Porn Sex Kahani पापी परिवार - Page 33 - SexBaba
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Porn Sex Kahani पापी परिवार

"निकुंज !! त .. तू यह क्या कर रहा है अपनी ...." कम्मो तड़प कर बोली मगर अपने कथन को पूरा करने का साहस नही जुटा सकी. जब कुच्छ वक़्त पूर्व वह मा स्वयं अपने पुत्र के साथ इन्ही पापी क्रिया-कलापो में लिप्त रही थी तो अब किस मुख से निकुंज के समक्ष पुन्य का बखान कर पाती.


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कम्मो की बात सुन तुरंत निकुंज अपना चेहरा अपनी बहेन के चेहरे से ऊपर उठा लेता है लेकिन जवाब में एक लफ्ज़ नही कहता. अपने बाएँ हाथ की मदद से वह निक्की के मुलायम गालो को दबा कर उसका बंद मूँह खोलने का प्रयत्न करने लगता है, उसकी असहाय बहेन तो शुरुआत से ही बिना कुच्छ सोचे-विचारे अपने भाई का निर्विरोध समर्थन करती चली आ रही थी.


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"बेशरम !! रुक जा" निकुंज की अगली निर्लज्ज हरक़त देख कम्मो चिल्लाने पर मजबूर हो गयी और अति-शीघ्र वह अपने पुत्र के समीप पहुँच कर अपने हाथ में पड़का ग्लूकोस का डिब्बा बल-पूर्वक उसकी पीठ पर ठोकने लगती है.


"परे हट नीच इंसान !! तेरी हवस का शिकार मैं अपनी बच्ची को कभी नही बनने दूँगी" आवेश से थरथराती कम्मो बिलख उठती है मगर क्षण भर बाद जो वास्तविक दृश्य उसकी रुआंसी आँखों ने देखा, खुद ब खुद उसके हाथ से छूट कर वह डिब्बा फर्श पर गिर पड़ा.


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निकुंज उसे निरंतर अपनी साँसे निक्की के मूँह के भीतर छोड़ते हुए अपनी बेहोश बहेन को होश में लाने का प्रयास करता नज़र आता है, जिसे हम मेडिकल टर्म्ज़ में "कार्डीयो पुल्मनरी रेससिटेशन" कहते हैं.


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"निक्की !! होश में आ" इस पूरे घटना-क्रम में पहली बार निकुंज के मूँह से कोई अल्फ़ाज़ बाहर निकले. चिंता-स्वरूप वह अपनी बहेन का गाल थपथपा कर बोला और बोलने के पश्चात ही उसने अपने दाएँ हाथ के खुले पंजे को अपनी बहेन की दाईं चूची के ऊपर दबा दिया जैसे उसकी धड़कनो को महसूस कर पता लगाना चाह रहा हो कि वे सामान्य रूप से चल रही हैं या नही. निक्की की बंद मगर लगातार मचलती पलकें कहीं उनके नाटक को कम्मो पर ज़ाहिर ना कर दें, नतीजन फुर्ती में निकुंज अपना बायां हाथ अपनी बहेन गाल से हटा कर उसके माथे व नाक के मध्य रख देता है.


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"बेटा !! आँखें खोल" निकुंज के गले से बरबस यही शब्द फूट रहे थे और अपनी मा की मौजूदगी में ही वह अपनी बहेन के साथ शरारत भरी अठखेलियाँ किए जा रहा था. माउथ टू माउथ थेरपी के बहाने दर्ज़नो बार निकुंज अपने होंठो की कठोरता से निक्की के अत्यंत कोमल होंठ सरलता-पूर्वक चूस चुका था और साथ ही अपनी बहेन की मांसल चूची का भी भरपूर लुफ्त उठा रहा था.


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अपने पसंदीदा भाई की कामुक हरक़तों के प्रभाव से निक्की आख़िर कब तक खुद पर सैयम रख पाती, उसके सब्र का बाँध भी अब टूटने के नज़दीक था. अपनी कुँवारी चूत की सन्करि गहराई में वह रस उमड़ता महसूस करने लगी थी और उसकी चूचियों के निपल तंन कर नोकदार औज़ार में परिवर्तित हो चले थे. सिहरन से काँपती निक्की अपने बिस्तर पर बिछि बेडशीट अपनी दोनो मुठ्ठी में जाकड़ लेती है ताकि अपने भाई को अपनी अत्यधिक उत्तेजित अवस्था का भान करवा सके वरना वह तो किसी भी पल झड़ने को तैयार थी.


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"ह .. हां निकुंज !! थोड़ी और कोशिश कर, तेरी बहेन होश में लौट रही है" अपनी बेटी के बदन में अचानक होती हलचल और उसकी बंद मुट्ठी पर नज़र पड़ते ही कम्मो प्रसन्नता से अपने पुत्र की पीठ पर अपना हाथ फेरते हुए उसका उत्साह-वर्धन करना शुरू कर देती है.


