम सबसे ज़्यादा क्लोज़ होगे, उनके संग ऐसे पल बिताने से ज़्यादा मज़ा तुम्हे कहीं और नही मिल पाएगा. उसने जुड़ी हर चीज़, हर बात तुम्हे पसंद आएगी, अत्यधिक रोमांच महसूस होगा और शायद यही वह वजह है कि तुम्हारी आंटी की चूत तुम्हे अब तक की सबसे अच्छी चूत लगी" इतना कह कर नीमा चुप हो जाती है, उसके कथन में जो ग़ूढ रहस्य छुपा था वह निकुंज कयि दिनो से महसूस कर रहा था और उसे फॉरन समझ आ जाता है कि क्यों वह अपनी सग़ी मा और बहेन के बारे में सोच कर हर पल उत्तेजित बना रहता है मगर वह नीमा पर अपनी मंशा ज़ाहिर नही होने देता और सब कुच्छ भूल कर पुनः अपनी मंज़िल की ओर प्रस्थान कर लेता है.
 
"आप बहुत समझदार हो आंटी" बस इतना सा जवाब दे कर वह अपनी जीभ को नीमा की चूत की लकीर के ऊपरी हिस्से पर फेरने लगा. वह जानता था कि हर स्त्री का भज्नासा उसके चरम का केन्द्र-बिंदु होता है, इसके पश्चात ही वह किसी अनुभवी व्यक्ति की तरह उसके सूजे व मोटे भंगूर को अपनी जीभ से बड़ी कोमलता के साथ चाटने लगता है, उसे अविलंब छेड़ने लगता है और फॉरन सोफे पर नंगी बैठी उसकी आंटी अपने ह्रष्ट-पुष्ट चूतड़ हवा में उच्छालते हुए अपनी चूत उसके मूँह पर रगड़ने लगती है, अपनी चूत से उसका मूँह चोदने लगती है.


"तुम .. ओह्ह्ह हां .. तुम भी बहुत समझदार हो निकुंज !! मेरे बेटे समान हो, खेलो मेरे भंगूर से, खा जाओ उसे .. खा जाओ बेटे" निकुंज की जीभ का तरल स्पर्श, उसकी त्रिकन अपने अति-संवेदनशील भज्नासे पर झेलना नीमा के बस के बाहर हो गया और वह चिल्लाने लगती है. निकुंज को अपनी आंटी की आहों से कहीं ज़्यादा आनंद उनकी अश्लील बातें सुन कर आ रहा था, जिस में वे कथन तो ख़ासे पसंद आते जिस में माँ शब्द का जिकर होता.


"ज़रूर आंटी" चूत को चूम कर निकुंज ने कहा और फॉरन उसकी चुसाई बेहद प्रचंडता से करने लगता है. उसकी गीली जीभ से तर नीमा का मोटा एवं सूजा भंगूर चमक रहा था और निकुंज उसे अपने होंठो के बीच दबा कर चूसने में अपना संपूर्ण बल झोंक देता है, साथ ही चूत की चिपकी अती-संकीर्ण परतों के भीतर उसकी दोनो उंगलियाँ भी तेज़ी से अंदर बाहर होती जा रही थी.


"उफफफ्फ़ निकुंज !! बेटा .. मैं .. मैं झड़ने वाली हूँ, रुकना नही" नीमा के जिस्म में कपकपि दौड़ने लगी, चूत की गहराई में ऐन्ठन बढ़ने के प्रभाव से कामरस बहने की मात्रा में अचानक वृद्धि हो गयी और जिसका एक भी कतरा निकुंज व्यर्थ नही जाने दे रहा था. अपने एक हाथ से निकुंज का सर थामे व दूसरे से अपनी दाईं चूची की गुंडी मसलती हुई नीमा जल्द ही सोफे पर पसर जाती है.


"आहह निकुंज !! मैं गयी .. चूसो मुझे मेरे बेटे .. मेरे लाल चूस डालो" नीमा की गान्ड का छेद सिकुड गया, उसकी दोनो टांगे निकुंज की कमर से लिपट गयी और वह तेज़ी से झड़ने लगती है. उसके जिस्म में झटके लग रहे थे, अजीब सी खलबली मच गयी थी.


स्खलन-स्वरूप नीमा की चूत की फूली फांको से बाहर आती गाढ़े सुगंधित रस की लंबी-लंबी फुहारे सीधे निकुंज अपने कड़क होंठो के ज़रिए, सुड़ाक कर अपने गले से नीचे उतारता रहा. रस के स्वादिष्ट ज़ायके की प्रशन्शा तो वह पहले ही अपनी आंटी से कर चुका था और वह तब तक उसे तत्परता से चूस्ता है, चाट-ता है, जब तक चूत का बहाव पूरी तरह से रुक नही गया. अंत-तह निकुंज फर्श से उठ कर खड़ा हो जाता है.


