hotaks444
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हवेली में रहने वाली वर्षा के लिए सब कुछ बहुत अजीब है. वो बहुत परेशान और डरी हुई है. पर प्यार की खातिर सब कुछ किए जा रही है.
“हमे गाँव की तरफ भागना चाहिए था.. हम क्यों इस जंगल की तरफ आए कल ?” वर्षा ने कहा
“अब आ गये तो आ गये… ये बाते छ्चोड़ो और जल्दी इस पेड़ पर चढ़ो… कोई जुंगली जानवर आ गया तो हम दोनो की चटनी बना कर खा जाएगा”
“मुझे डराव मत मदन… मैं पहले से ही बहुत डरी हुई हूँ”
“अछा ठीक है.. अब जल्दी से चढ़ो”
वर्षा जैसे-तैसे पेड़ पर चढ़ जाती है. उसके चढ़ने के बाद मदन भी पेड़ पर चढ़ जाता है.
दोनो पेड़ के उपर एक मोटे से तने पर बैठ जाते हैं और चैन की साँस लेते हैं
“वो दोनो कहा होंगे मदन ?”
“पता नही…. थे तो वो हमारे आगे लेकिन जंगल में घुसते ही वो जाने किधर चले गये”
“ये तो मुझे भी पता है… मैं पूछ रही हूँ कि वो अब कहा हो सकते हैं”
“क्या पता शायद वो दोनो भी हमारी तरह जंगल में भटक रहे होंगे. इस जंगल से निकलना इतना आसान नही है”
“तो हम कैसे निकलेंगे यहा से ?”
“निकलेंगे, ज़रूर निकलेंगे… मैने कहा आसान नही है…. पर नामुमकिन भी तो नही है… मैं हूँ ना तुम्हारे साथ”
“मुझे भूक लगी है मदन?”
“अभी रात में कुछ मिलना मुस्किल है… मैं नीचे उतर कर देखता हूँ.. हो सकता है कोई फल का पेड़ मिल जाए”
“नही नही तुम अब नीचे मत जाओ… मुझे इतनी भी भूक नही लगी”
“झूट बोल रही हो हैं ना… सुबह से कुछ नही खाया और कहती हो इतनी भी भूक नही लगी. मैने रास्ते भर चारो तरफ देखा पर कोई फल का पेड़ नही मिला… एक बार यहा भी देख लेता हूँ ?”
“वर्षा मदन की और देख कर रोने लगती है… नही कही मत जाओ मुझे सच में भूक नही है”
मदन आगे बढ़ कर वर्षा के चेहरे को हाथो में लेकर उसके माथे को चूम लेता है और कहता है, “तुम चिंता मत करो… सब ठीक हो जाएगा… कल सुबह सबसे पहले तुम्हारे खाने का इंतज़ाम करूँगा”
“पर मदन वो खेत में क्या था ?”
“क्या पता… मैने खुद ऐसा पहली बार देखा है”
“वो दोनो ठीक तो होंगे ना ?”
“हाँ-हाँ ठीक होंगे… वो भी तो हमारे साथ जंगल में घुसे थे”
“इस जंगल के बारे में बहुत बुरी-बुरी अफवाह है मदन”
“ये सब छ्चोड़ो वर्षा और हमारी-तुम्हारी बात करो”
“तुम्हे ऐसे में भी प्यार सूझ रहा है ?”
“दिल में प्यार जींदा रखो वर्षा… हमारे पास यही तो सबसे अनमोल ताक़त है”
मदन जब वर्षा से कहता है ‘दिल में प्यार जींदा रखो वर्षा… हमारे पास यही तो सबसे अनमोल ताक़त है’ तो वर्षा मायूसी भरे शब्दो में मदन से कहती है, “क्या ये प्यार की ताक़त हमे इस भयानक जंगल से निकाल पाएगी ?”