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"इससे पहले कि मोम को हम पर शक़ हो, मुझे रुक जाना चाहिए" सोचने के पश्चात निकुंज ने अंतिम बार अपनी बहेन के खुले मूँह के भीतर अपनी साँस छोड़ी और निक्की की दाईं चूची जिसे अब तक मात्र वह सहला भर पा रहा था, संपूर्ण चूची कठोरता से अपनी दाईं मुट्ही में भींचने की लालसा को पूरा करने के उपरांत निकुंज प्रेम-पूर्वक अपनी बहेन का नाम पुकारने लगता है.


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"उनह .. उन्ह" अपनी बंद पलकें खोलते हुए निक्की तीव्रता से हांफ रही थी, जिनमें उसकी वास्तविक उत्तेजना व नाटकीय रोमांच दोनो के सम्तुल्य मिश्रण मौजूद थे. जहाँ अपने भाई को बेहद करीब से महसूस करने की उसे खुशी थी वहीं निकुंज द्वारा स्खलित ना हो पाने की उसकी मन-वांच्छित अभिलाषा के अधूरे रह जाने का गम भी था.
 
पापी परिवार--66





"निक्की !! मैं कयि दिनो से गौर कर रहा हूँ. तू ढंग से खाना नही खाती, हर वक़्त उदास रहती है. आख़िर इतनी टेन्षन क्यों है तुझे ?" डाँटने के लहजे में उसने पुछा.

"जब तेरा भाई तेरे साथ है !! बेटा तुझे किस बात का डर. रघु के सिलसिले में मुझे क्लिनिक जाना है, शाम को तुझे भी साथ ले चलूँगा. अभी तू रिलॅक्स कर" बोल कर निकुंज अपनी बहेन के सर पर हाथ फेरते हुए स्वयं अपने प्रश्न का उत्तर भी देता है. तत-पश्चात बिस्तर से उठ कर उसने एक नज़र नीचे फर्श पर पड़े ग्लूकोस के डिब्बे पर डाली और अपनी मा को देखे बिना ही वह कमरे से बाहर निकल जाता है. आज उसने निक्की के दिल-ओ-दिमाग़ में व्याप्त कम्मो के डर को काफ़ी हद्द तक समाप्त कर दिया था

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अपने बेटे की नाराज़गी कम्मो स-हर्ष स्वीकार कर लेती है मगर अपनी बेटी के समकक्ष उसे मनाने की चेष्टा नही कर पाती और तभी वह निकुंज को कमरे से बाहर जाते देख कर भी चुप-चुप रही "अच्छा हुआ जो मैने निक्की की बेहोशी के दौरान निकुंज को बुरा-भला कहा वरना पता नही मेरी बेटी, मेरे और अपने भाई के बारे में क्या सोचती. खेर निकुंज को तो मैं किसी भी तरह मना ही लूँगी मगर पहले मुझे निक्की को समहालना चाहिए" ऐसा विचार कर कम्मो अपनी बेटी के सिरहाने बैठ उसका टॉप व्यवस्थित करने लगती है. ख़ास कर उसकी दाईं चूची वाला हिस्सा, जिस पर निकुंज का मजबूत हाथ कयि सलवटों के निशान छोड़ गया था.

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"मोम !! आप बे-वजह परेशान मत हो, मैं अब ठीक हूँ" निक्की ने अपनी कामुक आँखों की खुमारी को अपनी मा से छुपाने का प्रयत्न किया. अब तक वह अपनी चेतना में स्थिरता नही ला पाई थी. कम्मो का हाथ उसके दाए स्तन के आस-पास मंडरा रहा था और निक्की कतयि नही चाहती थी कि उसकी मा उसके तने चूचक को महसूस कर उसकी उत्तेजना से परिचित हो. लोवर के भीतर उसकी कच्छि उसकी कुँवारी चूत के कामरस से पूरी तरह भीगी हुई थी, जिसे जल्द से जल्द बदलना उसकी प्रथम प्राथमिकता बन चुकी थी.

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"तू बेहोश कैसे हो गयी बेटी ?" अपनी मा के सवाल के जवाब में निक्की अत्यधिक गर्मी का हवाला देती है, इसके अलावा कोई अन्य उपयुक्त बहाना उसे सूझ नही पाया था. प्रेम-स्वरूप जो हिदायतें पूर्व में निकुंज ने अपनी बहेन को दी थीं, उसकी मा के लफ्ज़ भी कुच्छ उसी अंदाज़ को बयान करते नज़र आ रहे थे.

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"मोम !! आप डॅड से इस बात का ज़िकरा मत करना वरना खमोखा वे परेशान होंगे और क्या पता मुझसे नाराज़ भी हो जाएँ" बोल कर निक्की अपनी मा के आँचल में अपना चेहरा छुपा लेती है. कमज़ोर दिल की स्वामिनी उस मा की आँखें भी फॉरन नम्म हो उठी और अंत-तह अपनी पुत्री को आराम करने की सलाह देने के उपरांत वह उसके कमरे से बाहर चली गयी.