सोफे पर अध-लेटी पड़ी नीमा की आँखों में अखंड सनुष्ति की खुशी झलक रही थी, शायद इससे बढ़िया और लंबा स्खलन आख़िरी बार अपने बीते जीवन में उसने तब मेशसूस किया था जब वह अपने पति से बिच्छाद रही थी. विदेश जाने से पूर्व का वह पूरा साप्ताह वे दोनो नंगे ही रहे थे और उस दौरान उन्होने जी भर कर अनगीनती चुदाई की थी.
 
"ओह्ह्ह निकुंज तुम कहाँ थे अब तक ?" अपनी हम्पाइ की परवाह किए बगैर नीमा ने अपनी बाहें फैला कर निकुंज से पुछा "मेरे बच्चे !! तूने तो अपनी आंटी का दिल जीत लिया है" बोल कर वह उसे अपने ऊपर खीच उसका पूरा चेहरा चूमने लगती है. स्वयं के यौवन का स्वाद उसे कतयि बुरा नही लगता.


"आंटी !! अभी मंज़िल तक नही पहुचा हूँ. अधूरा काम पूरा करने के बाद चाहे जितनी शब्बासी ले लूँगा" निकुंज ने मुस्कुरा कर कहा और उसका इशारा समझते ही नीमा अपना हाथ नीचे की दिशा में बढ़ा कर उसका विशाल खड़ा लंड पकड़ लेती है.


"अरे वाह !! यह तो बिल्कुल तैयार है" बोलते हुए नीमा की आँखों में चमक आ गयी थी. जाने कितने बरसो की प्यास से आज उसको पूरी तरह छुटकारा मिलने वाला था.


"तैयार कैसे ना होता !! अभी कुच्छ देर पहले ही तो मन भर कर गाढ़ी मलाई खाई है" बदले में निकुंज भी उसकी चूत को अपने हाथ के विकराल पंजे में भींच कर कहता है और दोनो के ठहाकों से पूरा अथितिकक्ष गूँज उठता है.


इसके पश्चात ही निकुंज नीमा को सोफे से उतार कर उसे पलटाता है और उसके दोनो घुटने मुड़वा कर वापस उसे सोफे पर चढ़वा देता है. अब नीमा के चूतड़ हवा में काफ़ी ऊपर उठे हुए हैं और निकुंज का लंड भी ठीक उनके समानांतर आ चुका था.


नीमा के मुड़े घुटनो के बीच अत्यधिक गॅप होने से उसके चुतडो की दरार काफ़ी हद तक खुली हुई थी. अचानक निकुंज की नज़रें अपनी आंटी के गुदा-द्वार पर पड़ती हैं और वह उस गहरे भूरे रंग के छिद्र की खूबसूरती निहारने से खुद को रोक नही पाता. निकुंज आगे को झुक कर अपनी नाक उससे सटा देता है और एक अजीब सी गंध फॉरन उसके टट्टो में उबाल ला देती है.


"न .. नही नही निकुंज !! वहाँ मत डालना बेटे" अपनी गान्ड के छेद पर होती हलचल महसूस करते ही नीमा की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है और कहीं निकुंज अपना मोटा लंड उस कुंवारे छेद में ना घुसेड दे, घबरा कर वह उसे टोक देती है.


"फिकर ना कीजिए आंटी !! मैं बस चेक रहा हूँ कि इस छेद का स्वाद कैसा होता है ?" निकुंज का जवाब सुन कर नीमा को तुरंत ही अपने बेटे विक्की की याद आ जाती है.


"जाने आज कल के बच्चो को क्या होता जा रहा है. एक मेरा बेटा है जो हमेशा मेरी गान्ड के छेद के पिछे पागल रहता है और अब यह निकुंज भी मगर ना तो मैने पहले कभी इसमें लंड डलवाया है और ना ही फ्यूचर में कभी डलवाउंगी. पता नही कितना दर्द होता होगा" वह सोच मग्न थी और तभी निकुंज की जीभ उसे अपने गुदा-द्वार पर रेंगती महसूस होती है.
 
"उफफफ्फ़ !! मान जाओ निकुंज" नीमा ने गुदगुदाते हुए कहा तो बदले में निकुंज उसे छेड़ने के उद्देश्य से वह छिद्र अपने कड़क होंठो की मदद से चूसने लगता है.


"आईईईई" एक बार फिर नीमा के जिस्म में कपकपि दौड़ गयी और वह निकुंज से रहम की मिन्नतें करने पर मजबूर हो जाती है.


"बस आंटी !! थोड़ी देर और. आप का आस होल तो कमाल का है." निकुंज रोमांच में भर कर कहता है. यकीन से परे की क्यों वह उस गंदे छेद को इतना आनंदतीरेक हो कर चाट रहा है वह खुद हैरान था. अजीब सी गंध, कसैला सा स्वाद और साथ ही उसकी गतिविधियों के प्रभाव से थिरकते उसकी आंटी के सुडोल चूतड़, कमरे में गूँजती उनकी दर्ज़नो सिसकियाँ. सब कुच्छ उसके बढ़ते कौतूहल के मुख्य विषय बनते जा रहे थे.


