hotaks444
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जब गुलाब चंद अपनी बीवी बिम्ला देवी को उठाने की कोशिस करता है तो वो पता है कि वो मर चुकी है.
“हे भगवान ये कौन से पापो की सज़ा दे रहे हो हमे आज” --- गुलाब चंद रोते हुवे बोलता है और लड़खड़ा कर ज़मीन पर गिर जाता है.
पर सरिता का ख्याल आते ही वो जल्दी ही हड़बड़ाहट में खड़ा होता है और ठाकुर की हवेली की तरफ दौड़ता है.
वो अभी बीच रास्ते में ही पहुँचता है कि उसकी रूह काँप उठती है.
वो देखता है कि उसकी बेटी सरिता के शरीर पर एक भी कपड़ा नही है और वीर प्रताप उसकी पीठ पर चाबुक मार-मार कर उसे आगे बढ़ने पर मजबूर कर रहा है. गुलाब चंद ये सब देख नही पता और लड़खड़ा कर वहीं सड़क पर गिर जाता है.
“चल साली कुतिया, रुकी तो… यहीं तेरी चूत में डंडा डाल दूँगा” --- वीर प्रताप ने चील्ला कर कहा
“मुझे छ्चोड़ दो मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है”
“इस गाँव की लड़कियों की तो मैं बिना कुछ बिगाड़े भी ऐसी तैसी कर देता हूँ, तेरे भाई ने तो फिर भी बहुत बड़ी गुस्ताख़ी की है”
सरिता भी ये बात आछे से जानती थी कि छोटे ठाकुर से ज़ुबान लड़ाना ठीक नही है लेकिन उसके पास कोई चारा भी तो नही था. उसकी इज़्ज़त सरे आम उतार ली गयी थी. उसे सरे आम नंगा घुमाया जा रहा था.
गुलाब चंद मुस्किल से खड़ा होता है और भाग कर वीर के पैरो में गिर जाता है
“छोटे ठाकुर क्या भूल हो गयी हम से जो हमारे साथ ये सब किया जा रहा है”
“ये अपने बेटे मदन से जा कर पूछ, जिश्ने हमारी छोटी बहन को अगवा कर लिया है” – वीर ने गुलाब चंद को लात मारते हुवे कहा
ये सुन कर गुलाब चंद हैरान रह जाता है, लेकिन फिर से होश संभाल कर ठाकुर के कदमो में गिर जाता है
“मेरी बिटिया को छ्चोड़ दो छोटे ठाकुर, इसने तो आपका कुछ नही बिगाड़ा, जैसे ही मदन मिलेगा मैं खुद उसे आपके पास ले आउन्गा”
“तू क्या उसे मेरे पास लाएगा नीच, चल भाग यहा से वरना तेरी बीवी की तरह तू ही मारा जाएगा”
इस बार वीर इतनी ज़ोर से गुलाब चंद के मूह पर लात मारता है कि वो वहीं बेहोश हो कर गिर जाता है.
“पिता जी आप यहा से चले जाओ ?” – सरिता रोते हुवे कहती है
“चल साली आगे बढ़… वरना तेरी चाँदी उधेड़ दूँगा” --- वीर सरिता की पीठ पर चाबुक मारते हुवे कहता है.
वो लड़खड़ा कर दर्द से कराहते हुवे गिर जाती है
“लगता है इसका यहीं काम करना पड़ेगा”
वीर सरिता के बाल पकड़ कर उसे अपने आगे झुकाता है और पीछे से उस में बेरहमी से समा जाता है.
वाहा चारो तरफ सरिता की चीन्ख गूँज उठती है. गाँव के सभी लोग घरो में हैं. वीर के चारो तरफ बस ठाकुर के ही आदमी हैं.
सरिता पीछे मूड कर देखती है, उसके पिता जी अभी भी बेहोश ज़मीन पर पड़े हैं.
“हे भगवान मेरे साथ यही सब करना था तो मुझे ये जींदगी ही क्यों दी थी. मुझे वैसे ही मार देते. ये मौत से बद-तर सज़ा क्यों मिल रही है मुझे”
वीर अपनी हवश शांत करके हट जाता है और कहता है, “जल्दी से इसकी छोटी बहन का भी पता लगाओ, सुना है कि वो बहुत सुन्दर है, उसका भी यही हाल करना है”
“जी मालिक आप चिंता मत करो वो भी मिल जाएगी” --- बलवंत ने हंसते हुवे कहा
सरिता ज़मीन पर गिर जाती है
“चल उठ साली………… तुझे हवेली तक चलना है”
“हे भगवान ये कौन से पापो की सज़ा दे रहे हो हमे आज” --- गुलाब चंद रोते हुवे बोलता है और लड़खड़ा कर ज़मीन पर गिर जाता है.