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"भाई !! मेरे कारण मोम ने आप के ऊपर लांच्छन लगा दिया" शाम के वक़्त निकुंज अपनी बहेन को क्लिनिक ले जा रहा था. काफ़ी अरसे बाद उन्हें अकेले वक़्त बिताने का मौका मिला था और जिसकी खुशी से उन दोनो के चेहरे बेहद खिले हुए थे.

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"निक्की !! तू बे-वजह फिकर करती है. मोम तुझसे ज़्यादा प्यार किसी को नही करती और तभी वे मुझ पर बरस पड़ी थीं. उन्होने पूरी ताक़त से ग्लूकोस का डिब्बा मेरी पीठ पर ठोका, अब तक मुझे दर्द का एहसास हो रहा है" निकुंज मुस्कुराते हुए बोला. वह वाकाई अपनी मा के भोलेपन को नकार नही सकता था. कम्मो की जगह यदि किसी दूसरे शक्स के समकक्ष उसने अपनी बहेन साथ माउत तो माउत थेरपी वाला नाटक किया होता तो यक़ीनन अल्प समय में ही उसका भांडा फूट जाना था.

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"मोम के सामने मेरे साथ उट-पटांग हरक़तें किए जा रहे थे, तो मार कैसे ना पड़ती" कह कर निक्की का अत्यंत सुंदर मुखड़ा लज्जा से भर उठा. उसका अशांत मन अब पूर्ण-रूप से शांत हो चुका था मगर तंन की तृप्ति से वंचित थी.

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"झूठी कहीं की !! जैसे तुझे मज़ा नही आया. मैं सॉफ लॅफ्ज़ो में नही कह सकता निक्की वरना मोम की तरह तू भी मुझे ग़लत समझेगी" निकुंज कार की स्पीड को कम करते हुए बोला. उसका इशारा अपनी बहेन की काम-उत्तेजना की तरफ था.

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"मैं भला क्यों नाराज़ होने लगी. मैं जानती हूँ आप ने मेरे दिमाग़ से मोम का ख़ौफ़ मिटाने के लिए वो सब किया" निक्की हौले से फुसफुसाई. एक लड़की होने के नाते उसे अपने जज़्बातों पर बेहद काबू रखना था ताकि उसके भाई के समकक्ष उसकी गर्मिया हमेशा बारकार रहे.

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"बेटा तू ठीक कह रही है. मेरी मजबूरी थी इस लिए जान-बूझ कर मुझे मोम सामने तुझे किस करना पड़ा" क्लिनिक की पार्किंग में निकुंज ने अपनी कार पार्क कर दी. अब वह अपनी बहेन का अत्यंत शर्मीला चेहरा स्थिरता-पूर्वक निहार सकता था.

"तेरा बूब दबाना भी ज़रूरी था वरना उन्हें शक़ हो जाता" वह निक्की की चुस्त नारंगी कुरती के ऊपर उभरी उसकी कसी चूचियों को देखते हुए कहता है.

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"भाई !! उस वक़्त मुझे तन्ग कर आप का मन नही भरा जो इस वक़्त भी मुझे छेड़ रहे हो ?" निक्की लो वाय्स में बोली. अपने भाई की निगाहें अपने मम्मों पर महसूस कर फॉरन वह उन्हें अपने सफेद दुपट्टे से ढँक लेती है.

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"मैने कहा था ना, तू मुझे ग़लत समझ लेगी" निकुंज अफ़सोस जताने का ढोंग करता है.




"डॉक्टर'स भी मरीज़ की नब्ज़ उसकी कलाई पकड़ कर चेक करते हैं और आप कहते हो कि मैं अपने भाई को ग़लत समझूंगी" निक्की ने अपना कथन निकुंज की आँखों में झाँकते हुए पूरा किया और इसके उपरांत ही वह अपना दुपट्टा उतार कर डॅश बोर्ड पर रख देती है.

"शायद मेरी ड्रेस इसके बगैर ज़्यादा अच्छी लगेगी" उसके नशीले नयनो का प्रभाव इतना प्रबल था कि उसके भाई की आँखें तुरंत अपनी हार स्वीकार कर, इधर-उधर मटकने पर विवश हो उठी.

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"हमें चलना चाहिए" निकुंज सिर्फ़ इतना ही कह सका और कार से बाहर निकलने लगता है. उसके पिछे निक्की भी उतरी मगर अपने दुपट्टे को वह दोबारा पहेन चुकी थी.

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"अपने भाई का हक़ मैं किसी और को कभी नही दूँगी" वह मुस्कुराइ और अचंभित निकुंज के साथ चलना शुरू कर देती है. जहाँ अपनी बातों के ज़रिए उसने अपने भाई के मश्तिश्क में खलबली मचा दी थी वहीं उनके मर्यादित रिश्ते के भविश्य को भी स्पष्ट-रूप से उजागर कर दिया था.
 