"ब.. बेटा !! मत सता अपनी आंटी को, मैं .. प.. पागल हो जाउन्गि" नीमा सोफे की दोनो पुष्ट को अपने हाथो में जाकड़ कर कहती है. उसकी चूत जो कुछ लम्हे पहले ही शांत हुई थी दोबारा कामरस से लबालब भर चुकी थी "झाड़ जाउन्गि निकुंज !! अब छोड़ .. छोड़ अपनी आंटी को. पेल दे अपना विशाल लंड मेरी चूत में" वह चीख कर उससे विनती करती है.


"ठीक है !! मगर अगली बार मैं आप की बिल्कुल नही सुनूँगा. जो मेरा मन चाहेगा, आप को भी वही करना होगा" नीमा से प्रण लेने हेतु निकुंज बोला "हां मेरे लाल !! जैसा तू कहेगा, तेरी आंटी वही करेगी. बस अब बुझा दे मेरी चूत की सारी अगन" अत्यंत सिहरन से काँपते नीमा के लफ्ज़ सुन कर निकुंज के चेहरे पर मुस्कान च्छा गयी, उसकी आंटी उसके इशारों पर नाचने जो लगी थी.


निकुंज अपना विकराल लंड जो तन कर उसके पेट से चिपका हुआ था, अपने दाहिने हाथ से पकड़ कर नीमा की चूत के गीले मुख पर उसका फूला सुपाडा रगड़ने लगता है और नीमा फॉरन उसके सुपाडे को राह दिखाने के उद्देश्य से अपनी टाँगो की जड़ को थोड़ा और चौड़ाती है, उसकी इस इस्थिति में उसकी चूत की सूजी फाँकें स्पष्ट-रूप से निकुंज की आँखों के सामने आ जाती हैं और वह उन फांकों के मध्य अपना सुपाडा पूरी तरह स्थापित कर लेता है.


"ओह्ह्ह निकुंज" नीमा ने अपने निचले होंठ को अपने दांतो के बीच भर लिया जब निकुंज के लंड का मोटा सुपाडा उसकी कोमल चूत के चीरे को फैलाते हुए उसके अंदर प्रवेश करता है. दोनो के जिस्म एक साथ झुलस उठते हैं, अनुमान लगाना कठिन है कि किसका बदन ज़्यादा तप रहा था.


"ह्म्म्म" नीमा सोफे की पुष्ट को अपने दोनो हाथो की मजबूती से पकड़ अपना होंठ चबती है. तत-पश्चात निकुंज भी अपनी कमर को झटके देना आरंभ कर देता है और धीरे धीरे उसका विशाल लंड चूत के अति-संकीर्ण चिपके मार्ग पर फिसल कर उसकी गहराई को नापने लगता है. चूत की कसी परतें तो जैसे स्वयं उसके लंड को जाकड़ रही थी और पिछे की ओर ज़ोर लगाती नीमा भी अपनी दोस्त के बेटे की मदद करते हुए अपनी तड़पति चूत लगातार उसके विशाल लंड पर धकेलने का प्रयत्न करती है.


"निकुंज तुम .. तुम बहुत अच्छे से कर रहे हो बेटे" नीमा की फूली सांसो के मद्देनज़र उसके अल्फ़ाज़ रुक रुक कर उसके गले से बाहर आते हैं "सच कहती हूँ, मेरी खुश-नसीबी है जो मुझे तुम्हारे विशाल लंड से चुदने का मौका मिला और मेरी तरह हर वह स्त्री यही कहेगी जो भविश्य में तुम्हारे मूसल को झेलेगी !! चोदो निकुंज .. फाड़ डालो अपनी आंटी की चूत को" उसका व्यभिचारपण अब खुल कर निकुंज से सामने आ चुका था.
 
अपनी आंटी द्वारा प्रशन्शा पाने के उपरांत स्वतः ही निकुंज के धक्को में काफ़ी कठोरता आ जाती है और वह तेज़ी से अपनी रफ़्तार बढ़ाते हुए उसकी चूत की सन्करि दीवारो को चीर कर अति-बलपूर्वक अपना विशाल लंड उसके भीतर ठोकता है, जिससे उसकी आंटी का सर सोफे के मुलायम गद्दे में धँस कर रह जाता है. वह करीब-करीब अपना संपूर्ण लंड उसकी सकुचाती चूत के अंदर ठेलने में सफल हो चुका था.


"उनह .. उनह" नीमा अपनी चूत पर पड़ते टातड़-तोड़ झटको के मनभावन प्रहारो से रीरिया सी जाती है. यह प्रथम अवसर था जब उसकी चूत ने इतनी बलिष्ठ वास्तु को अपने अंदर समेटा था और अब भी उसे लग रहा था जैसे उसकी चूत उसके मूँह समान बन कर लंड के सूजे सुपाडे को चूस्ति ही जा रही हो. भीतर गहराई में लंड का आकार उसे पहले से कहीं ज़्यादा फूलने का एहसास करवा रहा था और जल्द ही उसकी चूत पूरी तरह से भर कर अपने बच्चेदानी से वह निकुंज का सुपाडा बेहद तेज़ गति से टकराता महसूस करती है.


