hotaks444
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"निकुंज !! त .. तू यह क्या कर रहा है अपनी ...." कम्मो तड़प कर बोली मगर अपने कथन को पूरा करने का साहस नही जुटा सकी. जब कुच्छ वक़्त पूर्व वह मा स्वयं अपने पुत्र के साथ इन्ही पापी क्रिया-कलापो में लिप्त रही थी तो अब किस मुख से निकुंज के समक्ष पुन्य का बखान कर पाती.
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कम्मो की बात सुन तुरंत निकुंज अपना चेहरा अपनी बहेन के चेहरे से ऊपर उठा लेता है लेकिन जवाब में एक लफ्ज़ नही कहता. अपने बाएँ हाथ की मदद से वह निक्की के मुलायम गालो को दबा कर उसका बंद मूँह खोलने का प्रयत्न करने लगता है, उसकी असहाय बहेन तो शुरुआत से ही बिना कुच्छ सोचे-विचारे अपने भाई का निर्विरोध समर्थन करती चली आ रही थी.
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"बेशरम !! रुक जा" निकुंज की अगली निर्लज्ज हरक़त देख कम्मो चिल्लाने पर मजबूर हो गयी और अति-शीघ्र वह अपने पुत्र के समीप पहुँच कर अपने हाथ में पड़का ग्लूकोस का डिब्बा बल-पूर्वक उसकी पीठ पर ठोकने लगती है.
"परे हट नीच इंसान !! तेरी हवस का शिकार मैं अपनी बच्ची को कभी नही बनने दूँगी" आवेश से थरथराती कम्मो बिलख उठती है मगर क्षण भर बाद जो वास्तविक दृश्य उसकी रुआंसी आँखों ने देखा, खुद ब खुद उसके हाथ से छूट कर वह डिब्बा फर्श पर गिर पड़ा.
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निकुंज उसे निरंतर अपनी साँसे निक्की के मूँह के भीतर छोड़ते हुए अपनी बेहोश बहेन को होश में लाने का प्रयास करता नज़र आता है, जिसे हम मेडिकल टर्म्ज़ में "कार्डीयो पुल्मनरी रेससिटेशन" कहते हैं.
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"निक्की !! होश में आ" इस पूरे घटना-क्रम में पहली बार निकुंज के मूँह से कोई अल्फ़ाज़ बाहर निकले. चिंता-स्वरूप वह अपनी बहेन का गाल थपथपा कर बोला और बोलने के पश्चात ही उसने अपने दाएँ हाथ के खुले पंजे को अपनी बहेन की दाईं चूची के ऊपर दबा दिया जैसे उसकी धड़कनो को महसूस कर पता लगाना चाह रहा हो कि वे सामान्य रूप से चल रही हैं या नही. निक्की की बंद मगर लगातार मचलती पलकें कहीं उनके नाटक को कम्मो पर ज़ाहिर ना कर दें, नतीजन फुर्ती में निकुंज अपना बायां हाथ अपनी बहेन गाल से हटा कर उसके माथे व नाक के मध्य रख देता है.
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"बेटा !! आँखें खोल" निकुंज के गले से बरबस यही शब्द फूट रहे थे और अपनी मा की मौजूदगी में ही वह अपनी बहेन के साथ शरारत भरी अठखेलियाँ किए जा रहा था. माउथ टू माउथ थेरपी के बहाने दर्ज़नो बार निकुंज अपने होंठो की कठोरता से निक्की के अत्यंत कोमल होंठ सरलता-पूर्वक चूस चुका था और साथ ही अपनी बहेन की मांसल चूची का भी भरपूर लुफ्त उठा रहा था.
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अपने पसंदीदा भाई की कामुक हरक़तों के प्रभाव से निक्की आख़िर कब तक खुद पर सैयम रख पाती, उसके सब्र का बाँध भी अब टूटने के नज़दीक था. अपनी कुँवारी चूत की सन्करि गहराई में वह रस उमड़ता महसूस करने लगी थी और उसकी चूचियों के निपल तंन कर नोकदार औज़ार में परिवर्तित हो चले थे. सिहरन से काँपती निक्की अपने बिस्तर पर बिछि बेडशीट अपनी दोनो मुठ्ठी में जाकड़ लेती है ताकि अपने भाई को अपनी अत्यधिक उत्तेजित अवस्था का भान करवा सके वरना वह तो किसी भी पल झड़ने को तैयार थी.
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"ह .. हां निकुंज !! थोड़ी और कोशिश कर, तेरी बहेन होश में लौट रही है" अपनी बेटी के बदन में अचानक होती हलचल और उसकी बंद मुट्ठी पर नज़र पड़ते ही कम्मो प्रसन्नता से अपने पुत्र की पीठ पर अपना हाथ फेरते हुए उसका उत्साह-वर्धन करना शुरू कर देती है.
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"इससे पहले कि मोम को हम पर शक़ हो, मुझे रुक जाना चाहिए" सोचने के पश्चात निकुंज ने अंतिम बार अपनी बहेन के खुले मूँह के भीतर अपनी साँस छोड़ी और निक्की की दाईं चूची जिसे अब तक मात्र वह सहला भर पा रहा था, संपूर्ण चूची कठोरता से अपनी दाईं मुट्ही में भींचने की लालसा को पूरा करने के उपरांत निकुंज प्रेम-पूर्वक अपनी बहेन का नाम पुकारने लगता है.
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"उनह .. उन्ह" अपनी बंद पलकें खोलते हुए निक्की तीव्रता से हांफ रही थी, जिनमें उसकी वास्तविक उत्तेजना व नाटकीय रोमांच दोनो के सम्तुल्य मिश्रण मौजूद थे. जहाँ अपने भाई को बेहद करीब से महसूस करने की उसे खुशी थी वहीं निकुंज द्वारा स्खलित ना हो पाने की उसकी मन-वांच्छित अभिलाषा के अधूरे रह जाने का गम भी था.