पर सरिता का ख्याल आते ही वो जल्दी ही हड़बड़ाहट में खड़ा होता है और ठाकुर की हवेली की तरफ दौड़ता है.
वो अभी बीच रास्ते में ही पहुँचता है कि उसकी रूह काँप उठती है.
वो देखता है कि उसकी बेटी सरिता के शरीर पर एक भी कपड़ा नही है और वीर प्रताप उसकी पीठ पर चाबुक मार-मार कर उसे आगे बढ़ने पर मजबूर कर रहा है. गुलाब चंद ये सब देख नही पता और लड़खड़ा कर वहीं सड़क पर गिर जाता है.
“चल साली कुतिया, रुकी तो… यहीं तेरी चूत में डंडा डाल दूँगा” --- वीर प्रताप ने चील्ला कर कहा
“मुझे छ्चोड़ दो मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है”
“इस गाँव की लड़कियों की तो मैं बिना कुछ बिगाड़े भी ऐसी तैसी कर देता हूँ, तेरे भाई ने तो फिर भी बहुत बड़ी गुस्ताख़ी की है”
सरिता भी ये बात आछे से जानती थी कि छोटे ठाकुर से ज़ुबान लड़ाना ठीक नही है लेकिन उसके पास कोई चारा भी तो नही था. उसकी इज़्ज़त सरे आम उतार ली गयी थी. उसे सरे आम नंगा घुमाया जा रहा था.
गुलाब चंद मुस्किल से खड़ा होता है और भाग कर वीर के पैरो में गिर जाता है
“छोटे ठाकुर क्या भूल हो गयी हम से जो हमारे साथ ये सब किया जा रहा है”
“ये अपने बेटे मदन से जा कर पूछ, जिश्ने हमारी छोटी बहन को अगवा कर लिया है” – वीर ने गुलाब चंद को लात मारते हुवे कहा
ये सुन कर गुलाब चंद हैरान रह जाता है, लेकिन फिर से होश संभाल कर ठाकुर के कदमो में गिर जाता है
“मेरी बिटिया को छ्चोड़ दो छोटे ठाकुर, इसने तो आपका कुछ नही बिगाड़ा, जैसे ही मदन मिलेगा मैं खुद उसे आपके पास ले आउन्गा”
“तू क्या उसे मेरे पास लाएगा नीच, चल भाग यहा से वरना तेरी बीवी की तरह तू ही मारा जाएगा”
इस बार वीर इतनी ज़ोर से गुलाब चंद के मूह पर लात मारता है कि वो वहीं बेहोश हो कर गिर जाता है.
“पिता जी आप यहा से चले जाओ ?” – सरिता रोते हुवे कहती है
“चल साली आगे बढ़… वरना तेरी चाँदी उधेड़ दूँगा” --- वीर सरिता की पीठ पर चाबुक मारते हुवे कहता है.
वो लड़खड़ा कर दर्द से कराहते हुवे गिर जाती है
“लगता है इसका यहीं काम करना पड़ेगा”
वीर सरिता के बाल पकड़ कर उसे अपने आगे झुकाता है और पीछे से उस में बेरहमी से समा जाता है.
वाहा चारो तरफ सरिता की चीन्ख गूँज उठती है. गाँव के सभी लोग घरो में हैं. वीर के चारो तरफ बस ठाकुर के ही आदमी हैं.
सरिता पीछे मूड कर देखती है, उसके पिता जी अभी भी बेहोश ज़मीन पर पड़े हैं.
“हे भगवान मेरे साथ यही सब करना था तो मुझे ये जींदगी ही क्यों दी थी. मुझे वैसे ही मार देते. ये मौत से बद-तर सज़ा क्यों मिल रही है मुझे”
वीर अपनी हवश शांत करके हट जाता है और कहता है, “जल्दी से इसकी छोटी बहन का भी पता लगाओ, सुना है कि वो बहुत सुन्दर है, उसका भी यही हाल करना है”
“जी मालिक आप चिंता मत करो वो भी मिल जाएगी” --- बलवंत ने हंसते हुवे कहा
सरिता ज़मीन पर गिर जाती है
“चल उठ साली………… तुझे हवेली तक चलना है”