"तुम्हे .. तुम्हे मेरे मुताबिक चलने की कोई ज़रूरत नही निकुंज !! जैसे तुम्हारा मन चाहे वैसे तुम अपनी आंटी को चोद सकते हो" चूत के अंतिम छोर पर सुपाडा भिड़ाने के उपरांत अत्यधिक आनंद से ओत-प्रोत निकुंज का जिस्म गन्गना उठा था और कुच्छ पल को उसका पूरा शरीर वहीं अकड़ कर रह जाता है. नीमा तो स्वयं मस्ती के भंवर में गोते खा रही थी, उसे लगा जैसे निकुंज उसके चरम को पीड़ा समझ कर थम गया हो और वह फॉरन उसे टोक कर उसका उत्साह-वर्धन करते हुए अति-व्यग्रता से अपने चूतड़ पिछे की दिशा में धकेल अपनी सपंदानशील चूत अपनी दोस्त के बेटे के लंड से बिल्कुल चिपका देती है.


चुदाई के इस कामुक खेल की बागडोर हाथ में आते ही निकुंज अपना आधा लंड बहार खीच कर पुरज़ोर ताक़त से वापस उसे अंदर ठेल देता है. अधेड़ उमर होने के बावजूद नीमा की गीली चूत उसे लगातार और भी ज़्यादा कस्ति जाती महसूस हो रही थी और धीरे धीरे उसका हर धक्का चूत की जड़ तक पहुचते हुए उसका भाला नुमा सुपाडा ठीक उसकी आंटी की बच्चेदानी पर निर्मम चोट देने लगता है.


"फ़च्छ-फ़च्छ !! फ़च्छ-फ़च्छ" नीमा की ऐंठ-ती चूत की गहराई से गाढ़े रस का उदगम होना शुरू हुआ और निकुंज के मोटे एवं विशाल लंड के प्रचंड झटको से कुच्छ ही लम्हो में वह रस भहर छलक कर उसके टट्टो को भिगोने लगा जो नीमा के झुके होने की वजह से उसके सूजे भंगूर से निरंतर रगड़ खा रहे थे. नीमा की आहें हौले हौले अब चीख-पुकार में बदलती जा रही थी और उसके गोल मटोल स्तनो के तने चुचक हिलते हुए स्वयं उसके होंठो को छुने की व्यर्थ कोशिश कर रहे थे.


"उन्न्नह निकुंज !! रुकना नही बेटे .. मेरे लाल .. मैं दोबारा झड़ने वाली हूँ. ठोक अपना लंड अपनी आंटी की चूत में .. चोद डाल मुझे" चिल्लाने के साथ ही नीमा के जबड़े भिन्च जाते हैं और वह स्खलन के सुखद एहसास अपने चरमोत्कर्ष को पाने लगती है. उसकी आँखें पनिया गयी थी और उसके गुदा-द्वार में मंत्रमुग्ध कर देने वाली सनसनी मच रही थी. निकुंज के ताबड-तोड़ धक्के अब भी ज़ारी थे और नीमा के गरम कामरस की असहनीय जलन से पिघल कर उसके लंड का फूला सुपाडा भी गाढ़े वीर्य की बौछारे चूत की अनंत गहराई में उगलने लगता है.


"आह आंटी !! मैं भी" बस इतने से शब्द ही उस नौ जवान युवक के भर्राये गले से बाहर निकल पाते हैं और वह अपनी मा की सबसे अच्छी दोस्त अपनी नीमा आंटी की नंगी पीठ पर ढेर हो जाता है. दोनो के काँपते जिस्मो में अविस्मरणीय आनंद का संचार हो रहा था. अंत-तह खुद ब खुद नीमा की चूत सकुचाते हुए निकुंज के सूजे सुपाडे से सारा वीर्य निचोड़ कर दोनो के रस का मेल अपनी बच्चेदानी में क़ैद कर लेती है.
 
पापी परिवार--62




निकुंज अपने शरीर का पूरा भार अपनी नीमा आंटी की पीठ पर डाले ज़ोर-ज़ोर से हाँप रहा है, स्वयं नीमा अपनी चढ़ि सांसो को अंश मात्र भी काबू में नही कर पाई थी. दोनो के दिलों की बढ़ी धड़कने ताल से ताल मिला कर कोई नयी धुन बनाने की रिहर्सल में जुटी थी और उनके तंन और मन दोनो की असहनीय पीड़ा से वे अब पूर्णा रूप से मुक्त हो चुके थे.

दोनो नंगे प्राणियों के हालात जल्द ही सुधरे और निकुंज का विशाल लंड सिकुड कर नीमा की स्थिर चूत से खुद ब खुद बाहर आ गया, साथ ही चूत की गहराई में बचे दोनो के पापी संसर्ग का सबूत भी बह कर सोफे पर गिरने लगा.