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कम्मो की बात सुन तुरंत निकुंज अपना चेहरा अपनी बहेन के चेहरे से ऊपर उठा लेता है लेकिन जवाब में एक लफ्ज़ नही कहता. अपने बाएँ हाथ की मदद से वह निक्की के मुलायम गालो को दबा कर उसका बंद मूँह खोलने का प्रयत्न करने लगता है, उसकी असहाय बहेन तो शुरुआत से ही बिना कुच्छ सोचे-विचारे अपने भाई का निर्विरोध समर्थन करती चली आ रही थी.
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"बेशरम !! रुक जा" निकुंज की अगली निर्लज्ज हरक़त देख कम्मो चिल्लाने पर मजबूर हो गयी और अति-शीघ्र वह अपने पुत्र के समीप पहुँच कर अपने हाथ में पड़का ग्लूकोस का डिब्बा बल-पूर्वक उसकी पीठ पर ठोकने लगती है.
"परे हट नीच इंसान !! तेरी हवस का शिकार मैं अपनी बच्ची को कभी नही बनने दूँगी" आवेश से थरथराती कम्मो बिलख उठती है मगर क्षण भर बाद जो वास्तविक दृश्य उसकी रुआंसी आँखों ने देखा, खुद ब खुद उसके हाथ से छूट कर वह डिब्बा फर्श पर गिर पड़ा.
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निकुंज उसे निरंतर अपनी साँसे निक्की के मूँह के भीतर छोड़ते हुए अपनी बेहोश बहेन को होश में लाने का प्रयास करता नज़र आता है, जिसे हम मेडिकल टर्म्ज़ में "कार्डीयो पुल्मनरी रेससिटेशन" कहते हैं.
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"निक्की !! होश में आ" इस पूरे घटना-क्रम में पहली बार निकुंज के मूँह से कोई अल्फ़ाज़ बाहर निकले. चिंता-स्वरूप वह अपनी बहेन का गाल थपथपा कर बोला और बोलने के पश्चात ही उसने अपने दाएँ हाथ के खुले पंजे को अपनी बहेन की दाईं चूची के ऊपर दबा दिया जैसे उसकी धड़कनो को महसूस कर पता लगाना चाह रहा हो कि वे सामान्य रूप से चल रही हैं या नही. निक्की की बंद मगर लगातार मचलती पलकें कहीं उनके नाटक को कम्मो पर ज़ाहिर ना कर दें, नतीजन फुर्ती में निकुंज अपना बायां हाथ अपनी बहेन गाल से हटा कर उसके माथे व नाक के मध्य रख देता है.
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"बेटा !! आँखें खोल" निकुंज के गले से बरबस यही शब्द फूट रहे थे और अपनी मा की मौजूदगी में ही वह अपनी बहेन के साथ शरारत भरी अठखेलियाँ किए जा रहा था. माउथ टू माउथ थेरपी के बहाने दर्ज़नो बार निकुंज अपने होंठो की कठोरता से निक्की के अत्यंत कोमल होंठ सरलता-पूर्वक चूस चुका था और साथ ही अपनी बहेन की मांसल चूची का भी भरपूर लुफ्त उठा रहा था.
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अपने पसंदीदा भाई की कामुक हरक़तों के प्रभाव से निक्की आख़िर कब तक खुद पर सैयम रख पाती, उसके सब्र का बाँध भी अब टूटने के नज़दीक था. अपनी कुँवारी चूत की सन्करि गहराई में वह रस उमड़ता महसूस करने लगी थी और उसकी चूचियों के निपल तंन कर नोकदार औज़ार में परिवर्तित हो चले थे. सिहरन से काँपती निक्की अपने बिस्तर पर बिछि बेडशीट अपनी दोनो मुठ्ठी में जाकड़ लेती है ताकि अपने भाई को अपनी अत्यधिक उत्तेजित अवस्था का भान करवा सके वरना वह तो किसी भी पल झड़ने को तैयार थी.
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"ह .. हां निकुंज !! थोड़ी और कोशिश कर, तेरी बहेन होश में लौट रही है" अपनी बेटी के बदन में अचानक होती हलचल और उसकी बंद मुट्ठी पर नज़र पड़ते ही कम्मो प्रसन्नता से अपने पुत्र की पीठ पर अपना हाथ फेरते हुए उसका उत्साह-वर्धन करना शुरू कर देती है.
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"इससे पहले कि मोम को हम पर शक़ हो, मुझे रुक जाना चाहिए" सोचने के पश्चात निकुंज ने अंतिम बार अपनी बहेन के खुले मूँह के भीतर अपनी साँस छोड़ी और निक्की की दाईं चूची जिसे अब तक मात्र वह सहला भर पा रहा था, संपूर्ण चूची कठोरता से अपनी दाईं मुट्ही में भींचने की लालसा को पूरा करने के उपरांत निकुंज प्रेम-पूर्वक अपनी बहेन का नाम पुकारने लगता है.
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"उनह .. उन्ह" अपनी बंद पलकें खोलते हुए निक्की तीव्रता से हांफ रही थी, जिनमें उसकी वास्तविक उत्तेजना व नाटकीय रोमांच दोनो के सम्तुल्य मिश्रण मौजूद थे. जहाँ अपने भाई को बेहद करीब से महसूस करने की उसे खुशी थी वहीं निकुंज द्वारा स्खलित ना हो पाने की उसकी मन-वांच्छित अभिलाषा के अधूरे रह जाने का गम भी था.