कॉलेज से लौटते वक़्त निम्मी ने अपनी अक्तिवा शिवानी के हॉस्टिल की तरफ मोड़ ली. काफ़ी दिनो से ना तो उसने अपनी दोस्त को देखा था और ना ही उससे कोई बात-चीत हो पाई थी. आज स्नेहा के मूँह से शिवानी का नाम सुन निम्मी ने सुबह ही मन बना लिया था कि वह घर जाने से पूर्व अपनी दोस्त से मिलने जाएगी. हॉस्टिल के रिसेप्षन पर अपनी पर्सनल इन्फर्मेशन देने के उपरांत वह शिवानी के कमरे का दरवाज़ा खटखटाती है.


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"नामिता" दरवाज़ा खोल शिवानी फॉरन चौंक पड़ती है. विश्वास से परे कि अभी वह निम्मी के बारे में ही सोच रही थी, आख़िर अपनी दोस्त की बड़ी भाभी जो बनने वाली थी.


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"मैं कोई भूत नही हूँ !! चल हट, अंदर आने दे" निम्मी हँसते हुए बोली और सीधे अपनी बाहें उसके गले में डाल दी. शिवानी और उसके मध्य का मन-मुटाव अब पूर्ण-रूप से समाप्त हो चुका था और तभी शिवानी भी अपनी भावी ननद को प्रेम-पूर्वक अपने सीने से चिपका लेती है.


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"आज इस ग़रीब के यहाँ कैसे आना हुआ ?" शरारत-वश शिवानी ने उसे छेड़ा और क्षण मात्र में निम्मी का खुशनुमा चेहरा अत्यंत गंभीर हो उठा.


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"इसका मतलब तूने मुझे माफ़ नही क्या !! छोड़ मुझे, मैं वापस जा रही हूँ" निम्मी अपनी दोस्त की बाहों में कसमसाते हुए बोली मगर शिवानी उसे आज़ाद नही होने देती.


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"ओये नौटंकी !! चुप-चाप से अंदर आ जा वरना क्या फ़ायदा मुझे ज़बरदस्ती करनी पड़े" कह कर शिवानी ने सरलता-पूर्वक उसे कमरे के भीतर धकेल दिया और तीव्रता से दरवाज़े की कुण्डी लगाने के पश्चात हँसने लगती है. कहाँ वह यू.पी. की चरि-चराई लौंडिया और निम्मी मुंबई की कमसिन काली.


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"तू है तो कमीनी मगर छोड़ ..." बेचारी निम्मी चाह कर भी अपनी दोस्त से भिड़ने की हिम्मत नही जुटा पाती और अपना कथन अधूरा छोड़ कमरे में मौजूद बिस्तर पर अपने गोल मटोल चूतडो की तशरीफ़ रख लेती है.
 
"सच कहूँ तो नामिता !! तेरे करीब होने से मुझे बहुत खुशी मिलती है. जाने क्यों लगता है कि तेरे-मेरे बीच कोई रिश्ता जुड़ा हुआ है" अपनी दोस्त को परखने के उद्देश्य से शिवानी ने कहा और मटके का ठंडा पानी उसे ऑफर करती है.


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"हम दोनो की मंज़िल एक थी शिवानी और शायद तभी तुझे ऐसा लगता हो" निम्मी पानी का ग्लास स्वीकारते हुए बोली.


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"अच्छा ये बता !! कॉलेज में सब ठीक-ठाक चल रहा है ना ?" शिवानी ने पुछा. चूँकि वह निम्मी के चंचल व तेज़ स्वाभाव से भली-भाँति परिचित थी, तुरंत उसने वार्तालाप का केन्द्र बिंदु बदल दिया.


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"हां सब बढ़िया है !! मेरी माने तो तू भी कॉलेज कंटिन्यू कर ले शिवानी, सिर्फ़ लास्ट सेमिस्टर की ही तो बात है" निम्मी ने अपनी दोस्त का हाथ पकड़ कर उसे अपने नज़दीक बिताते हुए कहा.


"मैं नही चाहती, तू मेरी वजह से अपनी लाइफ स्पायिल करे. अगर फीस का इश्यू है तो मैं खुद तेरा सारा खर्चा उठाने को तैयार हूँ" ग्लानि-स्वरूप निम्मी बोली. यदि उसने अशोक और शिवानी के प्यार के दरमियाँ अपनी टाँग नही अड़ाई होती तो उसकी दोस्त अपने बने-बनाए करियर से कभी खिलवाड़ ना करती.


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"खुद को दोष मत दे नामिता, मुझे तुझसे कोई शिक़ायत नही. दरअसल मेरी शादी तय हो चुकी है तो अब आगे पढ़ने की मुझे कोई ज़रूरत नही" शिवानी ने विस्फोट किया.


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"त .. तू बहुत खराब है शिवानी !! इतनी बड़ी बात तूने मुझसे च्छुपाई. लड़का कौन है, क्या करता है, कहाँ रहता है ?" निम्मी एक साथ सारे सवाल पुच्छ बैठी.