"अब उठो भी निकुंज !! कितने भारी हो तुम, कम से कम अब तो अपनी आंटी पर रहम खाओ" नीमा ने टोका तो निकुंज उसके बदन से हट कर फर्श पर खड़ा हो जाता है और उसके बाद वह भी सोफे से नीचे उतर गयी.

"छोटा हो कर कितना भोला बॅन रहा है चाहे कुच्छ देर पहले सिर्फ़ शरारत ही शरारत की हों" नीमा बड़े लाड से निकुंज के शुषुप्त लंड को अपने हाथ की मुट्ठी में भींच कर उसे पुच्कार्ति है.

"आप ने ही इसकी यह हालत की है !! पहले अपने मूँह से और फिर अपनी चूत से" बदले में निकुंज भी हँसने लगता है.

दोनो अपनी-अपनी बातों में मशगूल थे और तभी निकुंज का सेल बजने लगा, उसने रिंग-टोन की आवाज़ आती दिशा में अपना सर घुमाया तो फॉरन उसे याद आ गया कि सोफे से कुच्छ दूर ज़मीन पर पड़े उसके लोवर में उसका सेल रखा हुआ है.

"एक मिनिट आंटी !! मेरा सेल मेरे लोवर में है" वह बोला तो नीमा ने उसके लंड को छोड़ दिया "मैं चाइ बना कर लाती हूँ, तुम रिलॅक्स करो" इतना कह कर वह नंगी ही किचन में चली जाती है.

"ह्म्‍म्म !! मुझे पता था घर से ही होगा" सेल की स्क्रीन पर आते नाम को देख कर निकुंज ने खुद से कहा.

"हेलो"

लाइन की दूसरी तरफ उसकी मा कम्मो थी.

"निकुंज !! कहाँ हो तुम और सुबह-सुबह अकेले बिना किसी को बाताय क्यों चले गये ?" कम्मो उसे डाँट-ते हुए बोली.

"वो मोम !! रात में मेरे जूनियर का कॉल आया था और हम दोनो अभी ऑफीस के एक इंपॉर्टेंट अधूरे प्रॉजेक्ट को पूरा करने में लगे हुए हैं. मैं कपड़े साथ लाया हूँ और अब यहीं से ऑफीस चला जाउन्गा" चतुर निकुंज बेहद सफाई से अपनी मा को झुटि कहानी सुना देता है.

"लेकिन बता कर तो जाता बेटे !! निक्की तैयार बैठी है पार्क जाने को और आज से तो मैं खुद तुम दोनो के साथ जाने वाली थी" कम्मो फिकर के साथ घर के हालात से भी उसे रूबरू करवाती है.

निकुंज :- "सॉरी मोम !! सब सो रहे थे तो मैने जगाया नही, कल से पक्का साथ चलेंगे. आप निक्की से कह दीजिए कि वह अपने कॉलेज चली जाए, काफ़ी दिनो से नही गयी"
 
"ठीक है कह दूँगी !! अगर वक़्त मिले तो लंच करने घर आ जाना वरना शाम तक भूखा बना रहेगा, बाहर तो तू कुच्छ खाने से रहा" कम्मो की आवाज़ में शुरू से अपने बेटे के लिए केर शामिल है और निकुंज भी स्पष्ट रूप से यह समझ रहा है. जब कि सच तो यह था अब कम्मो एक पल को भी निकुंज से दूर नही रह पा रही थी और उसकी लालसा-मई आँखें हमेशा अपने पुत्र को स्वयं के समीप देखने को तरसने लगी थी.

"कोशिश करूँगा मोम !! ओके रखता हूँ, लव यू" काफ़ी लंबे अरसे बाद निकुंज के मूँह से अपने लिए लव शब्द का उच्चारण सुन कर कम्मो का मन खुशी से झूम उठने को हुआ मगर सामने बैठी निक्की की वजह से वह खुद पर काबू कर लेती है "इंतज़ार करूँगी" बस इतना जवाब में कह कर वह मुस्कुरा दी.

"बेटा निकुंज !! इतनी मेहनत के बाद चाइ से बेटर दूध रहेगा, बोलो लाओ ?" अचानक नीमा किचन से चिल्लाती कर पुछ्ती है तो निकुंज के साथ उस जनाना आवाज़ के कुच्छ अंश कम्मो के कान से भी जा टकराते हैं और इसके पश्चात ही कॉल कट हो जाता है.

"उफ़फ्फ़ !! कहीं मोम ने ?" जहाँ आशंका से निकुंज घबरा गया "उम्म !! कॉन है ये निकुंज का जूनियर जिसके घर में मौजूद औरत की आवाज़ कुच्छ जानी-पहचानिसी लगी और फिर ऑफीस का प्रॉजेक्ट बनाने में कैसी मेहनत ?" वहीं कम्मो भी सोच में पड़ गयी.

"लो बेटा दूध पियो" नीमा किचन से बाहर आ कर कहती है "किसका कॉल था जो तुमने जवाब ही नही दिया ?" उसने पुच्छा.