वर्षा जीवन की वास्तविकता को देख कर थोड़ा घबरा रही है. अभी तक उसने बस हवेली की जींदगी देखती थी. उस जींदगी में आराम ही आराम था. एक आम आदमी की जींदगी का उशे पता ही नही था. अपने आप को जंगल के बीच ऐसे हालात में पा कर वो दुखी और मायूस है. शायद ये स्वाभाविक भी है
मदन शायद उसके दिल की बात समझ जाता है और कहता है, “तुम्हारे लिए तो ये सब बहुत अजीब है.. मैं समझ सकता हूँ. पर कल जंगल में घुसने के अलावा हमारे पास और कोई चारा नही था. मैं सिर्फ़ तुम्हारे लिए खेत से भागा, वरना मैं अपने खेत को छ्चोड़ कर हरगिज़ कहीं नही जाता”
“हमे गाँव की तरफ भागना चाहिए था.. हम क्यों इस जंगल की तरफ आए कल ?” वर्षा ने कहा
“अब आ गये तो आ गये… ये बाते छ्चोड़ो और जल्दी इस पेड़ पर चढ़ो… कोई जुंगली जानवर आ गया तो हम दोनो की चटनी बना कर खा जाएगा”
“मुझे डराव मत मदन… मैं पहले से ही बहुत डरी हुई हूँ”
“अछा ठीक है.. अब जल्दी से चढ़ो”
वर्षा जैसे-तैसे पेड़ पर चढ़ जाती है. उसके चढ़ने के बाद मदन भी पेड़ पर चढ़ जाता है.
दोनो पेड़ के उपर एक मोटे से तने पर बैठ जाते हैं और चैन की साँस लेते हैं
“वो दोनो कहा होंगे मदन ?”
“पता नही…. थे तो वो हमारे आगे लेकिन जंगल में घुसते ही वो जाने किधर चले गये”
“ये तो मुझे भी पता है… मैं पूछ रही हूँ कि वो अब कहा हो सकते हैं”
“क्या पता शायद वो दोनो भी हमारी तरह जंगल में भटक रहे होंगे. इस जंगल से निकलना इतना आसान नही है”
“तो हम कैसे निकलेंगे यहा से ?”
“निकलेंगे, ज़रूर निकलेंगे… मैने कहा आसान नही है…. पर नामुमकिन भी तो नही है… मैं हूँ ना तुम्हारे साथ”
“मुझे भूक लगी है मदन?”
“अभी रात में कुछ मिलना मुस्किल है… मैं नीचे उतर कर देखता हूँ.. हो सकता है कोई फल का पेड़ मिल जाए”
“नही नही तुम अब नीचे मत जाओ… मुझे इतनी भी भूक नही लगी”
“झूट बोल रही हो हैं ना… सुबह से कुछ नही खाया और कहती हो इतनी भी भूक नही लगी. मैने रास्ते भर चारो तरफ देखा पर कोई फल का पेड़ नही मिला… एक बार यहा भी देख लेता हूँ ?”
“वर्षा मदन की और देख कर रोने लगती है… नही कही मत जाओ मुझे सच में भूक नही है”
मदन आगे बढ़ कर वर्षा के चेहरे को हाथो में लेकर उसके माथे को चूम लेता है और कहता है, “तुम चिंता मत करो… सब ठीक हो जाएगा… कल सुबह सबसे पहले तुम्हारे खाने का इंतज़ाम करूँगा”
“पर मदन वो खेत में क्या था ?”
“क्या पता… मैने खुद ऐसा पहली बार देखा है”
“वो दोनो ठीक तो होंगे ना ?”
“हाँ-हाँ ठीक होंगे… वो भी तो हमारे साथ जंगल में घुसे थे”
“इस जंगल के बारे में बहुत बुरी-बुरी अफवाह है मदन”
“ये सब छ्चोड़ो वर्षा और हमारी-तुम्हारी बात करो”
“तुम्हे ऐसे में भी प्यार सूझ रहा है ?”
“दिल में प्यार जींदा रखो वर्षा… हमारे पास यही तो सबसे अनमोल ताक़त है”
मदन जब वर्षा से कहता है ‘दिल में प्यार जींदा रखो वर्षा… हमारे पास यही तो सबसे अनमोल ताक़त है’ तो वर्षा मायूसी भरे शब्दो में मदन से कहती है, “क्या ये प्यार की ताक़त हमे इस भयानक जंगल से निकाल पाएगी ?”
वर्षा जीवन की वास्तविकता को देख कर थोड़ा घबरा रही है. अभी तक उसने बस हवेली की जींदगी देखती थी. उस जींदगी में आराम ही आराम था. एक आम आदमी की जींदगी का उशे पता ही नही था. अपने आप को जंगल के बीच ऐसे हालात में पा कर वो दुखी और मायूस है. शायद ये स्वाभाविक भी है
मदन शायद उसके दिल की बात समझ जाता है और कहता है, “तुम्हारे लिए तो ये सब बहुत अजीब है.. मैं समझ सकता हूँ. पर कल जंगल में घुसने के अलावा हमारे पास और कोई चारा नही था. मैं सिर्फ़ तुम्हारे लिए खेत से भागा, वरना मैं अपने खेत को छ्चोड़ कर हरगिज़ कहीं नही जाता”