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"अरे बस-बस !! साँस तो ले ले पागल. मेरा ससुराल इसी शहेर में है और मैं अपने सास-ससुर से मिल चुकी हूँ मगर लड़के को अब तक नही देखा" शिवानी ने नॉर्मल टोन में जवाब दिया. वह सोच-सोच कर दोहरी होती जा रही थी कि जब निम्मी को असलियत का पता चलेगा, जाने वह कैसे रिक्ट करेगी.


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"यहीं मुंबई में !! ओह वाउ शिवानी, यार कम से कम तेरा-मेरा साथ तो बना ही रहेगा. खेर ये बता, शादी कब की है ?" निम्मी ने दोबारा प्रश्न किया.


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"अभी डेट फिक्स नही हुई, मे बी कुच्छ टाइम लगे" शिवानी ने कहा.


"तेरी हां का इंतज़ार है नामिता !! बस उसी दिन मेरी शादी हो जाएगी" वह खुद से बोलती है.


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"ह्म्म !! चल आज मैं तुझे अपने डॅड से मिलवाकर तेरी जॉब का इंतज़ाम किए देती हूँ. जब शादी होगी तब नौकरी छोड़ देना" कहने के उपरांत ही जहाँ निम्मी ने अपने पिता का नंबर डाइयल कर दिया वहीं शिवानी को अब अपनी जल्दबाज़ी भारी बेवकूफी पर पछ्तावा होने लगता है.
 
अपने वास्तविक भयभीत चेहरे पर साधारण भाव लाने की प्रयास-रत शिवानी अन्द्रूनि घबराहट से बहाल थी. जानबूझ कर उसने ग़लती की थी, अब मात्र अंजाम भुगतना बाकी था.


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"इन्हें कॉल करना ही बेकार है" दीप द्वारा कॉल पिक ना करने पर निम्मी मन ही मन झुंझता उठी और फॉरन नंबर री-डाइयल किया.


"कहीं चुदाई में तो बिज़ी नही ?" वा उस वक़्त को याद कर संदेह में डूब जाती है जब दीप उसे अपने ऑफीस के बाथरूम के भीतर बुरी तरह से चोद रहा था और उसी दौरान ग्वेस्टर्म के बिस्तर पर पड़ा उसका सेल 5 से 7 बार लगातार रिंग हुआ था.


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शिवानी को कुच्छ पल राहत की साँसे महसूस करवाने के उपरांत निम्मी अपने घर का लॅंड-लाइन नंबर डाइयल कर देती है, ताकि अपने शक़ को सच साबित कर सके. अब वह काफ़ी हद्द तक अपने चोदु पिता की करतूतों से वाकिफ़ जो हो चली थी.


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"अरे छोड़ नामिता !! अंकल बिज़ी होंगे" अपने बचाव की उम्मीद में शिवानी उसे टोकते हुए बोली मगर अपनी दोस्त पर कोई प्रभाव नही डाल पाती.


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"हेलो मोम मैं निम्मी !! क्या डॅड घर पर हैं ?" उसने सवाल किया.


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"हां सो रहे हैं !! तू कहाँ से बोल रही, घर कब तक लौटेगी ?" उल्टे कम्मो के ममता-मई प्रश्न बरस पड़े.


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"बस रास्ते में हूँ मोम !! आधा घंटा लगेगा" कह कर निम्मी ने कॉल कट कर दिया.


"तू रेडी तो हो !! मेरे घर चल रहे हैं" इतना सुनते ही शिवानी की रूह काँप गयी. दीप से अकेले मिलना एक वक़्त को ठीक था मगर निम्मी उसे अपने घर ले कर जाने वाली है, सोचने मात्र से उसके रोंगटे खड़े होने लगे थे.


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"अब मैं तेरे घर जा कर क्या करूँगी नामिता !! तू बे-वजह परेशान होगी" शिवानी फुसफुसाई, अपनी व्याकुलता को अपनी दोस्त पर ज़ाहिर करना उसके अनुमान-स्वरूप मौत को दावत देने समान था.
 
"क्यों !! कोई दिक्कत है क्या. देख शिवानी मैने तुझसे प्रॉमिस किया था कि मैं तुझे जॉब दिलवाने में तेरी मदद करूँगी. पूरे दिन हॉस्टिल में बोर होती रहती है, चार-पैसे कमा लेगी और तेरा टाइम पास भी हो जाएगा" प्रवचन देने के पश्चात निम्मी मुस्कुराइ.


"तू मेरी दोस्त है, मुझे कैसी परेशानी यार ?" वह उसके कंधे को सहलाते हुए बोली.


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"पर ...." शिवानी ने अंतिम प्रयास किया लेकिन निम्मी उसकी कहाँ सुनने वाली थी.


"पर-वर छोड़ शिवानी !! तूने मुझे माफ़ कर दिया है, मैं तभी मानूँगी जब तेरी नौकरी का बन्दो-बस्त करवा दूँगी" उसने रही-सही कसर भी पूरी कर दी.