"ऑफीस से था आंटी और मुझे निकलना होगा" निकुंज एक साँस में दूध का पूरा ग्लास खाली करते हुए झूठ बोलता है, उसे पता था उसकी नीमा आंटी स्वयं उसकी मा को कभी नही बताएँगी कि वा उनके घर आया था.

"इस हालत में ऑफीस जाओगे, रूको मैं अपने हाथो से तुम्हे नहला देती हूँ" नीमा ने उसके लोवर और टी-शर्ट की ओर इशारा किया. उसके कथन में बेहद कामुकता व्याप्त थी.

"फिर कभी नहा लूँगा आंटी और चाहो तो बदले में आप मेरे हाथो से नहा लेना" निकुंज मन मार कर कहता है. हलाकी नीचे पार्किंग में खड़ी उसकी कार में उसके ऑफीस वाले कपड़े पहले से मौजूद थे लेकिन फ्रेश होने के लिए अब वह अपने घर जाना चाहता था.

"हां क्यों नही बेटा !! मुझे बहुत खुशी होगी" इतना बोल कर नीमा उसकी बलिष्ठ नंगी छाति से लिपट जाती है और कुच्छ लम्हे के रसीले व गहरे चुंबन के उपरांत निकुंज फर्श पर बिखरे अपने कपड़े पहेन कर, अलविदा कहते हुए नीमा के फ्लॅट से बाहर निकल जाता है.
 
"वाकाई आज तो मज़ा आ गया !! यकीन नही होता कि अभी कुच्छ देर पहले मैने मोम की सबसे अच्छी दोस्त की चुदाई कर डाली. वैसे मानना पड़ेगा नीमा आंटी लाखो में एक है" कुच्छ ऐसा ही सोचते हुए निकुंज मल्टी की पार्किंग में पहुच जाता है.


"घर जा कर कोई फायदा तो नही लेकिन मोम का रिक्षन जानना भी ज़रूरी है. कहीं उन्हें शक ना हो गया हो कि मैं नीमा आंटी के घर आया था और यदि उन्हें शक हुआ होगा तो मेरे झूठ से वे बहुत दुखी हुई होंगी" गली के अंतिम छोर पर वह कार को मैन रोड की दिशा में मोड़ने लगता है के तभी सामने से चले आ रहे ऑटो में बैठे किसी जाने-पहचाने चेहरे से उसकी आँखों का जुड़ाव हुआ, उस चेहरे ने भी निकुंज को हैरत भरी निगाहो से घूरा और उसके अगले ही पल बाद उसकी कार उस ऑटो को क्रॉस कर जाती है.


"यह लड़की कौन थी ?" फॉरन निकुंज रियर-व्यू मिरर से पिछे देखता है मगर तब तक ऑटो उसी गली के अंदर मूड चुका था जिस गली से उसने अपनी कार मैन रोड पर टर्न की थी.


"मैने इस लड़की को कहीं देखा है और वह भी मुझे देख कर चौंक उठी थी मगर कहाँ देखा है याद नही आ रहा" कुच्छ देर तक निकुंज के मश्तिश्क में उस लड़की का चेहरा घूमता रहा और जब बहुत सोचने के बावजूद वह उसके बारे में कोई अनुमान नही लगा सका तो थक हार कर उसने सोचना ही छोड़ दिया.


"हुहन !! होगी कोई, मुझे क्या" वह अपनी बेवकूफी पर झुंझला कर कहता है "इस वक़्त मुझे मोम के बारे में सोचना चाहिए और मैं क्या यह फालतू की चीज़ो में खोया हुआ हूँ" अब निकुंज अपने बचाव के उपाए ढूँढने लगा था और लगभग 30 मिनिट का छोटा सा सफ़र तय करने के उपरांत वह अपने घर आ पहुचता है.


घर के बाहर कोई भी वेहिकल खड़ा ना देख निकुंज की घबराहट थोड़ी कम हुई "ह्म्म !! तो मोम अभी अकेली हैं" वह दबे पाव हॉल में प्रवेश करता है और शीघ्र ही अपने कमरे में घुस जाता है.


वहीं कम्मो अपने कमरे की सफाई कर रही थी जब निकुंज की कार घर के बाहर पार्क हुई और अपने पति को लौट कर आया समझ वह अपने काम में जुटी रहती है.


"लगता है हॉल में बैठ गये हैं" पति दीप के लिए चाइ बनाने के उद्देश्य से कम्मो अपने कमरे से बाहर निकली और रेलिंग से नीचे झाँक कर देखा "हॉल तो खाली है, कहीं निकुंज तो नही आ गया ?" ऐसा सोचते ही उसके कदम वहाँ ठहेर नही पाते और तेज़ी से सीढ़ियाँ उतर कर वह हॉल में चली आती है.


"निकुंज ही है" फ्रिड्ज से ठंडे पानी की बोतल और डाइनिंग टेबल से ग्लास उठा कर अत्यधिक प्रसन्नता से अभिभूत कम्मो बिना दरवाज़ा खटखटाए ही अपने पुत्र के कमरे में दाखिल हो गयी मगर अंदर का द्रश्य देखते ही उसका मश्तिश्क काम करना बंद कर देता है.