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शिवानी बिस्तर से उठ कर अपनी आल्मिराह के समीप पहुँची "सलवार-कमीज़ ठीक रहेगा" सोचने के उपरांत उसने एक सिलेटी रंग का चूड़ी-दार सूट पसंद कर लिया. आख़िर पहली बार अपने ससुराल जा रही थी, सादगी दिखाना भी ज़रूरी था.


"मैं चेंज कर के आती हूँ" बोलते हुए वह बाथरूम की दिशा में अपने कदम बढ़ाने लगती है.


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"बहुत बड़ी नौटंकी है तू !! मैं कोई लड़का नही जो तुझे शरम आए, कम से कम अपनी दोस्त की जवानी तो देख ही सकती हूँ" निम्मी ने अपनी दोस्त को छेड़ा.


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"ऐसी कोई बात नही यार !! वो मैं नहा भी लेती" शिवानी ने लजा कर कहा, उसका शर्मीला स्वाभाव निम्मी के ठीक विपरीत था तो अपनी होने वाली ननंद के समक्ष नंगी होना वह कैसे स्वीकार कर सकती थी.


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"हम घर जा रहे हैं शिवानी !! किसी फंक्षन में नही, मुझे 30 मिनिट के अंदर वहाँ पहुँचना होगा वरना मोम फालतू का टेन्षन लेंगी" निम्मी सफाई पेश करती है.


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"ह्म्म" शिवानी ने सूट बिस्तर पर रख दिया और अपने टॉप की निचली कीनोर पकड़ ली. निम्मी की निगाहें अपने जिस्म पर महसूस कर वह अजीब सी कैफियत से रूबरू हो रही थी, ज्यों-ज्यों वह अपने टॉप को ऊपर उठाती उसकी सांसो की रफ़्तार भी तीव्रता से बढ़ती जाती. उसका सपाट पेट अब वस्त्र-हीन हो चुका था.


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"नही नामिता !! मुझसे नही होगा" शिवानी टॉप को व्यवस्थित करते हुए बोली और निम्मी से नज़रें चुराने लगी.


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"हे हे हे हे !! तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे सुहाग सेज पर अपने होने वाले पति के सामने नंगी होने जा रही हो" निम्मी ने ज़ोरों से हसना शुरू कर दिया.


"वैसे तूने मेरा दिल तोड़ दिया, सोचा था एक हॉट स्ट्राइप-टीज़ शो देखने का मौका मिलेगा. चल बाथरूम में चेंज कर ले, मैं इंतज़ार करती हूँ" वह उसे उसका सूट थमाते हुए बोली और शिवानी बिना कुच्छ कहे सीधे बाथरूम के भीतर घुस जाती है.


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"अजीब है यह लड़की" दोनो ही एक-दूसरे के बारे में कुच्छ यही सोच रही थी. शिवानी ने जल्द अपना चेहरा धोया और सूट पहेन कर वापस कमरे में आ गयी.


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सिलेटी रंगत का सूट शिवानी के पूर्ण विकसित सुडोल बदन और उसकी अत्यंत गोरी त्वचा पर बेहद फॅब रहा था. निम्मी प्रत्यक्ष-रूप से अपनी दोस्त की मदमस्त काया को घूर्ने से खुद को कतयि नही रोक पाई. इसमें उसे दोष देना न्याय-संगंत नही होगा, हर स्त्री की तरह निम्मी के मश्तिश्क में भी कहीं ना कहीं हल्की सी ईर्ष्या सा संचार होना लाज़मी था. इक्षा, लालसा, जलन, कुढन, होड़ इत्यादि भाव यदि स्त्री जात से सदा के लिए प्रथक हो जाएँ तो यक़ीनन यह कलयुगी संसार क्षण मात्र में सुधार सकता है, निम्मी कोई अपवाद नही थी.
 
"ओये होये मेडम रंगीली !! जी करता है, तेरी पप्पी ले लूँ" आदत से मजबूर फॉरन निम्मी बिस्तर से उठ खड़ी हुई और शिवानी को चौंकाते हुए उसके कोमल होंठो को चूम लिया.


"वैसे तो पप्पी गालो पर ली जाती है मगर" वह आगे बोल पाती इससे पहले ही शिवानी अपने हाथ से उसका मूँह दबोच लेती है. निम्मी की बेशर्म व अविश्वसनीय हरक़त ने उसे हैरत से भर दिया था.


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"पागल लड़की !! अब बख़्क्ष भी दे मुझे" उसने शरमाहट से भरपूर अपने गालो की लाली छुपाने का असफल प्रयत्न किया और कुच्छ लम्हे बाद निम्मी के गून-घून करते मूँह को छोड़ देती है. जितना वह खुद के व्यवहार को सामान्य रूप प्रदान करने की कोशिश कर रही थी वहीं भविष्य की चिंता से ओत-प्रोत उसका मन उससे कहीं ज़्यादा आंदोलित होता जा रहा था.


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"मैने तो बख़्क्ष दिया मगर मत भूल कि मेरे घर पर डॅड के अलावा मेरा जवान भाई रहता है" निम्मी खिलखिला कर बोली.


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"धात्ट" शिवानी ने उसे अपनी आँखों का डर दिखाया और खुद भी हंस पड़ी. निम्मी के मुताबिक उसे पिया घर जाना था और उम्मीद-स्वरूप कि वहाँ वह विचलित नही होगी और अपने वर्तमान बर्ताव को यूँ ही बरकरार रखेगी मगर अपनी दोस्त की उट-पटांग बातों से निरंतर उसका ध्यान बँट-ता जा रहा था और अल्प समय में कैसे शिवानी खुद के द्वारा उत्पन्न समस्या का निराकरण ढूँढेगी, निश्चित तौर पर बेहद गंभीर मुद्दा बन चुका था.


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"कहाँ खो गयी शिवानी !! हमें देर हो रही है" अपनी दोस्त को सपने से बाहर लाते हुए निम्मी ने कहा.


"तू ही देर कर रही है, मैं तो कब से तैयार खड़ी हूँ" शिवानी ने पलटवार किया. शृंगार आदि में उसे शुरूवात से विश्वास नही था और अपने मॅचिंग दुपट्टे को व्यवस्थित करने के उपरांत दोनो सहेलियाँ हॉस्टिल से बाहर आ गयी.


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"अरे !! मैने कोई डॉक्युमेंट्स तो साथ लिए ही नही, तू रुक मैं ले कर आती हूँ" अक्तिवा पर बैठने से पूर्व शिवानी बोली. दस्तावेज़ तो महज बहाना था, परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाने के उद्देश्य से वह कुच्छ देर का एकांत चाहती थी ताकि अपने होने वाले ससुर को पहले से ही अपने आगमन की सूचना दे सके.
 
"अभी वरबॅली बता देना !! जब डॅड कोई जॉब प्रिफर करें तब मारक्शीट सब्मिट हो जाएगी. हम बहुत लेट हो गये हैं यार, मोम नाराज़ होंगी" निम्मी ने सेल्फ़ बटन प्रेस करते हुए कहा और मजबूरन शिवानी को उसी वक़्त उसके पिछे बैठना पड़ा. अक्तिवा की रफ़्तार के समान उसके दिल की धड़कने भी अत्यंत तीव्रता से बढ़ने लगी थी. उसकी भारी हो चुकी साँसों के अनंत झोंके निम्मी अपनी गर्दन पर महसूस कर रही थी मगर चिल-चिलाती दोपहरी इसकी मुख्य वजह मान उसने कोई प्रतिक्रिया देना उचित नही समझा. अंत-तह दोनो अपनी मंज़िल पर पहुँच जाती हैं.


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घर की बाहरी भव्यता के मद्देनज़र शिवानी की आँखें चौंधियाँ गयी, इवेंट इंडस्ट्री में नाम कमा चुके दीप ने वाकाई अपने आशियाने को बड़े इतमीनान से संवारा था. होने वाले प्रियतम ससुर की कार के अलावा उसे वहाँ एक छम-छमाती सफ़ारी भी खड़ी नज़र आई. कुछ तो आंतरिक घबराहट, कुच्छ अत्यधिक गर्मी के मिले जुले संगम के फल-स्वरूप शिवानी के कोमल होंठ सूखने लगते हैं और शीघ्र ही खुद को सैन्यत करने हेतु वह अपनी जीभ अपने होंठो पर फेरते हुए उन्हें शीतलता प्रदान करना शुरू कर देती है.


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"अंदर चल" निम्मी उसका हाथ थाम कर बोली मगर शिवानी के पैर थे, जो हिलने का नाम ही नही लेना चाहते थे. लगभग सारा ज़ोर उसकी दोस्त को स्वयं लगाना पड़ा और हालात की मारी शिवानी अपना बेजान जिस्म चलायमान करने पर विवश हो उठी. ज्यों-ज्यों घर का मुख्य द्वार नज़दीक आता गया, उसके हृदय की सनसनाहट में प्रबलता से वृद्धि होती चली गयी. लग रहा था जैसे वह बहुत थकि हुई हो और जज़्बाती तौर पर निराश व हताश भी. काल्पनिक विचारो की जितनी धुन अब तक उसने बनाई थी, सामना करने का वक़्त आ चुका था.


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"मोम" हॉल के सोफे पर अपनी आँखें मून्दे बैठी कम्मो आज हुए घटना-क्रम पर गौर फर्मा रही थी, ख़ास कर निकुंज की नाराज़गी उसकी गहेन सोच का प्रमुख विषय था. निम्मी की आवाज़ सुन अनमने मन से उसने अपनी बंद पलकें खोली और क्षण मात्र में उसकी सारी चेतना वापस लौट आई.


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"बहू तू यहाँ ?" आश्चर्यचकित कम्मो सोफे से उठ कर खड़ी हो गयी और अपने कथन की सच्चाई का अनुमान लगाने के लिए अपनी अचंभित निगाँहें शिवानी के चेहरे से जोड़ देती है. निम्मी की समझ में कुच्छ नही आता जब कि शिवानी की तो मजबूरी थी जो उसे भी अपनी होने वाली सास की भाँति रिक्षन देना पड़ा. उसने यक़ीनन घर के सदस्यों की सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिकिरिया की आशा की थी और हुआ भी ठीक वैसा ही.