बेड की पुष्ट से अपनी पीठ टिकाए उसके बेटे निकुंज के जिस्म पर सिवाए उसकी फ्रेंची के कुच्छ और मौजूद ना था और वह उसे अपने माथे पर अपना हाथ रखे किसी गहेन सोच में डूबा हुआ नज़र आ रहा था.
 
कम्मो अधर में लटक गयी, कमरे के भीतर तो वह आ चुकी थी मगर क्या उसका वहाँ रुक जाना उचित होगा. आनन-फानन में वह खुद से सवाल करती है "अच्छा मौका है पागल !! अभी तेरा जवान बेटा अध-नंगा है. आगे बढ़ और ऐसा शो कर की जैसे तुझे उसकी इस अवस्था से कोई फ़र्क ही नही पड़ा हो" उसके अंतर्मंन ने फॉरन उसे जवाब दे दिया और अत्यंत तुरंत उसके थामे पैर वापस चलायमान हो जाते हैं.


यह जो हो रहा था सब निकुंज के प्लान मुताबिक था, अपने कमरे में आते ही सर्वप्रथम उसने फ्रेंची को छोड़ अपने सारे कपड़े उतार कर बाथरूम में पटक दिए थे और फिर बेड पर जा कर लेट गया था. उसकी मा उसके पास ज़रूर आएगी यह वह पहले से ही जानता था और आख़िरकार कमरे में होती खटपट से उसे अंदाज़ा हो जाता है कि कम्मो उसके समीप आ पहुँची है.


"क्या बात है निकुंज !! तू तो अपने दोस्त के साथ डाइरेक्ट ऑफीस निकलने वाला था" कम्मो ने अपने पुत्र को उसके कमरे में अपनी उपस्थिति से अवगत करवाया.


"आप कब आई मोम ?" निकुंज बड़ी ही स्थिरता से प्रश्न पुछ्ता है जैसे उसकी मा की आँखों के सामने उसका यूँ अध-नंगा होना उनकी दैनिक-दिनचर्या में शामिल हो.


"बस आती जा रही हूँ. खेर अच्छा हुआ जो तू घर आ गया अब नाश्ता कर के ऑफीस जाना, तेरी बहने भी खा कर अपने कॉलेज निकल गयी हैं. तेरे पापा का कॉल आया था कह रहे थे शाम तक लौट पाएँगे" बात को घुमा-फिरा कर तोड़-मरोड़ कर कम्मो अपना कथन पूरा करती और जिसका मात्र एक ही इशारा होता है "हम दोनो के अलावा घर पर कोई और मौजूद नही"


"आज मेरा मार्केट विज़िट है मोम तो जाउ या ना जाो कुच्छ फ़र्क नही पड़ने वाला" बोलते हुए निकुंज बेड के कोने से सेंटर की दिशा में खिसक गया "आप बैठो ना, खड़ी क्यों हो ?" अपने बेटे के नज़दीक आने के इंतज़ार में तो कम्मो कब्से तैयार खड़ी थी और मौका मिलते ही वह ठीक उसकी नंगी दाईं जाँघ से चिपक कर बिस्तर पर बैठ जाती है.


"ले .. ले पानी पी" निकुंज की जाँघ से खुद की कमर टच होते ही कम्मो का सम्पूर्न जिस्म थर्रा उठा और जो स्वयं निकुंज ने भी स्पष्ट रूप से महसूस किया मगर बिना कोई रिक्षन दिए वह चुप-चाप ग्लास अपने हाथ में पकड़ कर ठंडा पानी पीने लगता है.


"तो फिर आप ने क्या सोचा मोम !! आज से उन फॅशनबल अंडरगार्मेंट्स को पहेनना शुरू करोगी ना ?" अपनी मा को छेड़ते हुए निकुंज ने पुछा और जिसे सुन कर कम्मो सन्न रह गयी.




"बोलो ना मोम !! नीमा आंटी ने कितने प्यार से दिए हैं. आप पहनोगी ना उन्हें ?" अपनी मा का शर्म से सराबोर चेहरा देख निकुंज अपना वही प्रश्न दोहराता है.
 
"तू वह सब छोड़, ये बता नाश्ता अभी करेगा या बाद में ?" बात को टालने की कोशिश करते हुए कम्मो अपनी नज़र कमरे में रखी अन्य वस्तुओ से जोड़ कर बोली.


"नाश्ता कहीं भागा नही जा रहा मोम !! पहले आप मेरे सवाल का जवाब दो" निकुंज ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर अपनी मा का चेहरा अपनी ओर घुमाना चाहा मगर उसके काँपते हाथ ने कम्मो के बाएँ कंधे के पार निकालने से पहले ही अपना बल खो दिया और अपने बेटे का हाथ अपने कंधे पर मेशसूस कर कम्मो की आँखें कुच्छ पल के लिए बंद हो जाती हैं.


हलाकी यह सिर्फ़ एक साधारण से एहसास को जाग्रत कर देना वाला टच था लेकिन अभी वर्तमान के हालात बिल्कुल नॉर्मल नही थे और वे दोनो मा-बेटे भी इस बात से अंजान नही रहे थे.


"मोम !! मेरी तरफ देखो ना" नीमा की जम कर चुदाई करने के उपरांत पूर्व में जिस आतमविश्वास की निकुंज के अंदर कमी थी वह अब काफ़ी हद तक ख़तम हो चुकी थी और तभी कंधे से उपर उठते उसके हाथ की उंगालयों का कोमल स्पर्श कम्मो की गरदन को गुदगुदाने लगा था.


"मैने पहले कहा था ना कि मैं ...." कम्मो के भराए गले से बाहर आते बाकी के शब्द जैसे उसके मूँह में दफ़न हो कर रह जाते हैं और वह अपने बाएँ कान और अपनी लचीली गर्दन को आपस में चिपकते हुए अपने पुत्र के हाथ के विशाल पंजे को उनके दरमियाँ कस कर दबा लेती है.


"लेकिन मोम आप ने यह भी कहा था कि आप उन्हे पहनने की कोशिश ज़रूर करोगी" निकुंज अपने पंजे को और भी ज़्यादा लहरा कर कहता है तो खुद ब खुद उसकी इस सनसनाती क्रिया को रोकने के उद्देश्य से कम्मो उसके चेहरे की ओर देखने पर विवश हो जाती है.


"लेकिन अब मेरा मन बदल गया है" वह हौले से फुसफुसाई लेकिन चाह कर भी अपने बेटे की आँखों में झाँक नही पाती.


"आख़िर क्यों मोम !! कहीं आप यह तो नही सोच रही कि आप के इस सुडोल शरीर पर वे छोटे से अंडरगार्मेंट्स अड्जस्ट नही हो सकेंगे ?" निकुंज की फ्रेंची के अंदर उफान खाते उसके विशाल लंड की शुरूवाती अकड़ ने उसे अपनी सग़ी मा से यह अशीलता भरा प्रश्न पुच्छने पर विवश कर दिया. माना अब तक कम्मो ने अपनी आँखें उसकी टाँगो की जड़ से नही जोड़ी थी मगर वह कब तक खुद को रोक पाएगी, ऐसा निकुंज का तर्क था.


"चल हॅट पागल कहीं का !! क्या कोई बेटा अपनी मा के शरीर का इस तरह से आंकलन करता है ?" अत्यधिक लाज्वश कम्मो के गाल निकुंज के सवाल को सुन कर बेहद लाल हो उठे और स्वतः ही उसकी आँखें चोर दृष्टि से अपने बेटे की बालो से भरी नंगी छाति का छुप-छुप कर दीदार करने लगती हैं.


"मैने ग़लत क्या कहा मोम !! एक बार को वह ब्रा आप के बदन पर फिट हो सकती है मगर पैंटी नही हो पाएगी" कह कर निकुंज अपनी जाँघ को हौले-हौले हिलाते हुए अपनी मा की कमर पर उसका मामूली सा एहसास करवाता है जैसे संकेत कर रहा हो कि वाकाई में वह छोटी सी पैंटी उसकी मा की कमर पर नही चढ़ पाएगी.


"क्या ?" निकुंज के बेशरम अल्फ़ाज़ और निरंतर उसकी जाँघ की असहनीय सहलहट से विचलित कम्मो की अपलक आँखें जो उस वक़्त अपने पुत्र की लुभावनी छाति से टिकी थी फॉरन उसकी जाँघ पर पहुचने का लक्ष साधते हुए नीचे की दिशा में फिसलने लगती हैं मगर बे-ख़याली में शायद कम्मो यह भूल गयी थी कि मनुष्य के शारीरिक ढाँचे के हिसाब से उसके गुप्ताँग का क्रमांक उसकी जाँघ से पहले आता है और नतीजन एक मा की विस्मृत आँखें उसके सगे बेटे की फ्रेंची में उभरे उसके विशाल लंड के तंबू पर चिपक कर रह जाती हैं.


"उफफफ्फ़" लाख कोशिशो के बावजूद भी कम्मो के मूँह से दबी सिसकारी छूट पड़ी और अत्यंत कामुकता से अभिभूत वह मा अपनी चूत की अनंत गहराई में सिहरन की आनंदमयी ल़हेर दौड़ती महसूस करती है.


निकुंज की आँखों ने जब अपनी मा के चेहरे की बदलती आकृति को देखा तो काँपते हुए खुद ब खुद उसके विकराल लंड ने फ्रेंची के भीतर ठुमकना शुरू कर दिया. नीमा की चुदाई के दौरान फ्रेंची पर लगे उसके गाढ़े वीर्य के दर्ज़नो दाग-धब्बे उसकी मा उसे बड़े ध्यान-पूर्वक परखती दिखती है.
 
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