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"म .. मैं इन्हें बुला कर लाती हूँ" फॉरन कम्मो के कदम सीढ़ियों की दिशा में आगे बढ़ गये और दौड़ती हुई वह अपने बेडरूम में जा पहुँची. अपने पति को घोर निद्रा से जगाने के उपरांत उसने कारण स्पष्ट किया और उसी गति से दोबारा हॉल में आने लगती है.
 
नीचे बुत बन कर खड़ी दोनो सहेलियाँ एक-दूसरे को ऐसे घूर रही थी जैसे उन्होने कोई भूत देख लिया हो. शिवानी की मूक अवस्था निम्मी को अंदर ही अंदर बुरी तरह कचोट देती है. सवालिया अंदाज़ से कुच्छ पुच्छने के लिए वह अपना मूँह खोल पाती इससे पूर्व ही उसके कानो में अपनी मा के लफ्ज़ गूँज उठे.



"तू खड़ी क्यों है बहू ?" कम्मो मुस्कुराते हुवे बोली और शिवानी के करीब आ कर उसे अपने सीने से चिपका लेती है. आख़िर उस मा के निष्प्राण बेटे से शादी करने का फ़ैसला कर शिवानी ने उनके पूरे परिवार पर बहुत बड़ा उपकार किया था, एक औरत होने के नाते कम्मो उसका बलिदान कैसे भूल सकती थी. उस वक़्त शिवानी के सुंदर मुखड़े को निहारने में उसे नैसर्गिक प्रसन्नता की अनुभूति हो रही थी.


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"चरण-स्पर्श मम्मी जी" अत्यंत तुरंत शिवानी ने अपने दुपट्टे को पल्लू में परिवर्तित किया और अपना नंगा सर ढँकने के पश्चात अपनी दोस्त की मा के पैर छु कर आशीर्वाद मांगती है. वह स्वयं अपनी सग़ी मा से कोसो दूर थी और तभी कम्मो के अपने-पन के सुखद मीठे एहसास में फॉरन उसने खुद को डुबो दिया, जिसकी लहरें उसके जिस्म में काफ़ी समय से हिलोरें खा रही थी.


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"यह मेरी दोस्त है और आप बहू-बहू की रट लगाए जा रही हो. कहीं आप पागल तो नही हो गयी मोम ?" प्रत्यक्ष-रूप से ऐसा मिलाप देख निम्मी भड़क उठी और अपनी मा को घूरते हुवे कहा. इस अप्रत्याशित सदमे को झेल पाना शायद उसके बस में नही था. वैसे जो कुच्छ रहा था शिवानी के मुताबिक निम्मी को उसकी कोई भनक नही थी मगर अपनी दोस्त का बढ़ता क्रोध देख वह सहम सी जाती है.


"तू !! तूने तो मेरे विश्वास की धज्जियाँ उड़ा दी. आग लगाने को तुझे मेरा ही घर मिला था" निम्मी का अगला शिकार शिवानी बनी.


"इसी वक़्त चली जा वरना ..." अपनी दोस्त को थप्पड़ मारने के उद्देश्य से उसने अपना हाथ ऊपर उठाया मगर सीढ़ियों से नीचे उतरते अपने पिता पर नज़र पढ़ते ही वह थम गयी.


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"निम्मी !! अपनी बड़ी भाभी से इस लहजे में बात करने की तेरी हिम्मत कैसे हुई ?" दीप गरजा. अपनी बेटी के असाधारण स्वाभाव से वह भली-भाँति परिचित था और अपने बेडरूम के दरवाज़े की ओट में छुप कर खड़ा बस इसी बात का इंतज़ार कर रहा था कि आदत-अनुसार कब निम्मी अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करे और स्वयं उसे बीच-बचाव में आना पड़े. पहले अपनी बीवी और फिर प्रेयसी शिवानी को बेज़्ज़त होते देख दीप खुद पर काबू नही रख पाया और ना चाहते हुवे भी वह अपने प्राणो से प्यारी बेटी पर चिल्ला देता है.


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"बड़ी बहू" शिवानी के लिए दीप का संबोधन सुन निम्मी थोड़ा सकपकाई. उसकी मा के बाद उसके पिता ने भी उसी कथन का प्रयोग किया था. 'बड़ी' शब्द पर विशेष गौर करने के उपरांत निम्मी का ध्यान शीघ्र ही अपने बड़े भाई रघु की तरफ खिंच गया. दर्ज़नो रहस्यमयी प्रश्नो के उत्तर की इक्शुक वह लाख प्रयत्न के बावजूद विचार करने लायक स्थिति में खुद को ढाल नही पाती और एक अंतिम निगाह आस-पास मौजूद तीनो प्राणियों के मौन चेहरों पर डाल अपने कमरे की ओर प्रस्थान करने लगी.
 
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